Action Plan of New Human, New India, New World based on Universal Unified Truth-Theory. According to new discovery World Standard of Human Resources series i.e. WS-0 Series like ISO-9000, ISO-14000 etc series
”विश्वशास्त्र“ से मुख्यतः सत्यकाशी (वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच) क्षेत्र के लिए व्यक्त विषय
कितना विचित्र संयोग है कि विन्ध्य क्षेत्र से ही भारत का मानक समय निर्धारित होता है और इसी क्षेत्र से युग परिवर्तन की घोषणा हो रही है। यह भी विचित्रता ही है कि व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया था और वे गंगा पार आ गये और गंगा पार सत्यकाशी क्षेत्र से ही उनके बाद विश्वशास्त्र रचना हुई है। श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ कृत ”विश्वशास्त्र“ से मुख्यतः सत्यकाशी क्षेत्र के लिए निम्नलिखित विषय व्यक्त हुये हैं-
01. चार शंकराचार्य पीठ के उपरान्त 5वाँ और अन्तिम पीठ ”सत्यकाशी पीठ“ ।
02. ”सत्यकाशी महोत्सव’’ व ”सत्यकाशी गंगा महोत्सव’’ आयोजन।
03. सार्वभौम देवी माँ कल्कि देवी मन्दिर -माँ वैष्णों देवी की साकार रूप
माँ वैष्णों देवी की कथा
माँ कल्कि देवी की कथा
04. भोगेश्वर नाथ - 13वाँ और अन्तिम ज्योतिर्लिंग
भोगेश्वरनाथ - 13वाँ और अन्तिम ज्योतिर्लिंग क्यों?
भोगेश्वर रुप - कर्मज्ञान का विश्वरुप
05. विश्वधर्म मन्दिर - धर्म के व्यावहारिक अनुभव का मन्दिर
06. नाग मन्दिर
07. ज्ञान आधारित दशावतार मन्दिर
08. एक दिव्य नगररू सत्यकाशी नगर
09. होटल शिवलिंगम् - शिवत्व का एहसास
10. इन्द्रलोक - ओपेन एयर थियेटर
11. हस्तिनापुर - महाभारत का लाइट एण्ड साउण्ड प्रोग्राम
12. सत्य-धर्म-ज्ञान केन्द्र - तारामण्डल की भाँति शो द्वारा कम समय में पूर्ण ज्ञान
13. सत्यकाशी आध्यात्म पार्क
14. वंश नगर - मनु से मानव तक के वंश पर आधारित नगर
15. सत्यकाशी पंचदर्शन
16. सम्पूर्ण एकता की मूर्ति (Statue of Complete Unity)
17. विश्वशास्त्र मन्दिर (Vishwshastra Temple)
18. विस्मृत भारत रत्न स्मारक (Forgotten Bharat Ratna Memorial)
Topics expressed from "Vishwashastra" for the area of Satyakashi (between Varanasi-Vindhyachal-Shivdwar-Sonbhadra)
What a strange coincidence that the standard time of India is determined by the Vindhya region itself, and the change of era is being announced from this region. It is also strange that Vishveshwar expelled Vyasji from Kashi due to Vyasji cursing Kashi, and he came across the Ganges and after Vishyasastra was created from Satyakashi area beyond Ganga. The following topics have been expressed from Shri Luv Kush Singh "Vishwmanav", "Vishwashastra", mainly for the area of Satyakashi -
01. After the four Shankaracharya Peeth, the 5th and last Peeth is "Satyakashi Peeth".
02. "Satyakashi Festival" and "Satyakashi Ganga Festival".
03. Universal Goddess Mother Kalki Devi Temple - Mother Vaishno Devi's form of realization
Story of Mother Vaishno Devi
Story of Mother Kalki Devi
04. Bhogeshwar Nath - 13th and last Jyotirlinga
Bhogeshwarnath - Why the 13th and the last Jyotirlinga?
Bhogeshwar Rup - World Form of Karmagyan
05. Vishwadharma Temple - Temple of practical experience of religion
06. Nag temple
07. Knowledge-based Dashavatar Temple
08. A divine city, Satyakashi Nagar
09. Hotel Shivlingam - Realization of Shiva
10. Indralok - Open Air Theater
11. Hastinapur - Light and Sound Program of Mahabharata
12. Truth-Religion-Knowledge Center - Full knowledge in a short time by show like a planetarium
13. Satyakashi Spirituality Park
14. Dynasty City - A city based on the descent from Manu to Manav.
”विश्वशास्त्र“ की रचना मात्र निम्न कारणो से की गई है और अगर प्रस्तुत शास्त्र, ”विश्वशास्त्र“ नहीं है तो ऐसे शास्त्र की रचना मानव बुद्धि शक्ति समाज द्वारा निम्न कारणों के लिए की जानी चाहिए।
1. प्रकृति के तीन गुण- सत्व, रज, तम से मुक्त होकर ईश्वर से साक्षात्कार करने के ”ज्ञान“ का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ उपल्ब्ध हो चुका था परन्तु साक्षात्कार के उपरान्त कर्म करने के ज्ञान अर्थात ईश्वर के मस्तिष्क का ”कर्मज्ञान“ का शास्त्र उपलब्ध नहीं हुआ था अर्थात ईश्वर के साक्षात्कार का शास्त्र तो उपलब्ध था परन्तु ईश्वर के कर्म करने की विधि का शास्त्र उपलब्ध नहीं था। मानव को ईश्वर से ज्यादा उसके मस्तिष्क की आवश्यकता है।
2. प्रकृति की व्याख्या का ज्ञान का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ तो उपलब्ध था परन्तु ब्रह्माण्ड की व्याख्या का तन्त्र शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
3. समाज में व्यष्टि (व्यक्तिगत प्रमाणित) धर्म शास्त्र (वेद, उपनिषद्, गीता, बाइबिल, कुरान इत्यादि) तो उपलब्ध था परन्तु समष्टि (सार्वजनिक प्रमाणित) धर्म शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे मानव अपने-अपने धर्मो में रहते और दूसरे धर्म का सम्मान करते हुए विश्व-राष्ट्र धर्म को भी समझ सके तथा उसके प्रति अपने कत्र्तव्य को जान सके।
4. शास्त्र-साहित्य से भरे इस संसार में कोई भी एक ऐसा मानक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे पूर्ण ज्ञान - कर्म ज्ञान की उपलब्धि हो सके साथ ही मानव और उसके शासन प्रणाली के सत्यीकरण के लिए अनन्त काल तक के लिए मार्गदर्शन प्राप्त हो सके अर्थात भोजन के अलावा जिस प्रकार पूरक दवा ली जाती है उसी प्रकार ज्ञान - कर्म ज्ञान के लिए पूरक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे व्यक्ति की आजिविका तो उसके संसाधन के अनुसार रहे परन्तु उसका ज्ञान - कर्म ज्ञान अन्य के बराबर हो जाये।
5. ईश्वर को समझने के अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार के शास्त्र उपलब्ध थे परन्तु अवतार को समझने का शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
"Vishwashastra" has been composed only for the following reasons and if the scripture presented is not "Vishvastra", then such scripture should be composed by the human intelligence power society for the following reasons.
1. The three virtues of nature - Srimad, Raja, Tama, freeing and interviewing God, the scripture of "knowledge", Srimad Bhagavadgita or Gita or Geetopanishad "had become available, but after the interview, the knowledge of doing deeds means God's brain" The scripture of "Karmigyan" was not available, that is, the scripture for interviewing God was available, but the scripture of the method of doing God was not available. Was In. Man needs his brain more than God.
2. The scripture of knowledge of the interpretation of nature "Shrimad Bhagavadgita or Gita or Geetopanishad" was available but the scripture of the interpretation of the universe was not available.
3. Individual (personally attested) Dharma Shastra (Vedas, Upanishads, Gita, Bible, Quran etc.) was available in the society but Samasthi (publicly attested) Dharma Shastra was not available so that humans live in their respective religions and respect other religion. While doing so, the world nation can also understand religion and know its duty towards it.
4. There was no such standard scripture available in this world full of scriptures and literature, which would lead to the achievement of complete knowledge and action, as well as guidance for the eternalization of man and his system of governance, that is, for ever. In the same way as supplementary medicine is taken in addition to food, in the same way supplementary science was not available for knowledge - karma knowledge, so that a person's livelihood can be used for his resources. Accordingly are but his knowledge - action knowledge should be equal to the other.
5. Many different types of scriptures were available to understand God, but the scripture to understand the avatar was not available.
वर्तमान समय के भारत तथा विश्व की इच्छा शान्ति का बहुआयामी विचार-अन्तरिक्ष, पाताल, पृथ्वी और सारे चराचर जगत में एकात्म भाव उत्पन्न कर अभय का साम्राज्य पैदा करना और समस्याओं के हल में इसकी मूल उपयोगिता है। साथ ही विश्व में एक धर्म- विश्वधर्म-सार्वभौम धर्म, एक शिक्षा-विश्व शिक्षा, एक न्याय व्यवस्था, एक अर्थव्यवस्था, एक संविधान, एक शास्त्र स्थापित करने में है। भारत के लिए यह अधिक लाभकारी है क्योंकि यहाँ सांस्कृतिक विविधता है। जिससे सभी धर्म-संस्कृति को सम्मान देते हुए एक सूत्र में बाँधने के लिए सर्वमान्य धर्म उपलब्ध हो जायेगा। साथ ही संविधान, शिक्षा व शिक्षा प्रणाली व विषय आधारित विवाद को उसके सत्य-सैद्धान्तिक स्वरूप से हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है। साथ ही पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी से संकीर्ण मानसिकता से व्यक्ति को उठाकर व्यापक मानसिकता युक्त व्यक्ति में स्थापित किये जाने में आविष्कार की उपयोगिता है। जिससे विध्वंसक मानव का उत्पादन दर कम हो सके। ऐसा न होने पर नकारात्मक मानसिकता के मानवो का विकास तेजी से बढ़ता जायेगा और मनुष्यता की शक्ति उन्हीं को रोकने में खर्च हो जायेगी। यह आविष्कार सार्वभौम लोक या गण या या जन या स्व का निराकार रूप है इसलिए इसकी उपयोगिता स्वस्थ समाज, स्वस्थ लोकतन्त्र, स्वस्थ उद्योग तथा व्यवस्था के सत्यीकरण और स्वराज की प्राप्ति में है अर्थात मानव संसाधन की गुणवत्ता का विश्वमानक की प्राप्ति और ब्रह्माण्ड की सटीक व्याख्या में है। मनुष्य किसी भी पेशे में हो लेकिन उसके मन का भूमण्डलीयकरण, एकीकरण, सत्यीकरण, ब्रह्माण्डीयकरण करने में इसकी उपयोगिता है जिससे मानव शक्ति सहित संस्थागत और शासन शक्ति को एक कर्मज्ञान से युक्त कर ब्रह्माण्डीय विकास में एकमुखी किया जा सके।
The desire of the present day India and the world is a multi-faceted idea of peace - creating an empire of Abhay by creating a unique feeling in space, earth, earth and all grazing world and its basic utility in solving problems. There is also a religion in the world- Vishwadharma-Sovereign Religion, an education-world education, a judicial system, an economy, a constitution, a scripture. It is more beneficial for India because it has cultural diversity. Due to which respectable to all religions and culture, universal religion will be available to be tied in one sutra. At the same time, the constitution, education and education system and subject-based dispute can be ended forever by its true-theoretical form. At the same time, the invention is useful in raising a person from a narrow mindset from the technicalities of complete human construction to a person with a broad mindset. So that the production rate of the destroyer can be reduced. If this is not done then the development of human beings of negative mindset will increase rapidly and the power of humanity will be spent in stopping them. This invention is the formless form of the universal world or gana or or mass or self, hence its usefulness lies in the attainment of healthy society, healthy democracy, healthy industry and system of truth and swaraj i.e. attainment of global standard of quality of human resources and accurate interpretation of the universe. Is in Human being in any profession but his mind has its usefulness in globalizing, unifying, verifying, cosmicizing so that institutional and governing power including human power can be integrated into cosmic development with a karmic knowledge.
