Action Plan of New Human, New India, New World based on Universal Unified Truth-Theory. According to new discovery World Standard of Human Resources series i.e. WS-0 Series like ISO-9000, ISO-14000 etc series
मेरे विश्व शान्ति के कार्य हेतु बनाये गये सभी ट्रस्ट
मानवता के लिए सत्य-कार्य एवं दान के लिए सुयोग्य पात्र
अधिकतम व्यक्ति अपने बहुत सी खुशियों व इच्छाओं की पूर्ति अपने व्यक्तिगत समस्याओं के कारण नहीं कर पाते। इसी कारण ऐसा कार्य जो उन्हें आनन्द प्रदान करता है, कार्य करने वाले को पुरस्कार या दान देकर स्वयं को संतुष्टि प्रदान करते हैं। मेरे सम्पूर्ण कार्य हेतु बनाये गये सभी ट्रस्ट भारत सहित विश्व के मानवता के लिए सर्वोच्च व अन्तिम कार्य है। फलस्वरुप यह अनेक मानवों की इच्छा की पूर्ति भी है। ट्रस्ट का कार्य मनुष्य के उस बिन्दु पर कार्य है, जहाँ से मनुष्य स्वयं अपनी सहायता के लिए तैयार हो सके। ट्रस्ट संघर्षशीलता व कर्म में विश्वास करता है न कि मनुष्य को सीधे धन उपलब्ध कराकर उसे निकम्मा बना देने में। ट्रस्ट इस सर्वोच्च और अन्तिम कार्य के लिए जन साधारण से सहयोग की अपेक्षा करता है जिसका वह सुयोग्य पात्र भी है।
”इस कलयुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात एक मात्र कर्म है और दानांे में धर्म दान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्न दान। जो धर्म का ज्ञानदान करते हैं वे अनन्त जन्म और मृत्यु के प्रवाह से आत्मा की रक्षा करते है, जो विद्या दान करते हैं वे मनुष्य की आँखें खोलते, उन्हें आध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते है। दूसरे दान यहाँ तक कि प्राण दान भी उनके निकट तुच्छ है। आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार से मनुष्य जाति की सबसे अधिक सहायता की जा सकती है।“ - महर्षि मनु
”पुण्य, व्यक्तिगत कर्म के लिए सत्य पात्र को दान, दूसरांे की सेवा और देखभाल, अपने पुण्य का भाग दूसरों को देना, दूसरे द्वारा दिये गये पुण्य के भाग को स्वीकारना।“-भगवान बुद्ध
”सावधान रहो! तुम मनुष्यों को दिखाने के लिए अपने धर्म के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्ग स्थित पिता से कोई फल नहीं पाओगे। इसलिए जब तू दान करे, तो अपने आगे तुरही न बजवा जैसा कपटी लोग सभाओं व गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करंे। मंै तुमसे सच कहता हूँ कि वे अपना फल पा चुकें।“- ईसामसीह
”यह कि तू कहे कि मैनें सर्वोच्च अल्लाह की दासता स्वीकार की है और मैं उसका ही हूँ और यह कि तू नमाज (प्रार्थना) कायम कर और जकात (दान) दे। यह कि तू भूखों को खाना खिला और तू जिन्हें जानता है और जिन्हें नहीं जानता, उन सबको सलाम कर“- मुहम्मद पैगम्बर
”धनी व्यक्तियों को अपने धन से भगवान और भक्तों की सेवा करनी चाहिए और निर्धनों को भगवान का नाम जपते हुए उनका भजन करना चाहिए।“- श्री माँ शारदा
”दान से बड़ा और धर्म नहीं। हाथ सदा देने के लिए ही बनाए गये थे। कुछ मत माँगों बदले में कुछ मत चाहो। तुम्हें जो देना है दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आयेगा, पर अभी उसकी बात मत सोचो। वह वर्धिक होकर, सहस्त्र गुना वर्धिक होकर वापस आयेगा, पर ध्यान उधर न जाना चाहिए। तुममंे केवल देने की शक्ति है। दे दो, बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है।“- स्वामी विवेकानन्द
”भगवान से दान लेने वाले थक जाते हैं किन्तु उनकी उदारता अथक है। युगों से मानव, भगवान की उदारता पर पलता आ रहा है। अरे नानक, उनकी इच्छा संसार का निर्देशन करती है परन्तु फिर भी वे असक्त अथवा चिन्ता से अलिप्त रहते है।“-गुरू नानक
ट्रस्ट के योजनाबद्धकर्ता की घोषणा
इस शास्त्र-साहित्य व आविष्कार से प्राप्त समस्त आर्थिक लाभ मेरे मार्गदर्शन में स्थापित पाँचों ट्रस्ट में से सक्रिय ट्रस्ट के माध्यम से सामाजिक कार्यो, मानवता व एकात्मता के विकास हेतु वितरित कर दिये जायेंगे। पाँच ट्रस्ट निम्नलिखित हैं-
1. साधु एवं सन्यासी के लिए-सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
2. राजनीतिक उत्थान व विश्वबन्धुत्व के लिए-प्राकृतिक सत्य मिशन (ट्रस्ट)
3. श्री लव कुश सिंह के रचनात्मक कार्यों के संरक्षण के लिए-विश्वमानव फाउण्डेशन (ट्रस्ट)
4. व्यावहारिक ज्ञान पर शोध के लिए-सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (ट्रस्ट)
01.ट्रस्ट भारत सहित विश्व के लिए ”जय-जवान, जय-किसान, जय-विज्ञान“ के बाद उसके पूर्णरुप ”जय-जवान, जय-किसान, जय-विज्ञान, जय-ज्ञान, जय-कर्मज्ञान“ में से ”जय-ज्ञान, जय-कर्मज्ञान“ पर आधारित है।
02.ट्रस्ट ”ईश्वर“ को सर्वशक्तिमान, निराकार, र्निविवाद, अदृश्य स्वीकार करते हुये भी उसके होने और न होने पर कोई बहस नहीं करना चाहता। ट्रस्ट ”ईश्वर“ को निराकार रुप में ”एकीकृत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ का रुप मानता है जिसके सामने सभी का समर्पण हमेशा से होता आया है। समय-समय पर कालानुसार इसी निराकार ”एकीकृत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ को प्रत्यक्ष या प्रेरक, अंश या पूर्ण रुप से स्थापित करने वाले मानव शरीर को ट्रस्ट ”साकार ईश्वर“ या ”अवतार“ मानता है। ट्रस्ट इसी निराकार “एकीकृत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ को ईश्वर का मस्तिष्क मानता है और इसी की उपयोगिता को आवश्यक समझता है न कि ईश्वर को। क्योकि मानव यदि ईश्वर के मस्तिष्क को अपना ले तो वह अपने इष्ट तक असानी से उठ सकता है जो मानव जीवन का लक्ष्य है।
03.ट्रस्ट का मूल प्रकृति के दृश्य, एक, अपरिवर्तनीय, सार्वजनिक प्रमाणित, विवादमुक्त नियम आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। ट्रस्ट का सम्पूर्ण ज्ञान व कार्य इसी मुक्त आदान-प्रदान की शिक्षा पर आधारित है। मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्पन्न है न कि उसके अधीन होने के लिए इसलिए ट्रस्ट की शिक्षा आदान-प्रदान को मनुष्य के अधीन करने की शिक्षा है जिसे सत्य चेतना कहते है और जो सभी मनुष्य की आवश्यकता है जिससे प्रत्येक मनुष्य स्वयं को अपने-अपने इष्ट तक उठा सकें।
04.ट्रस्ट किसी सम्प्रदाय का संस्थापक नहीं है न ही उसके पास किसी विशेष वस्त्र का प्रचलन, किसी विशेष मूर्ति की पूजा, गुरु-शिष्य परम्परा, गुरु दक्षिणा, गुरु मंत्र, जीवन शैली का प्रविधान है न ही उसका संचालन इसका उद्देश्य है। ट्रस्ट ज्ञान-कर्मज्ञान-दृश्य कर्मज्ञान के प्रसार एवं उसे प्रमाणित करने के लिए कर्म करने का संस्था मात्र है जिससे मानव, मानव से जुड़कर स्वयं अपने सहित जहाँ भी वह रहे, वहाँ स्वतः स्फूर्त सत्य-चेतना से संतुलित कार्य कर सके जो ब्रह्माण्डीय विकास की दिशा में हो।
05.कर्म, अदृश्य ज्ञान का दृश्य रुप है। अर्थात् दृश्य क्रिया या व्यापार या आदान-प्रदान या परिवर्तन या अनेक या चक्र या TRADE या प्राकृतिक सत्य का अदृश्य रुप आत्मा या CENTRE या केन्द्र या सत्य या धर्म या ईश्वर या ब्रह्म है। पिछले चारो वेदों के ज्ञान काण्ड अर्थात् उपनिषद् ज्ञान अपने चरम विकास को प्राप्त कर चुका है जिसे वेदान्त कहते हैं। अब ज्ञान के दृश्य रुप अर्थात् कर्म-ज्ञान का क्रम विकास चल रहा है। जिसे प्रथमतया भगवान कृष्ण ने फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करने की शिक्षा देकर की। और अब उसका पूर्णरुप फल को जानकर कर्म करने की शिक्षा है। जो अदृश्य पूर्णज्ञान का दृश्य पूर्ण कर्म के रुप में परिवर्तन है। जो देश-काल मुक्त ज्ञान ब्रह्माण्डीय सीमा तक सत्य है वहीं वेद है और जो देश-काल मुक्त कर्मज्ञान ब्रह्माण्डीय सीमा तक प्रभावी है वहीं कर्मवेद है।
06.ट्रस्ट अपने साहित्य एवं विचार को व्यक्त करने के लिए प्रयोग में लाये गये शब्द या नाम जिन्हें वर्तमान समाज में व्यक्ति किसी सम्प्रदाय विशेष का समझते हैं, किसी भी परिस्थितियों में उन शब्दों का प्रयोग कर किसी भी मानव आविष्कृत सम्प्रदाय को सर्वोच्च प्राथमिकता देना ट्रस्ट की नीति नहीं है। उन शब्दों या नामों का प्रयोग ट्रस्ट मात्र अपने विचार को व्यक्त करने के लिए करता है। यदि कोई यह सोचे कि ट्रस्ट किसी विशेष सम्प्रदाय का समर्थक है तो वह उसका स्वयं का विचार होगा जो उसके मन द्वारा ही भ्रमवश या अल्पज्ञता के कारण उत्पन्न हुआ होगा। ट्रस्ट केवल प्रकृति आविष्कृत सम्प्रदाय मानव एवं प्रकृति सम्प्रदाय का समर्थक है।
07.जिस प्रकार उन शब्दों का प्रयोग जिन्हें वर्तमान समय में साम्प्रदायिक समझा जाता हैं, स्वयं को व्यक्त करने के लिए उनका प्रयोग हमारी मजबूरी है। उसी प्रकार यह भी हमारी मजबूरी है कि हम ऐसे विषय को किसी ऐसे विषय से नहीं जोड़ सकते जो अव्यक्त हो, अदृश्य हो और जो अन्धभक्ति उत्पन्न करे और जिसे हम सार्वजनिक प्रमाणित न कर सकें। क्योकिं किसी भी व्यक्ति का व्यक्त रुप उसके ज्ञान व कर्मज्ञान के व्यक्त करने के उपरान्त ही स्थापित होता है। ट्रस्ट का सम्पूर्ण क्रियाकलाप एक ही भौतिक शरीर जिसका नाम ”लव कुश सिंह “ हैं, के द्वारा व्यक्त हो रहा है और इस नाम का प्रयोग भी हमारी मजबूरी है।
