Friday, April 17, 2020

फिल्म एवं टी0 वी. सिरियल


फिल्में भारतीय समाज से एक अलग तरह का जुड़ाव रखती हैं और फिल्मों के समाज से इस जुड़ाव के पीछे महतवपूर्ण भूमिका निबाहती है उनकी कथा और पटकथा. काल् क्रम से हम अगर फिल्मों के इतिहास पर नजर डालें तो स्पष्ट पता चलता है कि जिन फिल्मों की पटकथा कसी हुई और मौलिक होती है, दर्शकों से उसे भरपूर प्यार मिलता है। इस लिहाज से पटकथा लेखन फिल्म निर्माण का सबसे मूलभूत और आवश्यक पहलु है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. यह भी सर्वविदित है कि हिंदी फिल्म उद्योग के पास योग्य लेखों की हमेशा से कमी रही है इसलिए जिस पैमाने पर यहाँ फिल्म निर्माण होता है उस लिहाज से हमारा सिनेमा समृद्ध नहीं है. आज भी भारतीय परिप्रेक्ष्य की समझ और नवीन विचारों के साथ पटकथा लिखने वालों में कुछ गिने चुने नाम हैं इसलिए पटकथा लेखन को एक व्यवसाय के रूप में लेने की कोशिश युवाओं को जरुर करनी चाहिए साहित्यिक लेखन और फिल्म लेखन दो अलग अलग विद्याएँ हैं साहित्य जगत के बड़े नाम फिल्म पटकथा लेखन में कभी जम नहीं पाए तो सिर्फ उसका यही कारण था कि वे भावों के प्रवाह को फिल्म माध्यम के अनुरूप ढाल नहीं पाए. टीवी सीरियल हो या फिल्म और थियेटर...इनकी नींव में होती है, राइटिंग यानी लेखन। फिल्म और टेलिविजन जगत में जो फिल्मांकन (शूटिंग) किया जाता है, या थियेटर में जो भी मंच पर पेश आता है, उसे पहले कागज पर इस तरह लिखा जाता है, ताकि निर्देशक के सामने एक-एक सीन जीवित हो जाए। फिल्म, या टीवी प्रोग्राम के लिए ये कार्य निम्नलिखित तीन चरणों में किया जाता है। 
1. पहले कहानी लिखी जाती है, फिर 
2. स्क्रीनप्ले या पटकथा तैयार की जाती है, और अंत में 
3. डायलॉग या संवाद लखे जाते हैं। 
कहानी, पटकथा और संवाद जितने मजबूत होंगे, शूटिंग और उसके बाद होने वाला पोस्ट प्रोडक्शन वर्क उतना ही आसान रहेगा।
जहां लेखक और साहित्यकारों का वास्ता कागज और कलम तक सीमित होता है, वहीं टीवी प्रोग्राम और फिल्म लिखने वालों को अपनी कला को परफॉर्मिंग आर्ट में तब्दील करना होता है। उन्हें वो लिखना होता है, जिसे परदे पर सही ढंग से उतारा जा सके, इसीलिए फिल्म या टीवी लेखक के लिए इन दोनों माध्यमों की जानकारी होना जरूरी है। लिखते वक्त उन्हें परदे पर उतारे जा सकने वाले दृश्यों की सीमाओं को समझना होता है, फिल्म के बजट को ध्यान में रखना होता है। किसी फिल्म में स्क्रिप्ट का महत्व ये है, कि कई बार घटिया स्क्रिप्ट होने की वजह से बड़े से बड़े बजट और नामी सितारों से लदी हुई फिल्म फ्लॉप हो जाती है। दूसरी तरफ एक मजबूत स्क्रिप्ट को कसे हुए डायरेक्शन के साथ परदे पर उतारा जाए, तो छोटे कलाकारों और मामूली बजट वाली फिल्में भी दर्शकों के दिल में उतर जाती हैं। अच्छी बात ये है कि फिल्म और टेलिविजन इंडस्ट्री में अच्छे लेखकों की हमेशा तलाश रहती है, खासकर एक ऐसे दौर में जब टीवी धारावाहिकों के 300 से 500 एपिसोड बनना आम बात हो गई है, कहानियां, संवाद और पटकथा लेखन रोजगार का एक विशाल क्षेत्र बनकर उभरा है।
फिल्म, टीवी और थिएटर की दुनिया। अक्सर लोग इसकी चकाचैंध को देखते हैं। अक्सर परदे पर, या रंगमंच पर प्रदर्शन करते हुए कलाकार ही हमारी नजर में आते हैं। लेकिन इन सबको रचने वाला एक पूरा संसार परदे के पीछे खड़ा है। इस संसार में शामिल हैं, वो लोग जो चुपचाप अपने कार्य को अंजाम देते हुए आपके सामने ग्लैमर जगत की चकाचैंध भरी रंगीन तस्वीर पेश करते हैं। यही वो लोग हैं, जो स्टारडम से कोसों दूर फिल्म मेकिंग और टीवी प्रोडक्शन में अलग अलग व्यवसायों को अपनाते हुए अपनी आजीविका चला रहे हैं। अपने अपने क्षेत्रों में इनकी अहमियत उतनी ही है, जितनी एक स्टार की, फिर चाहे वो हेयर ड्रेसर, मेकअप आर्टिस्ट, लाइटमैन, डबिंग आर्टिस्ट, एनिमेटर या स्पॉटबॉय हो।
अनेकों के पास केवल कहानी का आइडिया होता है, तो अनेकों के पास मुकम्मल कहानी। लेकिन उनके पास पटकथा नहीं है। एकबार फिर स्पष्ट कर दूं कि कथाकार और पटकथाकार को लेकर कोई भ्रम न पालें। पटकथा-लेखन, लेखन एक चरणबद्ध प्रक्रिया है। इसके कुछ मौलिक सिद्धांत हैं, जिसे जानना जरूरी है। कहानी या कथा कैसी भी हो सकती है। एक पटकथाकार केवल उस कहानी या कथा को एक निश्चित उद्देश्य यानी फिल्मों के निर्माण के लिए लिखता है, जो पटकथा (Screenplay) कहलाती है। और दूसरी ओर, एक कथाकार स्वयं पटकथाकार भी हो सकता है यानी कहानी भी उसकी और पटकथा भी उसी की। उम्मीद है अब आपको कथाकार और पटकथाकार का कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए। सवाल है कि पटकथा लेखन के सिद्धांत क्या हैं? यह कैसे लिखें? क्या लिखें और क्या न लिखें? एक फिल्मी कथानक का बीजारोपण कैसे होता है, इसका प्रारूप कैसा होता है? इसे स्टेप-बाइ-स्टेप समझना होता हैं।
