युगानुसार धर्म शास्त्र-साहित्य
0/5. युगाब्द के शास्त्र-साहित्य (ईश्वर कृत-वेद शास्त्र-साहित्य)
क. प्रथम वेद- ऋृगवेद-इसमें देवताओं का आह्वान करने के लिए मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम वेद है। यह वेद मुख्यतः ऋषि-मुनियों के लिए होता है। इसमें ”ऋक्“ संज्ञक (पद्य बद्ध) मन्त्रों की अधिकता के कारण इसका नाम ऋग्वेद हुआ। इसमें होतृ वर्ग के लिए उपयोगी गद्यात्मक (यजुः) स्वरूप के भी कुछ मन्त्र है।
अ. परिचय-मंत्रो की संख्या-1098, वर्ग-15
ब. रचनाकार-ऋृषि गृत्समद भार्गव परिवार, विश्वामित्र कौशिक परिवार, बामदेव अंगिरस परिवार, भारद्वाज अंगिरस, कण्व परिवार, वशिष्ठ, घोर, जमदग्नि, तीन राजाओं-त्रसदस्यु, अजमीढ़ तथा पुरमीढ़।
स. सम्बन्धित संहिता-शाकल
द. सम्बन्धित ब्राह्मण-एतरेय, कौशतिकि या शाख्यन
य. सम्बन्धित आरण्यक-एतरेय तथा कौशतिकि
र. सम्बन्धित उपनिषद्-एतरेय तथा कौशतिकि
ख. द्वितीय वेद- सामवेद-इसमें यज्ञ में गाने के लिए संगीतमय मन्त्र हैं। यह वेद मुख्यतः गन्धर्वं लोगों के लिए होता है। इसमें गायन पद्धति के निश्चित मन्त्र होने के कारण इसका नाम सामवेद है जो उद्रातृवर्ग के उपयोगी हैं।
अ. परिचय-1810 छन्द, 75 को छोड़कर सभी ऋृगवेद में उपलब्ध।
भाग-1 आर्चिक (6 प्रपाठ) और भाग-2 उत्तरार्चिक (9 प्रपाठ)
भारतीय संगीत इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत।
ब. सम्बन्धित संहिता -कौथुभ, राजायनी तथा जैमिनीय।
स. सम्बन्धित ब्राह्मण-पंचविश या ताण्डव महा ब्राह्मण, शड़िविश, जैमिनीय या तलबकार, छान्दोग्य ब्राह्मण, सामविधान, देवताध्याय, वंश, संहितोपनिषद्।
द. सम्बन्धित आरण्यक-जैमिनीय तथा छन्दोग्य।
य. सम्बन्धित उपनिषद्-केन या तलबकार तथा छन्दोग्य।
ग. तृतीय वेद- यजुवेद-इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिए गद्य मन्त्र हैं। यह वेद मुख्यतः क्षत्रियों के लिए होता है। इसमें गद्यात्मक मन्त्रों की अधिकता के कारण इसका नाम यजुर्वेद है। इसमें कुछ पद्य बद्ध मन्त्र भी हैं, जो अध्वर्युवर्ग के उपयोगी है। यजुर्वेद के दो विभाग हैं-शुक्लयजुर्वेद और श्रीकृष्णयजुर्वेद।
अ. परिचय-शाखा-1: श्रीकृष्ण यजुर्वेद और शाखा-2: शुक्ल यजुर्वेद
ब. सम्बन्धित संहिता-मैंत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिष्ठल कठ, तैत्तिरीय, वाजसनेयी
स. सम्बन्धित ब्राह्मण-तैत्रिरीय तथा शतपथ।
द. सम्बन्धित आरण्यक-तैत्तिरीय, शतपथ तथा बृहदारण्यक ।
य. सम्बन्धित उपनिषद्-मैंत्राययी, कठ, श्वेताश्वर, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक तथा ईश।
घ. चतुर्थ वेद- अथर्ववेद-इसमें जादू, चमत्कार, आरोग्य, यज्ञ के लिए मन्त्र हैं। यह वेद मुख्यतः व्यपारियों के लिए होता है। इसमें पद्यात्मक मन्त्रों के साथ कुछ गद्यात्मक मन्त्र भी उपलब्ध हैं। इस वेद का नामकरण अन्य वेदों की भाँति शब्द शैली के आधार पर नहीं है, अपितु इसके प्रतिपाद्य विषय के अनुसार है। अथर्व का अर्थ है-कमियों को हटाकर ठीक करना या कमी रहित बनाना। अतः इसमें यज्ञ सम्बन्धी एवं व्यक्ति सम्बन्धी सुधार या कमी-पूर्ति करने वाले मन्त्र भी हैं। इस वैदिक शब्दराशि का प्रचार एवं प्रयोग मुख्यतः अथर्व नाम के महर्षि द्वारा किया गया, इसलिए भी इसका नाम अथर्ववेद है। इसमें यज्ञानुष्ठान के ब्रह्मवर्ग के उपयोगी मन्त्रों का संकलन है।