जिस प्रकार नदी में जल का सतत प्रवाह होता रहता है उसका उपयोग सिंचाईं में हो सकता है। परन्तु बाँध बनाकर जल का उपयोग करने से बिजली भी बनायी जा सकती है। उसी प्रकार मानव समाज में आॅकड़ो (डाटा) का सदैव प्रवाह हो रहा है उसे अपने मस्तिष्क में रोककर इकट्ठा करने से ही उसका विश्लेषण हो सकता है। जितने अधिक आॅकड़ों से विश्लेषण होगा परिणाम उतना ही सटीक होगा। यही बुद्धि है। कम्प्यूटर में भी यदि आॅकड़े कम होगें तो विश्लेषण भी कम ही प्राप्त किये जा सकते हैं। जितने बड़े क्षेत्र के लिए कार्य करना हो उतने बड़े क्षेत्र से सम्बन्धित आॅकड़े जुटाये जाते हैं। यही बुद्धि है। कोई भी कार्य सिर्फ एक कारण से नहीं होता। अधिक से अधिक कारणों को जानना, कर्म की सटीक व्याख्या है।
इसी को दूसरे रूप में ऐसे समझा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति जब मकान बनाने की तैयारी करता है तो सभी सामग्रीयों के आॅकड़े उसके सामने होते है, तब वह निर्माण कार्य प्रारम्भ करता है। अन्यथा उसका कार्य कभी भी रूक सकता है। सभी अवतार यदि आप सूक्ष्म रूप में देखें तो पायेंगे वे आॅकड़ों की शक्ति से ही धर्म स्थापना का कार्य किये।
समाज के ऐसे व्यक्ति जो यह जानना चाहते हैं कि यह आविष्कार किस प्रकार हुआ तो उनके लिए वर्तमान तक के सभी मत, विचार, महापुरूषों के जीवनवृत्त, विज्ञान, धर्म, व्यापार, समाज, राज्य, विश्व इत्यादि के सम्बन्ध में विश्व, भारत, अन्तर्राष्ट्रीय, समाज, परिवार व व्यक्ति स्तर पर बहुमुखी न्यूनतम मूल ज्ञान का आॅकड़ा होना अति आवश्यक होगा। यह ”विश्वशास्त्र“ सभी प्रश्नों का आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनैतिक और प्रबन्धकीय आधार सहित व्याख्या करता है जो विश्व शान्ति, एकता, स्थिरता, विकास, सुरक्षा, प्रबन्ध इत्यादि का अन्तिम, विवशता व मानवतापूर्ण मार्ग है।
Just as there is a continuous flow of water in the river, it can be used in irrigation. But electricity can also be made by using water by building dams. In the same way, data is always flowing in human society, it can be analyzed only by stopping and collecting it in your brain. The more data analyzed, the more accurate the results will be. This is wisdom. If the data in the computer is also less, then the analysis can also be obtained less. The data related to the large area is collected for the large area to be worked on. This is wisdom. No work is done for just one reason. Knowing more and more reasons is the precise interpretation of karma.
It can be understood in another way that when any person prepares to build a house, all the materials are in front of him, then he starts the construction work. Otherwise his work can stop anytime. If you look at all the avatars in subtle form, you will find that they have done the work of establishing religion only with the power of data.
For the people of the society who want to know how this invention took place, then for them all the views, ideas, biographies of great men, science, religion, business, society, state, world etc. in relation to the world, India, international , It will be very important to have a versatile minimum basic knowledge at the level of society, family and individuals. This "Vishwashastra" interprets all questions with spiritual, social, political and managerial basis which is the final, compulsion and humanitarian path of world peace, unity, stability, development, security, management etc.
111 वर्ष पूर्व 4 जुलाई, 1902 ई0 को आम आदमी के रूप में नरेन्द्र नाथ दत्त और विचार से सर्वोच्च विश्वमानव के रूप में स्वामी विवेकानन्द ब्रह्मलीन हुये थे। उन्होंने कहा था -”मन में ऐसे भाव उदय होते हैं कि यदि जगत् के दुःख दूर करने के लिए मुझे सहस्त्रों बार जन्म लेना पड़े तो भी मैं तैयार हूँ। इससे यदि किसी का तनिक भी दुःख दूर हो, तो वह मैं करूंगा और ऐसा भी मन में आता है कि केवल अपनी ही मुक्ति से क्या होगा। सबको साथ लेकर उस मार्ग पर जाना होगा।“
- (विवेकानन्द जी के संग में, पृ0-67, राम कष्ृण मिशन प्रकाशन)
वर्तमान में उनके तीन रूप व्यक्त हो चुके हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. भारत के सर्वोच्च पद पर सुशोभित श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत, उनके संस्कृति को लेकर।
2. भारत के सर्वोच्च अधिकार के पद पर सुशोभित श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत, उनके नाम को लेकर।
3. भारत के आम आदमी के रूप में श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“, भारत, उनके विचार ”विश्व-बन्धुत्व“ एवं ”वेदान्त की व्यवहारिकता“ की स्थापना के लिए शासनिक प्रणाली के अनुसार स्थापना स्तर तक की प्रक्रिया को लेकर।
भारत सरकार व उसके अनेक मंत्रालयों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन के प्रमाण पत्र आई.एस.ओ-9000 (ISO-9000) गुणवत्ता का प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया प्रारम्भ।
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ं द्वारा विश्व के एकाकरण के प्रथम चरण - मानसिक एकीकरण के लिए नागरिकों के गुणवत्ता का विश्वमानक-0 श्रृंखला (WS-0) आविष्कृत।
”भारत विश्व गुरू कभी हुआ करता था लेकिन अब नहीं है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि भारत वैश्विक सिद्धान्तों से प्रभावित है। भारत उस दिन वर्तमान युग में पुनः विश्व गुरू बन जायेगा जब वह अपने सार्वभौम सिद्धान्तों से विश्व को प्रभावित व संचालित करने लगेगा। काशी-सत्यकाशी क्षेत्र इस दृश्य काल में मतों (वोटों) से नहीं बल्कि शिव-तन्त्र के शास्त्र से किसी का हो सकता है। सार्वभौम सत्य - आत्म तत्व के आविष्कार से भारत विश्व गुरू तो है ही परन्तु दृश्य काल में विश्व गुरू बनने के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त चाहिए जिससे विश्व संविधान व लोकतन्त्र को मार्गदर्शन मिल सके। शिक्षा द्वारा मानव मन को सत्य से जोड़ने व काल का बोध कराने, काशी को राष्ट्रगुरू व भारत को जगतगुरू बनाने तथा ज्ञान को सबके द्वार पर पहुँचाने का कार्य आपकी इच्छानुसार प्रारम्भ किया जा रहा है। आपने कहा, हमने शुरू किया।“
- श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
पुत्र श्री धीरज नारायण सिंह
रचनाकर्ता - लक्ष्य पुनर्निर्माण व उसकी प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम व कार्य योजना
आविष्कारकर्ता - मन (मानव संसाधन) का विश्व मानक एवं पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी
दावेदार - भारत सरकार का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ”भारत रत्न“
जन्म स्थान - टाउनशिप अस्पताल, बरौनी रिफाइनरी, बेगूसराय (बिहार) पिन-851117
”जो मन कर्म में न बदले, वह मन नहीं और व्यक्ति का अपना स्वरूप नहीं।“
अपने-अपने धर्म शास्त्र-उपनिशद्-पुराण इत्यादि का अध्ययन करें कहीं ऐसा तो नहीं कि-
1. नये मनवन्तर - 8वें सांवर्णि के प्रारम्भ के लिए ”सार्वभौम“ गुण से युक्त होकर मनु का आगमन हो चुका है।
2. नये काल - दृश्य काल के प्रारम्भ के लिए ”सार्वभौम“ गुण से युक्त होकर काल का आगमन हो चुका है।
3. नये युग - स्वर्ण युग के प्रारम्भ के लिए ”सार्वभौम“ गुण से युक्त होकर कल्कि अवतार का आगमन हो चुका है।
4. नये धर्म - विश्वधर्म के प्रारम्भ के लिए ”सार्वभौम“ गुण से युक्त होकर धर्म स्थापक का आगमन हो चुका है।
5. नये शास्त्र - विश्वशास्त्र के प्रारम्भ के लिए ”सार्वभौम“ गुण से युक्त होकर व्यास का आगमन हो चुका है।
यदि ऐसा नहीं तो -
1. तुम्हारे शास्त्रों में दिये वचन और शास्त्र झूठे हो जायेंगे।
2. तुम्हारे भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणीयाँ झूठी हो जायेंगी।
3. तुम्हारे युग और काल गणना झूठे हो जायेंगे।
4. तुम्हारे अवतार-ईशदूत-ईशपुत्र-पुनर्जन्म सिद्धान्त झूठे हो जायेगें।
5. तुम्हारे ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा झूठे हो जायेंगे।
निर्णय आपके पास
एकता का प्रयास या अनेकता का विकास
ईश्वर के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक प्रभु - सूर्य
देश के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक देश - विश्व
धर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक धर्म - प्रेम
कर्म के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक कर्म - सेवा
जाति के नाम पर युद्ध समाप्त करने के लिए एक जाति - मानव
पी.एम. बना लो या सी.एम या डी.एम,
शिक्षा पाठ्यक्रम कैसे बनाओगे?
नागरिक को पूर्ण ज्ञान कैसे दिलाओगे?
राष्ट्र को एक झण्डे की तरह,
एक राष्ट्रीय शास्त्र कैसे दिलाओगे?
ये पी.एम. सी.एम या डी.एम नहीं करते,
राष्ट्र को एक दार्शनिक कैसे दिलाओगे?
वर्तमान भारत को जगतगुरू कैसे बनाओगे?
सरकार का तो मानकीकरण (ISO-9000) करा लोगे,
नागरिक का मानक कहाँ से लाओगे?
सोये को तो जगा लोगे, मुर्दो में प्राण कैसे डालोगे?
वोट से तो सत्ता पा लोगे,
नागरिक में राष्ट्रीय सोच कैसे उपजाओगे?
फेस बुक पर होकर भी पढ़ते नहीं सब,
भारत को महान कैसे बनाओगे?