स्क्रिप्ट राइटिंग कहानियां और कविताएं लिखने से कुछ अलग होता है। स्क्रिप्ट में लिखी गई हर बात का फिल्मांकन किया जाता है। इसमें लेखक को यह सोचकर लिखना पड़ता है कि उसके द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट पढ़ी नहीं, देखी जाएगी। उसकी मेहनत का परिणाम उसे फिल्मांकन के बाद मिलता है। इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए आपमें रचनात्मकता का होना आवश्यक है। जो युवा लिखने-पढ़ने के साथ मानवीय संवेदनाओं को पकड़ कर अभिव्यक्त करने की क्षमता रखते हैं उनके लिए भी इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। हालांकि स्क्रिप्ट राइटिंग पूरी तरह आपकी विश्लेषण और कल्पना क्षमता पर आधारित है, लेकिन फिर भी इसके लिए जर्नलिज्म कोर्स कर लिया जाए तो बेहतर होगा।
पटकथा लेखन एक कला है। अनेक विद्वान लेखन की इस विधा को व्यवसायिक लेखन का एक रूप मानते हैं। जो बहुत हद तक सही है। पटकथा ”स्वांतः सुखाय“ नहीं लिखी जाती है। यह एक उद्देश्य से लिखी जाती है अर्थात् यह फिल्मों, टीवी सीरियलों आदि के निर्माण के लिए होती। यह ध्यान देने योग्य है कि लेखन की विधाओं में पटकथा लेखन एक आधुनिक और नई विधा है। वास्तव में, पटकथा लेखन स्वाध्याय के साथ-साथ एक व्यवसायिक लेखन है। जाहिर है कि लेखन की इस विधा के लिए स्वाध्याय के साथ-साथ लेखन के व्यवसायिक गुणों का होना जरूरी है।
तलाश एक अदद कहानी की पटकथा लेखन के लिए सबसे बड़ी जरूरत है, एक अदद कहानी की। यकीन जानिए, कहानी कुछ भी हो सकती। सो कहानी के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है। मसलन, पूरी-की-पूरी रामायण, महाभारत या उनके एक-दो प्रसंग किसी फिल्म या धारावाहिक की कहानी हो सकती है। या इन ग्रंथों की कहानियों और पात्रों से प्रेरणा लेकर एक अच्छी कहानी गढ़ी जा सकती है। 
कथानक को समस्या, संघर्ष और समाधान में बांटने की एक सर्वमान्य लेखन-परंपरा की चर्चा की। इन तीन बिंदुओं के रूप में कथानक को प्रस्तुत करने का चलन सर्वथा नया नहीं है। स्कूली शिक्षा में हमें सिखलाया जाता है कि अपने प्रत्येक आलेख को तीन भागों यानी शुरुआत (Opening), मध्य भाग (Body) और अंत (Ending) में बांटे। आलेख-लेखन का यह सूत्र OBE (Opening-Body-Ending) या OBC (Opening-Body-Conclusion) के रूप में जाना जाता है।
ओपनिंग वाले हिस्से में जहां प्रस्तावना या विषय-वस्तु का परिचय होता है, बॉडी वाले भाग में विषय-वस्तु का वर्णन होता है, तो वहीं एंडिंग वाले पार्ट में विषय-वस्तु का निष्कर्ष या ;आद्धलेख का उपसंहार होता है। कमोबेश पटकथा-लेखन भी इसी अवधारणा पर नियोजित होती है। शायद सदियों से और आज भी स्कूल में ;आद्धलेख लिखने का यह प्रारूप जरूर सिखलाया जाता है। रोचक यह है कि इस रीति का पालन नहीं करने पर परीक्षक नंबर काट लेते हैं। अगर किसी आलेख के लिए 10 नंबर निश्चित है और किसी छात्र ने OBE के ढर्रे का पालन नहीं किया है, तो उसके 2-3 नंबर तो शर्तिया गए। सवाल है फिल्मी दुनिया में OBE के इस बहस से क्या मतलब है? मतलब है सरकार, बड़ा गहरा मतलब है। क्या यहां भी नंबर कटता है। जी, बिलकुल कटता है और 2-3 नंबर नहीं, पूरे-का-पूरा नंबर कट जाता है, मतलब ”बच्चा पर्चा-फेल“!
फिल्म-जगत में “टू मिनट मूवी” एक व्यवहारिक शब्दावली के साथ-साथ व्यवहारिक कार्यप्रणाली है। क्योंकि, फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों के पास ज्यादा समय नहीं होता है कि घंटा, दो घंटा निकालें और किसी कहानी को आराम से सुनें या पढ़ें। कोई कथाकार या पटकथाकार जब किसी कहानी के सिलसिले में प्रोड्यूसर, निर्देशक या किसी फिल्म-मेकर या इन्वेस्टर से मिलता है, तो वे एक ही जुमला दोहराते हैं-”दो मिनट में बताइए, कहानी क्या है?“ यह प्रथा और जुमला कब से प्रचलित है, यह तो नहीं पता, लेकिन आज यह काफी चलन में है। इसलिए परंपरागत रुप से कहानी को थ्री प्वायंट्स ऑफ स्क्रीनप्ले यानी प्रिमाईस के रूप में में ढालना और कहने-सुनने की आदत डालना जरूरी है। और, सच बात तो यह है कि अगर कोई लेखक, पटकथा-लेखक या कथाकार किसी कहानी को दो मिनट में नहीं सुना सकता है, तो वह दो घंटे में भी नहीं सुना सकता है। ऐसे लोगों की जरुरत फिल्म इंडस्ट्री को भी नहीं है।
वास्तविकता तो यह है कि जो लोग फिल्में बनाते हैं, उनका पैसा, उनकी मेहनत, उनकी प्रतिष्ठा सब कुछ दांव पर लगी होती है। फिल्म हिट होती है, तो वे अर्श पर होते है, फिल्म पीटती या फ्लॉप होती है, तो वे फर्श पे नहीं बल्कि सड़क पर होते हैं। उनका समय बेशकीमती होता है। इसलिए जब भी अपनी कहानी लेकर उनसे मिलने जाएं, “टू मिनट मूवी” का होमवर्क जरुर कर लें। फिल्मी दुनिया में टू मिनट मूवी की स्थिति को कहावतों की बोली में कहें, तो यह मॉर्निंग शोज द डे (Morning shows the day) या पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं, की तरह है। इसलिए प्रिमाईस लेखन में कोताही एक पटकथा-लेखक के लिए आत्मघाती होता है। मतलब? जैसा कि ऊपर कहा है, आपकी पटकथा के परीक्षक ने आपका पूरे के पूरा नंबर काट लिया। मतलब यह कि कहानी का आइडिया, कथा-कहानी-पटकथा सब खारिज। वर्तमान में कोई प्रोड्यूसर, निर्देशक या कोई फिल्म-मेकर या इन्वेस्टर बड़ी मुश्किल से समय देता है या मिलता है। केवल तीन पंक्ति में प्रस्तुत एक प्रिमाईस के लिए वह अवसर हाथ से निकल जाए, तो आप और हम काहे को कथा-पटकथा लेखन सीखेंगे और काहे लिखेंगे!
