इस भाग की सूची
कल्कि महाअवतार से उत्पन्न नयी प्रणाली और व्यापार
अ. ज्ञान से जुड़ा
01. भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणालीः 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel)
02. कार्पोरेट विश्वमानक मानव संसाधन विकास प्रशिक्षण (Corporate World Standard Human Resources Development Training)
01-जापानी विधि (Japanese Institute of Plant Engineers-JIPE) - WCM-TPM-5S
02-भारतीय विधि (Rishi/Saint/Avatar) - WCM-TLM-SHYAM.C
01-कुल गुणवत्ता प्रबंधन (Total Quality Management-TQM)
03. विश्व राजनीति पार्टी संघ (World Political Party Organisation - WPPO)
04. नयी पीढ़ी के लिए नया विषय - ईश्वर शास्त्र, मानक विज्ञान, एकात्म विज्ञान
05. विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो
06. मनोरंजन
ब. जीवन से जुड़ा
रियल स्टेट 02. डिजिटल प्रापर्टी और एजेन्ट नेटवर्क (Digital Property & Agent Network)
स. कर्म से जुड़ा
व्यापार - 01. उत्पाद ब्राण्ड
व्यापार - 02. कैलेण्डर
व्यापार - 03. शिक्षा ब्राण्ड - सत्य मानक शिक्षा
व्यापार - 04. राष्ट्र निर्माण के पुस्तक
एक ही मानव शरीर के जीवन, ज्ञान और कर्म के विभिन्न विषय क्षेत्र से मुख्य नाम (सर्वोच्च, अन्तिम और दृश्य)
कल्कि महाअवतार से उत्पन्न नयी प्रणाली और व्यापार
”आकाश शब्द मंय“ अर्थात आकाश शब्द रूप में है। विचार ही आविष्कार का जन्मदाता है। फिर वही व्यापार का मूल होता है। आध्यात्म जगत हो या भौतिक जगत विचार द्वारा ही आविष्कार और व्यापार चल रहे हैं। आविष्कारकों के साथ निम्न विचार अवश्य जुड़ जाते हैं। उनके सत्य अर्थ को जानना आवश्यक है-
1. ”बहुत पहुँचे हुये हैं“ - इसका अर्थ होता है- पहला अन्तर्जगत के सम्बन्ध में - आध्यात्मिक सार्वभौम सत्य-सिद्धान्तों का अनुभव, दूसरा बाह्य जगत के सम्बन्ध में - उच्च पीठासीन राजनेता और धर्माचार्य से सम्बन्ध। जिससे कल्याण व स्वार्थ का कार्य सम्पन्न कर सकें। तीसरा कोई अर्थ नहीं होता।
2. ”दर्शन“ - इसका अर्थ होता है- पहला अन्तर्जगत के सम्बन्ध में - उनके सम्पूर्ण रूप जीवन, ज्ञान व कर्म को देखना, दूसरा बाह्य जगत के सम्बन्ध में - केवल शरीर, संसाधन और महिमामण्डन को देखना। तीसरा कोई अर्थ नहीं होता। दूसरे प्रकार के दर्शन से दर्शन करने वाले को कोई लाभ नहीं होता।
3. ”आशीर्वाद“ - इसका अर्थ होता है- पहला अन्तर्जगत के सम्बन्ध में - उनसेे अपने कल्याणार्थ शब्द सुनना।, दूसरा बाह्य जगत के सम्बन्ध में - उनसेे अपने कल्याण के लिए कार्य लेना या उनके ज्ञान को अपने कल्याण के लिए जीवन में उपयोग करना। तीसरा कोई अर्थ नहीं होता। पहलेे प्रकार के आशीर्वाद से आशीर्वाद लेने वाले को कोई लाभ नहीं होता।
अ. भौतिक जगत द्वारा आविष्कार और व्यापार - भौतिक जगत में जैसे ही कोई आविष्कार होता है वह व्यापार बन जाता है परन्तु आविष्कारक का जीवन व्यापार नहीं बन पाता है। केवल आविष्कारक का ज्ञान और उत्पाद ही व्यापार में परिवर्तित होता है। पुनः आविष्कारक के ज्ञान और उत्पाद पर आधारित अन्य आविष्कार भी होने लगते हैं जैसे- बिजली का आविष्कार हुआ तो बिजली का आविष्कार जिस सिद्धान्त से हुआ वह और उस पर आधारित अनेक आविष्कार जैसे बल्ब, मोटर, जेनरेटर, बैटरी इत्यादि अनेक आविष्कार हो गये और उस पर आधारित अनकों प्रकार के व्यापार विकसित हो गये। लेकिन आविष्कारक का जीवन व्यापार नहीं बन पाया। वर्तमान समय में भौतिक जगत ने इतने अधिक आविष्कार दिये हैं कि मनुष्य के जन्म के पूर्व से ही वह भौतिक आविष्कारों का उपभोक्ता बन चुका है। और यह क्रम जारी भी है। भौतिक आविष्कारों से मनुष्य को संसाधन प्राप्त होता है।
ब. आध्यात्म जगत द्वारा आविष्कार और व्यापार - आध्यात्म जगत में जैसे ही कोई आविष्कार होता है वह व्यापार बन जाता है जो आविष्कारक के जीवन, ज्ञान और कर्म से जुड़ा होता है। पुनः आविष्कारक के जीवन, ज्ञान और कर्म पर आधारित अन्य आविष्कार भी होने लगते हैं। जैसे - श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिव-शंकर, बुद्ध, माँ वैष्णों देवी, सांई बाबा, विश्व के तमाम धर्म संस्थापकों के जीवन, ज्ञान व कर्म पर अनेकों व्यापार विकसित हो गये हैं। भारतीय आध्यात्म और दर्शन जगत ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है। वर्तमान समय में आध्यात्म जगत ने इतने अधिक आविष्कार दिये हैं कि मनुष्य के जन्म के पूर्व से ही वह आध्यात्मिक आविष्कारों द्वारा ही संचालित है। और यह क्रम जारी भी है। आध्यात्मिक आविष्कारों से मनुष्य को सुख व ईश्वरत्व की ओर विकास प्राप्त होता है।
श्री विष्णु पुराण (तृतीय अंश, अध्याय-दो) में लिखा है कि -स्थितिकारक भगवान विष्णु चारों युगों में इस प्रकार व्यवस्था करते हैं- समस्त प्राणियों के कल्याण में तत्पर वे सर्वभूतात्मा सत्ययुग में कपिल आदिरूप धारणकर परम ज्ञान का उपदेश करते हैं। त्रेतायुग में वे सर्वसमर्थ प्रभु चक्रवर्ती भूपाल होकर दुष्टों का दमन करके त्रिलोक की रक्षा करते हैं। तदन्तर द्वापरयुग में वे वेदव्यास रूप धारण कर एक वेद के चार विभाग करते हैं और सैकड़ों शाखाओं में बाँटकर बहुत विस्तार कर देते हैं। इस प्रकार द्वापर में वेदों का विस्तार कर कलियुग के अन्त में भगवान कल्किरूप धारणकर दुराचारी लोगों को सन्मार्ग में प्रवृत्त करते हैं। इसी प्रकार, अनन्तात्मा प्रभु निरन्तर इस सम्पूर्ण जगत् के उत्पत्ति, पालन और नाश करते रहते हैं। इस संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो उनसे भिन्न हो।
श्री विष्णु पुराण (तृतीय अंश, अध्याय-तीन) में लिखा है कि - वेद रूप वृक्ष के सहस्त्रों शाखा-भेद हैं, उनका विस्तार से वर्णन करने में तो कोई भी समर्थ नहीं है अतः संक्षेप यह है कि प्रत्येक द्वापरयुग में भगवान विष्णु व्यासरूप से अवतीर्ण होते हैं और संसार के कल्याण के लिए एक वेद के अनेक भेद कर देते हैं। मनुष्यों के बल, वीर्य और तेज को अलग जानकर वे समस्त प्राणियों के हित के लिए वेदों का विभाग करते हैं। जिस शरीर के द्वारा एक वेद के अनेक विभाग करते हैं भगवान मधुसूदन की उस मूर्ति का नाम वेदव्यास है।
इस वैवस्वत मनवन्तर (सातवाँ मनु) के प्रत्येक द्वापरयुग में व्यास महर्षियों ने अब तक पुनः-पुनः 28 बार वेदों के विभाग किये हैं। पहले द्वापरयुग में ब्रह्मा जी ने वेदों का विभाग किया। दूसरे द्वापरयुग के वेदव्यास प्रजापति हुए। तीसरे द्वापरयुग में शुक्राचार्य जी, चैथे द्वापरयुग में बृहस्पति जी व्यास हुए, पाँचवें में सूर्य और छठें में भगवान मृत्यु व्यास कहलायें। सातवें द्वापरयुग के वेदव्यास इन्द्र, आठवें के वसिष्ठ, नवें के सारस्वत और दसवें के त्रिधामा कहे जाते हैं। ग्यारहवें में त्रिशिख, बारहवें में भरद्वाज, तेरहवें में अन्तरिक्ष और चैदहवें में वर्णी नामक व्यास हुए। पन्द्रहवें में त्रव्यारूण, सोलहवें में धनंन्जय, सत्रहवे में क्रतुन्जय और अठ्ठारवें में जय नामक व्यास हुए। फिर उन्नीसवें व्यास भरद्वाज हुए, बीसवें गौतम, इक्कीसवें हर्यात्मा, बाइसवें वाजश्रवा मुनि, तेइसवें सोमशुष्पवंशी तृणाबिन्दु, चैबीसवें भृगुवंशी ऋक्ष (वाल्मीकि) पच्चीसवें मेरे (पराशर) पिता शक्ति, छब्बीसवें मैं पराशर, सत्ताइसवें जातुकर्ण और अठ्ठाइसवें कृष्णद्वैपायन। अगामी द्वापरयुग में द्रोणपुत्र अश्वत्थामा वेदव्यास होगें।
”कल्कि“ अवतार के सम्बन्ध में कहा गया है कि उसका कोई गुरू नहीं होगा, वह स्वयं से प्रकाशित स्वयंभू होगा जिसके बारे में अथर्ववेद, काण्ड 20, सूक्त 115, मंत्र 1 में कहा गया है कि ”ऋषि-वत्स, देवता इन्द्र, छन्द गायत्री। अहमिद्धि पितुष्परि मेधा मृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजिनि।।“ अर्थात ”मैं परम पिता परमात्मा से सत्य ज्ञान की विधि को धारण करता हूँ और मैं तेजस्वी सूर्य के समान प्रकट हुआ हूँ।“ जबकि सबसे प्राचीन वंश स्वायंभुव मनु के पुत्र उत्तानपाद शाखा में ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में से मन से मरीचि व पत्नी कला के पुत्र कश्यप व पत्नी अदिति के पुत्र आदित्य (सूर्य) की चैथी पत्नी छाया से दो पुत्रों में से एक 8वें मनु - सांवर्णि मनु होगें जिनसे ही वर्तमान मनवन्तर 7वें वैवस्वत मनु की समाप्ति होगी। ध्यान रहे कि 8वें मनु - सांवर्णि मनु, सूर्य पुत्र हैं। अर्थात कल्कि अवतार और 8वें मनु - सांवर्णि मनु दोनों, दो नहीं बल्कि एक ही हैं और सूर्य पुत्र हैं।
”सार्वभौम“ गुण 8वें सांवर्णि मनु का गुण है। अवतारी श्रृंखला अन्तिम होकर अब मनु और मनवन्तर श्रृंखला के भी बढ़ने का क्रम है क्योंकि यही क्रम है। वैदिक-सनातन-हिन्दू धर्म के पुराणों में 14 मनुओं का वर्णन किया गया है। इन्हीं के नाम से मन्वन्तर चलते हैं। जो निम्नलिखित हैं-
1. मनुर्भरत वंश की प्रियव्रत शाखा
अ. पौराणिक वंश
वंश अवतार काल
01. स्वायंभुव मनु यज्ञ भूतकाल
02. स्वारचिष मनु विभु भूतकाल
03. उत्तम मनु सत्यसेना भूतकाल
04. तामस मनु हरि भूतकाल
05. रैवत मनु वैकुण्ठ भूतकाल
2. मनुर्भरत वंश की उत्तानपाद शाखा
06. चाक्षुष मनु अजित भूतकाल
ब. ऐतिहासिक वंश
07. वैवस्वत मनु वामन वर्तमान
स. भविष्य के वंश
08. सांवर्णि मनु सार्वभौम भविष्य
09. दत्त सावर्णि मनु रिषभ भविष्य
10. ब्रह्म सावर्णि मनु विश्वकसेन भविष्य
11. धर्म सावर्णि मनु धर्मसेतू भविष्य
12, रूद्र सावर्णि मनु सुदामा भविष्य
13. दैव सावर्णि मनु योगेश्वर भविष्य
14. इन्द्र सावर्णि मनु वृहद्भानु भविष्य
पहले मनु - स्वायंभुव मनु से 7वें मनु - वैवस्वत मनु तक शारीरिक प्राथमिकता के मनु का कालक्रम हैं। 8वें मनु - सांवर्णि मनु से 14वें और अन्तिम - इन्द्र सांवर्णि मनु तक बौद्धिक प्राथमिकता के मनु का कालक्रम है इसलिए ही 9वें मनु से 14वें मनु तक के नाम के साथ में ”सांवर्णि मनु“ उपनाम की भाँति लगा हुआ है। अर्थात 9वें मनु से 14वें मनु में सार्वभौम गुण विद्यमान रहेगा और बिना ”विश्वशास्त्र“ के उनका प्रकट होना मुश्किल होगा।
मनुष्य की रचना ”पाॅवर और प्राफिट (शक्ति और लाभ)“ के लिए नहीं बल्कि असीम मस्तिष्क क्षमता के विकास के लिए हुआ है। फलस्वरूप वह स्वयं को ईश्वर रूप में अनुभव कर सके, जहाँ उसे किसी गुरू की आवश्यकता न पड़ें, वह स्वंयभू हो जाये, उसका प्रकाश वह स्वयं हो। एक गुरू का लक्ष्य भी यही होता है कि शिष्य मार्गदर्शन प्राप्त कर गुरू से आगे निकलकर, गुरू तथा स्वयं अपना नाम और कृति इस संसार में फैलाये, ना कि जीवनभर एक ही कक्षा में (गुरू में) पढ़ता रह जाये। एक ही कक्षा में जीवनभर पढ़ने वाले को समाज क्या नाम देता है, समाज अच्छी प्रकार जानता है। ”विश्वशास्त्र“ से कालक्रम को उसी मुख्यधारा में मोड़ दिया गया है। एक शास्त्राकार, अपने द्वारा व्यक्त किये गये पूर्व के शास्त्र का उद्देश्य और उसकी सीमा तो बता ही सकता है परन्तु व्याख्याकार ऐसा नहीं कर सकता। स्वयं द्वारा व्यक्त शास्त्र के प्रमाण से ही स्वयं को व्यक्त और प्रमाणित करूँगा- शास्त्राकार महर्षि व्यास (वर्तमान में लव कुश सिंह ”विश्वमानव“)
शब्द से सृष्टि की ओर...
सृष्टि से शास्त्र की ओर...
शास्त्र से काशी की ओर...
काशी से सत्यकाशी की ओर...
और सत्यकाशी से अनन्त की ओर...
एक अन्तहीन यात्रा...............................
वर्तमान सृष्टि चक्र की स्थिति भी यही हो गयी है कि अब अगले अवतार के मात्र एक विकास के लिए सत्यीकरण से काल, मनवन्तर व मनु, अवतार, व्यास व शास्त्र सभी बदलेगें। इसलिए देश व विश्व के धर्माचार्यें, विद्वानों, ज्योतिषाचार्यों इत्यादि को अपने-अपने शास्त्रों को देखने व समझने की आवश्यकता आ गयी है क्योंकि कहीं श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ और ”आध्यात्मिक सत्य“ आधारित कार्य ”विश्वशास्त्र“ वही तो नहीं है? और यदि नहीं तो वह कौन सा कार्य होगा जो इन सबको बदलने वाली घटना को घटित करेगा?
शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से प्रारम्भ हो चुका है-
1. काल के प्रथम रूप अदृश्य काल से दूसरे और अन्तिम दृश्य काल का प्रारम्भ।
2. मनवन्तर के वर्तमान 7वें मनवन्तर वैवस्वत मनु से 8वें मनवन्तर सांवर्णि मनु का प्रारम्भ।
3. अवतार के नवें बुद्ध से दसवें और अन्तिम अवतार-कल्कि महावतार का प्रारम्भ।
4. युग के चैथे कलियुग से पाँचवें युग स्वर्ण युग का प्रारम्भ।
5. व्यास और द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य “नवसृजन“ के प्रथम भाग ”सार्वभौम ज्ञान“ के शास्त्र ”गीता“ से द्वितीय अन्तिम भाग ”सार्वभौम कर्मज्ञान“, पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र“, लोकतन्त्र का ”धर्मनिरपेक्ष धर्मशास्त्र“ और आम आदमी का ”समाजवादी शास्त्र“ द्वारा व्यवस्था सत्यीकरण और मन के ब्रह्माण्डीयकरण और नये व्यास का प्रारम्भ।
जिस प्रकार लोग आत्मा की महत्ता को न समझकर शरीर को ही महत्व देते हैं उसी प्रकार लोग भले ही पढ़कर ही विकास कर रहें हो परन्तु वे शास्त्राकार लेखक की महत्ता को स्वीकार नहीं करते। जबकि वर्तमान समय में चाहे जिस विषय में हो प्रत्येक विकास कर रहे व्यक्ति के पीछे शास्त्राकार, लेखक, आविष्कारक, दार्शनिक की ही शक्ति है जिस प्रकार शरीर के पीछे आत्मा की शक्ति है।
सदैव मानव समाज को एकात्म करने के लिए शास्त्र-साहित्य की रचना करना लेखक का काम रहा है। सामूहिक रूप से ऐसे कार्य करने वाले को व्यास कहते हैं। चाहे वह आध्यात्म दर्शन (अद्श्य विज्ञान) के क्षेत्र में हो या पदार्थ विज्ञान (द्श्य विज्ञान) के क्षेत्र में हो। इस प्रकार सभी लेखकों के आदर्श आदि पुरूष व्यास ही हैं।
मात्र एक विचार- ”ईश्वर ने इच्छा व्यक्त की कि मैं एक हूँ, अनेक हो जाऊँ“ और ”सभी ईश्वर हैं“, यह प्रारम्भ और अन्तिम लक्ष्य है। आध्यात्म जगत द्वारा आविष्कार और व्यापार कें मुख्य रूप में इस प्रकार हैं-
01. सत्युग (सार्वभौम सत्य)
01. वैदिक/सनातन धर्म-ऋषि-मुनि गण ई0पूर्व 6000-2500 चार वेद और वैदिक साहित्य
1. ईश्वर कृत - ऋृगवेद, सामवेद, यजुवेद व अथर्ववेद
2. ऋृषि-मुनि कृत - संहिता, ब्राह्मण कृत ब्राह्मण (कर्म काण्ड) व आरण्यक (ज्ञान काण्ड), उपनिषद्, वेदांग या सूत्र-साहित्य शिक्षा (स्वर विज्ञान), कल्प (धर्मानुष्ठान)-श्रौत सूत्र, शुल्व सूत्र, गृह्य सूत्र, धर्म सूत्र, व्याकरण, निघण्टु, निरूक्त (व्युत्पत्ति), छन्द, ज्योतिष, उपांग - संाख्य दर्शन (प्रकृति आधारित), वैशेषिक दर्शन (काल या समय आधारित), मीमांसा दर्शन (कर्म आधारित), चार्वाक दर्शन, अपौरूषेय दर्शन, योग दर्शन (पुरूषार्थ आधारित), न्याय दर्शन (परमाणु आधारित), वेदंात दर्शन (ब्रह्म आधारित)
उपवेद- आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्वेद, अथर्वेद।
पुराण - मत्स्य, मार्कण्डेय, भागवत, भविष्य, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड, ब्रह्म बैवर्त, वायु, विष्णु, बाराह, बामन, अग्नि, नारदीय, पद्म, लिंग, गरूण, कूर्म, स्कन्द।
02. त्रेतायुग यज्ञ (अदृश्य कर्म)
1. भगवान परशुराम कृत - परशुराम परम्परा - साकार आधारित लोकतंत्र व्यवस्था।
2. महाकाव्य- वाल्मीकि रचित - रामायण - आदर्श मानक व्यक्ति चरित्र का प्रस्तुतीकरण।
03. द्वापरयुग (भक्ति और प्रेम)
01. वेदान्त अद्वैत धर्म - श्रीकृष्ण - ई0 पूर्व 3000 - गीता - अद्वैत दर्शन
भगवान श्री कृष्ण कृत - साकार आधारित परशुराम परम्परा का नाश, पूर्ववर्ती सभी मतो का समन्वय व एकीकरण करत हुये निराकार आधारित लोकतंत्र व्यवस्था के प्रारम्भ का बीज शास्त्र ”गीता/ गीतोपनिषद्“
व्यास रचित - महाभारत - आदर्श मानक व्यक्ति चरित्र समाहित आदर्श मानक सामाजिक व्यक्ति चरित्र अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र का प्रस्तुतीकरण।
04. कलियुग संघ और योजना (दृश्य कर्म)
01. बौद्ध - भगवान बुद्ध - ई0पू0 1567-487 - बौद्ध दर्शन
02. कन्फ्यूसी - कन्फ्यूसियश - ई0पूर्व 551-479
03. टोईज्म - लोओत्से - ई0पूर्व 604-518
04. जैन - भगवान महावीर - ई0पूर्व 539-467 - जैन दर्शन
05. पारसी - जरथ्रुसट - ई0 पूर्व 6 - जेन्दा अवेस्ता
06. ईसाई - ईसा मसीह - सन् 33 ई0 - बाईबल
07. इस्लाम - मुहम्मद पैगम्बर - सन् 670ई0 - कुरआन शरीफ
08. वेदान्त अद्वैत धर्म - आदि शंकराचार्य - सन् 830 ई0 - अद्वैत दर्शन
09. वेदान्त विशिष्टाद्वैत धर्म - रामानुज - सन् 1200 ई0 - विशिष्टाद्वैत दर्शन
10. वेदान्त द्वैत - माध्वाचार्य - सन् 1300 ई0 - द्वैत दर्शन
11. भक्ति धर्म - चैतन्य महाप्रभु - सन् 1485-1533ई0 - भक्तियोग दर्शन
12. सिक्ख - गुरु नानक - सन् 1510 ई0 - गुरुग्रन्थ साहिब
13 वेदान्त अद्वैत धर्म - स्वामी विवेकानन्द - सन् 1863-1902ई0 - विश्व धर्म दर्शन
05. सत्ययुग/स्वर्णयुग (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त)
14. विश्व धर्म / वेदान्त धर्म / अद्वैत धर्म / एकता धर्म / लोकतन्त्र धर्म / समष्टि धर्म / प्राकृतिक धर्म / सत्य धर्म / संयुक्तमन धर्म / ईश्वर धर्म / हिन्दू धर्म / सार्वजनिक धर्म / दृश्यधर्म / मानवधर्म / धर्मनिरपेक्ष धर्म - लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ - सन् 2012 ई0 - पूर्ववर्ती सभी धर्मो व मतो का समन्वय व एकीकरण करते हुये निराकार आधारित लोकतंत्र व्यवस्था का वृक्ष शास्त्र विश्व-नागरिक धर्म का धर्मयुक्त धर्मशास्त्र-कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेदीय श्रृंखला विश्व-राज्य धर्म का धर्मनिपेक्ष धर्मशास्त्र- विश्वमानक शून्य-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला, आदर्श मानक सामाजिक व्यक्ति चरित्र समाहित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र का प्रस्तुतीकरण।
उपरोक्त मुख्य मूल आविष्कार के उपरान्त अनेक आविष्कार पर आविष्कार होते गये और मनुष्य आविष्कारक के जीवन, ज्ञान व कर्म से सम्बन्धित व्यापार से अपने जीवन को विकास की ओर ले जा रहा है। कोई भी विचारधारा (आविष्कार) चाहे उसकी उपयोगिता कालानुसार समाज को हो या न हो, यदि वह संगठन का रूप लेकर अपना आय स्वयं संचालित करने लगती है तो उसके साथ व्यक्ति जीवकोपार्जन, श्रद्धा व विश्वास से जुड़ता है न कि ज्ञान के लिए।
अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से पुनः पूर्वानुसार उनके जीवन, कर्म व ज्ञान से अनेक दिशाओं में व्यष्टि व समष्टि केन्द्रित नये आविष्कार व व्यापार को दिशा मिली है। इन दिशाओं के कायों में से आविष्कारक श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव” कुछ में शामिल हैं वे प्रत्यक्ष कार्य हैं तथा कुछ उनके मार्गदर्शन से अन्य के लिए उपलब्ध है वे अप्रत्यक्ष अर्थात प्रेरक कार्य हैं। मनुष्य अपने सभी कर्मो का लाभ स्वयं लेना चाहता है लेकिन ईश्वर और उनके अवतार कुछ कार्य अपने मन को बहलाने के लिए स्वंय के लिए रखते हैं शेष समाज के अन्य लोगों के लिए प्रेरणा देकर छोड़ देते हैं अर्थात मनुष्य पेड़ लगाता हैं स्वंय फल खाने की इच्छा से जबकि ईश्वर और उनके अवतार पेड़ लगाते हैं दूसरों के लिए। जो निम्न प्रकार हैं-
अ. ज्ञान से जुड़ा व्यापार - नयी प्रणाली और व्यापार
01. भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणालीः 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel)
02. कार्पोरेट विश्वमानक मानव संसाधन विकास प्रशिक्षण
(Corporate World Standard Human Resources Development Training)
03. विश्व राजनीति पार्टी संघ (World Political Party Organisation - WPPO)
04. नयी पीढ़ी के लिए नया विषय - ईश्वर शास्त्र, मानक विज्ञान, एकात्म विज्ञान
05- विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो
06. मनोरंजन - नयी प्रणाली और व्यापार
02. टी0 वी सिरियल - ”महाभारत“ के बाद ”विश्वभारत“
03. गीत
ब. जीवन से जुड़ा व्यापार - रियल स्टेट - नयी प्रणाली और व्यापार
21. सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय
(Satyakashi Universal Integration Science University-SUISU)
(Satyakashi Universal Integration Science University-SUISU)
02. डिजिटल प्रापर्टी और एजेन्ट नेटवर्क (Digital Property & Agent Network)
स. कर्म से जुड़ा व्यापार - नयी प्रणाली और व्यापार
01. उत्पाद ब्राण्ड
01. ब्राण्ड
02. कैलेण्डर
02. शिक्षा ब्राण्ड - सत्य मानक शिक्षा
अ - सामान्यीकरण (Generalization) शिक्षा - ज्ञान के लिए
01. सत्य शिक्षा (REAL EDUCATION)
02. सत्य पेशा (REAL PROFESSION)
03. सत्य पुस्तक (REAL BOOK)
04. सत्य स्थिति (REAL STATUS)
05. सत्य एस्टेट एजेन्ट (REAL ESTATE AGENT)
06. सत्य किसान (REAL KISAN)
ब - विशेषीकरण (Specialization) शिक्षा - कौशल के लिए
01. सत्य कौशल (REAL SKILL)
02. डिजीटल कोचिंग (DIGITAL COACHING)
स - सत्य नेटवर्क (REAL NETWORK) - प्रकाशित होने के लिए
01. डिजिटल ग्रंाम नेटवर्क (Digital Village Network)
02. डिजिटल नगर वार्ड नेटवर्क (Digital City Ward Network)
03. डिजिटल एन.जी.ओ/ट्रस्ट नेटवर्क (Digital NGO/Trust Network)
04. डिजिटल विश्वमानक मानव नेटवर्क (Digital World Standard Human Network)
05. डिजिटल नेतृत्व नेटवर्क (Digital Leader Network)
06. डिजिटल जर्नलिस्ट नेटवर्क (Digital Journalist Network)
07. डिजिटल शिक्षक नेटवर्क (Digital Teacher Network)
08. डिजिटल शैक्षिक संस्थान नेटवर्क (Digital Educational Institute Network)
09. डिजिटल लेखक-ग्रन्थकार-रचयिता नेटवर्क (Digital Author Network)
10. डिजिटल गायक नेटवर्क (Digital Singer Network)
11. डिजिटल खिलाड़ी नेटवर्क (Digital Sports Man Network)
12. डिजिटल पुस्तक विक्रेता नेटवर्क (Digital Book Vendor Network)
13. डिजिटल होटल और आहार गृह नेटवर्क (Digital Hotel & Restaurant Network)
03. राष्ट्र निर्माण के पुस्तक
व्यक्ति (व्यष्टि) से राष्ट्र (समष्टि) तक के सत्यीकरण और पूर्ण निर्माण के लिए विभिन्न विषयों पर छोटी पुस्तिकाएँ।
“मनुष्य, अपने कर्मो का फल तुरन्त या इसी जीवन में चाहता है। अवतार, संत, महापुरूष गण प्रेरणा प्रदान करने के लिए अनेक कर्म उत्पन्न कर देते हैं। उसमें से एकाध कर्म स्वयं के लिए रखते हैं क्योंकि जीवन के समय को व्यतीत करने के लिए कुछ कर्म चाहिए होते हैं। कर्म किये बिना कोई रह नहीं सकता, ये श्रीकृष्ण की वाणी है। अप्रत्यक्ष कर्म (प्रेरणा या मार्गदर्शन) अन्य जिनके लिए उपयोगी हो, उनके लिए होता है। वो उसे करें ना करें अवतार, संत, महापुरूष गण को कोई मतलब नहीं होता। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के भिन्न-भिन्न उपयोग है उसी प्रकार शास्त्र के भी भिन्न-भिन्न उपयोग होते हैं। कोई राजनीति करता है, कोई ज्ञानी बनता है, कोई समाज निर्माण करता है, कोई पुनः व्याख्या कर गुरू बन जाता है। और इन सबसे शास्त्राकार को कोई मतलब नहीं होता जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश का उपयोग कर लेने से सूर्य को कोई मतलब नहीं होता। पूर्ण प्रत्यक्ष अवतार से पूर्ण प्रेरक अवतार तक की यात्रा यही समाप्त होती है।” - अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
अ. ज्ञान से जुड़ा
01. भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel)
चेस्टस्टन ने कहा था, ”ब्रह्माण्डीय दर्शन मनुष्य के अनुरूप बैठने के लिए नहीं, बल्कि ब्रह्माण्ड के अनुरूप बैठने के लिए रचा गया है। मनुष्य के पास ठीक उसी तरह अपना एक नीजी धर्म नहीं हो सकता, जिस तरह उसके पास एक निजी सूर्य और एक चंद्रमा नहीं हो सकता।“ अर्थात मनुष्य, मनुष्य के साथ व्यापार करने के लिए अनेक प्रकार की प्रणाली का विकास तो कर सकता है परन्तु वह एक मानक प्रणाली नहीं हो सकती। मानक प्रणाली वही हो सकती है जो ब्रह्माण्डीय दर्शन अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अनुरूप होगा। वह प्रणाली कल्याणकारी- लाभकारी और सरल होगी। ब्रह्माण्ड एक व्यापार क्षेत्र अर्थात व्यापार केन्द्र है। सर्वव्यापी सार्वभौम आत्मा (ईश्वर-सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) की उपस्थिति में सर्वत्र व्यापार चल रहा है। जहाँ भी, कुछ भी आदान-प्रदान हो रहा हो, वह सब व्यापार के ही अधीन है। किसी विचार पर आधारित होकर आदान-प्रदान का नेतृत्वकर्ता व्यापारी और आदान-प्रदान में शामिल होने वाला ग्राहक होता है। प्रत्येक व्यक्ति ही व्यापारी है और वही दूसरे के लिए ग्राहक भी है। यदि व्यक्ति आपस में आदान-प्रदान कर व्यापार कर रहें हैं तो इस संसार-ब्रह्माण्ड में ईश्वर का व्यापार चल रहा है और सभी वस्तुएँ उनके उत्पाद है। उन सब वस्तुओं का आदान-प्रदान हो रहा है जिसके व्यापारी स्वयं ईश्वर हंै। ये सनातन सिद्धान्त है। जिस प्रकार मानव नियंत्रित व्यापार का मालिक मानव (कम्पनी, फर्म इत्यादि) होता है उसी प्रकार ईश्वर नियंत्रित व्यापार का मालिक ईश्वर स्वयं हैं। दोनों ही स्थितियों के अपने-अपने नियम द्वारा व्यापार संचालित हैं।
ईश्वर संचालित व्यापार की प्रणाली की विशेषताओं को जानने से ही एक मानक प्रणाली बन सकती है जो कल्याणकारी-लाभकारी और सरल हो।
1. मूल सिद्धान्त
इस संसार में प्रत्येक जीव का अपना मौलिक कर्म-इच्छा है और वह उसी अनुसार कर्म कर रहा है। ईश्वर और पुनर्जन्म के सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अनुसार हम यह पाते हैं कि हम जो भी कर्म-इच्छा करते हैं वह हमें उस अनुसार जन्म-जन्मान्तर तक कर्म-इच्छा के परिणाम/फल के रूप में प्राप्त होता रहता है।
2. प्रणाली का नामकरण
”कल्कि“ अवतार के सम्बन्ध में कहा गया है कि उसका कोई गुरू नहीं होगा, वह स्वयं से प्रकाशित स्वयंभू होगा जिसके बारे में अथर्ववेद, काण्ड 20, सूक्त 115, मंत्र 1 में कहा गया है कि ”ऋषि-वत्स, देवता इन्द्र, छन्द गायत्री। अहमिद्धि पितुष्परि मेधा मृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजिनि।।“ अर्थात ”मैं परम पिता परमात्मा से सत्य ज्ञान की विधि को धारण करता हूँ और मैं तेजस्वी सूर्य के समान प्रकट हुआ हूँ।“ जबकि सबसे प्राचीन वंश स्वायंभुव मनु के पुत्र उत्तानपाद शाखा में ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में से मन से मरीचि व पत्नी कला के पुत्र कश्यप व पत्नी अदिति के पुत्र आदित्य (सूर्य) की चैथी पत्नी छाया से दो पुत्रों में से एक 8वें मनु - सांवर्णि मनु होगें जिनसे ही वर्तमान मनवन्तर 7वें वैवस्वत मनु की समाप्ति होगी। ध्यान रहे कि 8वें मनु - सांवर्णि मनु, सूर्य पुत्र हैं। अर्थात कल्कि अवतार और 8वें मनु - सांवर्णि मनु दोनों, दो नहीं बल्कि एक ही हैं और सूर्य पुत्र हैं। इसलिए सूर्य सिद्धान्त पर ही भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली का नामकरण 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) रखा गया है। अर्थात ऐसा सिद्धान्त जिसके नीचे ईंधन (Fuel) हो बीच में अग्नि (Fire) हो फिर उसके उपर ईंधन (Fuel) हो, तो वो आग कब बुझेगी? ईंधन के कारण आग जल रहा है, आग के कारण ईंधन मिल रहा हो तो वो आग कब बुझेगी? जलने से ही ईंधन बन रहा हो तो वो आग कब बुझेगी?
3. ईश्वर संचालित व्यापार की प्रणाली की विशेषता - विशेषता निम्न प्रकार है-
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को बदल देने वाले इस प्रणाली का विवरण उस समय तक के लिए
सार्वजनिक करने के लिए आविष्कारक द्वारा प्रतिबन्धित है जब तक कि
“आध्यत्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत - श्रेष्ठ भारत”
के निर्माण का प्रथम प्रारूप ”विश्वशास्त्र“ पर भारत सरकार विचार नहीं करती।
ध्यान रहे
“आध्यत्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत - श्रेष्ठ भारत”
निर्माण की घोषणा 3 वर्ष पूर्व ही की जा चुकी है।
1. आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर साकार होगा एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना।
2. सोशल मीडिया का प्रयोग कर सरकार को बेहतर बनाने की कोशिश।
3. सबका साथ, सबका विकास।
4. 100 नये माॅडल शहर बसाना।
5. 5T - ट्रेडिशन (Tradition), ट्रेड (Trade), टूरिज्म (Tourism), टेक्नालाॅजी (Technology), और टैलेन्ट (Talent) का मंत्र। (भारत के 16वीं लोकसभा के संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करते हुये, सोमवार, 9 जून 2014 ई0)
- श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
”तैयार करें मूल्यों और उम्मीदों पर आधारित ब्लूप्रिन्ट“ (विडिओ कान्फ्रेसिंग से छात्रों और शिक्षकों को सन्देश - राष्ट्र निर्माण का आह्वानं) - श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, 20 जनवरी, 2016
अ. ज्ञान से जुड़ा
02. कार्पोरेट विश्वमानक मानव संसाधन विकास प्रशिक्षण
(Corporate World Standard Human Resources Development Training)
विभिन्न मतों द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘मतवाद के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। स्वामी विवेकानन्द द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘धर्म के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। पं0 नारायण दत्त ‘श्रीमाली’ द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। आचार्य रजनीष ‘ओशो’ द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘व्यक्ति के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। योगाचार्य बाबा रामदेव द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘योग के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। मेरे द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘राष्ट्र के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’।
और मेरे राष्ट्र का अर्थ सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व सहित ब्रह्माण्ड है यदि भारत इस पर कार्य करता हे तो साकार भारत सहित निराकार भारत अर्थात् विश्वभारत का निर्माण होगा अन्यथा सिर्फ निराकार भारत अर्थात् विश्वभारत का निर्माण होगा क्योंकि कम से कम लाभ और नीतिगत विषयों में पश्चिमी देश भारत से अधिक समझदार, क्रियाशील और अनुकूलन क्षमता वाला है। पश्चिमी देश इसे वैश्विक शासन की दृश्टि से देखेंगे जबकि भारत के नेतृत्वकर्ता पहले व्यक्तिगत लाभ का गणित आलस्य के साथ लगायेंगे। भारत के नेतृत्वकर्ता इस अज्ञानता में न पड़े कि जनता ज्ञानी, शिक्षित हो जायेगी तो उनके पद पर संकट आ जायेगा। ज्ञानी, शिक्षित होना चमत्कार नहीं एक लम्बी अवधि की प्रक्रिया है इसलिए नेतृत्वकर्ता राजनीतिज्ञ का वर्तमान जीवन तो उनके वर्तमान चरित्र के साथ ही व्यतीत हो ही जायेगी। यह एक युग कार्य है, कालजयी कार्य है जो राजनीति क्षेत्र नहीं दे सकती। ये है परिणाम का ज्ञान।
”निर्माण और उत्पादन“ आज के विकसित औद्योगिक युग में यह शब्द न तो अनजाना है और न हम यह कह सकते हैं कि हमारा व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन इस शब्द में व्याप्त नहीं है। बल्कि यह कहें तो अधिक स्पष्ट होगा कि हम सभी के मन अन्य संगठन, दल, व्यक्ति, मत, विचार, देश, राज्य, विश्व, प्रकृति, ब्रह्माण्ड इत्यादि के प्रक्रिया द्वारा निर्मित और उत्पादित हो रहे है। और हम सभी स्वयं अपने अधीन अन्य मानव शरीर के मन को निर्मित और उत्पादित कर रहे है। इसलिए व्यक्ति, संगठन, दल, मत, देश व विश्व को यह सदा ध्यान में रखना होगा कि हम किसी के द्वारा निर्मित और उत्पादित हो रहे हैं तो किसी का निर्माण और उत्पादन हम कर रहे हैं। और प्रत्येक निर्माणकत्र्ता और उत्पादनकत्र्ता, स्वयं अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही निर्माण और उत्पादन करता है। और इस कार्य में लगने वाले मनुष्य को उसका पारिश्रमिक विभिन्न रूपों- धन, नाम, यश, कीर्ति, आत्मीय सुख, सम्मान, इत्यादि के रूप में भुगतान होता है। आतंकवाद, धर्मनिरपेक्षता, दल या मत आधारित सम्प्रदाय इत्यादि का यही सूत्र है। इसलिए व्यक्ति को स्वयं अपने लिए यह ध्यान रखना होगा कि वह कहीं ऐसे विचार से निर्मित तो नहीं हो रहा जो स्वयं उसके लिए और देश सहित विश्व और ब्रह्माण्ड के लिए विनाशात्मक हो। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के विश्व व्यापक होने के लिए उसके जन्म से ही उसके निर्माण की प्रक्रिया माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार, पड़ोस, जाति, धर्म, मित्र, मत-सम्प्रदाय, नियम-संविधान, संघ, दल, संगठन, प्रदेश, देश इत्यादि अनेकों वातावरण द्वारा होती है। जो विश्वव्यापक होने के मार्ग में बैरियर है और व्यक्ति को इसे स्वीकार करते हुये पार करना होगा। इसलिए आवश्यक है कि पहले वह मन की सर्वोच्च और अन्तिम स्थिति-विश्वमन के व्यक्तरूप विश्वमानक: शून्य श्रृंखला से युक्त हो और फिर वहाँ से नीचे की ओर देखते हुये अपने स्वभाव को स्वीकार करे। ताकि उसका उच्च मानसिक स्तर द्वारा गलत उपयोग न हो सके।
मानव प्राकृतिक आदान-प्रदान का ज्ञान प्राप्त कर, धारण करते हुये धीरे-धीरे प्रकृति के पद पर स्वयं बैठने की ओर है। स्वयं प्रकृति, विश्व स्तर का मन धारण कर ही क्रियाकलाप करते हुये अपने उत्पादों को विश्व गुणवत्ता युक्त निर्माण कर रही है। मानव इस क्रम में अपने क्रियाकलापों को विश्व गुणवत्ता युक्त करने की ओर है। उत्प्रेरक (आत्मा) की उपस्थिति में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में दो ही निर्माणकर्ता हैं- पहला प्रकृति और दूसरा मनुष्य। प्रकृति के निर्माण प्रक्रिया में त्रुटि नहीं है। वह पूर्णतया गुणवत्तायुक्त उत्पादन कर रही है। मानव भी अब निर्माता बन चुका है इसलिए उसे सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त जिससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित है, के ज्ञान पर आधारित गुणवत्तायुक्त उत्पादन की ओर बढ़ना चाहिए।
विश्व के गुणवत्ता युक्त उत्पादन के लिए मनुष्य के द्वारा दो मूल निर्माण विधि हैं-
1. उद्योग में गुणवत्तायुक्त उत्पाद निर्माण और उत्पादन की जापानी विधि (Japanese Institute of Plant Engineers-JIPE) - WCM-TPM-5S
2. गुणवत्तायुक्त मानव निर्माण और उत्पादन की भारतीय विधि (Rishi/Saint/Avatar) - WCM-TLM-SHYAM.C
1. उद्योग में गुणवत्तायुक्त उत्पाद निर्माण और उत्पादन की जापानी विधि
औद्योगिक क्षेत्र में Japanese Institute of Plant Engineers (JIPE) द्वारा उत्पादों के विश्वस्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए उत्पाद निर्माण तकनीकी-WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total Productive Maintenance-Siri (छँटाई), Seton (सुव्यवस्थित), Sesso (स्वच्छता), Siketsu (अच्छास्तर), Shituke (अनुशासन) प्रणाली संचालित है। जिसमें सम्पूर्ण कर्मचारी सहभागिता (Total Employees Involvement) है। ये 5S मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
TPM - History:
TPM is a innovative Japanese concept. The origin of TPM can be traced back to 1951 when preventive maintenance was introduced in Japan. However the concept of preventive maintenance was taken from USA. Nippondenso was the first company to introduce plant wide preventive maintenance in 1960. Preventive maintenance is the concept wherein, operators produced goods using machines and the maintenance group was dedicated with work of maintaining those machines, however with the automation of Nippondenso, maintenance became a problem as more maintenance personnel were required. So the management decided that the routine maintenance of equipment would be carried out by the operators. (This is Autonomous maintenance, one of the features of TPM ). Maintenance group took up only essential maintenance works. Thus Nippondenso which already followed preventive maintenance also added Autonomous maintenance done by production operators. The maintenance crew went in the equipment modification for improving reliability. The modifications were made or incorporated in new equipment. This lead to maintenance prevention. Thus preventive maintenance along with Maintenance prevention and Maintainability Improvement gave birth to Productive maintenance. The aim of productive maintenance was to maximize plant and equipment effectiveness to achieve optimum life cycle cost of production equipment. By then Nippon Denso had made quality circles, involving the employees participation. Thus all employees took part
in implementing Productive maintenance. Based on these developments Nippondenso was awarded the distinguished plant prize for developing and implementing TPM, by the Japanese Institute of Plant Engineers ( JIPE ). Thus Nippondenso of the Toyota group became the first company to obtain the TPM certification.
What is Total Productive Maintenance ( TPM ) ?
It can be considered as the medical science of machines. Total Productive Maintenance (TPM) is a maintenance program which involves a newly defined concept for maintaining plants and equipment. The goal of the TPM program is to markedly increase production while, at the same time, increasing employee morale and job satisfaction. TPM brings maintenance into focus as a necessary and vitally important part of the business. It is no longer regarded as a non-profit activity. Down time for maintenance is scheduled as a part of the manufacturing day and, in some cases, as an integral part of the manufacturing process. The goal is to hold emergency and unscheduled maintenance to a minimum.
Why TPM ?
TPM was introduced to achieve the following objectives. The important ones are listed below.
• Avoid waste in a quickly changing economic environment.
• Producing goods without reducing product quality.
• Reduce cost.
• Produce a low batch quantity at the earliest possible time.
• Goods send to the customers must be non defective.
• Involve equipment operators in the simple, day-to-day basics of equipment cleanliness and checks to enhance employee ownership in maintaining and identifying equipment problems immediately.
SEIRI - Sort out :
This means sorting and organizing the items as critical, important, frequently used items, useless, or items that are not need as of now. Unwanted items can be salvaged. Critical items should be kept for use nearby and items that are not be used in near future, should be stored in some place. For this step, the worth of the item should be decided based on utility and not cost. As a result of this step, the search time is reduced.
SEITON - Organize :
The concept here is that "Each items has a place, and only one place". The items should be placed back after usage at the same place. To identify items easily, name plates and colored tags has to be used. Vertical racks can be used for this purpose, and heavy items occupy the bottom position in the racks.
SEISO - Shine the workplace:
This involves cleaning the work place free of burrs, grease, oil, waste, scrap etc. No loosely hanging wires or oil leakage from machines.
SEIKETSU - Standardization:
Employees have to discuss together and decide on standards for keeping the work place / Machines / pathways neat and clean. These standards are implemented for whole organization and are tested / Inspected randomly.
SHITSUKE - Self discipline:
Considering 5S as a way of life and bring about self-discipline among the employees of the organization. This includes wearing badges, following work procedures, punctuality, dedication to the organization etc.
कुल गुणवत्ता प्रबंधन (Total Quality Management-TQM)
कुल गुणवत्ता प्रबंधन (TQM) एक प्रबंधन का सिद्धांत है, जो ग्राहकों की आवश्यकताओं और संगठनात्मक उद्देश्यों, को पूरा करने के लिए सभी संगठनात्मक कार्य (विपणन, वित्त, डिजाईन, इंजीनियरिंग, उत्पादन व ग्राहक सेवा आदि) को एकीकृत करता है। TQM कुल संगठन को मजबूत बनाने के लिए कर्मचारी से लेकर सी.इ.ओ.तक को पूर्ण अधिकार देता है, ताकि वे अपने से सम्बंधित उत्पाद और सेवाओं में सुधार चैनलों के माध्यम से उचित प्रक्रियाओं द्वारा प्रबंधन व गुणवत्ता निश्चित रूप से बनाए रखने की जिम्मेदारी ले। सभी प्रकार के संगठनो जैसे छोटे व्यवसाय से लेकर नासा, जैसी सरकारी एजेंसियों ने स्कूल से लेकर निर्माण कम्पनियों ने निर्माण केंद्र से लेकर नृत्य व अस्पतालों तक ने TQM को तैनात किया है। ज्फड किसी विशेष प्रकार के उद्यम के लिए नहीं है, यह तो एक ऐसा सिद्धांत है, जो हर प्रकार के उद्यम में गुणवत्ता लाने के लिए जरूरी है।
विकास का एक साधन
TQM ग्राहकों की ”आवश्यकताओं को पूरा करने“ और उनके, उद्देश्य के लिए उपयुक्त, इस सामान्य समझ से भी आगे है। अर्थात यह संगठन को व्यापक बनाता है। TQM से पहले गुणवत्ता परीक्षण आमतौर पर उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा के अंतिम चरण में गुणवत्ता नियंत्रण का आदर्श था। कोई दोश पाया जाता था तो आपूर्ति रोक दी जाती थी, उत्पाद फिर से बनाया जाता था या अस्वीकार कर दिया जाता था। गुणवत्ता बनाये रखने के लिए अतिरिक्त लागत अपरिहार्य थी TQM, का उद्देश्य हर बार प्रथम प्रयास में ही सही उत्पादन कर परिहार्य लागत को कम करना है। TQM, हरेक कमी का मुख्य कारण जानना चाहता है, ताकि उत्पाद में कोई कमी न रह।
TQM साधारण प्रक्रिया का प्रयोग कर गुणवत्ता आश्वासन पर जोर देता है। और लगातार सुधरी व् प्रभावी संचालित प्रक्रियाओं, द्वारा उत्पाद व् सेवाओं में आये परिवर्तन का सामना करता है। यह सर्वाधिक प्रचलित और महंगे दोषों को पहचान कर उन दोषों को दूर करने, उनसे बचने व उनको हटाने का समाधान प्रस्तुत करता है।
विशुद्ध प्रगति
TQM एक पद है जो से जापानी नीति, कुल गुणवत्ता नियंत्रण, से लिया गया है यह नीति गुणवत्ता आश्वासन का निष्कर्ष थी। तब से इसे नए प्रतिमान के रूप में सम्मान मिल गया है।
आज TQM सभी उद्योग व्यापार व गतिविधियों में लागू किया जाता है। चाहे होटल हो या अस्पताल, चाहे शैक्षिक संस्थान हो या इंजीनियरिंग संस्थान, चाहे पान की (बीटल लीवस) की दुकान हो या पार्क (खेलने का मैदान) चाहे वकील का दफ्तर हो या विमान के रख रखाव के लिए परामर्श देने वाला उपकरण है।
TQM एक रणनीति
TQM निश्चित रूप से व्यक्तियों पर आश्रित क्रिया है। यदि व्यक्ति सभ्य है तो संगठन परिपक्व है। TQM का पूर्ण लाभ उठाने के लिए किसी भीं संगठन में व्यक्तियों में तालमेल, होना चाहिए। इस प्रकार संगठनों से आशा की जाती है कि वे अपनी कम्पनी के लिए व्यापक योजना बनाए, जिसमें प्रत्येक कर्मचारी को उत्कृष्टता हासिल करने के लिए उसके काम की और उसकी टीम के काम की गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी दी जाए। TQM प्रारम्भ में ही परिवर्तनशील परिक्रियाओं में गुणवत्ता अपनाने की मूल धारणा को मानता है। और यह विचार गुणवत्ता गुरु विलियम एडवर्ड डेमिंग ने प्रस्तावित, किया है। डेमिंग श्रृंखला प्रतिक्रिया प्रारंभ में ही डिजाइन की गुणवत्ता बनाए रखने की और उत्कृष्टता हासिल करने के लिए कुल गुणवत्ता सिद्धांत को व्यवस्थित रूप से लागू करने की वकालत करती हैं। जब कच्चे माल से लेकर हरेक प्रक्रिया अच्छे डिजाइन व् संसाधनों द्वारा की जाती है और उत्पाद बहुत अच्छी तरह से और निरंतर बेहतर तैयार माल के रूप में आता है तो कहा जाता है कि TQM चालू है।
TQM का कार्यान्वयन
किसी संगठन को सुधारने के लिए सभी को दी जाने वाली गतिविधियाँ मुख्यतः ये हैं-
1. लगातार गुणवत्ता सुधार (CQI)
2. कुल ग्राहक संतुष्टि
3. कुल कर्मचारियों की भागीदारी
4. एकीकृत प्रक्रिया प्रबंधन
5. प्रक्रियाओं के प्रति सम्पूर्ण दृष्टिकोण
सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ मुख्य कदम
अ. TQM उपकरण - सात qc उपकरण और सात pc उपकरण ये सात लोकप्रिय शब्द हैं।
उपकरण विचार पैदा करने, शीट चेक करने, आरेख बनाने, कारण व प्रभाव जानने के लिए प्रयोग किये जाते हैं, हिस्टोग्राम सांख्यिकी की प्रक्रिया नियंत्रण चार्ट समस्याओं के पहचानने के उपकरण हैं, और परेला चार्ट, फ्लो चार्ट (प्रक्रिया आरेख डाटा) को व्यवस्थित करने के उपकरण हैं, सम्बन्ध आरेख, मैट्रिक्स चार्ट, प्रक्रिया प्रदर्शन कार्यक्रम चार्ट, प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के साधन हैं, परियोजनाओं को नियंत्रित करने के उपकरण: कार्यक्रम के मूल्यांकन की समीक्षा तकनीकें (PERT) महत्व पूर्ण पद्धति (CPM)।
ब. गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली QMS प्रति ISO 9001:2008
स. निरंतर सुधार माॅडल के लिए कार्य करते रहना।
कीमतें
जबकि TQM का उपयोग तरीका बता देता है, असफलता की लागत कम कर देता है, अर्थात ग्राहक असंतोष और दुबारा कार्य करने की संभावना को कम कर देता है। फिर भी कर्मचारियों के प्रशिक्षण आपूर्ति कर्ताओं को शिक्षित करने की लागत अनिवार्य रूप से बढ़ा सकता है। TQM को लागू करने का पूर्ण फायदा गुणवत्ता, ब्रांड मूल्य, कम समय में प्रचार, ग्राहकों के विश्वास, फायदे, सद्भाव बढ़ाने मैं हैं। ये सब चीजे आर्केस्ट्रा या मुरली वाले के द्वारा प्रदान किये गए आनंद जैसी हैं। सबसे ऊपर यह तेज गति से टिकाऊ विकास, प्रदान करता है। यह कहा जाता है कि व्यापारिक संस्थानों को बढ़ते हुए शेयर धारक मूल्य की चुनोतियों का सामना करना पड़ता है जिसमें लाभ व गुणवत्ता दोनों शामिल हैं।
संभाव्य जीवन चक्र
आजकल आधुनिक व्यापार में उद्योग, सेना, शिक्षा आदि की बढ़ोतरी के साथ कुल गुणवत्ता प्रबंधन एक सामान्य सी बात है। बहुत से कालेज, स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर ज्फड के पाठ्यक्रमों की पेशकश कर रहें हैं।
(1996) अब्राहमसन की दलील थी कि फैशनबल प्रबंधन संवाद गुणवत्ता के दायरे के रूप में एक वक्र घंटी के आकार में जीवन चक्र अपनाता है, जो एक संभावित प्रबंधन सनक का संकेत है। सामान्य तोर पर TQM परिवर्तन लाने के लिए 10 साल की लम्बी अवधि का समय लेता है। इसे परिपक्व होने में कई साल लगेंगे। सामान्य तौर से गिरावट उच्च प्रबंधन स्तर, पर प्रतिबद्धता की कमी का परिणाम होती है।
अमेरिकन कारोबार ध्यान से देख रहा है कि जापानी गुणवत्ता प्रबंधन को सौंपे गए शेयर बाजार को सुधार रहें हैं। गुणवत्ता नियंत्रण में लागत लगती है और इस लागत से लाभ मिलता है। जिन अमेरिकन संगठनों ने 1980 के दशक से TQM की अवधारणाओं को अपनाया है, उत्कृष्ट्ता लिए अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है, उन्हें राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार, यूरोप का EFQM उत्कृष्टता पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जापानियों से सम्मानित किया गया डेमिंग पुरस्कार के रूप में ये प्रयास चारों तरफ लागू किये जा रहें है और मानकीकृत भी हो रहे हैं। डेमिंग आवेदन गुणवत्ता पुरस्कार के बहुत से विजेता हैं और इनमें से कुछ ने ऊर्जा संरक्षण पर्यावरण उन्नयन, समाज सेवा वाचक, के माध्यम से अपना योगदान किया है, जो कि किसी भी ज्फड लागू करने वाले के लिए बिल्कुल आवश्यक है। और सिक्स सिग्मा व ISO-9000 श्रृंखला के मानक रूप को लागू करने में फायदा पहुंचता है।
2. गुणवत्तायुक्त मानव निर्माण और उत्पादन की भारतीय विधि
(Rishi/Saint/Avatar) & WCM-TLM-SHYAM.C
मानव प्राकृतिक आदान-प्रदान का ज्ञान प्राप्त कर, धारण करते हुये धीरे-धीरे प्रकृति के पद पर स्वयं बैठने की ओर है। स्वयं प्रकृति, विश्व स्तर का मन धारण कर ही क्रियाकलाप करते हुये अपने उत्पादों को विश्व गुणवत्ता युक्त निर्माण कर रही है। मानव इस क्रम में अपने क्रियाकलापों को विश्व गुणवत्ता युक्त करने की ओर है। जिसमे स्वयं मानव द्वारा उत्पादित उत्पादो की गुणवत्ता (भारतीय मानक और अन्तर्राष्ट्रीय मानक की श्रृंखलाएँ), गुणवत्ता का मानक (भारतीय मानक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानक आई.एस.ओ.-9000 श्रंृखला) तथा पर्यावरण की गुणवत्ता (अन्तर्राष्ट्रीय मानक आई.एस.ओ.-14000 श्रृंखला) द्वारा मानकीकरण कर चुका है। परन्तु अभी प्रकृति की भाँति स्वयं मानव अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व गुणवत्ता युक्त नहीं हो सका है। मानव संसाधन को अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व गुणवत्ता युक्त होने के लिए ही विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला को आविष्कृत किया गया है। सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त जिससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित है इस पर आधारित व्यवस्था ही सत्य आधारित कही जाती है। जब तक इस पर आधारित व्यवस्था नहीं होती तब तक हम किसी भी व्यवस्था को सत्य आधारित नहीं कह सकते। विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला से औद्योगिक क्षेत्र को यह लाभ है कि वे अपने मानव संसाधन को विश्व स्तर का कर सकने में सक्षम होगें जिससे उन्हंे अपने मानव संसाधन मंे सूक्ष्म दृष्टि उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त होगी। परिणामस्वरूप प्रबन्धकीय, सुरक्षा, गुणवत्ता, विश्लेशण, योजना और क्रियान्वयन इत्यादि गुण सामान्य रूप से स्वप्रेरित हो स्वतः ही मानव संसाधन मंे उत्पन्न हो जायेगें चंूकि विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला मंे कर्मज्ञान और प्रबंध का अन्तर्राष्ट्रीयध्विश्व मानक भी समाहित है इसलिए क्रमशः उत्पादांे का विवशतावश नहीं बल्कि स्वेच्छा से उपयोगिता सहित माँग आदान-प्रदान बढ़ने से सतत बढ़ता रहेगा। अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर के प्रबंध से उद्योगों की सफलता तथा समाज निर्माण का श्रेय भी प्राप्त होता रहेगा। जो औद्योगिक जगत के दूरगामी प्रभावों का हल भी है।
चंूकि मानव समाज वैश्वीकरण की ओर आवश्यकता व विवशतावश बढ़ चुका है। इसलिए मानव संसाधन का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानकीकरण विश्व शान्ति, एकता, स्थिरता, विकास, सुरक्षा इत्यादि की दृष्टि से विश्व संगठनों, संयुक्त राष्ट्र संघ इत्यादि के लिए अति आवश्यक भी है। वहीं औद्योगिक जगत वैश्विक समाज निर्माण में पूर्ण भागीदारी के कार्य से औद्योगिक जगत को इसका श्रेय भी प्राप्त होगा। इस प्रकार आई.एस.ओ.-9000 श्रंृखला तथा आई.एस.ओ. 14000 श्रंृखला की भँाति विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर पर सार्वाधिक महत्व है।
विश्व व्यापार संगठन के गठन के उपरान्त मानकीकरण की महत्ता जिस प्रकार बढ़ी है उसके अनुसार मानकीकरण का भविष्य ही समाज को भी नियंत्रित करने की ओर है। इसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप भारतीय मानक के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय मानक का विकसित होना अति आवश्यक है। परिणामस्वरूप मानव संसाधन के वैश्विकरण के लिए भारतीय मानक में भारत-शून्य श्रृंखला तथा अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानक में विश्वमानक-शून्य श्रंृखला को स्थापित करने के लिए प्रक्रिया प्रारम्भ करने के लिए भारतीय मानक व्यूरो व अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन सहित राष्ट्रों के सरकार को आह्वान करता हूँ।
औद्योगिक जगत को यह आह्वान है कि वे विश्वमानक शून्य श्रृंखला की स्थापना के लिए भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रयत्न करे, जिससे सर्वप्रथम स्वयं सत्य आधारित होने का श्रेय प्राप्त करते हुये सम्पूर्ण औद्योगिक जगत के सत्यीकरण करने का श्रेय भी प्राप्त कर सकें।
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानव के विश्व स्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए मानव निर्माण तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufacturing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation. Consciousness) प्रणाली आविष्कृत है जिसमें सम्पूर्ण तन्त्र सहंभागिता (Total System Involvement-TSI) है। ये SHYAM.C मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
वैश्विक मानव निर्माण की तकनीकी अर्थात विश्व स्तरीय निर्माण विधि (World Class Manufacturing-WCM) को प्राप्त करने के लिए उसके प्रवेश द्वार सम्पूर्ण जीवन परीक्षण (Total Life Maintenance-TLM) के लिए सत्य, हृदय, योग, आश्रम, ध्यान व चेतना (SHYAM.C - Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation. Consciousness)) का संचालन अनिवार्य है। यह तकनीकी सीधे व्यक्ति को विश्वमन से जोड़ने का कार्य करती है। जिससे मनुष्य का मस्तिष्क व समस्त क्रियाकलाप संचालित होती है। अर्थात मनुष्य के मन को सीधे सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त व चेतना से जोड़कर उसे सार्वभौम विश्वमन में स्थापित कर देती है। फलस्वरूप मनुष्य स्वतः स्फूर्त हो सूक्ष्म बुद्धि से प्रत्येक कार्य को विश्व स्तरीय दृष्टि से संचालित करने लगता है।
अ. ज्ञान से जुड़ा
03. विश्व राजनीतिक पार्टी संघ (World Political Party Organisation - WPPO)
(क) परिचय
1. संस्थापक एवं सदस्य: विश्व राजनीतिक पार्टी संघ का गठन भारत के किसी एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी द्वारा किया जायेगा। भारत का यह पार्टी ही विश्व राजनीतिक पार्टी संघ का संस्थापक सदस्य कहलायेगा। संघ में प्रत्येक लोकतंत्र आधारित देश से एक राजनीतिक पार्टी को सदस्य बनाया जायेगा।
2. संघ का मुख्यालय: विश्व राजनीतिक पार्टी संघ का मुख्यालय संस्थापक सदस्य के निणर्यानुसार किसी भी देश में हो सकता है।
3. संघ का झण्डा एवं प्रतीक चिन्ह: संघ का झण्डा सफेद रंग का है जिसकी लम्बाई व चैड़ाई का अनुपात 3:2 है। उसके उपर मुद्रित प्रतीक चिन्ह का रंग लाल है।
4. संघ की स्पष्ट मुख्य घोंषणा: संघ का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने देश में निम्नलिखित घोषणा करेगा।
”धर्म निरपेक्ष एवम् सर्वधर्मसमभाव भारतीय संविधान जो अन्ततः विकसित होकर विश्व संविधान का रुप लेगा के अनुरुप देश की एकता एवम् अखण्डता सहित विश्व-बन्धुत्व के लिए मेरी पार्टी का सिद्धान्त दार्शनिक-नैतिक उत्थान आधारित WS-0 श्रृंखला अर्थात मानव मन के अन्तः विषयों के विश्व मानक श्रृंखला अर्थात् विचार एवम् साहित्य, विषय एवम् विशेषज्ञ, ब्रह्माण्ड व मानव (स्थूल एवं सूक्ष्म) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप तथा उपासना स्थल के विश्व मानक पर आधारित होगा। जिससे प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्माण्डीय विकास की दिशा में होकर कार्य व विकास कर सके। परिणामस्वरुप शीघ्रताशीघ्र विवादमुक्त नीति एवं दूरगाामी परिणाम के रुप में एक स्वच्छ एवं नैतिक समाज सहित मानवता आधारित पूर्ण लोकतन्त्र की नींव रखते हुए उसे प्राप्त किया जा सके।“
5. संघ की दर्शन शास्त्र-साहित्य: विश्व-राष्ट्रीय-जन एजेण्डा साहित्य 2012़: संघ का आधार साहित्य वह है जो सभी मानव की मूल आवश्यकता है, जो सभी मानव में एक है वह है- कर्म और उसे कालानुसार करने का ज्ञान-कर्मज्ञान। अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन द्वारा वाह्य विषयों अर्थात् उद्योंगों के उत्पाद के निर्माण की अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता की श्रृंखला ISO-9000 की भाँति, मानव, समाज और संगठन द्वारा अन्तः विषय मानव मन के निर्माण की विश्व गुणवत्ता की श्रृंखला WSO/ISO-0 जो धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वधर्मसमभाव नाम है अर्थात् विचार एवम् साहित्य, विषय एवम् विशेषज्ञ, ब्रह्माण्ड (स्थूल एवं सूक्ष्म) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप तथा उपासना स्थल के अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानक है। जिसकी उपयोगिता विश्व शान्ति, विश्व एकता, एवं विश्व स्थिरता में होना है। इसे उस उद्देश्य से सत्य-चेतना की ओर बढ़ते विश्व के सामने रखा जा रहा है जिसकी स्थापना यथाशीघ्र होनी है। संघ एकात्मकर्मवाद का समर्थक है न कि एकात्मसंस्कृतिवाद का। वर्तमान तथा भविष्य के लिए विश्व की इसकी उपयोगिता और आवश्यकता ही संघ का साख है।
6. भारत में संघ के संस्थापक पार्टी को संघ के गठन की घोषणा से लाभ: स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारतीय जनता के समक्ष मात्र एक ही सार्वजनिक मुद्दा था जिस पर सभी भारतीय एक जुट हुए थे। वह था - ”स्वतंत्रता“। जिसे प्राप्त कर लेने के बाद सभी अपनी-अपनी दुनिया में संकुचित हो गये। परिणामस्वरुप वर्तमान में कोई भी राष्ट्रीय मुद्दा शेष नहीं है। ऐसी स्थिति में मिशन की कार्य योजना द्वारा संस्थापक राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर एक मुद्दे पर एक जुट करने का लाभ प्राप्त होगा। साथ ही विश्व राजनीतिक पार्टी संघ की घोषणा से पूरे विश्व के समक्ष अपनी गुरुता सिद्ध करने का लाभ मिलेगा। भारत में इसका सीधा प्रभाव अन्य राजनीतिक दलो को मुद्दा विहिन कर देना होगा। जिसका सीधा लाभ राष्ट्रीय स्तर पर संस्थापक राजनीतिक दल को होगा।
संघ का क्रान्ति के प्रति विचार यह है कि- ”राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थिति में उसकी स्वस्थता के लिए परिवर्तन ही क्रान्ति है, और यह तभी मानी जायेगी जब उसके मूल्यों, मान्यताओं, पद्धतियों और सम्बन्धों की जगह नये मूल्य, मान्यता, पद्धति और सम्बन्ध स्थापित हों। अर्थात क्रान्ति के लिए वर्तमान व्यवस्था की स्वस्थता के लिए नयी व्यवस्था स्थापित करनी होगी । यदि व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन में विवेक नहीं हो, केवल भावना हो तो वह आन्दोलन हिंसक हो जाता है । हिंसा से कभी व्यवस्था नहीं बदलती, केवल सत्ता पर बैठने वाले लोग बदलते है । हिंसा में विवेक नहीं उन्माद होता है । उन्माद से विद्रोह होता है क्रान्ति नहीं । क्रान्ति में नयी व्यवस्था का दर्शन - शास्त्र होता है अर्थात क्रान्ति का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य के अनुरुप उसे प्राप्त करने की योजना होती है । दर्शन के अभाव में क्रान्ति का कोई लक्ष्य नहीं होता ।“
अ. ज्ञान से जुड़ा
04. नयी पीढ़ी के लिए नया विषय - ईश्वर शास्त्र, मानक विज्ञान, एकात्म विज्ञान
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा ”ईश्वर“, ”मानक“, ”एकात्म“ की अन्तिम परिभाषा का आविष्कार पूर्ण हो जाने से नागरिक शास्त्र (Civics), भौतिकशास्त्र (Physics) की भाँति ईश्वर शास्त्र (Godics), मानक विज्ञान (Standard Science) और एकात्म विज्ञान (Integration Science) शैक्षणिक विषय का मार्ग मिल गया है।
अ. ज्ञान से जुड़ा
05. विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो
अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के विचार विश्वस्तरीय हैं जिसके कारण ज्ञान से युक्त विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो के लिए भी मार्ग मिला है।
अ. ज्ञान से जुड़ा
06. मनोरंजन
अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के विचार विश्वस्तरीय हैं जिसके कारण मनोरजन और ज्ञान से युक्त परिकल्पना पर उन्होंने फिल्म, टी0 वी0 सिरियल और गानों के लिए भी मार्ग मिला है। जिसका और भी विस्तृत रूप आगे दिया गया है।
03. गीत - अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के जीवन, ज्ञान व कर्म से सम्बन्धित गीत रचना का भी मार्ग मिल गया है।
ब. जीवन से जुड़ा
ब. जीवन से जुड़ा - रियल स्टेट
20. सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय
(Satyakashi Universal Inetgration Science University)
(Satyakashi Universal Inetgration Science University)
ब. जीवन से जुड़ा - रियल स्टेट
02. डिजिटल प्रापर्टी और एजेन्ट नेटवर्क (Digital Property & Agent Network)
भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) से जुड़े डिजिटल प्रापर्टी और एजेन्ट नेटवर्क के माध्यम से प्रापर्टी से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त कर व दे सकते हैं जिसमें LAND (Commercial, Industrial, Agriculture, Housing), RENT (Official, Shop, Residential, Appartment Flat, Bunglow), 2 Wheeler, 4 Wheelar, ANTIQUE ITEM, Real Estate Related business इत्यादि है जिससे उससे सम्बन्धित व्यापारी सीधे उनसे ही सम्पर्क कर सकते हैं साथ ही सभी एजेन्ट आपस में भी व्यापार कर सकते हैं। और नेटवर्क से जुड़े एजेन्ट आर्थिक, व्यपारिक व रायल्टी का लाभ सुनिश्चित रूप से पाते रहते हैं। साथ ही इस व्यापार से सम्बन्धित ज्ञानवर्धक जानकारी भी प्राप्त करते हैं।
एजेन्ट (AGENT)
1. प्रशिक्षु एजेन्ट (TRAINEE AGENT) - प्रशिक्षु एजेन्ट वे हैं जो इस सेवा का कोई भुगतान नहीं करते हैं। ऐसे एजेन्ट पंजीकरण के उपरान्त प्रापर्टी डाटा बैंक में डाटा इन्ट्री कर सकते हैं जो हमारी कम्पनी के साथ-साथ अन्य एजेन्ट भी देख सकते हैं परन्तु उनसे सम्पर्क कम्पनी के सिवा कोई नहीं कर सकता।
2. स्वतन्त्र एजेन्ट (FREELANCE AGENT) - स्वतन्त्र एजेन्ट वे हैं जो इस सेवा के लिए रू0 10 हजार का भुगतान करते हैं। ऐसे एजेन्ट पंजीकरण के उपरान्त प्रापर्टी डाटा बैंक में डाटा इन्ट्री कर सकते हैं जो हमारी कम्पनी के साथ-साथ अन्य एजेन्ट भी देख सकते हैं और उनसे सम्पर्क कम्पनी तथा अन्य सभी स्वतन्त्र एजेन्ट कर सकते हैं। यह भुगतान हमारे द्वारा प्लाॅट/फ्लैट लेने पर समायोजन योग्य भी है।
3. स्थायी एजेन्ट (PERMANENT AGENT) - स्थायी एजेन्ट वे हैं जो इस सेवा से रू0 10 हजार का लाभांस प्राप्त कर चुके हैं और उसके उपरान्त दो अन्य एजेन्ट का पंजीकरण इस सेवा के लिए करा चुके हैं।
4. पिन कोड एरिया एजेन्सी (PIN CODE AREA AGENCY) - कम्पनी का पिन कोड एरिया एजेन्सी वे बनते हैं जो स्वयं के साथ 11 स्वतन्त्र एजेन्ट एक साथ बनाकर नियुक्त होते हैं। एजेन्सी का विस्तृत कार्य विवरण वेबसाइट से देखा जा सकता है।
एजेन्ट को आर्थिक लाभ
यह तो सत्य हो चुका है कि बिना लाभ के कोई किसी भी प्रणाली (सिस्टम) से नहीं जु़ड़ता और यह भी उतना ही सत्य है कि बिना सिस्टम को समझे और उसमे जु़ड़े बिना कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता, पशुवत् जीवन जी लेना अलग बात है। पशु को ईश्वरीय सिस्टम चलाती है जिसे कहते हैं - ”जाहीं विधि रखे राम, ताहीं विधि रहिए“। लेकिन मनुष्य का सिस्टम ईश्वरीय सिस्टम को पूर्णतः स्वीकार व आत्मसात् करते हुए, मनुष्य द्वारा विकसित सिस्टम से विकास को गति मिलती है। ईश्वरीय सिस्टम से ही लाखो-करोड़ों वर्षो में हम सभी यहाँ तक पहँुचे हैं जो एक धीमी गति की प्रक्रिया है। मनुष्य के सिस्टम और ईश्वरीय सिस्टम दोनों को मिलाकर विकास को गति देने के लिए ही दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, अवतारों का आना लगा रहता है चाहे उसे मनुष्य स्वयं समझ ले या भीड़ उसे समझा दे।
मनुष्य के सिस्टम और ईश्वरीय सिस्टम से मिलकर ही यह सिस्टम विकसित की गयी है। विश्व में पहली बार प्रयोग की जा रही इस सिस्टम का नाम - लाभांस वितरण प्रक्रिया प्रणाली 3F (Fuel-Fire-Fuel)* है।
1. प्रशिक्षु एजेन्ट (TRAINEE AGENT) - कम्पनी के लाभांस में प्रशिक्षु एजेन्ट भी शामिल होता है परन्तु उसे उसका भुगतान तब तक नहीं होता जब तक कि वह सेवा शुल्क रू0 10 हजार का भुगतान कर स्वतन्त्र एजेन्ट नहीं बनता।
2. स्वतन्त्र एजेन्ट (FREELANCE AGENT) - कम्पनी के लाभांस में स्वतन्त्र एजेन्ट शामिल होता है और वह उसका भुगतान केवल एक बार रू0 10,000/- प्राप्त करता है।
3. स्थायी एजेन्ट (PERMANENT AGENT) - कम्पनी के लाभांस में स्थायी एजेन्ट शामिल होता है और वह उसका भुगतान अनेक बार रू0 10,000/- के गुणक में प्राप्त करता है।
4. पिन कोड एरिया एजेन्सी (PIN CODE AREA AGENCY) - कम्पनी के लिए चाहे जिस एजेन्ट ने भी प्रेरक बनाया हो, वह किसी न किसी पिन कोड एरिया का ही होता है। एजेन्ट जिस पिन कोड एरिया का है उस पिन कोड एरिया एजेन्सी को एक निश्चित राशि लाभांस के रूप में भुगतान होता है।
पिन कोड एरिया एजेन्सी (PIN CODE AREA AGENCY) का कार्य
1. अपने पिन कोड क्षेत्र के ADVOCATE, BRICK SUPPLIER, BUILDING MATERIAL SUPPLIER, CEMENT DEALER, CENTERING MATERIAL SUPPLIER, ELECTRICAL SUPPLIER, FINANCIER, FOUR WHEELER AGENCY, FOUR WHEELER SERVICE CENTER, FURNISHING SUPPLIER, GENERAL INSURANCE AGENT, GOVERNMENT SERVANT, HARDWARE SUPPLIER, HOUSING FINANCE AGENT, INTERIOR DECORATION, LIFE INSURANCE AGENT, MLM NETWORKER, PLUMBER, POP & PAINT WORKER, PROPERTY DEALER, REAL ESTATE COMPANY, REAL ESTATE INVESTOR, SAND SUPPLIER, STONE SUPPLIER, TILES & MARBLE SUPPLIER, TRADING BUSINESS OWNER, TWO WHEELER AGENCY, TWO WHEELER SERVICE CENTER, OTHER- NON OF THE ABOVE इत्यादि का स्वतन्त्र एजेन्ट के रूप में पंजीकरण करना।
2. किसी भी एजेन्ट का के.वाई.सी. सत्यापित करना और उस अनुसार वेबसाइट को अपडेट करना और उसे प्रधान कार्यालय को भेजना।
सिस्टम की विशेषताएँ
1. बिना पंजीकरण/लाॅगइन के पिन कोड स्तर पर कुल पंजीकृत एजेन्ट और लाभांस प्राप्त कर रहे एजेन्ट की सूची देख सकते हैं।
2. बिना पंजीकरण/लाॅगइन के पिन कोड स्तर पर कुल पंजीकृत एजेन्ट और लाभांस प्राप्त कर रहे एजेन्ट की सूची देख कर पिन कोड एरिया एजेन्सी का अनुमानित लाभ देख सकते हैं।
3. बिना पंजीकरण/लाॅगइन के पिन कोड एरिया एजेन्सी के लाभ के अनुमान से उस पिन कोड क्षेत्र में एजेन्सी नियुक्त है या नहीं यह देख सकते हैं।
4. बिना पंजीकरण/लाॅगइन के किसी भी पिन कोड क्षेत्र के प्रापर्टी से सम्बन्धित व्यक्तियों से सम्पर्क कर सकते हैं जिसे पिन कोड एरिया एजेन्सी ने पंजीकरण किया हैं।
5. बिना पंजीकरण/लाॅगइन के आपके व्यवसाय से सम्बन्धित ज्ञान के विकास के लिए जानकारी का विस्तृत पृष्ठ और हमारे द्वारा योजनाबद्ध परियोजनाओं की जानकारी।
6. केवल पंजीकरण करके ही प्रापर्टी डाॅटा दे सकते हैं या डाक पिन कोड क्षेत्र स्तर पर खोज सकते हैं।
7. प्रत्येक पंजीकृत व्यक्ति को सुनिश्चित लाभांस वितरण और सिस्टम से जुड़ने के बाद हटने का कोई रास्ता नहीं।
8. सेवा शुल्क हमेशा सुरक्षित एवं 100 प्रतिशत वापसी/समायोजन योग्य। विशेष रूप में जब तक कि आप कम्पनी से लाभांस नहीं प्राप्त कर चुके हैं। उसके बाद वापसी पर एजेन्ट का ही लाभांस में नुकसान, कम्पनी का नहीं।
9. आपके प्रापर्टी व्यवसाय में सम्पर्क का विस्तृत दायरा। पिन कोड क्षेत्र स्तर पर प्रापर्टी खोज व सीधे खरीदने व बेचने वाले से सम्पर्क और सूचना या सौदे में कम्पनी का कोई हस्तक्षेप या लाभ में भागीदारी नहीं।
10. सूचना, सम्पर्क, लाभ, लाभांस, सेवा शुल्क सब आपका। कम्पनी मात्र एक अवसर उपलब्ध कराने वाले की भूमिका में। क्योंकि वह एक अपने बड़े परियोजना के लिए रियल इस्टेट एजेन्ट नेटवर्क तैयार करने के उद्देश्य से काम कर रही है जिसमें प्रथम अवसर पंजीकृत एजेन्ट को ही मिलेगा।
बारिश उन्हीं कमरे में पहुँचती है, जिनके छत नहीं होते हैं।
अच्छे दिन उन्हीं के आते हैं, जिनके मस्तिष्क बन्द नहीं होते हैं।
स. कर्म से जुड़ा
01. उत्पाद ब्राण्ड
01. ब्राण्ड - अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से निम्नलिखित शब्द को बल मिला है इस प्रकार ये शब्द एक ”ब्राण्ड“ के रूप में व्यक्त हुये हैं जिसे उपयोग में लाया जा सकता है।
अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से निम्नलिखित शब्द को बल मिला है इस प्रकार ये शब्द एक ”ब्राण्ड“ के रूप में व्यक्त हुये हैं जिसे उपयोग में लाया जा सकता है-
01. कर्मवेद 02. शब्दवेद 03. सत्यवेद 04. सूक्ष्मवेद 05. दृश्यवेद 06. पूर्णवेद 07. अघोरवेद 08. विश्ववेद 09. ऋृषिवेद 10. मूलवेद 11.शिववेद 12. आत्मवेद 13. अन्तवेद 14. जनवेद 15. स्ववेद 16. लोकवेद 17. कल्किवेद 18. धर्मवेद 19. व्यासवेद 20. सार्वभौमवेद 21. ईशवेद 22. ध्यानवेद 23. प्रेमवेद 24. योगवेद 25. स्वरवेद 26. वाणीवेद 27. ज्ञानवेद 28. युगवेद 29. स्वर्णयुगवेद 30. समर्पणवेद 31. उपासनावेद 32. शववेद 33. मैंवेद 34. अहंवेद 35. तमवेद 36. सत्वेद 37. रजवेद 38. कालवेद 39. कालावेद 40. कालीवेद 41. शक्तिवेद 42. शून्यवेद 43. यथार्थवेद 44. कृष्णवेद सभी प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेद 45. कर्मोपनिषद् - अन्तिम उपनिषद् 46. कर्म वेदान्त 47. धर्मयुक्त धर्म शास्त्र 48. ईश्वर 49. ईश्वर का संक्षिप्त इतिहास 50. ईश्वर-शास्त्र 51. पुनर्जन्म 52. श्री लव कुश: पूर्ण प्रेरक अन्तिम कल्कि अवतार 53. भोगेश्वर: योगेश्वर समाहित 54. पूर्णदृश्य-मैं 55. बहुरूप में एक 56. ईश्वर का मस्तिष्क 57. सत्य-शिव-सुन्दर 58. विश्वभारतःसार्वजनिक प्रमाणित महाभारत 59. विश्व-पुराण 60. विश्व-धर्म: सर्वधर्म समाहित 61. विश्व-कला: कृष्ण-कला समाहित 62. विश्व-गुरू 63. विश्व भक्ति 64. सत्य-पुराण 65. सत्य-धर्म 66. सत्य-कला: कृष्ण-कला समाहित 67. सत्य-गुरू 68. सत्य भक्ति 69. सत्यकाशी: पंचम, सप्तम और अन्तिम काशी 70. काशी: पंचम, प्रथम और सप्तम काशी 71. द्वारिका: स्वर्णयुग का प्रवेश द्वार 72. कृष्ण निर्माण योजना 73. बुड्ढा कृष्ण: कृष्ण का भाग दो और अन्तिम 74. धारा और राधा 75. शिवद्वार: शिवयुग का प्रवेश द्वार 76. जीव का शिव में निर्माण 77. सत्व-रज-तम: राम-कृष्ण-लवकुश 78. लवकुश: सेतू या से तू 79. भोग माया: योग माया समाहित 80. मैं हूँ तैतीस करोड़ 81. अर्धनारीश्वर 82. काल-काली-काला 83. सृष्टि-स्थिति-प्रलय और सृष्टि 84. पशुपास्त्र: ब्रह्मास्त्र व नारायणास्त्र समाहित 85. पुराण पुरूषः सर्वोच्च व अन्तिम 86. पुराण: सर्वोच्च व अन्तिम 87. धर्म: सर्वोच्च व अन्तिम 88. आत्मा: सर्वोच्च व अन्तिम 89. गुरू: सर्वोच्च व अन्तिम 90. महायज्ञ: सर्वोच्च व अन्तिम 91. तीसरा नेत्र 92. मार्ग 93. बुद्धि 94. अहंकार 95. व्यापार 96. महत्वाकांक्षा 97. युग पुरूष 98. शंखनाद 99. उपासना 100. योग 101. मानक 102. एजेण्डा 103. कला 104. ध्यान 105. समर्पण 106. लीला 107. समन्वयाचार्य 108. दर्पण 109. मन 110. शिक्षा 111. रूप 112. विश्वमानव 113. चेतना 114. प्रकाश 115. दृष्टि 116. मार्ग 117. राजनीति 118. एकता 119. शान्ति 120. सेवा 121. भक्ति 122. बन्धुत्व 123. जातिवाद 124. दर्शन, सभी सर्वोच्च व अन्तिम 125. विकास-दर्शन 126. विनाश-दर्शन 127. एकात्मकर्मवाद 128. मस्तिष्क परावर्तक (ब्रेन टर्मिनेटर) 129. धर्मनिरपेक्ष धर्म शास्त्र 130. लोकतंत्र धर्म शास्त्र 131. लोक-शास्त्र 132. जन-शास्त्र 133. स्व-शास्त्र 134. लोक नायक शास्त्र 135. यथार्थ-प्रकाश 136. लोक/जन/स्व तंत्र 137. एकात्म विज्ञान 138. मानक विज्ञान 139. पूर्ण ज्ञान 140. कर्म ज्ञान 141. जय ज्ञान-जय कर्म ज्ञान 142. विश्व-उपासना 143. विश्व-योग 144. विश्व-मानक 145. विश्व-राष्ट्र-जन एजेण्डा 146. विश्व-ध्यान 147. विश्व-समर्पण 148. विश्व-लीला 149. विश्व-आत्मा 150. विश्व-समन्वयाचार्य 151. विश्व-दर्पण 152. विश्व-मन 153. विश्व-शिक्षा 154. विश्व-रूप 155. विश्वमानव - विश्वमन से युक्त 156. विश्व-बुद्धि 157. विश्व-चेतना 158. विश्व-प्रकाश 159. विश्व-दृष्टि 160. विश्व-मार्ग 161. विश्व-राजनीति 162. विश्व एकता 163. विश्व शान्ति 164. विश्व सेवा 165. विश्व महायज्ञ: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य 166. विश्व-बन्धुत्व 167. विश्व जातिवाद 168. विश्व अहंकार 169. सत्य-भारत 170. सत्य-उपासना 171. सत्य-योग 172. सत्य-ध्यान 173. सत्य-मानक 174. सत्य-राष्ट्र-जन एजेण्डा 175. सत्य-ध्यान 176. सत्य-समर्पण 177. सत्य-लीला 178. सत्य-आत्मा 179. सत्य-समन्वयाचार्य 180. सत्य-दर्पण 181. सत्य-मन 182. सत्य-शिक्षा 183. सत्य-रूप 184. सत्य-मानव: सत्य-मन से युक्त 185. सत्य-बुद्धि 186. सत्य-चेतना 187. सत्य-प्रकाश 188. सत्य-दृष्टि 189. सत्य-मार्ग 190. सत्य-राजनीति 191. सत्य एकता 192. सत्य शान्ति 193. सत्य सेवा 194. सत्य महायज्ञ: सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य 195. सत्य-बन्धुत्व 196. सत्य जातिवाद 197. सत्य अहंकार 198. स्वर्णयुग का प्रथम मानव 199. मात्र यही हूँ-मानो या ना मानो 200. पाँचवा और अन्तिम सूर्य 201. चक्रान्त - चक्र का अन्त 202. दिव्य-दृष्टि 203. दिव्य-रूप 204. दृश्य-योग 205. दृश्य-ध्यान 206. ज्ञान बम 207. आध्यात्मिक न्यूट्रान बम 208. सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त 209. मानक एवं मन का विश्व मानक और पूर्ण वैश्विक मानव निर्माण की तकनीकी 210. मन का ब्रह्माण्डीयकरण 211. सार्वभौम दर्पण- व्यक्ति से ब्रह्माण्ड तक 212. सम्पूर्ण क्रान्ति-प्रथम, अन्तिम और सर्वोच्च क्रान्ति 213. सामाजिक अभियंत्रण (सोशल इंजिनीयरींग) 214. सन् 2012: पाँचवें और अन्तिम स्वर्ण युग का आरम्भ वर्ष 215. आध्यात्मिक ब्लैक होल 216. तख्तापलट 217. एक आवाज, मधुशाला से 218. आॅकड़ा (डाटा) 219. मंथन रत्न 220. काला किताब 221. पूर्ण सकारात्मक विचार 222. विश्व संविधान का आधार 223. एक अलग यात्रा 224. समभोग: एकात्म भाव से भोग 225. सर्वजन हिताय - सर्वजन सुखाय 226. वसुधैव कुटुम्बकम् 227. सर्वेभवन्तु सुखिनः 228. अगीतांजलि 229. सत्य शास्त्र 230. व्यवस्था परिवर्तन का प्रथम प्रारूप 231. मोक्षदायिनी 232. जीवनदायिनी 233. मरा हुआ जीवित मानव
पेय जल के लिए हमारा ब्राण्ड - ”मोक्षदायिनी काशी“, ”जीवनदायिनी काशी“, और ”जरगो फ्रेश“,
स. कर्म से जुड़ा
02. कैलेण्डर
कैलेण्डर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के calendarium शब्द से हुआ है जिसका अर्थ किताब में लिखना हाता है। ये पुराने जमाने में प्रत्येक माह के पहले दिन (kalendae) की सूची बनाने में इस्तेमाल होता था।
कालदर्शक एक प्रणाली है जो समय को व्यवस्थित करने के लिये प्रयोग की जाती है। कालदर्शक का प्रयोग सामाजिक, धार्मिक, वाणिज्यिक, प्रशासनिक या अन्य कार्यों के लिये किया जा सकता है। यह कार्य दिन, सप्ताह, मास, या वर्ष आदि समयावधियों को कुछ नाम देकर की जाती है। प्रत्येक दिन को जो नाम दिया जाता है वह ”तिथि“ कहलाती है। प्रायः मास और वर्ष जो किसी खगोलीय घटना से सम्बन्धित होते हैं (जैसे चन्द्रमा या सूर्य का चक्र से) किन्तु यह सभी कैलेण्डरों के लिये जरूरी नहीं है। अनेक सभ्यताओं और समाजों ने अपने प्रयोग के लिये कोई न कोई कालदर्शक निर्मित किये थे जो प्रायः किसी दूसरे कालदर्शक से व्युत्पन्न थे। कालदर्शक एक भौतिक वस्तु (प्रायः कागज से निर्मित) भी है। कालदर्शक शब्द बहुधा इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।
आजकल अधिकतर देश ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना चुके हैं। किन्तु अब भी कई देश ऐसे हैं जो प्राचीन कैलेंडरों का उपयोग करते हैं। इतिहास में कई देशों नें कैलेंडर बदले। आइए उनके विषय में एक नजर देखें-
समय घटना
3761 ई.पू. यहूदी कैलेंडर का आरंभ
2637 ई.पू. मूल चीनी कैलेंडर आरंभ हुआ
45 ई.पू. रोमन साम्राज्य के द्वारा जूलियन कैलेंडर अपनाया गया
0 ई. ईसाई कैलेंडर का आरंभ
79 ई. हिन्दू कैलेंडर आरंभ हुआ
597 ई. ब्रिटेन में जूलियन कैलेंडर को अपनाया गया
622 ई. इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत
1582 ई. कैथोलिक देश ग्रेगोरियन कैलेंडर से परिचित हुए
1752 ई. ब्रिटेन और उसके अमेरिका समेत सभी उपनिवेशो में ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया
1873 ई. जापान नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
1949 ई. चीन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
कभी हमने ध्यान दिया कि चार साल में फरवरी 28 कि क्यों होती है और इसे लीप ईयर क्यों कहा जाता है साथ ही यह कभी अपने अन्य 11 भाइयों की तरह 30 या 31 कि उम्र नहीं देख पाती तो जरा कैलेण्डर के इतिहास पर गौर करें-
आज के युग में भी कैलेण्डर अमीर से अमीर व्यक्ति भी अपने पास रखना चाहता है जबकि मोबाइल फोन में भी कैलेण्डर है ...कैलेण्डर बना रहेगा। हो सकता है भविष्य में उसके स्वरुप में परिवर्तन आये। दरअसल वर्तमान कैलेण्डर कई पुराने प्रकार के कैलेंडरों का मिश्रण है जिसमे मिश्र, रोमन और जूलियन कैलेण्डर भी अलग अलग विशेषताएं हैं।
मिश्र वासियों ने 12 महीने का कैलेण्डर बनाया था जिसमे 30 दिन थे। बाद में सूर्य को पूजने वाले मिश्र वासियों ने इसमें 5 दिन और जोड़ दिए ताकि सौर वर्ष के मुताबिक पूरे दिन इसमें शामिल किये जा सकें। मिश्र सहित कुछ देशों में 24 फरवरी का दिन कैलेण्डर के लिए समर्पित है।
रोमन कैलेण्डर में भी 12 महीने का साल था लेकिन इसकी शुरुआत मार्च से होती थी। बाद में रोमनों ने जनवरी को पहला महीना बनाया ऐसा उन्होंने घडी को सही बैठाने के लिहाज से किया। इन्हीं लोगों ने फरवरी को छोटा करके लीप वर्ष की अवधारणा को जन्म दिया। शायद लीप वर्ष को सौर और चन्द्र कैलेण्डर के हिसाब से दिन निर्धारित करने के लिए ऐसा किया होगा।
जुलियस सीजर ने एक प्रख्यात खगोलविद से बेहतर कैलेण्डर सुझाने को कहा और उसने इसे 30 और 31 दिन के बीच बाँट दिया और उन्होंने ही दिनों की गणना करते हुए फरवरी को 28 दिन का बताया और इस तरह आया अलग अलग कैलेंडरों से मिलकर आधुनिक कैलेण्डर ...गौरतलब है चीनी कैलेण्डर बिलकुल अलग होता है उनका नववर्ष अलग होता है और गणनाएं अलग होती हैं मजे की बात है कि हमारे यहाँ भी कैलेण्डर अलग-अलग होते हैं क्योंकि ज्योतिषीय गणनाएं सूर्य आधारित या फिर चन्द्र आधारित होती हैं।
मुहम्मद पैगंबर ईस्वी सन 622 तारीख 15 के दिन मक्के मदीना आ गए थे -उस दिन से हिजरी सन की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत मौहर्रम मास की पहली तारीख से होता है। इनका वर्ष चांद मास का माना जाता है। अमावस्या के बाद जिस दिन पहला चन्द्र दर्शन होता है उस दिन को ही मास का पहला दिन माना जाता है । कारण चन्द्रदर्शन रात को ही होता है । अतः वार का प्रारम्भ भी रात को ही होता है। इनका वर्ष 354 का होता है। यह हिजरी सन चन्द्र वर्ष होने के कारण हरेक तीसरे वर्ष इनका मौहर्रम हमारे मास से पहले का होता है। इस तरह से 32 व 33 वर्ष पर इनके हिजरी सन का एक अंक बढ़ जाता है ।
पारसी सन् जिसको ऐजदी जर्द सन पारसी भाषा में कहते हैं -का प्रारम्भ ईस्वी सन 630 में शुरू हुआ था। इनके मास 30 सावन दिन के होते हैं । अतः इनका सन सौर वर्ष से सम्बन्ध रखने के लिए प्रति वर्ष के अंत में 5 दिन अधिक मानते हैं।
मलमास, अधिक मास संवत में सूर्य और चन्द्र के वर्षों के भेद से होता है सूर्य का वर्ष 365 दिनों से कुछ अधिक और चन्द्र वर्ष 354 दिन का होता है । इस कारण दोनों प्रकार के संवत वर्ष वर्ष में अंतर को सही रखने के लिए मलमास का प्रयोग विधान है अन्यथा कभी तो भाद्र का महीना पड़े, वर्षा ऋतु में तो कभी प्रचंड गर्मी में और कभी घोर जाड़े में। ऐसा न हो इसलिए दोनों प्रकार के वर्षों में 11 दिन के अंतर को पाटने के लिए मलमास या अधिक मास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है की योजना कर दी गई है। अस्तु, जब दो संक्रांति के बीच में एक चन्द्र मास पड़ जाता है तो उसे अधिकमास कहते है। इस कारण उनके ताजिये और रोजे -चंद्रमास के हिसाब से कभी जाड़े में होते हैं तो कभी गर्मियों में।
ज्योतिष की समस्त गणनाएं सूर्य एवं चन्द्रमा के आधार पर ही सम्भव है और संसार के सभी लोगों ने इनकी महत्ता दी है । चाहे कोई भी धर्म हो कोई भी भाषा हो या देश हो या विदेश। सभी जगह मान्यता सूर्यदेव और चन्द्रमा की अवश्य है।
भारतीय कालदर्शक (कैलेण्डर)
प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान है। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियाँ, अभी भी प्रयोग में हैं। इसके साथ-साथ ही हिन्दू ग्रन्थों में लम्बाई, भार, क्षेत्रफल मापन की भी इकाईयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू समय मापन (काल व्यवहार) में नाक्षत्रीय मापन, वैदिक समय इकाईयाँ, चाँद्र मापन, ऊँष्ण कटिवन्धीय मापन, पितरों की समय गणना, देवताओं की काल गणना, पाल्या इत्यादि हैं।
हिन्दू पुराण के अनुसार ब्रह्माण्ड का सृजन क्रमिक रूप से सृष्टि के ईश्वर ब्रह्मा द्वारा होता है जिनकी जीवन 100 ब्राह्म वर्ष होता है। ब्रह्मा के 1 दिन को 1 कल्प कहते हैं। 1 कल्प, 14 मनु (पीढ़ी) के बराबर होता है। 1 मनु का जीवन मनवन्तर कहलाता है और 1 मनवन्तर में 71 चतुर्युग (अर्थात 71 बार चार युगों का आना-जाना) के बराबर होता है। ब्रह्मा का एक कल्प (अर्थात 14 मनु अर्थात 71 चतुर्युग) समाप्त होने के बाद ब्रह्माण्ड का एक क्रम) समाप्त हो जाता है और ब्रह्मा की रात आती है। फिर सुबह होती है और फिर एक नया कल्प शुरू होता है। इस प्रकार ब्रह्मा 100 वर्ष व्यतीत कर स्वयं विलिन हो जाते हैं। और पुनः ब्रह्मा की उत्पत्ति होकर उपरोक्त क्रम का प्रारम्भ होता है। गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है।
काल मनवन्तर के मनु के नाम अवतार
भूतकाल 1. स्वायंभुव मनु यज्ञ
भूतकाल 2. स्वारचिष मनु विभु
भूतकाल 3. उत्तम मनु सत्यसेना
भूतकाल 4. तामस मनु हरि
भूतकाल 5. रैवत मनु वैकुण्ठ
भूतकाल 6. चाक्षुष मनु अजित
वर्तमान 7. वैवस्वत वामन
भविष्य 8. सावर्णि मनु सार्वभौम
भविष्य 9. दत्त सावर्णि मनु रिषभ
भविष्य 10. ब्रह्म सावर्णि मनु विश्वकसेन
भविष्य 11. धर्म सावर्णि मनु धर्मसेतू
भविष्य 12, रूद्र सावर्णि मनु सुदामा
भविष्य 13. दैव सावर्णि मनु योगेश्वर
भविष्य 14. इन्द्र सावर्णि मनु वृहद्भानु
हम वर्तमान में ब्रह्मा के 58वें वर्ष में 7वें मनु-वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, 28वें चतुर्युग का अन्तिम युग-कलियुग के ब्रह्मा के प्रथम वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम सम्वत् 2069 (सन् 2012 ई0) में हैं। वर्तमान कलियुग ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार दिनांक 17-18 फरवरी को 3102 ई.पू. में प्रारम्भ हुआ था। इस प्रकार अब तक 15 नील, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 61 हजार, 624 वर्ष इस ब्रह्मा के सृजित हुए हो गये हैं
भारतीय कैलेंडर सूर्य एवं चंद्रमा की गति के आधार पर चलता है और यह शक संवत से आरंभ होता है जो कि सन् ७९ के बराबर है। इसका प्रयोग धार्मिक तथा अन्य त्योहारों की तिथि निर्धारित करने के लिए किया जाता है। किन्तु आधिकारिक रूप से ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रयोग होता है।
महीनों के नाम-
हर महीना शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। जिस नक्षत्र में पूर्णिमा पड़ती है उन्हीं के नाम पर महीनों के नाम हैं। वर्षारम्भ होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से। नक्षत्रों व संबंधित महीनों के नाम इस प्रकार हैं -
क्र० भारतीय नक्षत्र भारतीय माह दिन ग्रेगोरियन माह अनुमानित ग्रेगोरियन दिनांक
01 चित्रा चैत्र 30 मार्च-अप्रैल 22 मार्च
02 विशाखा वैसाख 31 अप्रैल-मई 21 अप्रैल
03 ज्येष्ठ ज्येष्ठ 31 मई-जून 22 मई
04 पूर्व आषाढ़ आषाढ़ 31 जून-जुलाई 22 जून
05 श्रवण श्रवण 31 जुलाई-अगस्त 23 जुलाई
06 पूर्व भाद्रपद भाद्रपद 31 अगस्त-सित्मबर 23 अगस्त
07 अश्विनी अश्विन 30 सितम्बर-अक्टुबर 23 सितम्बर
08 कृतिका कार्तिक 30 अक्टुबर-नबम्बर 23 अक्टूबर
09 मृगशिरा मार्गशीर्ष (अग्रहायण) 30 नवम्बर-दिसम्बर 22 नवम्बर
10 पुष्य पौष (पूस) 30 दिसम्बर-जनवरी 22 दिसम्बर
11 मघा माघ 30 जनवरी-फरवरी 21 जनवरी
12 पूर्वा फाल्गुनी फाल्गुन 30 फरवरी-मार्च 20 फरवरी
भारतीय कालदर्शक (कैलेण्डर) सौर और चन्द्र गणनाओं के समन्वय पर अधारित है। 1 संवत (साल) 12 महीनों में बँटा हुआ है। सौर और चन्द्र गणनाओं में समन्वय रखने के लिए 19 वर्षों में 7 महीने बढाए जाते हैं। इस तरह हर तीन साल बाद 1 अधिक मास होता है। लीप वर्ष में चैत्र 31 दिन का होता है और वह २१ मार्च को आरंभ होता है।
तिथियों के नाम
हर माह के दो पक्ष हैं- शुक्ल व कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष - अमवस्या की स्माप्ति से पूर्णिमा तक। कृष्ण पक्ष - पूर्णिमा के अंत से अमावस्या तक। हर पक्ष में 15 दिन होते हैं- 1. प्रतिपदा, 2. द्वितीया, 3. तृतीया, 4. चतुर्थी, 5. पंचमी, 6. षष्टी, 7. सप्तमी, 8. अष्टमीए 9. नवमी, 10. दशमी, 11. एकादशी, 12. द्वादशी, 13. त्रयोदशी, 14. चतुर्दशी, 15. पूर्णिमा, 30. अमावस्या
ऋतुओं के नाम -
कुल 6 ऋतु हैं व इन्हीं 12 महीनों में समाईं हैं। हिन्दू धर्म में सभी त्योहार ऋतुओं के अनुरूप हैं।
1. वसंत (Spring) - वसंतोत्सव (होली), शिवरात्रि, नवरात्रि
2. ग्रीष्म (Summer)
3. वर्षा (Rain)
4. शरद (Autumn) - शिवरात्रि, नवरात्रि, विजय-दशमी, दीपावली
5. हेमंत (Winter)
6. शिशिर (Cool) - लोहडी
नक्षत्रों के नाम
1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वा फाल्गुनी 12. उत्तरा फाल्गुनी 13. हस्ति 14. चित्रा 15. स्वाति 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ़ 21. उत्तराषाढ़ 22. श्रवण 23. घनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वभाद्रपद 26. उत्तर भाद्रपद 27. रेवती
हमारे द्वारा प्रारम्भ किया गया कैलेण्डर
जिस प्रकार अनेक धर्म संस्थापकों के जन्मदिन से नया कैलेण्डर समाज में स्थापित है उसी प्रकार काल, मनवन्तर, युग, शास्त्र और अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से विश्वधर्म के प्रवर्तक की योग्यता के अधिकार से उनके जन्मदिन 16 अक्टुबर 1967 से नये कैलेण्डर की शुरूआत हो गई है।
स. कर्म से जुड़ा
03. शिक्षा ब्राण्ड - सत्य मानक शिक्षा
(परियोजना पुनर्निर्माण- PROJECT RENEW)
राष्ट्र के पूर्णत्व के लिए पूर्ण शिक्षा निम्नलिखित शिक्षा का संयुक्त रूप है-
अ - सामान्यीकरण (Generalization) शिक्षा - ज्ञान के लिए - यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का बौद्धिक विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय सुख में वृद्धि होती है।
ब - विशेषीकरण (Specialization) शिक्षा - कौशल के लिए - यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का कौशल विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि होती है।
स - सत्य नेटवर्क (REAL NETWORK) - समाज में प्रकाशित होने के लिए
वर्तमान समय में विशेषीकरण की शिक्षा, भारत में चल ही रहा है और वह कोई बहुत बड़ी समस्या भी नहीं है। समस्या है सामान्यीकरण शिक्षा की। व्यक्तियों के विचार से सदैव व्यक्त होता रहा है कि - मैकाले शिक्षा पद्धति बदलनी चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति व पाठ्यक्रम बनना चाहिए। ये तो विचार हैं। पाठ्यक्रम बनेगा कैसे?, कौन बनायेगा? पाठ्यक्रम में पढ़ायेगें क्या? ये समस्या थी। और वह हल की जा चुकी है। जो भारत सरकार के सामने सरकारी-निजी योजनाओं जैसे ट्रांसपोर्ट, डाक, बैंक, बीमा की तरह निजी शिक्षा के रूप में पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग द्वारा पहली बार इसके आविष्कारक द्वारा प्रस्तुत है। जो राष्ट्र निर्माण का व्यापार है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित नये शैक्षिक पाठ्यक्रम व्यक्त हुये हैं-
अ - सामान्यीकरण (Generalization) शिक्षा
सत्य शिक्षा (REAL EDUCATION)
01. पूर्ण ज्ञान में प्रमाण पत्र (Certificate in Complete Knowledge-CCK)
02. ईश्वर शास्त्र व व्यापार ज्ञान में प्रमाण पत्र
(Certificate in Godics & Business Knowledge-CGBK)
(Certificate in Godics & Business Knowledge-CGBK)
03. अवतार ज्ञान में प्रमाण पत्र (Certificate in Avatar Knowledge-CAK)
04. गुरू ज्ञान में प्रमाण पत्र (Certificate in Guru Knowledge-CGK)
05. संस्थागत धर्म में डिप्लोमा (Diploma in Institutional Religion-DIR)
06. पूर्ण शिक्षा में स्नातक (Bachelor in Complete Education-BCE)
07. पूर्ण शिक्षा में परास्नातक (Master in Complete Education-MCE)
सत्य पेशा (REAL PROFESSION)
08. दृश्य योग, ध्यान और चेतना में प्रमाण पत्र
(Certificate in visible Yoga, Meditation & Consciousness - CVYMC)
(Certificate in visible Yoga, Meditation & Consciousness - CVYMC)
09. डब्ल्यू.सी.एम-टी.एल.एम-श्याम.सी में प्रमाण पत्र
(Certificate in WCM-TLM-SHYAM.C Technology-CWT)
(Certificate in WCM-TLM-SHYAM.C Technology-CWT)
10. डब्ल्यू.एस.ओ-0 और कर्मज्ञान में प्रमाण पत्र
(Certificate in WSO-0 & Work Knowledge-CWWK)
(Certificate in WSO-0 & Work Knowledge-CWWK)
11. पुराण लेखन कला में प्रमाण पत्र (Certificate in Art of Puran writing-CAPW)
12. सार्वभौम विचार पर आधारित फिल्म लेखन में प्रमाण पत्र
(Certificate in Art of Universal thought based Film writing-CAUFW)
(Certificate in Art of Universal thought based Film writing-CAUFW)
सत्य पुस्तक (REAL BOOK)
13. विशाल ज्ञान विज्ञान सबका समाधान (Vishal Gyan Vigyan sabka samadhan-VGVSS)
14. विश्वशास्त्र: द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज
(VISHWSHASTRA : THE KNOWLEDGE OF FINAL KNOWLEDGE - VKFK)
(VISHWSHASTRA : THE KNOWLEDGE OF FINAL KNOWLEDGE - VKFK)
सत्य स्थिति (REAL STATUS)
15. जीवन का पैमाना (Scale Your Life) - ईश्वर चक्र पर स्वयं की स्थिति का ज्ञान
(Know Your Position on GOD CYCLE -KYPGC)
(Know Your Position on GOD CYCLE -KYPGC)
सत्य एस्टेट एजेन्ट (REAL ESTATE AGENT)
16. रियल इस्टेट एजेन्ट में प्रमाण पत्र (Certificate in Real Estate Agent - CRE)
सत्य किसान (REAL KISAN)
17. रियल किसान में प्रमाण पत्र (Certificate in Real Kisan - CRK)
ब - विशेषीकरण (Specialization) शिक्षा
01. सत्य कौशल (REAL SKILL)
02. सत्य डिजीटल कोचिंग (REAL DIGITAL COACHING)
स - सत्य नेटवर्क (REAL NETWORK)
01. डिजिटल ग्राम नेटवर्क (Digital Village Network)
02. डिजिटल नगर वार्ड नेटवर्क (Digital City Ward Network)
03. डिजिटल एन.जी.ओ/ट्रस्ट नेटवर्क (Digital NGO/Trust Network)
04. डिजिटल विश्वमानक मानव नेटवर्क (Digital World Stanadard Human Network)
05. डिजिटल नेतृत्व नेटवर्क (Digital Leader Network)
06. डिजिटल जर्नलिस्ट नेटवर्क (Digital Journalist Network)
07. डिजिटल शिक्षक नेटवर्क (Digital Teacher Network)
08. डिजिटल शैक्षिक संस्थान नेटवर्क (Digital Educational Institute Network)
09. डिजिटल लेखक-ग्रन्थकार-रचयिता नेटवर्क (Digital Author Network)
10. डिजिटल गायक नेटवर्क (Digital Singer Network)
11. डिजिटल खिलाड़ी नेटवर्क (Digital Sports Man Network)
12. डिजिटल पुस्तक विक्रेता नेटवर्क (Digital Book Saler Network)
13. डिजिटल होटल और आहार गृह नेटवर्क (Digital Hotel & Resturant Network)
स. कर्म से जुड़ा
04. राष्ट्र निर्माण के पुस्तक
काल, मनवन्तर, युग, शास्त्र परिवर्तन और अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से राष्ट्र निर्माण से सम्बन्धित अनेक पुस्तक-पुस्तिकाओं का मार्ग मिल गया है जिससे ”पावर और प्राफिट“ की ओर बढ़ गये मनुष्यता को मस्तिष्क के विकास को ओर भी विकास का मार्ग उपलब्ध होगा।
125 करोड़ की जनसंख्या वाला भारत देश में हिन्दी भाषी जनसंख्या 70 करोड़ है। और लाल किताब - पीला किताब, धर्म ग्रन्थ इत्यादि बिकते रहते है। और वो किताब जिसे ”विश्वशास्त्र“ कहा जा रहा है जो एक काल, मनवन्तर, युग परिवर्तन से लेकर विश्व सरकार के गठन तक का मार्गदर्शन से युक्त हो जो व्यक्ति के पूर्ण ज्ञान, पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम सहित नीति आयोग तक के लिए उपयोगी है। ”विश्वशास्त्र“ त्रिलोक के अदृश्य कल्पना/कथा नहीं बल्कि इस लोक के व्यावहारिक ज्ञान का शास्त्र है। सभी शिक्षा एक तरफ, ”विश्वशास्त्र“ एक तरफ। सभी पुस्तक-शास्त्र एक तरफ, ”विश्वशास्त्र“ एक तरफ। हर घर का शान और प्राण ”विश्वशास्त्र“, धरती के नागरिक का जीवनशास्त्र ”विश्वशास्त्र“, स्वर्ण युग का शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ की स्थिति है।
भारत में हिन्दी भाषा जानने वालों की स्थिति ये है- 1. बिहार (जनसंख्या-, 103,804,637 साक्षरता - 63.82 प्रतिशत), 2. छत्तीसगढ़ (जनसंख्या-25,540,196, साक्षरता - 71.04 प्रतिशत), 3. हरियाणा (जनसंख्या- 25,353,081, साक्षरता - 76.64 प्रतिशत), 4. हिमाचल प्रदेश (जनसंख्या- 6,856,509, साक्षरता - 83.78 प्रतिशत), 5. झारखण्ड (जनसंख्या- 32,966,238, साक्षरता - 67.63 प्रतिशत), 6. मध्य प्रदेश (जनसंख्या- 72,597,565, साक्षरता - 70.63 प्रतिशत), 7. महाराष्ट्र (जनसंख्या- 112,372,972, साक्षरता - 82.91 प्रतिशत), 8. पंजाब (जनसंख्या- 27,704,236, साक्षरता - 76.68 प्रतिशत), 9. राजस्थान (जनसंख्या- 68,621,012, साक्षरता - 67.06 प्रतिशत), 10. उत्तर प्रदेश (जनसंख्या- 199,581,477, साक्षरता - 69.72 प्रतिशत), 11. उत्तराखण्ड (जनसंख्या-10,116,752, साक्षरता - 79.63 प्रतिशत), 12. पश्चिम बंगाल (जनसंख्या- 91,347,736, साक्षरता - 77.08 प्रतिशत), 13. चण्डीगढ़ (जनसंख्या- 1,054,686, साक्षरता - 86.43 प्रतिशत), 14. दिल्ली (जनसंख्या- 16,753,235, साक्षरता - 86.34 प्रतिशत)
हमारे द्वारा राष्ट्र निर्माण श्रृंखला से सम्बन्धित व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिए बस स्टेशन व रेलवे स्टेशनों, प्रदर्शनी, स्टाल, सीधे स्कूल-कालेज से विक्रय होने वाली ”विश्वशास्त्र“ पर आधारित निम्नलिखित समझ पर केन्द्रित अनेक पुस्तिका विक्रय करने के लिए उपलब्ध है। जिसे विद्यार्थी को संग्रह करने और इस रूप में प्राप्त करना असंभव है।
01. व्यापार 02. मानक 03. पूर्ण मानव
04. सत्यकाशी 05. मुद्रक और वितरक 06. रायल्टी
07. एम.एल.एम और नेटवर्कर 08. फिल्म 09. आॅकड़ा
10. लेखक 11. भारतीय सरकार 12. काशी - सत्यकाशी
13. स्वामी विवेकानन्द 14. नेता 15. रिलिजन/धर्म
16. विश्व-बन्धुत्व 17. भारत रत्न 18. यू.एन.ओ
19. पुरस्कार 20. दार्शनिक 21. गुरू
22. संत 23. समाज परिवर्तक 24. रचनाकर्ता/संस्थापक
25. अवतार 26. सत्य अवतार - कल्कि 27. अन्तिम सत्य
28. लव कुश 29. माँ कल्कि देवी 30. ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ
एक ही मानव शरीर के जीवन, ज्ञान और कर्म के विभिन्न विषय क्षेत्र से मुख्य नाम
(सर्वोच्च, अन्तिम और दृश्य)