सत्य-आमंत्रण
01. काशी (वाराणसी)-सत्यकाशी को आमंत्रण
02. धार्मिक संगठन/संस्था को आमंत्रण
03. रियल इस्टेट/इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यवसायिक कम्पनी व एजेन्ट को आमंत्रण
04. छात्रों, बेरोजगारों व एम.एल.एम नेटवर्कर को आमंत्रण
05. सामाजिक उत्तरदायित्व पूर्ण करने हेतू आमंत्रण
01. काशी (वाराणसी)-सत्यकाशी को आमंत्रण
प्रत्येक काल के युग में युग परिवर्तन के कारण अवतार के अवतरण से एक नये तीर्थ का भी प्रकाश हो जाता है। इस प्रकार दृश्य काल के प्रथम और काल के पाँचवें युग का तीर्थ - सत्यकाशी क्षेत्र है।
किसी विषय के विकास व विस्तार के लिए आवश्यक होता है कि पहले उस विषय के भूतकाल व वर्तमान की स्थिति क्या है, उसे जाना जाय। क्योंिक इन्हीं आॅकड़ों पर आधारित होकर ही विकास व विस्तार की कार्य योजना बनायी जाती है। यह वैसे ही है जैसे कोई भी विद्यार्थी जब किसी कक्षा में प्रवेश लेता है तब उसे पिछली कक्षा की योग्यता अर्थात भूतकाल व वर्तमान की स्थिति बतानी पड़ती है। काशी क्षेत्र के विकास व विस्तार के पहले मानव व काशी क्षेत्र की भूतकाल व वर्तमान की स्थिति आप सबके सामने है जो माना व जाना जा चुका है। साथ ही विकास व विस्तार के लिए ये ही आधार आॅकड़े हैं। अगर ये सत्य हैं तो विकास व विस्तार भी सत्य ही होगें। जगत का प्रत्येक विषय विकास और विस्तार कर रहा है। मोक्षदायिनी काशी का भी विस्तार हो चुका है जो जीवनदायिनी सत्यकाशी के रूप में अपनी योग्यता को प्रस्तुत कर व्यक्त है।
शब्द से सृष्टि की ओर...
सृष्टि से शास्त्र की ओर...
शास्त्र से काशी की ओर...
काशी से सत्यकाशी की ओर...
और सत्यकाशी से अनन्त की ओर...
एक अन्तहीन यात्रा...............................
”सत् का कारण असत् कभी नहीं हो सकता। शून्य से किसी वस्तु का उद्भव नहीः कार्य-कारणवाद सर्वशक्तिमान है और ऐसा कोई देश-काल ज्ञात नहीं, जब इसका अस्तित्व नहीं था। यह सिद्धान्त भी उतना ही प्राचीन है, जितनी आर्य जाति। इस जाति के मन्त्र द्रष्टा कवियों ने उसका गौरव गान गया है। इसके दार्शनिकों ने उसको सूत्रबद्ध किया और उसकी वह आधारशिला बनायी, जिस पर आज का भी हिन्दू अपने जीवन का समग्र योजना स्थिर करता है। हिन्दुओं के बारह महीनों में कितने ही पर्व होते हैं और उनका उद्देश्य यही है कि धर्म में जितने बड़े-बड़े भाव है उनको सर्वसाधारण में फैलायें। परन्तु इसमें एक दोष भी है। साधारण लोग इनका यथार्थ भाव न जान उत्सवों में ही मग्न हो जाते हैं और उनकी पूर्ति होने पर कुछ लाभ न उठा ज्यों के त्यों बने रहते हैं। इस कारण ये उत्सव धर्म के बाहरी वस्त्र के समान धर्म के यथार्थ भावों को ढांके रहते हैं। समस्त ब्रह्माण्ड जब नित्य आत्मा ईश्वर का ही विराट शरीर है तब विशेष-विशेष स्थानों (तीर्थस्थान) के महात्म्य में आश्चर्य की क्या बात है? विशेष स्थानों पर उनका विशेष विकास है। कहीं पर आप ही से प्रकट होते हैं और कहीं शुद्ध सत्य मनुष्य के व्याकुल आग्रह से प्रकट होते हैं। फिर भी यह तुम निश्चित जानो कि इस मानव शरीर की अपेक्षा और कोई बड़ा तीर्थ नहीं है। इस शरीर में जितना आत्मा का विकास हो सकता है उतना और कहीं नहीं।“
- स्वामी विवेकानन्द
1. सत्यकाशी क्षेत्र निवासीयों को आमंत्रण
सत्यकाशी क्षेत्र का इतिहास और इसकी आध्यात्मिक विरासत अत्यन्त समृद्ध है। जरूरत थी इसकी समृद्धि पर एक ऐसे प्रोजेक्ट की जो इसे क्षेत्र को ऐसे उद्योग में स्थापित कर दे जो बीघे-विस्से में बँट रहे यहाँ के परिवार के सामने रोजगार के अन्तहीन मार्ग को खोल दे। आप सिर्फ अपने परिवार के बच्चे के प्रति चिन्तित हैं, मैं पूरे क्षेत्र के बच्चों के प्रति चिन्तित हूँ। यही आप में और मुझमें अन्तर है। सत्यकाशी क्षेत्र व्यापारिक शिक्षा संस्थानों से परिपूर्ण है। मैं यह चाहता हूँ कि इस क्षेत्र के विद्यार्थी विश्वशास्त्र के माध्यम से पूर्ण ज्ञान से युक्त और मानसिक रूप से स्वतन्त्र हों क्योंकि यह क्षेत्र हमारे प्रत्यक्ष कर्म का क्षेत्र है। विश्वशास्त्र में ब्रह्माण्ड और पृथ्वी की स्थिति सहित सभी धर्मो, दर्शनों, अवतारों और उनके संस्थापकों के ज्ञान, सभी देवी-देवताओं की शक्तियाँ और उत्पत्ति का कारण व कथा, महर्षि व्यास के पौराणिक कथा लेखन कला रहस्य का पहली बार खुलासा, पृथ्वी पर चल रहें अनेकों प्रकार के व्यापार इत्यादि के समावेश के साथ, वर्तमान और भविष्य की आवश्यकता का सम्पूर्ण प्रक्रिया उपलब्ध है। द्वापरयुग में भी सभी विचारों का एकीकरण कर एक शास्त्र ”गीता“ बनाया गया था। गीता, ज्ञान का शास्त्र है जबकि विश्वशास्त्र ज्ञान समाहित कर्मज्ञान का शास्त्र है। गीता, प्रकृति (सत्व, रज और तम) गुणों से ऊपर उठकर ईश्वरत्व से एकाकार की शिक्षा देती है जबकि विश्वशास्त्र उससे आगे ईश्वरत्व से एकाकार के उपरान्त ईश्वर कैसे कार्य करता है उस कर्मज्ञान के बारे में बताती है। आप चुनार क्षेत्र के लोग अपने दक्षिण दिशा के लोंगो को ”दखिनहाँ“ कहते हैं परन्तु आप लोंगो को मालूम होना चाहिए कि आप काशी (वाराणसी) के लिए ”दखिनहाँ“ हैं। पहले आप काशी के बराबर बनें। इस बराबरी का नाम ही सत्यकाशी है। भगवान बुद्ध ने बुद्धि, संघ और धर्म के शरण में जाने की शिक्षा दी थी। विश्वशास्त्र बुद्धि का सर्वोच्च उदाहरण है। श्रीराम के कारण चित्रकूट पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना, श्रीकृष्ण के कारण मथुरा, द्वारिका पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना, भगवान बुद्ध के कारण सारनाथ, कुशीनगर, बोधगया पर्यटन व धार्मिक क्षेत्र बना। ”विश्वशास्त्र“ के कारण सत्यकाशी स्थापित है। भगवान बुद्ध के कारण काशी के उत्तर में काशी का प्रसार हुआ, विश्वशास्त्र के कारण काशी के दक्षिण में काशी का प्रसार हो रहा है। अभी पिछले वर्षे में जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी ने दण्डी स्वामी शिवानन्द द्वारा लिखित और उनके द्वारा खोज पर आधारित पुस्तक ”वृहद चैरासी कोस परिक्रमा“ का श्री विद्यामठ में विमोचन किये हैं। सत्यकाशी क्षेत्र के निवासीयों को जानना चाहिए कि इस चैरासी कोस परिक्रमा में सत्यकाशी क्षेत्र के भाग वैकुण्ठपुर (नरायनपुर), शिवशंकरी धाम व चुनार भी शामिल हो चुके हैं। यदि आप पर्यटन उद्योग को समझते होंगे तो आपको यह मालूम होना चाहिए कि यह फैक्ट्री की भाँति बन्द नहीं होता। ”सत्यकाशी“ नाम किसी व्यक्ति का नाम नहीं, यह तो पूरे क्षेत्र का नाम है, न ही यह ”म्यूजिकल वाटर पार्क“ जैसी आम जनता को कुछ भी लाभ न देने वाली योजना है। आगे के वर्षों में पूर्वांचल राज्य का बनना तय है। ऐसे में मीरजापुर जिले से अलग होकर चुनार भी एक जिला बन सकता है। जिसके नाम का निर्धारण ”चुनार गढ़“, ”चरणाद्रि“, ”नैनागढ़“, ”सत्यकाशी“ इत्यादि या इनको मिलाकर नाम निर्धारण पर भी विचार करने की आवश्यकता आ गई है। सत्यकाशी क्षेत्र में स्थित बी.एच.