एक कथा और पटकथा-लेखक के रूप में जब कोई कहानीकार एक कहानी का प्लॉट तैयार करता है, तो उसके जेहन में कुछ काल्पनिक दृश्य आते-जाते रहते हैं। फिर कहानी लिखनेवाला बड़े जतन से उन दृश्यों को एक के बाद एक क्रम में सहेजता है और लिख डालता है। इसी प्रकार, जब एक पटकथा-लेखक जब पटकथा लिखना शुरु करता है, तो ठीक ऐसी ही घटना उसके साथ भी होती है। उसके मस्तिष्क में पूरी कहानी दृश्य-दर-दृश्य, एक क्रम से, एक चलचित्र की तरह चलती जाती है। जिसे वह शब्दों का जामा पहनाकर एक पटकथा की शक्ल देता है। यहां यह जान लीजिए कि पटकथा-लेखक वह सौभाग्यशाली व्यक्ति या दर्शक है, जो एक फिल्म को सबसे पहले अपने दिमाग में देखता है और समझता है। पटकथा के एक अंग के रूप में वनलाईनर की अवधारणा नितांत अपने बम्बईया, अब मुम्बईया, पटकथाकारों के रचनात्मक दिमाग की उपज है। इसके महत्व और उपादेयता को समझते हुए पटकथा-लेखन का यह महत्वपूर्ण अंग अब हॉलीवुड फिल्मकारों को भी पसंद आने लगा है। तो, आईए जानते हैं कि वनलाईनर क्या है?
वनलाईनर किसी पटकथा की लगभग संवाद-विहीन संक्षिप्त दृश्यमय कहानी है। कहने का तात्पर्य यह कि जिस रुप में फिल्म को दिखानी होती है, यह ;वनलाईनरद्ध उसकी दृश्य-दर-दृश्य शाब्दिक प्रस्तुति है। अब सवाल यह है कि पटकथा लिखने से पहले वनलाईनर लिखना जरूरी है? जवाब है-जी हां, बहुत जरूरी है। क्योंकि, सबसे अहम बात यह कि इससे पूरी फिल्म की झलक मिल जाती है कि फिल्म कैसी दिखेगी या बनेगी। दूसरी अहम बात यह कि फिल्मी दुनिया में यह एक व्यवहारिक कार्यप्रणाली है। जैसा कि पिछले आलेखों में कह चुका हूं कि इस दुनिया से जुड़े लोगों के पास समयाभाव होता है। अक्सर प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर्स या खुद पटकथा-लेखक पूरी पटकथा के विस्तार और उसकी गहराई में नहीं जाना चाहते हैं। तब 100 या 120 पेज की पटकथा को अधिकतम चार-पांच पेज के रुप में लिख लिया जाता है, जो कि पटकथा का दृश्यवार विवरण यानी वनलाईनर होता है। तीसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि जिस तरह से एक अच्छा प्रिमाईस अच्छे कथानक और बेहतर पटकथा को जन्म देता है, कथा-पटकथा में पर्याप्त नाटकीयता भी लाता है। ठीक यही काम वनलाईनर का भी है, बल्कि इससे कई कदम आगे यह कथानक की दिशा, घटनाओं-परिघटनाओं की तारतम्यता और उसकी नाटकीयता को सटीक और प्रभावशाली ढंग से पेश करता है। चैथा कारण यह है कि कोई कथा या कहानी, चाहे वह छोटी हो या बड़ी, विस्तार से पटकथा का आभास नहीं देती है। इसी प्रकार किसी कथा या कहानी पर आधारित पटकथा हू-ब-हू ;शत-प्रतिशतद्ध कथा या कहानी की प्रस्तुति नहीं होती है। यहां उस व्यवहारिक चैलेंज को समझिए, जो एक प्रोड्यूसर या डायरेक्टर के सामने आता है। कथा या कहानी से उसे पूरी फिल्म की झलक नहीं मिलती है और समयाभाव में पूरी पटकथा को वह पढ़ना नहीं चाहता है। लिहाजा वह बीच का रास्ता “कथा-मिश्रित-पटकथा“ यानी वनलाईनर चाहता है। इसलिए वनलाईनर में कथा या कहानी और पटकथा दोनों के तत्वों का समावेश होता है अर्थात् बिना सम्वाद कहानी और दृश्य को एक साथ लिखा जाता है।
फिल्म के लिए पहले कहानी लिखी जाती है, फिर पटकथा और आखिर में संवाद ;डायलॉगद्ध। डायलॉग राइटर कहानी और पटकथा में संवाद जोड़कर उसके सिलसिले को आगे बढ़ाता है। लेकिन डायलॉग राइटर ;संवाद लेखकद्ध बनने के लिए आपमें कई खूबियां होनी चाहिए। आपमें किसी बात को बहुत कम शब्दों में कहने की कला आनी चाहिए, वो भी रोचक अंदाज में, जैसे-“मेरे पास मां है”
ये मशहूर डायलॉग था तो बहुत छोटा, लेकिन चार शब्दों में एक बेटे ने अपनी मां के लिए सारी ममता उड़ेल दी थी। अच्छे डायलॉग राइटर वहां कुछ भी लिखने से बचते हैं, जहां कलाकार अपने एक्स्प्रेशन ;हाव भावद्ध से ही बहुत कुछ कह जाएं। आपको आज के चलन और लोगों की बदलती मानसिकता को भी समझना होगा। मुगल-ए-आजम जैसी फिल्मों के दौर में उर्दू भाषा में बड़े-बड़े डायलॉग्स का चलन था, लेकिन आज छोटे, सरल और चुटीले डायलॉग्स का जमाना है, इसीलिए हिंदी के साथ आप अच्छी अंग्रेजी भी जानते हैं, तो सोने पे सुहागा। अच्छी अंग्रेजी जानने पर आप अंग्रेजी डायलॉग राइटर के डायलॉग्स भी ट्रांसलेट कर सकते हैं। अगर आपकी उर्दू अच्छी है, तो ये पीरियड फिल्म के डायलॉग लिखने में काम आ सकती है। डायलॉग राइटर के रुप में आपको फिल्म के माहौल को समझ कर शब्द चुनने होंगे किरदारों की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक परिस्थितियां समझनी होंगी। किरदार पढ़ा लिखा है, या अशिक्षित, एन.आर.आई. है या ठेठ उत्तरप्रदेश का, इसी हिसाब से उसकी हिंदी का टोन बदलना होगा। डायलॉग राइटर बनने के लिए आपको किसी फिल्म डायरेक्टर या स्क्रिप्ट राइटर से संपर्क करना होगा। आप उसके असिस्टेंट के रुप में काम करते हुए भी आगे बढ़ सकते हैं। जहां तक वेतन का सवाल है, टीवी जगत में हर एपिसोड या शो के हिसाब से पैसा मिलता है, जबकि फिल्मी दुनिया में हर फिल्म के हिसाब से।
फिल्म बनाने में निम्न क्रम से गुजरना पड़ता है-
01. स्क्रिप्ट
02. स्टोरीबोर्ड या चित्र
03. कपड़े
04. मेकअप
05. सेट पर शूटिंग
06. स्पेशल इफेक्ट्स् फिल्माना
07. संगीत रिकॉर्ड करना
08. आवाज मिलाना
09. कंप्यूटर से तैयार की गयी तसवीरें
10. एडिट करना