08.व्यक्ति से व्यक्ति के बीच सम्बन्ध में एक न्यूनतम एवं अधिकतम् साझा कार्यक्रम है, पुनः एक संगठन का उस संगठन से जुड़े सभी व्यकितयों का एक न्यूनतम् एवं अधिकतम साझा कार्यक्रम है। इसी प्रकार संगठन से संगठन एवं देश से देश के बीच एक न्यूनतम एवं अधिकतम साझा कार्यक्रम होगा। यह यदि मानव के लिए होगा तो मानव व्यवस्था का तथा मानव सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्यक्रम होगा तो वह क्रियाकलापों का विश्व मानक कहा जायेगा और उस ज्ञान से युक्त मन, मन का विश्व मानक कहा जायेगा और इस मन से युक्त मानव, विश्वमानव। यहीं आई0 एस0 ओ0/डव्ल्यू0 एस0 ओ0 शून्य श्रृंखला अर्थात् मन का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानक है। यहीं एकता या धर्मनिरपेक्ष या सर्वधर्मसमभाव रुप में आई0 एस0 ओ0/डव्ल्यू0 एस0 ओ0 शून्य श्रृंखला की उत्पत्ति की दिशा है।
09.ट्रस्ट व्यक्ति के जीवन शैली पर नहीं बल्कि व्यक्ति द्वारा आविष्कृत / उत्पादित, उत्पाद पर ध्यान देता है। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार एक वैज्ञानिक द्वारा आविष्कृत उत्पाद का लाभ सभी प्राप्त करते है जवकि वैज्ञानिक के जीवन शैली को कोई नहीं अपनाता। कहने का तात्पर्य यह है कि कर्मवेद या मन का विश्व मानक के आविष्कार का लाभ समाज व राष्ट्र उठाये, न कि आविष्कारक के जीवन शैली को जानने की कोशिश करें क्योकि कोई भी आविष्कारक, आविष्कार एवं उसकी स्थापना के लिए स्वयं को अनेक विचित्र परिस्थितियो से गुजारता है। और आविष्कार पूर्ण हो जाने पर प्रयोग के परिस्थितियो से गुजरने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
पाँच ट्रस्ट निम्नलिखित हैं-
1.साधु एवं सन्यासी के लिए-सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
2.राजनीतिक उत्थान व विश्वबन्धुत्व के लिए-प्राकृतिक सत्य मिशन (ट्रस्ट)
3.श्री लव कुश सिंह के रचनात्मक कायों के संरक्षण के लिए-विश्वमानव फाउण्डेशन (ट्रस्ट)
4.व्यावहारिक ज्ञान पर शोध के लिए-सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (ट्रस्ट)
1. नयी पीढ़ी के लिए नया विषय-ईश्वर शास्त्र, मानक विज्ञान, एकात्म विज्ञान
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा ”ईश्वर“, ”मानक“, ”एकात्म“ की अन्तिम परिभाषा का आविष्कार पूर्ण हो जाने से नागरिक शास्त्र (Civics),भौतिकशास्त्र (Physics) की भाँति ईश्वर शास्त्र (Godics), मानक विज्ञान (Standard Science), और एकात्म विज्ञान (Integration Science) शैक्षणिक विषय का मार्ग मिल गया है।
2. विश्व राजनीतिक पार्टी संघ
(World Political
Party Organisation - WPPO)
1. संस्थापक एवं सदस्य: विश्व राजनीतिक पार्टी संघ का गठन भारत के किसी एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी द्वारा किया जायेगा। भारत का यह पार्टी ही विश्व राजनीतिक पार्टी संघ का संस्थापक सदस्य कहलायेगा। संघ में प्रत्येक लोकतंत्र आधारित देश से एक राजनीतिक पार्टी को सदस्य बनाया जायेगा।
2. संघ का मुख्यालय: विश्व राजनीतिक पार्टी संघ का मुख्यालय संस्थापक सदस्य के निणर्यानुसार किसी भी देश में हो सकता है।
3. संघ का झण्डा एवं प्रतीक चिन्ह: संघ का झण्डा सफेद रंग का है जिसकी लम्बाई व चैड़ाई का अनुपात 3ः2 है। उसके उपर मुद्रित प्रतीक चिन्ह का रंग लाल है।
4. संघ की स्पष्ट मुख्य घोंषणा: संघ का प्रत्येक सदस्य अपने-अपने देश में निम्नलिखित घोषणा करेगा।
”धर्म निरपेक्ष एवम् सर्वधर्मसमभाव भारतीय संविधान जो अन्ततः विकसित होकर विश्व संविधान का रुप लेगा के अनुरुप देश की एकता एवम् अखण्डता सहित विश्व-बन्धुत्व के लिए मेरी पार्टी का सिद्धान्त दार्शनिक-नैतिक उत्थान आधारित WS-0 श्रृंखला अर्थात मानव मन के अन्तः विषयों के विश्व मानक श्रृंखला अर्थात् विचार एवम् साहित्य, विषय एवम् विशेषज्ञ, ब्रह्माण्ड व मानव (स्थूल एवं सूक्ष्म) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप तथा उपासना स्थल के विश्व मानक पर आधारित होगा। जिससे प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्माण्डीय विकास की दिशा में होकर कार्य व विकास कर सके। परिणामस्वरुप शीघ्रताशीघ्र विवादमुक्त नीति एवं दूरगाामी परिणाम के रुप में एक स्वच्छ एवं नैतिक समाज सहित मानवता आधारित पूर्ण लोकतन्त्र की नींव रखते हुए उसे प्राप्त किया जा सके।“
5. संघ का दर्शन शास्त्र-साहित्य: विश्व-राष्ट्रीय-जन एजेण्डा साहित्य 2012+ संघ का आधार साहित्य वह है जो सभी मानव की मूल आवश्यकता है, जो सभी मानव में एक है वह है- कर्म और उसे कालानुसार करने का ज्ञान-कर्मज्ञान। अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन द्वारा बाह्य विषयों अर्थात् उद्योगों के उत्पाद के निर्माण की अन्तर्राष्ट्रीय गुणवत्ता की श्रृंखला ISO-9000 की भाँति, मानव, समाज और संगठन द्वारा अन्तः विषय मानव मन के निर्माण की विश्व गुणवत्ता की श्रृंखला WSO/ISO-0 जो धर्मनिरपेक्ष एवं सर्वधर्मसमभाव नाम है अर्थात् विचार एवम् साहित्य, विषय एवम् विशेषज्ञ, ब्रह्माण्ड (स्थूल एवं सूक्ष्म) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप तथा उपासना स्थल के अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानक है। जिसकी उपयोगिता विश्व शान्ति, विश्व एकता, एवं विश्व स्थिरता में होना है। इसे उस उद्देश्य से सत्य-चेतना की ओर बढ़ते विश्व के सामने रखा जा रहा है जिसकी स्थापना यथाशीघ्र होनी है। संघ एकात्मकर्मवाद का समर्थक है न कि एकात्मसंस्कृतिवाद का। वर्तमान तथा भविष्य के लिए विश्व की इसकी उपयोगिता और आवश्यकता ही संघ का साख है।
6. भारत में संघ के संस्थापक पार्टी को संघ के गठन की घोषणा से लाभ: स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारतीय जनता के समक्ष मात्र एक ही सार्वजनिक मुद्दा था जिस पर सभी भारतीय एक जुट हुए थे। वह था-”स्वतंत्रता“। जिसे प्राप्त कर लेने के बाद सभी अपनी-अपनी दुनिया में संकुचित हो गये। परिणामस्वरुप वर्तमान में कोई भी राष्ट्रीय मुद्दा शेष नहीं है। ऐसी स्थिति में इस कार्य योजना द्वारा संस्थापक राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर एक मुद्दे पर एक जुट करने का लाभ प्राप्त होगा। साथ ही विश्व राजनीतिक पार्टी संघ की घोषणा से पूरे विश्व के समक्ष अपनी गुरुता सिद्ध करने का लाभ मिलेगा। भारत में इसका सीधा प्रभाव अन्य राजनीतिक दलांे को मुद्दा विहिन कर देना होगा। जिसका सीधा लाभ राष्ट्रीय स्तर पर संस्थापक राजनीतिक दल को होगा।
संघ का क्रान्ति के प्रति विचार यह है कि-”राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थिति में उसकी स्वस्थता के लिए परिवर्तन ही क्रान्ति है, और यह तभी मानी जायेगी जब उसके मूल्यों, मान्यताओं, पद्धतियों और सम्बन्धों की जगह नये मूल्य, मान्यता, पद्धति और सम्बन्ध स्थापित हों। अर्थात क्रान्ति के लिए वर्तमान व्यवस्था की स्वस्थता के लिए नयी व्यवस्था स्थापित करनी होंगी। यदि व्यवस्था परिवर्तन के आन्दोलन में विवेक नहीं हो, केवल भावना हो तो वह आन्दोलन हिंसक हो जाता है। हिंसा से कभी व्यवस्था नहीं बदलती, केवल सत्ता पर बैठने वाले लोग बदलते है। हिंसा में विवेक नहीं उन्माद होता है। उन्माद से विद्रोह होता है क्रान्ति नहीं। क्रान्ति में नयी व्यवस्था का दर्शन-शास्त्र होता है अर्थात क्रान्ति का लक्ष्य होता है और उस लक्ष्य के अनुरुप उसे प्राप्त करने की योजना होती है। दर्शन के अभाव में क्रान्ति का कोई लक्ष्य नहीं होता।“
3. विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो
अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के विचार विश्वस्तरीय हैं जिसके कारण ज्ञान से युक्त विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो के लिए भी मार्ग मिला है।
फिल्में भारतीय समाज से एक अलग तरह का जुड़ाव रखती हैं और फिल्मों के समाज से इस जुड़ाव के पीछे महतवपूर्ण भूमिका निबाहती है उनकी कथा और पटकथा. काल् क्रम से हम अगर फिल्मों के इतिहास पर नजर डालें तो स्पष्ट पता चलता है कि जिन फिल्मों की पटकथा कसी हुई और मौलिक होती है, दर्शकों से उसे भरपूर प्यार मिलता है। इस लिहाज से पटकथा लेखन फिल्म निर्माण का सबसे मूलभूत और आवश्यक पहलु है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. यह भी सर्वविदित है कि हिंदी फिल्म उद्योग के पास योग्य लेखों की हमेशा से कमी रही है इसलिए जिस पैमाने पर यहाँ फिल्म निर्माण होता है उस लिहाज से हमारा सिनेमा समृद्ध नहीं है. आज भी भारतीय परिप्रेक्ष्य की समझ और नवीन विचारों के साथ पटकथा लिखने वालों में कुछ गिने चुने नाम हैं इसलिए पटकथा लेखन को एक व्यवसाय के रूप में लेने की कोशिश युवाओं को जरुर करनी चाहिए साहित्यिक लेखन और फिल्म लेखन दो अलग अलग विद्याएँ हैं साहित्य जगत के बड़े नाम फिल्म पटकथा लेखन में कभी जम नहीं पाए तो सिर्फ उसका यही कारण था कि वे भावों के प्रवाह को फिल्म माध्यम के अनुरूप ढाल नहीं पाए. टीवी सीरियल हो या फिल्म और थियेटर...इनकी नींव में होती है, राइटिंग यानी लेखन। फिल्म और टेलिविजन जगत में जो फिल्मांकन (शूटिंग) किया जाता है, या थियेटर में जो भी मंच पर पेश आता है, उसे पहले कागज पर इस तरह लिखा जाता है, ताकि निर्देशक के सामने एक-एक सीन जीवित हो जाए। फिल्म, या टीवी प्रोग्राम के लिए ये कार्य निम्नलिखित तीन चरणों में किया जाता है।
1. पहले कहानी लिखी जाती है, फिर
2. स्क्रीनप्ले या पटकथा तैयार की जाती है, और अंत में
3. डायलॉग या संवाद लखे जाते हैं।
कहानी, पटकथा और संवाद जितने मजबूत होंगे, शूटिंग और उसके बाद होने वाला पोस्ट प्रोडक्शन वर्क उतना ही आसान रहेगा।