”रत्न“ उसे कहते हैं जिसका अपना व्यक्तिगत विलक्षण गुण-धर्म हो और वह गुण- धर्म उसके न रहने पर भी प्रेरक हो। पद पर पीठासीन व्यक्तित्व का गुण-धर्म मिश्रित होता है, वह उसके स्वयं की उपलब्धि नहीं रह जाती। भारत के रत्न वही हो सकते हैं जो स्वतन्त्र भारत में संवैधानिक पद पर न रहते हुये अपने विलक्षण गुण-धर्म द्वारा भारत को कुछ दिये हों और उनके न रहने पर भी भारतीय नागरिक प्रेरणा प्राप्त करता हो। इस क्रम में ”भारत रत्न“ का अगला दावेदार मैं हूँ और नहीं तो क्यों? इतना ही नहीं नोबेल पुरस्कार के साहित्य और शान्ति के सयंुक्त पुरस्कार के लिए भी योग्य है जो भारत के लिए गर्व का विषय है। - लव कुश सिंह ”विश्वमानव“(योग्यता जानने के लिए www.moralrenew.com देखें।)
आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर
एक भारत-श्रेष्ठ भारत निर्माण व
वर्तमान में काशी को राष्ट्र गुरू और भारत को जगत गुरू बनाने की योजना है
On July 4, 1902, 111 years ago, Narendra Nath Dutt as a common man and Swami Vivekananda Brahmalin as the supreme world man by thought. He said - "Such feelings arise in the mind that even if I have to be born thousands of times to overcome the miseries of the world, I am ready." If anyone's sorrow is overcome by this, I will do that and it comes to mind that what will happen only by one's own salvation. Everyone has to take that route together. "
- (In association with Vivekananda ji, page-67, Ram krishna mission publication)
Presently, his three forms have been expressed, which are as follows:
1. Graceful Pranab Mukherjee, President, India, on the highest post of India, regarding his culture.
2. Honorable Shri Narendra Modi, Prime Minister of India, on the post of India's highest authority, with his name.
3. Shri Lav Kush Singh as the common man of India, about the process up to the establishment level according to the governing system for establishing "Vishmanav", India, his thoughts "World-Fraternity" and "Viability of Vedanta".
The process of obtaining ISO ISO 9000 (ISO-9000) quality certificate from the International Organization for Standardization is initiated by the Government of India and its many ministries.
Inaugurated by Shri Lava Kush Singh "Vishwamanav", the first phase of globalization - the quality of citizens' global standard-0 series (WS-0) for mental integration.
"India used to be a world guru but it is not now. The biggest proof of this is that India is influenced by global principles. India will again become a world guru on that day when it will start influencing and governing the world with its universal principles. The Kashi-Satyakashi region may belong to anyone in this visual period not by votes (votes) but by the scripture of Shiva-Tantra. Universal Truth - India is a world teacher with the invention of self-essence, but to become a world guru in the visible period, universal truth-principles are needed so that the world constitution and democracy can be guided. Through education, the work of connecting the human mind to the truth and making sense of time, making Kashi the national master and India the world master and bringing knowledge to everyone's door is being started as per your wish. You said, we started. "
- Mr. Lava Kush Singh "Vishwmanav"
Son Mr. Dhiraj Narayan Singh
Creator - curriculum and action plan for goal reconstruction and realization
Inventor - World standard of mind (human resources) and technology of complete human creation
Claimant - "Bharat Ratna", the highest civilian honor of the Government of India
श्री प्रणव मुखर्जी (राष्ट्रपति), श्री नरेन्द्र मोदी (प्रधानमंत्री) व
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ (आम नागरिक) काल
बुधवार, 25 जुलाई, 2012
”भारतवासियों के रूप में हमें भूतकाल से सीखना होगा, परन्तु हमारा ध्यान भविष्य पर केन्द्रित होना चाहिए। मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है जो कि भारत में अगला स्वर्ग युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रन्थों ने समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तम्भों पर खड़ा किया गया है। हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुँचाकर, इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। हमारा ध्येय वाक्य स्पष्ट है- ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए। मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ जहाँ उद्देश्य की समानता से सबका कल्याण संचालित हो, जहाँ केन्द्र और राज्य केवल सुशासन की परिकल्पना से संचालित हों, जहाँ लोकतन्त्र का अर्थ केवल पाँच वर्ष में एक बार मत देने का अधिकार न हो, बल्कि जहाँ सदैव नागरिकों के हित में बोलने का अधिकार हो, जहाँ ज्ञान विवेक में बदल जाये, जहाँ युवा अपनी असाधारण ऊर्जा तथा प्रतिभा को सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रयोग करे। अब पूरे विश्व में निरंकुशता समाप्ति पर है, अब उन क्षेत्रों में लोकतन्त्र फिर से पनप रहा है जिन क्षेत्रों को पहले इसके लिए अनुपयुक्त माना जाता था, ऐसे समय में भारत आधुनिकता का माॅडल बनकर उभरा है। जैसा कि स्वामी विवेकानन्द ने अपने सुप्रसिद्ध रूपक में कहा था कि- भारत का उदय होगा, शरीर की ताकत से नहीं, बल्कि मन की ताकत से, विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकट्ठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है- हरा, नीला अथवा लाल, बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की उस प्रखर चमक को पैदा करें, जो प्यार का रंग है।“(प्रथम भाषण का संक्षिप्त अंश)
- श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, दि0 26.07.2012
बुधवार, 28 अगस्त, 2013, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
श्रीकृष्ण भगवान के जन्म के 5241 वर्षों बाद पहली बार 28 अगस्त, 2013, रात्रि 12 बजकर 12 मिनट का दिन, नक्षत्र, घड़ी, लगन, मुहूर्त, योग आदि विशेष सभी उसी समान था, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उस समय चन्द्रमा वृश राशि में उच्च लग्न में स्थित था, सूर्य सिंह राशि में स्थित था। नक्षत्र भी रोहिणी थी, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी और दिन भी बुधवार था, काल सर्प योग भी था। अर्थात् ऐसे योग भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पहली बार बने हैं।
सन् 2014 ई0
मंगलवार, 31 दिसम्बर, 2013 की रात 12 बजे से सन् 2014 का पंचांग तिथि, दिन, घड़ी, ग्रह, नक्षत्र ठीक वैसे ही हैं जैसे भारत के स्वतन्त्रता वर्ष 1947 के थे। ज्योतिष के जानकार इसे बड़े बदलाव का संकेत मानते हैं।
स्वामी विवेकानन्द के जन्म के 151वें वर्ष में और ब्रह्मलीन होने के 111 वर्ष बाद विश्व-बन्धुत्व
इतिहास लौट रहा है.................
शुक्रवार, 16 मई 2014 ई0
भारतीय जनता ने ”विकास“ और ”अच्छे दिन आने वाले हैं“ के मुद्दे पर अपने मत को मतपेटीयों से बाहर आते ही व्यक्त किया, जिसका परिणाम था - ”दशको बाद एक दल के पूर्ण बहुमत वाली सरकार।“
शनिवार, 17 मई 2014 ई0
वाराणसी संसदीय क्षेत्र से चुने गये वर्तमान प्रधानमंत्री (उस समय भावी) ने वाराणसी में बाबा विश्वनाथ के पूजन के उपरान्त अपने सत्य विचार रखे, और वह था - ”काशी के राष्ट्र गुरू बने बिना भारत जगत गुरू नहीं बन सकता। देश अतीत की तरह आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुँचेगा तो स्वतः आर्थिक वैभव प्राप्त हो जायेगा। इसी खासियत की वजह से इतिहास में कभी भारत सोने की चिड़िया थी।“
- श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी संस्करण, दि0 18.05.2014
सोमवार, 26 मई, 2014 ई0
त्रयोदशी, कृष्ण पक्ष, ज्येष्ठ मास, विक्रमी संवत 2071, सायंकाल 5.45 से रात्रि 8.02 बजे तक वृश्चिक लग्न, स्वामी मंगल, नक्षत्र भरणी, देवाधिदेव महादेव शिव के उपासना का दिन सोमवार, प्रदोष व प्रदोष काल (गोधूलि बेला) के अद्भुत संयोग। इसी अद्भुत संयोग में निम्नलिखित कार्य सम्पन्न हुये।
- सायं काल 6.10 बजे विष्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के 15वें और स्वतन्त्र भारत में जन्में पहले प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी का शपथ ग्रहण हुआ।
इस सम्बन्ध में काशी (वाराणसी) के विद्वान ज्योतिषियों की भविष्यवाणीयाँ -
”राष्ट्र का होगा उत्थान“ - पं0 विष्णुपति त्रिपाठी
”प्रधानमंत्रित्व काल रहेगा मंगलमय“ - पं0 प्रसाद दीक्षित
”वृश्चिक लग्न से भारत को मिलेगा यश“ - पं0 विमल जैन
- सायं काल 6.10 बजे काशी को राष्ट्रगुरू और भारत को जगतगुरू बनाने वाली कार्य योजना के प्रारम्भ के लिए वेबसाइट www.moralrenew.com का पंजीकरण लक्ष्य पुनर्निर्माण व उसकी प्राप्ति के लिए इस कार्य योजना के रचनाकर्ता श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा कराया गया।
सोमवार, 9 जून 2014 ई0
भारत के 16वीं लोकसभा के संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करते हुये श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत ने विकास व लक्ष्य प्राप्ति के कार्य के लिए अनके बिन्दुओं को देश के समक्ष रखें। जिसमें मुख्य था-
1. आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर साकार होगा एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना।
2. सोशल मीडिया का प्रयोग कर सरकार को बेहतर बनाने की कोशिश।
3. सबका साथ, सबका विकास।
4. 100 नये माॅडल शहर बसाना।
5. 5T - ट्रेडिशन (Tradition), ट्रेड (Trade), टूरिज्म (Tourism), टेक्नालाॅजी (Technology), और टैलेन्ट (Talent) का मंत्र।
शनिवार, 29 नवम्बर 2014 ई0
- महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में भारतीय समाजशास्त्रीय सोसायटी के 40वें अधिवेशन के उद्घाटन समारोह
”क्या आर्थिक विकास ही विकास है? आज विकास का जो स्वरूप दिख रहा है, इसका वीभत्स परिणाम भी ग्लोबल वार्मिंग, ग्लेशियर का पिघलना, मौसम मे बदलाव आदि के रूप में सामने दिख रहा है। हमें यह देखना होगा कि विकास की इस राह में हमने क्या खोया और क्या पाया। समाज शास्त्री विमर्श कर यह राह सुझायें जिससे विकास, विविधता व लोकतंन्त्र और मजबूत बनें। विकास वह है जो समाज के अन्तिम व्यक्ति को भी लाभान्वित करे। भारत में एकता का भाव, व्यक्ति का मान होना चाहिए क्योंकि इसमें ही देश का सम्मान निहित है। समाज के लोग आगे आयें और सरकारों पर दबाव बनायें। विविधता भारत की संस्कृति की थाती है। भारत की यह संस्कृति 5000 वर्ष से अधिक पुरानी व जीवन्त है।“ ”काशी ज्योति का शहर है क्योंकि यहाँ बाबा का ज्योतिर्लिंग है। यह ज्ञान व एकता की ज्योति है। इसके प्रकाश से यह शहर ही नहीं, बल्कि पूरा देश आलोकित हो रहा है। यह शहर ज्ञान की असीम पूँजी लिए देश को अपनी ओर बुला रहा है।“
- श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी संस्करण, 30 नवम्बर, 2014
”देश विविधता से भरा है। इसमें आस्था ऐसा पहलू है जो एका बनाता है। भले ही बोली भाषा, पहनावा, संस्कृति में भिन्नता हो पर माँ गंगा के प्रति आस्था तो एक जैसी है। इसे विकास से जोड़ने का यह उपयुक्त वक्त है। काशी की इसी धरती पर आदि शंकराचार्य को अद्वैत ज्ञान मिला था। यहाँ के कण-कण में पाण्डित्य व्याप्त है जो हमें संस्कृति की ओर आकर्षित करता है। देश में भले ही विभिन्न राज्यों की अपनी संस्कृति और सम्प्रभुता है मगर काशी, देश के सभी राज्यों को अद्वैत भाव से एकता के साथ लेकर आगे बढ़ती है। देश को एकता के साथ विकास का भाव जगाने के लिए काशी की ओर देखना चाहिए।“