धर्म शास्त्र उन लोगों का जिक्र करती है “जिन के ज्ञानेन्द्रिय ;“परख-शक्ति”द्ध, अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।” इसलिए माता-पिता का लक्ष्य होना चाहिए, अपने बच्चों के दिल में ऐसे उसूल बिठाना जिनकी मदद से, वे बड़े होकर जब मनोरंजन के बारे में खुद फैसला करने के लिए आजाद हों, तब सही फैसले कर सकें। ऐसे बहुत-से जवान हैं जिन्हें बचपन से अपने माँ-बाप से बढ़िया तालीम मिली है। बहुत-से माता-पिताओं ने अपने बच्चों को परख-शक्ति का इस्तेमाल करना सिखाया है ताकि मनोरंजन के मामले में भी वे सही चुनाव कर सकें। यह सच है कि फिल्म इंडस्ट्री जो फिल्में बनाती है, उनमें से ज्यादातर अच्छी नहीं होतीं। दूसरी तरफ, जब धर्म शास्त्र के सिद्धांतों के मुताबिक चलते हैं, तो वे अच्छे मनोरंजन का मजा ले पाते हैं जिनसे न सिर्फ उन्हें ताजगी मिलती है बल्कि वे अच्छा भी महसूस करते हैं। बहुत-से देशों ने रेटिंग का तरीका अपनाया है। फिल्म में दिए रेटिंग के निशान से साफ पता चलता है कि किस उम्र के लोग यह फिल्म देख सकते हैं। इसके अलावा, हर देश की अपनी एक कसौटी होती है जिसके मुताबिक फिल्म की रेटिंग की जाती है। इसलिए एक देश में जो फिल्म जवानों के लिए मना है, वही शायद दूसरे देश में जवानों को देखने की छूट हो। बच्चों और जवानों के लिए बनायी गयी कुछ फिल्मों में जादू-टोना, भूतविद्या या दुष्टात्माओं के दूसरे काम दिखाए जा सकते हैं।
विजुअल-आडियो मीडिया (दृश्य-श्रव्य माध्यम) का आविष्कार मनुष्य जीवन के लिए सर्वप्रथम आश्चर्य का विषय था जो आगे चलकर मनोरंजन का मुख्य माध्यम बना और अब साहित्य की भँाति आॅडियो-विजुअल मीडिया भी समाज का दर्पण ही है। इस आडियो विजुअल मीडिया में फिल्म, दूरदर्शन तथा वर्तमान में इन्टरनेट भी शामिल हो गया है। परिणामस्वरूप फिल्म से समाज का निर्माण और समाज से फिल्म का निर्माण का रूप उभर कर सामने आया है। यह बात कि फिल्म समाज को क्या दिखाना चाहता है? तथा समाज फिल्म से क्या देखना चाहता है? यह बात फिल्म और समाज दोनांे ओर से सदा उठती रही है। निश्चय ही इसमंे मन का व्यापक न होना ही विवाद का मुख्य कारण रहा है। ऐसा न होने से ही अपनी अपनी दृष्टि से देखते हुये ही विचार व्यक्त किये जाते है।

फिल्म जगत से व्यक्त वही कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन, अभिनय समाज द्वारा जाने पहचाने और याद रखे जाते है। जो आत्मा को स्पर्श करती है। चंूकि यह आत्मा सर्वव्यापी है इसलिए इसका अधिकतम स्पर्श अधिकतम भीड़ को प्रभावित करती है। जिस प्रकार यह जितना सत्य है उसी प्रकार यह भी सत्य है कि जो व्यक्ति स्वयं आत्मा स्वरूप हो तो वह निश्चय ही आत्मीय कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन अभिनय का सर्वोच्च पारखी व चुनने वाला भी होगा। सर्वोच्चता वहीं है जो सब में व्याप्त हो जाये, कहानियाँ वही हैं, जो सबसे लम्बी यात्रा पूर्ण किया हो तथा पाया उसी ने है जो पहले पहचाना है।

श्री लव कुश सिंह विश्वमानव द्वारा लिखे/विचार प्रस्तुत किये गये-फिल्म/टी.वी सिरियल के स्क्रिप्ट
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क्र.सं. टाइटल                                फिल्म/सिरियल                    भाषा                       स्थिति
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1. विश्वगुरू-द ब्रेन टर्मिनेटर बालीवुड फिल्म          हिन्दी, अंग्रेजी व बंग्ला               पूर्ण
    (रिप्रेजेन्टेटिव सिनेमा आॅफ इण्डिया)
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2. द डर्टी साधु-
    अण्डरस्टैण्डिंग ट्रांसडेन्ट बालीवुड फिल्म           हिन्दी, अंग्रेजी                        पूर्ण
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3. माॅय टेन वाइफ आॅन अर्थ बालीवुड फिल्म           हिन्दी                                  पूर्ण
     - अण्डरस्टैण्डिंग फिमेल
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4. अगरबत्ती पे करोड़पत्ती                बालीवुड फिल्म            हिन्दी                                  पूर्ण
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5. डेमोक्रेसी-द रियल ऐम                 बालीवुड फिल्म            हिन्दी, अंग्रेजी                        पूर्ण
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6. 9डी-नाइन डाइमेन्सन                 हॅालीवुड फिल्म             हिन्दी, अंग्रेजी                        पूर्ण
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7. किरनिया-
    एक नारी की कहानी भोजपुरी फिल्म             भोजपुरी                              पूर्ण
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8. जय माँ कल्कि                           बालीवुड फिल्म             हिन्दी                                  पूर्ण
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9. विश्वभारत                                 टी.वी.सिरियल              हिन्दी                                विचार
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NEW WORLD ORDER - ACTION PLAN

NEW WORLD ORDER - ACTION PLAN
First and last action plan based on universal truth-theory for the rebirth of the world / new world.