यू. के दक्षिणी परिसर को मालवीय जी के सपनों को साकार करने हेतू उसे स्वतन्त्र बनाकर नाम ”सत्यकाशी हिन्दू विश्वविद्यालय“ करने के लिए भी प्रयास करना चाहिए। सत्यकाशी क्षेत्र के व्यक्ति भी ”सत्यकाशी“ शब्द का प्रयोग विभिन्न प्रकार जैसे- सत्यकाशी होटल, सत्यकाशी स्टुडियो, सत्यकाशी टेन्ट हाउस, सत्यकाशी हास्पिटल, सत्यकाशी पब्लिक स्कूल, सत्यकाशी बुक सेन्टर, सत्यकाशी क्रिकेट क्लब द्वारा सत्यकाशी कप, सत्यकाशी जागरण यात्रा इत्यादि नामों का प्रयोग कर अपने क्षेत्र का विकास कर सकते हैं। सत्यकाशी क्षेत्र में अनेक दर्शनीय स्थल हैं जहाँ व्यक्ति घूमने के लिए जाते हैं। ट्रेवेल्स से जुड़े व्यापारी विशेष स्थानों को घुमाने की योजना बनाकर ”सत्यकाशी दर्शन“ के नाम पर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जिन गाँवों के नाम भगवान के नाम पर हैं उस गाँव में उस भगवान के भव्य मन्दिर का निर्माण करना चाहिए एवं कोई न कोई उत्सव-आयोजन भी प्रारम्भ करना चाहिए। बहुत सारे व्यक्ति ऐसा सोचते हैं कि मन्दिरों से क्या होगा? लेकिन उन्हें नहीं पता कि मन्दिरों का कारोबार यदि बन्द हो जाये तो बेरोजगार हुए लोगों को कोई उद्योगपति या सरकार रोजगार कैसे दे पायेगी? जबकि रोजगार की समस्यायें दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है। ये सब केवल थोड़े से सोच में परिवर्तन से हो सकता है। ये अब भी हो सकता है अन्यथा करना तो पड़ेगा ही। क्षेत्रवासी इसे करें हम सभी तो राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सत्यकाशी को स्थापित करने में लगे ही हैं।
चुनार व मड़िहाऩ विधान सभा क्षेत्र को विकसित बनाने वाला प्रस्तावित ”सत्यकाशी नगर“ प्रत्येक दिन एक-एक कदम बढ़ रहा है और उसका नामकरण यूँ ही नहीं बल्कि वह वर्तमान की उपलब्धि, व्यापक पौराणिक आधार व कारण लिए हुए है। काशी (वाराणसी) के पास अब टाउनशिप के विकास के लिए बड़ी जमीन नहीं बची है। उन्हें पर्यटन के लिए चुनार व मीरजापुर के सिद्ध पहाड़ी क्षेत्र में ही आना होगा। काशी के विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के लिए भी हर प्रकार से यह क्षेत्र सुयोग्य है। चुनार क्षेत्रवासियों को अपने इतिहास को जानना चाहिए क्योंकि संसार में वो ही व्यक्ति, नाम एवं स्थान अमरता व विकास को प्राप्त होता है जिसका पौराणिक इतिहास हो या विश्व ऐतिहासिक कार्य हो, शेष सभी पशु-पक्षियों व कीड़ांे-मकोड़ों के भाँति आते हैं और चले जाते हैं।
आप सभी इस गलतफहमी में कभी न पड़े कि इस योजना को हमने प्रस्तुत किया है तो इसके निर्माण की जिम्मेदारी भी हमारी है। यह उसी भाँति है जिस प्रकार एक मकान के नक्शे को बनाने वाले के पास अनेकों प्रकार के नक्शे होते है या आपके जमीन के अनुसार नक्शा बनाता है और आप उसे लेकर अपना मकान बनाते हंै। सत्यकाशी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए एक नक्शा प्रस्तुत कर दिया है और आप सभी अपना घर स्वयं बना लें, या उनसे कहें जिन्हें आप अपना बहुमूल्य वोट देते हंै और पीछे-पीछे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ व हित के लिए लगे रहते हैं। हम केवल आपको उस नक्शे से परिचय मात्र करा रहे हैं जिससे इस क्षेत्र को पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए खुशहाली का मार्ग प्राप्त हो जाये। इस क्षेत्र के लिए हमारे कार्य की सीमा यहीं समाप्त होती है क्योंकि इससे जिन ईंट, गिट्टी, सीमेण्ट, बालू, भूमि इत्यादि के व्यापारी को लाभ है अगर वे नहीं सोचेंगे तो मुझे कोई लाभ नहीं है। मैं इस प्रकार का व्यापारी नहीं हूँ। ऐसा कार्य करने वाला जे.पी. ग्रुप आपके क्षेत्र में है। यहाँ के लोगों व अधिवक्ताओं को सम्पर्क कर प्रस्ताव देना चाहिए क्योंकि इससे कचहरी कार्य में भी तेजी आयेगी। हम लोग भी रियल स्टेट व टाउनशिप बनाने वाली कम्पनीयों तक इसे पहुँचा रहे हैं। मुझे सिर्फ सत्यकाशी क्षेत्र से मतलब है, नगर निर्माण से नहीं। सत्यकाशी परियोजना एक अतिदूरदर्शी विचार है जिसे लोग आज भी समझ सकते है और आने वाले समय में भी। इन परियोजनाओं को आपके सामने प्रस्तुत करने के साथ ही उन सक्षम व्यापारिक कम्पनीयों तक भी पहुँचाया जा रहा है जो इस कार्य को कर व्यापारिक दृष्टि से लाभ कमाने में रूचि रखती हैं। मैंने भी अपने जीवन में बहुत से धार्मिक स्थलों को देखा है और उनका अध्ययन किया है, और उस आधार पर ही इसे समाज के सामने लाने का प्रयत्न किया है।
इन सब कार्यों से आप हमसे यह पूछ सकते हैं कि ये सब करने से हमें क्या लाभ है? आपका प्रश्न सांसारिक व स्वाभाविक है क्योंकि आप उसे ही कार्य समझते हैं जिससे धन प्राप्त होता है। परन्तु मैं आपसे पूछता हूँ कि श्रीराम के नाम पर कितने का व्यापार है? श्रीकृष्ण के नाम पर कितने का कारोबार है?, शिव-शंकर, वैष्णों देवी, सांई बाबा इत्यादि के नाम पर कितने का कारोबार है? और इस कारोबार का मालिक कौन है? क्या उसका लाभ लेने के लिए वे आते हैं? ये ऐसे नाम व विचार के व्यापार हैं जो कभी बन्द नहीं होने वाले और न ही उसका वे लाभ लेने वाले हैं। ये एक विचार है, इस विचार पर मनुष्यों की आजिविका चलती है। सत्यकाशी, एक विचार है। अगर इससे इस क्षेत्र का लाभ होता है तो करो, अन्यथा कभी मत करो, इससे मेरा कोई मतलब नहीं है। प्रत्येक व्यापार एक विशेष विचार पर आधारित होता है। साधारणतया लोग यही सोचते हैं कि ज्ञान की बातों से क्या होगा, परन्तु ज्ञान ही समस्त व्यापार का मूल होता है। किसी विचार पर आधारित होकर आदान-प्रदान का नेतृत्वकर्ता व्यापारी और आदान-प्रदान में षामिल होने वाला ग्राहक होता है। ”रामायण“, ”महाभारत“, ”रामचरितमानस“ इत्यादि किसी विचार पर आधारित होकर ही लिखी गई है। यह वाल्मिीकि, महर्षि व्यास और गोस्वामी तुलसीदास का दुर्भाग्य है कि वे ऐसे समय में जन्म लिये जब काॅपीराइट और रायल्टी जैसी व्यवस्था नहीं थी अन्यथा वे वर्तमान समय के सबसे धनवान व्यक्ति होते। परन्तु इसी को दूरदर्शन पर दिखाकर रामानन्द सागर और बी.आर.चोपड़ा ने इसे सिद्ध किया। ”विश्वशास्त्र“ इसी श्रंृखला की अगली कड़ी है जिसका बाजार विश्वभर में मानव सृष्टि रहने तक है और इससे प्राप्त धन को सत्यकाशी के विकास में लगाने की योजना है।
सर्वप्रथम युग शारीरिक शक्ति आधारित था, फिर आर्थिक शक्ति आधारित वर्तमान युग चल रहा है। अब आगे आने वाला समय ज्ञान शक्ति आधारित हो रही है। वर्तमान में रहने का अर्थ है कि वैश्विक ज्ञान जहाँ तक पहुँच चुका है उसके बराबर स्वयं को रखना। किसी व्यक्ति या क्षेत्र को विकसित क्षेत्र तभी कहा जाता है जब वह शारीरिक, आर्थिक व मानसिक तीनों क्षेत्र में विकास करे। मानसिक विकास का परिणाम समाज क्षेत्र के सहयोग से सार्वजनिक कार्य का पूर्ण होना होता है। समाज का प्रथम जन्म चुनार क्षेत्र में भगवान विष्णु के 5वें अवतार वामन अवतार द्वारा हुआ था, जब प्रजा राज्य पर आधारित होने लगी थी। वर्तमान में भी ऐसी स्थिति बनी हुई है कि जनता अपने राज्य आधारित नेताओं से सम्पूर्ण विकास की उम्मीद रखती है। जबकि समाज आधारित कार्य शून्य है। समाज का अर्थ लोगों के बीच मात्र उठना-बैठना नहीं है बल्कि लोंगो के सहयोग से सार्वजनिक कार्य करना है। पद पर बैठकर मनुष्य पद के अनुसार एक निश्चित काम ही कर सकता है समाज का विकास नहीं। इसलिए राजनीतिक नेताओं से उनकी क्षमता से अधिक उम्मीद न करें। क्षेत्र के विकास के लिए आप सभी को स्वयं आगे आकर उन कार्यो के लिए उन नेताओं को विवश करना पड़ेगा जो आपके और क्षेत्र के विकास के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी काम आने वाली है। जो स्थायी हो, जो नेताओं पर निर्भर न होकर यहाँ के निवासियों पर निर्भर हो। तब समाज का जन्म होगा। सत्यकशी क्षेत्र को जानें और अपने मन को इस क्षेत्र के ऊपर रखकर और ज्ञान र्में िस्थत होकर सोचें कितने सौ करोड़ रूपये का कभी न बन्द होने वाला प्राजेक्ट आपके सामने आपके क्षेत्र के लिए और आपको प्रत्यक्ष लाभ देने के लिए पड़ा हुआ है। इसी को कहते हैं-उपलब्ध संसाधनों पर आधारित होकर योजना बनाना। और अन्त में अपने बारे में-
