Action Plan of New Human, New India, New World based on Universal Unified Truth-Theory. According to new discovery World Standard of Human Resources series i.e. WS-0 Series like ISO-9000, ISO-14000 etc series
जिस प्रकार वर्तमान व्यावसायिक-समाजिक-धार्मिक इत्यादि मानवीय संगठन में विभिन्न पद जैसे प्रबन्ध निदेशक, प्रबन्धक, शाखा प्रबन्धक, कर्मचारी, मजदूर इत्यादि होते हैं और ये सब उस मानवीय संगठन के एक विचार जिसके लिए वह संचालित होता है, के अनुसार अपने-अपने स्तर पर कार्य करते हैं और वे उसके जिम्मेदार भी होते हैं। उसी प्रकार यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ईश्वरीय संगठन है जिसमें सभी अपने-अपने स्तर व पद पर होकर जाने-अनजाने कार्य कर रहें हैं। यदि मानवीय संगठन का कोई कर्मचारी दुर्घटनाग्रस्त होता है तो उसका जिम्मेदार उस मानवीय संगठन का वह विचार नहीं होता बल्कि वह कर्मचारी स्वयं होता है। इसी प्रकार ईश्वरीय संगठन में भी प्रत्येक व्यक्ति की अपनी बुद्धि-ज्ञान-चेतना-ध्यान इत्यादि गुण ही उसके कार्य का फल देती है जिसका जिम्मेदार वह व्यक्ति स्वयं होता है न कि ईश्वरीय संगठन का वह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त। मानवीय संगठन का विचार हो या ईश्वरीय संगठन का सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त यह दोनों ही कर्मचारी के लिए मार्गदर्शक नियम है। जिस प्रकार कोई मानवीय संगठन आपके पूरे जीवन का जिम्मेदार हो सकता है उसी प्रकार ईश्वरीय संगठन भी आपके पूरे जीवन का जिम्मेदार हो सकता है। जिसका निर्णय आपके पूरे जीवन के उपरान्त ही हो सकता है परन्तु आपके अपनी स्थिति के जिम्मेदार आप स्वयं है। जिस प्रकार मानवीय संगठन में कर्मचारी समर्पित मोहरे की भाँति कार्य करते हैं उसी प्रकार ईश्वरीय संगठन में व्यक्ति सहित मानवीय संगठन भी समर्पित मोहरे की भाँति कार्य करते हैं, चाहे उसका ज्ञान उन्हें हो या न हो। और ऐसा भाव हमें यह अनुभव कराता है कि हम सब जाने-अनजाने उसी ईश्वर के लिए ही कार्य कर रहें है जिसका लक्ष्य है-ईश्वरीय मानव समाज का निर्माण जिसमें जो हो सत्य हो, शिव हो, सुन्दर हो और इसी ओर विकास की गति हो।
यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ईश्वरीय संगठन है जो मल्टी लेवेल पर आधारित है। इस ब्रह्माण्ड में सब एक दूसरे पर निर्भर, एक दूसरे से प्रभावित और एक दूसरे से लाभ-हानि प्राप्त कर रहे हैं। मल्टी लेवेल मार्केटिंग का विचार ऐसे ही मनुष्य मस्तिष्क की उत्पत्ति है जो इस ब्रह्माण्ड के सांगठनिक स्वरूप को समझ सके हैं और उसका प्रयोग मार्केटिंग प्रणाली में किये हैं इस समझ को भी मार्केटिंग में प्रयोग अनेक प्रकार से किया गया है परन्तु सिद्धान्त वही एक है। इस प्रयोग को मूलतः निम्न तीन भागो में विभक्त कर सकते हैं-
1. पूर्ण कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति आधारित
इस मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में सिर्फ वही व्यक्ति लाभ प्राप्त कर पाते हैं जो व्यक्ति कार्य करते हैं अर्थात् जो अधिक से अधिक व्यक्ति को निर्देश ;रेफरद्ध करते हैं। इस प्रणाली में अ-कार्यशील ;नान-वर्किंगद्ध व्यक्ति को कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। सिर्फ वे उत्पाद लेकर ही उसका उपयोग कर सकते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग मल्टी लेवेल मार्केटिंग में बहुत हुआ। यह बहुत अधिक पसन्द नहीं किया गया क्योंकि जो व्यक्ति कार्य नहीं कर सके उन्हें लाभ नहीं मिला और वे इस प्रणाली से दूर भाग गये।
2. आशिंक कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित आशिंक अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति आधारित
इस मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति भी लाभ प्राप्त करते हैं जो व्यक्ति कार्य करते हैं अर्थात् जो अधिक से अधिक व्यक्ति को निर्देश (रेफर) करते हैं उन्हें अधिक लाभ तथा जो अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति होते हैं उन्हें कम लाभ प्राप्त होता है। इस प्रणाली का प्रयोग मल्टी लेवेल मार्केटिंग में हुआ। यह पसन्द तो किया गया लेकिन अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति को लाभ प्राप्त होने की धीमी गति होने के कारण वे इस प्रणाली से दूर भाग गये।
3. पूर्ण कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित पूर्ण अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति आधारित
इस मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति दोनों को लाभ प्राप्त करने का समान अवसर देता है। सिर्फ जो व्यक्ति कार्य करते हैं अर्थात् जो अधिक से अधिक व्यक्ति को निर्देश (रेफर) करते हैं उन्हें अधिक लाभ होता है। व्यक्ति को लाभ प्राप्त करने की तेज गति होने के कारण यह मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली की सबसे अधिक पसन्द की जाने वाली प्रणाली है।
सामान्यतः मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में 2 का मैट्रिक्स बाइनरी (1, 2, 4, 8, 16, 32.........) का प्रयोग किया जाता है। लेकिन 3 का मैट्रिक्स (1, 3, 9, 27.........), 5 का मैट्रिक्स (1, 5, 25, 125.........) इत्यादि का भी प्रयोग होता है। इस प्रकार के मैट्रिक्स में समस्या ये हो जाती है कि लेवेल बढ़ने से नीचे के लेवेल में इतनी अधिक संख्या की आवश्यकता आ जाती है कि लेवेल भरने में अधिक समय लगने लगता है। परिणामस्वरूप ऊपर के लेवेल को तो लाभ हो जाता है बाद के व्यक्ति को लाभ कम या नहीं के बराबर होता है। और यह लगभग असफल कार्यक्रम हो जाता है। क्योंकि यह केवल मैट्रिक्स के विकास पर ही आधारित होता है।
ईश्वरीय/ब्रह्माण्डिय सिद्धान्त है-आदान-प्रदान या परिवर्तन या जन्म-मृत्यु-जन्म। केवल जन्म और मृत्यु तक सोचना भौतिकवादी प्रणाली है। अभी तक मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में यही प्रयोग हुआ है। जन्म और मृत्यु, और फिर जन्म यह सोचना आध्यात्मवादी प्रणाली है। अब मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में इसके प्रयोग का समय आ गया है। पूर्ण कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित पूर्ण अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति आधारित मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली यही प्रणाली है।
मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM)-संचालक कौन?
