Tuesday, April 14, 2020

पहले मै और अब अन्त में मै ही मै

                        पहले मै और अब अन्त में मै ही मै







वर्तमान धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता चक्र मार्ग से

वर्तमान धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता चक्र मार्ग से
(भारत तथा विश्व के नेत्तृत्वकत्र्ताओं के चिंतन पर दिये गये वक्तव्य का स्पष्टीकरण)

अ. भारत के स्वतन्त्रता (सन् 1947 ई0) के पूर्व जन्में नेतृत्वकर्ता
Click Here=> 12. स्वामी जयेन्द्र सरस्वती (18 जुलाई, 1935 - )

ब. भारत के स्वतन्त्रता (सन् 1947 ई0) के बाद जन्में नेतृत्वकर्ता
Click Here=> 13. अमर उजाला फाउण्डेशन प्रस्तुति ”संवाद“
पहले विभिन्न वर्तमान धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता और अब अन्त में मैं


भूतपूर्व धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता चक्र मार्ग से

भूतपूर्व धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता चक्र मार्ग से 
(भारत तथा विश्व के नेत्तृत्वकत्र्ताओं के चिंतन पर दिये गये वक्तव्य का स्पष्टीकरण)

अ. भारत के स्वतन्त्रता (सन् 1947 ई0) के पूर्व जन्में भूतपूर्व नेतृत्वकर्ता

ब. भारत के स्वतन्त्रता (सन् 1947 ई0) के बाद जन्में भूतपूर्व नेतृत्वकर्ता
पहले विभिन्न भूतपूर्व धार्मिक-राजनैतिक-सामाजिक नेतृत्वकर्ता और अब अन्त में मैं


कृति चक्र मार्ग से

कृति चक्र मार्ग से






पहले विभिन्न कृति और अब अन्त में मेरी कृति-सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय


सत्य शास्त्र-साहित्य चक्र मार्ग से

सत्य शास्त्र-साहित्य चक्र मार्ग से






पहले विभिन्न सत्य शास्त्र-साहित्य और अब अन्त में मेरा विश्वशास्त्र


समाज और सम्प्रदाय चक्र मार्ग से

संत चक्र मार्ग से

गुरू चक्र मार्ग से

आचार्य और दर्शन चक्र मार्ग से



धर्म प्रवर्तक और उनका धर्म चक्र मार्ग से

धर्म प्रवर्तक और उनका धर्म चक्र मार्ग से


धर्म ज्ञान का प्रारम्भ

सत्ययुग के धर्म 

त्रेतायुग के धर्म

द्वापरयुग के धर्म

कलियुग के धर्म

स्वर्णयुग धर्म 
(धर्म ज्ञान का अन्त)
पहले विभिन्न धर्म प्रवर्तक और अब अन्त में मैं और मेरा विश्वधर्म


सामाजिक उत्तरदायित्व पूर्ण करने हेतु आमंत्रण

सामाजिक उत्तरदायित्व पूर्ण करने हेतु आमंत्रण

”जो भी व्यक्ति अपने शास्त्र के महान सत्यों को दूसरों को सुनाने में सहायता पहुँचाएगा, वह आज एक ऐसा कर्म करेगा, जिसके समान दूसरे कोई कर्म नहीं। महर्षि मनु ने कहा है-”इस कलियुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है। आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात् एकमात्र कर्म है।“ और दानों में धर्मदान, अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्नदान। (मेरी समर नीति-पृ0-30)” -स्वामी विवेकानन्द

व्यवसाय को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-”व्यवसाय एक ऐसी क्रिया है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं अथवा सेवाओं का नियमित उत्पादन क्रय-विक्रय तथा विनिमय सम्मिलित है“ जिसके आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व होते हैं।
लोग लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से व्यवसाय चलाते हैं। लेकिन केवल लाभ अर्जित करना ही व्यवसाय का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता। समाज का एक अंग होने के नाते इसे बहुत से सामाजिक कार्य भी करने होते हैं। यह विशेष रूप से अपने अस्तित्व की सुरक्षा में संलग्न स्वामियों, निवेशकों, कर्मचारियों तथा सामान्य रूप से समाज व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र व समुदाय की देखरेख की जिम्मेदारी भी निभाता है। अतः प्रत्येक व्यवसाय को किसी न किसी रूप में इनके प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए। उदाहरण के लिए, निवेशकों को उचित प्रतिफल की दर का आश्वासन देना, अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन, सुरक्षा, उचित कार्य दशाएँ उपलब्ध कराना, अपने ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित मूल्यों पर उलब्ध कराना, पर्यावरण की सुरक्षा करना तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत से कार्य करने चाहिए।
हालांकि ऐसे कार्य करते समय व्यवसाय के सामाजिक उत्तारदायित्वों के निर्वाह के लिए दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। पहली तो यह कि ऐसी प्रत्येक क्रिया धर्मार्थ क्रिया नहीं होती। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यवसाय किसी अस्पताल अथवा मंदिर या किसी स्कूल अथवा कालेज को कुछ धनराशि दान में देता है तो यह उसका सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं कहलाएगा, क्योंकि दान देने से सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं होता। दूसरी बात यह है कि, इस तरह की क्रियाएँ कुछ लोगों के लिए अच्छी और कुछ लोगों के लिए बुरी नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए एक व्यापारी तस्करी करके या अपने ग्राहकों को धोखा देकर बहुत सा धन अर्जित कर लेता है और गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल चलाता है तो उसका यह कार्य सामाजिक रूप से न्यायोचित नहीं है। सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ है कि एक व्यवसायी सामाजिक क्रियाओं को सम्पन्न करते समय ऐसा कुछ भी न करे, जो समाज के लिए हानिकारक हो।
इस प्रकार सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा व्यवसायी को जमाखोरी व कालाबाजारी, कर चोरी, मिलावट, ग्राहकों को धोखा देना जैसी अनुचित व्यापरिक क्रियाओं के बदले व्यवसायी को विवेकपूर्ण प्रबंधन के द्वारा लाभ अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह कर्मचारियों को उचित कार्य तथा आवासीय सुविधाएँ प्रदान करके, ग्राहकों को उत्पाद विक्रय उपरांत उचित सेवाएँ प्रदान करके, पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करके तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा द्वारा संभव है।
एक समाज, व्यक्तियों, समूहों, संगठनों, परिवारों आदि से मिलकर बनता है। ये सभी समाज के सदस्य होते हैं। ये सभी एक दूसरे के साथ मिलते-जुलते हैं तथा अपनी लगभग सभी गतिविधियों के लिए एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। इन सभी के बीच एक संबंध होता है, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। समाज का एक अंग होने के नाते, समाज के सदस्यों के बीच संबंध बनाए रखने में व्यवसाय को भी मदद करनी चाहिए। इसके लिए उसे समाज के प्रति कुछ निश्चित उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना आवश्यक है। ये उत्तरदायित्व हैं-समाज के पिछड़े तथा कमजोर वर्गों की सहायता करना, सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना, रोजगार के अवसर जुटाना, पर्यावरण की सुरक्षा करना, प्राकृतिक संसाधनों तथा वन्य जीवन का संरक्षण करना, खेलों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान प्रोद्यौगिकी आदि के क्षेत्रों में सहायक तथा विकासात्मक शोधों को बढ़ावा देने में सहायता करना।
लाभ-निरपेक्ष संस्थाएं ;एन.जी.ओद्ध स्वतंत्र रूप से काम करती हैं तथा इनका संचालन बोर्ड ऑफ ट्रस्टी, संचालन परिषद व प्रबंध समिति के हाथों में रहता है। संस्था खुद सदस्यों व उनकी भूमिकाओं को चुनती है। इन संस्थाओं के पास किसी भी रूप में अपने सदस्यों को वित्तीय लाभ प्रदान करने की अनुमति नहीं है। अतः ये संस्थाएं अपने सदस्यों के अलावा अन्य सभी लोगों की मदद करती हैं और इसी वजह से इन्हें लाभ-निरपेक्ष संस्थाएं कहा जाता है। भारतीय कानून के अनुसार लाभ-निरपेक्ष एवं धर्मार्थ संस्थाओं का पंजीकरण निम्न रूप में होता है-
1. सोसाइटी
2. ट्रस्ट 
3. प्राइवेट लिमिटेड लाभ-निरपेक्ष कंपनी या सेक्शन-25 कंपनी
प्रायः लाभ-निरपेक्ष संस्थाएं सरकारी अनुदान पर निर्भर रहतीं हैं जबकि इनका मूल उद्देश्य समाज से सक्षम दानदाताओं के वर्ग से दान प्राप्त कर सामाजिक रचनात्मक कार्यो एवं मानवता के विकास का कार्य करने के साथ ही लोगों को दान देने के प्रति इच्छा को विकसित करना भी है। 
हमारा राष्ट्र निर्माण का व्यापार आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति करता हुआ एक मानक व्यवसाय है। इस क्रम में लाभ-निरपेक्ष संस्थाओं के लिए उनके कार्य क्षेत्र में, उनके साख को बढ़ाते हुये सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति के लिए व्यापक और मानव जीवन से सीधे जुड़ा अवसर उपलब्ध कराता है।
हमारा राष्ट्र निर्माण का व्यापार सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति के लिए भारत के प्रत्येक जिले से एक मुख्य जिला प्रेरक के रूप में पद सृजित है। जिनके द्वारा कार्य को संचालित होना है। हमारे कार्य के अलावा वे अन्य सामाजिक कार्य संचालित करने के लिए स्वतन्त्र भी रहेंगे।
पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) द्वारा उत्पन्न व्यवसाय, व्यवसाय व उसके उत्तरदायित्व की शत-प्रतिशत पूर्ति करते हुये एक मानक व्यवसाय का उदाहरण है और निम्नलिखित सामाजिक उत्तरदायित्व की भी पूर्ति करती है। 

01. प्रत्यक्ष सहायता
सहायता प्राप्त करने के लिए अपने वार्ड / ग्राम प्रवेश प्रेरक से सम्पर्क करें। सभी सहायता कार्यालय को आवेदन प्राप्त होने की तिथि से तीसरे माह से प्रारम्भ होता है।

अ-नवजात (New Born) सहायता-बच्चे के जन्म होने पर नवजात सहायता रू0 500/-प्रति माह 5 वर्ष की उम्र तक दी जाती है।

ब-विकलांग/दिव्यांग सहायता (Handicapped Help)&शारीरिक रूप से अपंग व्यक्ति जो किसी सरकारी नौकरी में नहीं हैं उन्हें विकलांग सहायता रू0 500/-प्रति माह आजीवन दी जाती है।

स-वरिष्ठ नागरिक सहायता (Senior Citizen Help)-60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के ऐसे वरिष्ठ नागरिक जो सरकारी नौकरी में पूर्व में नहीं रहे, उन्हें वरिष्ठ नागरिक सहायता रू0 500/-प्रति माह आजीवन दी जाती है।

द-विधुर सहायता (Widower Help)-60 वर्ष से कम उम्र के ऐसे पुरूष व्यक्ति जिनकी पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है और उन्होंने फिर विवाह न किया हो, उन्हें विधुर सहायता रू0 500/-प्रति माह 60 वर्ष की उम्र तक दी जाती है। उसके बाद वे पुनः सहायता के लिए आवेदन कर वरिष्ठ नागरिक सहायता में आ सकते हैं। महिला विधवा को सहायता देने का कोई प्राविधान नहीं रखा गया है क्योंकि सरकार द्वारा उन्हें विभिन्न प्रकार की सहायता व अवसर प्रदान की गयी है। समाज द्वारा भी उन्हें सहयोग और सहानुभूति प्राप्त है।