लगा ली दो घूँट, यारो की खुशी से,
जानता था लोग समझेगें शराबी।
छुपाना था खुद को, जहाँ से,
तो लोगों बताओ, पीने में क्या थी खराबी।
सत्यकाशी क्षेत्र के कल्याण का एक और अन्तिम रास्ता है- श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा ”विश्वशास्त्र“ में व्यक्त व सार्थक योजनाबद्ध किया गया ‘‘सत्यकाशी निर्माण’’। जिसमें सहयोग ही इस क्षेत्र के निवासियों का स्वयं के लिए सहयोग है। जो बुद्धि युक्त है और जो बुद्धि एवं धन युक्त है- वे इस निर्माण का भरपुर लाभ उठा लेंगे लेकिन वे जो सिर्फ धनयुक्त हैं वे सिर्फ देखते रह जायेंगे। जो जितना क्रमशः उच्चतर -शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक विषयों का आदान-प्रदान करता है वहीं विकास करता है जीवकोपार्जन तो पशु पक्षी भी कर लेते हैं। दूर-दृष्टि से लाभ उठायें और गर्व से कहें- ”हम सत्यकाशी निवासी हैं“ और इसके लिए हम आपको आमंत्रित करते हैं।
2. काशी (वाराणसी) को आमंत्रण
काशी, काश धातु से निष्पन्न है। काश का अर्थ है- ज्योतित होना या ज्योतित करना अर्थात जहाँ से ब्रह्म प्रकाशित हो। जिस स्थान या नगर से ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलता है उसे काशी पुरी या काशी नगर कहते हैं। ब्रह्म प्रकाशित करने वाला प्रत्येक नगर ही काशी है।
काशी क्या है ? काशी सत्य का प्रतीक है। इसके सत्य अर्थ को समझने के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित सृष्टि के उत्पत्ति से प्रलय को व्यक्त करने वाला शिव-शंकर अधिकृत कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेद को समझना पड़ेगा। कालभैरव जन्म कथा इसका प्रमाण है। सर्वोच्च मन सें व्यक्त यह पौराणिक कथा स्पष्ट रुप से व्यक्त करती है कि ब्रह्मा और विष्णु से सर्वोच्च शिव-शंकर हैं। चारो वेदों को प्रमाणित करने वाले शिव-शंकर हैं। चार सिर के चार मुखों से चार वेद व्यक्त करने वाले ब्राह्मण ब्रह्मा जब पाँचवे सिर के पाँचवे मुख से अन्तिम वेद पर अधिपत्य व्यक्त करने लगे तब शिव-शंकर के द्वारा व्यक्त उनके पूर्ण रुप कालभैरव ने उनका पाँचवा सिर काट डाला जिससे यह स्पष्ट होता है कि काल ही सर्वोच्च है, काल ही भीषण है, काल ही सम्पूर्ण पापों का नाशक और भक्षक है, काल से ही काल डरता है। अर्थात् पाँचवा वेद काल आधारित ही होगा। पुराणों में ही व्यक्त शिव-शंकर से विष्णु तथा विष्णु से ब्रह्मा को बहिर्गत होते अर्थात् ब्रह्मा को विष्णु के समक्ष तथा विष्णु को शिव-शंकर के समक्ष समर्पित और समाहित होते दिखाया गया है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि शिव-शंकर ही आदि और अन्त हैं। अर्थात् जो पंचम वेद होगा वह अन्तिम वेद होगा, साथ ही प्रथम वेद भी होगा। शिव-शंकर ही प्रलय, स्थिति और सृष्टिकर्ता हैं। चूँकि वेद शब्दात्मक होते हैं इसलिए पंचम वेद शब्द से ही प्रलय, स्थिति और सृष्टिकर्ता होगा। पुराण-शास्त्र को रचने वाले व्यास हैं तो पुराण जिस कला से रची गयी है वह व्यास ही बता सकते हैं या जो शास्त्र रचने की योग्यता रखता हो। सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय या प्रलय और उत्पत्ति की क्रिया उसी भाँति है जैसे जन्म के बाद मृत्यु, पुनः मृत्यु के बाद जन्म अर्थात् उत्पत्ति और प्रलय या जन्म और मृत्यु एक ही विषय हैं इसलिए ही कहा जाता है कि जो प्रथम है वहीं अन्तिम है। कर्मवेद में सृष्टि की उत्पत्ति से प्रलय को व्यक्त किया गया है जिसके बीच सात चरण है और यही सात काशी है। यदि गिने तो प्रलय प्रथम तथा उत्पत्ति अन्तिम व सातवाँ चरण है। इस प्रकार उत्पत्ति व प्रलय अलग-अलग दिखाई पड़ते हुए भी एक हैं। सृष्टि के विकास क्रम में ही मनुष्य की सृष्टि है यह जैसे-जैसे प्राकृतिक नियम से दूर होता जाता है वह पतन की अवस्था को प्राप्त होता जाता है जिसकी निम्नतम अवस्था पशुमानव अर्थात् पूर्णतः इन्द्रिय के वश में संचालित होने वाली अवस्था है। अब यदि यह पशुमानव अवस्था चरम शिवत्व की स्थिति तक उठना चाहे तो उसे मानवीय व प्राकृतिक मूल पाँच चरणों को पार करना पड़ता है। यदि वह अन्तः जगत अर्थात् सार्वभौम सत्य ज्ञान से सृष्टि की उत्पत्ति की ओर जाता है तब वह योगेश्वर की अवस्था प्राप्त करता है। यदि वह वाह्य जगत् अर्थात् सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त ज्ञान से सृष्टि के प्रलय की ओर जाता है तब वह भोगेश्वर की अवस्था प्राप्त करता है। योगेश्वर व भोगेश्वर एक ही हैं बस एक अवस्था में दूसरा प्राथमिकता पर नहीं होता है। इस प्रकार सृष्टि के आदि में काशी और अन्त में सत्यकाशी व्यक्त होता है। इनके बीच पाँच अन्य काशी होती हैं। इस क्रमानुसार काशी: पंचम, प्रथम तथा सप्तम काशी तथा सत्यकाशी: पंचम, अन्तिम तथा सप्तमकाशी की स्थिति में होता है। योगेश्वर अवस्था ही अदृश्य विश्वेश्वर की अवस्था है तथा भोगेश्वर अवस्था ही दृश्य विश्वेश्वर की अवस्था है जबकि दोनों एक हैं और प्रत्येक वस्तु की भाँति एक-दूसरे के दृश्य और अदृश्य रुप हैं। इसलिए ही विष्णु और शिव-शंकर को एक दूसरे का रुप कहते हैं।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और अन्त को प्रदर्शित करते शिव अधिकृत कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेद में सात सत्य चक्र हैं। ये चक्र कालानुसार सात सत्य हैं जो सात काशीयों को व्यक्त करते हैं। वर्तमान काल अन्तिम सत्य चक्र अर्थात् सातवें चक्र में है। इसलिए ही सातवाँ काशी ही अन्तिम काशी है। मानव शरीर के उत्पत्ति के दो केन्द्र हैं- प्रथम मानव ब्रह्म से उत्पन्न, उसके उपरान्त मानव मानव से उत्पन्न हो रहा है। ऐसी स्थिति में मानव, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की ओर से अन्त सत्य चक्र की ओर जाता है तो उसे पाँच सत्यचक्र के ज्ञान से युक्त होना पड़ता है। और उसे पाँचवे सत्य पर उत्पत्ति की दिशा में काशी (वाराणसी) और अन्त की दिशा में सत्यकाशी के सत्यचक्र का ज्ञान होता है। जो अन्तिम है वहीं प्रथम है और जो प्रथम है वहीं अन्तिम है। इस प्रकार काशी: पंचम, प्रथम तथा सप्तम काशी तथा सत्यकाशी क्रमशः पंचम, अन्तिम तथा सप्तम काशी है। काशी और सत्यकाशी एक ही का अदृश्य और दृश्य रुप है। सत्यकाशी, काशी का ही विस्तार मात्र है। काशी मोक्षपुरी है सत्यकाशी जीवनदायिनी है क्योंकि यहाँ से जीवन शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ व्यक्त हुआ है। जीवन ही मृत्यु है और मृत्यु ही जीवन है।
इस क्रम में काशी (वाराणसी) को सत्यकाशी के निर्माण में अग्रसर होने के लिए हम आमंत्रित करते हैं।
02. धार्मिक संगठन/संस्था को आमंत्रण