- श्री राम नाइक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी संस्करण, 30 नवम्बर, 2014
बृहस्पतिवार, 25 दिसम्बर 2014 ई0
”अच्छी शिक्षा, शिक्षकों से जुड़ी है। शिक्षक को हर परम्पराओं का ज्ञान होना चाहिए। हम विश्व को अच्छे शिक्षक दे सकते हैं। विगत छह महीने से पूरा विश्व हमारी ओर देख रहा है। ऋषि-मुनियों की शिक्षा पर हमें गर्व है। 21वीं सदी में विश्व को उपयोगी योगदान देने की माँग है। पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना विज्ञान हो या तकनीकी, इसके पीछे परिपूर्ण मानव मन की ही विश्व को आवश्यकता है। रोबोट तो पाँच विज्ञानी मिलकर भी पैदा कर देगें। मनुष्य का पूर्णत्व, तकनीकी में समाहित नहीं हो सकता। पूर्णता मतलब जनहित। कला-साहित्य से ही होगा नवजागरण।“ (बी.एच.यू, वाराणसी में)
(साभार - दैनिक जागरण व काशी वार्ता, वाराणसी, दि0 12-13 जनवरी, 2015)
”स्वामी विवेकानन्द एक महान दूरदर्शी थे जिन्होंने जगद्गुरू भारत का सपना देखा था“
- श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत
”भारत के पहले ग्लोबल यूथ थे स्वामी विवेकानन्द“
- श्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री, भारत
मंगलवार, 27 जनवरी 2015 ई0
(साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 28 जनवरी, 2015)
”सौ से ज्यादा साल पहले अमेरिका ने भारत के बेटे स्वामी विवेकानन्द का स्वागत किया था। उन्होंने भाषण शुरू करने से पहले सम्बोधित किया था - मेरे प्यारे अमेरिकी भाइयों और बहनों। आज मैं कहता हूँ - मेरे प्यारे भारतीय भाइयों और बहनों। गर्व है कि अमेरिका में 30 लाख भारतीय हैं जो हमें जोड़े रखते हैं। हमारी दोस्ती सहज है। हम आगे भी हर क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ बढ़ते रहेंगे। हम भारत की स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों का स्वागत करते हैं और इसमें मदद करने के लिए तैयार हैं। भारत व्यापक विविधता के साथ अपने लोकतन्त्र को मजबूती से आगे बढ़ाता है तो यह दुनिया के लिए एक उदाहरण होगा। भारत तभी सफल होगा जब वह धार्मिक आधार पर बँटेगा नहीं । धर्म का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। हमें समाज को बाँटने वाले तत्वों से सावधान रहना होगा। भारतीय भाइयों और बहनों, हम परफेक्ट देश नहीं हैं। हमारे सामने कई चुनौतियाँ हैं। हममे कई समानताएँ हैं। हम कल्पनाशील और जुझारू हैं। हम सब एक ही बगिया के खुबसूरत फूल हैं। अमेरिका को भारत पर भरोसा है। हम आपके सपने साकार करने में आपके साथ हैं। आपका पार्टनर होने पर हमें गर्व है, जय हिन्द। “ (भारत के गणतन्त्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत यात्रा पर विभिन्न कार्यक्रमों में व्यक्त वक्तव्यों का अंश)
-श्री बराक ओबामा, राष्ट्रपति, संयुक्त राज्य अमेरिका
”युवाओं विश्व को एक करो“ (”मन की बात“ रेडियो कार्यक्रम द्वारा श्री बराक ओबामा के साथ)
- श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत
मंगलवार, 17 फरवरी 2015 ई0 - महाशिवरात्रि - बीस साल बाद बना शुभ संयोग
1994 के 20 वर्ष बाद 2015 में महाशिवरात्रि के अवसर पर तीन दिन में तीन शुभ संयोग बने। महाशिवरात्रि, महानिशा काल में शिव पूजन और महामंगल योग। महानिशा काल में महाकाल का पूजन राष्ट्र मंगल की दृष्टि से शुभ फल प्रदान करने वाला रहता है। इस दिन ही श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने काशी-सत्यकाशी को राष्ट्र गुरू और भारत को जगत गुरू बनाने वाले आविष्कार से सम्बन्धित अन्तिम सूचना पत्र भारत सरकार को लिखे और 24 फरवरी, 2015 को पंजीकृत डाक से प्रेषित हुआ।
Shri Pranab Mukherjee (President), Shri Narendra Modi (Prime Minister) and
Mr. Luv Kush Singh "Vishmanav" (Common Citizen) Period
Wednesday, July 25, 2012
“As Indians, we have to learn from the past, but our focus should be on the future. In my opinion, education is the mantra that can bring the next heaven era in India. Our oldest texts have erected the structure of society on pillars of knowledge. Our challenge is to spread the knowledge to every corner of the country and turn it into a democratic force. Our motto is clear - all for knowledge and knowledge for all. I envision an India where equality of purpose governs the welfare of all, where the Center and the states operate only with the vision of good governance, where democracy does not mean the right to vote only once in five years, but where it always You should have the right to speak in the interest of the citizens, where knowledge is converted into wisdom, where youth can use their extraordinary energy and talent for the collective goal. Now autocracy is at an end all over the world, now democracy is re-emerging in those areas which were previously considered unsuitable for it, in such a time, India has emerged as a model of modernity. As Swami Vivekananda said in his well-known metaphor - India will rise, not by strength of body, but by strength of mind, not by the flag of demolition, but by the flag of peace and love. Gather all the powers of goodness. Do not think what my color is - green, blue or red, but mix all the colors and create that bright glow of white, which is the color of love. "(Brief excerpt of first speech)
- Mr. Pranab Mukherjee, President, India
Sincerely, Dainik Jagran, dated 26.07.2012
Wednesday, August 28, 2013, Sri Krishna Janmashtami
For the first time after 5241 years after the birth of Lord Krishna, on August 28, 2013, 12 o'clock in the night, Nakshatra, Clock, Lagan, Muhurta, Yoga etc. were all the same when Lord Krishna was born. At that time, the Moon was located in the Ascendant Sign in the high lagna, Surya was in the Leo sign. Nakshatra was also Rohini, Bhadrapada Krishna Ashtami and the day was also Wednesday, Kaal Sarp Yoga also. That is, such yoga is made for the first time after the birth of Lord Krishna.
2014 A.D.
From 12 pm on Tuesday, December 31, 2013, the almanac date of 2014, day, clock, planet, constellation are exactly the same as India's independence year 1947. Astrologers consider it a sign of major change.
World-Fraternity in the 151st year of Swami Vivekananda's birth and 111 years after becoming Brahmin
History is returning .................
Friday, 16 May 2014
The Indian public expressed their views on the issue of "development" and "good days are coming" as they came out of the ballot box, the result of which was "a party with a full majority government after decades."
Saturday, May 17, 2014 A.D.
The present Prime Minister (at that time) elected from Varanasi parliamentary constituency, after the worship of Baba Vishwanath in Varanasi, gave his true views, and he was - "India cannot become a world guru without becoming a nation guru of Kashi. If the country reaches spiritual heights like in the past, it will automatically achieve economic glory. Because of this specialty, India was once a golden bird in history. "
Trayodashi, Krishna Paksha, Jyeshtha month, Vikrami Samvat 2071, Scorpio Ascendant, Swami Mangal, Nakshatra Bharani, Devadhidev Mahadev Shiva's day of worship from Monday, 5.45 pm to 8.02 pm Monday, the amazing combination of Pradosh and Pradosh Kaal (Twilight Bela). In this wonderful coincidence, the following works were completed.
- Shri Narendra Modi was sworn in as the 15th Prime Minister of the world's largest democracy and the first Prime Minister born in independent India at 6.10 pm.
Predictions of Kashi (Varanasi) learned astrologers in this regard -
"Nation will rise" - Pt. Vishnupati Tripathi
"Prime Minister will remain auspicious" - Pt. Prasad Dixit
"India will get fame through Scorpio ascendant" - Pt. Vimal Jain
- Registration of website www.moralrenew.com for the commencement of the action plan to make Kashi the national leader and India as the world master at 6.10 pm was made by Mr. Luv Kush Singh, the creator of this action plan, "Vishmanav" for the purpose of rebuilding and achieving it. .
Monday, 9 June 2014
Addressing the Joint Session of Parliament of the 16th Lok Sabha of India, Shri Pranab Mukherjee, President, India, put his points before the country for the purpose of development and achievement of goals. Which was main-
1. The dream of an India-superior India will come true on the basis of spiritual and philosophical heritage.
2. Trying to make government better by using social media.
3. Sabka Saath, Sabka Vikas.
4. 100 new model city settlements.
5. 5T - The mantra of Tradition, Trade, Tourism, Technology, and Talent.
Saturday, 29 November 2014 A.D.
- The opening ceremony of the 40th session of the Indian Sociological Society at Mahatma Gandhi Kashi Vidyapeeth, Varanasi.
Is economic development the only development? The form of development that is seen today, its terrible consequences are also seen in the form of global warming, glacier melting, change in weather etc. We have to see what we have lost and found in this path of development. Consult a sociologist and suggest this way so that development, diversity and democracy can become stronger. Development is one that benefits the last person of society. The sense of unity in India should be the honor of the person because it is the honor of the country. People of the society should come forward and put pressure on governments. Diversity is the culture of India's culture. This culture of India is more than 5000 years old and alive. "" Kashi is the city of Jyoti because there is Baba's Jyotirlinga here. It is the light of knowledge and unity. Not only this city, but the whole country is lighting up with its light. This city is calling the country towards the infinite capital of knowledge. "
- Mr. Pranab Mukherjee, President, India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi edition, 30 November 2014
“The country is full of diversity. Faith is such an aspect that unites. Though there may be difference in dialect language, dress, culture, but the faith in Mother Ganga is the same. This is the right time to connect it with development. Adi Shankaracharya received Advaita knowledge on this land of Kashi. Panditism pervades every particle of here, which attracts us towards culture. Even though different states have their own culture and sovereignty in the country, Kashi moves ahead by taking all the states of the country with unity in a monotonous manner. The country should look towards Kashi to inculcate the sense of development with unity. "
- Shri Ram Naik, Governor, Uttar Pradesh, India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi edition, 30 November 2014
Thursday, 25 December 2014 A.D.