य-अनाथ (Orphan) सहायता-14 वर्ष या उससे कम उम्र के ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता दोनों स्वर्गवासी हो चुके हैं उन्हें अनाथ सहायता रू0 500/-प्रति माह 18 वर्ष की उम्र तक दी जाती है। 

02. अप्रत्यक्ष सहायता

अ. सृष्टि पुस्तकालय योजना (Srishti Library Scheme)-किसी भी ग्राम / नगर वार्ड में हमारे 200 विद्यार्थी हो जाने पर उस ग्राम में ”सृष्टि ग्रामीण पुस्तकालय“ की स्थापना की जाती है जो ग्राम प्रवेश प्रेरक के देख-रेख में संचालित होती है। 

ब. विश्व कल्कि पुरस्कार (WORLD KALKI AWARD)-विश्व कल्कि ओलंपियाड (WKO)-सुनिश्चित पुरस्कार रूपये एक करोड़
प्रस्तुत ”विश्वशास्त्र-द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज“ का मुख्य विषय ”मन का विश्वमानक-शून्य (WS-0) श्रंृखला और पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी-WCM-TLM-SHYAM.C“ है जो सम्पूर्ण विश्व के लिए सकारात्मक विचारों के एकीकरण के द्वारा मानव मस्तिष्क के एकीकरण के लिए आविष्कृत है। जिसे आविष्कारक श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने इस चुनौती के साथ प्रस्तुत किया है कि यह विश्व व्यवस्था के लिए अन्तिम है। आविष्कार के मुख्य विषय के अलावा सभी आॅकड़े उस आविष्कार को आधार एवं पुष्टि प्रदान करने के लिए प्रयुक्त किये गये हैं जो वर्तमान समाज में पहले से ही प्रमाण स्वरूप विद्यमान हैं।
पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) इस आविष्कार को अन्तिम होने की पुष्टि करते हुये और उसके प्रति ध्यानाकर्षण करने हेतु यह घोषणा करता है कि जब तक मानव सृष्टि रहेगी तब तक मानव मस्तिष्क के एकीकरण और विश्व व्यवस्था, शान्ति, एकता, स्थिरता, एकीकरण सहित स्वस्थ लोकतन्त्र इत्यादि के लिए कोई दूसरा इससे अच्छा आविष्कार यदि प्रस्तुत होता है तब ट्रस्ट उस व्यक्ति/संस्था को रूपये 1 करोड़ का पुरस्कार प्रदान करेगी जो काल के दूसरे और अन्तिम दृश्य काल व युग के चैथे-कलियुग के अन्त और पाँचवें स्वर्णयुग के प्रारम्भ के दिन शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से लागू होकर अनन्त काल तक चलता रहेगा।
31 दिसम्बर, 2021 तक उपरोक्त पुरस्कार यदि कोई व्यक्ति या संस्था इसे न प्राप्त कर सका तो प्रारम्भ 22 दिसम्बर, 2012 से 1 जनवरी, 2022 तक 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित मूल राशि को मूलधन के रूप मे समायोजित कर उस राशि पर प्राप्त प्रत्येक वर्ष के ब्याज की राशि को प्रत्येक वर्ष ऐसे 10 शोध छात्रों को छात्रवृत्ति के रूप में वितरित की जायेगी जो विश्व एकीकरण की दिशा में किसी विषय में शोध के इच्छुक होंगे बावजूद इसके उपरोक्त 1 करोड़ रूपये का पुरस्कार अनन्त काल तक के लिए चलता ही रहेगा।
पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व के पूर्ति करने में भागीदारी करने के लिए भारत के प्रत्येक जिले से एक लाभ-निरपेक्ष संस्था मुख्य जिला प्रेरक के रूप में आमंत्रित करता है।