अन्य व्यवसाय की भाँति मल्टी लेवेल मार्केटिंग भी एक मार्केटिंग व्यवसाय है। जिसके संचालन के लिए सरकारी नियमानुसार व्यावसायिक संगठन का पंजीकरण कराना होता है।
व्यावसायिक संगठनों के अनेक स्वरूप हैं, जिन पर आप अपनी कंपनी के लिए विचार कर सकते हैं। इन विभिन्न स्वरूपों की जानकारी देने से पहले हम नीचे कुछ कारकों का उल्लेख कर रहे हैं, जिन पर आपको व्यावसायिक संगठन का स्वरूप चुनते समय विचार करना चाहिए।
व्यवसाय की प्रकृति-आपके व्यवसाय का संगठन आपके व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर होगा।
परिचालनों की मात्रा-व्यवसाय की मात्रा तथा बाजार क्षेत्र का आकार प्रमुख पहलू हैं। बड़े बाजार परिचालनों के लिए सार्वजनिक या निजी कंपनियाँ बेहतर रहती हैं। छोटे परिचालनों के लिए साझेदारी या प्रोप्राइटरशिप का गठन किया जाता है।
नियंत्रण की मात्रा-यदि आप सीधा नियंत्रण रखना चाहें, तो प्रोप्राइटरशिप अच्छा विकल्प है। व्यवसाय के लिए कंपनी बनाने से स्वामित्व और प्रबंधन का पृथक्करण हो जाता है।
पूँजी की राशि-जब संसाधनों की जरूरत बढ़ती है तो स्वरूप में परिवर्तन करना पड़ता है, जैसे साझेदारी फर्म को कंपनी बनाना पड़ता है। जोखिमों और देयताओं की मात्रा-यह देखना होगा कि मालिक किस सीमा तक जोखिम उठाने को तैयार हैं। पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी में ऊँचा जोखिम रहता है, जबकि सार्वजनिक या निजी कंपनी में मालिकों के लिए जोखिम कम होता है, क्योंकि विधिक संस्था और उसके मालिक अलग-अलग होते हैं।
तुलनात्मक कर देयता-आपकी कंपनी की कर देयता आपके चुने हुए संगठन के स्वरूप के अनुसार होंगी।
व्यावसायिक संगठनों के निम्न स्वरूप हैं-
1.पूर्ण स्वामित्व वाले प्रतिष्ठान
2.साझेदारी प्रतिष्ठान
3.सीमित देयता साझेदारी (एलएलपी)
4.निजी (प्राइवेट) लिमिटेड कंपनी
5.सार्वजनिक (पब्लिक) लिमिटेड कंपनी
मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM) का आधार
किसी भी मल्टी लेवेल मार्केटिंग कम्पनी में एक प्रोडक्ट ;उत्पादद्ध होता है जिसे आधार बनाकर मुद्रा का आदान-प्रदान किया जाता है यह प्रोडक्ट पैण्ट-शर्ट-बैग, मेडिसिन, वर्चुअल करेंसी जैसे-सर्वे में वर्चुअल डाॅलर, सोशल हेल्प प्रोग्राम में मुद्रा या करेंसी प्वाईण्ट, एड पोस्टिंग, ई-मेल, एस.एम.एस भेजना, एजुकेशनल सी.डी, कोई सेवा, बीमा पाॅलिसी इत्यादि के रूप मंे होता है। जो आपके सामने आ चुका है।
नेटवर्कर-एक तेज आर्थिक गति का कार्यकत्र्ता परन्तु असम्मानित
मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में कार्य करने वाले व्यक्ति नेटवर्कर कहलाते हैं।
नेटवर्कर की स्थिति
1.समाज के व्यक्ति को ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली से परिचित कराते हैं।
2.बाजार में न मिलने वाले उपयोगी, स्वास्थ्यवर्धक, दवाओं, उत्पादों को सीधे उपभोक्ता तक पहुँचाते हैं।
3.उपभोक्ता को मात्र ग्राहक ही नहीं बल्कि व्यापारी भी बनाते हैं।
4.अपने आवश्यकता के खर्च से भी धन लाभ प्राप्त करने की प्रणाली को बताते हैं।
5.उपभोक्ता का नेटवर्क तैयार करने की शिक्षा देकर तेज गति से आर्थिक विकास करने की प्रणाली बताते हैं।
6.अपने नेटवर्क को बढ़ाने के लिए लम्बी-लम्बी यात्रा, मिटिंग, सेमिनार करते हैं। जिसमें आय भी खर्च होते रहते हैं।
समाज के व्यक्ति की स्थिति
1.समाज के व्यक्ति को ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली की समझ मानसिक विकास न होने के कारण नेटवर्क की शक्ति की समझ का अभाव।
2.बाजार में न मिलने वाले उपयोगी, स्वास्थ्यवर्धक, दवाओं, उत्पादों पर विश्वास नहीं जबकि उत्पाद विश्वास से नहीं बल्कि गुणवत्ता आधारित होते हैं।
3.उपभोक्ता को ग्राहक और व्यापारी के अन्तर की समझ नहीं।
4.अपने आवश्यकता के खर्च से भी धन लाभ प्राप्त कर अपने आर्थिक उन्नति के मार्ग पर चलने की समझ नहीं। धन लगाकर भी काम करने की इच्छा नहीं और बिना धन लगाये भी कार्य करने की इच्छा नहीं।
5.नेटवर्क तैयार कर तेज गति से आर्थिक विकास करने की प्रणाली की समझ नहीं क्योंकि यह बुद्धि आधारित व्यापार होता है। और तमाम समस्याओं का जड़ बुद्धि की कमी ही है, इस पर विश्वास नहीं।
6.अपने जीवन का अधिकतम समय व्यक्ति और घटना चर्चा पर खर्च करने की आदत जबकि योजना और बुद्धि पर खर्च करना उपयोगी होता है।
7.प्रत्येक कर्म का परिणाम मिलता है, यह रायल्टी/ईश्वरीय का सिद्धान्त है जिसके अनुसार ही हमारा जीवन है, इसकी समझ नहीं।
8.व्यापारिक ज्ञान व बुद्धि का अभाव। जिसके कारण सदैव ग्राहक ही बने रह जाना।
नेटवर्क कम्पनी की स्थिति
1.भारत में अधिकतम नेटवर्क कम्पनी स्थायी और बड़े लक्ष्य को लेकर स्थापित ही नहीं हुई, स्थापना से ही इनका लक्ष्य धन कमाना और कम्पनी को बन्द कर देना रहा। ऐसा भारतीय कानून के कमजोर पकड़ के कारण हुआ। परिणामस्वरूप एक तरफ नेटवर्कर के साथ धोख हुआ तो दूसरी तरफ समाज इस व्यवसाय को एक ठगने वाला व्यवसाय समझने लगा।
2.नेटवर्क कम्पनी के इस चरित्र के कारण नेटवर्कर-एक तेज आर्थिक गति का कार्यकत्र्ता से असम्मानित व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
3.नेटवर्क कम्पनी स्थायी और बड़े लक्ष्य के साथ ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली के अनुसार स्वयं की योजना नहीं बना पायीं। रायल्टी, एवार्ड और बड़े सपने दिखाने के बावजूद रायल्टी, एवार्ड और बड़े सपने दिखाने वाली कम्पनी ही गायब हो जाती हैं।
उपरोक्त स्थिति को देखते हुये नेटवर्क व्यवसाय और नेटवर्कर को उसके सही अर्थ में समझाने और उसके सम्मान को स्थापित करने की आवश्यकता है। जिसके लिए-
1.शास्वत (हमेशा आवश्यक) उत्पाद के लिए पारम्परिक एवं डायरेक्ट मार्केटिंग का संयुक्त रूप आधारित व्यवसाय।
2.ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली के अनुसार योजना।
3.ग्रुप आॅफ नेटवर्क कम्पनी।
4.नेटवर्कर के लिए स्थायी नेटवर्क क्षेत्र और कार्य करने के लिए सम्पूर्ण भारत देश।
5.भारतीय कानून का शत-प्रतिशत स्वीकार