“Good education is associated with teachers. The teacher should have knowledge of every tradition. We can give good teachers to the world. For the last six months the whole world has been looking at us. We are proud of the education of sages and sages. There is a demand for useful contribution to the world in the 21st century. To achieve the goal of perfection, be it science or technology, the world needs only the perfect human mind behind it. Robots will also produce five scientists together. Human perfection cannot be contained in technology. Perfection means public interest. Renaissance will be done only through art and literature. ”(In BHU, Varanasi)
- Shri Narendra Modi, Prime Minister, India
Sincerely - Kashi talks, Varanasi edition, December 26, 2014
Monday, January 12, 2015
(Sincerely - Dainik Jagran and Kashi talks, Varanasi, 12-13 January 2015)
"Swami Vivekananda was a great visionary who dreamed of Jagadguru India"
- Shri Narendra Modi, Prime Minister, India
"Swami Vivekananda was India's first global youth"
- Shri Rajnath Singh, Home Minister, India
Tuesday, January 27, 2015
(Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, January 28, 2015)
"More than a hundred years ago America welcomed India's son Swami Vivekananda. He addressed before starting the speech - my dear American brothers and sisters. Today I say - my dear Indian brothers and sisters. Proud that there are 3 million Indians in America who keep us together. Our friendship is easy. We will continue to grow with each other in every field. We welcome the ambitious goals of meeting India's clean energy needs and are ready to help. If India strongly advances its democracy with wide diversity, it will be an example for the world. India will succeed only if it is not divided on religious grounds. Religion should not be misused. We have to be careful with the elements that divide the society. Indian brothers and sisters, we are not perfect countries. We face many challenges. We have many similarities. We are imaginative and combative. We are all beautiful flowers of the same garden. America has faith in India. We are with you in making your dreams come true. We are proud to be your partner, Jai Hind. "(Excerpt from statements expressed in various programs on the visit of India as Chief Guest on Republic Day of India)
-Mr. Barack Obama, President, United States
"Youth Unify the World" (with Mr. Barack Obama by "Mann Ki Baat" radio program)
- Shri Narendra Modi, Prime Minister, India
Tuesday, February 17, 2015 AD - Mahashivratri - Auspicious coincidence after twenty years
After 20 years of 1994, in 2015, on the occasion of Mahashivaratri, three auspicious coincidences were made in three days. Mahashivaratri, Shiva worship and Mahamangal yoga in the Mahanisha period. During the Mahanisha period, the worship of Mahakal remains auspicious in terms of Mars. On this day, Shri Luv Kush Singh "Vishmanav" wrote Kashi-Satyakashi to the Government of India and the last information related to the invention that made India the Guru and the world Guru was sent by registered post on 24 February 2015.
”इस देश को कुछ बाते समझनी होगी। एक तो इस देश को यह बात समझनी होगी कि तुम्हारी परेशानियों, तुम्हारी गरीबी, तुम्हारी मुसीबतों, तुम्हारी दीनता के बहुत कुछ कारण तुम्हारे अंध विश्वासों में है, कम से कम डेढ़ हजार साल पिछे घिसट रहा है। ये डेढ़ हजार साल पूरे होने जरूरी है। भारत को खिंचकर आधुनिक बनाना जरूरी है। मेरी उत्सुकता है कि इस देश का सौभाग्य खुले, यह देश भी खुशहाल हो, यह देश भी समृद्ध हो। क्योंकि समृद्ध हो यह देश तो फिर राम की धुन गुंजे, समृद्ध हो यह देश तो फिर लोग गीत गाँये, प्रभु की प्रार्थना करें। समृद्ध हो यह देश तो मंदिर की घंटिया फिर बजे, पूजा के थाल फिर सजे। समृद्ध हो यह देश तो फिर बाँसुरी बजे कृष्ण की, फिर रास रचे! यह दीन दरिद्र देश, अभी तुम इसमें कृष्ण को भी ले आओंगे तो राधा कहाँ पाओगे नाचनेवाली? अभी तुम कृष्ण को भी ले आओगें, तो कृष्ण बड़ी मुश्किल में पड़ जायेगें, माखन कहाँ चुरायेगें? माखन है कहाँ? दूध दही की मटकिया कैसे तोड़ोगें? दूध दही की कहाँ, पानी तक की मटकिया मुश्किल है। नलों पर इतनी भीड़ है! और एक आध गोपी की मटकी फोड़ दी, जो नल से पानी भरकर लौट रही थी, तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देगी कृष्ण की, तीन बजे रात से पानी भरने खड़ी थी नौ बजते बजते पानी भर पायी और इन सज्जन ने कंकड़ी मार दी। धर्म का जन्म होता है जब देश समृद्ध होता है। धर्म समृद्ध की सुवास है। तो मैं जरूर चाहता हँू यह देश सौभाग्य शाली हो लेकिन सबसे बड़ी अड़चन इसी देश की मान्यताएं है। इसलिए मैं तुमसे लड़ रहा हँू। तुम्हारे लिए। आज भारत गरीब है। भारत अपनी ही चेष्टा से इस गरीबी से बाहर नहीं निकल सकेगा, कोई उपाय नहीं है। भारत गरीबी के बाहर निकल सकता हैं, अगर सारी मनुष्यता का सहयोग मिले। क्योंकि मनुष्यता के पास इस तरह के तकनीक, इस तरह का विज्ञान मौजूद है कि इस देश की गरीबी मिट जाये। लेकिन तुम अकड़े रहे कि हम अपनी गरीबी खुद ही मिटायेगें, तो तुम ही तो गरीबी बनाने वाले हो, तुम मिटाओंगे कैसे? तुम्हारी बुद्धि इसकी भीतर आधार है, तुम इसे मिटाओगे कैसे? तुम्हें अपने द्वार-दरवाजे खोलने होगें। तुम्हें अपना मस्तिष्क थोड़ा विस्तार करना होगा। तुम्हें मनुष्यता का सहयोग लेना होगा। और ऐसा नहीं कि तुम्हारे पास कुछ देने को नहीं है। तुम्हारे पास कुछ देने को है दुनिया को। तुम दुनिया को ध्यान दे सकते हो। अगर अमेरिका को ध्यान खोजना है तो अपने बलबूते नहीं खोज सकेगा अमेरिका। उसे भारत की तरफ नजर उठानी पड़ेगी। मगर वे समझदार लोग हैं। ध्यान सीखने पूरब चले आते हैं। कोई अड़चन नहीं है उन्हें बाधा नहीं है। बुद्धिमानी का लक्षण यहीं है कि जो जहाँ से मिल सकता हो ले लिया जाये। यह सारी पृथ्वी हमारी हैं। सारी मनुष्यता इकट्ठी होकर अगर उपाय करे तो कोई भी समस्या पृथ्वी पर बचने का कोई भी कारण नहीं है। दुनिया में दो तरह की शिक्षायें होनी चाहिए, अभी एक ही तरह की शिक्षा है। और इसलिए दुनिया में बड़ा अधुरापन है। बच्चों को हम स्कूल भेजते है, कालेज भेजते है, युनिवर्सिटी भेजते है, मगर एक ही तरह की शिक्षा वहाँ- कैसे जियो? कैसे आजिविका अर्जन करेें? कैसे धन कमाओं? कैसे पद प्रतिष्ठा पाओं। जीवन के आयोजन सिखाते हैं जीवन की कुशलता सिखाते है। दूसरी इससे भी महत्वपूर्ण शिक्षा वह है- कैसे मरो? कैसे मृत्यु के साथ आलिंगन करो? कैसे मृत्यु में प्रवेश करो? यह शिक्षा पृथ्वी से बिल्कुल खो गयी। ऐसा अतीत में नहीं था। अतीत में दोनों शिक्षाएं उपलब्ध थीं। इसलिए जीवन को हमने चार हिस्सों में बाटा था। पच्चीस वर्ष तक विद्यार्थी का जीवन, ब्रह्मचर्य का जीवन। गुरू के पास बैठना। जीवन कैसे जीना है, इसकी तैयारी करनी है। जीवन की शैली सीखनी है। फिर पच्चीस वर्ष तक गृहस्थ का जीवन: जो गुरू के चरणों में बैठकर सिखा है उसका प्रयोग, उसका व्यावहारिक प्रयोग। फिर जब तुम पचास वर्ष के होने लगो तो तुम्हारे बच्चे पच्चीस वर्ष के करीब होने लगेगें। उनके गुरू के गृह से लौटने के दिन करीब होने लगेगें। अब उनके दिन आ गये कि वे जीवन को जिये। फिर भी पिता और बच्चे पैदा करते चला जाये तो यह अशोभन समझा जाता था। यह अशोभन है। अब बच्चे, बच्चे पैदा करेंगे। अब तुम इन खिलौनों से उपर उठो। तो पच्चीस वर्ष वानप्रस्थ। जंगल की तरफ मुँह- इसका अर्थ होता है कि अभी जंगल गये नहीं, अभी घर छोड़ा नहीं लेकिन घर की तरफ पीठ जंगल की तरफ मुँह। ताकि तुम्हारे बेटों को तुम्हारी सलाह की जरूरत पड़े तो पूछ लें। अपनी तरफ से सलाह मत देना। वानप्रस्थी स्वयं सलाह नहीं देता। फिर पचहत्तर वर्ष के जब तुम हो जाओगे, तो सब छोड़कर जंगल चले जाना। वे शेष अंतिम पचीस वर्ष मृत्यु की तैयारी थे। उसी का नाम सन्यास था। पचीस वर्ष जीवन के प्रारम्भ में जीवन की तैयारी, और जीवन के अंत में पच्चीस वर्ष मृत्यु की तैयारी। उपाधियाँ मिलती है- पी0 एच0 डी0, डी0 लिट0 और डी0 फिल0। और उनका बड़ा सम्मान होता है। उनका काम क्या है? उनका काम यह है कि वे तय करते हैं कि गोरखनाथ कब पैदा हुए थे। कोई कहता है दसवीं सदी के अंत में, कोई कहता है ग्यारहवीं सदी के प्रारम्भ में। इस पर बड़ा विवाद चलता है। बड़े-बडे़ विश्वविद्यालयों के ज्ञानी सिर खपा कर खोज में लगे रहते है। शास्त्रो की, प्रमाणों की, इसकी, उसकी। उनकी पूरी जिन्दगी इसी में जाती है। इससे बड़ा अज्ञान और क्या होगा? गोरख कब पैदा हुए, इसे जानकर करोगे क्या? इसे जान भी लिया तो पाओगे क्या? गोरख न भी पैदा हुए, यह भी सिद्ध हो जाये, तो भी क्या फायदा? हुए हों या न हुए हों, अर्थहीन है। गोरख ने क्या जिया उसका स्वाद लो। इसलिए तुम्हारे विश्वविद्यालय ऐसी व्यर्थता के कामों में संलग्न है कि बड़ा आश्चर्य होता है कि इन्हें विश्वविद्यालय कहो या न कहो। इनका काम ही........तुम्हारे विश्वविद्यालय में चलने वाली जितनी शोध है, सब कूड़ा-करकट है।“- आचार्य रजनीश ”ओशो“
”सुधर्मा, जरूरत है इस युग में अनगढ़ मानव को गढ़ने की। मनुष्य स्वार्थी, संकीर्णता से ग्रसित हो गया है। इन दुर्बलताओं के आक्रान्त मनमानी शक्ल दिखने में अक्सर आते हैं। पेट और परिवार को आदर्श मान बैठे हैं।“ -अवधूत भगवान राम
”मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे, तो युग अवश्य बदलेगा। हम बदलेंगे- युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।“
- पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य, संस्थापक, अखिल विश्व गायत्री परिवार
”यदि हम संसार का मार्ग ग्रहण करेंगे और संसार को और अधिक विभाजित करेंगे तो शान्ति, सहिष्णुता और स्वतन्त्रता के अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते। यदि हम इस युद्ध- विक्षिप्त दुनियाँ को शान्ति और सत्य का प्रकाश दिखाएं तो सम्भव है कि हम संसार में कोई अच्छा परिवर्तन कर सकें। लोकतन्त्र से मेरा मतलब समस्याओं को शान्तिपूर्वक हल करने से है। अगर हम समस्याओं को शान्तिपूर्वक हल नहीं कर पाते तो इसका मतलब है कि लोकतन्त्र को अपनाने में हम असफल रहें हैं।“
- पं0 जवाहर लाल नेहरू
”हमारे युग की दो प्रमुख विशेषताएँ विज्ञान और लोकतंत्र है। ये दोनों टिकाऊ हैं। हम शिक्षित लोगों को यह नहीं कह सकते कि वे तार्किक प्रमाण के बिना धर्म की मान्यताओं को स्वीकार कर लें। जो कुछ भी हमें मानने के लिए कहा जाए, उसे उचित और तर्क के बल से पुष्ट होना चाहिए। अन्यथा हमारे धार्मिक विश्वास इच्छापूरक विचार मात्र रह जाएंगे। आधुनिक मानव को ऐसे धर्म के अनुसार जीवन बिताने की शिक्षा देनी चाहिए, जो उसकी विवेक-बुद्धि को जँचे, विज्ञान की परम्परा के अनुकूल हो। इसके अतिरिक्त धर्म को लोकतन्त्र का पोषक होना चाहिए, जो कि वर्ण, मान्यता, सम्प्रदाय या जाति का विचार न करते हुए प्रत्येक मनुष्य के बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास पर जोर देता हो। कोई भी ऐसा धर्म, जो मनुष्य-मनुष्य में भेद करता है अथवा विशेषाधिकार, शोषण या युद्ध का समर्थन करता है, आज के मानव को रूच नहीं सकता। स्वामी विवेकानन्द ने यह सिद्ध किया कि हिन्दू धर्म विज्ञान सम्मत भी है और लोकतन्त्र का समर्थक भी। वह हिन्दू धर्म नहीं, जो दोषों से भरपूर है, बल्कि वह हिन्दू धर्म, जो हमारे महान प्रचारकों का अभिप्रेत था।“
- डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन
”मात्र जानकारियाँ देना शिक्षा नहीं है। यद्यपि जानकारी का अपना महत्व है और आधुनिक युग में तकनीकी की जानकारी महत्वपूर्ण भी है तथापि व्यक्ति के बौद्धिक झुकाव और उसकी लोकतान्त्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है। ये बातें व्यक्ति को एक उत्तरदायी नागरिक बनाती है। शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृति। वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान व कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है। करूणा, प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती। शिक्षक उन्हीं लोगों को बनाया जाना चाहिए जो सबसे अधिक बुद्धिमान हों। शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए। सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है।“ - डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृश्णन
(5 सितम्बर को भारत देश में शिक्षक दिवस इनके जन्म दिवस को ही मनाया जा जाता है)