विन्ध्य पर्वत क्षेत्र, भारत वर्ष की सभी पर्वंत क्षेत्र में सबसे लम्बी एवं विस्तृत श्रंृखला है जो कि भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, सम्पूर्ण मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र आदि राज्यों तक अपनी अनुपम छटा विखेरती है। इसकी चैड़ाई लगभग 1050 किलोमीटर तथा ऊँचाई 300 मीटर है। इसकी श्रंृखलाएँ भारत को गंगा के मैदान एवं दक्षिण के पठार को विभक्त करती है। यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, वन्य जीवन, कल-कल निनाद करते झरने और इठलाती नदियाँ, गुफाएँ और भित्तचित्रों विभिन्न घटनाओं एवं गाथाओं से परिपूर्ण ऐतिहासिक किलों के साथ ही विभिन्न धार्मिक स्थलों एवं शक्तिपीठों को अपने आँचल में समेटे हुए है। सम्पूर्ण विन्ध्य क्षेत्र में शाक्त साधकों, सिद्धों, तान्त्रिकों आदि की एक लम्बी परम्परा रही हैं। विन्ध्य पर्वत क्षेत्र का एकान्त इन सिद्ध साधकों को सर्वदा ऊर्जा देता रहा है। यह क्षेत्र प्राचीन आर्यावर्त का मध्य बिन्दु भी था। प्राचीन भारत में हिमालय पर्वत तथा विन्ध्य पर्वत के मध्य के भूभाग को आर्यावर्त के नाम से जाना जाता है तथा विन्ध्य पर्वत के दक्षिण भाग का नाम दक्षिणावर्त या दक्षिणपथ था। विन्ध्य क्षेत्र भारतीय इतिहास की अनेक छोटी-बड़ी घटनाओं का साक्षी रहा है।
पर्यटन की दृष्टि से मीरजापुर काफी महत्वपूर्ण जिला माना जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता और धार्मिक वातावरण बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है। इसके दर्शनीय स्थल चुनारगढ़, सक्तेशगढ़, बिलखरा, खमरिया, बावनघाट, कुण्ड, ओझलापुल, भर्ग राजाओं के अवशेष, रामगया घाट पर बीच गंगा में स्थित स्तम्भ, हलिया उपरौंध में अर्धनिर्मित शिला महल, मीरजापुर नगर का घण्टाघर व पक्काघाट व अनके मन्दिर तथा प्राकृतिक पर्यटन स्थल में टांडा जल प्रपात, विन्ढम झरना, खजूरी बाँध, सिरसी बाँध, लखनियां दरी, चूना दरी, सिद्धनाथ की दरी, जरगो बाँध इत्यादि हैं।
काशी (वाराणसी) और विन्ध्य क्षेत्र के बीच स्थित होने के कारण चुनार क्षेत्र भी ऋषियों-मुनियों, महर्षियों, राजर्षियों, संत-महात्माओं, योगियों-सन्यासियों, साहित्यकारों इत्यादि के लिए आकर्षण के योग्य क्षेत्र रहा है। प्राचीन काल में सोनभद्र सम्मिलित मीरजापुर व चुनार क्षेत्र सभी काशी के ही अभिन्न अंग थे। चुनार प्राचीन काल से आध्यात्मिक, पर्यटन और व्यापारिक केन्द्र के रूप में स्थापित है। गंगा किनारे स्थित होने से इसका सीधा व्यापारिक सम्बन्ध कोलकाता से था और वनों से उत्पादित वस्तुओं का व्यापार होता था। चुनार किला और नगर के पश्चिम में गंगा, पूर्व में पहाड़ी जरगो नदी, उत्तर में ढाब का मैदान तथा दक्षिण में प्राकृतिक सुन्दरता का विस्तार लिए विन्ध्य पर्वत की श्रृंखलाएँ हैं जिसमें अनेक जल प्रपात, गढ़, गुफा और घाटियाँ हैं। विन्ध्य पर्वत श्रृंखला के इस पहाड़ी पर ही हरिद्वार से मैदानी क्षेत्र में बहने वाली गंगा का और विन्ध्य पर्वत की श्रृंखला से पहली बार संगम हुआ है जिसपर चुनार किला स्थित है। अनेक स्थानों पर वर्णन है कि श्रीराम यहीं से गंगा पार करके वनगमन के समय चित्रकूट गये थे। फादर कामिल बुल्के के शोध ग्रन्थ ”राम कथा: उद्भव और विकास“ के अनुसार कवि वाल्मीकि की तपस्थली चुनार ही है इसलिए कहीं-कहीं इसे चाण्डालगढ़ भी कहा गया है। इसे पत्थरों के कारण पत्थरगढ़, नैना योगिनी के तपस्थली के कारण नैनागढ़, भर्तृहरि के कारण इसे भर्तृहरि की नगरी भी कहा जाता है।
सत्यकाशी क्षेत्र से व्यक्त हुये मुख्य विषय
1. द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य ”नवसृजन“ के प्रथम भाग ”सार्वभौम ज्ञान“ के शास्त्र ”गीता“ के बाद कलियुग में शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से काल व युग परिवर्तन कर दृश्य काल व पाँचवें युग का प्रारम्भ, व्यवस्था सत्यीकरण और मन के ब्रह्माण्डीयकरण के लिए दसवें और अन्तिम अवतार-कल्कि महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा व्यक्त द्वितीय और अन्तिम भाग ”सार्वभौम कर्मज्ञान“ और ”पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र“, ”विश्वशास्त्र: द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज“ के रूप में व्यक्त हुआ।
2.जिस प्रकार सुबह में कोई व्यक्ति यह कहे कि रात होगी तो वह कोई नई बात नहीं कह रहा। रात तो होनी है चाहे वह कहे या ना कहे और रात आ गई तो उस रात को लाने वाला भी वह व्यक्ति नहीं होता क्योंकि वह प्रकृति का नियम है। इसी प्रकार कोई यह कहे कि ”सतयुग आयेगा, सतयुग आयेगा“ तो वह उसको लाने वाला नहीं होता। वह नहीं ंभी बोलेगा तो भी सतयुग आयेगा क्योंकि वह अवतारों का नियम है। सुबह से रात लाने का माध्यम प्रकृति है। युग बदलने का माध्यम अवतार होते हैं। जिस प्रकार त्रेतायुग से द्वापरयुग में परिवर्तन के लिए वाल्मिकि रचित ”रामायण“ आया, जिस प्रकार द्वापरयुग से कलियुग में परिवर्तन के लिए महर्षि व्यास रचित ”महाभारत“ आया। उसी प्रकार प्रथम अदृश्य काल से द्वितीय और अन्तिम दृश्य काल व चैथे युग-कलियुग से पाँचवें युग-स्वर्णयुग में परिवर्तन के लिए शेष समष्टि कार्य का शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ सत्यकाशी क्षेत्र जो वाराणसी-विन्ध्याचल -शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है, से भारत और विश्व को अन्तिम महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानवों के अनन्त काल तक के विकास के लिए व्यक्त किया गया है।
3.कारण, अन्तिम महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ और ”आध्यात्मिक सत्य“ आधारित क्रिया ”विश्वशास्त्र“ से उन सभी ईश्वर के अवतारों और शास्त्रों, धर्माचार्यों, सिद्धों, संतों, महापुरूषों, भविष्यवक्ताओं, तपस्वीयों, विद्वानों, बुद्धिजिवीयों, व्यापारीयों, दृश्य व अदृश्य विज्ञान के वैज्ञानिकों, सहयोगीयों, विरोधीयों, रक्त-रिश्ता-देश सम्बन्धियों, उन सभी मानवों, समाज व राज्य के नेतृत्वकर्ताओं और विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के संविधान को पूर्णता और सत्यता की एक नई दिशा प्राप्त हो चुकी है जिसके कारण वे अधूरे थे।
ऐसे आध्यात्मिक वातावरण वाले क्षेत्र में धार्मिक संगठन/संस्था को अपने स्थान बनाने के लिए हम आमंत्रित करते हैं।
03. रियल इस्टेट/इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यवसायिक कम्पनी व एजेन्ट को आमंत्रण
रियल स्टेट में निवेश की निम्न विधियाँ है जो अच्छा लाभ देती है-
1. रियल इस्टेट (प्रापर्टी) में निवेश की पारम्परिक विधि (प्राकृतिक चेतना विधि) -
इस विधि को पारम्परिक विधि कहते हैं क्योंकि इसमें किसी बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती। यदि आपके पास धन है तो किसी भी शहर में या उसके आस-पास भूमि-मकान खरीद ले, आपका धन समय के साथ बढ़ता रहेगा। इसे प्राकृतिक चेतना विधि इसलिए कहते हैं कि यह स्वाभाविक विकास के साथ विकास करता है अर्थात उसके कीमत के विकास में आपका कोई योगदान नहीं होता।
2. रियल इस्टेट (प्रापर्टी) में निवेश की आधुनिक विधि (सत्य चेतना विधि) -
इस विधि को आधुनिक विधि कहते हैं क्योंकि इसमें बुद्धि-योजना-व्यापार नीति की अत्यधिक आवश्यकता होती। यदि आपके पास धन है तो किसी भी शहर में या उसके आस-पास भूमि खरीद ले, और वहाँ के लिए एक अच्छी योजना बनायें, उसे प्रचारित करें जिससे आपका धन समय के साथ-साथ तथा आपके योजना के कारण तेजी से बढ़ता रहेगा। इसे सत्य चेतना विधि इसलिए कहते हैं कि यह स्वाभाविक विकास के साथ-साथ आपकी योजना के कारण विकास करता है अर्थात उसके कीमत के विकास में आपकी योजना का योगदान होता है। ऐसी योजना या तो सरकार बनाती है या कोई सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था।
सरकार की योजना में नगर विकास, औद्योगिक क्षेत्र का विकास, पर्यटन क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थान इत्यादि के विकास से होता है और उस क्षेत्र के भूमि की कीमत तेजी से बढ़ जाती है। इसका लाभ वहीं लोग ले पाते हैं जो सरकार की योजना को पहले ही जान जात हैं।
ऐसी योजना सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था बना सकती हैं। भारत देश एक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। घूमना मनुष्य की प्रकृति है। उसे उसके घर में चाहे कितना भी संसाधन क्यों न उपलब्ध हो, वह घूमने-पर्यटन करने जायेगा ही जायेगा। साथ ही वह सत्य-सुन्दर-शान्त स्थान पर रहना भी चाहेगा। और जब मनुष्य ऐसे स्थान पर रहना प्रारम्भ करने लगता है तब अपने-आप मनुष्य की आवश्यकता से सम्बन्धित वस्तुओं का व्यापार व व्यापारी भी उन्हीं में से निकल आते हैं। फिर जहाँ मनुष्य निवास करने लगता है तब सरकार व सरकारी व्यवस्था भी अपने-आप वहाँ पहुँचने लगती है। ऐसी योजनाओं के बहुत से उदाहरण हैं जहाँ का विकास का मूल कारण सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था ही हैं।
वर्तमान समय में चल रहा निम्नलिखित उदाहरण इस विधि का प्रमाण है-
निवेश के सत्य चेतना विधि द्वारा निर्मित हो रहा है - चन्द्रोदय मन्दिर, वृन्दावन, मथुरा (उ0प्र0)
भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य का ब्रज क्षेत्र (जिला-मथुरा) अर्थात सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र कंस-श्रीकृष्ण से सम्बन्धित है। मथुरा कंस की नगरी थी और श्रीकृष्ण का जन्म स्थान। श्रीकृष्ण के बाल-लीला का क्षेत्र ब्रज क्षेत्र है। श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका (गुजरात प्रदेश) में थी। ब्रज क्षेत्र भारत के लोगों के लिए एक आस्था का स्थान है। इस आस्था का उपयोग करते हुये वृन्दावन में एक योजना इस्काॅन के भक्तों ने बनाया जिसका नाम - “कृष्ण भूमि - ए वन्डर लैण्ड” रखा और विशाल मन्दिर-टाउनशिप की योजना दी।
110 एकड़ के इस मन्दिर-टाउनशिप योजना में श्रीकृष्ण से सम्बन्धित 70 एकड़ में फैले श्री कृष्ण मन्दिर, वेदान्त वन, विश्व का पहला कृष्ण लीला थीम पार्क की योजना दी गयी। जिसमें 5 एकड़ में फैला 210 मीटर अर्थात 700 फिट विश्व के सबसे ऊँचे श्रीकृष्ण मन्दिर का नाम “चन्द्रोदय मन्दिर” रखा गया। शेष 40 एकड़ में आधुनिक संविधा एवं संसाधन से युक्त आवासीय व व्यापारिक स्थान की योजना बनायी गयी।
यह योजना जिस भूमि पर बनायी गयी, वह इस योजना के पहले एक उपेक्षित स्थान व सस्ते कीमत का रहा होगा परन्तु योजना के घोषित होते ही आस-पास की भूमि, आवासीय, व्यापारिक स्थान की कीमत तेजी से बढ़ गयी। इस टाउनशिप में आवासीय व व्यापारिक स्थानों की कीमत का निर्धारण तो इस योजना के व्यापारीगण ही किये। श्रीकृष्ण से आस्था, मन्दिर की विशालता और आधुनिक सुविधा ने लोगों को वहाँ खींचा और एक क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास हो गया। आवासीय-व्यापारिक स्थान के विक्रय से जो लाभ हुआ उससे मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ। मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ तो आवासीय-व्यापारिक स्थान का कीमत बढ़ा।
निष्कर्ष यह है कि भारत देश में ऐसी योजना बनाने और उसे स्थापित करने की बहुत सी सम्भावनाएँ हैं। योजना बनाकर किसी भी स्थान का महत्व बढाया जा सकता है। स्थान की विशेषता होने पर लोग वहाँ रहना भी चाहते हैं। केवल शहर का विस्तार करते रहने से लोग स्वाभाविक रूप से ही रियल स्टेट में निवेश करते हैं। विशेषताएँ बना देने से इच्छा बनती है और निवेश में तेजी आती है।
ऐसी योजना पर काम करने के लिए रियल इस्टेट/इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यवसायिक कम्पनी को हम आमंत्रित करते हैं।
निवेश की आधुनिक विधि को सत्य चेतना विधि कहते हैं क्योंकि इसमें बुद्धि-योजना-व्यापार नीति की अत्यधिक आवश्यकता होती। यदि आपके पास धन है तो किसी भी शहर में या उसके आस-पास भूमि खरीद ले, और वहाँ के लिए एक अच्छी योजना बनायें, उसे प्रचारित करें जिससे आपका धन समय के साथ-साथ तथा आपके योजना के कारण तेजी से बढ़ता रहेगा। इसे सत्य चेतना विधि इसलिए कहते हैं कि यह स्वाभाविक विकास के साथ-साथ आपकी योजना के कारण विकास करता है अर्थात उसके कीमत के विकास में आपकी योजना का योगदान होता है। ऐसी योजना या तो सरकार बनाती है या कोई सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था।
सरकार की योजना में नगर विकास, औद्योगिक क्षेत्र का विकास, पर्यटन क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थान इत्यादि के विकास से होता है और उस क्षेत्र के भूमि की कीमत तेजी से बढ़ जाती है। इसका लाभ वहीं लोग ले पाते हैं जो सरकार की योजना को पहले ही जान जात हैं।
ऐसी योजना सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था बना सकती हैं। भारत देश एक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। घूमना मनुष्य की प्रकृति है। उसे उसके घर में चाहे कितना भी संसाधन क्यों न उपलब्ध हो, वह घूमने-पर्यटन करने जायेगा ही जायेगा। साथ ही वह सत्य-सुन्दर-शान्त स्थान पर रहना भी चाहेगा। और जब मनुष्य ऐसे स्थान पर रहना प्रारम्भ करने लगता है तब अपने-आप मनुष्य की आवश्यकता से सम्बन्धित वस्तुओं का व्यापार व व्यापारी भी उन्हीं में से निकल आते हैं। फिर जहाँ मनुष्य निवास करने लगता है तब सरकार व सरकारी व्यवस्था भी अपने-आप वहाँ पहुँचने लगती है। ऐसी योजनाओं के बहुत से उदाहरण हैं जहाँ का विकास का मूल कारण सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था ही हैं।
सत्यकाशी क्षेत्र में लगने वाली परियोजनाएँ निवेश की आधुनिक विधि (सत्य चेतना विधि) के अनुसार योजनाबद्ध हैं। जिसमें रियल स्टेट ऐजेन्ट के लिए आर्थिक लाभ प्राप्त करने का अच्छा अवसर है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिए हम उन्हें आमंत्रित करते हैं।
04. छात्रों, बेरोजगारों व एम.एल.एम नेटवर्कर को आमंत्रण
छात्रों को आमंत्रण
प्रिय छात्रों व विद्यार्थीयों,
हमारे दृष्टि में छात्र वे हैं जो किसी शैक्षणिक संस्थान के किसी शैक्षणिक पाठ्यक्रम में प्रवेश ले कर अध्ययन करतेे है। और विद्यार्थी वे हैं जो सदैव अपने ज्ञान व बुद्धि का विकास कर रहे हैं और उसके वे इच्छुक भी हैं। इस प्रकार सभी मनुष्य व जीव, जीवन पर्यन्त विद्यार्थी ही बने रहते हैं चाहे उसे वे स्वीकार करें या ना करें। जबकि छात्र जीवन पर्यन्त नहीं रहा जा सकता।
कहा जाता है - ”छात्र शक्ति, राष्ट्र शक्ति“, लेकिन कौन सी शक्ति? उसकी कौन सी दिशा? तोड़-फोड़, हड़ताल, या अनशन वाली या समाज व राष्ट्र को नई दिशा देने वाली? स्वामी विवेकानन्द को मानने व उनके चित्र लगाकर छात्र राजनीति द्वारा राष्ट्र को दिशा नहीं मिल सकती बल्कि उन्होंने क्या कहा और क्या किया था, उसे जानने और चिन्तन करने से राष्ट्र को दिशा मिल सकती है और ”छात्र शक्ति, राष्ट्र शक्ति“ की बात सत्य हो सकती है। हम सभी ज्ञान युग और उसी ओर बढ़ते समय में हैं इसलिए केवल प्रमाण-पत्रों वाली शिक्षा से काम नहीं चलने वाला है।
छात्रों की विवशता है कि उनके शिक्षा बोर्ड व विश्वविद्यालय जो पाठ्यक्रम तैयार करेगें वहीं पढ़ना है और छात्रों की यह प्रकृति भी है कि वही पढ़ना है जिसकी परीक्षा ली जाती हो। जिसकी परीक्षा न हो क्या वह पढ़ने योग्य नहीं है? बहुत बढ़ा प्रश्न उठता है। तब तो समाचार पत्र, पत्रिका, उपन्यास इत्यादि जो पाठ्क्रम के नहीं हैं उन्हें नहीं पढ़ना चाहिए। शिक्षा बोर्ड व विश्वविद्यालय तो एक विशेष पाठ्यक्रम के लिए ही विशेष समय में परीक्षा लेते हैं परन्तु ये जिन्दगी तो जीवन भर आपकी परीक्षा हर समय लेती रहती है तो क्या जीवन का पाठ्यक्रम पढ़ना अनिवार्य नहीं है? परन्तु यह पाठ्यक्रम मिलेगा कहाँ? निश्चित रूप से ये पाठ्यक्रम अब से पहले उपलब्ध नहीं था लेकिन इस संघनित (Compact) होती दुनिया में ज्ञान को भी संघनित (Compact) कर पाठ्यक्रम बना दिया गया है। इस पाठ्यक्रम का नाम है - ”सत्य शिक्षा“ और आप तक पहुँचाने के कार्यक्रम का नाम है - ”पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) यह वही पाठ्यक्रम है जोे मैकाले शिक्षा पाठ्यक्रम (वर्तमान शिक्षा) से मिलकर पूर्णता को प्राप्त होगा। इस पाठ्यक्रम का विषय वस्तु जड़ अर्थात सिद्धान्त सूत्र आधारित है न कि तनों-पत्तों अर्थात व्याख्या-कथा आधारित। जिसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है- मैकेनिक जो मोटर बाईडिंग करता है यदि वह केवल इतना ही जानता हो कि कौन सा तार कहाँ जुड़ेगा जिससे मोटर कार्य करना प्रारम्भ कर दें, तो ऐसा मैकेनिक विभिन्न शक्ति के मोटर का आविष्कार नहीं कर सकता जबकि विभिन्न शक्ति के मोटर का आविष्कार केवल वही कर सकता है जो मोटर के मूल सिद्धान्त को जानता हो। ऐसी ही शिक्षा के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था - ”अनात्मज्ञ पुरूषों की बुद्धि एकदेशदर्शिनी (Single Dimensional) होती है। आत्मज्ञ पुरूषों की बुद्धि सर्वग्रासिनी (Multi Dimensional) होती है। आत्मप्रकाश होने से, देखोगे कि दर्शन, विज्ञान सब तुम्हारे अधीन हो जायेगे।“
यह शिक्षा आप तक पहुँचे और आपकी रूचि बनी रहे इसलिए इसमें पाठ्यक्रम के शुल्क के बदले छात्रवृत्ति व अन्य सहायता के साथ बहुत सी ऐसी सुविधा दी गईं है जो आपके शारीरिक-आर्थिक-मानसिक विकास व स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक है। ये सुविधा व सहायता हमारे विद्यार्थीयों को संतुष्टि, स्वतन्त्रता और शक्ति सम्पन्न बनाती है। जिससे वे जिस क्षेत्र में चाहे अपना मार्ग चुन सकते हैं। ”पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) के विद्यार्थी बनते ही विद्यार्थी को निम्न शक्ति प्राप्त हो जाती है चाहे उसका उपयोग - प्रयोग करें या ना करें-
1. हमारा विद्यार्थी सार्वभौम पूर्ण ज्ञान से युक्त होकर मानसिक स्वतन्त्रता के मुख्यधारा के मार्ग पर चलते हुये शिक्षित, विचारशील, रचनात्मक और नेतृत्वशील बनेगा।
2. हमारा विद्यार्थी ”सत्य शिक्षा“ का व्यापार करे या ना करे, दोनों स्थिति में छात्रवृत्ति और सहायता को प्राप्त करता रहेगा।
3. हमारा कोई विद्यार्थी, हमारे से जुड़े 1. रेस्टूरेण्ट (Restaurants) 2. चिकित्सक (Doctors) 3. मेडिकल स्टोर (Medical Store) 4. दैनिक प्रयोग के दुकान (FMCG Store) 5. जैविक स्टोर (Organic Store) 6. हमारा विद्यार्थी (Our Student) या किसी भी डाक क्षेत्र प्रवेश केन्द्र से आवश्यकता पड़ने पर सप्ताह में 1 बार और अधिकतम रू0 500.00 की नगद राशि या सेवा या वस्तु प्राप्त कर सकता है जो लेने वाले के छात्रवृत्ति से समायोजित हो जाती है।
4. हमारा विद्यार्थी, यदि किसी भी प्रकार का व्यापार या समाजसेवा इत्यादि से है तो वह अपना विज्ञापन देकर अपने जिला क्षेत्र तक आसानी से पहुँच सकता है।
5. हमारा विद्यार्थी, अपने व्यवसाय और स्थान के अनुसार पूरे देश के अन्य विद्यार्थी से सम्पर्क कर सकता है और वर्गीकृत विज्ञापन में सूचीबद्ध हो सकता है।
7. हमारा विद्यार्थी, ब्लाॅग (Blog) के माध्यम से अपने किसी परियोजना (Project) फिल्म स्क्रिप्ट (Film Script) पुरातन, विलक्षण एवं दुर्लभ सूचना (Antique, Unique & Rare Information) पुस्तक (Book) सामान्य (General) को पूरे देश के सामने ला सकता है और लोगों के सम्पर्क में आ सकता है।
8. हमारा विद्यार्थी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक स्थिति से स्वतन्त्र होकर पूरे भारत देश में भ्रमण कर सकता है।
जय छात्र शक्ति, जय राष्ट्र शक्ति
मानने से, मानने वाले का कोई कल्याण नहीं होता,
कल्याण तो सिर्फ जानने वालों का ही होता रहा है, होता है और होता रहेगा।
बेरोजगारों व एम.एल.एम नेटवर्करों को आमंत्रण
प्रिय एम.एल.एम नेटवर्कर दोस्तों,
महर्षि मनु ने कहा है कि-””इस कलयुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात एक मात्र कर्म है और दानो में धर्म दान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्न दान। जो धर्म का ज्ञानदान करते हैं वे अनन्त जन्म और मृत्यु के प्रवाह से आत्मा की रक्षा करते है, जो विद्या दान करते हैं वे मनुष्य की आॅखे खोलते, उन्हें आध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते है। दूसरे दान यहाॅ तक कि प्राण दान भी उनके निकट तुच्छ है। आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार से मनुष्य जाति की सबसे अधिक सहायता की जा सकती है।“
इस पुनर्निर्माण के व्यापार में आपको केवल पाठ्यक्रम प्रवेश पंजीकरण के लिए अधिकृत किया गया है। आपके काम को आसान करने के लिए शुल्क (धन) लेने से पूर्णतः मुक्त रखा गया है अर्थात केवल आप रेफर करते जायें और इस सत्य शिक्षा के व्यवसाय का कमीशन व अन्य लाभ पायें।
प्रिय एम.एल.एम नेटवर्कर दोस्तों, उठे और दुनिया को बता दें कि इस दुनिया में परिवर्तन लाने वाले हम लोग हैं। हम सत्य ज्ञान का व्यापार करते हैं। हम राष्ट्र निर्माण का व्यापार करते हैं। हम समाज को सहायता प्रदान करने का व्यापार करते हैं। हम, लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का व्यापार करते हैं और वहाँ करते हैं जिस क्षेत्र, जिला, मण्डल, प्रदेश व देश के निवासी हैं। जहाँ हमारे भाई-बन्धु, रिश्तेदार, दोस्त इत्यादि रहते हैं।
अब इस जिले, उस जिले, इस प्रदेश, उस प्रदेश में भागकर अपने खर्चों को न बढ़ायें। आप जहाँ के हैं वहीं से, अपने घर पर रहते हुये और अन्य कार्यों को देखते हुये सहज भाव व आराम से काम करने का समय व सिस्टम (प्रणाली) आ गया है। यदि आप अन्य कम्पनी को कर रहें हों तो उसे भी करते रहें परन्तु इसे राष्ट्र का कार्य समझ कर इसे भी अवश्य करें और इसे एक राष्ट्रीय साझा कार्यक्रम समझें। अन्य कम्पनीयों की तरह न कोई बड़ा सपना, न ही कोई सेमिनार-हंगामा और न ही साल-दो साल चलने वाली कम्पनी। हम हैं युगों में एक बार काम करने वाले लोग, और नहीं हैं तो हम आज ही यह काम बन्द कर सकते हैं। हम राष्ट्र की आवश्यकता की पूर्ति के लिए काम कर रहें हैं न कि अपार धन कमाने की महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए।
यह काम राष्ट्रीय भाव - समाज सेवा का भाव सामने रखकर करें। लोगों को ज्ञान-बुद्धि की जरूरत है। यह उनके लिए ही है परन्तु उसे हम लोगों को बताना पड़ रहा है। यही ज्ञान-बुद्धि ग्रहण न करने से वे बेरोजगार हैं। सिर्फ और सिर्फ नौकरी पर आश्रित हो गये है। जिसके कारण सरकार भी उनसे व्यापार करने लगी है। हमारे इस व्यापार में ज्ञान भी लो और छात्रवृत्ति (स्कालरशिप) भी। साथ में सामाजिक सहायता और अन्य प्रकार की सुविधा भी।
यह काम पारम्परिक व्यवसाय के प्रकार से करें। जैसे शिक्षा व्यवसाय में पत्राचार शिक्षा का व्यवसाय चलता है। आप केवल इस शिक्षा में लोगों के प्रवेश कराने वाले बनें। अधिक से अधिक प्रवेश करायें और अधिक से अधिक सामाजिक-आर्थिक लाभ प्राप्त करें। अपने निवास स्थान से करें। किसी कार्य से जहाँ जाते हैं वहाँ करें। कोई बाधा नहीं और सिर ऊँचा कर शान से कहें - ”हम राष्ट्र निर्माण का व्यापार“ करते हैं। राष्ट्रीय-वैश्विक स्तर पर आ गये बौद्धिक कमी की पूर्ति का व्यापार करते हैं।
हम आपके आय और नेटवर्क को बढ़ाने के कार्य से मुक्त करने के लिए अन्य अच्छे और स्थायी लम्बे समय तक चलने वाले एम.एल.एम कम्पनीयों से साझेदारी भी कर रहें हैं क्योंकि अब समय एकल कम्पनीयों का नहीं बल्कि समूह का है। जिससे निवेश से लाभ, स्थिरता और शक्ति का अधिकतम विकास व लाभ मिलता है। यह एम.एल.एम कम्पनीयों के लिए एक नये युग की शुरूआत भी होगी। साथ ही हमें बार-बार नये नेटवर्क के लिए मेहनत की आवश्यकता भी नहीं होगी। इस कार्य के लिए आवश्यकता पड़ने पर हम आपसे अलग से निवेश न कराकर आपके छात्रवृत्ति की राशि का अंश ही उपयोग करेगें। अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट देखें।
जय बेरोजगार, जय नेटवर्कर
05. सामाजिक उत्तरदायित्व पूर्ण करने हेतू आमंत्रण
”जो भी व्यक्ति अपने शास्त्र के महान सत्यों को दूसरों को सुनाने में सहायता पहुँचाएगा, वह आज एक ऐसा कर्म करेगा, जिसके समान दूसरे कोई कर्म नहीं। महर्षि मनु ने कहा है- ‘‘इस कलियुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है। आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात् एकमात्र कर्म है।’’ और दानों में धर्मदान, अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्नदान। (मेरी समर नीति-पृ0-30)” - स्वामी विवेकानन्द
व्यवसाय को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है- ‘‘व्यवसाय एक ऐसी क्रिया है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं अथवा सेवाओं का नियमित उत्पादन क्रय-विक्रय तथा विनिमय सम्मिलित है’’ जिसके आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व होते हैं।
लोग लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से व्यवसाय चलाते हैं। लेकिन केवल लाभ अर्जित करना ही व्यवसाय का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता। समाज का एक अंग होने के नाते इसे बहुत से सामाजिक कार्य भी करने होते हैं। यह विशेष रूप से अपने अस्तित्व की सुरक्षा में संलग्न स्वामियों, निवेशकों, कर्मचारियों तथा सामान्य रूप से समाज व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र व समुदाय की देखरेख की जिम्मेदारी भी निभाता है। अतः प्रत्येक व्यवसाय को किसी न किसी रूप में इनके प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए। उदाहरण के लिए, निवेशकों को उचित प्रतिफल की दर का आश्वासन देना, अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन, सुरक्षा, उचित कार्य दशाएँ उपलब्ध कराना, अपने ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित मूल्यों पर उलब्ध कराना, पर्यावरण की सुरक्षा करना तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत से कार्य करने चाहिए।
हालांकि ऐसे कार्य करते समय व्यवसाय के सामाजिक उत्तारदायित्वों के निर्वाह के लिए दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। पहली तो यह कि ऐसी प्रत्येक क्रिया धर्मार्थ क्रिया नहीं होती। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यवसाय किसी अस्पताल अथवा मंदिर या किसी स्कूल अथवा कालेज को कुछ धनराशि दान में देता है तो यह उसका सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं कहलाएगा, क्योंकि दान देने से सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं होता। दूसरी बात यह है कि, इस तरह की क्रियाएँ कुछ लोगों के लिए अच्छी और कुछ लोगों के लिए बुरी नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए एक व्यापारी तस्करी करके या अपने ग्राहकों को धोखा देकर बहुत सा धन अर्जित कर लेता है और गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल चलाता है तो उसका यह कार्य सामाजिक रूप से न्यायोचित नहीं है। सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ है कि एक व्यवसायी सामाजिक क्रियाओं को सम्पन्न करते समय ऐसा कुछ भी न करे, जो समाज के लिए हानिकारक हो।
इस प्रकार सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा व्यवसायी को जमाखोरी व कालाबाजारी, कर चोरी, मिलावट, ग्राहकों को धोखा देना जैसी अनुचित व्यापरिक क्रियाओं के बदले व्यवसायी को विवेकपूर्ण प्रबंधन के द्वारा लाभ अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह कर्मचारियों को उचित कार्य तथा आवासीय सुविधाएँ प्रदान करके, ग्राहकों को उत्पाद विक्रय उपरांत उचित सेवाएँ प्रदान करके, पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करके तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा द्वारा संभव है।
एक समाज, व्यक्तियों, समूहों, संगठनों, परिवारों आदि से मिलकर बनता है। ये सभी समाज के सदस्य होते हैं। ये सभी एक दूसरे के साथ मिलते-जुलते हैं तथा अपनी लगभग सभी गतिविधियों के लिए एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। इन सभी के बीच एक संबंध होता है, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। समाज का एक अंग होने के नाते, समाज के सदस्यों के बीच संबंध बनाए रखने में व्यवसाय को भी मदद करनी चाहिए। इसके लिए उसे समाज के प्रति कुछ निश्चित उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना आवश्यक है। ये उत्तरदायित्व हैं- समाज के पिछड़े तथा कमजोर वर्गों की सहायता करना, सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना, रोजगार के अवसर जुटाना, पर्यावरण की सुरक्षा करना, प्राकृतिक संसाधनों तथा वन्य जीवन का संरक्षण करना, खेलों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान प्रोद्यौगिकी आदि के क्षेत्रों में सहायक तथा विकासात्मक शोधों को बढ़ावा देने में सहायता करना।
लाभ-निरपेक्ष संस्थाएं (एन.जी.ओ) स्वतंत्र रूप से काम करती हैं तथा इनका संचालन बोर्ड ऑफ ट्रस्टी, संचालन परिषद व प्रबंध समिति के हाथों में रहता है। संस्था खुद सदस्यों व उनकी भूमिकाओं को चुनती है। इन संस्थाओं के पास किसी भी रूप में अपने सदस्यों को वित्तीय लाभ प्रदान करने की अनुमति नहीं है। अतः ये संस्थाएं अपने सदस्यों के अलावा अन्य सभी लोगों की मदद करती हैं और इसी वजह से इन्हें लाभ-निरपेक्ष संस्थाएं कहा जाता है। भारतीय कानून के अनुसार लाभ-निरपेक्ष एवं धर्मार्थ संस्थाओं का पंजीकरण निम्न रूप में होता है-
1. सोसाइटी
2. ट्रस्ट
3. प्राइवेट लिमिटेड लाभ-निरपेक्ष कंपनी या सेक्शन-25 कंपनी
प्रायः लाभ-निरपेक्ष संस्थाएं सरकारी अनुदान पर निर्भर रहतीं हैं जबकि इनका मूल उद्देश्य समाज से सक्षम दानदाताओं के वर्ग से दान प्राप्त कर सामाजिक रचनात्मक कार्यो एवं मानवता के विकास का कार्य करने के साथ ही लोगों को दान देने के प्रति इच्छा को विकसित करना भी है।
हमारा राष्ट्र निर्माण का व्यापार आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति करता हुआ एक मानक व्यवसाय है। इस क्रम में लाभ-निरपेक्ष संस्थाओं के लिए उनके कार्य क्षेत्र में, उनके साख को बढ़ाते हुये सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति के लिए व्यापक और मानव जीवन से सीधे जुड़ा अवसर उपलब्ध कराता है।
हमारा राष्ट्र निर्माण का व्यापार सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति के लिए भारत के प्रत्येक जिले से एक मुख्य जिला प्रेरक के रूप में पद सृजित है। जिनके द्वारा कार्य को संचालित होना है। हमारे कार्य के अलावा वे अन्य सामाजिक कार्य संचालित करने के लिए स्वतन्त्र भी रहेंगे।
पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) द्वारा उत्पन्न व्यवसाय, व्यवसाय व उसके उत्तरदायित्व की शत-प्रतिशत पूर्ति करते हुये एक मानक व्यवसाय का उदाहरण है और निम्नलिखित सामाजिक उत्तरदायित्व की भी पूर्ति करती है।
01. प्रत्यक्ष सहायता
सहायता प्राप्त करने के लिए अपने वार्ड / ग्राम प्रवेश प्रेरक से सम्पर्क करें। सभी सहायता कार्यालय को आवेदन प्राप्त होने की तिथि से तीसरे माह से प्रारम्भ होता है।
अ-नवजात (New Born) सहायता - बच्चे के जन्म होने पर नवजात सहायता रू0 500/- प्रति माह 5 वर्ष की उम्र तक दी जाती है।
ब-विकलांग/दिव्यांग सहायता (Handicapped Help) - शारीरिक रूप से अपंग व्यक्ति जो किसी सरकारी नौकरी में नहीं हैं उन्हें विकलांग सहायता रू0 500/- प्रति माह आजीवन दी जाती है।
स-वरिष्ठ नागरिक सहायता (Senior Citizen Help) - 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के ऐसे वरिष्ठ नागरिक जो सरकारी नौकरी में पूर्व में नहीं रहे, उन्हें वरिष्ठ नागरिक सहायता रू0 500/- प्रति माह आजीवन दी जाती है।
द-विधुर सहायता (Widower Help) - 60 वर्ष से कम उम्र के ऐसे पुरूष व्यक्ति जिनकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है और उन्होंने फिर विवाह न किया हो, उन्हें विधुर सहायता रू0 500/- प्रति माह 60 वर्ष की उम्र तक दी जाती है। उसके बाद वे पुनः सहायता के लिए आवेदन कर वरिष्ठ नागरिक सहायता में आ सकते हैं। महिला विधवा को सहायता देने का कोई प्राविधान नहीं रखा गया है क्योंकि सरकार द्वारा उन्हें विभिन्न प्रकार की सहायता व अवसर प्रदान की गयी है। समाज द्वारा भी उन्हें सहयोग और सहानुभूति प्राप्त है।
य-अनाथ (Orphan) सहायता - 14 वर्ष या उससे कम उम्र के ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता दोनों स्वर्गवासी हो चुके हैं उन्हें अनाथ सहायता रू0 500/- प्रति माह 18 वर्ष की उम्र तक दी जाती है।
02. अप्रत्यक्ष सहायता
अ. सृष्टि पुस्तकालय योजना (Srishti Library Scheme) - किसी भी ग्राम / नगर वार्ड में हमारे 200 विद्यार्थी हो जाने पर उस ग्राम में ”सृष्टि ग्रामीण पुस्तकालय“ की स्थापना की जाती है जो ग्राम प्रवेश प्रेरक के देख-रेख में संचालित होती है।
ब. विश्व कल्कि पुरस्कार (WORLD KALKI AWARD) - विश्व कल्कि ओलंपियाड (WKO) . सुनिश्चित पुरस्कार रूपये एक करोड़
प्रस्तुत ”विश्वशास्त्र-द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज“ का मुख्य विषय ”मन का विश्वमानक-शून्य (WS-0) श्रंृखला और पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी-WCM-TLM-SHYAM.C“ है जो सम्पूर्ण विश्व के लिए सकारात्मक विचारों के एकीकरण के द्वारा मानव मस्तिष्क के एकीकरण के लिए आविष्कृत है। जिसे आविष्कारक श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने इस चुनौती के साथ प्रस्तुत किया है कि यह विश्व व्यवस्था के लिए अन्तिम है। आविष्कार के मुख्य विषय के अलावा सभी आॅकड़े उस आविष्कार को आधार एवं पुष्टि प्रदान करने के लिए प्रयुक्त किये गये हैं जो वर्तमान समाज में पहले से ही प्रमाण स्वरूप विद्यमान हैं।
पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) इस आविष्कार को अन्तिम होने की पुष्टि करते हुये और उसके प्रति ध्यानाकर्षण करने हेतू यह घोषणा करता है कि जब तक मानव सृष्टि रहेगी तब तक मानव मस्तिष्क के एकीकरण और विश्व व्यवस्था, शान्ति, एकता, स्थिरता, एकीकरण सहित स्वस्थ लोकतन्त्र इत्यादि के लिए कोई दूसरा इससे अच्छा आविष्कार यदि प्रस्तुत होता है तब ट्रस्ट उस व्यक्ति/संस्था को रूपये 1 करोड़ का पुरस्कार प्रदान करेगी जो काल के दूसरे और अन्तिम दृश्य काल व युग के चैथे-कलियुग के अन्त और पाँचवें स्वर्णयुग के प्रारम्भ के दिन शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से लागू होकर अनन्त काल तक चलता रहेगा।
31 दिसम्बर, 2021 तक उपरोक्त पुरस्कार यदि कोई व्यक्ति या संस्था इसे न प्राप्त कर सका तो प्रारम्भ 22 दिसम्बर, 2012 से 1 जनवरी, 2022 तक 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित मूल राशि को मूलधन के रूप मे समायोजित कर उस राशि पर प्राप्त प्रत्येक वर्ष के ब्याज की राशि को प्रत्येक वर्ष ऐसे 10 शोध छात्रों को छात्रवृत्ति के रूप में वितरित की जायेगी जो विश्व एकीकरण की दिशा में किसी विषय में शोध के इच्छुक होगें। बावजूद इसके उपरोक्त 1 करोड़ रूपये का पुरस्कार अनन्त काल तक के लिए चलता ही रहेगा।
पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व के पूर्ति करने में भागीदारी करने के लिए भारत के प्रत्येक जिले से एक लाभ-निरपेक्ष संस्था मुख्य जिला प्रेरक के रूप में आमंत्रित करता है।
”जीवन में मेरी सर्वोच्च अभिलाषा यह है कि ऐसा चक्र प्रर्वतन कर दूँ जो कि उच्च एवम् श्रेष्ठ विचारों को सब के द्वार-द्वार पर पहुँचा दे। फिर स्त्री-पुरूष को अपने भाग्य का निर्माण स्वंय करने दो। हमारे पूर्वजों ने तथा अन्य देशों ने जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर क्या विचार किया है यह सर्वसाधारण को जानने दो। विशेषकर उन्हें देखने दो कि और लोग क्या कर रहे हैं। फिर उन्हंे अपना निर्णय करने दो। रासायनिक द्रव्य इकट्ठे कर दो और प्रकृति के नियमानुसार वे किसी विशेष आकार धारण कर लेगें-परिश्रम करो, अटल रहो। ‘धर्म को बिना हानि पहुँचाये जनता की उन्नति’-इसे अपना आदर्श वाक्य बना लो।“ - स्वामी विवेकानन्द