6.नेटवर्कर और अन्य के बौद्धिक शक्ति को सदैव बढ़ाते रहने के लिए मुद्रित सामग्री द्वारा प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है।
एक बाजार केंद्रित या उपभोक्ता केंद्रित संगठन पहले यह तय करता है की उसका संभावित ग्राहक चाहता क्या है और तब उत्पाद (Product) या सेवा की रचना की जाती है। जब ग्राहक किसी उत्पाद या सेवा को जरूरत होने पर इस्तेमाल करता है या उसे कोई कथित लाभ हासिल होता है, तो विपणन सिद्धांत और व्यवहार न्यायोचित माना जाता है।
विपणन के दो प्रमुख घटक हैं-नए ग्राहकों को शामिल करना ;अधिग्रहणद्ध तथा मौजूदा ग्राहकों को बनाए एवं उनके साथ संबंधों का विस्तार करना (आधार प्रबंधन)। एक बार जब विक्रेता (Marketer) आने वाले खरीदार को अपना ग्राहक बना लेता है तो आधार प्रबंधन शुरू हो जाता है। आधार प्रबंधन के तहत जो प्रक्रिया आरम्भ होती है उसमें विक्रेता अपने ग्राहक के साथ रिश्ते विकसित करता है, संबंधों को पोषण देता है, दिए जा रहे फायदों में ईजाफा करता है और अपने उत्पाद/सेवा को निरंतर बेहतर बनाता है ताकि उसका व्यापार प्रतिस्पर्धियों से सुरक्षित रहे।
विपणन योजना (Marketing plan)की सफलता के लिए 4Ps (four
"Ps") का मिश्रण उपभोक्ताओं (Consumer)या लक्षित बाजार (Target Market) की मांगों व जरूरतों में प्रतिबिंबित होना चाहिए। एक बाजार खंड (Market Segment) को वह खरीदने के लिए राजी करना जिसकी उन्हें जरूरत नहीं, बहुत ही खर्चीला काम है और शायद ही कभी सफल होता है। विपणक, औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह के विपणन अनुसंधान (Marketing Research) से प्राप्त जानकारी पर निर्भर करते हैं और यह तय करते हैं की ग्राहक क्या चाहता है और उसके लिए कितना भुगतान करने का इच्छुक है। विपणक आशा करते हैं की इस प्रक्रिया से उन्हें एक सतत् प्रतियोगी लाभ (Sustainable
Competitive Advantage)हासिल होगा। विपणन प्रबंधन (Marketing
Management) इस प्रक्रिया हेतु व्यावहारिक अनुप्रयोग है। प्रस्ताव भी 4Ps सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण अंग है।
अमेरिकी विपणन संघ (American Marketing Association-AMA) के अनुसार-विपणन एक संगठनात्मक कार्य और प्रक्रियाओं का एक समूह है जिससे ग्राहक बनाये जाते हैं, उनसे संप्रेषण किया जाता है और उन्हें उपयोगिता प्रदान की जाती है तथा उपभोक्ता से रिश्ते बनाये जाते हैं ताकि संगठन एवं उसके हितधारकों को लाभ मिले।
विपणन के तरीकों की सूचना कई सामाजिक विज्ञानों (Social Science) में दी गयी है खासकर मनोविज्ञान, समाजशास्त्र (Sociology) और अर्थशास्त्र में। मानव शास्त्र का प्रभाव भी छोटा लेकिन बढ़ता हुआ है। बाजार अनुसंधान इन गतिविधियों को मजबूती देता है। विज्ञापन (Advertising) के माध्यम से विपणन कई रचनात्मक (Creative) कलाओं से भी जुड़ता है। विपणन एक विस्तृत एवं कई प्रकाशनों से बड़े स्तर पर परस्पर सम्बद्ध विषय है। यह समय व संस्कृति के अनुसार खुद को और अपनी शब्दावली को नए तरीके से दुबारा गढ़ने के लिए कुख्यात है।
विपणन
विपणन एक सतत प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मार्केटिंग मिक्स (उत्पाद, मूल्य, स्थान, प्रोत्साहन जिन्हें प्रायः 4 Ps कहा जाता है) की योजना बनाई जाती है एवं कार्यान्वयन किया जाता है। यह प्रक्रिया व्यक्तियों और संगठनों के बीच उत्पादों, सेवाओं या विचारों के विनिमय हेतु की जाती है।
विपणन को एक रचनात्मक उद्योग के रूप में देखा जाता है, जिसमें शामिल हैं विज्ञापन (Advertising)] वितरण (Distribution) और बिक्री (selling)। इसका सम्बन्ध ग्राहकों की भावी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं का पूर्व विचार करने से भी है, जो प्रायः बाजार शोध के माध्यम से पता लगाई जाती हैं। मूलतः, विपणन किसी संगठन को बनाने या निर्देशित करने करने की प्रक्रिया है, ताकि लोगों को सफलतापूर्वक वह उत्पाद या सेवा बेची जा सके जिसकी न केवल उन्हें जरूरत है बल्कि वे उसे खरीदने के इच्छुक भी हैं। इसलिए अच्छा विपणन इस काबिल होना चाहिए कि वह उपभोक्ताओं हेतु एक ”प्रस्ताव“ या लाभों का सेट बना सके, ताकि उत्पादों या सेवाओं के माध्यम से ग्राहक को उसके पैसे का मूल्य अदा किया जा सके। इसमें निम्नलिखित विशेषज्ञ क्षेत्र शामिल हैं-
01. विज्ञापन (advertising) और ब्रांडिंग
02. संचार
03. डेटाबेस विपणन (database marketing)
04. पेशेवर बिक्री (selling)
05. प्रत्यक्ष विपणन (direct marketing)
06. इवेंट संस्था
07. क्षेत्रीय विपणन (field marketing)
08. वैश्विक विपणन (global marketing)
09. अंतरराष्ट्रीय विपणन (international marketing)
10. इंटरनेट विपणन (internet marketing)
11. औद्योगिक विपणन (industrial marketing)
12. बाजार शोध (market research)
13. पड़ोस विपणन (neighborhood marketing)
14. जन संपर्क (public relations)
15. खुदरा बिक्री (retailing)
16.सर्च इंजन विपणन (search engine
marketing)
17. विपणन रणनीति (marketing strategy)
18. विपणन योजना (marketing plan)
19. रणनीतिक प्रबंधन (strategic management)
20. अनुभाविक विपणन (Experiential
marketing)
21. ब्लूटूथ विपणन (Bluetooth marketing)
22. सामाजिक प्रभाव विपणन
विपणन की अवधारणा
”विपणन“ एक जानकारी देने वाला व्यावसायिक कार्य है जो लक्ष्य किए जा रहे बाजार को कंपनी व उसके उत्पादों के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ एवं कीमत के बारे सूचित व शिक्षित करता है। मूल्य (Value) वह कीमत है जो ग्राहक किसी उत्पाद का मालिक बनने या उसको इस्तेमाल करने के लिए चुकाता है। ”प्रतिस्पर्धात्मक लाभ (Competitive Advantage)Þ इस बात को दर्शाता है की कंपनी या उसके उत्पाद दोनों अपने प्रतिद्वंदी से बेहतर ऐसा कुछ कर रहे हैं जिससे उपभोक्ता को फायदा पहुंचे।
विपणन का केंद्र कंपनी तथा उत्पाद संबन्धी सूचनाएं निश्चित ग्राहकों तक पहुंचाने पर रहता है। विपणन कार्य में कई निर्णय (रणनीतियां) किए जाते हैं की कौन सी सूचना देनी है, कितनी सूचना देनी है, किसको देनी है, कैसे देनी है और कहां देनी है। एक बार फैसले कर लिए जाएँ तो ऐसे कई तरीके (युक्तियाँ) और प्रक्रियाएं हैं जिन्हें चुनिन्दा रणनीतियों के समर्थन में लागू किया जा सकता है।