अ. परिचय-कुल मंत्र-731, मण्डल-20, पाठ-1: शौनकीय, पाठ-2: पैप्पलाद। मुख्यतः तन्त्र-मन्त्र का संकलन एवम् औषधि विज्ञान।
ब. सम्बन्धित संहिता-शौनकीय तथा पैप्पलाद।
स. सम्बन्धित ब्राह्मण-गोपथ
द. सम्बन्धित आरण्यक-कोइ नहीं
य. सम्बन्धित उपनिषद्-मुण्डक, प्रश्न तथा माण्डूक्य।
1. सत्युग के शास्त्र-साहित्य (ब्राह्मण कृत शास्त्र साहित्य)
अ. ब्राह्मण (कर्म काण्ड)-पवित्र ग्रन्थों एवम् धर्मानुष्ठान की व्याख्या करना।
ब. आरण्यक (ज्ञान काण्ड)-ब्रह्म विद्या, रहस्यवाद तथा यज्ञो की प्रतीकात्मकता।
स. उपनिषद्-गुरू-शिष्य वार्ता द्वारा व्याख्या। भारतीय दर्शन का मुख्य आधार।
द. वेदांग या सूत्र-साहित्य-अ. शिक्षा (स्वर विज्ञान), ब. कल्प (धर्मानुष्ठान)-चार वर्ग, 1. श्रौत सूत्र-ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित श्रौत यज्ञों से सम्बन्ध। 2. शुल्व सूत्र-यज्ञ स्थल तथा अग्नि वेदी के निर्माण तथा माप से सम्बन्धित नियम। 3. गृह्य सूत्र-मानव जीवन से सम्बन्धित विभिन्न अनुष्ठानों की चर्चा। 4. धर्म सूत्र-धार्मिक तथा अन्य प्रकार के नियम (भारतीय विधि के प्रारम्भिक स्रोत) स. व्याकरण, द. निघण्टु, य. निरूक्त (व्युत्पत्ति), र. छन्द, ल. ज्योतिष
द. उपवेद-1. आयुर्वेद (ऋग्वेद से सम्बन्धित), 2. धनुर्वेद (यजुर्वेद से सम्बन्धित), 3. गान्धर्वेद (सामवेद से सम्बन्धित), 4. अथर्वेद (अथर्ववेद से सम्बन्धित)।
य. पुराण-1. मत्स्य, 2. मार्कण्डेय, 3. भागवत, 4. भविष्य, 5. ब्रह्म, 6. ब्रह्माण्ड, 7. ब्रह्म बैवर्त, 8. वायु, 9. विष्णु 10. बाराह, 11. बामन, 12. अग्नि, 13. नारदीय, 14. पद्म, 15. लिंग, 16. गरूण, 17. कूर्म, 18. स्कन्द।
2. त्रेतायुग के शास्त्र-साहित्य (मानव कृत शास्त्र साहित्य)
1. महाकाव्य रामायण-वाल्मीकि रचित-पुस्तक रामायण-आदर्श मानक व्यक्ति चरित्र
2. रामचरित मानस-तुलसीदास रचित-पुस्तक रामचरित मानस
3. रामायण-रामानन्द सागर रचित-दृश्य-श्रव्य रामायण
3. द्वापरयुग के शास्त्र-साहित्य (मानव कृत शास्त्र साहित्य)
श्रीमद्भागवत-व्यास रचित सार्वभौम सत्य व एकात्म ज्ञान का व्यक्तिगत प्रमाणित ”विश्वशास्त्र“ जिसमें समाहित है-
1. गीता-सार्वभौम सत्य व एकात्म ज्ञान
2. महाभारत-आदर्श मानक व्यक्ति चरित्र समाहित आदर्श मानक सामाजिक व्यक्ति चरित्र अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र
अ. व्यास रचित लिखित महाकाव्य महाभारत
ब. बी.आर.चोपड़ा रचित दृश्य-श्रव्य महाभारत
4. कलियुग के शास्त्र-साहित्य (ईशदूत कृत शास्त्र साहित्य)
01. यहूदी धर्म
02. पारसी धर्म-जरथ्रुष्ट (ईसापूर्व 1700)-जेन्दाअवेस्ता
03. बौद्ध धर्म-भगवान बुद्ध (ईसापूर्व 567-487) ,
04. कन्फ्यूसी धर्म-कन्फ्यूसियश (ईसापूर्व 551-479)
05. टोईज्म धर्म-लोओत्से (ईसापूर्व 604-518)
06. जैन धर्म-भगवान महावीर (ईसापूर्व 539-467)
07. ईसाइ धर्म-ईसा मसीह (सन् 33 ई0)-बाईबल
08. इस्लाम धर्म-मुहम्मद पैगम्बर (सन् 670 ई0)-कुरआन शरीफ
09. सिक्ख धर्म-गुरु नानक (सन् 1510 ई0)-गुरुग्रन्थ साहिब इत्यादि एवं दृश्य पदार्थ विज्ञान के शास्त्र-साहित्य
5/ 0. युगान्त स्वर्णयुग के शास्त्र-साहित्य (ईश्वर कृत शास्त्र साहित्य)
”विश्वशास्त्र“-लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ रचित सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त व एकात्म कर्मज्ञान का सार्वजनिक प्रमाणित ”विश्वशास्त्र“ जिसमें समाहित है-
1. विश्व-नागरिक धर्म का धर्मयुक्त धर्मशास्त्र
अ. कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेद- सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त व एकात्म कर्मज्ञान आधारित। प्रचीन काल से ही पंचम वेद की उपलब्धता मानव समाज के लिए एक विवादास्पद विषय रहा है। बहुत से रचनाकार और समर्पित व्यक्तियों ने अपने-अपने साहित्य को पंचमवेद के रुप में प्रस्तुत किया था जैसे-श्रीरामचरित मानस के लिए तुलसीदास, महाभारत के लिए महर्षि वेद व्यास, शास्त्रीय कार्यों के लिए एक तमिलियन संत ने, अच्छे बुरे कर्मों का संकलन के लिए माध्वाचार्य, नाट्यशास्त्र अर्थात् गन्धर्ववेद, चिकित्साशास्त्र अर्थात् आयुर्वेद, गुरु ग्रंथ साहिब, लोकोक्तियाँ इत्यादि। परन्तु जब पंचम वेद अन्तिम होगा तो वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों को एक ही सिद्धान्त द्वारा प्रमाणित करने में सक्षम होगा और वहीं विश्व प्रबन्ध का अन्तिम साहित्य होगा। जो सिर्फ कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम और पंचमवेद में ही उपलब्ध है। लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के विचार से कर्मवेद को ही अन्य नामों जैसे-01. कर्मवेद 02. शब्दवेद 03. सत्यवेद 04. सूक्ष्मवेद 05. दृश्यवेद 06. पूर्णवेद 07. अघोरवेद 08. विश्ववेद 09. ऋृषिवेद 10. मूलवेद 11. शिववेद 12. आत्मवेद 13. अन्तवेद 14. जनवेद 15. स्ववेद 16. लोकवेद 17. कल्किवेद 18. धर्मवेद 19. व्यासवेद 20. सार्वभौमवेद 21. ईशवेद 22. ध्यानवेद 23. प्रेमवेद 24. योगवेद 25. स्वरवेद 26. वाणीवेद 27. ज्ञानवेद 28. युगवेद 29. स्वर्णयुगवेद 30. समर्पणवेद 31. उपासनावेद 32. शववेद 33. मैंवेद 34.अहंवेद 35. तमवेद 36. सत्वेद 37. रजवेद 38. कालवेद 39. कालावेद 40. कालीवेद 41. शक्तिवेद 42. शून्यवेद 43. यथार्थवेद 44. श्रीकृष्णवेद सभी प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेद, से भी कहा जा सकता है। इस प्रकार प्रचीन काल से पंचम वेद की उपलब्धता का विवादास्पद विषय हमेंशा के लिए समाप्त हो गया।
ब. विश्वभारत- आदर्श मानक सामाजिक व्यक्ति चरित्र समाहित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र
2. विश्व-राज्य धर्म का धर्मनिरपेक्ष धर्मशास्त्र
विश्वमानक शून्य-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला
1. डब्ल्यू.एस. (WS)-0 : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. (WS)-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. (WS)-000 : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. (WS)-0000 : मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
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