जहां लेखक और साहित्यकारों का वास्ता कागज और कलम तक सीमित होता है, वहीं टीवी प्रोग्राम और फिल्म लिखने वालों को अपनी कला को परफॉर्मिंग आर्ट में तब्दील करना होता है। उन्हें वो लिखना होता है, जिसे परदे पर सही ढंग से उतारा जा सके, इसीलिए फिल्म या टीवी लेखक के लिए इन दोनों माध्यमों की जानकारी होना जरूरी है। लिखते वक्त उन्हें परदे पर उतारे जा सकने वाले दृश्यों की सीमाओं को समझना होता है, फिल्म के बजट को ध्यान में रखना होता है। किसी फिल्म में स्क्रिप्ट का महत्व ये है, कि कई बार घटिया स्क्रिप्ट होने की वजह से बड़े से बड़े बजट और नामी सितारों से लदी हुई फिल्म फ्लॉप हो जाती है। दूसरी तरफ एक मजबूत स्क्रिप्ट को कसे हुए डायरेक्शन के साथ परदे पर उतारा जाए, तो छोटे कलाकारों और मामूली बजट वाली फिल्में भी दर्शकों के दिल में उतर जाती हैं। अच्छी बात ये है कि फिल्म और टेलिविजन इंडस्ट्री में अच्छे लेखकों की हमेशा तलाश रहती है, खासकर एक ऐसे दौर में जब टीवी धारावाहिकों के 300 से 500 एपिसोड बनना आम बात हो गई है, कहानियां, संवाद और पटकथा लेखन रोजगार का एक विशाल क्षेत्र बनकर उभरा है।
फिल्म, टीवी और थिएटर की दुनिया। अक्सर लोग इसकी चकाचैंध को देखते हैं। अक्सर परदे पर, या रंगमंच पर प्रदर्शन करते हुए कलाकार ही हमारी नजर में आते हैं। लेकिन इन सबको रचने वाला एक पूरा संसार परदे के पीछे खड़ा है। इस संसार में शामिल हैं, वो लोग जो चुपचाप अपने कार्य को अंजाम देते हुए आपके सामने ग्लैमर जगत की चकाचैंध भरी रंगीन तस्वीर पेश करते हैं। यही वो लोग हैं, जो स्टारडम से कोसों दूर फिल्म मेकिंग और टीवी प्रोडक्शन में अलग अलग व्यवसायों को अपनाते हुए अपनी आजीविका चला रहे हैं। अपने अपने क्षेत्रों में इनकी अहमियत उतनी ही है, जितनी एक स्टार की, फिर चाहे वो हेयर ड्रेसर, मेकअप आर्टिस्ट, लाइटमैन, डबिंग आर्टिस्ट, एनिमेटर या स्पॉटबॉय हो।
अनेकों के पास केवल कहानी का आइडिया होता है, तो अनेकों के पास मुकम्मल कहानी। लेकिन उनके पास पटकथा नहीं है। एकबार फिर स्पष्ट कर दूं कि कथाकार और पटकथाकार को लेकर कोई भ्रम न पालें। पटकथा-लेखन, लेखन एक चरणबद्ध प्रक्रिया है। इसके कुछ मौलिक सिद्धांत हैं, जिसे जानना जरूरी है। कहानी या कथा कैसी भी हो सकती है। एक पटकथाकार केवल उस कहानी या कथा को एक निश्चित उद्देश्य यानी फिल्मों के निर्माण के लिए लिखता है, जो पटकथा (Screenplay) कहलाती है। और दूसरी ओर, एक कथाकार स्वयं पटकथाकार भी हो सकता है यानी कहानी भी उसकी और पटकथा भी उसी की। उम्मीद है अब आपको कथाकार और पटकथाकार का कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए। सवाल है कि पटकथा लेखन के सिद्धांत क्या हैं? यह कैसे लिखें? क्या लिखें और क्या न लिखें? एक फिल्मी कथानक का बीजारोपण कैसे होता है, इसका प्रारूप कैसा होता है? इसे स्टेप-बाइ-स्टेप समझना होता हैं।
स्क्रिप्ट राइटिंग कहानियां और कविताएं लिखने से कुछ अलग होता है। स्क्रिप्ट में लिखी गई हर बात का फिल्मांकन किया जाता है। इसमें लेखक को यह सोचकर लिखना पड़ता है कि उसके द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट पढ़ी नहीं, देखी जाएगी। उसकी मेहनत का परिणाम उसे फिल्मांकन के बाद मिलता है। इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए आपमें रचनात्मकता का होना आवश्यक है। जो युवा लिखने-पढ़ने के साथ मानवीय संवेदनाओं को पकड़ कर अभिव्यक्त करने की क्षमता रखते हैं उनके लिए भी इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। हालांकि स्क्रिप्ट राइटिंग पूरी तरह आपकी विश्लेषण और कल्पना क्षमता पर आधारित है, लेकिन फिर भी इसके लिए जर्नलिज्म कोर्स कर लिया जाए तो बेहतर होगा।
पटकथा लेखन एक कला है। अनेक विद्वान लेखन की इस विधा को व्यवसायिक लेखन का एक रूप मानते हैं। जो बहुत हद तक सही है। पटकथा ”स्वांतः सुखाय“ नहीं लिखी जाती है। यह एक उद्देश्य से लिखी जाती है अर्थात् यह फिल्मों, टीवी सीरियलों आदि के निर्माण के लिए होती। यह ध्यान देने योग्य है कि लेखन की विधाओं में पटकथा लेखन एक आधुनिक और नई विधा है। वास्तव में, पटकथा लेखन स्वाध्याय के साथ-साथ एक व्यवसायिक लेखन है। जाहिर है कि लेखन की इस विधा के लिए स्वाध्याय के साथ-साथ लेखन के व्यवसायिक गुणों का होना जरूरी है।
तलाश एक अदद कहानी की पटकथा लेखन के लिए सबसे बड़ी जरूरत है, एक अदद कहानी की। यकीन जानिए, कहानी कुछ भी हो सकती। सो कहानी के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है। मसलन, पूरी-की-पूरी रामायण, महाभारत या उनके एक-दो प्रसंग किसी फिल्म या धारावाहिक की कहानी हो सकती है। या इन ग्रंथों की कहानियों और पात्रों से प्रेरणा लेकर एक अच्छी कहानी गढ़ी जा सकती है।
कथानक को समस्या, संघर्ष और समाधान में बांटने की एक सर्वमान्य लेखन-परंपरा की चर्चा की। इन तीन बिंदुओं के रूप में कथानक को प्रस्तुत करने का चलन सर्वथा नया नहीं है। स्कूली शिक्षा में हमें सिखलाया जाता है कि अपने प्रत्येक आलेख को तीन भागों यानी शुरुआत (Opening), मध्य भाग (Body) और अंत (Ending) में बांटे। आलेख-लेखन का यह सूत्र OBE (Opening-Body-Ending) या OBC (Opening-Body-Conclusion) के रूप में जाना जाता है।
ओपनिंग वाले हिस्से में जहां प्रस्तावना या विषय-वस्तु का परिचय होता है, बॉडी वाले भाग में विषय-वस्तु का वर्णन होता है, तो वहीं एंडिंग वाले पार्ट में विषय-वस्तु का निष्कर्ष या ;आद्धलेख का उपसंहार होता है। कमोबेश पटकथा-लेखन भी इसी अवधारणा पर नियोजित होती है। शायद सदियों से और आज भी स्कूल में ;आद्धलेख लिखने का यह प्रारूप जरूर सिखलाया जाता है। रोचक यह है कि इस रीति का पालन नहीं करने पर परीक्षक नंबर काट लेते हैं। अगर किसी आलेख के लिए 10 नंबर निश्चित है और किसी छात्र ने OBE के ढर्रे का पालन नहीं किया है, तो उसके 2-3 नंबर तो शर्तिया गए। सवाल है फिल्मी दुनिया में OBE के इस बहस से क्या मतलब है? मतलब है सरकार, बड़ा गहरा मतलब है। क्या यहां भी नंबर कटता है। जी, बिलकुल कटता है और 2-3 नंबर नहीं, पूरे-का-पूरा नंबर कट जाता है, मतलब ”बच्चा पर्चा-फेल“!
फिल्म-जगत में “टू मिनट मूवी” एक व्यवहारिक शब्दावली के साथ-साथ व्यवहारिक कार्यप्रणाली है। क्योंकि, फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों के पास ज्यादा समय नहीं होता है कि घंटा, दो घंटा निकालें और किसी कहानी को आराम से सुनें या पढ़ें। कोई कथाकार या पटकथाकार जब किसी कहानी के सिलसिले में प्रोड्यूसर, निर्देशक या किसी फिल्म-मेकर या इन्वेस्टर से मिलता है, तो वे एक ही जुमला दोहराते हैं-”दो मिनट में बताइए, कहानी क्या है?“ यह प्रथा और जुमला कब से प्रचलित है, यह तो नहीं पता, लेकिन आज यह काफी चलन में है। इसलिए परंपरागत रुप से कहानी को थ्री प्वायंट्स ऑफ स्क्रीनप्ले यानी प्रिमाईस के रूप में में ढालना और कहने-सुनने की आदत डालना जरूरी है। और, सच बात तो यह है कि अगर कोई लेखक, पटकथा-लेखक या कथाकार किसी कहानी को दो मिनट में नहीं सुना सकता है, तो वह दो घंटे में भी नहीं सुना सकता है। ऐसे लोगों की जरुरत फिल्म इंडस्ट्री को भी नहीं है।
वास्तविकता तो यह है कि जो लोग फिल्में बनाते हैं, उनका पैसा, उनकी मेहनत, उनकी प्रतिष्ठा सब कुछ दांव पर लगी होती है। फिल्म हिट होती है, तो वे अर्श पर होते है, फिल्म पीटती या फ्लॉप होती है, तो वे फर्श पे नहीं बल्कि सड़क पर होते हैं। उनका समय बेशकीमती होता है। इसलिए जब भी अपनी कहानी लेकर उनसे मिलने जाएं, “टू मिनट मूवी” का होमवर्क जरुर कर लें। फिल्मी दुनिया में टू मिनट मूवी की स्थिति को कहावतों की बोली में कहें, तो यह मॉर्निंग शोज द डे (Morning shows the day) या पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं, की तरह है। इसलिए प्रिमाईस लेखन में कोताही एक पटकथा-लेखक के लिए आत्मघाती होता है। मतलब? जैसा कि ऊपर कहा है, आपकी पटकथा के परीक्षक ने आपका पूरे के पूरा नंबर काट लिया। मतलब यह कि कहानी का आइडिया, कथा-कहानी-पटकथा सब खारिज। वर्तमान में कोई प्रोड्यूसर, निर्देशक या कोई फिल्म-मेकर या इन्वेस्टर बड़ी मुश्किल से समय देता है या मिलता है। केवल तीन पंक्ति में प्रस्तुत एक प्रिमाईस के लिए वह अवसर हाथ से निकल जाए, तो आप और हम काहे को कथा-पटकथा लेखन सीखेंगे और काहे लिखेंगे!
एक कथा और पटकथा-लेखक के रूप में जब कोई कहानीकार एक कहानी का प्लॉट तैयार करता है, तो उसके जेहन में कुछ काल्पनिक दृश्य आते-जाते रहते हैं। फिर कहानी लिखनेवाला बड़े जतन से उन दृश्यों को एक के बाद एक क्रम में सहेजता है और लिख डालता है। इसी प्रकार, जब एक पटकथा-लेखक जब पटकथा लिखना शुरु करता है, तो ठीक ऐसी ही घटना उसके साथ भी होती है। उसके मस्तिष्क में पूरी कहानी दृश्य-दर-दृश्य, एक क्रम से, एक चलचित्र की तरह चलती जाती है। जिसे वह शब्दों का जामा पहनाकर एक पटकथा की शक्ल देता है। यहां यह जान लीजिए कि पटकथा-लेखक वह सौभाग्यशाली व्यक्ति या दर्शक है, जो एक फिल्म को सबसे पहले अपने दिमाग में देखता है और समझता है। पटकथा के एक अंग के रूप में वनलाईनर की अवधारणा नितांत अपने बम्बईया, अब मुम्बईया, पटकथाकारों के रचनात्मक दिमाग की उपज है। इसके महत्व और उपादेयता को समझते हुए पटकथा-लेखन का यह महत्वपूर्ण अंग अब हॉलीवुड फिल्मकारों को भी पसंद आने लगा है। तो, आईए जानते हैं कि वनलाईनर क्या है?
वनलाईनर किसी पटकथा की लगभग संवाद-विहीन संक्षिप्त दृश्यमय कहानी है। कहने का तात्पर्य यह कि जिस रुप में फिल्म को दिखानी होती है, यह ;वनलाईनरद्ध उसकी दृश्य-दर-दृश्य शाब्दिक प्रस्तुति है। अब सवाल यह है कि पटकथा लिखने से पहले वनलाईनर लिखना जरूरी है? जवाब है-जी हां, बहुत जरूरी है। क्योंकि, सबसे अहम बात यह कि इससे पूरी फिल्म की झलक मिल जाती है कि फिल्म कैसी दिखेगी या बनेगी। दूसरी अहम बात यह कि फिल्मी दुनिया में यह एक व्यवहारिक कार्यप्रणाली है। जैसा कि पिछले आलेखों में कह चुका हूं कि इस दुनिया से जुड़े लोगों के पास समयाभाव होता है। अक्सर प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर्स या खुद पटकथा-लेखक पूरी पटकथा के विस्तार और उसकी गहराई में नहीं जाना चाहते हैं। तब 100 या 120 पेज की पटकथा को अधिकतम चार-पांच पेज के रुप में लिख लिया जाता है, जो कि पटकथा का दृश्यवार विवरण यानी वनलाईनर होता है। तीसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि जिस तरह से एक अच्छा प्रिमाईस अच्छे कथानक और बेहतर पटकथा को जन्म देता है, कथा-पटकथा में पर्याप्त नाटकीयता भी लाता है। ठीक यही काम वनलाईनर का भी है, बल्कि इससे कई कदम आगे यह कथानक की दिशा, घटनाओं-परिघटनाओं की तारतम्यता और उसकी नाटकीयता को सटीक और प्रभावशाली ढंग से पेश करता है। चैथा कारण यह है कि कोई कथा या कहानी, चाहे वह छोटी हो या बड़ी, विस्तार से पटकथा का आभास नहीं देती है। इसी प्रकार किसी कथा या कहानी पर आधारित पटकथा हू-ब-हू ;शत-प्रतिशतद्ध कथा या कहानी की प्रस्तुति नहीं होती है। यहां उस व्यवहारिक चैलेंज को समझिए, जो एक प्रोड्यूसर या डायरेक्टर के सामने आता है। कथा या कहानी से उसे पूरी फिल्म की झलक नहीं मिलती है और समयाभाव में पूरी पटकथा को वह पढ़ना नहीं चाहता है। लिहाजा वह बीच का रास्ता “कथा-मिश्रित-पटकथा“ यानी वनलाईनर चाहता है। इसलिए वनलाईनर में कथा या कहानी और पटकथा दोनों के तत्वों का समावेश होता है अर्थात् बिना सम्वाद कहानी और दृश्य को एक साथ लिखा जाता है।
फिल्म के लिए पहले कहानी लिखी जाती है, फिर पटकथा और आखिर में संवाद ;डायलॉगद्ध। डायलॉग राइटर कहानी और पटकथा में संवाद जोड़कर उसके सिलसिले को आगे बढ़ाता है। लेकिन डायलॉग राइटर ;संवाद लेखकद्ध बनने के लिए आपमें कई खूबियां होनी चाहिए। आपमें किसी बात को बहुत कम शब्दों में कहने की कला आनी चाहिए, वो भी रोचक अंदाज में, जैसे-“मेरे पास मां है”
ये मशहूर डायलॉग था तो बहुत छोटा, लेकिन चार शब्दों में एक बेटे ने अपनी मां के लिए सारी ममता उड़ेल दी थी। अच्छे डायलॉग राइटर वहां कुछ भी लिखने से बचते हैं, जहां कलाकार अपने एक्स्प्रेशन ;हाव भावद्ध से ही बहुत कुछ कह जाएं। आपको आज के चलन और लोगों की बदलती मानसिकता को भी समझना होगा। मुगल-ए-आजम जैसी फिल्मों के दौर में उर्दू भाषा में बड़े-बड़े डायलॉग्स का चलन था, लेकिन आज छोटे, सरल और चुटीले डायलॉग्स का जमाना है, इसीलिए हिंदी के साथ आप अच्छी अंग्रेजी भी जानते हैं, तो सोने पे सुहागा। अच्छी अंग्रेजी जानने पर आप अंग्रेजी डायलॉग राइटर के डायलॉग्स भी ट्रांसलेट कर सकते हैं। अगर आपकी उर्दू अच्छी है, तो ये पीरियड फिल्म के डायलॉग लिखने में काम आ सकती है। डायलॉग राइटर के रुप में आपको फिल्म के माहौल को समझ कर शब्द चुनने होंगे किरदारों की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक परिस्थितियां समझनी होंगी। किरदार पढ़ा लिखा है, या अशिक्षित, एन.आर.आई. है या ठेठ उत्तरप्रदेश का, इसी हिसाब से उसकी हिंदी का टोन बदलना होगा। डायलॉग राइटर बनने के लिए आपको किसी फिल्म डायरेक्टर या स्क्रिप्ट राइटर से संपर्क करना होगा। आप उसके असिस्टेंट के रुप में काम करते हुए भी आगे बढ़ सकते हैं। जहां तक वेतन का सवाल है, टीवी जगत में हर एपिसोड या शो के हिसाब से पैसा मिलता है, जबकि फिल्मी दुनिया में हर फिल्म के हिसाब से।
फिल्म बनाने में निम्न क्रम से गुजरना पड़ता है-
01. स्क्रिप्ट
02. स्टोरीबोर्ड या चित्र
03. कपड़े
04. मेकअप
05. सेट पर शूटिंग
06. स्पेशल इफेक्ट्स् फिल्माना
07. संगीत रिकॉर्ड करना
08. आवाज मिलाना
09. कंप्यूटर से तैयार की गयी तसवीरें
10. एडिट करना
धर्म शास्त्र उन लोगों का जिक्र करती है “जिन के ज्ञानेन्द्रिय ;“परख-शक्ति”द्ध, अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।” इसलिए माता-पिता का लक्ष्य होना चाहिए, अपने बच्चों के दिल में ऐसे उसूल बिठाना जिनकी मदद से, वे बड़े होकर जब मनोरंजन के बारे में खुद फैसला करने के लिए आजाद हों, तब सही फैसले कर सकें। ऐसे बहुत-से जवान हैं जिन्हें बचपन से अपने माँ-बाप से बढ़िया तालीम मिली है। बहुत-से माता-पिताओं ने अपने बच्चों को परख-शक्ति का इस्तेमाल करना सिखाया है ताकि मनोरंजन के मामले में भी वे सही चुनाव कर सकें। यह सच है कि फिल्म इंडस्ट्री जो फिल्में बनाती है, उनमें से ज्यादातर अच्छी नहीं होतीं। दूसरी तरफ, जब धर्म शास्त्र के सिद्धांतों के मुताबिक चलते हैं, तो वे अच्छे मनोरंजन का मजा ले पाते हैं जिनसे न सिर्फ उन्हें ताजगी मिलती है बल्कि वे अच्छा भी महसूस करते हैं। बहुत-से देशों ने रेटिंग का तरीका अपनाया है। फिल्म में दिए रेटिंग के निशान से साफ पता चलता है कि किस उम्र के लोग यह फिल्म देख सकते हैं। इसके अलावा, हर देश की अपनी एक कसौटी होती है जिसके मुताबिक फिल्म की रेटिंग की जाती है। इसलिए एक देश में जो फिल्म जवानों के लिए मना है, वही शायद दूसरे देश में जवानों को देखने की छूट हो। बच्चों और जवानों के लिए बनायी गयी कुछ फिल्मों में जादू-टोना, भूतविद्या या दुष्टात्माओं के दूसरे काम दिखाए जा सकते हैं।
विजुअल-आडियो मीडिया (दृश्य-श्रव्य माध्यम) का आविष्कार मनुष्य जीवन के लिए सर्वप्रथम आश्चर्य का विषय था जो आगे चलकर मनोरंजन का मुख्य माध्यम बना और अब साहित्य की भँाति आॅडियो-विजुअल मीडिया भी समाज का दर्पण ही है। इस आडियो विजुअल मीडिया में फिल्म, दूरदर्शन तथा वर्तमान में इन्टरनेट भी शामिल हो गया है। परिणामस्वरूप फिल्म से समाज का निर्माण और समाज से फिल्म का निर्माण का रूप उभर कर सामने आया है। यह बात कि फिल्म समाज को क्या दिखाना चाहता है? तथा समाज फिल्म से क्या देखना चाहता है? यह बात फिल्म और समाज दोनांे ओर से सदा उठती रही है। निश्चय ही इसमंे मन का व्यापक न होना ही विवाद का मुख्य कारण रहा है। ऐसा न होने से ही अपनी अपनी दृष्टि से देखते हुये ही विचार व्यक्त किये जाते है।
फिल्म जगत से व्यक्त वही कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन, अभिनय समाज द्वारा जाने पहचाने और याद रखे जाते है। जो आत्मा को स्पर्श करती है। चंूकि यह आत्मा सर्वव्यापी है इसलिए इसका अधिकतम स्पर्श अधिकतम भीड़ को प्रभावित करती है। जिस प्रकार यह जितना सत्य है उसी प्रकार यह भी सत्य है कि जो व्यक्ति स्वयं आत्मा स्वरूप हो तो वह निश्चय ही आत्मीय कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन अभिनय का सर्वोच्च पारखी व चुनने वाला भी होगा। सर्वोच्चता वहीं है जो सब में व्याप्त हो जाये, कहानियाँ वही हैं, जो सबसे लम्बी यात्रा पूर्ण किया हो तथा पाया उसी ने है जो पहले पहचाना है।
श्री लव कुश सिंह विश्वमानव द्वारा लिखे/विचार प्रस्तुत किये गये-फिल्म/टी.वी सिरियल के स्क्रिप्ट
क्र.सं.टाइटल फिल्म/सिरियल भाषा स्थिति
1. विश्वगुरू-द ब्रेन टर्मिनेटरबालीवुड फिल्म हिन्दी, अंग्रेजी व बंग्ला पूर्ण
(रिप्रेजेन्टेटिव सिनेमा आॅफ इण्डिया)
2. द डर्टी साधु- अण्डरस्टैण्डिंग ट्रांसडेन्टबालीवुड फिल्म हिन्दी, अंग्रेजी पूर्ण
3. माॅय टेन वाइफ आॅन अर्थबालीवुड फिल्म हिन्दी पूर्ण
- अण्डरस्टैण्डिंग फिमेल
4. अगरबत्ती पे करोड़पत्ती बालीवुड फिल्म हिन्दी पूर्ण
5. डेमोक्रेसी-द रियल ऐम बालीवुड फिल्म हिन्दी, अंग्रेजी पूर्ण
6. 9डी-नाइन डाइमेन्सन हॅालीवुड फिल्म हिन्दी, अंग्रेजी पूर्ण
7. किरनिया-एक नारी की कहानीभोजपुरी फिल्म भोजपुरी पूर्ण
8. जय माँ कल्कि बालीवुड फिल्म हिन्दी पूर्ण
9. विश्वभारत टी.वी.सिरियल हिन्दी विचार
कार्पोरेट विश्वमानक मानव संसाधन विकास प्रशिक्षण
(Corporate World Standard Human Resources Development Training)
विभिन्न मतों द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘मतवाद के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। स्वामी विवेकानन्द द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘धर्म के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। पं0 नारायण दत्त ‘श्रीमाली’ द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। आचार्य रजनीष ‘ओशो’ द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘व्यक्ति के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। योगाचार्य बाबा रामदेव द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘योग के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’। मेरे द्वारा निर्माण के मार्ग का सूत्र है- ‘राष्ट्र के मार्ग से व्यक्ति, धर्म, राष्ट्र, मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र का निर्माण’।
और मेरे राष्ट्र का अर्थ सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व सहित ब्रह्माण्ड है यदि भारत इस पर कार्य करता हे तो साकार भारत सहित निराकार भारत अर्थात् विश्वभारत का निर्माण होगा अन्यथा सिर्फ निराकार भारत अर्थात् विश्वभारत का निर्माण होगा क्योंकि कम से कम लाभ और नीतिगत विषयों में पश्चिमी देश भारत से अधिक समझदार, क्रियाशील और अनुकूलन क्षमता वाला है। पश्चिमी देश इसे वैश्विक शासन की दृश्टि से देखेंगे जबकि भारत के नेतृत्वकर्ता पहले व्यक्तिगत लाभ का गणित आलस्य के साथ लगायेंगे। भारत के नेतृत्वकर्ता इस अज्ञानता में न पड़े कि जनता ज्ञानी, शिक्षित हो जायेगी तो उनके पद पर संकट आ जायेगा। ज्ञानी, शिक्षित होना चमत्कार नहीं एक लम्बी अवधि की प्रक्रिया है इसलिए नेतृत्वकर्ता राजनीतिज्ञ का वर्तमान जीवन तो उनके वर्तमान चरित्र के साथ ही व्यतीत हो ही जायेगी। यह एक युग कार्य है, कालजयी कार्य है जो राजनीति क्षेत्र नहीं दे सकती। ये है परिणाम का ज्ञान।
”निर्माण और उत्पादन“ आज के विकसित औद्योगिक युग में यह शब्द न तो अनजाना है और न हम यह कह सकते हैं कि हमारा व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन इस शब्द में व्याप्त नहीं है। बल्कि यह कहें तो अधिक स्पष्ट होगा कि हम सभी के मन अन्य संगठन, दल, व्यक्ति, मत, विचार, देश, राज्य, विश्व, प्रकृति, ब्रह्माण्ड इत्यादि के प्रक्रिया द्वारा निर्मित और उत्पादित हो रहे है। और हम सभी स्वयं अपने अधीन अन्य मानव शरीर के मन को निर्मित और उत्पादित कर रहे है। इसलिए व्यक्ति, संगठन, दल, मत, देश व विश्व को यह सदा ध्यान में रखना होगा कि हम किसी के द्वारा निर्मित और उत्पादित हो रहे हैं तो किसी का निर्माण और उत्पादन हम कर रहे हैं। और प्रत्येक निर्माणकत्र्ता और उत्पादनकत्र्ता, स्वयं अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही निर्माण और उत्पादन करता है। और इस कार्य में लगने वाले मनुष्य को उसका पारिश्रमिक विभिन्न रूपों- धन, नाम, यश, कीर्ति, आत्मीय सुख, सम्मान, इत्यादि के रूप में भुगतान होता है। आतंकवाद, धर्मनिरपेक्षता, दल या मत आधारित सम्प्रदाय इत्यादि का यही सूत्र है। इसलिए व्यक्ति को स्वयं अपने लिए यह ध्यान रखना होगा कि वह कहीं ऐसे विचार से निर्मित तो नहीं हो रहा जो स्वयं उसके लिए और देश सहित विश्व और ब्रह्माण्ड के लिए विनाशात्मक हो। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के विश्व व्यापक होने के लिए उसके जन्म से ही उसके निर्माण की प्रक्रिया माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार, पड़ोस, जाति, धर्म, मित्र, मत-सम्प्रदाय, नियम-संविधान, संघ, दल, संगठन, प्रदेश, देश इत्यादि अनेकों वातावरण द्वारा होती है। जो विश्वव्यापक होने के मार्ग में बैरियर है और व्यक्ति को इसे स्वीकार करते हुये पार करना होगा। इसलिए आवश्यक है कि पहले वह मन की सर्वोच्च और अन्तिम स्थिति-विश्वमन के व्यक्तरूप विश्वमानक: शून्य श्रृंखला से युक्त हो और फिर वहाँ से नीचे की ओर देखते हुये अपने स्वभाव को स्वीकार करे। ताकि उसका उच्च मानसिक स्तर द्वारा गलत उपयोग न हो सके।
मानव प्राकृतिक आदान-प्रदान का ज्ञान प्राप्त कर, धारण करते हुये धीरे-धीरे प्रकृति के पद पर स्वयं बैठने की ओर है। स्वयं प्रकृति, विश्व स्तर का मन धारण कर ही क्रियाकलाप करते हुये अपने उत्पादों को विश्व गुणवत्ता युक्त निर्माण कर रही है। मानव इस क्रम में अपने क्रियाकलापों को विश्व गुणवत्ता युक्त करने की ओर है। उत्प्रेरक (आत्मा) की उपस्थिति में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में दो ही निर्माणकर्ता हैं- पहला प्रकृति और दूसरा मनुष्य। प्रकृति के निर्माण प्रक्रिया में त्रुटि नहीं है। वह पूर्णतया गुणवत्तायुक्त उत्पादन कर रही है। मानव भी अब निर्माता बन चुका है इसलिए उसे सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त जिससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित है, के ज्ञान पर आधारित गुणवत्तायुक्त उत्पादन की ओर बढ़ना चाहिए।
विश्व के गुणवत्ता युक्त उत्पादन के लिए मनुष्य के द्वारा दो मूल निर्माण विधि हैं-
1. उद्योग में गुणवत्तायुक्त उत्पाद निर्माण और उत्पादन की जापानी विधि (Japanese Institute of Plant Engineers-JIPE) - WCM-TPM-5S
2. गुणवत्तायुक्त मानव निर्माण और उत्पादन की भारतीय विधि (Rishi/Saint/Avatar) - WCM-TLM-SHYAM.C
3. कुल गुणवत्ता प्रबंधन (Total Quality Management-TQM)
1. उद्योग में गुणवत्तायुक्त उत्पाद निर्माण और उत्पादन की जापानी विधि
(Japanese Institute of Plant Engineers (JIPE) & WCM-TPM-5S
औद्योगिक क्षेत्र में Japanese Institute of Plant Engineers (JIPE) द्वारा उत्पादों के विश्वस्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए उत्पाद निर्माण तकनीकी-WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total Productive Maintenance-Siri (छँटाई), Seton (सुव्यवस्थित), Sesso (स्वच्छता), Siketsu (अच्छास्तर), Shituke (अनुशासन) प्रणाली संचालित है। जिसमें सम्पूर्ण कर्मचारी सहभागिता (Total Employees Involvement) है। ये 5S मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
TPM - History:
TPM is a innovative Japanese concept. The origin of TPM can be traced back to 1951 when preventive maintenance was introduced in Japan. However the concept of preventive maintenance was taken from USA. Nippondenso was the first company to introduce plant wide preventive maintenance in 1960. Preventive maintenance is the concept wherein, operators produced goods using machines and the maintenance group was dedicated with work of maintaining those machines, however with the automation of Nippondenso, maintenance became a problem as more maintenance personnel were required. So the management decided that the routine maintenance of equipment would be carried out by the operators. (This is Autonomous maintenance, one of the features of TPM ). Maintenance group took up only essential maintenance works. Thus Nippondenso which already followed preventive maintenance also added Autonomous maintenance done by production operators. The maintenance crew went in the equipment modification for improving reliability. The modifications were made or incorporated in new equipment. This lead to maintenance prevention. Thus preventive maintenance along with Maintenance prevention and Maintainability Improvement gave birth to Productive maintenance. The aim of productive maintenance was to maximize plant and equipment effectiveness to achieve optimum life cycle cost of production equipment. By then Nippon Denso had made quality circles, involving the employees participation. Thus all employees took part
in implementing Productive maintenance. Based on these developments Nippondenso was awarded the distinguished plant prize for developing and implementing TPM, by the Japanese Institute of Plant Engineers ( JIPE ). Thus Nippondenso of the Toyota group became the first company to obtain the TPM certification.
What is Total Productive Maintenance ( TPM ) ?
It can be considered as the medical science of machines. Total Productive Maintenance (TPM) is a maintenance program which involves a newly defined concept for maintaining plants and equipment. The goal of the TPM program is to markedly increase production while, at the same time, increasing employee morale and job satisfaction. TPM brings maintenance into focus as a necessary and vitally important part of the business. It is no longer regarded as a non-profit activity. Down time for maintenance is scheduled as a part of the manufacturing day and, in some cases, as an integral part of the manufacturing process. The goal is to hold emergency and unscheduled maintenance to a minimum.
Why TPM ?
TPM was introduced to achieve the following objectives. The important ones are listed below.
• Avoid waste in a quickly changing economic environment.
• Producing goods without reducing product quality.
• Reduce cost.
• Produce a low batch quantity at the earliest possible time.
• Goods send to the customers must be non defective.
• Involve equipment operators in the simple, day-to-day basics of equipment cleanliness and checks to enhance employee ownership in maintaining and identifying equipment problems immediately.
SEIRI - Sort out :
This means sorting and organizing the items as critical, important, frequently used items, useless, or items that are not need as of now. Unwanted items can be salvaged. Critical items should be kept for use nearby and items that are not be used in near future, should be stored in some place. For this step, the worth of the item should be decided based on utility and not cost. As a result of this step, the search time is reduced.
SEITON - Organize :
The concept here is that "Each items has a place, and only one place". The items should be placed back after usage at the same place. To identify items easily, name plates and colored tags has to be used. Vertical racks can be used for this purpose, and heavy items occupy the bottom position in the racks.
SEISO - Shine the workplace:
This involves cleaning the work place free of burrs, grease, oil, waste, scrap etc. No loosely hanging wires or oil leakage from machines.
SEIKETSU - Standardization:
Employees have to discuss together and decide on standards for keeping the work place / Machines / pathways neat and clean. These standards are implemented for whole organization and are tested / Inspected randomly.
SHITSUKE - Self discipline:
Considering 5S as a way of life and bring about self-discipline among the employees of the organization. This includes wearing badges, following work procedures, punctuality, dedication to the organization etc.
2. गुणवत्तायुक्त मानव निर्माण और उत्पादन की भारतीय विधि
(Rishi/Saint/Avatar) & WCM-TLM-SHYAM.C
मानव प्राकृतिक आदान-प्रदान का ज्ञान प्राप्त कर, धारण करते हुये धीरे-धीरे प्रकृति के पद पर स्वयं बैठने की ओर है। स्वयं प्रकृति, विश्व स्तर का मन धारण कर ही क्रियाकलाप करते हुये अपने उत्पादों को विश्व गुणवत्ता युक्त निर्माण कर रही है। मानव इस क्रम में अपने क्रियाकलापों को विश्व गुणवत्ता युक्त करने की ओर है। जिसमे स्वयं मानव द्वारा उत्पादित उत्पादो की गुणवत्ता (भारतीय मानक और अन्तर्राष्ट्रीय मानक की श्रृंखलाएँ), गुणवत्ता का मानक (भारतीय मानक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानक आई.एस.ओ.-9000 श्रंृखला) तथा पर्यावरण की गुणवत्ता (अन्तर्राष्ट्रीय मानक आई.एस.ओ.-14000 श्रृंखला) द्वारा मानकीकरण कर चुका है। परन्तु अभी प्रकृति की भाँति स्वयं मानव अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व गुणवत्ता युक्त नहीं हो सका है। मानव संसाधन को अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व गुणवत्ता युक्त होने के लिए ही विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला को आविष्कृत किया गया है। सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त जिससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित है इस पर आधारित व्यवस्था ही सत्य आधारित कही जाती है। जब तक इस पर आधारित व्यवस्था नहीं होती तब तक हम किसी भी व्यवस्था को सत्य आधारित नहीं कह सकते। विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला से औद्योगिक क्षेत्र को यह लाभ है कि वे अपने मानव संसाधन को विश्व स्तर का कर सकने में सक्षम होगें जिससे उन्हंे अपने मानव संसाधन मंे सूक्ष्म दृष्टि उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त होगी। परिणामस्वरूप प्रबन्धकीय, सुरक्षा, गुणवत्ता, विश्लेशण, योजना और क्रियान्वयन इत्यादि गुण सामान्य रूप से स्वप्रेरित हो स्वतः ही मानव संसाधन मंे उत्पन्न हो जायेगें चंूकि विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला मंे कर्मज्ञान और प्रबंध का अन्तर्राष्ट्रीयध्विश्व मानक भी समाहित है इसलिए क्रमशः उत्पादांे का विवशतावश नहीं बल्कि स्वेच्छा से उपयोगिता सहित माँग आदान-प्रदान बढ़ने से सतत बढ़ता रहेगा। अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर के प्रबंध से उद्योगों की सफलता तथा समाज निर्माण का श्रेय भी प्राप्त होता रहेगा। जो औद्योगिक जगत के दूरगामी प्रभावों का हल भी है।
चंूकि मानव समाज वैश्वीकरण की ओर आवश्यकता व विवशतावश बढ़ चुका है। इसलिए मानव संसाधन का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानकीकरण विश्व शान्ति, एकता, स्थिरता, विकास, सुरक्षा इत्यादि की दृष्टि से विश्व संगठनों, संयुक्त राष्ट्र संघ इत्यादि के लिए अति आवश्यक भी है। वहीं औद्योगिक जगत वैश्विक समाज निर्माण में पूर्ण भागीदारी के कार्य से औद्योगिक जगत को इसका श्रेय भी प्राप्त होगा। इस प्रकार आई.एस.ओ.-9000 श्रंृखला तथा आई.एस.ओ. 14000 श्रंृखला की भँाति विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर पर सार्वाधिक महत्व है।
विश्व व्यापार संगठन के गठन के उपरान्त मानकीकरण की महत्ता जिस प्रकार बढ़ी है उसके अनुसार मानकीकरण का भविष्य ही समाज को भी नियंत्रित करने की ओर है। इसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप भारतीय मानक के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय मानक का विकसित होना अति आवश्यक है। परिणामस्वरूप मानव संसाधन के वैश्विकरण के लिए भारतीय मानक में भारत-शून्य श्रृंखला तथा अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानक में विश्वमानक-शून्य श्रंृखला को स्थापित करने के लिए प्रक्रिया प्रारम्भ करने के लिए भारतीय मानक व्यूरो व अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन सहित राष्ट्रों के सरकार को आह्वान करता हूँ।
औद्योगिक जगत को यह आह्वान है कि वे विश्वमानक शून्य श्रृंखला की स्थापना के लिए भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रयत्न करे, जिससे सर्वप्रथम स्वयं सत्य आधारित होने का श्रेय प्राप्त करते हुये सम्पूर्ण औद्योगिक जगत के सत्यीकरण करने का श्रेय भी प्राप्त कर सकें।
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानव के विश्व स्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए मानव निर्माण तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufacturing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation. Consciousness) प्रणाली आविष्कृत है जिसमें सम्पूर्ण तन्त्र सहंभागिता (Total System Involvement-TSI) है। ये SHYAM.C मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
वैश्विक मानव निर्माण की तकनीकी अर्थात विश्व स्तरीय निर्माण विधि (World Class Manufacturing-WCM) को प्राप्त करने के लिए उसके प्रवेश द्वार सम्पूर्ण जीवन परीक्षण (Total Life Maintenance-TLM) के लिए सत्य, हृदय, योग, आश्रम, ध्यान व चेतना (SHYAM.C - Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation. Consciousness)) का संचालन अनिवार्य है। यह तकनीकी सीधे व्यक्ति को विश्वमन से जोड़ने का कार्य करती है। जिससे मनुष्य का मस्तिष्क व समस्त क्रियाकलाप संचालित होती है। अर्थात मनुष्य के मन को सीधे सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त व चेतना से जोड़कर उसे सार्वभौम विश्वमन में स्थापित कर देती है। फलस्वरूप मनुष्य स्वतः स्फूर्त हो सूक्ष्म बुद्धि से प्रत्येक कार्य को विश्व स्तरीय दृष्टि से संचालित करने लगता है।
3. कुल गुणवत्ता प्रबंधन (Total Quality Management-TQM)
कुल गुणवत्ता प्रबंधन (TQM) एक प्रबंधन का सिद्धांत है, जो ग्राहकों की आवश्यकताओं और संगठनात्मक उद्देश्यों, को पूरा करने के लिए सभी संगठनात्मक कार्य (विपणन, वित्त, डिजाईन, इंजीनियरिंग, उत्पादन व ग्राहक सेवा आदि) को एकीकृत करता है। TQM कुल संगठन को मजबूत बनाने के लिए कर्मचारी से लेकर सी.इ.ओ.तक को पूर्ण अधिकार देता है, ताकि वे अपने से सम्बंधित उत्पाद और सेवाओं में सुधार चैनलों के माध्यम से उचित प्रक्रियाओं द्वारा प्रबंधन व गुणवत्ता निश्चित रूप से बनाए रखने की जिम्मेदारी ले। सभी प्रकार के संगठनो जैसे छोटे व्यवसाय से लेकर नासा, जैसी सरकारी एजेंसियों ने स्कूल से लेकर निर्माण कम्पनियों ने निर्माण केंद्र से लेकर नृत्य व अस्पतालों तक ने TQM को तैनात किया है। ज्फड किसी विशेष प्रकार के उद्यम के लिए नहीं है, यह तो एक ऐसा सिद्धांत है, जो हर प्रकार के उद्यम में गुणवत्ता लाने के लिए जरूरी है।
विकास का एक साधन
TQM ग्राहकों की ”आवश्यकताओं को पूरा करने“ और उनके, उद्देश्य के लिए उपयुक्त, इस सामान्य समझ से भी आगे है। अर्थात यह संगठन को व्यापक बनाता है। TQM से पहले गुणवत्ता परीक्षण आमतौर पर उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा के अंतिम चरण में गुणवत्ता नियंत्रण का आदर्श था। कोई दोश पाया जाता था तो आपूर्ति रोक दी जाती थी, उत्पाद फिर से बनाया जाता था या अस्वीकार कर दिया जाता था। गुणवत्ता बनाये रखने के लिए अतिरिक्त लागत अपरिहार्य थी TQM, का उद्देश्य हर बार प्रथम प्रयास में ही सही उत्पादन कर परिहार्य लागत को कम करना है। TQM, हरेक कमी का मुख्य कारण जानना चाहता है, ताकि उत्पाद में कोई कमी न रह।
TQM साधारण प्रक्रिया का प्रयोग कर गुणवत्ता आश्वासन पर जोर देता है। और लगातार सुधरी व् प्रभावी संचालित प्रक्रियाओं, द्वारा उत्पाद व् सेवाओं में आये परिवर्तन का सामना करता है। यह सर्वाधिक प्रचलित और महंगे दोषों को पहचान कर उन दोषों को दूर करने, उनसे बचने व उनको हटाने का समाधान प्रस्तुत करता है।
विशुद्ध प्रगति
TQM एक पद है जो से जापानी नीति, कुल गुणवत्ता नियंत्रण, से लिया गया है यह नीति गुणवत्ता आश्वासन का निष्कर्ष थी। तब से इसे नए प्रतिमान के रूप में सम्मान मिल गया है।
आज TQM सभी उद्योग व्यापार व गतिविधियों में लागू किया जाता है। चाहे होटल हो या अस्पताल, चाहे शैक्षिक संस्थान हो या इंजीनियरिंग संस्थान, चाहे पान की (बीटल लीवस) की दुकान हो या पार्क (खेलने का मैदान) चाहे वकील का दफ्तर हो या विमान के रख रखाव के लिए परामर्श देने वाला उपकरण है।
TQM एक रणनीति
TQM निश्चित रूप से व्यक्तियों पर आश्रित क्रिया है। यदि व्यक्ति सभ्य है तो संगठन परिपक्व है। TQM का पूर्ण लाभ उठाने के लिए किसी भीं संगठन में व्यक्तियों में तालमेल, होना चाहिए। इस प्रकार संगठनों से आशा की जाती है कि वे अपनी कम्पनी के लिए व्यापक योजना बनाए, जिसमें प्रत्येक कर्मचारी को उत्कृष्टता हासिल करने के लिए उसके काम की और उसकी टीम के काम की गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी दी जाए। TQM प्रारम्भ में ही परिवर्तनशील परिक्रियाओं में गुणवत्ता अपनाने की मूल धारणा को मानता है। और यह विचार गुणवत्ता गुरु विलियम एडवर्ड डेमिंग ने प्रस्तावित, किया है। डेमिंग श्रृंखला प्रतिक्रिया प्रारंभ में ही डिजाइन की गुणवत्ता बनाए रखने की और उत्कृष्टता हासिल करने के लिए कुल गुणवत्ता सिद्धांत को व्यवस्थित रूप से लागू करने की वकालत करती हैं। जब कच्चे माल से लेकर हरेक प्रक्रिया अच्छे डिजाइन व् संसाधनों द्वारा की जाती है और उत्पाद बहुत अच्छी तरह से और निरंतर बेहतर तैयार माल के रूप में आता है तो कहा जाता है कि TQM चालू है।
TQM का कार्यान्वयन
किसी संगठन को सुधारने के लिए सभी को दी जाने वाली गतिविधियाँ मुख्यतः ये हैं-
1. लगातार गुणवत्ता सुधार (CQI)
2. कुल ग्राहक संतुष्टि
3. कुल कर्मचारियों की भागीदारी
4. एकीकृत प्रक्रिया प्रबंधन
5. प्रक्रियाओं के प्रति सम्पूर्ण दृष्टिकोण
सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ मुख्य कदम
अ. TQM उपकरण - सात qc उपकरण और सात pc उपकरण ये सात लोकप्रिय शब्द हैं।
उपकरण विचार पैदा करने, शीट चेक करने, आरेख बनाने, कारण व प्रभाव जानने के लिए प्रयोग किये जाते हैं, हिस्टोग्राम सांख्यिकी की प्रक्रिया नियंत्रण चार्ट समस्याओं के पहचानने के उपकरण हैं, और परेला चार्ट, फ्लो चार्ट (प्रक्रिया आरेख डाटा) को व्यवस्थित करने के उपकरण हैं, सम्बन्ध आरेख, मैट्रिक्स चार्ट, प्रक्रिया प्रदर्शन कार्यक्रम चार्ट, प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के साधन हैं, परियोजनाओं को नियंत्रित करने के उपकरण: कार्यक्रम के मूल्यांकन की समीक्षा तकनीकें (PERT) महत्व पूर्ण पद्धति (CPM)।
ब. गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली QMS प्रति ISO 9001:2008
स. निरंतर सुधार माॅडल के लिए कार्य करते रहना।
कीमतें
जबकि TQM का उपयोग तरीका बता देता है, असफलता की लागत कम कर देता है, अर्थात ग्राहक असंतोष और दुबारा कार्य करने की संभावना को कम कर देता है। फिर भी कर्मचारियों के प्रशिक्षण आपूर्ति कर्ताओं को शिक्षित करने की लागत अनिवार्य रूप से बढ़ा सकता है। TQM को लागू करने का पूर्ण फायदा गुणवत्ता, ब्रांड मूल्य, कम समय में प्रचार, ग्राहकों के विश्वास, फायदे, सद्भाव बढ़ाने मैं हैं। ये सब चीजे आर्केस्ट्रा या मुरली वाले के द्वारा प्रदान किये गए आनंद जैसी हैं। सबसे ऊपर यह तेज गति से टिकाऊ विकास, प्रदान करता है। यह कहा जाता है कि व्यापारिक संस्थानों को बढ़ते हुए शेयर धारक मूल्य की चुनोतियों का सामना करना पड़ता है जिसमें लाभ व गुणवत्ता दोनों शामिल हैं।
संभाव्य जीवन चक्र
आजकल आधुनिक व्यापार में उद्योग, सेना, शिक्षा आदि की बढ़ोतरी के साथ कुल गुणवत्ता प्रबंधन एक सामान्य सी बात है। बहुत से कालेज, स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर ज्फड के पाठ्यक्रमों की पेशकश कर रहें हैं।
(1996) अब्राहमसन की दलील थी कि फैशनबल प्रबंधन संवाद गुणवत्ता के दायरे के रूप में एक वक्र घंटी के आकार में जीवन चक्र अपनाता है, जो एक संभावित प्रबंधन सनक का संकेत है। सामान्य तोर पर TQM परिवर्तन लाने के लिए 10 साल की लम्बी अवधि का समय लेता है। इसे परिपक्व होने में कई साल लगेंगे। सामान्य तौर से गिरावट उच्च प्रबंधन स्तर, पर प्रतिबद्धता की कमी का परिणाम होती है।
अमेरिकन कारोबार ध्यान से देख रहा है कि जापानी गुणवत्ता प्रबंधन को सौंपे गए शेयर बाजार को सुधार रहें हैं। गुणवत्ता नियंत्रण में लागत लगती है और इस लागत से लाभ मिलता है। जिन अमेरिकन संगठनों ने 1980 के दशक से TQM की अवधारणाओं को अपनाया है, उत्कृष्ट्ता लिए अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है, उन्हें राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार, यूरोप का EFQM उत्कृष्टता पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जापानियों से सम्मानित किया गया डेमिंग पुरस्कार के रूप में ये प्रयास चारों तरफ लागू किये जा रहें है और मानकीकृत भी हो रहे हैं। डेमिंग आवेदन गुणवत्ता पुरस्कार के बहुत से विजेता हैं और इनमें से कुछ ने ऊर्जा संरक्षण पर्यावरण उन्नयन, समाज सेवा वाचक, के माध्यम से अपना योगदान किया है, जो कि किसी भी ज्फड लागू करने वाले के लिए बिल्कुल आवश्यक है। और सिक्स सिग्मा व ISO-9000 श्रृंखला के मानक रूप को लागू करने में फायदा पहुंचता है।
कैलेण्डर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के calendarium शब्द से हुआ है जिसका अर्थ किताब में लिखना हाता है। ये पुराने जमाने में प्रत्येक माह के पहले दिन (kalendae)की सूची बनाने में इस्तेमाल होता था।
कालदर्शक एक प्रणाली है जो समय को व्यवस्थित करने के लिये प्रयोग की जाती है। कालदर्शक का प्रयोग सामाजिक, धार्मिक, वाणिज्यिक, प्रशासनिक या अन्य कार्यों के लिये किया जा सकता है। यह कार्य दिन, सप्ताह, मास, या वर्ष आदि समयावधियों को कुछ नाम देकर की जाती है। प्रत्येक दिन को जो नाम दिया जाता है वह ”तिथि“ कहलाती है। प्रायः मास और वर्ष जो किसी खगोलीय घटना से सम्बन्धित होते हैं ;जैसे चन्द्रमा या सूर्य का चक्र सेद्ध किन्तु यह सभी कैलेण्डरों के लिये जरूरी नहीं है। अनेक सभ्यताओं और समाजों ने अपने प्रयोग के लिये कोई न कोई कालदर्शक निर्मित किये थे जो प्रायः किसी दूसरे कालदर्शक से व्युत्पन्न थे। कालदर्शक एक भौतिक वस्तु ;प्रायः कागज से निर्मितद्ध भी है। कालदर्शक शब्द बहुधा इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।
आजकल अधिकतर देश ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना चुके हैं। किन्तु अब भी कई देश ऐसे हैं जो प्राचीन कैलेंडरों का उपयोग करते हैं। इतिहास में कई देशों नें कैलेंडर बदले। आइए उनके विषय में एक नजर देखें-
समयघटना
3761 ई.पू.यहूदी कैलेंडर का आरंभ
2637 ई.पू.मूल चीनी कैलेंडर आरंभ हुआ
45 ई.पू.रोमन साम्राज्य के द्वारा जूलियन कैलेंडर अपनाया गया
0 ई. ईसाई कैलेंडर का आरंभ
79 ई.हिन्दू कैलेंडर आरंभ हुआ
597 ई.ब्रिटेन में जूलियन कैलेंडर को अपनाया गया
622 ई.इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत
1582 ई.कैथोलिक देश ग्रेगोरियन कैलेंडर से परिचित हुए
1752 ई.ब्रिटेन और उसके अमेरिका समेत सभी उपनिवेशो में ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया
1873 ई.जापान नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
1949 ई.चीन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
कभी हमने ध्यान दिया कि चार साल में फरवरी 28 कि क्यों होती है और इसे लीप ईयर क्यों कहा जाता है साथ ही यह कभी अपने अन्य 11 भाइयों की तरह 30 या 31 कि उम्र नहीं देख पाती तो जरा कैलेण्डर के इतिहास पर गौर करें-
आज के युग में भी कैलेण्डर अमीर से अमीर व्यक्ति भी अपने पास रखना चाहता है जबकि मोबाइल फोन में भी कैलेण्डर है ...कैलेण्डर बना रहेगा। हो सकता है भविष्य में उसके स्वरुप में परिवर्तन आये। दरअसल वर्तमान कैलेण्डर कई पुराने प्रकार के कैलेंडरों का मिश्रण है जिसमे मिश्र, रोमन और जूलियन कैलेण्डर भी अलग अलग विशेषताएं हैं।
मिश्र वासियों ने 12 महीने का कैलेण्डर बनाया था जिसमे 30 दिन थे। बाद में सूर्य को पूजने वाले मिश्र वासियों ने इसमें 5 दिन और जोड़ दिए ताकि सौर वर्ष के मुताबिक पूरे दिन इसमें शामिल किये जा सकें। मिश्र सहित कुछ देशों में 24 फरवरी का दिन कैलेण्डर के लिए समर्पित है।
रोमन कैलेण्डर में भी 12 महीने का साल था लेकिन इसकी शुरुआत मार्च से होती थी। बाद में रोमनों ने जनवरी को पहला महीना बनाया ऐसा उन्होंने घडी को सही बैठाने के लिहाज से किया। इन्हीं लोगों ने फरवरी को छोटा करके लीप वर्ष की अवधारणा को जन्म दिया। शायद लीप वर्ष को सौर और चन्द्र कैलेण्डर के हिसाब से दिन निर्धारित करने के लिए ऐसा किया होगा।
जुलियस सीजर ने एक प्रख्यात खगोलविद से बेहतर कैलेण्डर सुझाने को कहा और उसने इसे 30 और 31 दिन के बीच बाँट दिया और उन्होंने ही दिनों की गणना करते हुए फरवरी को 28 दिन का बताया और इस तरह आया अलग अलग कैलेंडरों से मिलकर आधुनिक कैलेण्डर ...गौरतलब है चीनी कैलेण्डर बिलकुल अलग होता है उनका नववर्ष अलग होता है और गणनाएं अलग होती हैं मजे की बात है कि हमारे यहाँ भी कैलेण्डर अलग-अलग होते हैं क्योंकि ज्योतिषीय गणनाएं सूर्य आधारित या फिर चन्द्र आधारित होती हैं।
मुहम्मद पैगंबर ईस्वी सन 622 तारीख 15 के दिन मक्के मदीना आ गए थे-उस दिन से हिजरी सन की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत मौहर्रम मास की पहली तारीख से होता है। इनका वर्ष चांद मास का माना जाता है। अमावस्या के बाद जिस दिन पहला चन्द्र दर्शन होता है उस दिन को ही मास का पहला दिन माना जाता है। कारण चन्द्रदर्शन रात को ही होता है। अतः वार का प्रारम्भ भी रात को ही होता है। इनका वर्ष 354 का होता है। यह हिजरी सन चन्द्र वर्ष होने के कारण हरेक तीसरे वर्ष इनका मौहर्रम हमारे मास से पहले का होता है। इस तरह से 32 व 33 वर्ष पर इनके हिजरी सन का एक अंक बढ़ जाता है।
पारसी सन् जिसको ऐजदी जर्द सन पारसी भाषा में कहते हैं-का प्रारम्भ ईस्वी सन 630 में शुरू हुआ था। इनके मास 30 सावन दिन के होते हैं। अतः इनका सन सौर वर्ष से सम्बन्ध रखने के लिए प्रति वर्ष के अंत में 5 दिन अधिक मानते हैं।
मलमास, अधिक मास संवत में सूर्य और चन्द्र के वर्षों के भेद से होता है सूर्य का वर्ष 365 दिनों से कुछ अधिक और चन्द्र वर्ष 354 दिन का होता है। इस कारण दोनों प्रकार के संवत वर्ष वर्ष में अंतर को सही रखने के लिए मलमास का प्रयोग विधान है अन्यथा कभी तो भाद्र का महीना पड़े, वर्षा ऋतु में तो कभी प्रचंड गर्मी में और कभी घोर जाड़े में। ऐसा न हो इसलिए दोनों प्रकार के वर्षों में 11 दिन के अंतर को पाटने के लिए मलमास या अधिक मास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है की योजना कर दी गई है। अस्तु, जब दो संक्रांति के बीच में एक चन्द्र मास पड़ जाता है तो उसे अधिकमास कहते है। इस कारण उनके ताजिये और रोजे-चंद्रमास के हिसाब से कभी जाड़े में होते हैं तो कभी गर्मियों में।
ज्योतिष की समस्त गणनाएं सूर्य एवं चन्द्रमा के आधार पर ही सम्भव है और संसार के सभी लोगों ने इनकी महत्ता दी है। चाहे कोई भी धर्म हो कोई भी भाषा हो या देश हो या विदेश। सभी जगह मान्यता सूर्यदेव और चन्द्रमा की अवश्य है।
चीनी कैलेंडर
भारत की ही तरह चीन नें भी ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया है फिर भी वहां छुट्टियां, त्योहार और नववर्ष इत्यादि चीनी कैलेंडर के अनुसार ही मनाए जाते हैं।
माया कैलेंडर
जहां पर आज मैक्सिको का यूकाटन नामक स्थान है वहां किसी जमाने में माया सभ्यता के लोग रहा करते थे। माया सभ्यता के लोग ज्ञान विज्ञान गणित आदि के क्षेत्र में काफी अग्रणी थे। स्पेनी आक्रांताओं के आने के बाद उनकी सभ्यता और संस्कृति का धीरे धीरे क्षरण होने लगा। माया कैलेंडर में 20-20 दिनों के 18 महीने होते थे और 365 दिन पूरा करने के लिए 5 दिन अतिरिक्त जोड़ दिए जाते थे। इन 5 दिनों को अशुभ माना जाता था। माया कैलेंडर के महीने-
Pop (पॉप), Uo (उओ), Zip (जिप), Zot (जॉ्ट्ज), Tzec (टीजेक), Xul(जुल), Yaxkin (याक्सकिन), Mol (मोल), Chen (चेन), Yax (याक्स), Zac (जैक), Ceh (सेह), Mac (मैक), Kankin (कान किन), Muan (मुआन), Pax (पैक्स), Kayab (कयाब), Cumbu (कुम्बू)।
ग्रेगोरियन कैलेंडर
ग्रेगोरियन कैलेंडर अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्टैण्डर्ड माना जाने वाला और पुरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाला कलेंडर है। इसका आधार वर्ष ईसा मसीह के जन्म को माना जाता है। इसके पहले के वर्ष को BC (Before Christ)या ईसा पूर्व (ई0पू0) और बाद के वर्ष को AD (Anno Domini) या ईसवी (ई0) कहा जाता है। कुछ लोग ई0 के "CE"
(Common Era) और ई0पू0 को "BCE"
(Before Common Era) भी कहते हैं।
वर्तमान समय में सबसे अधिक उपयोग में आने वाला कैलेंडर ग्रेगोरियन है। इस कैलेंडर की शुरुआत पोप ग्रेगोरी तेरहवें नें सन 1582 में की थी। इस कैलेंडर में प्रत्येक 4 वर्षों के बाद एक लीप वर्ष होता है जिसमें फरवरी माह 29 दिन का हो जाता है। आरंभ में कुछ गैर कैथोलिक देश जैसे ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया था। ब्रिटेन में पहले जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था जो कि सौर वर्ष के आधार पर चलता था। इस कैलेंडर के मुताबिक एक वर्ष 365.25 दिनों का होता था (जबकि असल में यह 365.24219 दिनों का होता है) अतः यह कैलेंडर मौसमों के साथ कदम नहीं मिला पाया। इस समस्या को हल करने के लिए सन 1752 में ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि 3 सितम्बर 14 सितम्बर में बदल गया। इसीलिए कहा जाता है कि ब्रिटेन के इतिहास में 3 सितंबर 1752 से 13 सितंबर 1752 तक कुछ भी घटित नहीं हुआ। इससे कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि इससे उनका जीवनकाल 11 दिन कम हो गया और वे अपने जीवन के 11 दिन वापिस देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।
हिब्रू और इस्लामी कैलेंडर
हिब्रू और इस्लामी कैलेंडर दोनों ही चंद्रमा की गति पर आधारित हैं। नये चंद्रमा के दिन अथवा उसके दिखाई देने के दिन से नववर्ष आरंभ होता है। लेकिन मौसम की वजह से कभी-कभी चंद्रमा दिखाई नहीं देता अतः छपे कैलेंडरों में नव वर्ष की शुरूआत के दिनों में थोड़ा अंतर हो सकता है।
क्र०हिब्रू महीनेदिनइस्लामी महीने
01तिशरी30मुहर्रम
02हेशवान29सफर
03किस्लेव30रबिया-1
04तेवेत 29रबिया-2
05शेवत30जुमादा-2
06अदर29जुमादा-2
07निसान30रजाब
08अइयर29शबान
09सिवान30रमादान
10तम्मूज29शव्वल
11अव 30धु-अल-कायदा
12एलुल29धु-अल-हिज्जाह
भारतीय कालदर्शक (कैलेण्डर)
प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान है। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियाँ, अभी भी प्रयोग में हैं। इसके साथ-साथ ही हिन्दू ग्रन्थों में लम्बाई, भार, क्षेत्रफल मापन की भी इकाईयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू समय मापन ;काल व्यवहारद्ध में नाक्षत्रीय मापन, वैदिक समय इकाईयाँ, चाँद्र मापन, ऊँष्ण कटिवन्धीय मापन, पितरों की समय गणना, देवताओं की काल गणना, पाल्या इत्यादि हैं।
हिन्दू पुराण के अनुसार ब्रह्माण्ड का सृजन क्रमिक रूप से सृष्टि के ईश्वर ब्रह्मा द्वारा होता है जिनकी जीवन 100 ब्राह्म वर्ष होता है। ब्रह्मा के 1 दिन को 1 कल्प कहते हैं। 1 कल्प, 14 मनु ;पीढ़ीद्ध के बराबर होता है। 1 मनु का जीवन मनवन्तर कहलाता है और 1 मनवन्तर में 71 चतुर्युग ;अर्थात् 71 बार चार युगों का आना-जानाद्ध के बराबर होता है। ब्रह्मा का एक कल्प ;अर्थात् 14 मनु अर्थात् 71 चतुर्युगद्ध समाप्त होने के बाद ब्रह्माण्ड का एक क्रमद्ध समाप्त हो जाता है और ब्रह्मा की रात आती है। फिर सुबह होती है और फिर एक नया कल्प शुरू होता है। इस प्रकार ब्रह्मा 100 वर्ष व्यतीत कर स्वयं विलिन हो जाते हैं। और पुनः ब्रह्मा की उत्पत्ति होकर उपरोक्त क्रम का प्रारम्भ होता है। गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है।
काल मनवन्तर के मनु के नाम अवतार
भूतकाल 1. स्वायंभुव मनु यज्ञ
भूतकाल2. स्वारचिष मनु विभु
भूतकाल3. उत्तम मनु सत्यसेना
भूतकाल4. तामस मनु हरि
भूतकाल5. रैवत मनु वैकुण्ठ
भूतकाल6. चाक्षुष मनु अजित
वर्तमान7. वैवस्वत वामन
भविष्य 8. सावर्णि मनु सार्वभौम
भविष्य9. दत्त सावर्णि मनुरिषभ
भविष्य10. ब्रह्म सावर्णि मनु विश्वकसेन
भविष्य11. धर्म सावर्णि मनु धर्मसेतू
भविष्य12, रूद्र सावर्णि मनु सुदामा
भविष्य13. दैव सावर्णि मनु योगेश्वर
भविष्य14. इन्द्र सावर्णि मनु वृहद्भानु
हम वर्तमान में ब्रह्मा के 58वें वर्ष में 7वें मनु-वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, 28वें चतुर्युग का अन्तिम युग-कलियुग के ब्रह्मा के प्रथम वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम सम्वत् 2069 ;सन् 2012 ई0द्ध में हैं। वर्तमान कलियुग ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार दिनांक 17-18 फरवरी को 3102 ई.पू. में प्रारम्भ हुआ था। इस प्रकार अब तक 15 नील, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 61 हजार, 624 वर्ष इस ब्रह्मा के सृजित हुए हो गये हैं
भारतीय कैलेंडर सूर्य एवं चंद्रमा की गति के आधार पर चलता है और यह शक संवत से आरंभ होता है जो कि सन् ७९ के बराबर है। इसका प्रयोग धार्मिक तथा अन्य त्योहारों की तिथि निर्धारित करने के लिए किया जाता है। किन्तु आधिकारिक रूप से ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रयोग होता है।
महीनों के नाम-
हर महीना शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। जिस नक्षत्र में पूर्णिमा पड़ती है उन्हीं के नाम पर महीनों के नाम हैं। वर्षारम्भ होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से। नक्षत्रों व संबंधित महीनों के नाम इस प्रकार हैं-
भारतीय कालदर्शक ;कैलेण्डरद्ध सौर और चन्द्र गणनाओं के समन्वय पर अधारित है। 1 संवत ;सालद्ध 12 महीनों में बँटा हुआ है। सौर और चन्द्र गणनाओं में समन्वय रखने के लिए 19 वर्षों में 7 महीने बढाए जाते हैं। इस तरह हर तीन साल बाद 1 अधिक मास होता है। लीप वर्ष में चैत्र 31 दिन का होता है और वह २१ मार्च को आरंभ होता है।
तिथियों के नाम
हर माह के दो पक्ष हैं-शुक्ल व कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष-अमवस्या की स्माप्ति से पूर्णिमा तक। कृष्ण पक्ष-पूर्णिमा के अंत से अमावस्या तक। हर पक्ष में 15 दिन होते हैं-1. प्रतिपदा, 2. द्वितीया, 3. तृतीया, 4. चतुर्थी, 5. पंचमी, 6. षष्टी, 7. सप्तमी, 8. अष्टमीए 9. नवमी, 10. दशमी, 11. एकादशी, 12. द्वादशी, 13. त्रयोदशी, 14. चतुर्दशी, 15. पूर्णिमा, 30. अमावस्या
ऋतुओं के नाम
कुल 6 ऋतु हैं व इन्हीं 12 महीनों में समाईं हैं। हिन्दू धर्म में सभी त्योहार ऋतुओं के अनुरूप हैं।
1. वसंत दृ ैचतपदह दृ वसंतोत्सव ;होलीद्ध, शिवरात्रि, नवरात्रि
ब्रिटिश पुरातत्वविदों का दावा है कि उन्होंने एडर्बीनशायर के इलाके में चंद्रमा की गति पर आधारित दुनिया का सबसे पुराना कैलेण्डर खोज निकाला है। कार्थेसके किले में एक खेत की खुदाई के दौरान 12 गड्ढों की एक श्रृंखला मिली है, जो चंद्रमा की अवस्थाओं और चंद्र महीने की तरफ संकेत करती है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली एक टीम के मुताबिक इस प्राचीन स्मारक को करीब 10 हजार साल पहले शिकारियों ने बनवाया था। वॉरेन फील्ड के इन गड्ढों की खुदाई पहली बार सन् 2004 में हुई थी। इन गड्ढों का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि हो सकता है कि उनमें कभी लकड़ी के खम्भे रहे हों।
मध्य पाषाण युग का यह कैलेण्डर अब तक के ज्ञात सबसे पुराने कैलेण्डर मेसोपोटामिया के कैलेण्डर से भी हजारों साल पुराना है। यह विश्लेषण इण्टरनेट आर्कियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय में लैंडस्केप आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर विन्स गैफेनी ने इस विश्लेषण-परियोजना का नेतृत्व किया। वह कहते हैं, इन प्रमाणों से पता चलता है कि स्कॉटलैण्ड के शिकारियों के पास साल भर के समय-चक्र पर नजर रखने की क्षमता थी।
यह कैलेण्डर पूरब में मिले पहले औपचारिक कैलेण्डर के पाँच हजार साल पहले अस्तित्व में आ गया था। इस अध्ययन में सेण्ड एण्ड्रयूज, लीस्टर और ब्रैडफोर्ड विश्वविद्यालय भी शामिल थे। सेण्ड एण्ड्रयूज विश्वविद्यालय के डॉक्टर रिचर्ड बेट्स कहते हैं-यह खोज शुरुआती मध्य पाषाण युग के स्कॉटलैण्ड के बारे में नए रोमांचक सबूत उपलब्ध कराती है। वे कहते हैं, इस तरह की संरचना का यह सबसे पहला उदाहरण है। वॉरेन फील्ड में इस स्मारक के बनाए जाने के हजारों साल बाद भी ब्रिटेन और यूरोप में इस तरह का कोई और स्मारक नहीं बन पाया। वॉरेन फील्ड को पहली बार स्कॉटलैण्ड के प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों के रॉयल कमीशन (आर.सी.ए.एच.एम.एस) ने हवाई सर्वेक्षण के दौरान खोजा था। आर.सी.ए.एच.एम.एस की हवाई सर्वेक्षण परियोजना के प्रबन्धक डेव काउली कहते हैं, हम पिछले करीब 40 साल से स्कॉटिस भूमि की तस्वीरें ले रहे हैं, हजारों पुरातत्विक जगहों की रिकॉर्डिंग की है, जिन्हें जमीन से कभी नहीं खोजा जा सकता था। वे कहते हैं-वॉरेन फील्ड का एक खास महत्व है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हमारे हवाई सर्वेक्षण ने उन जगहों को खोजने में मदद की है, जहाँ पहली बार समय की परिकल्पना की गई थी। कार्थेस किले की देखभाल नेशनल ट्रस्ट फॉर स्कॉटलैण्ड (एन.एस.टी) करता है। इस जगह की खुदाई 2004 से 2006 के बीच एन.एस.टी के कर्मचारियों और मरे पुरातत्व सेवा ने मिलकर की थी। एन.टी.एस के पुरातत्वविद् डॉक्टर शैनन जर कहते हैं, यह एक उल्लेखनीय स्मारक है, जो ब्रिटेन में अद्वितीय है। वे कहते हैं, हमारे खुदाई करने से करीब दस हजार साल पहले के लोगों के सांस्कृतिक जीवन की आकर्षक झलक मिलती है। यह नवीनतन खोज समय और आकाश के साथ सम्बन्ध के बारे में हमारी समझ को और आगे बढ़ाएगी।
हमारे द्वारा प्रारम्भ किया गया कैलेण्डर
जिस प्रकार अनेक धर्म संस्थापकों के जन्मदिन से नया कैलेण्डर समाज में स्थापित है उसी प्रकार काल, मनवन्तर, युग, शास्त्र और अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से विश्वधर्म के प्रवर्तक की योग्यता के अधिकार से उनके जन्मदिन 16 अक्टुबर 1967 से नये कैलेण्डर की शुरूआत हो गई है।