”समाजिकता और संस्कृति का मापदण्ड समाज में कमाने वाला द्वारा अपने कत्र्तव्य के निर्वाह की तत्परता है। अर्थव्यवस्था का कार्य इस कत्र्तव्य के निर्वाह की क्षमता पैदा करना है। मात्र धन कमाने के साधन तथा तरीके बताना-पढ़ाना ही अर्थव्यवस्था का कार्य नहीं है। यह मानवता बढ़ाना भी उसका काम है। कि कत्र्तव्य भावना के साथ कमाने वाला खिलाये भी। यहाँ यह स्पष्ट समझ लिया जाना चाहिए कि वह कार्य और दायित्व की भावना से करें न कि दान देने या चंदा देने की भावना से।“
- पं0 दीन दयाल उपाध्याय
”शोषित वर्ग की सुरक्षा उसके सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतन्त्र होने में है। हमें अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा और स्वयं। राजनीतिक शक्ति शोषितों की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज में उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा। उनको शिक्षित होना चाहिए। एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने, और उनके अन्दर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी ऊँचाइयों का स्रोत है। ”शिक्षित बनो!!!, संगठित रहो!!!, संघर्ष करो!!! सामाजिक क्रान्ति साकार बनाने के लिए किसी महान विभूति की आवश्यकता है या नहीं यह प्रश्न यदि एक तरफ रख दिया जाय, तो भी सामाजिक क्रान्ति की जिम्मेदारी मूलतः समाज के बुद्धिमान वर्ग पर ही रहती है, इसे वास्तव में कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता। भविष्य काल की ओर दृष्टि रखकर वर्तमान समय में समाज को योग्य मार्ग दिखलाना यह बुद्धिमान वर्ग का पवित्र कर्तव्य है। यह कर्तव्य निभाने की कुशलता जिस समाज के बुद्धिमान लोग दिखलाते हैं। वहीं जीवन कलह में टिक सकता है।“
- बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर
‘‘आम आदमी से दूर हटकर साहित्य तो रचा जा सकता है, लेकिन वह निश्चित तौर पर भारतीय जन जीवन का साहित्य नहीं हो सकता। आम आदमी से जुड़ा साहित्य ही समाज के लिए कल्याकाणकारी हो सकता हैं।’’
-श्री शंकर दयाल शर्मा, पूर्व राष्ट्रपति
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 25.9.1997
”विश्व का रूपान्तरण तभी सम्भव है जब सभी राष्ट्र मान ले कि मानवता के सामने एक मात्र विकल्प शान्ति, परस्पर समभाव, प्रेम और एकजुटता है। भारतीय धर्मो के प्रतिनिधियों से मित्रवत् सूत्रपात होगा। तीसरी सहस्त्राब्दि में एशियाई भूमि पर ईसाइयत की जड़े मजबूत होंगी। इस सहस्त्राब्दि को मनाने का अच्छा तरीका वही होगा। कि हम धर्म के प्रकाश की ओर अग्रसर हो और समाज के प्रत्येक स्तर पर न्याय और समानता के बहाल के लिए प्रयासरत हो। हम सबको विश्व का भविष्य सुरक्षित रखने और उसे समृद्ध करने के लिए एकजुट होना चाहिए। विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी उतनी ही आवश्यक है। धर्म को कदापि टकराव का बहाना नहीं बनाना चाहिए-भारत को आशीर्वाद“ (भारत यात्रा पर) -पोप जान पाल, द्वितीय
साभार - अमर उजाला, इलाहाबाद, दि0 08.11.1999
‘शिक्षा प्रक्रिया मे व्यापक सुधारों की जरूरत है। ‘यह रास्ता दिल्ली की ओर जाता है’ लिखा साइन बोर्ड पढ़ लेना मात्र शिक्षा नहीं है। इसके बारे में चिन्तन करना पड़ेगा और कोई लक्ष्य निर्धारित करना पडे़गा। सामाजिक परिवर्तन किस तरह से, इसकी प्राथमिकताये क्या होगीं? यह तय करना पड़ेगा। 21वीं शताब्दी के लिए हमें कार्यक्रम तय करने पडे़गे, मौजूदा लोकतन्त्र खराब नहीं है परन्तु इसको और बेहतर बनाने की आवश्यकता है।’’ - श्री रोमेश भण्डारी, पूर्व राज्यपाल, उ0प्र0, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 11.9.1997
”अकेेले राजशक्ति के सहारे समाजिक बदलाव सम्भव नहीं“
- श्री अटल विहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री, भारत)
(30 जून, 1999 को लखनऊ मंे राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण वाहिनी के शुभारम्भ मंे)
‘‘मैं आवाहन करता हूँ-देश की युवा पीढ़ी का, जो इस महान गौरवशाली देश का नेतृत्व करें और संकीर्णता, भय, आसमानता, असहिष्णुता से ऊपर उठकर राष्ट्र को ज्ञान-विज्ञान के ऐसे धरातल पर स्थापित करे कि लोग कहें यही तो भारत महान है।’’ (विज्ञापन द्वारा प्रकाशित अपील)
- श्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मानव संसाधन मंत्री, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 11.8.1998
‘‘देश के सभी विद्यालयों में वेद की शिक्षा दी जायेगी’’
-श्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मानव संसाधन मंत्री, भारत
साभार - आज, वाराणसी, दि0 10.12.1998
‘‘शिक्षा के भारतीयकरण, राष्ट्रीयकरण और आध्यात्मिकता से जोड़े जाने का प्रस्ताव है, उसका क्या अर्थ है? क्या पिछले पचास वर्षो से लागू शिक्षा प्रणाली गैर भारतीय, विदेशी थी जिसमे भारत की भूत और वर्तमान वास्तविकताएं नहीं थीं?’’ (अटल बिहारी वाजपेयी को लिखे पत्र में)
-श्रीमती सोनिया गाँधी, अध्यक्ष, काँग्रेस पार्टी, भारत
साभार - आज, वाराणसी, दि0 23.10.1998
‘‘शिक्षा में दूरदृष्टि होनी चाहिए तथा हमारी शिक्षा नीति और शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे हम भविष्य देख सके और भविष्य की आवश्यकताओं को प्राप्त कर सकें।
- श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष, उ0प्र0, भारत
साभार - आज, वाराणसी, दि0 25.12.1998
”दार्शनिक आधार पर चर्चा करने से ही अलगाव बढ़ता है। जब तक व्यावहारिक रूप में धार्मिकता के आधार पर विचारों का सामंजस्य नहीं स्थापित होगा, तब तक हम ऊपर नहीं उठ सकते। दार्शनिक दृष्टि से धर्म में अन्तर होता है लेकिन धार्मिक दृष्टि से नहीं। नई सदी में कार्यो को संपादित करने वाले आप (नये पीढ़ी से) ही है, पुरानी पीढ़ी आपके पीछे है लेकिन सारा दायित्व आप के ऊपर ही है इसलिए पहले अच्छी तरह से शिक्षा ग्रहण करें।“ (वाराणसी यात्रा में) - दलाईलामा, तिब्बति धर्म गुरू
साभार - अमर उजाला, इलाहाबाद दि0 18.12.1999
”भारत में आध्यात्मिकता का बोलबाला हजारों सालों से है इसके बावजूद भी यहाँ किसी भी धर्म को छुये बिना नैतिक मूल्यों की शिक्षा धर्म निरपेक्ष रूप से विकसित हुई है। यह आधुनिक युग में विश्व को भारत की सबसे बड़ी देन है। आज विश्व को ऐसे ही धर्मनिरपेक्ष नैतिक मूल्यों की शिक्षा की सख्त जरूरत है। बीसवीं सदी रक्तपात की सदी थी। 21वीं सदी संवाद की सदी होनी चाहिए। इससे कई समस्यायें अपने आप समाप्त हो जाती है। दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है जो किसी धर्म में विश्वास नहीं करते हैं इसलिए यह जरूरी है कि सेक्यूलर इथिक्स (धर्मनिरपेक्ष नैतिकता) को प्रमोट (बढ़ाना) करें जो वास्तविक और प्रैक्टिकल एप्रोच (व्यावहारिक) पर आधारित हो। धार्मिक कर्मकाण्डों के प्रति दिखावे का कोई मतलब नहीं है। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में मानव मूल्यों का अभाव है। यह सिर्फ मस्तिष्क के विकास पर जोर देती है। हृदय की विशालता पर नहीं। करूणा तभी आयेगी जब दिल बड़ा होगा। दुनिया के कई देशों ने इस पर ध्यान दिया है। कई विश्वविद्यालयों में इस पर प्रोजेक्ट चल रहा है।“ (सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में ”21वीं सदी में शिक्षा“ विषय पर बोलते हुये। इस कार्यक्रम में केंन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ, वाराणसी के कुलपति पद्मश्री गेशे नवांग समतेन, पद्मश्री प्रो.रामशंकर त्रिपाठी, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के कुलपति प्रो. अवधराम, दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर के पूर्व कुलपति प्रो. वेणी माधव शुक्ल, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के पूर्व कुलपति प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र और वर्तमान कुलपति प्रो. वी.कुटुम्ब शास्त्री, प्रति कुलपति प्रो.नरेन्द्र देव पाण्डेय, प्रो. रमेश कुमार द्विवेदी, प्रो. यदुनाथ दूबे इत्यादि उपस्थित थे।)
- दलाईलामा, तिब्बति धर्म गुरू
साभार - दैनिक जागरण वाराणसी, दि0 18.01.2011
”भारत बौद्धिक विस्फोट के मुहाने पर खड़ा है। हर क्षेत्र में भारतीयों का दखल हो रहा है। वह दिन दूर नहीं, जब भारत भी पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाएगा। हालांकि इसका लाभ उठाने के लिए भारत को अतीत की पहेलीयों को सुलझाना होगा।“
-वी. एस. नाॅयपाल, (साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित)
साभार - अमर उजाला, वाराणसी, दि0 31.10.2000
”अच्छी शिक्षा व्यवस्था ही प्रबुद्ध नागरिक पैदा करती है, बच्चों को नैतिक शिक्षा प्रदान की जाय और रोजगार के नये अवसर पैदा किये जायें, राष्ट्रीय शान्ति व सार्वभौमिक सद्भाव के लिए सभी धर्म आध्यात्मिक आन्दोलन में शामिल हो जायें“
-श्री ए.पी.जे, अब्दुल कलाम, पूर्व राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 8.12.2002
”शिक्षा का स्वदेशी माॅडल चाहिए” (गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में)
- श्री लाल कृष्ण आडवाणी (पूर्व केन्द्रीय गृह मन्त्री, भारत)
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 8.06.2008
”विश्वविद्यालयों में सिर्फ परीक्षाओं में ही नहीं, शोध कार्यों में भी नकल का बोलबाला है, कोई भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं जिसके किसी शोध को अन्तर्राष्ट्रीय तो क्या, राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली हो।“ (लखनऊ में आयोजित 21 राज्य विश्वविद्यालयों व अन्य के कुलपतियों के सम्मेलन में)
-श्री बी.एल. जोशी, पूर्व राज्यपाल, उ0प्र0, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 10.11.2010
”महामना की सोच मानवीय मूल्य के समावेश वाले युवाओं के मस्तिष्क का विकास था, चाहे वह इंजिनियर हो, विज्ञानी या शिक्षाविद्। यहाँ के छात्र दुनिया में मानवीय मूल्य के राजदूत बनें ताकि देश में नम्बर एक बना बी.एच.यू. अब दुनिया के लिए आदर्श बने। इस विश्वविद्यालय सरीखा दूसरा कोई उत्कृष्ट संस्थान ही नहीं जहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा यूनेस्को चेयर फार पीस एंड इंटरकल्चर अंडरस्टैण्डिंग की स्थापना हुई। विश्वविद्यालय का दक्षिणी परिसर मुख्य परिसर की सिर्फ कापी भर नहीं है, बल्कि यह तो भविष्य में नये विश्वविद्यालय का रूप लेगा“
-डाॅ0 कर्ण सिंह, प्रख्यात चिंतक व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उ0प्र0, भारत के चांसलर
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 26.12.2010
”विज्ञान व आध्यात्म में काफी समानताएं हैं और दोनों के लिए अनुशासन सबसे ज्यादा जरूरी है। इन दोनों का मानव के विकास में भारी योगदान है। जब तक ये एक साथ मिलकर काम नहीं करेंगें उनका पूरा लाभ हासिल नहीं किया जा सकता। विश्वविद्यालय समाज के लिए उपयोगी अनुसंधान पर जोर दें ताकि उनका लाभ जनता व देश को हो। ज्ञान के लिए शिक्षा अर्जित की जानी चाहिए और देश के युवाओं के विकास के लिए शिक्षा पद्धति में समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाना जरूरी है। इसका मकसद युवाओं को बौद्धिक और तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाना होना चाहिए।“(विज्ञान व आध्यात्मिक खोज पर राष्ट्रीय सम्मेलन, नई दिल्ली के उद्घाटन में बोलते हुए) -श्रीमती प्रतिभा पाटिल, पूर्व राष्ट्रपति, भारत
साभार - हिन्दुस्तान, वाराणसी, दि0 13.3.2011
”पिछली सदी में राष्ट्रवाद की अवधारणा काफी प्रबल रही। यह अलग बात है कि सदी के बीच में ही परस्पर अंतर निर्भरता ने विश्वग्राम की चेतना को जन्म दिया। इस चेतना ने राष्ट्रवाद की अवधारणा को काफी हद तक बदल दिया है। आज निरपेक्ष व सम्पूर्ण संप्रभुता का युग समाप्त हो गया है। राजनीतिक प्रभुता को भी विश्व के साथ जोड़ दिया है। आज मामले अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय को सौंपे जा रहे हैं। मानवाधिकारों के नये मानक लागू हो रहे हैं। इन सबसे ऐसा लगता है जैसे राज्यों का विराष्ट्रीकरण हो रहा है। आज समस्याएं राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर चली गई है। महामारी, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट आदि पूरे विश्व को प्रभावी कर रहा है। इनका हल वैश्विक स्तर पर बातचीत व सहयोग से ही संभव है। इसको देखते हुए हमें राष्ट्रवाद व अन्तर्राष्ट्रीयतावाद के विषय में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इन स्थितियों को देखते हुए नई सदी में विज्ञान, प्रौद्योगिकी व नवप्रवर्तन राष्ट्र की सम्पन्नता के लिए खासे महत्वपूर्ण साबित होगें। छात्रों से इस दिशा में प्रयास करने व लीक से हटकर नया सोचने का आह्वान करता हूँ। “(बी.एच.यू के 93वें दीक्षांत समारोह व कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन, वाराणसी में बोलते हुए)-श्री हामिद अंसारी, उप राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 13.03.2011