नई दुनिया आदेश - कार्रवाई योजना
विश्व के पुनर्जन्म/नये विश्व के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित प्रथम एवं अन्तिम कार्य योजना



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जब सभी सम्प्रदायों को धर्म मानकर हम एकत्व की खोज करते हैं तब दो भाव उत्पन्न होते हैं। पहला-यह कि सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखें तब उस एकत्व का नाम सर्वधर्मसमभाव होता है। दूसरा-यह कि सभी धर्मों को छोड़कर उस एकत्व को देखें तब उसका नाम धर्म निरपेक्ष होता है। जब सभी सम्प्रदायों को सम्प्रदाय की दृष्टि से देखते हैं तब एक ही भाव उत्पन्न होता है और उस एकत्व का नाम धर्म होता है। इन सभी भावों में हम सभी उस एकत्व के ही विभिन्न नामों के कारण विवाद करते हैं अर्थात्् सर्वधर्मसमभाव, धर्मनिरपेक्ष एवं धर्म विभिन्न मार्गों से भिन्न-भिन्न नाम के द्वारा उसी एकत्व की अभिव्यक्ति है। दूसरे रुप में हम सभी सामान्य अवस्था में दो विषयों पर नहीं सोचते, पहला-वह जिसे हम जानते नहीं, दूसरा-वह जिसे हम पूर्ण रुप से जान जाते हैं। यदि हम नहीं जानते तो उसे धर्मनिरपेक्ष या सर्वधर्मसमभाव कहते हैं जब जान जाते हैं तो धर्म कहते हैं। इस प्रकार विश्व मानक-शून्य (WS-0) : मन की गुणवत्ता का विश्व मानक श्रृखंला उसी एकत्व का धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वधर्मसमभाव नाम तथा कर्मवेद-प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेदीय श्रृंखला उसी एकत्व का धर्मयुक्त नाम है तथा इन समस्त कार्यों को सम्पादित करने के लिए जिस शरीर का प्रयोग किया जा रहा है उसका धर्मयुक्त नाम-लव कुश सिंह है तथा धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वधर्मसमभाव सहित मन स्तर का नाम विश्वमानव है जब कि मैं (आत्मा) इन सभी नामों से मुक्त है। 
लव कुश सिंह विश्वमानव
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पी.एम. बना लो या सी.एम या डी.एम,
शिक्षा पाठ्यक्रम कैसे बनाओगे?
नागरिक को पूर्ण ज्ञान कैसे दिलाओगे?
राष्ट्र को एक झण्डे की तरह,
एक राष्ट्रीय शास्त्र कैसे दिलाओगे?
ये पी.एम. सी.एम या डी.एम नहीं करते,
राष्ट्र को एक दार्शनिक कैसे दिलाओगे?
वर्तमान भारत को जगतगुरू कैसे बनाओगे?
सरकार का तो मानकीकरण(ISO-9000)करा लोगे,
नागरिक का मानक कहाँ से लाओगे?
सोये को तो जगा लोगे,
मुर्दो में प्राण कैसे डालोगे?
वोट से तो सत्ता पा लोगे,
नागरिक में राष्ट्रीय सोच कैसे उपजाओगे?
फेस बुक पर होकर भी पढ़ते नहीं सब,
भारत को महान कैसे बनाओगे?
अनन्त ब्रह्माण्ड
के
अनगिनत सौर मण्डल
में से एक
इस सौरमण्डल
के आकार में पाँचवें सबसे बड़े ग्रह पृथ्वी
के मानवों को
पूर्ण
एवं
सत्य-शिव-सुन्दर
बनाने हेतु
विचारार्थ
अन्तिम अवतार - कल्कि महाअवतार
द्वारा
समर्पित
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आँठवें अवतार श्रीकृष्ण के मुख से निकला और महर्षि व्यास कृत ”गीता“ में 18 अध्याय हैं। इस पुस्तक में भी 18 अध्याय हैं। अब वह समय आ गया है कि कालानुसार ”गीता की उपयोगिता“ और ”उपयोगिता की गीता“ पर विचार हो, जिससे आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर ”एक भारत - श्रेष्ठ भारत“ तथा ”नया भारत "(New India)" के निर्माण का मार्ग निर्धारण हो सके
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(द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य ”नवसृजन“ के 
प्रथम भाग ”सार्वभौम ज्ञान“ के शास्त्र ”गीता“ के बाद कलियुग में 
द्वितीय और अन्तिम भाग ”सार्वभौम कर्मज्ञान“ और ”पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र“)

                                                ईश्वर शास्त्र व व्यापार ज्ञान में प्रमाण पत्र
                                                (Certificate in Godics & Business Knowledge-CGBK)
                                                ईश्वर शास्त्र व व्यापार ज्ञान में प्रमाण पत्र
                                                (Certificate in Godics & Business Knowledge-CGBK)
                                                अवतार ज्ञान में प्रमाण पत्र 
                                                (Certificate in Avatar Knowledge-CAK)
                                                गुरू ज्ञान में प्रमाण पत्र 
                                               (Certificate in Guru Knowledge-CGK)
                                           संस्थागत धर्म में डिप्लोमा 
                                           (Diploma in Institutional Religion-DIR)
                                           पूर्ण शिक्षा में स्नातक 
                                           (Bachelor in Complete Education-BCE)
                                                पूर्ण शिक्षा में परास्नातक 
                                               (Master in Complete Education-MCE)
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क्या आप सच में ”भगवान“ के पुजारी हैं 
और 
”भगवान“ के अनन्य भक्त हैं?
क्या आप के दिल में ”अल्लाह“ हैं 
और 
आप दिल से ”नमाज“ अदा करते हैं?