विपणन क्या है? में क्रिस न्यूटन कहते हैं विपणन को अक्सर गलतफहमी में विज्ञापन या बिक्री समझ लिया जाता है। (विपणन सहायता ऑनलाइन, 2008) में विपणन को उन सभी रणनीतियों एवं निर्णयों के रूप में परिभाषित किया गया है जो निम्नलिखित बारह क्षेत्रो में तय किए जाते हैं-
01.बाजार में आवश्यकता की पहचान एवं परिमाणित करना।
02.लक्षित बाजारों (Target Markets) की पहचान एवं परिमाण मालूम करना।
03.लक्षित बाजारों तक पहुँचने हेतु इष्टतम लागत वाले प्रभावी मीडिया-ऑनलाइन और ऑफलाइन-की पहचान करना।
04.समग्र उत्पाद मिश्रण ”मैट्रिक्स“ में प्रस्तुत उत्पाद की प्राथमिकताओं की समीक्षा करना।
05.सबसे प्रभावी वितरण चैनलों की पहचान और विकास करना चाहे वह थोक व्यापारियों का नेटवर्क हो, साझेदारी गठबंधन हों, फ्रेंचाईजिंग (Franchising) हो या बाजार के अन्य रास्ते हों।
06.”आसानी से बेचे जा सकने“ वाले रूप को तय करने के लिए अवधारणा या उत्पाद की विभिन्न तरीकों से पैकेजिंग का परीक्षण करना।
07.इष्टतम मूल्य निर्धारण रणनीतियों को खोजने हेतु परीक्षण।
08.कारगर प्रचारक रणनीतियां और प्रभावी विज्ञापन और सहयोगी समानांतर, पेशकशों और लॉन्च की रणनीतियों का विकास करना।
09.बिक्री की प्रक्रिया का विकास एवं दस्तावेज बनाना।
10.बिक्री प्रक्रिया के इष्टतम निष्पादन की खोज करना, इन सब के जरिये-बिक्री प्रलेखों का परीक्षण, लोगों का चुनाव, संपार्शिविक सहयोग, कौशल व रवैये का प्रशिक्षण, ट्रैकिंग, मापन व परिष्कार।
11.यह सुनिश्चित करना की बिक्री के अनुमान वास्तविक उत्पादन क्षमता दर्शायें।
12.ग्राहक के आजीवन उपयोग हेतु पोषण कार्यक्रम विकसित करना।
विपणन का ध्येय है कंपनी और उसके उत्पादों के लिए लक्षित बाजारों में प्राथमिकता का निर्माण करना तथा उसे बनाये रखना. किसी भी कारोबार का अभिप्राय होता है अपने ग्राहकों के साथ परस्पर लाभकारी एवं स्थायी संबंधों का निर्माण करना। हालांकि व्यापार के सभी क्षेत्र इसी ध्येय की प्राप्ति के लिए उत्तरदायी होते हैं, किंतु विपणन पर सबसे अधिक इसकी जिम्मेदारी होती है। इसकी परिभाषा को बड़े दायरे में देखा जाए तो विपणन कार्य तीन विषयों के समन्वय से होता है-”उत्पाद विपणन (Product Marketing)Þ] ”कॉर्पोरेट विपणन (Corporate Marketing)Þ और ”विपणन संचार (Marketing
Communications)ÞA।
विपणन के दो स्तर
01.रणनीतिक विपणन-यह निर्धारित करने का प्रयास की एक संगठन बाजार में अपने प्रतिद्वंदियों से कैसे मुकाबला करे. विशेष रूप से, इसका उद्देश्य अपने प्रतियोगियों के सापेक्ष एक लाभदायक बढ़त लेना है।
02.परिचालन संबन्धी विपणन-ग्राहकों को आकर्षित करना व उन्हें बनाये रखना है और उनके लिए अधिक से अधिक उपयोगी होना है। साथ ही तत्पर सेवाओं द्वारा ग्राहक को संतुष्ट करना और उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना है। परिचालन संबन्धी विपणन में शामिल हैं पोर्टर के पाँच बलों का निर्धारण
चार Ps
1960 के दशक के आरम्भ में, प्रोफेसर नील बोर्डेन ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (Harvard Business
School) में कंपनी के ऐसे कार्यों की पहचान की जो उत्पाद या सेवाएं खरीदने के ग्राहक के फैसले को प्रभावित कर सकते हैं। बोर्डेन ने यह सुझाया कि कंपनी द्वारा उठाये जाने वाले वे सभी कदम ”विपणन मिश्रण“ हैं। प्रोफेसर ई.जेरोम मैकार्थी, भी हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से थे, उन्होंने 1960 के दशक की शुरुआत में सुझाया की विपणन मिश्रण में 4 तत्वों का समावेश है-उत्पाद, मूल्य, स्थान और संवर्धन।
आम चलन में ”विपणन“ उत्पाद का प्रचार है, विशेषकर विज्ञापन (Advertising) और ब्रांडिंग (Brand) किंतु, व्यावसायिक उपयोग में इसका अर्थ विषद है जिसका मतलब है की विपणन ग्राहक-केंद्रित है। उत्पादों का विकास ग्राहकों के एक समूह या कुछ मामलों में कुछ खास ग्राहकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। ई.जेरोम मैकार्थी ने विपणन को चार सामान्य गतिविधियों के समूहों में बांटा। उनकी टाईपोलोजी को दुनिया भर में इतनी मान्यता हासिल हुई की उनके ”चार P(4P) भाषा का हिस्सा बन गए हैं।
ये चार Ps हैं
01. उत्पाद (Product)&विपणन का उत्पाद संबन्धी पहलू वास्तविक माल या सेवाओं के ब्यौरे के बारे में की यह कैसे अन्तिम-उपयोगकर्ता (End-User) की जरूरतों एवं मांगों से सम्बंधित है। एक उत्पाद के दायरे में कुछ सहयोगी तत्व भी आते हैं जैसे वारंटी, गारंटी और सपोर्ट।
02. मूल्य निर्धारण (Pricing)&का आशय किसी उत्पाद का एक मूल्य ;चतपबमद्ध निर्धारित करने से है, जिसमें छूट भी शामिल होती है। जरूरी नही की मूल्य, मुद्राओं में ही हो-यह उस उत्पाद या सेवा के बदले में दी जा सकने वाली कोई चीज हो सकती है जैसे समय, ऊर्जा, मनोविज्ञान या ध्यान।
03. संवर्धन (Promotion)&इसमें शामिल हैं विज्ञापन (Advertising)] बिक्री संवर्धन (Sales Promotion)] प्रचार (Publicity)और व्यक्तिगत बिक्री (Personal Selling)] ब्रांडिंग (Branding) और उत्पाद, ब्रांड (Brand)] या कंपनी के संवर्धन हेतु विभिन्न पद्धतियाँ।
04. नियोजन या वितरण (Distribution)&से तात्पर्य है की उत्पाद किस तरह उपभोक्ता तक पहुंचेगाय उदाहरण के लिए बिक्री व्यवस्था का बिन्दु या खुदरा बिक्री (Retailing)।
इस चैथे P को कई बार स्थान (Place) भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य है कि किस चैनल के जरिये एक उत्पाद या सेवाओं को बेचा जाएगा (जैसे ऑनलाइन बनाम खुदरा), कौन से भौगोलिक क्षेत्र या उद्योग में, किस खंड को (युवा व्यस्क, परिवार, व्यवसायी लोग) आदि इसके अलावा यह भी की जिस वातावरण में उत्पाद बेचा जाएगा वह कैसे बिक्री को प्रभावित कर सकता है।
ये चार तत्व विपणन मिश्रण (Marketing Mix)] के तौर पर जाने जाते हैं, जिनका उपयोग एक विक्रेता विपणन योजना (Marketing Plan) बनाने के लिए करता है। कम कीमत के उपभोक्ता उत्पाद के विपणन में चार P का मॉडल सबसे अधिक काम आता है। औद्योगिक उत्पादों, सेवाओं, उच्च मूल्य के उपभोक्ता उत्पादों के मामले में इस मॉडल में समायोजन करना पड़ता है। सेवा विपणन (Services Marketing) बेजोड़ किस्म की सेवाओं के लिए होना चाहिए. औद्योगिक या B2B विपणन, उन दीर्घकालीन अनुबंधों के लिए होना चाहिए जो आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain)के मामलों में विशिष्ट हों। संबंधों का विपणन (Relationship
Marketing) में विपणन को दीर्घकालीन संबंधों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है बजाय व्यक्तिगत व्यवहार के।
इसके विरुद्ध मॉर्गन ने राईडिंग द वेव्स ऑफ चेंज (1988), में सुझाया कि 4Ps दृष्टिकोण की एक सबसे बड़ी खामी यह है की ”यह अनजाने में ही भीतर की ओर जोर देता है, जबकि विपणन का सार बाहर को ओर होना चाहिए”। फिर भी 4Psविपणन कार्य की प्रमुख श्रेणियों हेतु एक याद रहने एवं काम करने योग्य मार्गदर्शिका व ढाँचे के तौर पर मददगार हैं जिसके तहत इन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है।
सात Ps
पहले से मौजूद चार (4Ps उत्पाद, मूल्य निर्धारण, संवर्धन और स्थान) के अलावा सेवाओं के विपणन में तीन अतिरिक्त शीर्षक जोड़े गए हैं जिन्हें विस्तृत विपणन मिश्रण कहा जाता है। ये हैं-
01. लोग (People)&कोई भी व्यक्ति जो ग्राहक के संपर्क में आ रहा है वह उसके समग्र संतोष को प्रभावित कर सकता है। चाहे लोग एक उत्पाद की सहयोग सेवा से जुड़े हों या फिर पूर्ण सेवा में शामिल हों, लोग विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ग्राहक की नजर में में उन्हें पूरी सेवा से अलग कर के नही देखा जाता। इसलिए उन्हें समुचित तौर पर प्रशिक्षित (Trained)] ठीक तरह से अभिप्रेरित (Motivated)और सही किस्म का इंसान होना चाहिए। कई बार ग्राहकों को भी ”लोग“ शीर्षक के अंतर्गत ले लिया जाता है क्योंकि वे भी उपभोक्ता के सेवा अनुभव को प्रभावित कर सकते हैं, ;उदहारण स्वरुप खेल आयोजनद्ध।
02. प्रक्रिया (Process)&इसमें वे प्रक्रियाएं शामिल हैं जो सेवा देती हैं तथा लोगों का व्यवहार (Behaviour) जो की ग्राहक संतुष्टि (Customer
Satisfaction) में अहम होता है।
03. भौतिक साक्ष्य (Physical Evidence)&एक उत्पाद के विपरीत एक सेवा को तब तक अनुभव नही किया जा सकता जब तक की वह हासिल न हो जाए, यही बात इसे अमूर्त (Intangible)बनाती है। इसलिए इसका मतलब यह है की एक उपभोक्ता को सेवा के प्रयोग हेतु निर्णय करते वक्त अधिक जोखिम होता है। जोखिम की इस भावना को कम करने के लिए और सफलता की सम्भावना को बढ़ाने हेतु यह महत्वपूर्ण होता है की सक्षम (Potential)ग्राहक को यह देखने का मौका दिया जाए की सेवा कैसी होंगी। ऐसा भौतिक साक्ष्य दे कर किया जाता है जैसे मामलों का अध्ययन (Case Studies)] प्रशंसापत्र (Testimonials)या प्रदर्शन (Demonstrations)।
चार नए Ps
01. निजीकरण-यहाँ इसका तात्पर्य उत्पादों और सेवाओं को इन्टरनेट के इस्तेमाल द्वारा अनुकूल बनाने से है। इसके आरंभिक उदहारण हैं डैल ऑन-लाइन तथा Amazon.com, लेकिन यह अवधारणा सामाजिक मीडिया एवं आधुनिक कलन विधि के उभरने से और आगे बढ़ी। उभरती तकनीकें इस विचार को आगे बढाती रहेंगी।
02. भागीदारी-यह ग्राहक को इन बातों में भागीदार बनाने के लिए है की ब्रांड किसके लिए होना चाहिए, उत्पाद की दिशायें क्या होनी चाहिए और यहाँ तक की कौन से विज्ञापन चलने चाहिए। यह अवधारणा सूचना के लोकतंत्रीकरण के जरिये विघटनकारी बदलाव की नींव रख रही है।
03. साथियों से साथियों तक-यह ग्राहक के नेटवर्क एवं समुदाय सम्बंधित है, जिनके बीच सलाह मशविरा चलता है। विपणन के साथ एक ऐतिहासिक दिक्कत यह है की ”रुकावटी“ प्रकृति का होता है, उपभोक्ता पर ब्रांड को थोपना चाहता है। यह टीवी विज्ञापन में सबसे स्पष्ट है। ”निष्क्रिय ग्राहकों की जमात“ का स्थान अंततः ”सक्रिय ग्राहकों के समुदाय“ ले लेंगे। ब्रांड का काम उन्हीं वार्तालापों के मध्य होता है। P2P को अब सामाजिक कंप्यूटिंग के रूप में देखा जा रहा है और यह भावी विपणन में सबसे अधिक विघटनकारी शक्ति होंगी।
04. प्रागाक्ति मॉडलिंग-इनसे तात्पर्य उन कलनविधियों से है जो विपणन समस्याओं में सफलता पूर्वक लागू की जाती हैं (प्रतिगमन एवं श्रेणीबद्ध समस्यायें दोनों)
ग्राहक पर ध्यान
आजकल कई कंपनियां अपने ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इसका मतलब यह है कि कंपनियों कि गतिविधियाँ एवं उत्पाद ग्राहकों कि मांग के अनुसार होते हैं। आम तौर पर यह तीन तरीकों से किया जाता है-ग्राहक चालित दृष्टिकोण, बाजार में परिवर्तन को पहचानने कि समझ और उत्पाद को अभिनव बनाने का दृष्टिकोण।
उपभोक्ता संचालित दृष्टिकोण के तहत उपभोक्ता की मांगें रणनीतिक विपणन फैसलों का निर्धारण करती हैं। कोई भी रणनीति तब तक नहीं अपनाई जाती जब तक की वह उपभोक्ता अनुसंधान परीक्षण में सफल न हो जाए। एक उत्पाद का हर पहलू, जिसमें उत्पाद की प्रकृति भी शामिल है, वह भावी उपभोक्ता की जरूरतों से संचालित होता है। आरंभिक बिन्दु सदैव उपभोक्ता ही होता है। इसके पीछे तार्किक पहलू यह है की अनुसंधान एवं विकास कोष ऐसे उत्पाद को तैयार करने में नहीं खर्च करना चाहिए जिसे लोग खरीदना न चाहें. इतिहास गवाह है की कई उत्पाद प्रौद्योगिकी की अनोखी मिसाल होने के बावजूद बाजार में नहीं चले।
इस ग्राहक केंद्रित विपणन के औपचारिक दृष्टिकोण को SIVA (समाधान, सूचना, मूल्य, पहुँच), के तौर पर जाना जाता है। मूलतः इस प्रणाली में ग्राहक पर फोकस करने के लिए चार P को नए नाम और नए शब्द दिए गए हैं।
SIVA मॉडल मांग/ग्राहक केंद्रित संस्करण प्रदान करता है, जो विपणन प्रबंधन के मशहूर 4Ps आपूर्ति वाले मॉडल (उत्पाद, मूल्य, स्थान, संवर्धन) का विकल्प है।
उत्पाद => समाधान
संवर्धन => सूचना
मूल्य => मान
स्थान => पहुँच
SIVA मॉडल के चार तत्व हैं-
1. समाधान-ग्राहक की समस्या/जरूरत का समाधान कितना उपयुक्त है?