”शिक्षा का नया माॅडल विकसित करना होगा। पिछले 25 वर्षो से हम अमीर लोगों की समस्या सुलझा रहे हैं। अब हमें गरीबों की समस्या सुलझानें का नैतिक दायित्व निभाना चाहिए। देश में 25 वर्ष से कम उम्र के 55 करोड़ लोग हैं। हमें सोचना होगा कि हम उन्हें नौकरी और प्रशिक्षण कैसे देगें। भौतिकी, रसायन, गणित जैसे पारम्परिक विषयों को पढ़ने का युग समाप्त हो गया। अब तो हमें रचनात्मकता, समन्वय, लीडरशिप, ग्लोबल तथा प्रोफेशनल विषयों को पढ़ने तथा सूचना तकनीक के जरिए पढ़ाई पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है। हमारे देश में जो अध्यापक हैं, वे शोध नहीं करते और जो शोध करते हैं वे पढ़ाते नहीं। हमें पूरी सोच को बदलनी है।“ - सैम पित्रोदा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय नवोन्मेष परिषद्
(प्रधानमंत्री के सूचना तकनीकी सलाहकार व राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के पूर्व अध्यक्ष)
”विश्वविद्यालय को कुलपतियों और शिक्षकों को शिक्षा का स्तर और उन्नत करना चाहिए। एक बार अपना दिल टटोलना चाहिए कि क्या वाकई उनकी शिक्षा स्तरीय है। हर साल सैकड़ों शोधार्थियों को पीएच.डी की उपाधि दी जा रही है, लेकिन उनमें से कितने नोबेल स्तर के हैं। साल में एक-दो शोध तो नोबेल स्तर के हों।“(रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली, उ0प्र0, के दीक्षांत समारोह में)
“This country has to understand some things. For one thing, this country has to understand that because of your troubles, your poverty, your troubles, your humbleness, many reasons are in your blind beliefs, at least one and a half thousand years have been eroding backwards. It is necessary to complete one and a half thousand years. It is important to modernize India by dragging it. My eagerness is that the good fortune of this country should be open, this country should also be happy, this country should also prosper. Because this country is prosperous then the tune of Rama again, if this country is prosperous then people sing songs, pray to the Lord. If this country is prosperous, then the bells of the temple again o'clock, adorn the plate of worship again. If this country is prosperous, then Krishna at the flute, then create peace! This poor country, now if you bring Krishna in it too, where will Radha find dancing? Now if you bring Krishna too, then Krishna will get into a lot of trouble, where will you steal Makhan? Where is Makhan? How to break milk curd pot? Where is the milk curd, even the water is hard. There is such a rush on the taps! And broke the pot of a half gopi, who was returning after filling the water from the tap, then Krishna would file a report in the police, from three o'clock in the night, the water was filling up at nine o'clock, and these gentlemen killed Kankri. Religion is born when the country is prosperous. Religion is good for the rich. So I definitely want this country to be good luck but the biggest hurdle is the beliefs of this country. That's why I'm fighting you. For you. Today India is poor. India will not be able to get out of this poverty with its own efforts, there is no solution. India can get out of poverty, if all the humanity is supported. Because mankind has such technology, such science that poverty of this country is eradicated. But you remained unmindful that we will eradicate our poverty on our own, then you are the one who makes poverty, how will you erase it? Your intelligence is the foundation within it, how will you erase it? You have to open your doors. You have to expand your brain a little bit. You have to take the support of humanity. And it's not like you have nothing to offer. You have something to offer to the world. You can pay attention to the world. If America wants to find attention, America will not be able to find it on its own. He will have to look towards India. But they are intelligent people. They come east to learn meditation. There is no obstruction, they are not obstructed. The symptom of intelligence is that which can be taken from anywhere. This whole earth belongs to us. If all the human beings come together and take measures, then there is no reason to avoid any problem on earth. There should be two types of education in the world, now there is only one type of education. And so there is great incompleteness in the world. We send children to school, college, send university, but the same type of education there - how to live? How to earn livelihood? How to earn money How to get a position Organizes life, teaches life skills. The second more important education is that - how to die? How to embrace death? How to enter death? This education was completely lost from the earth. This was not the case in the past. Both teachings were available in the past. That is why we divided life into four parts. Life of student, life of celibacy for twenty five years. To sit near the Master. Prepare how to live life. Style of life is to be learned. Then the life of a householder for twenty-five years: the application of what he teaches by sitting at the feet of the Guru, his practical experiment. Then when you start to be fifty years old, then your children will start being around twenty five years old. The days of his return from his Guru's house would begin to get closer. Now their days have come that they may live life. Even then, father and child went on producing, it was considered as indecent. This is indecent. Now children will produce children. Now you rise above these toys. So Vanprastha for twenty five years. Face to the forest- It means that the forest has not gone yet, it has not left the house but the back towards the house faces towards the forest. So that if your sons need your advice, ask. Do not give advice on your behalf. Vanaprasthi himself does not give advice. Then when you are seventy-five years old, leave everything and go to the forest. He was preparing for the last twenty-five years of death. His name was Sannyas. Twenty-five years of preparation for life at the beginning of life, and twenty-five years of preparation for death at the end of life. The degrees are available - PhD, D. Lite and D. Phil. And they are very respected. What is their job? Their job is that they decide when Gorakhnath was born. Some say at the end of the tenth century, some say at the beginning of the eleventh century. There is a big controversy on this. Knowledgeable heads of big universities keep searching. Of scriptures, proofs, its, his. His entire life goes into this. What will be greater ignorance than this? Will you know when Gorakh was born? Even if you know this, will you get it? Even if Gorakh is not born, even if it is proved, what is the use? Whether it happened or not, is meaningless. Gorakh tasted what he lived. Therefore, your university is engaged in such futile works that it is a big surprise whether to call them a university or not. Their work is ........ All the research that is going on in your university is all garbage. "
- Acharya Rajneesh" Osho "
"Sudharma, there is a need to create a blind human in this era. Man has become selfish, narrow-minded. Occasions of these weaknesses often appear to be arbitrary. Belonging to the stomach and family are ideal. "-Address Lord Ram
"Man is your creator of your destiny, based on the belief that we will become excellent and make others superior, then the era will definitely change." We will change - the era will change, we will improve - the era will improve. We have full faith in this fact. "
- Pt. Shriram Sharma Acharya, Founder, All World Gayatri Parivar
"If we take the path of the world and divide the world more, then we cannot succeed in our objective of peace, tolerance and freedom. If we show the light of peace and truth to this war-deranged world, then it is possible that we can make a good change in the world. By democracy I mean to solve problems peacefully. If we are not able to solve the problems peacefully then it means that we have failed to adopt democracy. ”
- Pt. Jawaharlal Nehru
“Science and democracy are the two major features of our era. Both of these are durable. We cannot ask educated people to accept the beliefs of religion without logical proof. Whatever we are asked to believe, it must be justified and reinforced by reason. Otherwise our religious beliefs will remain mere wishful thoughts. The modern human should be taught to live life according to such religion, which suits his wisdom and intellect, is compatible with the tradition of science. Apart from this, religion should be the feeder of democracy, which emphasizes the intellectual and spiritual development of every human being, irrespective of varna, beliefs, sect or caste. Any religion, which distinguishes man-to-man or supports privilege, exploitation or war, cannot stop today's human. Swami Vivekananda proved that Hindu religion is also a science and a supporter of democracy. Not the Hindu religion, which is full of faults, but the Hindu religion, which was the intention of our great preachers. "
- Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
"Giving information is not education. Although information has its own importance and technical information is also important in the modern era, however, the intellectual inclination of a person and his democratic spirit are also important. These things make a person a responsible citizen. The goal of education is a sense of dedication to knowledge and a tendency to continue learning. It is a process that imparts both knowledge and skills to the person and paves the way to use them in life. Developing compassion, love and superior traditions are also the objectives of education. Good education cannot be imagined unless the teacher is devoted and committed to education and does not consider education as a mission. Teachers should be made only to those who are the most intelligent. The teacher should not be satisfied just by teaching well. He should earn the affection and respect of his students. Honor does not come from being a teacher, it has to be earned. ”- Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
(On September 5, Teachers' Day is celebrated on his birthday in India)
The criterion of socialism and culture is the readiness of the person earning his duties in the society. The task of the economy is to create the ability to sustain this duty. It is not the job of the economy to teach and teach only the means and methods of earning money. It is also his job to raise humanity. That the earner should be fed with the sense of duty. It should be clearly understood here that he should do it in the spirit of work and responsibility and not in the spirit of giving or donating. "
- Pt Deen Dayal Upadhyay
“The protection of the exploited class is in its independence from both the government and the Congress. We have to make our own way and ourselves. Political power cannot solve the problems of the oppressed, their salvation lies in getting their rightful place in the society. They have to change their bad way of living. They should be educated. A great need is to shake their sense of inferiority, and to establish in them the divine dissatisfaction which is the source of all heights. "Be educated !!!, stay organized !!!, struggle !!! Whether or not a great distinction is needed to make a social revolution come true, even if the question is put aside, the responsibility of social revolution remains basically on the intelligent section of society, no one can really deny it. It is the sacred duty of the intelligent class to show a worthy path to the society in the present time by looking towards the future. The skill of performing this duty is shown by the intelligent people of the society. Life can live in strife right there. "
- Baba Saheb Bhim Rao Ambedkar
"Literature can be created by moving away from the common man, but it certainly cannot be the literature of Indian public life." Only literature related to the common man can be welfare for the society. "
-Shri Shankar Dayal Sharma, former President
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, The 25.9.1997
"The transformation of the world is possible only when all nations recognize that the only option before humanity is peace, mutual harmony, love and solidarity." Representatives of Indian religions will be friendly. In the third millennium, the roots of Christianity will be strong on Asian lands. That would be the best way to celebrate this millennium. That we move towards the light of religion and strive for the restoration of justice and equality at every level of society. All of us should unite to secure and enrich the future of the world. Along with progress in the field of science and technology, spiritual advancement is equally essential. Religion should never be used as an excuse for confrontation - Bless India "(India visit) - Papa Jaan Pal, II
Sincerely - Amar Ujala, Allahabad, 08.11.1999
'The education process needs major reforms. Reading the sign board written 'This road leads to Delhi' is not just education. One has to think about it and set a goal. In what way will social change be its priorities? This has to be decided. For the 21st century, we have to decide the program, the existing democracy is not bad but it needs to be made better. ”- Shri Romesh Bhandari, Former Governor, U.P., India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, 11.9.1997
"Social change is not possible with single power"
- Shri Atal Vihari Vajpayee (Former Prime Minister, India)
(At the inauguration of the National Reconstruction Corps in Lucknow on June 30, 1999)
"I call upon the young generation of the country to lead this great glorious country and rise above parochialism, fear, sky, intolerance and set the nation on such a stage of knowledge science that people will say that India is great "(Appeal published by advertisement)
- Mr. Murali Manohar Joshi, Former Human Resource Minister, India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, 11.8.1998
"Vedas will be taught in all schools of the country"
-Mr Murli Manohar Joshi, Former Human Resource Minister, India
Sincerely, Today, Varanasi, 10.12.1998
"What is the meaning of education proposed to be associated with Indianization, nationalization and spirituality?" Was the education system implemented for the last fifty years non-Indian, foreign, which did not have the past and present realities of India? ”(In a letter to Atal Bihari Vajpayee)
Smt Sonia Gandhi, President, Congress Party, India
Sincerely - Today, Varanasi, 23.23.1998
"There should be foresight in education and our education policy and education system should be such that we can see the future and meet the needs of the future.
- Mr. Kesharinath Tripathi, Former Legislative Assembly Speaker, U.P., India
Sincerely - Today, Varanasi, The 25.25.1998
Discussion on philosophical grounds only leads to separation. As long as there is no harmony between ideas on the basis of righteousness in practical terms, we cannot rise up. Philosophically there is a difference in religion but not religiously. It is you (from the new generation) who performs the work in the new century, the older generation is behind you, but the whole responsibility is on you, so first get educated well. ”(In Varanasi Yatra) - Dalai Lama, Tibetan Religion Guru
Sincerely, Amar Ujala, Allahabad, 18.12.1999
“Spirituality has been dominated in India for thousands of years, but despite this, education of moral values has developed secularly without touching any religion here. This is India's biggest gift to the world in the modern era. Today the world is in dire need of education of such secular moral values. The twentieth century was the century of bloodshed. The 21st century should be the century of dialogue. Many problems are automatically eliminated by this. There are a large number of people in the world who do not believe in any religion, so it is necessary to promote (increase) secular ethics which is based on real and practical approach. There is no point in showing disrespect to religious rituals. There is a lack of human values in the modern education system. It only emphasizes brain development. Not on the vastness of heart. Compassion will come only when the heart is large. Many countries of the world have paid attention to this. Project is underway in many universities. "(Speaking on the topic" Education in the 21st Century "at Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi. In this program, Vice Chancellor of Central Tibetan Studies University, Sarnath, Varanasi, Padmashri Geshe Nawang Samten, Padmashri Prof. Ramshankar Tripathi, Mahatma Gandhi Kashi Vidyapeeth, Varanasi Vice Chancellor Prof. Avadharam, Deen Dayal Upadhyay Vishwavidya Former Vice Chancellor Prof. Veni Madhav Shukla of Yalaya, Gorakhpur, Prof. Abhiraj Rajendra Mishra, former Vice Chancellor of Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi and Prof. V. Kutumb Shastri, present Vice Chancellor, Prof. Narendra Dev Pandey, Prof. Ramesh Kumar Dwivedi, Prof. Yadunath Dubey etc. were present.)
“India stands at the mouth of the intellectual explosion. Indians are interfering in every field. The day is not far when India will get its iron all over the world. However, to take advantage of this, India has to solve the puzzles of the past. "
-V. s. Naipal, (awarded the Nobel Prize for Literature)
Sincerely, Amar Ujala, Varanasi, dated 31.10.2000
"Good education system produces enlightened citizens, moral education should be provided to children and new employment opportunities should be created, all religions join the spiritual movement for national peace and universal harmony"
Mr. APJ, Abdul Kalam, Former President, India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, 8.12.2002
"Need an indigenous model of education" (at the convocation of Gurukul Kangri University)
- Shri Lal Krishna Advani (Former Union Home Minister, India)
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, The 8.06.2008
"Universities are not only in examinations, research work is also dominated by cheating, there is no university whose research is recognized internationally, even at the national level." (21 state universities and others organized in Lucknow Conference of Vice Chancellors)
- Mr. BL Joshi, Former Governor, U.P., India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, d. 10.11.2010
Mahamana's thinking was the development of the brains of young people, including human values, be it engineers, scientists or academics. Students here become ambassadors of human value in the world so that BHU becomes number one in the country. Now be the role model for the world. There is no other excellent institution like this university where UNESCO Chair for Peace and Interculture Understanding was established by the United Nations. The southern campus of the university is not just a copy of the main campus, but it will also take the form of a new university in the future.
- Dr. Karan Singh, eminent thinker and Chancellor of Kashi Hindu University, Varanasi, Uttar Pradesh, India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, The 26.26.2010
There are many similarities between science and spirituality and discipline is the most important for both. Both of these contribute heavily to human development. Unless they work together, their full benefit cannot be achieved. Universities should insist on useful research for the society so that they benefit the public and the country. Education should be acquired for knowledge and for the development of the youth of the country, it is necessary to adopt a holistic approach in the education system. The aim should be to make the youth intellectually and technically competent. ”(Speaking at the inauguration of National Conference on Science and Spiritual Discovery, New Delhi) - Smt. Pratibha Patil, Former President, India
Sincerely - Hindustan, Varanasi, The 13.13.2011
"The concept of nationalism prevailed in the last century. It is another matter that interdependence in the middle of the century gave birth to the consciousness of Vishwagram. This consciousness has changed the concept of nationalism to a great extent. Today the era of absolute and total sovereignty is over. Political sovereignty has also been linked with the world. Today the cases are being referred to the International Court of Justice. New standards of human rights are being implemented. It all seems as if states are being globalized. Today the problems have gone outside the national boundaries. Epidemics, climate change, economic crisis etc. are affecting the whole world. Their solution is possible only through dialogue and cooperation at the global level. In view of this, we need to think seriously about nationalism and internationalism. Looking at these conditions, science, technology and innovation will prove to be very important for the prosperity of the nation in the new century. I urge students to try in this direction and think out of the box. "(Speaking at the 93rd Convocation of BHU and Krishnamurti Foundation, Varanasi) - Shri Hamid Ansari, Vice President, India
Sincerely - Dainik Jagran, Varanasi, 13.03.2011
“A new model of education will have to be developed. For the last 25 years we have been solving the problem of rich people. Now we must fulfill the moral obligation to solve the problems of the poor. There are 55 crore people below the age of 25 in the country. We have to think how we will give them jobs and training. The era of reading traditional subjects like Physics, Chemistry, Mathematics came to an end. Now, we need to focus on creativity, coordination, leadership, reading global and professional subjects and studying through information technology. Teachers in our country do not do research and those who do research do not teach. We have to change the whole thinking. ”- Sam Pitroda, President, National Innovation Council
(Information Technology Advisor to Prime Minister and former Chairman of National Knowledge Commission)
“The university should further increase the standard of education to the vice-chancellors and teachers. Once his heart should be searched whether his education is really up to the mark. Every year hundreds of researchers are being awarded Ph.D. degrees, but how many of them are of Nobel level. One or two researches in a year are of Nobel level. ”(At the convocation of Ruhelkhand University, Bareilly, Uttar Pradesh)