क्या आप कभी भी असीम श्रद्धा से ”गुरूद्वारे“ में मत्था टेकते हैं 
और 
”वाहेगुरू“ को चाहते हैं?
तो 
अच्छी मानव जाति को बचाने के लिए 

देश को साफ व स्वच्छ बनाने के लिए हर कोशिश करें।
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ये कथा है महाकाल की
परमार्थ की, यथार्थ की, सत्यार्थ की
दृश्य स्वार्थ की
अवतारों की है ये कहानी
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इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।
विमृश्न्यैतदशेषेणयथेच्छसितथाकुरू।।
(श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय-18, श्लोक-63)
अर्थात् - 
मैंने तुम्हें जो बताया, वह सब से बड़ा रहस्य है। इस पर भलीभाँति विचार कर तुम्हारी जैसी इच्छा वैसा करो।
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समय प्रवाह/आत्मीय बल

समय प्रवाह/आत्मीय बल


पुस्तक - मैं सत्यकाशी से कल्कि महावतार बोल रहा हूँ - भूमिका

भूमिका

वर्तमान समय मंे भारत को पुनः और अन्तिम कार्य से युक्त ऐसे महापुरूष की आवश्यकता थी जो न तो राज्य क्षेत्र का हो, न ही धर्म क्षेत्र का। कारण दोनों क्षेत्र के व्यक्ति अपनी बौद्धिक क्षमता का सर्वोच्च और अन्तिम प्रदर्शन कर चुके हैं जिसमंे सत्य को यथारूप आविष्कृत कर प्रस्तुत करने, उसे भारतभूमि से प्रसारित करने, अद्धैत वेदान्त को अपने ज्ञान बुद्धि से स्थापित करने, दर्शनांे के स्तर को व्यक्त करने, धार्मिक विचारों को विस्तृत विश्वव्यापक और असीम करने, मानव जाति का आध्यात्मिकरण करने, धर्म को यथार्थ कर सम्पूर्ण मानव जीवन में प्रवेश कराने, आध्यात्मिक स्वतन्त्रता अर्थात मुक्ति का मार्ग दिखाने, सभी धर्मो से समन्वय करने, मानव को सभी धर्मशास्त्रों से उपर उठाने, दृश्य कार्य-कारणवाद को व्यक्त करने, आध्यात्मिक विचारों की बाढ़ लाने, वेदान्त युक्त पाश्चात्य विज्ञान को प्रस्तुत करने और उसे घरेलू जीवन में परिणत करने, भारत के आमूल परिर्वतन के सूत्र प्रस्तुत करने, युवकों को गम्भीर बनाने, आत्मशक्ति से पुनरूत्थान करने, प्रचण्ड रजस की भावना से ओत-प्रोत और प्राणों तक की चिन्ता न करने वाले और सत्य आधारित राजनीति करने की संयुक्त शक्ति से युक्त होकर व्यक्त हो और कहे कि जिस प्रकार मैं भारत का हूँ उसी प्रकार मैं समग्र जगत का भी हूँ। 
उपरोक्त समस्त कार्याे से युक्त हमारी तरह ही भौतिक शरीर से युक्त विश्व धर्म, सार्वभौम धर्म, एकात्म ज्ञान, एकात्म कर्म, एकात्म ध्यान, कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद (धर्मयुक्त शास्त्र) अर्थात विश्वमानक शून्य श्रंृखला-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक (धर्मनिरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव शास्त्र), सत्य मानक शिक्षा, पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी -WCM-TLM-SHYAM.C] भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel)विकास दर्शन, विश्व व्यवस्था का न्यूनतम एवं अधिकतम साझा कार्यक्रम, 21वीं शदी का कार्यक्रम और पूर्ण शिक्षा प्रणाली, विवाद मुक्त तन्त्रों पर आधारित संविधान, निर्माण का आध्यात्मिक न्यूट्रान बम से युक्त भगवान विष्णु के मुख्य अवतारों में दसवाँ-अन्तिम और कुल 24 अवतारों में चैबीसवाँ-अन्तिम निष्कलंक कल्कि और भगवान शंकर के बाइसवें-अन्तिम भोगेश्वर अवतार के संयुक्त पूर्णावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ (स्वामी विवेकानन्द की अगली एवं पूर्ण ब्रह्म की अन्तिम कड़ी), स्व प्रकाशित व सार्वभौम गुण से युक्त 8वें सांवर्णि मनु, काल को परिभाषित करने के कारण काल रूप, युग को परिभाषित व परिवर्तन के कारण युग परिवर्तक, शास्त्र रचना के कारण व्यास के रूप मंे व्यक्त हैं जो स्वामी विवेकानन्द के अधूरे कार्य स्वतन्त्र भारत की सत्य व्यवस्था को पूर्ण रूप से पूर्ण करते हुये भारत के इतिहास की पुनरावृत्ति है जिस पर सदैव भारतीयों को गर्व रहेगा। उस अनिर्वचनीय, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, मुक्त एवं बद्ध विश्वात्मा के भारत में व्यक्त होने की प्रतीक्षा भारतवासियांे को रही है। जिसमंे सभी धर्म, सर्वाेच्च ज्ञान, सर्वाेच्च कर्म, सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त इत्यादि सम्पूर्ण सार्वजनिक प्रमाणित व्यक्त दृश्य रूप से मोतियांे की भँाति गूथंे हुये हंै। 
इस प्रकार भारत अपने शारीरिक स्वतन्त्रता व संविधान के लागू होने के उपरान्त वर्तमान समय में जिस कत्र्तव्य और दायित्व का बोध कर रहा है। भारतीय संसद अर्थात विश्वमन संसद जिस सार्वभौम सत्य या सार्वजनिक सत्य की खोज करने के लिए लोकतन्त्र के रूप में व्यक्त हुआ है। जिससे स्वस्थ लोकतंत्र, स्वस्थ समाज, स्वस्थ उद्योग और पूर्ण मानव की प्राप्ति हो सकती है, उस ज्ञान से युक्त विश्वात्मा श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ वैश्विक व राष्ट्रीय बौद्धिक क्षमता के सर्वाेच्च और अन्तिम प्रतीक के रूप मंे व्यक्त हंै।