2. सूचना-क्या ग्राहक समाधान के बारे में जानता है? यदि हाँ, किस से व कैसे इतनी जानकारी प्राप्त करें की वह खरीद का फैसला कर सके?
3. मूल्य-क्या ग्राहक इस लेन-देन का मूल्य जानता है, यह उसे कितने में पड़ेगा, इसके क्या फायदे हैं, उसको क्या चुकाना होगा, इसके बदले में उसे क्या हासिल होगा?
4. पहुँच-ग्राहक समाधान को कहाँ पा सकता है? कितनी आसानी से/स्थानीय स्तर पर/कितनी दूर जा कर वे खरीद सकते हैं और पा सकते हैं?
इस मॉडल का प्रस्ताव चेकिटन देव और डॉन शुल्टज ने मार्केटिंग मैनेजमेंट जर्नल ऑफ द अमेरिकन मार्केटिंग असोसिएशन में दिया था और उन्होंने मार्केट लीडर-द जर्नल ऑफ द मार्केटिंग सोसाइटी इन द UK में प्रस्तुत किया था। यह मॉडल प्रमुख तौर पर ग्राहक पर फोकस करता है
उत्पाद फोकस
नवोत्पाद दृष्टिकोण में, कंपनी उत्पाद नवाचार का अनुसरण करती है, फिर उस उत्पाद हेतु बाजार विकसित करती है। उत्पाद नवाचार प्रक्रिया को संचालित करता है और विपणन अनुसन्धान यह तय करने के लिए किया जाता है की उस नए उत्पाद हेतु लाभदायक बाजार खंड मौजूद है। तर्क यह है की शायद ग्राहकों को नहीं मालूम की भविष्य में उनके पास क्या विकल्प मौजूद होंगे तो हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए की वे हमको बताएं की वे भविष्य में क्या खरीदेंगे। तथापि, विपणक आक्रामक तरीके से उत्पाद नवाचार को अपना सकते हैं और उसका लाभ उठा सकते हैं। उत्पाद नवाचार दृष्टिकोण का पालन करते वक्त विपणक को यह तय कर लेना चाहिए की उनके पास विभिन्न एवं विविध उत्पाद नवाचार दृष्टिकोण हों। यह दावा किया जाता है की यदि थॉमस एडिसन (Thomas Edison) विपणन शोध पर निर्भर होते तो वे बिजली के बल्ब का आविष्कार करने की बजाय बड़े आकार की मोम बत्तियां बनाते। कई कंपनियां, जैसे अनुसंधान व विकास केंद्रित कंपनियां सफलतापूर्वक उत्पाद की नवीनता पर फोकस करती हैं ;जैसे निनटेंडो (Nintendo)जो निरंतर वीडीओ गेम्स (Video games) खेलने का तरीका बदलती रहती हैद्ध। कई शुद्धाचार भक्त इस पर संदेह करते हैं की क्या वाकई यह एक किस्म का विपणन अभिविन्यास है, क्योंकि उपभोक्ता अनुसंधान का दर्जा बाद में आता है। कुछ लोग तो यह प्रश्न उठाते हैं की क्या यह विपणन है।
इस क्षेत्र में उभरता हुआ अध्ययन एवं व्यवहार का विषय है आंतरिक विपणन (Internal marketing)] या कर्मचारियों को कैसे प्रशिक्षित एवं मेनेज किया जाता है कि वे ब्रांड (Brand) को इस तरह पेश करें की ग्राहकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े और वे बने रहे (नियोक्ता ब्रांडिंग (Employer Branding)।
नवाचार का फैलाव (Diffusion of
Innovations)शोध खोजता है की कैसे और क्यों लोग नए उत्पादों, सेवाओं एवं विचारों को अपनाएं।
विपणन का एक अपेक्षाकृत नया रूप इन्टरनेट का प्रयोग करता है और यह इन्टरनेट मार्केटिंग कहलाता है या ज्यादा आमतौर पर ई-मार्केटिंग (e-marketing)] विपणन (Affiliate marketing)] डेस्कटॉप विज्ञापन (Desktop Advertising)या ऑनलाइन विपणन (Online Marketing)। यह विशिष्ट रूप से पारंपरिक विपणन में प्रयुक्त होने वाली खण्डविन्यास रणनीति (Segmentation
Strategy) को पूरा करने का प्रयास करता है। यह अपने ग्राहकों को ज्यादा बेहतर तरीके से लक्ष्य करता है और इसे कई बार व्यक्तिगत विपणन (Personalized
Marketing) या वन-टू-वन मार्केटिंग कहा जाता है।
विज्ञापन संदेशों को ज्यादा समय एवं ध्यान देने की ग्राहक की इच्छा के चलते विपणन करने वाले अनुमति विपणन (Permission
Marketing) की ओर जा रहे हैं जैसे ब्रांडेड सामग्री (Branded Content)] कस्टम मीडिया (Custom Media) और वास्तविकता विपणन (Reality Marketing)।
विपणन में सामूहिक व्यवहार का प्रयोग
द इकोनोमिस्ट (The Economist)ने हाल ही में रोम में हुए एक सम्मेलन की रपट दी, जो मानव के अनुकरण करने के व्यवहार के बारे में थी। आवेग युक्त खरीदारी में बढ़त के मेकेनिज्म और झुंड वृत्ति के जैसे लोगो के खरीदारी करने के बारे में विचार बांटे गए। मूल विचार यह है की लोग मशहूर चीजों को ज्यादा खरीदेंगे और कई फीडबैक मेकेनिज्म इस्तेमाल किए जाते हैं जो उत्पाद के बारे में जानकारी को प्रसिद्ध करते हैं, इसमें शामिल हैं स्मार्ट-कार्ट (Cmart-Cart) तकनीक और रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान टैग (Radio Frequency
Identification Tag) टेक्नोलोजी। प्रिंसटन (Princeton) का एक शोधकर्ता एक "Swarm-Moves"(झुंड का चलना) मॉडल लाया, जो सुपर मार्केट के लिए मुफीद है क्योंकि यह ”बिना लोगों को छूट दिए बिक्री बढ़ा सकता है।” बड़े खुदरा विक्रेताओं संयुक्त राज्य अमेरिका में Wal-Mart और ब्रिटेन में टेस्को (Tesco) ने 2007 के वसंत में तकनीक को टेस्ट करने की योजना बनाई।
”सामाजिक प्रभाव की ताकत“ पर अन्य हालिया अध्ययनों में शामिल है ”एक नकली संगीत बाजार जहाँ 14,000 लोगों ने वे गाने डाउनलोड किए जो उन्होंने सुने भी नहीं थे” (कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University)] न्यू यार्क)। एक जापान की सुविधा स्टोर की चेन ”डिपार्टमेन्ट स्टोर और शोध कंपनियों से हासिल बिक्री के आंकडों“ के आधार पर उत्पादों का आर्डर देती है। मैसाचुसेट्स (Massachusetts) की एक कंपनी सामाजिक नेटवर्क को अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। तथा ऑनलाइन खुदरा विक्रेता पहले से अधिक लोगों को जानकारी दे रहे हैं की ”आपके जैसी सोच रखने वाले ग्राहकों के बीच कौन से उत्पाद लोकप्रिय हैं“ उदाहरण अमेजन (Amazon), ई बे (e-Bay)।
उत्पाद
डिजाइन का क्रम, विचारों की रचना एवं विकास, विचारों के द्वारा चुनाव एवं छानना, कांसेप्ट की रचना और परीक्षण, कांसेप्ट के बजाय बिजनस का विश्लेषण करना, उत्पाद की रचना और परीक्षण
पैकेजिंग
1.अच्छी पैकेजिंग की जरूरतें-कार्यात्मक सामग्री की प्रभावी ढंग से संभाल व सुरक्षा, वितरण, बिक्री, खोलने, उपयोग, पुनः प्रयोग आदि के दौरान सुविधा प्रदान करे, पर्यावरण की दृष्टि से जिम्मेदार हो, किफायती हो, लक्षित बाजार हेतु ठीक से डिजाईन किया गया हो, नजरों पर छा जाने वाला हो ;खासकर रिटेल/कंज्यूमर सेल मेंद्ध, उत्पाद तथा पैकेज की विशेषताओं को सूचित और उनके इस्तेमाल की सिफारिश करे, खुदरा विक्रेताओं की आवश्यकताओं के मुताबिक हो, उद्यम की छवि को बढ़ावा दे, प्रतियोगियों के उत्पादों से अलग नजर आए, उत्पाद व पैकेजिंग की कानूनी शर्तों का पालन करे, सेवा और उत्पाद आपूर्ति में अन्तर बिन्दु, आदर्श उत्पाद, आदर्श रंग के लिए।
2.पैकेजिंग के प्रकार-विशेषता पैकेजिंग-उत्पाद की विशिष्ट छाप पर जोर देती है, दोहरे उपयोग हेतु पैकेजिंग, युग्म पैकेजिंग दो या अधिक उत्पाद एक ही कंटेनर में, बहुरूपदर्शी पैकेजिंग-एक श्रंखला या खास थीम को दर्शाते हुए पैकेजिंग लगातार बदलती जाती है, तत्काल खपत हेतु पैकेजिंग-उपयोग के पश्चात फेंक दी जाती है, पुनः बिक्री हेतु पैकेजिंग-खुदरा व थोक व्यापारी के लिए उचित मात्रा में पैकिंग
ट्रेडमार्क का महत्व
एक कंपनी के माल को दूसरी कंपनी के माल से अलग करता है, गुणवत्ता के लिए विज्ञापन का काम करता है उपभोक्ताओं और निर्माताओं दोनों को सुरक्षित रखता है, प्रदर्शन और विज्ञापन अभियानों में प्रयुक्त होती है, नए उत्पादों को बाजार में उतारने के लिए काम आती है।
ब्रांड्स
ब्रांड एक नाम, शब्द, डिजाइन, प्रतीक या कोई अन्य विशेषता है जो किसी उत्पाद या सेवा को प्रतिस्पर्धी के प्रस्ताव से अलग करता है। एक ब्रांड किसी संगठन, उत्पाद या सेवा के प्रति उपभोक्ता के अनुभव का प्रतिनिधित्व करता है। ब्रांड को एक पहचाने जाने योग्य सत्ता के रूप में भी परिभाषित किया जाता है जो एक विशिष्ट मूल्य का वादा करती हैं। सह-ब्रांडिंग (Co-branding) में विपणन गतिविधियाँ शामिल होती हैं जिसमें दो या अधिक उत्पाद होते हैं।
मूल्य निर्धारण
मूल्य निर्धारण से आशय उस पैसे से है जो एक उत्पाद के बदले दिया जाता है। यह मूल्य वस्तु की उपयोगिता से निर्धारित होता है की ग्राहक उसके बदले में कितने पैसे औरध्या बलिदान देने को तैयार है।
उद्देश्य
बिक्री का परिमाण बढ़ता है, राजस्व में वृद्धि, लाभ प्राप्ति होती है या लाभ बढ़ता है, शेयर बाजार में वृद्धि या बनाए रखना। प्रतियोगिता मिटती है, बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभ मिलते हैं
मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले घटक
उत्पादन और वितरण लागतें, वैकल्पिक माल (Substitute good) उपलब्ध रहता है, सामान्य व्यापार पद्धतियाँ, निश्चित कीमतें, वितरकों की प्रतिक्रिया, ग्राहकों की प्रतिक्रिया।
मांग (Demand) की प्रकृति-लोचदार (elastic)/स्थिर, बाजार के प्रकार, पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect competition), एकाधिकारपूर्ण प्रतियोगिता (Monopolistic
competition), एकाधिकार (Monopoly), अल्पाधिकार (Oligopoly)
मूल्य निर्धारित करने के लिए कदम-निर्धारित शेयर बाजार का अधिग्रहण करना, मूल्य रणनीति तय करना, मांग का अनुमान लगाना, प्रतिद्वंद्वियों की प्रतिक्रिया का मूल्यांकन
वितरण (स्थान)- चैनल-निर्माता से उपभोक्ता (सबसे प्रत्यक्ष), निर्माता से थोक व्यापारी को, उससे खुदरा व्यापारी को और उससे ग्राहक को (पारंपरिक), निर्माता से एजेंट को, उससे खुदरा व्यापारी और फिर ग्राहक (वर्तमान), निर्माता से एजेंट को, उससे थोक व्यापारी को, उससे खुदरा व्यापारी और फिर ग्राहक को, निर्माता से एजेंट को और उससे ग्राहक को (उदाहरण-एमवे)
निर्माता-प्रत्यक्ष बिक्री विधियों के कारण, निर्माता उत्पादों को प्रदर्शित करना चाहता है, थोक व्यापारी, खुदरा विक्रेता और एजेंट बिक्री में सक्रिय नहीं होते, निर्माता थोक व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं को उत्पाद का स्टॉक करने के लिए समझा नहीं पाता, थोक व्यापारी और खुदरा विक्रेता माल में उच्च लाभ के लिए मार्जिन जोड़ देते हैं, बिचैलिए माल की ढुलाई नहीं कर पाते।
अप्रत्यक्ष बिक्री के कारण-निर्माता के पास माल का वितरण करने हेतु वित्तीय संसाधन नहीं होते, वितरण चैनल पहले ही स्थापित होते हैं, निर्माता को कुशल वितरण का ज्ञान नहीं होता, निर्माता अपनी पूंजी का प्रयोग और अधिक उत्पादन के लिए करना चाहता है, बहुत बड़े क्षेत्र में बहुत से ग्राहकों के होने से पहुँचना मुश्किल हो जाता है, निर्माता के पास उत्पादों का विस्तृत वर्गीकरण नहीं होता कि वह कुशल विपणन कर सके।
प्रत्यक्ष ऑन सेलिंग के लाभ-थोक व्यापारी-थोक व्यापारियों का उपयोग करने के कारण, खुदरा विक्रेता या ग्राहक को माल बेचने का जोखिम उठाता है, संग्रहण स्थान, परिवहन लागत घटती है, खुदरा विक्रेताओं को ऋण अनुदान, निर्माताओं के लिए बिक्री करने में सक्षम, निर्माताओं को सलाह दें, उत्पादों को छोटी मात्राओं में बाँट दें।
थोक व्यापारी को दरकिनार करने के कारण-सीमित भण्डारण सुविधायें, खुदरा विक्रेता की वरीयताएँ, थोक व्यापारी उत्पादों को सफलतापूर्वक प्रोमोट नहीं कर सकता, थोक व्यापारी के अपने ब्रांड, नजदीकी बाजार से संपर्क की इच्छा, अधिकार की स्थिति, थोक व्यापारी की सेवाओं की लागत, मूल्य स्थिरीकरण, त्वरित वितरण की आवश्यकता, ज्यादा कमाई।
थोक व्यापारी को दरकिनार करने के तरीके-बिक्री कार्यालय एवं शाखाएं, डाक आदेश, खुदरा विक्रेताओं को सीधी बिक्री, यात्रा अभिकर्ता, प्रत्यक्ष आदेश, अभिकर्ता, कमीशन एजेंट हर उस व्यक्ति के लिए काम करते हैं जो उनकी सेवाएं चाहता है। वे किसी भी माल के स्वामी नहीं होते किंतु वे डेल क्रेडर (Del credere) कमीशन पाते हैं। बिक्री एजेंट अनुबंध के आधार पर काम करते हैं और उत्पादक के सभी उत्पाद बेचते हैं। उन्हें कीमत और बिक्री के सम्बन्ध में सारे अधिकार होते हैं। खरीद एजेंट उत्पादक और रिटेलर की ओर से माल खरीदते हैं। उन्हें खरीदने के काम का विशेष ज्ञान होता है। दलाल की एक खास उत्पाद की बिक्री में विशेषज्ञ होता है। वे दलाली प्राप्त करते हैं। कारखाना प्रतिनिधि एक से अधिक निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे एक विशिष्ट क्षेत्र के भीतर काम करते हैं और सम्बंधित लाइन का माल ही बेचते हैं किंतु कीमत व बिक्री के मामलों में उनके अधिकार सीमित होते हैं।
विपणन संचार-विपणन संचार रणनीति के हिसाब से विभिन्न श्रेणियों के लिए विपणन संदेश तैयार करता है और उन्हें तय लक्ष्य की ओर प्रेषित करता है। अजनबियों को ग्राहक में परिवर्तित करने के पृथक चरण होते हैं जो इस्तेमाल किए जाने वाले संचार माध्यम को नियंत्रित करते हैं।
विज्ञापन-विचारों की जन प्रस्तुतियों तथा अभिव्यक्ति प्रचार का सशुल्क रूप, जनता पर लक्ष्य, निर्माता यह तय कर सकता है कि विज्ञापन में क्या जाएगा, व्यापक एवं अव्यक्तिगत माध्यम, सफल विज्ञापन के कार्य और लाभ-विक्रेता का काम आसान हो जाता है, निर्माता को बताई गयी छवि को कायम बनाये रखने पर जोर देता है, ग्राहक को झूठे दावों तथा घटिया उत्पादों से आगाह करता है और बचाता है। निर्माता को बड़े पैमाने पर उत्पादन में समर्थ बनाता है, लगातार ताकीद, बिना रुकावट के उत्पादन एक सम्भावना, साख में वृद्धि, जीवन स्तर में वृद्धि (या फिर दृष्टिकोण), लोकप्रियता बढ़ने के साथ कीमतों में गिरावट, निर्माता व थोक व्यापारी को प्रतिद्वन्द्वियों के उत्पाद एवं अपने उत्पाद की कमियों के बारे में जानकारी देता है। उद्देश्य-मशहूर माल के लिए मांग बनाये रखता है, नए व अज्ञात माल का परिचय देता है, मशहूर माल/उत्पाद/सेवाओं की मांग को बढाता है। एक अच्छे विज्ञापन की आवश्यकताएँ-ध्यान आकर्षित करना (जागरूकता), दिलचस्पी बढ़ाना, इच्छा उत्पन्न करना, कार्रवाई करवाना। एक विज्ञापन अभियान के आठ चरण-बाजार शोध, लक्ष्यों की स्थापना करना, बजटिंग, मीडिया का चुनाव (टेलिविजन, अखबार, रेडियो), अभिनेताओं का चुनाव (नया चलन), डिजाइन और शब्द, समन्वय, परीक्षण के परिणाम।
व्यक्तिगत बिक्री-किसी व्यक्ति या संभावित ग्राहकों के समूह को एप्रोच करने वाले सेल्स मैन द्वारा मौखिक प्रस्तुति, सीधा, परस्पर सम्बन्ध, निजी हित, ध्यानाकर्षण और प्रतिक्रिया, दिलचस्प प्रस्तुति।
बिक्री संवर्धन-उत्पाद की खरीद को बढावा देने हेतु अल्पकालिक इंसेंटिव, त्वरित अपील, बेचने की उत्कंठा। इसका एक उदाहरण है कूपन या एक बिक्री। लोगों को खरीदने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है, पर इससे ग्राहक विश्वास निर्माण नहीं होता और न ही भविष्य में दुबारा खरीदने के लिए प्रोत्साहित होता है। विक्रय वृद्धि की एक बड़ी खामी यह है कि प्रतिद्वंदियों द्वारा इसे आसानी से कॉपी किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल करते हुए हमेशा अपने उत्पाद को दूसरो से भिन्न नहीं रखा जा सकता।
विपणन जन संपर्क-उत्पाद के पक्ष में रिपोर्ट देने वाली प्रेस विज्ञप्ति के जरिये मांग को बढावा देना, उच्च स्तर की विश्वसनीयता, प्रभावी समाचार, उद्यम कि बेहतर छवि।
सारांश में किसी भी मार्केटिंग कम्पनी द्वारा उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुँचाने और उसके विक्रय को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने की प्रणाली विपणन प्रणाली कहलाती है। जिसके मुख्य रूप से निम्नलिखित दो रूप हैं-
पारम्परिक विपणन प्रणाली (Traditional
Marketing System)
इस प्रणाली में विपणन क्षेत्र कों छोटे-छोटे विपणन क्षेत्र में विभाजित कर बड़े क्षेत्र से नीचे के छोटे क्षेत्र की ओर उत्पाद पहुँचाते हुए उपभोक्ता तक पहुँचाया जाता है। इस प्रणाली में ग्राहक का विक्रेता से सम्बन्ध सीधा सा क्रेता और विक्रेता का होता है अर्थात् ग्राहक सिर्फ ग्राहक ही रहता है और विक्रेता सिर्फ विक्रेता ही रहता है। इसमें उत्पाद विक्रय से लाभ केवल डिलर को ही होता है। इस प्रकार की प्रणाली को पारम्परिक विपणन प्रणाली कहते हैं। उदाहरण के लिए-
आॅटोमोबाइल (टू व्हीलर, फोर व्हीलर इत्यादि) के विपणन प्रणाली में निर्माता/विपणन कम्पनी द्वारा राज्य क्षेत्र (कैरी एण्ड फारवर्ड-सी.एन.एफ), फिर जिला क्षेत्र (डिलर), फिर जिला क्षेत्र मे अनेक सब डिलर व आॅथोराइज्ड संर्विस सेन्टरं (ए.एस.सी) के माध्यम से उपभोक्ता तक आॅटोमोबाइल उत्पाद पहुँचाया जाता है।
प्रत्यक्ष विपणन प्रणाली (Direct Marketing
System)
इस प्रणाली में विपणन क्षेत्र कों छोटे-छोटे विपणन क्षेत्र में विभाजित कर बड़े क्षेत्र से नीचे के छोटे क्षेत्र की ओर उत्पाद पहुँचाते हुए उपभोक्ता तक पहुँचाया जाता है। इस प्रणाली में ग्राहक का विक्रेता से सम्बन्ध सिर्फ क्रेता और विक्रेता का ही नहीं होता है बल्कि प्रत्येक ग्राहक अपने आप में एक डिलर/डिस्ट्रीब्यूटर बनता जाता है और उसके लिए कार्यक्षेत्र एक निश्चित क्षेत्र नहीं बल्कि उत्पाद का सम्पूर्ण विक्रय क्षेत्र होता है। इसमें उत्पाद विक्रय से लाभ प्रत्येक डिलर/डिस्ट्रीब्यूटर को होता है। जो जितना अधिक डिलर/डिस्ट्रीब्यूटर बनाता है उसे उतना अधिक लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार की प्रणाली को प्रत्यक्ष विपणन प्रणाली कहते हैं। उदाहरण के लिए- अनेक मल्टीलेवेल मार्केटिंग कम्पनीयाँ जैसे-एमवे, आर.सी.एम, टीयान्सी इत्यादि।