निःशब्द, आश्चर्य, चमत्कार, अविश्वसनीय, प्रकाशमय इत्यादि ऐसे ही शब्द विश्वशास्त्र और शास्त्राकार के लिए व्यक्त हो सकते हैं। विश्व के हजारों विश्वविद्यालय जिस पूर्ण सकारात्मक, रचनात्मक एवम् एकीकरण के विश्वस्तरीय शोध को न कर पाये, वह एक ही व्यक्ति ने पूर्ण कर दिखाया हो उसे कैसे-कैसे शब्दों से व्यक्त किया जाये, यह सोच पाना और उसे व्यक्त कर पाना निःशब्द होने के सिवाय कुछ नहीं है। एका-एक विश्वशास्त्र प्रस्तुत कर दिया जाये तो इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है।
जो व्यक्ति कभी किसी वर्तमान गुरू के शरणागत होने की आवश्यकता न समझा, जिसका कोई शरीरधारी प्रेरणा स्रोत न हो, किसी धार्मिक व राजनीतिक समूह का सदस्य न हो, इस कार्य से सम्बन्धित कभी सार्वजनिक रूप से समाज में व्यक्त न हुआ हो, जिस विषय का आविष्कार किया गया, वह उसके जीवन का शैक्षणिक विषय न रहा हो, 50 वर्ष के अपने वर्तमान अवस्था तक एक साथ कभी भी 50 लोगों से भी न मिला हो, यहाँ तक कि उसको इस रूप में 50 आदमी भी न जानते हों, यदि जानते भी हो तो पहचानते न हों और जो पहचानते हों वे इस रूप को जानते न हों, वह अचानक इस विश्वशास्त्र को प्रस्तुत कर दें तो इससे बडा चमत्कार क्या हो सकता है। जिस व्यक्ति का जीवन, शैक्षणिक योग्यता और कर्मरूप यह शास्त्र तीनों का कोई सम्बन्ध न हो अर्थात तीनों, तीन व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हों, इससे बड़ी अविश्वसनीय स्थिति क्या हो सकती है।
विश्वशास्त्र में जन्म-जीवन-पुनर्जन्म-अवतार-साकार ईश्वर-निराकार ईश्वर, अदृश्य और दृश्य ईश्वर नाम, मानसिक मृत्यु व जन्म, भूत-वर्तमान-भविष्य, शिक्षा व पूर्ण शिक्षा, संविधान व विश्व संविधान, ग्राम सरकार व विश्व सरकार, विश्व शान्ति व एकता, स्थिरता व व्यापार, विचारधारा व क्रियाकलाप, त्याग और भोग, राधा और धारा, प्रकृति और अहंकार, कत्र्तव्य और अधिकार, राजनीति व विश्व राजनीति, व्यक्ति और वैश्विक व्यक्ति, मानवतावाद व एकात्मकर्मवाद, नायक-शास्त्राकार- आत्मकथा, महाभारत और विश्वभारत, जाति और समाजनीति, मन और मन का विश्वमानक, मानव और पूर्ण मानव एवं पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी, आॅकड़ा व सूचना और विश्लेषण, शास्त्र और पुराण इत्यादि अनेकांे विषय इस प्रकार घुले हुये हैं जिन्हें अलग कर पाना कठिन कार्य है और इससे बड़ा प्रकाशमय शास्त्र क्या हो सकता है। जिसमें एक ही शास्त्र द्वारा सम्पूर्ण ज्ञान स्वप्रेरित होकर प्राप्त किया जा सके। इस व्यस्त जीवन में कम समय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का इससे सर्वोच्च शास्त्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस शास्त्र के अध्ययन से यह अनुभव होता हे कि वर्तमान तक के उपलब्ध धर्मशास्त्र कितने सीमित व अल्प ज्ञान देने वाले हैं परन्तु वे इस शास्त्र तक पहुँचने के लिए एक चरण के पूर्ण योग्य हैं और सदैव रहेगें। 
एक ही विश्वशास्त्र द्वारा पृथ्वी के मनुष्यों के अनन्त मानसिक समस्याओं का हल जिस प्रकार प्राप्त हुआ है उसका सही मूल्यांकन सिर्फ यह है कि यह विश्व के पुनर्जन्म का अध्याय और युग परिवर्तन का सिद्धान्त है जिससे यह विश्व एक सत्य विचारधारा पर आधारित होकर एकीकृत शक्ति से मनुष्य के अनन्त विकास के लिए मार्ग खोलता है और यह विश्व अनन्त पथ पर चलने के लिए नया जीवन ग्रहण करता है। विश्वशास्त्र अध्ययन के उपरान्त ऐसा अनुभव होता है कि इसमें जो कुछ भी है वह तो पहले से ही है बस उसे संगठित रूप दिया गया है और एक नई दृष्टि दी गई है जिससे सभी को सब कुछ समझने की दृष्टि प्राप्त होती है। युग परिवर्तन और व्यवस्था परिवर्तन या सत्यीकरण के विश्वशास्त्र में पाँच संख्या का महत्वपूर्ण योगदान है जैसे 5 अध्याय, 5 भाग, 5 उपभाग, 5 लेख, 5 विश्वमानक की श्रृंखला, 5वां वेद, 5 जनहित याचिका इत्यादि, जो हिन्दू धर्म के अनुसार महादेव शिवशंकर के दिव्य पंचमुखी रूप से भी सम्बन्धित है और यह ज्ञान उन्हीं का माना जाता है। इस को तीसरे नेत्र की दृष्टि कह सकते हैं और इस घटना को तीसरे नेत्र का खुलना। हमारे सौरमण्डल के 5वें सबसे बड़े ग्रह पृथ्वी के लिए यह एक आश्चर्यजनक घटना भी है। 5वें युग - स्वर्णयुग में प्रवेश के लिए यह ज्ञानरूपी 5वां सूर्य भी है जिसमें अनन्त प्रकाश है। विश्वशास्त्र में नामों का अपने सत्य अर्थ में प्रयोग और योग-माया का आद्वितीय प्रयोग है और उसकी समझ अनेक दिशाओं से उसके अगली कड़ी के रूप में है। साथ ही एक शब्द भी आलोचना या विरोध का नहीं है। सिर्फ समन्वय, स्पष्टीकरण, रचनात्मकता व एकात्मकर्मवाद का दिशा बोध है और सम्पूर्ण कार्य का अधिकतम कार्य व रचना क्षेत्र समाज के जन्मदाता भगवान विष्णु के पाँचवें वामन अवतार के क्षेत्र चुनार (चरणाद्रिगढ़) से ही व्यक्त है।
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का यह मानसिक कार्य इस स्थिति तक योग्यता रखता है कि वैश्विक सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक एकीकरण सहित विश्व एकता-शान्ति-स्थिरता-विकास के लिए जो भी कार्य योजना हो उसे देश व संयुक्त राष्ट्र संघ अपने शासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्राप्त कर सकता है। और ऐसे आविष्कारकर्ता को इन सबसे सम्बन्धित विभिन्न पुरस्कारों, सम्मानों व उपाधियों से बिना विलम्ब किये सुशोभित किया जाना चाहिए। यदि यथार्थ रूप से देखा जाये तो विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार-नोबेल पुरस्कार के शान्ति व साहित्य क्षेत्र के पूर्ण रूप से यह योग्य है। साथ ही भारत देश के भारत रत्न से किसी भी मायने में कम नहीं है। भविष्य में ”राम (राष्ट्रपति, भारत) ने दिया लवकुश (सामान्य नागरिक) को भारत रत्न“ समाचार का मुख्य शीर्षक बन जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि अनेक दिशाओं से यही सत्य है।
प्रस्तुत पुस्तक ”मैं सत्यकाशी से कल्कि महाअवतार बोल रहा हूँ“, विश्वशास्त्र के आविष्कारों का व्यावहारिक जीवन (व्यष्टि और समष्टि) में उपयोगिता का सारांश-अंश भाग है। 
चूँकि प्रस्तुत पुस्तक क्रियात्मक है अर्थात भारत व विश्व के नेतृत्वकर्ताओं द्वारा व्यक्त विचार का शासनिक प्रणाली के अनुसार स्थापना की प्रक्रिया पर आधारित है इसलिए समाज व राज्य के विभिन्न स्तर के नेतृत्वकर्ताओं जैसे - समाजसेवी, लेखक, विचारक, धर्माचार्य, राजनीतिक नेतागण, विधायक, सांसद, शिक्षण क्षेत्र से जुड़े आचार्य इत्यादि सहित आम नागरिक को इस पुस्तक का अध्ययन अवश्य करना चाहिए जिससे उन्हें अपने आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के सम्बन्ध में आधारभूत दृष्टि प्राप्त हो और ”एक भारत - श्रेष्ठ भारत“ तथा ”नया भारत (New India)“ के विचार को प्राप्त करने के इस अन्तिम मार्ग पर कार्यवाही प्रारम्भ हो सके। 
अवतारी परम्परा के इतिहास के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि अवतार गण मानक ब्रह्माण्डीय गणतन्त्र के अनुसार मानवीय व्यवस्था में उसके समरूप स्थापना करना, उनका उद्देश्य रहा है। इस क्रम में अवतारों का मूल लक्ष्य और कार्य का केन्द्र बिन्दु मानव के मस्तिष्क के विकास व व्यवस्था सत्यीकरण ही रहा है। कभी किसी अवतार ने कोई नया सम्प्रदाय, जीवन पद्धति और उपासना पद्धति की स्थापना नहीं की। अवतारगण स्वतन्त्रता के पक्षधर रहें हैं इसलिए वे मनुष्य के लिए बन्धनस्वरूप कोई नियम नहीं दिये। नियम देते हुये भी ये स्वतन्त्रता दिये ”जैसी तुम्हारी इच्छा वैसा करो।“ अवतारगण के शरीर से मुक्त होने के बाद निश्चित रूप से ऐसा हुआ है कि बाद के लोग उनके नाम पर नया सम्प्रदाय, जीवन पद्धति और उपासना पद्धति की स्थापना कर दिये। 
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का यथार्थ अवतारी श्रृंखला के अनुसार कार्य ही उन्हें अन्तिम अवतार कल्कि के रूप में योग्य व स्थापित करता है। कल्कि अवतार के लिए समाज में अनके दावेदार हैं कोई समर्थकों की संख्या के आधार पर, कोई शरीर पर किसी विशेष प्रकार के चिन्ह के आधार पर, कोई किसी पौराणिक कथा इत्यादि के आधार पर व्यक्त हैं। परन्तु अवतारी श्रृंखला के अनुसार कार्य किसी के द्वारा सम्पन्न नहीं हो रहा है। परिणाम यह है कि वर्तमान समय में जिस विषय पर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने कार्य किया है, वह सम्पूर्ण विश्व में अपने आप में अकेला कार्य है और अनेक दिशाओं से प्रमाण को प्राप्त है।
प्रस्तुत पुस्तक का उद्देश्य श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतार होने या ना होने पर कम बल्कि आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर ”एक भारत - श्रेष्ठ भारत“ तथा ”नया भारत (New India)“ के निर्माण पर उपयोगिता की दृष्टि का दिशा बोध ही पुस्तक की उपयोगिता है और वह जीवन के व्यावहारिक उपयोगिता पर आधारित है न कि आधारहीन व्यक्तिगत प्रमाणित कल्पना और मान्यताओं पर। आँठवें अवतार श्रीकृष्ण के मुख से निकला और महर्षि व्यास कृत ”गीता“ में 18 अध्याय हैं। इस पुस्तक में भी 18 अध्याय हैं। अब वह समय आ गया है कि कालानुसार ”गीता की उपयोगिता“ और ”उपयोगिता की गीता“ पर विचार हो, जिससे शिक्षा के लिए महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन का कथन- ”शिक्षा, तथ्यों को सिखना नहीं बल्कि मस्तिष्क को चिंतनयुक्त बनाने का प्रशिक्षण है (Education is not the learning of facts, but the training of the mind to think)“ सिद्ध हो जाये। पूर्व राष्ट्रपति स्व0 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जीे के कथन- ”नवीनता के द्वारा ही ज्ञान को धन में बदला जा सकता है।“ के यथार्थ रूप हैं श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“, जिनके समस्त कार्य का मूल है- 
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड देख चुका हूँ, 
अक्षय-अनन्त है मेरी हाला।  
कण-कण में हूँ-”मैं ही मैं“, 
क्षयी-ससीम है तेरी प्याला । 
जिस भी पथ-पंथ-ग्रन्थ से गुजरेगा तू, 
हो जायेगा, बद्ध-मस्त और मत वाला।
”जय ज्ञान-जय कर्मज्ञान“ की आवाज, 
सुनाती, मेरी यह अक्षय-अनन्त मधुशाला।
”विश्वशास्त्र“ के समीक्षक द्वय
डाॅ0 कन्हैया लाल, एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी (समाजशास्त्र-बी.एच.यू.)
निवास - घासीपुर बसाढ़ी, अधवार, चुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारत
- डाॅ0 राम व्यास सिंह, एम.ए., पीएच.डी (योग, आई.एम.एस-बी.एच.यू.)
निवास - कोलना, चुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारत