Action Plan of New Human, New India, New World based on Universal Unified Truth-Theory. According to new discovery World Standard of Human Resources series i.e. WS-0 Series like ISO-9000, ISO-14000 etc series
आविष्कारकर्ता - मन (मानव संसाधन) का विश्व मानक एवं पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी
अगला दावेदार - भारत सरकार का सर्वोच्च नागरिक सम्मान - ”भारत रत्न“
परिचय -
अपने विशेष कला के साथ जन्म लेने वाले व्यक्तियों के जन्म माह अक्टुबर के सोमवार, 16 अक्टुबर 1967 (आश्विन, शुक्ल पक्ष-त्रयोदशी, रेवती नक्षत्र) समय 02.15 ए.एम. बजे को रिफाइनरी टाउनशिप अस्पताल (सरकारी अस्पताल), बेगूसराय (बिहार) में श्री लव कुश सिंह का जन्म हुआ और टाउनशिप के E1-53, E2-53, D2F-76, D2F-45 और साइट कालोनी के D-58, C-45 में रहें। इनकी माता का नाम श्रीमती चमेली देवी तथा पिता का नाम श्री धीरज नारायण सिंह जो इण्डियन आॅयल कार्पारेशन लि0 (आई.ओ.सी. लि.) के बरौनी रिफाइनरी में कार्यरत थे और उत्पादन अभियंता के पद से सन् 1995 में स्वैच्छिक सेवानिवृत हो चुके हंै। जो कि ग्राम - नियामतपुर कलाँ, पुरूषोत्तमपुर, मीरजापुर (उ0प्र0) पिन-231305 के निवासी हैं। दादा का नाम स्व. राजाराम व दादी का नाम श्रीमती दौलती देवी था। जन्म के समय दादा स्वर्गवासी हो चुके थे जो कभी कश्मीर के राजघराने में कुछ समय के लिए सेवारत भी थे। मार्च सन् 1991 में इनका विवाह चुनार क्षेत्र के धनैता (मझरा) ग्राम में शिव कुमारी देवी से हुआ और जनवरी सन् 1994 में पुत्र का जन्म हुआ। मई सन् 1994 में शिव कुमारी देवी की मृत्यु होने के उपरान्त वे लगभग घर की जिम्मेदारीयों से मुक्त रह कर भारत देश में भ्रमण करते हुये चितन व विश्वशास्त्र के संकलन कार्य में लग गये। किसी भी व्यक्ति का नाम उसके अबोध अवस्था में ही रखा जाता है अर्थात व्यक्ति का प्रथम नाम प्रकृति प्रदत्त ही होता है। लव कुश सिंह नाम उनकी दादी स्व0 श्रीमती दौलती देवी के द्वारा उन्हें प्राप्त हुआ।
भारत देश के ग्रामीण क्षेत्र से एक सामान्य नागरिक के रूप में सामान्य से दिखने वाले श्री लव कुश सिंह एक अद्भुत नाम-रूप-गुण-कर्म के महासंगम हैं जिसकी पुनरावृत्ति असम्भव है। (क्लिक करें-विस्तार से जानने के लिए देखें - हमारा सम्पूर्ण कार्य (OUR FINAL WORK)। इनकी प्राइमरी शिक्षा न्यू प्राइमरी स्कूल, रिफाइनरी टाउनशिप, बेगूसराय (बिहार), माधव विद्या मन्दिर इण्टरमीडिएट कालेज, पुरूषोत्तमपुर, मीरजापुर, उ0प्र0 (दसवीं -1981, 13 वर्ष 6 माह में), प्रभु नारायण राजकीय इण्टर कालेज, रामनगर, वाराणसी, उ0प्र0 (बारहवीं-1983, 15 वर्ष 6 माह में) और बी.एससी. (जीव विज्ञान) में 17 वर्ष 6 माह के उम्र में सन् 1985 ई0 में तत्कालिन गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध श्री हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी से पूर्ण हुई। तकनीकी शिक्षा में कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग एण्ड सिस्टम एनालिसिस में स्नातकोत्तर डिप्लोमा इण्डिया एजुकेशन सेन्टर, एम-92, कनाॅट प्लेस, नई दिल्ली से सन् 1988 में पूर्ण हुई। परन्तु जिसका कोई प्रमाण पत्र नहीं है वह ज्ञान अद्भुत है। अपने तीन भाई-बहनों व एक पुत्र में वे सबसे बड़े व सबसे कम प्रमाणित शिक्षा प्राप्त हैं। एक अजीब पारिवारिक स्थिति यह है कि प्रारम्भ निरक्षर माँ से होकर अन्त ”विश्वशास्त्र“ को व्यक्त करने वाले श्री लव कुश सिंह तक एक ही परिवार में है।
सभी धर्मशास्त्रों और भविष्यवक्ताओं के अनुसार और सभी को सत्य रूप में वर्तमान करने के लिए ”विश्वशास्त्र“ को व्यक्त करने वाले श्री लव कुश सिंह समय रूप से संसार के सर्वप्रथम वर्तमान में रहने वाले व्यक्ति हैं क्यूँकि वर्तमान की परिभाषा है-पूर्ण ज्ञान से युक्त होना और कार्यशैली की परिभाषा है-भूतकाल का अनुभव, भविष्य की आवश्यकतानुसार पूर्णज्ञान और परिणाम ज्ञान से युक्त होकर वर्तमान समय में कार्य करना। स्वयं को आत्म ज्ञान होने पर प्रकृति प्रदत्त नाम के अलावा व्यक्ति अपने मन स्तर का निर्धारण कर एक नाम स्वयं रख लेता है। जिस प्रकार ”कृष्ण“ नाम है ”योगेश्वर“ मन की अवस्था है, ”गदाधर“ नाम है ”रामकृष्ण परमहंस“ मन की अवस्था है, ”सिद्धार्थ“ नाम है ”बुद्ध“ मन की अवस्था है, ”नरेन्द्र नाथ दत्त“ नाम है ”स्वामी विवेकानन्द“ मन की अवस्था है, ”रजनीश“ नाम है ”ओशो“ मन की अवस्था है। उसी प्रकार लव कुश सिंह ने अपने नाम के साथ ”विश्वमानव“ लागाकर मन की अवस्था को व्यक्त किया है और उसे सिद्ध भी किया है। व्यक्तियों के नाम, नाम है ”भोगेश्वर विश्वमानव“ उसकी चरम विकसित, सर्वोच्च और अन्तिम अवस्था है जहाँ समय की धारा में चलते-चलते मनुष्य वहाँ विवशतावश पहुँचेगा ऐसा उनका मानना है। जिस प्रकार श्रीकृष्ण के जन्म से पहले ही ईश्वरत्व उन पर झोंक दिया गया था अर्थात जन्म लेने वाला देवकी का आठवाँ पुत्र ईश्वर ही होगा, यह श्रीकृष्ण को ज्ञात होने पर जीवनभर वे जनभावना को उस ईश्वरत्व के प्रति विश्वास बनाये रखने के लिए संघर्ष करते रहे, उसी प्रकार इस लव कुश का नाम उन्हें ज्ञात होने पर वें भी इसे सिद्ध करने के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे जिसका परिणाम आपके समक्ष है।
श्री लव कुश सिंह “विश्वमानव” ने कभी किसी पद पर सरकारी नौकरी नहीं की इस सम्बन्ध में उनका कहना था कि - “नौकरी करता तो यह नहीं कर पाता। पद पर रहता तो केवल पद से सम्बन्धित ही विशेषज्ञता आ पाती। वैसे भी पत्र-व्यवहार या पुस्तक का सम्बन्ध ज्ञान और विचार से होता हैं उसमें व्यक्ति के शरीर से क्या मतलब? क्या कोई लंगड़ा या अंधा होगा तो उसका ज्ञान-विचार भी लंगड़ा या अंधा होगा? क्या कोई किसी पद पर न हो तो उसकी सत्य बात गलत मानी जायेगी? विचारणीय विषय है। परन्तु इतना तो जानता हूँ कि यह आविष्कार यदि सीधे-सीधे प्रस्तुत कर दिया जाता तो सभी लोग यही कहते कि इसकी प्रमाणिकता क्या है? फिर मेरे लिए मुश्किल हो जाता क्योंकि मैं न तो बहुत ही अधिक शिक्षा ग्रहण किया था, न ही किसी विश्वविद्यालय का उच्चस्तर का शोधकत्र्ता था। परिणामस्वरूप मैंने ऐसे पद ”कल्कि अवतार“ को चुना जो समाज ने पहले से ही निर्धारित कर रखा था और पद तथा आविष्कार के लिए व्यापक आधार दिया जिसे समाज और राज्य पहले से मानता और जानता है।”
भारत अपने शारीरिक स्वतन्त्रता व संविधान के लागू होने के उपरान्त वर्तमान समय में जिस कत्र्तव्य और दायित्व का बोध कर रहा है। भारतीय संसद अर्थात विश्वमन संसद जिस सार्वभौम सत्य या सार्वजनिक सत्य की खोज करने के लिए लोकतन्त्र के रूप में व्यक्त हुआ है। जिससे स्वस्थ लोकतंत्र, समाज स्वस्थ, उद्योेग और पूर्ण मानव की प्राप्ति हो सकती है, उस ज्ञान से युक्त विश्वात्मा श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ वैश्विक व राष्ट्रीय बौद्धिक क्षमता के सर्वाेच्च और अन्तिम प्रतीक के रूप मंे व्यक्त हंै।
निःशब्द, आश्चर्य, चमत्कार, अविश्वसनीय, प्रकाशमय इत्यादि ऐसे ही शब्द उनके और उनके शास्त्र के लिए व्यक्त हो सकते हैं। विश्व के हजारो विश्वविद्यालय जिस पूर्ण सकारात्मक एवम् एकीकरण के विश्वस्तरीय शोध को न कर पाये, वह एक ही व्यक्ति ने पूर्ण कर दिखाया हो उसे कैसे-कैसे शब्दों से व्यक्त किया जाये, यह सोच पाना और उसे व्यक्त कर पाना निःशब्द होने के सिवाय कुछ नहीं है।
इस शास्त्र के शास्त्राकार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ अपने परिचितों से केवल सदैव इतना ही कहते रहे कि- ”कुछ अच्छा किया जा रहा है“ के अलावा बहुत अधिक व्याख्या उन्होंने कभी नहीं की। और अन्त में कभी भी बिना इस शास्त्र की एक भी झलक दिखाये एकाएक यह शास्त्र प्रस्तुत कर दिया जाये तो इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है। जो इस स्तर पर है कि - “विश्व बुद्धि बनाम एकल बुद्धि”। और उसका परिणाम ये है कि भारत को वर्तमान काल में विश्वगुरू और संयुक्त राष्ट्र संघ तक के लिए सार्वभौम सत्य-सैद्धान्तिक स्थापना योग्य मार्गदर्शन अभी ही उपलब्ध हो चुका है जिससे भारत जब चाहे तब उसका उपयोग कर सके।
जो व्यक्ति कभी किसी वर्तमान गुरू के शरणागत होने की आवश्यकता न समझा, जिसका कोई शरीरधारी प्रेरणा स्रोत न हो, किसी धार्मिक व राजनीतिक समूह का सदस्य न हो, इस कार्य से सम्बन्धित कभी सार्वजनिक रूप से समाज में व्यक्त न हुआ हो, जिस विषय का आविष्कार किया गया, वह उसके जीवन का शैक्षणिक विषय न रहा हो, 48 वर्ष के अपने वर्तमान अवस्था तक एक साथ कभी भी 48 लोगों से भी न मिला हो, यहाँ तक कि उसको इस रूप में 48 आदमी भी न जानते हों, यदि जानते भी हो तो पहचानते न हों और जो पहचानते हों वे इस रूप को जानते न हों, वह अचानक इस शास्त्र को प्रस्तुत कर दें तो इससे बडा चमत्कार क्या हो सकता है।
जिस व्यक्ति का जीवन, शैक्षणिक योग्यता और कर्मरूप शास्त्र तीनों का कोई सम्बन्ध न हो अर्थात तीनों तीन व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हों, इससे बड़ी अविश्वसनीय स्थिति क्या हो सकती है।
मूल पाशुपत शैव दर्शन सहित अनेक मतों का सफल एकीकरण के स्वरूप श्री लव कुश सिह “विश्वमानव” के जीवन, कर्म और ज्ञान के अनेक दिशाओं से देखने पर अनेक दार्शनिक, संस्थापक, संत, ऋषि, अवतार, मनु, व्यास, व्यापारी, रचनाकर्ता, नेता, समाज निर्माता, शिक्षाविद्, दूरदर्शिता इत्यादि अनेक रूप दिखते हैं
ईश्वर के पूर्ण अवतार शरीर धारण तिथि-आश्विन, शुक्ल पक्ष-त्रयोदशी, रेवती नक्षत्र
ब्रह्मा के पूर्ण अवतार दिनांक - 16 अक्टुबर, 1967, सेामवार, समय - 02.00 बजे
विष्णु के पूर्ण अवतार
महेश के पूर्ण अवतार
भविष्यवाणीयों के अनुसार ही आज विश्व में घटनाएँ घट रही हैं। युग परिवर्तन प्रकृति का अटल सिद्धान्त है। वैदिक दर्शन के अनुसार चार युगों- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग की व्यवस्था है। जब पृथ्वी पर पापियों का एक छत्र साम्राज्य हो जाता है, तब भगवान पृथ्वी पर मानव रूप में प्रकट होते हैं। मानवता के इस पूर्ण विकास का कार्य अनादि काल से भारत ही करता आया है। इसी पुण्य भूमि पर अवतारों का अवतरण अनादि काल से होता रहा है। लेकिन कैसी बिडम्बना है कि ऋषि-मुनियों, महापुरूषों व अवतारों के जीवन काल में उनके अधिकतम उपयोग के लिए उस समय के शासन व्यवस्था व जनता ने उनकी दिव्य बातों व आदर्शो पर ध्यान नहीं दिया और उनके अन्र्तध्यान होने पर दुगने उत्साह से उनकी पूजा शुरू कर पूजने लग गये। यह भी एक बिडम्बना ही है कि हम जीवन व समय रहते उनकी नहीं मानते अपितु उनका विरोध व अपमान ही करते रहते हैं। कुल मिलाकर ”कारवाँ गुजर गया, गुबार पूजते रह गये“ वाली स्थिति मनुष्यों की रहती है।
जिस प्रकार पुनर्जन्म केवल मानसिक आधार पर ही सिद्ध हो पाता है उसी प्रकार अवतार भी केवल मानसिक आधार पर ही पहचाने जाते हैं। वे अपने से पिछले अवतार के गुण से युक्त तो होते हैं परन्तु पिछले अवतार की धर्मस्थापना की कला से अलग एक नई कला का प्रयोग करते हैं और वह प्रयोग कर देने के उपरान्त ही मानव समाज को ज्ञात होता है अर्थात प्रत्येक अवतार का शरीर अलग-अलग व समाज के सत्यीकरण की कला अलग-अलग होती है। इस सम्बन्ध में आचार्य रजनीश ”ओशो“ का कहना है कि - ”एक तरह का सिद्व एक ही बार होता है, दोबारा नहीं होता। क्योकि जो सिद्ध हो गया, फिर नही लौटता। गया फिर वापस नहीं आता। एक ही बार तुम उसकी झलक पाते हो- बुद्व की, महावीर की, क्राइस्ट की, मुहम्मद की, एक ही बार झलक पाते हो, फिर गये सो गये। फिर विराट में लीन हो गये। फिर दोबारा उनके जैसा आदमी नहीं होगा, नहीं हो सकता। मगर बहुत लोग नकलची होगें। उनको तुम साधु कहते हो। उन नकलीची का बड़ा सम्मान है। क्योंकि वे तुम्हारे शास्त्र के अनुसार मालूम पड़ते हैं। जब भी सिद्ध आयेगा सब अस्त व्यस्त कर देगा सिद्ध आता ही है क्रान्ति की तरह ! प्रत्येक सिद्ध बगावत लेकर आता है, एक क्रान्ति का संदेश लेकर आता है एक आग की तरह आता है- एक तुफान रोशनी का! लेकिन जो अँधेरे में पड़े है। उनकी आँखे अगर एकदम से उतनी रोशनी न झेल सके और नाराज हो जाय तो कुछ आश्चर्य नहीं। जो एक गुरू बोल रहा है, वह अनन्त सिद्धों की वाणी है। अभिव्यक्ति में भेद होगा, शब्द अलग होगें, प्रतीक अलग होगें मगर जो एक सिद्ध बोलता है, वह सभी सिद्धो की वाणी है। इनसे अन्यथा नहीं हो सकता है। इसलिए जिसने एक सिद्ध को पा लिया, उसने सारे सिद्धो की परम्परा को पा लिया। क्यांेकि उनका सूत्र एक ही है। कुंजी तो एक ही है, जिसमें ताला खुलता है अस्तित्व का।“
जिस प्रकार सुबह में कोई व्यक्ति यह कहे कि रात होगी तो वह कोई नई बात नहीं कह रहा। रात तो होनी है चाहे वह कहे या ना कहे और रात आ गई तो उस रात को लाने वाला भी वह व्यक्ति नहीं होता क्योंकि वह प्रकृति का नियम है। इसी प्रकार कोई यह कहे कि ”सतयुग आयेगा, सतयुग आयेगा“ तो वह उसको लाने वाला नहीं होता। वह नहीं ंभी बोलेगा तो भी सतयुग आयेगा क्योंकि वह अवतारों का नियम है। सुबह से रात लाने का माध्यम प्रकृति है। युग बदलने का माध्यम अवतार होते हैं। जिस प्रकार त्रेतायुग से द्वापरयुग में परिवर्तन के लिए वाल्मिकि रचित ”रामायण“ आया, जिस प्रकार द्वापरयुग से कलियुग में परिवर्तन के लिए महर्षि व्यास रचित ”महाभारत“ आया। उसी प्रकार प्रथम अदृश्य काल से द्वितीय और अन्तिम दृश्य काल व चैथे युग-कलियुग से पाँचवें युग-स्वर्णयुग में परिवर्तन के लिए शेष समष्टि कार्य का शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ सत्यकाशी क्षेत्र जो वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है, से भारत और विश्व को अन्तिम महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानवों के अनन्त काल तक के विकास के लिए व्यक्त किया गया है।
कारण, अन्तिम महावतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ और ”आध्यात्मिक सत्य“ आधारित क्रिया ”विश्वशास्त्र“ से उन सभी ईश्वर के अवतारों और शास्त्रों, धर्माचार्यों, सिद्धों, संतों, महापुरूषों, भविष्यवक्ताओं, तपस्वीयों, विद्वानों, बुद्धिजिवीयों, व्यापारीयों, दृश्य व अदृश्य विज्ञान के वैज्ञानिकों, सहयोगीयों, विरोधीयों, रक्त-रिश्ता-देश सम्बन्धियों, उन सभी मानवों, समाज व राज्य के नेतृत्वकर्ताओं और विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के संविधान को पूर्णता और सत्यता की एक नई दिशा प्राप्त हो चुकी है जिसके कारण वे अधूरे थे। इस प्रकार अन्तिम महावतार के रूप में ”विश्वशास्त्र“ के द्वारा स्वयं को स्थापित करने वाले श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ पूर्णतया योग्य सिद्ध होते हैं और शास्त्रों व अनेक भविष्यवक्ताओं के भविष्यवाणीयों को पूर्णतया सिंद्ध करते है। भविष्यवाणीयों के अनुसार ही जन्म, कार्य प्रारम्भ और पूर्ण करने का समय और जीवन है। जिन्हें इन्टरनेट पर लव कुश सिंह ”विश्वमानव“, सत्यकाशी, विश्वशास्त्र, विश्वमानव (LAVA KUSH SINGH “VISHWMANAV”, SATYAKASHI, VISHWSHASTRA, VISHWMANAV) इत्यादि से सर्च कर पाया जा सकता है।
सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त अनुसार कथा
सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य काल के समष्टि दृश्य काल में दृश्य सत्य चेतना के पूर्ण रुप से युक्त संघ और योजना आधारित कलियुग में ब्रम्हा के अन्तिम, विष्णु के दसवें और अन्तिम निष्कलंक कल्कि, शंकर के बाइसवें और अन्तिम भोगेश्वर तथा शिव के अन्तिम दृश्य सार्वजनिक अर्थात ब्रह्माण्डीय प्रमाणित पूर्वावतार लव कुश सिंह विश्वमानव के अवतरित होने तक सर्वाधिक क्रान्ति वाले समाज में सभी विषय विकसित अवस्था को प्राप्त हो रहे थे। साथ ही अवनति, दुरुपयोग और विनाश की ओर भी बढ़ रहे थे।
जैसी तुम्हारी इच्छा वैसा करो
डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर, 1888 को दक्षिण भारत के तिरूतनि स्थान पर हुआ था जो चेन्नई से 64 किमी उत्तर-पूर्व में है। डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सन् 1952 से 1962 तक में रहे। डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय समाजिक संस्कृति से ओत-प्रोत एक महान शिक्षाविद् महान दार्शनिक, महान वक्ता और आस्थावान हिन्दू विचारक थे। डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षक के रूप में व्यतीत किये। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे। डाॅ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव दिमाग का सद्उपयोग किया जाना सम्भव है इसलिए समस्त विश्व को एक इकाई समझकर ही शिक्षा का प्रबन्धन किया जाना चाहिए। उनके जन्मदिन को ”शिक्षक दिवस“ के रूप में मनाया जाता है।
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।
विमृश्न्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरू।। (श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय-18, श्लोक-63)
अर्थात् - मैंने तुम्हें जो बताया, वह सब से बड़ा रहस्य है। इस पर भलीभाँति विचार कर तुम्हारी जैसी इच्छा वैसा करो।
”परमात्मा देखने में तटस्थ या निरपेक्ष दिखाई देता है, क्योंकि उसने चुनने का निर्णय अर्जुन के हाथ में छोड़ दिया है। उसकी यह निरपेक्षता ही अर्जुन के चिन्ता का कारण है। वह किसी पर भी दबाव नहीं डालता क्योंकि स्वतःस्फूर्त स्वतन्त्रता बहुत मूल्यवान होती है। भगवान अपना आदेश ऊपर से नहीं थोपता। वह स्वतन्त्र छोड़ देता है। परमात्मा की पुकार को स्वीकार करने या अस्वीकार कर देने के लिए हम हर समय स्वतन्त्र हैं। हम लड़खड़ाने लगें तो वह सहायता देने के लिए तैयार रहता है और प्रतीक्षा करने को तैयार है जब तक हम उसकी ओर उन्मुख न हों।
सब कुछ पहले से निर्धारित मानने वाले सिद्धान्त में टकराव के कारण यूरोप और भारत में काफी वाद-विवाद हुआ है। यूरोप का प्रमुख सिद्धान्त है कि संकल्प शक्ति और मानवीय प्रयत्न की स्वतन्त्रता का मनुष्य के उद्धार में बहुत बड़ा हाथ होता है। यद्यपि स्वयं संकल्प शक्ति को भी परमात्मा की कृपा के समर्थन की आवश्यकता पड़ सकती है। पहले से सब कुछ तय मानने वालों को अच्छे कार्यों और प्रार्थना के लिए यत्न करना होता है, क्योंकि वहाँ भी मानते हैं कि ये उपाय नियति को आगे बढ़ाने में सहायक तो हो सकते हैं लेकिन वे उसे रोक नहीं सकते। मनुष्य इस बात के लिए स्वतन्त्र है कि परमात्मा उन मनुष्यों पर कृपा करना चाहता है जो अपने आचरण से उस कृपा को ग्रहण करने के लिए तैयार करते हैं।
आध्यात्मिक नेता हम पर शारीरिक हिंसा, चमत्कार, प्रदर्शन के जरिये प्रभाव नहीं डालते। यदि सच्चा शिष्य कोई गलती कर भी बैठे, तो वह उसे केवल सलाह देगा। यदि शिष्य को चुनाव करने की स्वतन्त्रता पर आँच आती हो, तो वह उसे गलत रास्ते से भी वापस लौट आने के लिए विवश नहीं करेगा। गलती भी विकास की एक दिशा है।
कृष्ण केवल सारथी हैं। वह अर्जुन के आदेश का पालन करेगा। उसने कोई शस्त्र धारण नहीं किया हुआ है। यदि वह अर्जुन पर कोई प्रभाव डालता है तो वह उसे अपने उस सर्वजयी प्रेम के जरिए डालता है। जो कभी समाप्त नहीं होता।
अर्जुन को अपने लिए स्वयं विचार करना चाहिए और अपने लिए स्वयं ही मार्ग खोज करना चाहिए। अस्पष्ट मान्यताओं को अनिवार्य रूप से और भावुकतापूर्वक अपना लिए जाने के कारण फलस्वरूप कट्टर धर्मान्धता उत्पन्न हुई है और उनके कारण मनुष्यों को अकथनीय कष्ट उठाना पड़ा है। इसलिए यह आवश्यक है कि मन और विश्वासों के लिए कोई तर्क संगत और अनुभावात्मक औचित्स ढूंढ़े।
अर्जुन को एक वास्तविक अखण्डता की अनुभूति प्राप्त करनी होगी लेकिन उसके विचार अपने हैं। और गुरू के जरिये उस पर थोपे नहीं गये हैं। दूसरों पर अपने विचार थोपना शिक्षण नहीं हैं।“
- भगवद्गीता के आखिरी उपदेश पर भारतीय दर्शन के व्याख्याकार और दूसरे राष्ट्रपति डाॅ0 राधाकृष्णनन का विवेचन
”यह विश्वशास्त्र, मनुष्यों पर थोपा नहीं जा रहा बल्कि वह मनुष्यों को, मनुष्यो के इस संसार मे जो वर्तमान है उसे और उसके आगे अनन्त मार्ग दिखा रहा है और सभी मार्गों के एकीकरण द्वारा, उस मार्ग को भी दिखा रहा है जो विश्व को सत्य-सुन्दर-शिव बना सकता है। फिर भी हे मनुष्यों जैसी तुम्हारी इच्छा वैसा करो“
महाविष्णु के 24 अवतारों (1. सनकादि ऋषि (ब्रह्मा के चार पुत्र), 2. नारद, 3. वाराह, 4. मत्स्य, 5. यज्ञ (विष्णु कुछ काल के लिये इंद्र रूप में), 6.नर-नारायण, 7. कपिल, 8. दत्तात्रेय, 9. हयग्रीव, 10. हंस पुराण, 11. पृष्णिगर्भ, 12. ऋषभदेव, 13. पृथु, 14. नृसिंह, 15. कूर्म, 16. धनवंतरी, 17. मोहिनी, 18. वामन, 19. परशुराम, 20. राम, 21. व्यास, 22. कृष्ण, बलराम, 23. गौतम बुद्ध (कई लोग बुद्ध के स्थान पर बलराम को कहते है, अन्यथा बलराम शेषनाग के अवतार कहलाते हैं), 24. कल्कि) में एक मात्र शेष 24वाँ तथा प्रमुख 10 अवतारों (1.मत्स्य, 2.कूर्म, 3.वाराह, 4.नृसिंह, 5.वामन, 6.परशुराम, 7.राम, 8.श्रीकृष्ण, 9.बुद्ध और 10.कल्कि) में एक मात्र शेष दसवाँ और अन्तिम कल्कि अवतार, महाअवतार क्यों कहलायेगें इसे समझने के लिए निम्नलिखित को समझना आवश्यक है।
सत्य से सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त तक का र्माग अवतारों का मार्ग है। सार्वभौम सत्य-सिंद्धान्त की अनुभूति ही अवतरण है। इसके अंश अनुभूति को अंश अवतार तथा पूर्ण अनुभूति को पूर्ण अवतार कहते है। अवतार मानव मात्र के लिए ही कर्म करते हैं न कि किसी विशेष मानव समूह या सम्प्रदाय के लिए। ग्रन्थों में अवतारों की कई कोटि बतायी गई है जैसे अंशाशावतार, अंशावतार, आवेशावतार, कलावतार, नित्यावतार, युगावतार इत्यादि, जो भी सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करता है वे सभी अवतार कहलाते हैं। व्यक्ति से लेकर समाज के सर्वोच्च स्तर तक सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करने के क्रम में ही विभिन्न कोटि के अवतार स्तरबद्ध होते है। अन्तिम सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करने वाला ही अन्तिम अवतार के रूप में व्यक्त होगा। अब तक हुये अवतार, पैगम्बर, ईशदूत इत्यादि को हम सभी उनके होने के बाद, उनके जीवन काल की अवधि में या उनके शरीर त्याग के बाद से ही जानते हैं। परन्तु भविष्य अर्थात आने वाले कल के लिए कल्पित एक मात्र महाविष्णु के अवतार के आने से पूर्व ही जानने लगे हैं।
हम सभी के मोटर वाहनों में, वाहन कितने किलोमीटर चला उसे दिखाने के लिए एक यंत्र होता है। यदि इस यंत्र की अधिकतम 6 अंकों तक किलोमीटर दिखाने की क्षमता हो तब उसमें 6 अंक दिखते है। जो प्रारम्भ में 000000 के रूप में होता है। वाहन के चलते अर्थात विकास करते रहने से 000001 फिर 000002 इस क्रम से बढ़ते हुए पहले इकाई में, फिर दहाई में, फिर सैकड़ा में, फिर हजार में, फिर दस हजार में, फिर लाख में, के क्रम में यह आगे बढ़ते हुये बदलता रहता है। एक समय ऐसा आता है जब सभी अंक 999999 हो जाते हें फिर क्या होगा? फिर सभी 000000 के अपने प्रारम्भ वाली स्थिति में आ जायेगें। इन 6 अंक के प्रत्येक अंक के चक्र में 0 से 9 अंक के चक्र होते है। जो वाहन के चलने से बदलकर चले हुये किलोमीटर को दिखाते है। यही स्थिति भी इस सृष्टि के काल चक्र की है। सृष्टि चक्र में पहले काल है जिसके दो रूप अदृश्य और दृश्य हैं। फिर इन दोनों काल में 5 युग हैं। 4 अदृश्य काल के 1 दृश्य काल के। और इन दोनों काल में 14 मनवन्तर और मनु हैं। 7 अदृश्य काल के 7 दृश्य काल के। फिर इन युगों में युगावतार अवतार होते हैं। फिर व्यास व शास्त्र होते हैं। ये सब वैसे ही है जैसे अंक गणित में इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, लाख इत्यादि होते हैं। उपर उदाहरण दिये गये यंत्र में जब सभी अंक 999999 हो जाते हैं तब विकास के अगले एक बदलाव से इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, लाख सभी बदलते हैं।
वर्तमान सृष्टि चक्र की स्थिति भी यही हो गयी है कि अब अगले अवतार के मात्र एक विकास के लिए सत्यीकरण से काल, मनवन्तर व मनु, अवतार, व्यास व शास्त्र सभी बदलेगें। इसलिए देश व विश्व के धर्माचार्यें, विद्वानों, ज्योतिषाचार्यों इत्यादि को अपने-अपने शास्त्रों को देखने व समझने की आवश्यकता आ गयी है क्योंकि कहीं श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ और ”आध्यात्मिक सत्य“ आधारित कार्य ”विश्वशास्त्र“ वही तो नहीं है? और यदि नहीं तो वह कौन सा कार्य होगा जो इन सबको बदलने वाली घटना को घटित करेगा?
शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 से प्रारम्भ हो चुका है-
1. काल के प्रथम रूप अदृश्य काल से दूसरे और अन्तिम दृश्य काल का प्रारम्भ।
2. मनवन्तर के वर्तमान 7वें मनवन्तर वैवस्वत मनु से 8वें मनवन्तर सांवर्णि मनु का प्रारम्भ।
3. अवतार के नवें बुद्ध से दसवें और अन्तिम अवतार-कल्कि महावतार का प्रारम्भ।
4. युग के चैथे कलियुग से पाँचवें युग स्वर्ण युग का प्रारम्भ।
5. व्यास और द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य “नवसृजन“ के प्रथम भाग ”सार्वभौम ज्ञान“ के शास्त्र ”गीता“ से द्वितीय अन्तिम भाग ”सार्वभौम कर्मज्ञान“, पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र“, लोकतन्त्र का ”धर्मनिरपेक्ष धर्मशास्त्र“ और आम आदमी का ”समाजवादी शास्त्र“ द्वारा व्यवस्था सत्यीकरण और मन के ब्रह्माण्डीयकरण और नये व्यास का प्रारम्भ।
ईश्वर के पूर्ण अवतार शरीर धारण तिथि-श्रावण, शुक्ल पक्ष-पंचमी (नाग पंचमी)
ब्रह्मा के पूर्ण अवतार
विष्णु के पूर्ण अवतार
महेश के पूर्ण अवतार
काल और युग परिवर्तक कल्कि महाअवतार एवं अन्य स्वघोषित कल्कि अवतार
ग्रन्थों में अवतारों की कई कोटि बतायी गई है जैसे अंशाशावतार, अंशावतार, आवेशावतार, कलावतार, नित्यावतार, युगावतार इत्यादि। जो भी सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करता है वे सभी अवतार कहलाते हैं। व्यक्ति से लेकर समाज के सर्वोच्च स्तर तक सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करने के क्रम में ही विभिन्न कोटि के अवतार स्तरबद्ध होते है। अन्तिम सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करने वाला ही अन्तिम अवतार के रूप में व्यक्त होगा। अब तक हुये अवतार, पैगम्बर, ईशदूत इत्यादि को हम सभी उनके होने के बाद, उनके जीवन काल की अवधि में या उनके शरीर त्याग के बाद से ही जानते हैं। परन्तु भविष्य अर्थात आने वाले कल के लिए कल्पित महाविष्णु के 24 अवतारों (1. सनकादि ऋषि (ब्रह्मा के चार पुत्र), 2. नारद, 3. वाराह, 4. मत्स्य, 5. यज्ञ (विष्णु कुछ काल के लिये इंद्र रूप में), 6.नर-नारायण, 7. कपिल, 8. दत्तात्रेय, 9. हयग्रीव, 10. हंस पुराण, 11. पृष्णिगर्भ, 12. ऋषभदेव, 13. पृथु, 14. नृसिंह, 15. कूर्म, 16. धनवंतरी, 17. मोहिनी, 18. वामन, 19. परशुराम, 20. राम, 21. व्यास, 22. कृष्ण, बलराम, 23. गौतम बुद्ध (कई लोग बुद्ध के स्थान पर बलराम को कहते है, अन्यथा बलराम शेषनाग के अवतार कहलाते हैं), 24. कल्कि) में एक मात्र शेष 24वाँ तथा प्रमुख 10 अवतारों (1.मत्स्य, 2.कूर्म, 3.वाराह, 4.नृसिंह, 5.वामन, 6.परशुराम, 7.राम, 8.श्रीकृष्ण, 9.बुद्ध और 10.कल्कि) में एक मात्र शेष दसवाँ और अन्तिम कल्कि अवतार, के विषय में जो परिकल्पना है, वह निम्नलिखित रूप से है जिसे समझना आवश्यक है -
प्राचीन कथा -
बुद्धकाल के पश्चात् लोग पुनः धर्म की बातें भूल गये। तब भगवान ने शंकराचार्य के रूप में नरदेह धारणकर जीवों को धर्म-शिक्षा दी। इसी प्रकार मानव जाति के मंगल हेतु रामानुज, चैतन्य और रामकृष्ण आदि अवतार भी आविर्भूत हुए। परन्तु दशावतारों में बुद्धदेव के बाद कल्कि-अवतार का ही उल्लेख हुआ है। कल्कि का अर्थ है - जो आएँगे।
कलियुग के अन्त में मनुष्य ज्ञानहीन हो भगवान को भूल जाएगा। पापाचार के फलस्वरूप उसकी आकृति तथा आयु छोटी हो जाएगी। धूर्तता, कपटता आदि सभी नीच प्रवृत्तियाँ उसके स्वभाव का अंग हो जाएँगी, सूदखोर ब्राह्मणों का मान होगा और दुष्ट लोग संन्यासी का वेश धारण करके लोगों को ठगेंगे। भाई-बन्धु को लोग पराया समझेंगे, परन्तु साले-सम्बन्धियों को परम आत्मीय मानेंगे। झगड़ा-विवाद नित्यकर्म हो जायेगा। केशविन्यास व वेशभूषा का चलन ही सभ्यता कहलाएगा। कुल मिलाकर मनुष्यों के मन में बुद्धि-विवेक का लेष तक न रह जाएगा।
दानवी प्रकृति के लोग छल-बल से देश के राजा होकर प्रजा का अर्थशोषण करेंगे। दुष्ट लोग राजाओं के अनुगत होकर लोगों का हित करने के नाम पर अपना ही स्वार्थसाधन करेंगे। रोग, महामारी, अनावृष्टि, अकाल आदि प्राकृतिक उपद्रवों से निरन्तर लोकक्षय होगा।
शम्भल नामक ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण निवास करेंगे, जो सुमति नामक स्त्री के साथ विवाह करेंगें दोनों ही धर्म-कर्म में दिन बिताएँगे। कल्कि उनके घर में पुत्र होकर जन्म लेंगे और अल्पायु में ही वेदादि शास्त्रों का पाठ करके महापण्डित हो जाएँगे। बाद में वे जीवों के दुःख से कातर हो महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या प्राप्त करेंगे।
उसी देश के राजा विशाखयूप कल्किदेव के माहात्म्य से अवगत होकर उनका शिष्यत्व स्वीकार कर उन्हीं के उपदेशानुसार राज्य-शासन चलाएँगे। कल्किदेव की कृपा से उनकी प्रजा धर्म परायण हो उठेगी।
सिंहल द्वीप में बृहद्रथ नाम के एक राजा होंगे। उनकी रानी कौमुदी के गर्भ से एक अपूर्व लावण्यमी कन्या का जन्म होगा। उसका नाम होगा पद्मा। पद्मा बाल्यकाल से ही श्रीहरि की परम भक्त होंगी और उन्हें पति रूप में प्राप्त करने के लिए महादेव की आराधना करेंगी। शंकर-पार्वती प्रसन्न होकर उन्हें वर देंगे कि श्रीहरि उन्हें पति रूप में प्राप्त हों और कोई भी पुरूष उनकी ओर पत्नीभाव से देखने पर तत्काल नारी रूप धारण करेगा।
पुत्री पद्मादेवी की आयु विवाह-योग्य हो जाने पर राजा बृहद्रथ उसके विवाह हेतु एक स्वयंवर सभा बुलाएँगे। राजागण असाधारण रूपवती पद्मा का रूप देख मोहित होकर उन्हें पत्नी के रूप में पाने की इच्छा करते ही तत्काल पद्मा के समान ही युवती हो जाएँगे। लज्जा के कारण वे अपने राज्य को न लौटकर पद्मादेवी के सखी-रूप में उन्हीं के साथ निवास करने लगेंगे। कल्किदेव यह समाचार पाकर अश्वारोहण करते हुए सिंहल द्वीप जाएँगे। पद्मादेवी जलविहार करते समय उन्हें देखते ही पहचान कर उनके प्रति अनुरक्त हो जाएँगी। बृहद्रथ यह जानकर काफी धन आदि के साथ अपनी कन्या कल्किदेव को समर्पित कर देंगे। जो समस्त राजा नारी रूप में परिणत हो गए थे, वे सभी कल्किदेव का दर्शन करते ही अपने पूर्व रूप में आकर कृतज्ञ हृदय के साथ स्वदेश लौट जाएँगे।
इधर देवराज इन्द्र के आदेश पर उनके वास्तुकार विश्वकर्मा शम्भल ग्राम में एक अपूर्व पुरी का निर्माण करेंगे। कल्किदेव अपनी पत्नी तथा हाथी-घोड़े, धन-रत्न आदि के साथ स्वदेश लौटकर वहीं निवास करेंगे। कुछ काल बाद उनके जय-विजय नामक दो महा बलशाली पुत्र जन्मेंगे।
विष्णुयश एक अश्वमेध यज्ञ करने का संकल्प करेंगे। पुत्र पिता की इच्छा पूर्ण करने हेतु दिग्विजय हेतु बाहर निकलेंगे। क्योंकि चक्रवर्ती राजा हुए बिना अश्वमेध यज्ञ नहीं किया जा सकता।
भगवान कल्कि सर्वप्रथम कीटक देश में बौद्ध नामधारी असुर-प्रकृति लोगों के राज्य पर हमला करेंगे। बौद्धगण आमने-सामने के युद्ध में हारकर तरह-तरह की माया का आश्रय लेेंगे, परन्तु कल्किदेव उनका सारा प्रयास विफल कर देंगे। तदुपरान्त वे लोग बहुत बड़ी म्लेच्छ सेना बनाकर कल्कि-सेना पर आक्रमण करेंगे। भीषण युद्ध के बाद बौद्ध तथा म्लेच्छ-गण समाप्त हो जाएँगे। उनके रक्त की नदियाँ बहेंगी, जिसमें हाथी, घोड़े रथ आदि घड़ियाल के समान तैरेंगे, मृतदेहों का पहाड़ बन जाएगा।
पति-पुत्रों के निधन से क्रोधान्ध होकर बौद्ध तथा म्लेच्छ नारियाँ युद्धवेश में सज्जित होकर कल्कि सेना पर आक्रमण करेंगी। स्त्रियों को मारने से पाप तथा अपयश मिलता है और युद्ध में उन्हें परास्त करके भी गौरव नही मिलता- यह सोचकर कल्किदेव एक माया का आश्रय लेंगे। नारियों द्वारा अस्त्र चलाने पर वह जड़ हो जाएगा और बाणादि बार-बार लौटकर उन्हीं के हाथों में आ जाएँगे। इससे उन महिलाओं के भाव में परिवर्तन आएगा। कल्किदेव को भगवान समझकर वे उनकी शरण लंेगी। वे उन्हें ज्ञानोपदेश के द्वारा मुक्ति प्रदान करेंगे।
उसी समय चक्रतीर्थ में बालखिल्य नाम के अति लघुकाय ऋषिगण कल्किदेव से निवेदन करेगें कि कुथोदरी नामक एक मायाविनी राक्षसी के उपद्रव से उनकी तपस्या में बड़ा विघ्न पड़ रहा है। कल्किदेव उस राक्षसी को सबक सिखाने सेना के साथ हिमालय की ओर प्रस्थान करेंगे।
हिमालय पर्वत पर अपना सिर और निषध पर्वत पर पैर रखकर अनेक योजन स्थान में सोकर कुथोदरी अपने पुत्र विकंजन को स्तन पिलायेगी। स्तन से दूध झरने पर एक नदी की सृष्टि होगी। राक्षसी के निःश्वास के वेग से वन्य हाथी दूर फिक जाएँगे, गुफा समझकर सिंह उसके कर्णकुहरों में और हिरण उसके रोमकूपों में निवास करेंगे। इस अद्भुत राक्षसी को देखकर कल्किदेव की सेना मूर्छित हो जाएगी। कल्किदेव द्वारा आक्रमण किये जाने पर वह उन्हें सेना समेत निगल जाएगी। वे खड्ग लिए राक्षसी का पेट फाड़कर बाहर निकलेंगे। विराट् पर्वतमाला के समान धरती पर गिरकर चारों ओर रक्त से प्लावित करती हुई कुथोदरी प्राण त्याग देगी।
मरू तथा देवापि नामक दो भक्त राजा कल्किदेव के शिष्य बन जाएँगे। विशाखयूप, मरू, देवापि आदि से युक्त अपनी विराट् सैन्यवाहिनी के साथ कल्किदेव विशसन नामक प्रदेश पर आक्रमण करेंगे। पूर्ववत् ही भयानक युद्ध के पश्चात् अधर्माचारीगण नष्ट हो जाएँगे। कोक तथा विकोक नामक दो मायावी विभिन्न प्रकार की माया का अवलम्बन करेेंगे, परन्तु कल्किदेव उनकी माया को व्यर्थ करते हुए उनका वध कर डालेंगे।
इसके बाद कल्कि भल्लाट नगर पर आक्रमण करेंगे। भल्लाट के महायोद्धा तथा हरिभक्त राजा शशिध्वज और उनकी भक्तिमती पत्नी सुशान्ता योगबल से कल्किदेव को पहचान लेेंगे। सुशान्ता अपने पतिदेव को अनेक प्रकार से समझाएगी कि वे शत्रुभाव को त्यागकर श्रीहरि के चरणों में शरण लें, परन्तु शशिध्वज बिल्कुल भी राजी न होकर अपने पुत्र आदि समस्त सम्बन्धियों तथा सेना के साथ कल्किदेव पर आक्रमण करेंगे। शशिध्वज की वीरता से विशाखयूप आदि सभी पराजित होंगे। उनके अस्त्रघात से कल्किदेव के मूर्छित हो जाने पर राजा शशिध्वज उन्हें सीने से लगाकर राजपुरी ले जाएँगे।
सुशान्ता एवं उनकी सखियाँ श्रीहरि को पा आनन्दपूर्वक उन्हें घेरकर नृत्य-गीत करती रहेंगी। चेतना लौटने पर कल्किदेव उनका भक्तिभाव देखकर सन्तुष्ट होंगे तथा आत्समर्पण कर देंगे। शशिध्वज अपनी कन्या रमा को कल्किदेव के हाथों सौंपकर उन्हें दामाद के रूप में वरण करेंगे। इस अवसर पर उस विराट् सैन्यसंघ में महा-महोत्सव होगा।
भगवान कल्कि भारत के समस्त अत्याचारी असुरस्वभाव राजाओं का संहार करेंगे। दुष्ट लोक उनके भय से सन्मार्ग का आश्रय लेंगे। दिग्विजय करके वे सम्पूर्ण भारत के चक्रवर्ती राजा होंगे और पिता द्वारा संकल्पित अश्वमेध तथा अन्य प्रकार के यज्ञों का सम्पादन करके वैदिक धर्म का पुनरूद्धार करेंगे। उनके असाधारण कृतित्व देखकर तथा उनके शासनाधीन रहने से लोग निरन्तर उन्हीं के चरित्र का चिन्तन करते हुए पवित्र हो जाएँगे। सर्वदा उनके आदर्शानुसार धम-कर्म में लगे रहकर वे लोग परम शान्ति प्राप्त करेंगे। यथासमय अच्छी वर्षा होगी। भूमि के उर्वर हो जाने से यथेष्ट मात्रा में अन्न उपजेगा। रोक-शोक कुछ भी नहीं रह जाएगा।
इस प्रकार पुनः सतयुग का आविर्भाव हो जाने पर कल्किदेव अपना अवतार देह त्यागकर गोलोक में विचरण करेंगे।
कल्कि पुराण
कल्कि पुराण हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक ग्रन्थों में से एक है। इस पुराण में भगवान विश्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार की भविष्यवाणी की गयी है और कहा गया है कि विष्णु का अगला अवतार (महाअवतार)-”कल्कि अवतार“ होगा। इसके अनुसार 4,320 वीं शती में कलियुग का अन्त के समय कल्कि अवतार लेंगें।
इस पुराण में प्रथम मार्कण्डेय जी और शुकदेव जी के संवाद का वर्णन है। कलियुग का प्रारम्भ हो चुका है जिसके कारण पृथ्वी देवताओं के साथ, विष्णु के सम्मुख जाकर उनसे अवतार की बात कहती है। भगवान के अंश रूप में ही सम्भल गाँव (मुरादाबाद, उ0प्र0 के पास) में कल्कि भगवान का जन्म होता है। उसके आगे कल्कि भगवान की दैवीय गतिविधियों का सुन्दर वर्णन मन को बहुत सुन्दर अनुभव कराता है। भगवान कल्कि विवाह के उद्देश्य से सिंहल द्वीप जाते हैं वह जलक्रिड़ा के दौरान राजकुमारी पद्मावती से परिचय होता है। देवी पद्मिनी का विवाह कल्कि भगवान के साथ ही होगा, अन्य कोई भी उसका पात्र नहीं होगा, प्रयास करने पर वह स्त्री रूप में परिणत हो जायेगा। अंत में कल्कि व पद्मिनी का विवाह सम्पन्न हुआ और विवाह के पश्चात् स्त्रीत्व को प्राप्त हुए राजागण पुनः पूर्व रूप में लौट आये। कल्कि भगवान पद्मिनी को लेकर सम्भल गाँव में लौट आये। विश्वकर्मा के द्वारा उसका अलौकिक तथा दिव्य नगरी के रूप में निर्माण हुआ। हरिद्वार में कल्कि जी ने मुनियों से मिलकर सूर्यवंश का और भगवान राम का चरित्र वर्णन किया। बाद में शशिध्वज का कल्कि से युद्ध और उन्हें अपने घर ले जाने का वर्णन है, जहाँ वह अपनी प्राणप्रिय पुत्री रमा का विवाह कल्कि भगवान से करते हैं। उसके बाद इसमें नारद जी आगमन, विष्णुयश का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न, रूक्मिणी व्रत प्रसंग और अंत में लोक में सतयुग की स्थापना के प्रसंग को वर्णित किया गया है। वह शुकदेव जी के कथा का गान करते हैं। अंत में दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी व समिष्ठा की कथा है। इस पुराण में मुनियों द्वारा कथित श्री भगवती गंगा स्तव का वर्णन भी किया गया है। पाँच लक्षणों से युक्त यह पुराण संसार को आनन्द प्रदान करने वाला है। इसमें साक्षात् विष्णु स्वरूप भगवान कल्कि के अत्यन्त अद्भुत क्रियाकलापों का सुन्दर व प्रभावपूर्ण चित्रण है।
नाम रूप - कल्कि पुराण हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक ग्रन्थों में से एक है। इस पुराण में भगवान विष्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार की भविष्यवाणी की गयी है और कहा गया है कि विष्णु का अगला अवतार (महाअवतार)-”कल्कि“ होगा। जबकि खुर्शीद अहमद प्रभाकर, दर्वेश, कादियान, जिला-गुरदासपुर, पंजाब, भारत द्वारा लिखित पुस्तक ”कल्कि अवतार-हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थों में“ (पुस्तक मिलने का पता-नजारत नश्रो इशाअत, सदर अन्जुमन अहमदिया, कादियान, जि.गुरदासपुर, पंजाब, भारत, पिन-143516 और इन्टरनेट द्वारा) के अनुसार- ”संसार भर के विभिन्न धर्मो के आधारभूत ग्रन्थों में कलियुग में प्रकट होने वाले कल्कि अवतार का उल्लेख मिलता है। साथ ही उसके सुन्दर, सुनहरे, श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण कारनामों और कामों का उल्लेख मिलता है। उसके ”अहमद“ नाम होने में हिन्दुओं तथा मुसलमानों के पुस्तकों में सहमति पायी जाती है।“ पुस्तक के अनुसार-”चारो वेदो में ”अहमद“ शब्द 31 बार आया है।“ वेदों में आये इस ”अहमद“ शब्द को हिन्दू भाष्यकारों ने ”मैं“ के अर्थ में तथा मुस्लिम भाष्यकारों ने उसी अर्थ ”अहमद“ के अर्थो में लिया है।
मेरा मानना है कि सामान्य व्यावहारिक रूप में भविष्य में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति का नाम निश्चित करना असम्भव है। अगर अवतार के उदाहरण में देखें तो सिर्फ उस समय की सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार उसके गुण की ही कल्पना की जा सकती है या उसके हो जाने के उपरान्त उसके नाम को सिद्ध करने की कोशिश की जा सकती है। इसलिए उस अवतार का जो भी नाम कल्पित है वह केवल गुण को ही निर्देश कर सकता है। इस प्रकार ”कल्कि“ जो ”कल की“ अर्थात ”भविष्य की“ के अर्थो में रखा गया है। ”मैं“, उसके ”सार्वभौम मैं“ का गुण है। ”अहमद“, उसके अपने सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त पर अतिविश्वास होने के कारण अंहकार का नशा अर्थात अहंकार के मद से युक्त अहंकारी जैसा अनुभव करायेगा। उसका कोई गुरू नहीं होगा, वह स्वयं से प्रकाशित स्वयंभू होगा जिसके बारे में अथर्ववेद, काण्ड 20, सूक्त 115, मंत्र 1 में कहा गया है कि ”ऋषि-वत्स, देवता इन्द्र, छन्द गायत्री। अहमिद्धि पितुश्परि मेधा मृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजिनि।।“ अर्थात ”मैं परम पिता परमात्मा से सत्य ज्ञान की विधि को धारण करता हूँ और मैं तेजस्वी सूर्य के समान प्रकट हुआ हूँ।“ जबकि सबसे प्राचीन वंश स्वायंभुव मनु के पुत्र उत्तानपाद शाखा में ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में से मन से मरीचि व पत्नी कला के पुत्र कश्यप व पत्नी अदिति के पुत्र आदित्य (सूर्य) की चैथी पत्नी छाया से दो पुत्रों में से एक 8वें मनु - सांवर्णि मनु होगें जिनसे ही वर्तमान मनवन्तर 7वें वैवस्वत मनु की समाप्ति होगी। ध्यान रहे कि 8वें मनु - सांवर्णि मनु, सूर्य पुत्र हैं।
जन्म रूप - कल्कि पुराण में ”कल्कि“ अवतार के जन्म व परिवार की कथा इस प्रकार कल्पित है- ”शम्भल नामक ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण निवास करेंगे, जो सुमति नामक स्त्री के साथ विवाह करेंगें दोनों ही धर्म-कर्म में दिन बिताएँगे। कल्कि उनके घर में पुत्र होकर जन्म लेंगे और अल्पायु में ही वेदादि शास्त्रों का पाठ करके महापण्डित हो जाएँगे। बाद में वे जीवों के दुःख से कातर हो महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या प्राप्त करेंगे जिनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी के साथ होगा।“
जिस प्रकार सामान्य व्यावहारिक रूप में भविष्य में जन्म लेने वाले किसी भी व्यक्ति का नाम निश्चित करना असम्भव है उसी प्रकार उसके माता-पिता, जन्म स्थान और पत्नी को भी निश्चित करना असम्भव है। ध्यान देने योग्य यह है कि सभी अवतार, पैगम्बर, ईशदूत इत्यादि राजतन्त्र व्यवस्था काल में आये थे। जब कल्कि पुराण लिखा गया होगा तब राजतन्त्र व्यवस्था थी इसलिए भविष्य के कल्कि की कथा पूर्णतया उसी शैली में ही है जिस शैली में अन्य अवतारों की कथा है। विश्वमन के अंश की अनुभूति किसी भी व्यक्ति से व्यक्त हो सकती है जिसका प्रक्षेपण या प्रस्तुतिकरण उस समय और व्यक्ति की अपनी संस्कृति के माध्यम से ही होता है। फिर भी कल्कि कथा के भी कुछ न कुछ अर्थ तो अवश्य है।
सम्भल- कल्कि अवतार के कलियुग में हिन्दुस्तान के सम्भल में होने पर सभी हिन्दू सहमत हैं परन्तु सम्भल कहाँ है इसमें अनेक मतभेद हैं। कुछ विद्वान सम्भल को उड़ीसा, हिमालय, पंजाब, बंगाल और शंकरपुर में मानते हैं। कुछ सम्भल को चीन के गोभी मरूस्थल में मानते हैं जहाँ मनुष्य पहुँच ही नहीं सकता। कुछ वृन्दावन में मानते हैं। कुछ सम्भल को मुरादाबाद (उ0प्र0) जिले में मानते हैं जहाँ कल्कि अवतार मन्दिर भी है। विचारणीय विषय ये है कि ”सम्भल में कल्कि अवतार होगा या जहाँ कल्कि अवतार होगा वही सम्भल होगा।“ सम्भल का शाब्दिक अर्थ समान रूप से भला या शान्ति करना या शान्ति होना अर्थात जहाँ शान्ति व अमन हो या शान्ति फैलाने वाला हो, होता है। कल्कि पुराण में सम्भल में 68 तीर्थो का वास बताया गया है। कलियुग में केवल सम्भल ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थान होगा जो कल्याण दायक और शान्ति प्रदान करने वाला होगा। तीर्थ का अर्थ- पवित्र स्थान, दर्शन, दिल, मन, हृदय, घाट, तालाब, पानी का स्थान, अमर जीवन दाता जल, लोगों के आने जाने और जमघट के स्थान के अर्थ में होता है।
ब्राह्मण पिता विष्णुयश और माता सुमति- कल्कि पुराण के अनुसार कल्कि अवतार के पिता व माता का नाम विष्णुयश व सुमति होगा, जो नाम नहीं बल्कि गुणों को निर्देशित करता है। ब्राह्मण अर्थात जो वेद, पुराण और शुद्ध परम चैतन्य को जानता हो। विष्णु अर्थात परमेश्वर, सर्वव्यापक ईश जो सब स्थानों में उपस्थित है, ब्रह्माण्ड को पैदा करने वाला सृष्टा। यश अर्थात स्तुति या प्रशंसा करने वाला। इस प्रकार पिता विष्णुयश का अर्थ हुआ, ऐसा पिता जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति एवं प्रशंसा करने वाला व सबका भला करने वाला हितैषी है। इसी प्रकार सुमति का अर्थ होता है- सुन्दर या अच्छा मत या विचार रखना।
कल्कि अवतार की पत्नी - कल्कि पुराण में ”कल्कि“ अवतार के विषय में कहा गया है कि- ”उनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी के साथ होगा।“ परन्तु कटरा-जम्मू (भारत) में वैष्णों देवी की कथा के सम्बन्ध में बिकने वाली पुस्तिका, इन्टरनेट पर उपलब्ध कथा और गुलशन कुमार कृत ”माँ वैष्णों देवी“ प्रदर्शित फिल्म पर आधारित कथा के अनुसार ”त्रिकुटा ने श्रीराम से कहा- उसने उन्हें पति रूप में स्वीकार किया है। श्रीराम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है लेकिन भगवान श्रीराम ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होगें और उससे विवाह करेगें।“ श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड में एक देवी का वर्णन मिलता है। इन्होंने श्रीहनुमानजी तथा अन्य वानर वीरों को जल व फल दिया था तथा उन्हें गुफा से निकालकर सागर के तट पर पहुँचाया था। ये देवी स्वयंप्रभा हैं। यही देवी माता वैष्णव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कलयुग के अंतिम चरण में भगवान का कल्कि अवतार होगा। तब ये कल्कि भगवान दुष्टों को दण्डित करेंगे और धरती पर धर्म की स्थापना करेंगे। तथा देवी स्वयंप्रभा से श्रीरामावतार में दिए गए वचनानुसार विवाह करेंगे। अर्थात वैष्णों देवी जो युगों से पिण्ड रूप में हैं उन्हें कल्कि अवतार एक साकार रूप प्रदान करेंगे जो ”माँ वैष्णों देवी“ के साकार रूप ”माँ कल्कि देवी“ होगीं। (पूर्ण विवरण के लिए देखें-माता वैष्णों देवी श्राइन बोर्ड पब्लिकेशन)
शरीर रूप -महर्षि व्यास रचित और ईश्वर के आठवें अवतार श्री कृष्ण के मुख से व्यक्त श्रीमद्भगवद्गीता में भी अवतार के होने का प्रमाण मिलता है।
अर्थात हे भारत! जिस काल में धर्म की हानि होती है, और अधर्म की अधिकता होती है। उस काल में ही मैं अपनी आत्मा को प्रकट करता हूँ।
इस प्रकार कल्कि अवतार का शरीर मानव का ही होगा जिससे आत्मा का रूप प्रकट होगा और कृष्ण रूप होगा।
कर्म रूप - कल्कि महाअवतार सफेद घोड़े पर सवार होकर हाथ में तलवार लेकर समस्त बुराईयों का नाश करेगें। किसी भी धर्म शास्त्रों में विचारों के निरूपण के लिए प्रतीकों का प्रयोग किया जाता रहा है क्योंकि विचार की कोई आकृति नहीं होती। इस प्रकार कल्कि अवतार के अर्थ को स्पष्ट करने पर हम पाते हैं कि सफेद घोड़ा अर्थात शान्ति का प्रतीक या अहिंसक मार्ग, तलवार अर्थात ज्ञान अर्थात सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त जिससे सभी का मानसिक वध होगा। अगर हम इन प्रतीकों को उसी रूप में लें तो क्या आज के एक से एक विज्ञान आधारित शस्त्र अर्थात औजार के युग में तलवार से कितने लोगों का वध सम्भव है और वह व्यक्ति कितना शारीरिक शक्ति से युक्त होगा, यह विचारणीय विषय है? परिणाम सिर्फ एक है केवल मानसिक वध जो मात्र सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से ही सम्भव है। और पिछले अवतारों द्वारा शारीरिक व आर्थिक कारणों का प्रयोग कर धर्म स्थापना हो चुका है। कल्कि पुराण कथा रचनाकार तब ये सोच भी नहीं पाये होगें कि भविष्य में दृश्य पदार्थ विज्ञान आधारित दृश्य काल और निराकार संविधान आधारित एक नई व्यवस्था भी आ जायेगी और उस वक्त राजा और राजतन्त्र नहीं होगा तब कल्कि अवतार किसका वध करेगें? ध्यान रहे कि अवतारों के विकास का मार्ग पूर्ण प्रत्यक्ष से पूर्ण प्रेरक की ओर होता है। व्यक्तिगत प्रमाणित से सार्वजनिक प्रमाणित की ओर होता है।
दिव्य या विश्व रूप - कल्कि अवतार के गुणो के अनुसार कर्म करने के सत्य रूप को एक कदम बढ़ाते हुये तथा अनेक कर्म के प्रतीक अनेक हाथो वाला दिखाया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कल्कि अवतार द्वारा एक कर्म सम्पन्न होगा और उसके कारण अनेक हाथों से कर्म होने लगेगें अर्थात वे यह कहने में सक्षम होगें कि ”मैं अनेक हाथों से कर्म कर रहा हूँ और सभी मेरे ही कर्मज्ञान से कर्म को कर रहें हैं।“ सार्वभौम सत्य ज्ञान के शास्त्र ”गीता“ के बाद सार्वभौम कर्मज्ञान की आवश्यकता है जो कल्कि अवतार के कार्यो का ही एक चरण है।
ज्ञान रूप - अन्तिम सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त का ज्ञान ही अन्तिम अवतार का ज्ञान रूप होगा, जिसके निम्न कारण होगें।
1. प्रकृति के तीन गुण- सत्व, रज, तम से मुक्त होकर ईश्वर से साक्षात्कार करने के ”ज्ञान“ का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ उपल्ब्ध हो चुका था परन्तु साक्षात्कार के उपरान्त कर्म करने के ज्ञान अर्थात ईश्वर के मस्तिष्क का ”कर्मज्ञान“ का शास्त्र उपलब्ध नहीं हुआ था अर्थात ईश्वर के साक्षात्कार का शास्त्र तो उपलब्ध था परन्तु ईश्वर के कर्म करने की विधि का शास्त्र उपलब्ध नहीं था। मानव को ईश्वर से ज्यादा उसके मस्तिष्क की आवश्यकता है।
2. प्रकृति की व्याख्या का ज्ञान का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ तो उपलब्ध था परन्तु ब्रह्माण्ड की व्याख्या का तन्त्र शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
3. समाज में व्यष्टि (व्यक्तिगत प्रमाणित) धर्म शास्त्र (वेद, उपनिषद्, गीता, बाइबिल, कुरान इत्यादि) तो उपलब्ध था परन्तु समष्टि (सार्वजनिक प्रमाणित) धर्म शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे मानव अपने-अपने धर्मो में रहते और दूसरे धर्म का सम्मान करते हुए राष्ट्रधर्म को भी समझ सके तथा उसके प्रति अपने कत्र्तव्य को जान सके।
4. शास्त्र-साहित्य से भरे इस संसार में कोई भी एक ऐसा मानक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे पूर्ण ज्ञान की उपलब्धि हो सके साथ ही मानव और उसके शासन प्रणाली के सत्यीकरण के लिए अनन्त काल तक के लिए मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।
5. ईश्वर को समझने के अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार के शास्त्र उपलब्ध थे परन्तु अवतार को समझने का शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
कल्कि अवतार के गुरू - कल्कि पुराण के अनुसार ”भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरू होगें और उन्हें युद्ध की शिक्षा देगें। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके दिव्य शस्त्र प्राप्त करने के लिए कहेंगे।“ अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में छठवें अवतार - परशुराम अवतार तक अनेक असुरी राजाओं द्वारा राज्यों की स्थापना हो चुकी थी परिणामस्वरूप ऐसे परिस्थिति में एक पुरूष की आत्मा अदृश्य प्राकृतिक चेतना द्वारा निर्मित परिस्थितियों में प्राथमिकता से वर्तमान में कार्य करना, में स्थापित हो गयी और उसने कई राजाओं का वध कर डाला और असुरों तथा देवों के सह-अस्तित्व से एक नई व्यवस्था की स्थापना की। जो एक नई और अच्छी व्यवस्था थी। इसलिए उस पुरूष को कालान्तर में उनके नाम पर परशुराम अवतार से जाना गया तथा व्यवस्था ”परशुराम परम्परा“ के नाम से जाना गया जो साकार आधारित ”लोकतन्त्र का जन्म“ था, इसी साकार आधारित लोकतन्त्र व्यवस्था का श्रीराम द्वारा प्रसार हुआ था और इसी के असफल हो जाने पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के द्वारा समाप्त कर निराकार लोकतन्त्र व्यवस्था की नींव डाली थी जो भगवान बुद्ध द्वारा मजबूती पायी और वर्तमान में निराकार संविधान आधारित लोकतन्त्र सामने है। इसी व्यवस्था की पूर्णता के लिए कल्कि अवतार होंगे। जो मात्र शिव तन्त्र की समझ से ही हो सकता है अर्थात यही शिव का अस्त्र है तथा लोकतन्त्र को समझने के कारण परशुराम कल्कि के गुरू होगें।
कल्कि अवतार मन्दिर -महाविष्णु के 24 अवतारों में 24वाँ तथा प्रमुख अवतारों में दसवाँ और अन्तिम कल्कि अवतार ही एक मात्र ऐसे अवतार हैं जिनके अवतरण से पूर्व ही सिद्धपीठों में मूर्तिया स्थापित हो रही है। यूँ तो जहाँ-जहाँ विष्णु के अवतारों को मन्दिर में स्थान दिया गया है वहाँ-वहाँ अन्य अवतारों के साथ कल्कि अवतार की भी प्रक्षेपित (अनुमानित) मूर्ति प्रतिष्ठित है। परन्तु विशेष रूप से निम्न स्थानों पर कल्कि भगवान का मन्दिर निर्मित है।
1.सम्भल (मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत) में जहाँ कल्कि अवतार होना है, वहाँ पर कल्कि भगवान का मन्दिर 300 वर्ष पूर्व से ही निर्मित है। जहाँ प्रत्येक वर्ष अक्टुबर-नवम्बर माह में ”कल्कि महोत्सव“ भी धूम-धाम से मनाया जाता है।
2.गुलाबी नगरी-जयपुर (राजस्थान, भारत) की बड़ी चैपड़ से आमेर की ओर जानेवाली सड़क हवा महल के सामने भगवान कल्कि का प्राचीन मन्दिर अवस्थित है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर कल्कि भगवान के मन्दिर का निर्माण सन् 1739 ई. में दक्षिणायन शिखर शैली में कराया था। संस्कृत विद्वान आचार्य देवर्षि कलानाथ शास्त्री के अनुसार, सवाई जय सिंह संसार के ऐसे पहले महाराजा रहें हैं जिन्होंने जिस देवता का अभी तक अवतार हुआ नहीं, उसके बारे में कल्पना कर कल्कि भगवान की मूर्ति बनवाकर मन्दिर में स्थापित करायी। सवाई जयसिंह के तत्काली दरबारी कवि श्रीकृष्ण भट्ट ”कलानिधि“ ने अपने ”कल्कि काव्य“ में मन्दिर के निर्माण और औचित्य का वर्णन किया है, तद्नुसार ऐसा उल्लेख है कि सवाई जय सिंह ने अपने पौत्र ”कल्कि प्रसाद“ (सवाई ईश्वरी सिंह के पुत्र) जिसकी असमय मृत्यु हो गई थी, उसकी स्मृति में मन्दिर स्थापित कराया। श्वेत अश्व की प्रतिमा संगमरमर की खड़े रूप में है जो बहुत ही सुन्दर, आकर्षक और सम्मोहित है। अश्व के चबूतरे पर लगे बोर्ड पर अंकित है- ”अश्व श्री कल्कि महाराज-मान्यता- अश्व के बाएँ पैर में जो गड्ढा सा घाव है, जो स्वतः भर रहा है, उसके भरने पर ही कल्कि भगवान प्रकट होगें।“
3.मथुरा (उत्तर प्रदेश, भारत) के गोवर्धन स्थित श्री गिरिराज मन्दिर परिसर में कल्कि भगवान का मन्दिर स्थापित है जहाँ के बोर्ड पर कलियुग की समाप्ति की सूचना अंकित है साथ ही श्रीकृष्ण को कल्कि का ही अवतार बताया गया है।
4.अन्य स्थानों पर सन् 1964 में श्री कल्कि जी नारायण मन्दिर, बी-211-ए, गिरीश रोड, लिलुआह, हावड़ा, कोलकाता (प0बं0), सन् 1968 में श्री कल्कि मन्दिर, रूक्मणि माई धर्मशाला, जीवनमई लेन, ऋषिकेश (उत्तराखण्ड), श्री कल्कि विष्णु मन्दिर, 815, चैक श्री कल्कि मन्दिर, कुण्डेवालान, अजमेरी गेट, दिल्ली, सन् 1982 में श्री वैद्यनाथ धाम, पटना (बिहार), सन् 1985 में श्री लक्ष्मी नारायण संस्थान, वसन्त क्लब के पास, वसन्त विहार, नई दिल्ली, सन् 1987 में योगमाया मन्दिर, महरौली, कुतुब मीनार के पास, नई दिल्ली, सन् 1996 श्री राम मन्दिर, सी-ब्लाक, सूर्य नगर, नई दिल्ली, सन् 1997 में श्री कल्कि मन्दिर, श्री रघुनाथ मन्दिर, मिल्क लेन, महरौली, नई दिल्ली, श्री महामाया देवी मन्दिर, चैक कसेरूवालान, पहाड़गंज, नई दिल्ली, सन् 1998 में श्री कल्कि मन्दिर, चैक सुखदेव मुनि, चैक षाह मुबारक, श्री कल्कि मार्ग, अजमेरी गेट, दिल्ली, सन् 1999 में सनातन धर्म संस्थान, विद्युत परिसर, राजपुर रोड, ट्रांसपोर्ट अथारीटी के आगे, दिल्ली-54, सन् 2001 में श्री हनुमान वाटिका, रामलीला मैदान, आसफ अली रोड, नई दिल्ली, श्री कल्कि विष्णु मन्दिर, मनोकामना तीर्थ, पूर्वी कोट, सम्भल, मुरादाबाद (उ0प्र0), सन् 2001 में श्री कल्कि मन्दिर, श्री राम मन्दिर, 85, त्रिलोक अपार्टमेन्ट, पटपड़गंज, दिल्ली-92, श्री कल्कि नारायण मन्दिर, पंचायती धर्मशाला, कूँचापतिराम, दिल्ली-6, श्री कल्कि विष्णु नारायण मन्दिर, प्राचीन शिव मन्दिर, जी-88, जगतपुरी, दिल्ली-92, सन् 2002 में श्री कल्कि मन्दिर, काली मन्दिर, नई दिल्ली-1, सन् 2004 में श्री कालकाजी मन्दिर, लोटस टेम्पल के सामने, नेहरू प्लेस के पास, नई दिल्ली-65, सन् 2005 में श्री शिव मन्दिर, श्री गुलशन कुमार लंगर के पास, बाण गंगा, कटरा, जम्मू, सन् 2006 में श्री कल्कि मन्दिर, सेक्टर-26, नोएडा-201301, श्री रघुनाथ मन्दिर, लाल क्वार्टर के पास, कृष्णा नगर, दिल्ली, वैष्णों देवी मन्दिर, गुलाबी बाग, शास्त्री नगर के पास, शक्ति नगर, दिल्ली, सन् 2007 में अमृत परिसर, शिवगंगापुरम्, बृजघाट (हरियाणा)-245205, काली मन्दिर, ए.जी. ब्लाक, साल्ट लेक, कोलकाता - 64, श्री कल्कि मन्दिर, शिव मन्दिर, गुरू अंगद नगर एक्सटेंशन, लक्ष्मी नगर, दिल्ली-92, सन् 2008 में श्री गौरी शंकर मन्दिर, चाँदनी चैक, लाल किला के सामने, दिल्ली-6, प्राचीन पाण्डव कालीन शिव मन्दिर, पश्चिम पंजाबी बाग, दिल्ली-26, सन् 2009 में श्री कल्कि मन्दिर, चन्दौसी (उ0प्र0), श्री कल्कि मन्दिर, श्री दुर्गा प्रेमी मन्दिर, सब्जी मण्डी, घंण्टाघर, दिल्ली, विष्णुपाद मन्दिर, गया धाम, गया (बिहार), श्री शिवशक्ति मन्दिर, दिल्ली दरबार गली, भजनपुरा, दिल्ली, सन् 2010 में माँ ललिता मन्दिर, नैमिष्यारण्य तीर्थ, सीतापुर (उ0प्र0) प्राचीन शिव मन्दिर, बिड़ला मिल, द्वारका रेस्टोरेण्ट के सामने, कमला नगर, दिल्ली, सन् 2011 में श्री कल्कि हनुमान मन्दिर, चन्दौसी (उ0प्र0) श्री हनुमान मन्दिर, कनाॅट प्लेस, नई दिल्ली, माँ राणीसती मन्दिर, काकुरगाछी, कोलकाता (प0बं0), श्री रघुनाथ मन्दिर, दयानन्द विहार, दिल्ली, श्री गौरीशंकर मन्दिर, करावल नगर, दिल्ली, श्री हनुमान मन्दिर, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, मन्दिर गिड़ोदियान अग्रवाल, सदर बाजार, दिल्ली, वैष्णों देवी मन्दिर, शुभमूर्ति माँ छत्ताशाहजी, दिल्ली, श्री महाशक्ति दुर्गा मन्दिर, गगन विहार, दिल्ली-12, काली घाट, कोलकाता (प0बं0), सन् 2012 में दुर्गा कुण्ड परिसर, वाराणसी (उ0प्र0), श्री हनुमान मन्दिर सभा, गेट नं0-6, फिल्मीस्तान के सामने, माडल बस्ती, दिल्ली-5, श्री राधा मन्दिर, श्रीनिवासपुरी, आश्रम चैक, नई दिल्ली, तीस हजारी, सिवील लाइन्स, भार्गव लेन, दिल्ली, श्री हनुमान मन्दिर, मेट्रो गेट नं0-2 के सामने, ग्रीन पार्क, नई दिल्ली, श्री सनातन धर्म मन्दिर, गीता भवन, बी-1, यमुना विहार, दिल्ली-53, सन् 2013 में श्री हनुमान मन्दिर, पासवान लेन, चरखेवालान, दिल्ली-6, माँ चामुण्डा मन्दिर, हल्लु सराय, सम्भल (उ0प्र0), शिव मन्दिर, 2330, चिप्पीवड़ा, धर्मपुरा, दिल्ली-6, श्री कल्किधाम मन्दिर, बहादुरगढ़ (हरियाणा), श्री श्यामबाबा मन्दिर, गल्ला मण्डी, रूद्रपुर (उत्तराखण्ड), श्री शिव-हनुमान मन्दिर, आर.टी.ओ. रोड, कुसुमखेड़ा, हल्द्वानी (उत्तराखण्ड), ओमश्री महाकालेश्वर शक्तिपीठ, 56-बी, न्यू लायलपुर एक्सटेन्सन, नई दिल्ली, श्री सनातन धर्म सभा, शिव मन्दिर, ग्रीन पार्क, के-ब्लाक, नई दिल्ली, श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर, गंगोरीवाला, नेहरिया बाजार, सिरसा (हरियाणा)-125055, अग्रोहाधाम, हिसार (हरियाणा), अन्न क्षेत्र, काशी, वाराणसी (उ0प्र0), बड़ी शीतला माँ, दशाश्वमेध घाट, काशी, वाराणसी (उ0प्र0), मुक्तेश्वर, नैनीताल (उत्तराखण्ड), शोवा बाजार, कोलकाता (प0बं0), वराही मन्दिर, गोण्डा (उ0प्र0), सन् 2014 में सर्वदर्शन सेवाश्रम, भूपतवाला रोड, ललिताश्रम के पास, हरिद्वार (उत्तराखण्ड), महेस्तला शिव मन्दिर, मजेरहाट ब्रिज के पास, अलीपुर, कोलकाता (प0बं0), नागेश्वर महादेव मन्दिर, अयोध्या (उ0प्र0), श्री शिव मन्दिर सेवा समिति, ऊँचागाँव, शामली (उ0प्र0), श्री संकटमोचन धाम, सेक्टा-6, आर.के.पुरम्, नई दिल्ली-66, श्री गौरीशंकर मन्दिर, डी-147, श्याम पार्क एक्सटेंशन, साहिबाबाद (उ0प्र0), माता मन्दिर, महिला कालोनी, झील चैक के आगे, गाँधी नगर, दिल्ली-31, श्री कल्कि नारायण मन्दिर, चटिला, राष्ट्रीय राज मार्ग नं0-5, कटक (उड़ीसा), गोलूदेव महाराज मन्दिर, घोड़ाखाल रोड, भुवाली (उत्तराखण्ड), श्री कल्कि मन्दिर, वसुन्धरा, कल्कि चैक, धाप्सी गवीस-9, काठमाण्डु (नेपाल), माता वैष्णों देवी मन्दिर, दिवान हाल रोड, पुरानी लाजपतराय मार्केट, दिल्ली-6, श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर, वटवृक्ष, वाराणसी (उ0प्र0), बाबा भूतनाथ आश्रम, भूतनाथ मन्दिर, सेक्टर-बी, इन्दिरा नगर, लखनऊ (उ0प्र0), प्राचीन शिव मन्दिर, साढ़े पाँच पुस्ता, भजनपुरा गावड़ी, सिग्नेचर ब्रिज के पास, नई दिल्ली, झण्डेवाली माता मन्दिर, 447/बी, गली नं.-2, रामनगर, रघुपुरा मेन रोड, गाँधी नगर, दिल्ली-31, श्री कल्कि नारायण मन्दिर, ग्राम वल्लभ, तहसील महाम, रोहतक (हरियाणा), राज सिंह नगर, श्री गंगानगर (राजस्थान), श्री भारतमाता मन्दिर, हरिद्वार (उत्तराखण्ड), श्री कल्कि मन्दिर, बिड़ला मन्दिर, बेलीगंज, कोलकाता (प0बं0), वात्सल्य मन्दिर, रोहीणी, सेक्टर-7, नई दिल्ली, श्री कल्कि विशाल मन्दिर, दिल्ली-जयपुर हाइवे रोड, मानेसर, (गुड़गाँव, हरियाणा) इत्यादि में भी कल्कि अवतार की मूर्ति स्थापित की गई है जो निरंतर जारी है।
5.श्री कल्कि मन्दिर वसुंधरा, कल्कि चैक, धापासी गाविस.9, काठमाण्डु और सम्भलपुरी कल्कि तीर्थ धाम, नेपाल प्रजापति अंचल, प्यूठान सारी गाविस.1, नेपाल में भी कल्कि भगवान की मूर्ति स्थापित हो चुकी है। कल्कि भगवान के नाम पर नेपाल में विश्व का पहला सरकारी बैंक ”श्री कल्कि बैंक“ खुल चुका है।
6.कल्कि अवतार व कल्कि माता से सम्बन्धित वर्तमान समय में कथा, गीत, कल्कि चालीसा, कल्कि गायत्री मन्त्र, कल्कि मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र, स्तुति, फिल्म इत्यादि भी बन चुके हैं। ”कल्कि पीठ“, ”कल्कि पीठाधीश्वर“, ”कल्कि अवतार फाउण्डेशन इण्टरनेशनल“, ”श्री कल्कि बाल वाटिका“ इत्यादि की भी स्थापना भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा की जा चुकी है।
7.राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात की त्रिवेणी संगम स्थल राजस्थान के वांगड़ अंचल (दक्षिण में जनजाति बहुल बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिले में) के डूंगरपुर जिले के साबला गांव में हरि मंदिर है जहां कल्कि अवतार की पूजा हो रही है। हरि मंदिर के गर्भगृह में श्याम रंग की अश्वारूढ़ निष्कलंक मूर्ति है, जो लाखों भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है। भगवान के भावी अवतार निष्कलंक भगवान की यह अद्भुत मूर्ति घोड़े पर सवार है। इस घोड़े के तीन पैर भूमि पर टिके हुए हैं जबकि एक पैर सतह से थोड़ा ऊँचा है। मान्यता है कि यह पैर धीरे-धीरे भूमि की तरफ झुकने लगा है। जब यह पैर पूरी तरह जमीन पर टिक जाएगा तब दुनिया में परिवर्तन का दौर आरंभ हो जाएगा। संत मावजी रचित ग्रंथों एवं वाणी में इसे स्पष्ट किया गया है। यहां बाकायदा कई मंदिर बने हुए हैं, जिनमें विष्णु के भावी अवतार कल्कि की मूर्तियां स्थापित हैं और इनकी रोजाना पूजा-अर्चना भी होती है। संत मावजी महाराज के अनुयायी पिछले पौने तीन सौ वर्षों से ज्यादा समय से इस भावी अवतार की प्रतीक्षा में जुटे हुए हैं। संत मावजी महाराज लाखों लोगों की आस्थाओं से जुडे बेणेश्वर धाम के आद्य पीठाधीश्वर रहे हैं। भक्तों की मान्यता है कि वे जिस देवता की पूजा कर रहे हैं वे ही कलयुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के रूप में अवतरित होंगे और पृथ्वी का उद्धार करेंगे। इन्हीं निष्कलंक अवतार के उपासक होने से संत मावजी के भक्त अपने उपास्य को प्रिय ऐसी ही श्वेत वेश-भूषा धारण करते हैं। निष्कलंक सम्प्रदाय के विश्व पीठ हरि मंदिर सहित वागड़ अंचल और देश के विभिन्न हिस्सों में स्थापित निष्कलंक धामों में भी इसी स्वरूप की पूजा-अर्चना जारी है। देश के विभिन्न हिस्सों में फैले लाखों माव भक्तों द्वारा अपने उपास्य के रूप में इन्हीं निष्कलंक भगवान का पूजन-अर्चन किया जाता रहा है। विभिन्न निष्कलंक धाम मंदिर के स्वरूप में हैं जबकि निष्कलंक सम्प्रदाय के विश्व पीठ हरि मंदिर पर न तो कोई गुम्बद है और न ही मंदिर की आति, बल्कि यह गुरु आश्रम के रूप में ही अपनी प्राचीन शैली में बना हुआ है। निष्कलंक सम्प्रदाय के मंदिर साबला, पुंजपुर, वमासा, पालोदा, शेषपुर, बांसवाड़ा, फतेहपुरा, घूघरा, पारडा, इटिवार, संतरामपुर आदि गांवों में अवस्थित हैं। इन सभी मंदिरों में शंख, चक्र, गदा, पद्म सहित श्वेत घोड़े पर सवार भावी अवतार निष्कलंक भगवान की चतुर्भुज मूर्तियां हैं। मावजी की पुत्रवधू जनकुंवरी ने ही बेणेश्वर धाम पर सर्वधर्म समभाव के प्रतीक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बारे में मावजी की वाणी में स्पष्ट कहा गया है- सब देवन का डेरा उठसे, निष्कलंक का डेरा रहेसे, अर्थात मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि सब टूट जाएंगे, लेकिन कलियुग में अवतार लेने वाले निष्कलंक भगवान का एक मंदिर रहेगा जहां सभी धर्मों के लोगों को आश्रय प्राप्त होगा। सभी लोग इसे प्रेम से अपना मानेंगे।
8.मावजी महाराज का जन्म साबला गांव में विक्रम संवत् 1771 में माघ शुक्ल पंचमी को हुआ। इसके बाद लीलावतार के रूप में मावजी का प्राकट्य संवत् 1784 में माघ शुक्ल एकादशी को हुआ। उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का लीलावतार माना जाता है। संत मावजी की स्मृति में आज भी बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिलों के बीच माही, सोम एवं जाखम नदियों के बीच विशाल टापू पर बेणेश्वर में हर साल माघ पूर्णिमा पर दस दिन का विशाल मेला लगता है। इसे आदिवासियों का महाकुंभ भी कहा जाता है। स्वयं मावजी महाराज की भविष्यवाणी के अनुसार ”संतन के सुख करन को, हरन भूमि को भार, ह्वै हैं कलियुग अन्त में निष्कलंक अवतार“ अर्थात् सज्जनों को सुख प्रदान करने और पृथ्वी के सिर से पाप का भार उतारने के लिए कलियुग के अंत में भगवान का निष्कलंक अवतार होगा। संत मावजी महाराज ने स्पष्ट लिखा है- ”श्याम चढ़ाई करी आखरी गरुड़ ऊपर असवार, दुष्टि कालिंगो सेंधवा असुरनी करवा हाण, कलिकाल व्याप्यो घणो, कलि मचावत धूम, गौ ब्राह्मण नी रक्षा करवा बाल स्त्री करवा प्रतिपाल...।“ मावजी की वाणी में कहा गया है कि निष्कलंक अवतार के साथ एक चैतन्य पुरुष रहेगा जो दैत्य-दानवों व चैदह मस्तकधारी कालिंगा का नाश कर चारों युगों के बंधनों को तोड़ कर सतयुग की स्थापना करेगा। इस पुरुष की लम्बाई 32 हाथ लिखी हुई है। यह अवतार गौ, ब्राह्मण प्रतिपाल होगा तथा धर्म की स्थापना करेगा। इसके बाद सर्वत्र शांति, आनन्द और समृद्धि का प्रभाव होगा। निष्कलंक अवतार के स्वरूप में बारे में संत मावजी के चैपड़ों में अंकित है- ”धोलो वस्त्र ने धोलो शणगार, धोले घोडीले घूघर माला, राय निकलंगजी होय असवार...बोलो देश में नारायण जी नु निष्कलंकी नाम, क्षेत्र साबला, पुरी पाटन ग्राम।“ इसमें साबला पुरी पाटन ग्राम का नाम अंकित है।
कल्कि अवतार के इस पद पर अनेक स्वघोषित दावेदार हैं जो समय-समय पर भविष्यवाणियों के अनुसार स्वयं को सिद्ध करने की कोशिश और कल्कि अवतार के सम्बन्ध में अनेक भविष्यवाणी करते रहते हैं जिन्हें इन्टरनेट (google.com, youtube.com इत्यादिद्) पर ”कल्कि अवतार (KALKI AVATAR)“ सर्च कर देखा जा सकता है परन्तु यह जानना चाहिए कि काल और युग परिवर्तन से परिचय कराने के लिए युगानुसार आत्मतत्व को व्यक्त करना पड़ता है। उसी सार्वभौम सत्य को युगानुसार योग कराया जाता है केवल भीड़ इकट्ठा हो जाने से कुछ भी नहीं होता। अवतारों को पहचानने के लिए सबसे मूल विषय यह होता है कि वह नया क्या दे रहा है जो उस समय के समाज के बहुमत मानव के शान्ति, एकता, स्थिरता व विकास को प्रभावित करता हो। सार्वभौम सत्य को व्यक्त करने वाला प्रत्येक मानव शरीरधारी अवतार ही है परन्तु युग के सर्वोच्च स्तर के सार्वभौम सत्य को व्यक्त करने वाला ही युगावतार कहलाता है।
सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अनुसार काल और युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
विश्व-ब्रह्माण्ड के सर्वोच्च और अनन्त कार्यक्षेत्र का सार्वभौम दृश्य, विवादमुक्त, सार्वजनिक प्रमाणित सत्य-सिद्धान्त है- परिवर्तन। जिसे आदान-प्रदान (TRANSACTION) या क्रिया या व्यापार (TRADE) भी कहा जा सकता है। जिसे वैदिक साहित्य ने ”सिद्धान्त“, गीता ने ”परिवर्तन“, पुराण ने ”शक्ति“, कपिलमुनि ने ”क्रिया“ कहा है। इसे ही प्राकृतिक- ब्रह्माण्डीय सत्य, कर्म, आदान-प्रदान, परिधि, व्यापार, काल, सर्वशक्तिमान भी कहा गया। इस सत्य की व्याख्या करने वाला शास्त्र-साहित्य सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य समष्टि वेद, उत्पन्न नाम या शब्द को समष्टि ईश्वर नाम तथा नाम के अर्थ की व्याख्या करने वाले साहित्य को समष्टि उपनिषद् कहा जाता है।
उपरोक्त परिवर्तन जिस उत्प्रेरक की उपस्थिति में संचालित होता है उसे ही वैदिक साहित्य ने ”ब्रह्म“ या ”आत्मा“, गीता ने ”मैं“, पुराण ने ”शिव“, कपिल मुनि ने ”कारण“, संतों ने ”एक“, हिन्दुओं ने ”ईश्वर“, सिखों ने ”वाहे गुरू“, इस्लाम ने ”अल्ला“ ईसाई ने ”यीशु“ इत्यादि कहा। इसे ही पूर्ण, धर्म, ज्ञान, सम, सार्वभौम, चैतन्य, केन्द्र, GOD, सत्य, अद्वैत, सर्वव्यापी, अनश्वर, अजन्मा, शाश्वत, सनातन इत्यादि भी कहा गया है। इस सत्य की व्याख्या करने वाला शास्त्र-साहित्य व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य व्यष्टि वेद, उत्पन्न नाम या शब्द को व्यष्ठि ईश्वर नाम तथा नाम के अर्थ की व्याख्या करने वाले साहित्य को व्यष्टि उपनिषद् कहा जाता है। इसी को सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त में केन्द्र (CENTRE) कहा गया है।
वर्तमान पदार्थ विज्ञान भी यह स्वीकार कर चुका है कि इस ब्रह्माण्ड में कही भी कुछ भी स्थिर नहीं है। सभी का परिवर्तन या आदान-प्रदान हो रहा है। दृश्य पदार्थ विज्ञान के महान वैज्ञानिक आइन्सटाइन E=MC2 से इसे सिद्ध भी किये है।
इस प्रकार विश्व-ब्रह्माण्ड को हम सर्वोच्च व्यापार केन्द्र (TRADE CENTRE) भी कह सकते हैं और विश्व-ब्रह्माण्ड के पर्यायवाची नाम के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
समस्त परिवर्तन या आदान-प्रदान मुख्यतः तीन बलो द्वारा ही संचालित होता है- मानवीय बल, प्राकृतिक बल व आत्मीय बल। और ये तीनो बल मूलतः तीन क्षेत्र के माध्यम से परिवर्तन लाता है। ये हैं- शारीरिक, आर्थिक व मानसिक। इस प्रकार हम देखते हैं कि यदि सर्वप्रथम मानवीय बल परिवर्तन लाने के लिए सक्रिय होता है तब वह पहले शारीरिक, फिर आर्थिक और अन्त में मानसिक कारण को माध्यम के रूप में प्रयोग करता है। इसी प्रकार प्राकृतिक बल और आत्मीय बल भी इसी क्रम से माध्यमों का प्रयोग करता है।
जब मानवीय बल और प्राकृतिक बल, आवश्यक परिवर्तन लाने में असफल हो जाता है तब सार्वाधिक शक्तिशाली व सर्वोच्च आत्मीय बल के प्रयोग का समय आ जाता है। चक्र रूप में मानवीय बल एक छोटा परिवर्तन, प्राकृतिक बल एक मध्यम स्तर का परिवर्तन तथा अन्तिम आत्मीय बल उस समय के सर्वोच्च स्तर का परिवर्तन लाता है जिस समय वह प्रभावी होता है।
यह आत्मीय बल ही अवतारों, पैगम्बरों, स्वर्गदूतों, धर्म प्रवर्तकों-स्थापकों के बल थे जो समयानुसार अपने-अपने क्षेत्रों में प्रयोग किये गये थे और जिसके कारण आज भी उनकी पहचान वर्तमान है। जब यह आत्मीय बल अंश रूप में अवतारों, पैगम्बरों, स्वर्गदूतों, धर्म प्रवर्तकों-स्थापकों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं तब ये अंश अवतार, पैगम्बर, स्वर्गदूत, धर्म प्रवर्तक-स्थापक कहलाते हैं और जब यह आत्मीय बल पूर्ण रूप में अवतारों, पैगम्बरों, स्वर्गदूतों, धर्म प्रवर्तकों-स्थापकों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं तब ये पूर्ण अवतार, पैगम्बर, स्वर्गदूत, धर्म प्रवर्तक-स्थापक कहलाते हैं।
वर्तमान समय में मानवीय बल व प्राकृतिक बल द्वारा परिवर्तन लाने के लिए शारीरिक, आर्थिक व मानसिक माध्यम का प्रयोग किया जा चुका है। साथ ही आत्मीय बल द्वारा भी परिवर्तन लाने के लिए शारीरिक व आर्थिक माध्यम का प्रयोग किया जा चुका है। अब केवल एक ही मार्ग आत्मीय बल द्वारा मानसिक माध्यम का प्रयोग बचा है। जो आने वाले समय में निश्चित रूप से होगा।
काल अर्थात समय को समय से बांधा नहीं जा सकता। कोई भी व्यक्ति समष्टि के लिए किसी निश्चित दिन का दावा नहीं कर सकता कि इस दिन से किसी युग का परिवर्तन, किसी युग का अन्तिम दिन या किसी युग के प्रारम्भ का दिन है। क्योंकि हम दिन, दिनांक या कैलेण्डर का निर्धारण ब्रह्माण्डीय गतिविधि अर्थात सूर्य, चाँद, ग्रह इत्यादि के गति को आधार बनाकर निर्धारित करते है। इसी प्रकार युग का निर्धारण पूर्णतया मानव मन की केन्द्रित स्थिति से निर्धारित होता है न कि किसी निर्धारित अवधि के द्वारा। मन की केन्द्रित स्थिति निम्न स्थितियों में होती है-
0 या 5. स्थिति - अदृय मार्ग से मन का आत्मीय केन्द्रित स्थिति।
1. स्थिति - व्यक्तिगत प्रमाणित अदृय मार्ग से मन का आत्मीय केन्द्रित स्थिति अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित माध्यम द्वारा आत्मा पर केन्द्रित मन। यह स्थिति सतयुग की अन्तिम स्थिति है। इस युग में कुल 6 अवतार मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृंिसंह, वामन और परशुराम हुये।
2. स्थिति -सार्वजनिक प्रमाणित अदृय मार्ग से मन का आत्मीय केन्द्रित स्थिति अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित माध्यम - प्रकृति व ब्रह्माण्ड द्वारा आत्मा पर केन्द्रित मन। यह स्थिति त्रेतायुग की अन्तिम स्थिति है। इस युग में सातवें अवतार श्री राम हुयें।
3. स्थिति - व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य मार्ग से मन का आत्मीय केन्द्रित स्थिति अर्थात व्यक्तिगत प्रमाणित व्यक्ति व भौतिक वस्तु माध्यम द्वारा आत्मा पर केन्द्रित मन। यह स्थिति द्वापर युग की अन्तिम स्थिति है। इस युग में आँठवें अवतार श्री कृष्ण हुयें।
4. स्थिति - सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य मार्ग से मन का आत्मीय केन्द्रित स्थिति अर्थात सार्वजनिक प्रमाणित व्यक्ति व भौतिक वस्तु माध्यम द्वारा आत्मा पर केन्द्रित मन। यह स्थिति कलियुग की अन्तिम स्थिति है। इस युग में नवें अवतार बुद्ध हुये और दसवें और अन्तिम अवतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ व्यक्त हैं।
0 या 5. स्थिति - दृश्य मार्ग से मन का आत्मीय केन्द्रित स्थिति।
उपरोक्त स्थिति में स्थित मन से ही उस युग में शास्त्र-साहित्यों की रचना होती रही है। और उस अनुसार ही प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्थिति का पता लगा सकता है कि वह किस युग में जी रहा है।
उपरोक्त में से कोई भी स्थिति जब व्यक्तिगत होती है तब वह व्यक्ति उस युग में स्थित होता है चाहे समाज या सम्पूर्ण विश्व किसी भी युग में क्यों न हो। इसी प्रकार जब उपरोक्त स्थिति में से कोई भी स्थिति में समाज या सम्पूर्ण विश्व अर्थात अधिकतम व्यक्ति उस स्थिति में स्थित होते है तब समाज या सम्पूर्ण विश्व उस युग में स्थित हो जाता है।
युग परिवर्तन सदैव उस समय होता है जब समाज के सर्वोच्च मानसिक स्तर पर एक नया अध्याय या कड़ी जुड़ता है। और एक नये विचार से व्यवस्था या मानसिक परिवर्तन होता है। इस प्रकार यह आत्मसात् करना चाहिए कि सम्पूर्ण समाज इस समय चैथे युग-कलियुग के अन्त में है और जैसे-जैसे ”विश्वशास्त्र“ के ज्ञान से युक्त होता जायेगा वह पाँचवे युग-स्वर्ण युग में प्रवेश करता जायेगा। और जब बहुमत हो जायेगा तब सम्पूर्ण समाज या विश्व पाँचवे युग-स्वर्ण युग में स्थित हो जायेगा।
सत्य से सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त तक का र्माग अवतारों का मार्ग है। सार्वभौम सत्य-सिंद्धान्त की अनुभूति ही अवतरण है। इसके अंश अनुभूति को अंश अवतार तथा पूर्ण अनुभूति को पूर्ण अवतार कहते है। अवतार मानव मात्र के लिए ही कर्म करते हैं न कि किसी विशेष मानव समूह या सम्प्रदाय के लिए। अवतार, धर्म, धर्मनिरपेक्ष व सर्वधर्मसमभाव से युक्त अर्थात एकात्म से युक्त होते है। इस प्रकार अवतार से उत्पन्न शास्त्र मानव के लिए होते हैं, न कि किसी विशेष मानव समूह के लिए। उत्प्रेरक, शासक और मार्गदर्शक आत्मा सर्वव्यापी है। इसलिए एकात्म का अर्थ संयुक्त आत्मा या सार्वजनिक आत्मा है। जब एकात्म का अर्थ संयुक्त आत्मा समझा जाता है तब वह समाज कहलाता है। जब एकात्म का अर्थ व्यक्तिगत आत्मा समझा जाता है तब व्यक्ति कहलाता है। अवतार, संयुक्त आत्मा का साकार रुप होता है जबकि व्यक्ति व्यक्तिगत आत्मा का साकार रुप होता है। शासन प्रणाली में समाज का समर्थक दैवी प्रवृत्ति तथा शासन व्यवस्था प्रजातन्त्र या लोकतन्त्र या स्वतन्त्र या मानवतन्त्र या समाजतन्त्र या जनतन्त्र या बहुतन्त्र या स्वराज कहलाता है और क्षेत्र गणराज्य कहलाता है। ऐसी व्यवस्था सुराज कहलाती है। शासन प्रणाली में व्यक्ति का समर्थक असुरी प्रवृत्ति तथा शासन व्यवस्था राज्यतन्त्र या राजतन्त्र या एकतन्त्र कहलाता है और क्षेत्र राज्य कहलाता है ऐसी व्यवस्था कुराज कहलाती है। सनातन से ही दैवी और असुरी प्रवृत्तियों अर्थात् दोनों तन्त्रों के बीच अपने-अपने अधिपत्य के लिए संघर्ष होता रहा है। जब-जब समाज में एकतन्त्रात्मक या राजतन्त्रात्मक अधिपत्य होता है तब-तब मानवता या समाज समर्थक अवतारों के द्वारा गणराज्य की स्थापना की जाती है। या यूँ कहें गणतन्त्र या गणराज्य की स्थापना ही अवतार का मूल उद्देश्य अर्थात् लक्ष्य होता है शेष सभी साधन अर्थात् मार्ग ।
अवतारों के प्रत्यक्ष और प्रेरक दो कार्य विधि हैं। प्रत्यक्ष अवतार वे होते हैं जो स्वयं अपनी शक्ति का प्रत्यक्ष प्रयोग कर समाज का सत्यीकरण करते हैं। यह कार्य विधि समाज में उस समय प्रयोग होता है जब अधर्म का नेतृत्व एक या कुछ मानवों पर केन्द्रित होता है। प्रेरक अवतार वे होते हैं जो स्वयं अपनी शक्ति का अप्रत्यक्ष प्रयोग कर समाज का सत्यीकरण जनता एवं नेतृत्वकर्ता के माध्यम से करते हैं। यह कार्य विधि समाज में उस समय प्रयोग होता है जब समाज में अधर्म का नेतृत्व अनेक मानवों और नेतृत्वकर्ताओं पर केन्द्रित होता है।
इन विधियों में से कुल दस अवतारों में से प्रथम सात (मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम) अवतारों ने समाज का सत्यीकरण प्रत्यक्ष विधि के प्रयोग द्वारा किया था। आठवें अवतार (श्रीकृष्ण) ने दोनों विधियों प्रत्यक्ष ओर प्रेरक का प्रयोग किया था। नवें (भगवान बुद्ध) और अन्तिम दसवें अवतार की कार्य विधि प्रेरक ही है।
जल-प्लावन (जहाँ जल है वहाँ थल और जहाँँ थल है वहाँ जल) के समय मछली से मार्ग दर्शन (मछली के गतीशीलता से सिद्धान्त प्राप्त कर) पाकर मानव की रक्षा करने वाला ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) का पहला अंशावतार मतस्यावतार के बाद मानव का पुनः विकास प्रारम्भ हुआ। दूसरे कूर्मावतार (कछुए के गुण का सिद्धान्त), तीसरे- वाराह अवतार (सुअर के गुण का सिद्धान्त), चैथे- नृसिंह (सिंह के गुण का सिद्धान्त), तथा पाँचवे वामन अवतार (ब्राह्मण के गुण का सिद्धान्त) तक एक ही साकार शासक और मार्गदर्शक राजा हुआ करते थे और जब-जब वे राज्य समर्थक या उसे बढ़ावा देने वाले इत्यादि असुरी गुणों से युक्त हुए उन्हें दूसरे से पाँचवें अंशावतार ने साकार रुप में कालानुसार भिन्न-भिन्न मार्गों से गुणों का प्रयोग कर गणराज्य का अधिपत्य स्थापित किया।
ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के छठें अंश अवतार परशुराम के समय तक मानव जाति का विकास इतना हो गया था कि अलग-अलग राज्यों के अनेक साकार शासक और मार्ग दर्शक राजा हो गये थे उनमें से जो भी राज्य समर्थक असुरी गुणों से युक्त थे उन सबको परशुराम ने साकार रुप में वध कर डाला। परन्तु बार-बार वध की समस्या का स्थाई हल निकालने के लिए उन्होंने राज्य और गणराज्य की मिश्रित व्यवस्था द्वारा एक व्यवस्था दी जो आगे चलकर ”परशुराम परम्परा“ कहलायी। व्यवस्था निम्न प्रकार थी-
1. प्रकृति में व्याप्त तीन गुण- सत्व, रज और तम के प्रधानता के अनुसार मनुष्य का चार वर्णों में निर्धारण। सत्व गुण प्रधान - ब्राह्मण, रज गुण प्रधान- क्षत्रिय, रज एवं तम गुण प्रधान- वैश्य, तम गुण प्रधान- शूद्र।
2.गणराज्य का शासक राजा होगा जो क्षत्रिय होगा जैसे- ब्रह्माण्डीय गणराज्य में प्रकृति जो रज गुण अर्थात् कर्म अर्थात् शक्ति प्रधान है।
3. गणराज्य में राज्य सभा होगी जिसके अनेक सदस्य होंगे जैसे- ब्रह्माण्डीय गणराज्य में प्रकृति के सत्व, रज एवं तम गुणों से युक्त विभिन्न वस्तु हैं।
4. राजा का निर्णय राजसभा का ही निर्णय है जैसे- ब्रह्माण्डीय गणराज्य में प्रकृति का निर्णय वहीं है जो सत्व, रज एवं तम गुणों का सम्मिलित निर्णय होता है।
5. राजा का चुनाव जनता करे क्योंकि वह अपने गणराज्य में सर्वव्यापी और जनता का सम्मिलित रुप है जैसे- ब्रह्माण्डीय गणराज्य में प्रकृति सर्वव्यापी है और वह सत्व, रज एवं तम गुणों का सम्मिलित रुप है।
6. राजा और उसकी सभा राज्य वादी न हो इसलिए उस पर नियन्त्रण के लिए सत्व गुण प्रधान ब्राह्मण का नियन्त्रण होगा जैसे- ब्रह्माण्डीय गणराज्य में प्रकृति पर नियन्त्रण के लिए सत्व गुण प्रधान आत्मा का नियन्त्रण होता है।
ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के सातवें अंश अवतार श्रीराम ने इसी परशुराम परम्परा का ही प्रसार और स्थापना किये थे।
ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के समय तक स्थिति यह हो गयी थी राजा पर नियन्त्रण के लिए नियुक्त ब्राह्मण भी समाज और धर्म की व्याख्या करने में असमर्थ हो गये। क्योंकि अनेक धर्म साहित्यों, मत-मतान्तर, वर्ण, जातियों में समाज विभाजित होने से व्यक्ति संकीर्ण और दिग्भ्रमित हो गया था और राज्य समर्थकों की संख्या अधिक हो गयी थी परिणामस्वरुप मात्र एक ही रास्ता बचा था- नवमानव सृष्टि। इसके लिए उन्होंने सम्पूर्ण धर्म साहित्यों और मत-मतान्तरों के एकीकरण के लिए आत्मा के सर्वव्यापी व्यक्तिगत प्रमाणित निराकार स्वरुप का उपदेश ”गीता“ व्यक्त किये और गणराज्य का उदाहरण द्वारिका नगर का निर्माण कर किये । उनकी गणराज्य व्यवस्था उनके जीवन काल में ही नष्ट हो गयी परन्तु ”गीता“ आज भी प्रेरक बनीं हुई है।
ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के नवें अवतार भगवान बुद्ध के समय पुनः राज्य एकतन्त्रात्मक होकर हिंसात्मक हो गया परिणामस्वरुप बुद्ध ने अहिंसा के उपदेश के साथ व्यक्तियों को धर्म, बुद्धि और संघ के शरण में जाने की शिक्षा दी। संघ की शिक्षा गणराज्य की शिक्षा थी। धर्म की शिक्षा आत्मा की शिक्षा थी। बुद्धि की शिक्षा प्रबन्ध और संचालन की शिक्षा थी जो प्रजा के माध्यम से प्रेरणा द्वारा गणराज्य के निर्माण की प्रेरणा थी।
ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के दसवें और अन्तिम अवतार के समय तक राज्य और समाज स्वतः ही प्राकृतिक बल के अधीन कर्म करते-करते सिद्धान्त प्राप्त करते हुए पूर्ण गणराज्य की ओर बढ़ रहा था परिणामस्वरुप गणराज्य का रुप होते हुए भी गणराज्य सिर्फ राज्य था और एकतन्त्रात्मक अर्थात् व्यक्ति समर्थक तथा समाज समर्थक दोनों की ओर विवशतावश बढ़ रहा था।
भारत में निम्न्लिखित रुप व्यक्त हो चुका था।
1. ग्राम, विकास खण्ड, नगर, जनपद, प्रदेश और देश स्तर पर गणराज्य और गणसंघ का रुप।
2. सिर्फ ग्राम स्तर पर राजा (ग्राम व नगर पंचायत अध्यक्ष ) का चुनाव सीधे जनता द्वारा।
3. गणराज्य को संचालित करने के लिए संचालक का निराकार रुप- संविधान।
4. गणराज्य के तन्त्रों को संचालित करने के लिए तन्त्र और क्रियाकलाप का निराकार रुप-नियम और कानून।
5. राजा पर नियन्त्रण के लिए ब्राह्मण का साकार रुप- राष्ट्रपति, राज्यपाल, जिलाधिकारी इत्यादि।
विश्व स्तर पर निम्नलिखित रुप व्यक्त हो चुका था।
1. गणराज्यों के संघ के रुप में संयुक्त राष्ट्र संघ का रुप।
2. संघ के संचालन के लिए संचालक और संचालक का निराकार रुप- संविधान।
3. संघ के तन्त्रों को संचालित करने के लिए तन्त्र और क्रियाकलाप का निराकार रुप- नियम और कानून।
4. संघ पर नियन्त्रण के लिए ब्राह्मण का साकार रुप-पाँच वीटो पावर।
5. प्रस्ताव पर निर्णय के लिए सदस्यों की सभा।
6. नेतृत्व के लिए राजा- महासचिव।
जिस प्रकार आठवें अवतार द्वारा व्यक्त आत्मा के निराकार रुप ”गीता“ के प्रसार के कारण आत्मीय प्राकृतिक बल सक्रिय होकर गणराज्य के रुप को विवशतावश समाज की ओर बढ़ा रहा था उसी प्रकार अन्तिम अवतार द्वारा निम्नलिखित शेष समष्टि कार्य पूर्ण कर प्रस्तुत कर देने मात्र से ही विवशतावश उसके अधिपत्य की स्थापना हो जाना है।
1. गणराज्य या लोकतन्त्र के सत्य रुप- गणराज्य या लोकतन्त्र के स्वरुप का अन्तर्राष्ट्रीय/ विश्व मानक।
2. राजा और सभा सहित गणराज्य पर नियन्त्रण के लिए साकार ब्राह्मण का निराकार रुप- मन का अन्तर्राष्ट्रीय/ विश्व मानक।
3. गणराज्य के प्रबन्ध का सत्य रुप- प्रबन्ध का अन्तर्राष्ट्रीय/ विश्व मानक।
4. गणराज्य के संचालन के लिए संचालक का निराकार रुप- संविधान के स्वरुप का अन्तर्राष्ट्रीय/ विश्व मानक।
5. साकार ब्राह्मण निर्माण के लिए शिक्षा का स्वरुप- शिक्षा पाठ्यक्रम का अन्तर्राष्ट्रीय/ विश्व मानक।
इस समष्टि कार्य द्वारा ही काल व युग परिवर्तन होगा न कि सिर्फ चिल्लाने से कि ”सतयुग आयेगा“, ”सतयुग आयेगा“ से। यह समष्टि कार्य जिस शरीर से सम्पन्न होगा वही अन्तिम अवतार के रूप में व्यक्त होगा। धर्म में स्थित वह अवतार चाहे जिस सम्प्रदाय (वर्तमान अर्थ में धर्म) का होगा उसका मूल लक्ष्य यही शेष समष्टि कार्य होगा और स्थापना का माध्यम उसके सम्प्रदाय की परम्परा व संस्कृति होगी।
जिस प्रकार केन्द्र में संविधान संसद है, प्रदेश में संविधान विधान सभा है उसी प्रकार ग्राम नगर में भी संविधान होना चाहिए जिस प्रकार केन्द्र और प्रदेश के न्यायालय और पुलिस व्यवस्था है उसी प्रकार ग्राम नगर के भी होने चाहिए कहने का अर्थ ये है कि जिस प्रकार की व्यवस्थाये केन्द्र और प्रदेश की अपनी हैं उसी प्रकार की व्यवस्था छोटे रुप में ग्राम नगर की भी होनी चाहिए। संघ (राज्य) या महासंघ (केन्द्र) से सम्बन्ध सिर्फ उस गणराज्य से होता है प्रत्येक नागरिक से नहीं संघ या महासंघ का कार्य मात्र अपने गणराज्यों में आपसी समन्वय व सन्तुलन करना होता है उस पर शासन करना नहीं तभी तो सच्चे अर्थों में गणराज्य व्यवस्था या स्वराज-सुराज व्यवस्था कहलायेगी। यहीं राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रसिद्ध युक्ति ”भारत ग्राम (नगर) गणराज्यों का संघ हो“ और ”राम राज्य“ का सत्य अर्थ है।
विश्व में अनेक भविष्यवक्ताओं ने समय-समय पर हजारों भविष्यवाणीयाँ की हैं जिसमें से अधिकतम प्रभावी संतो, ज्योतिषियों, स्वप्नदर्शियों, पैगम्बरों व मनोवैज्ञानियों की भविष्यवाणीयाँ गलत सिद्ध हुयी हैं। इसके पीछे उनकी इच्छा प्रसिद्धि पाने व धन लाभ की रही है। इन भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी करने के अनेक तरीकों का इस्तेमाल किया है, जिसे जानना आवश्यक है और वे निम्नलिखित हैं-
1. एलेक्ट्रोमैंसी - पिजड़े में बैठी किसी चिड़िया द्वारा बाहर रखे कार्डो के आधार पर भविष्यवाणी करना।, 2. आॅगरी - पक्षियों की उड़ान देखकर भविष्य कथन करना।, 3. बिबलियोंमैंसी - धार्मिक ग्रन्थ के किसी पृष्ठ पर अचाानक पढ़कर भविष्य कथन करना।, 4. बोन कास्टिंग - हड्डी, कौड़ी, पंख, रंगीन चमड़ा, लकड़ी का टुकड़ा इत्यादि फेककर बने आकृति द्वारा भविष्य कथन करना। यह विधि अफ्रीका में अधिकतर प्रयोग की जाती है।, 5. काटोंमैन्सी - टैरो कार्ड की तरह ताश के सामान्य पत्रों से भविष्य कथन करना।, 6. सेरोमैन्सी - पिघलते और टपकते मोम के आकारों की सहायता से भविष्य कथन।, 7. ची-ची (कौउ सिम) - खोखली बाँस की नली में धूप-बत्ती इत्यादि डालकर उस पर लिखे लिपिचिन्हों के अनुसार भविष्य कथन की चीनी विधि।, 8. कीरोमैंसी - हाथ की रेखाओं को पढ़ना इसे ही हस्तरेखा शास्त्र (पामिस्ट्री) कहा जाता है।, 9. क्रोनोमैंसी - शुभ और अशुभ दिनों के आधार पर भविष्यवाणी करना।, 10. क्लेयरवाॅयेन्स - आध्यात्मिक या अन्तदृष्टि द्वारा भविष्य कथन।, 11. क्रिस्टल बाॅल (क्रिस्टलोमैंसी या स्क्राइंग) - कटोरे में रखे पानी की परावर्तित सतह, शीशा, हीरे की तरह चमकते नश और दुसरे धातुओं की परावर्तित सतह को देखकर भविष्य कथन करना। इसी विधि से प्रसिद्ध सगुनियां, नास्त्रेदमस भविष्यवाणी करते थे। भविष्यवाणी करने का यह जिप्सियों का पारम्परिक व लोकप्रिय तरीका है।, 12. एक्सटिपाइसी - जानवरों की अंतड़ियों को देखकर भविष्यवाणी करना।, 13. चेहरा पढ़ना (फेस रीडिंग) - चेहरे कर रूप-रंग, नाक, आँख, मुँह इत्यादि देखकर और उनके आधार पर भविष्य कथन करना।, 14. फेंगसुई - पृथ्वी के समरसता के आधार पर भविष्य कथन।, 15. गैस्ट्रोमैंसी - पेट के आधार पर एक गरूड़ विद्या, जो अब समाप्त हो चुकी है।, 16. ग्राफोलाॅजी - हस्तलेख द्वारा भविष्यवाणी करना।, 17. जियोमैंसी - भूमि के उपर धूल इत्यादि फेककर भविष्य कथन करना।, 18. हारूस्पाइसी - जानवरों के जिगर देखकर भविष्य कथन।, 19. हौररी एस्ट्राॅलोजी (प्रश्न ज्योतिषि) - पूछे गये प्रश्न के समय के अनुसार भविष्य कथन।, 20. हाइड्रोमैंसी - पानी की सतह देखकर भविष्य कथन।, 21. आई चिंग - पैरों की शाखा के साथ सिक्के फंेककर चीनी भविष्य कथन।, 22. नैक्रोमैंसी - आत्मा बुलाकर भविष्य कथन।, 23. न्यूमरोलोजी - अंकशास्त्र द्वारा भविष्य कथन।, 24. आॅनीरोमैंसी - स्वप्न ज्योतिष विज्ञान।, 25. ओनोमैन्सी - नाम के आधार पर भविष्य कथन।, 26. पैंडुलम रीडिंग - डोरे में लटकी हुई वस्तु को हिलाकर उसके गति की दिशा के आधार पर भविष्य कथन।, 27. पायरोमैंसी - विशेष रूप से जलाई गई पवित्र आग की लपटों की दिशा के आधार पर भविष्य कथन।, 28. रैब्डोमैंसी - विशिष्ट छड़ों के सहारे भविष्य कथन।, 29. रूनेकास्टिंग या रूनिक डिवीनेशन - खास निशान लगे पत्थर या पाशों के अध्ययन से भविष्य कथन।, 30. स्पिरिट बोर्ड - प्लैंचैट आत्मा बुलाकर भविष्य कथन।, 31. टैरोमैंसी - टैरो कार्ड द्वारा भविष्य कथन।, 32. टैसियोग्राफी या टैसियोमैंसी - चाय या काॅफी के प्यालों में बची चाय या काॅफी की पत्तियाँ या बीजों के आधार पर भविष्य कथन।
भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस के अनुसार - फ्रांस देश के नास्त्रेदमस नामक प्रसिद्ध भविष्यवक्ता ने सन् 1555 में एक हजार श्लोकों में विश्व के भविष्य की सांकेतिक भविष्यवाणीयाँ फ्रेंच भाषा में लिखी हैं। सौ-सौ श्लोकों के दस शतक बनाये गये हैं जिन्हें ”सेन्चुरी ग्रन्थ“ कहा जाता है। नास्त्रेदमस की अधिकतम भविष्यवाणीयाँ अब तक सत्य सिद्ध हुई है। ”सेन्चुरी ग्रन्थ“ को पाल ब्रन्टन नामक अंग्रेज ने फ्रांस में कुछ वर्ष रहकर समझा व उसे अंग्रेजी में अनुवाद किया। इसी ”सेन्चुरी ग्रन्थ“ को महाराष्ट्र के ज्योतिषाचार्य डाॅ0 रामचन्द्र जोशी द्वारा भी मराठी भाषा में लिखा गया है। इस पुस्तक का नाम ”21 व्या शतकाकडे झेपावतांना जगातील सर्वश्रेष्ठ भविष्यवेत्ता मायकल द नाॅत्रदेम (नाॅस्ट्राडेमस) यांचे जागतिक स्तरावरचे भविष्य“ है। जिसे 1. जोशी ब्रदर्स, अप्पा बलवंत चैक, पुणे, महाराष्ट्र, 2. श्री गजानन बुक डिपो, भरत नाट्य मंदिरासमार, पुणे, महाराष्ट्र, 3. श्री गजानन बुक डिपो, कबुतरखाना, दादर, मुम्बई, महाराष्ट्र, 4. श्री गजानन बुक डिपो, बिल्डिंग नम्बर-132, पहला माला, पंतनगर, घाटकोपर, मुम्बई, महाराष्ट्र से प्राप्त किया जा सकता है।
इस पुस्तक के पृष्ठ-32 और 33 पर लिखा है- ”ठहरो स्वर्णयुग (रामराज्य) आ रहा है। एक अधेड़ उम्र का औदार्य (उदार) अजोड़ महासत्ता अधिकारी भारत ही नहीं सारी पृथ्वी पर स्वर्णयुग लायेगा और अपने सनातन धर्म का पुनरूत्थान करके यथार्थ भक्ति मार्ग बताकर सर्वश्रेष्ठ हिन्दू राष्ट्र बनायेगा। तत्पश्चात् ब्रह्मदेश पाकिस्तान, बांगला, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत, अफगानिस्तान, मलाया आदि देश में वही सार्वभौम धार्मिक नेता होगा। सत्ताधारी चांडाल चैकड़ियों पर उसकी सत्ता होगी वह नेता सायरन (तत्वदर्शी संत) दुनिया की अधाप मालूम होना है, बस देखते रहो।“
पृष्ठ-40 पर लिखा है- ”ठहरो रामराज्य (स्वर्णयुग) आ रहा है। जून, 1999 से 2006 तक चलने वाली उत्क्रान्ति में स्वर्णयुग का उत्थान होगा। हिन्दुस्तान में उदयन होने वाला तारणहार शायरन दुनिया में सुख, समृद्धि व शान्ति प्रदान करेगा। नास्त्रेदमस जी ने निःसन्देह कहा है कि प्रकट होने वाला शायरन अभी ज्ञात नहीं है लेकिन वह क्रिश्चियन अथवा मुसलमान हरगिज नहीं है। वह हिन्दू ही होगा और मैं नास्त्रेदमस उसका अभी छाती ठोक कर गर्व करता हूँ क्योंकि उस दिव्य स्वतंत्र सूर्य शायरन का उदय होते ही सारे पहले वाले विद्वान कहलाने वाले महान नेताओं को निश्प्रभ होकर उसके सामने नम्र बनना पड़ेगा। वह हिन्दुस्तानी महान तत्वद्रष्टा संत सभी को अभूतपूर्व राज्य प्रदान करेगा। वह समान कायदा, समान नियम बनाएगा, स्त्री-पुरूष में, अमीर-गरीब में, जाति और धर्म में कोई भेद-भाव नहीं रखेगा, किसी पर अन्याय नहीं होने देगा। उस तत्वदर्शी संत का सर्व जनता विशेष सम्मान करेगी। माता-पिता तो आदरणीय होते ही हैं परन्तु आध्यात्मिकता व पवित्रता के आधार पर उस शायरन का माता-पिता से भी अलग श्रद्धा स्थान होगा।“ नास्त्रेदमस स्वयं ज्यू वंश का था तथा फ्रांस देश का नागरिक था। उसने क्रिश्चियन धर्म स्वीकार कर रखा था, फिर भी नास्त्रेदमस ने निःसन्देह कहा है कि प्रकट होने वाला शायरन केवल हिन्दू ही होगा।
पृष्ठ-41 पर लिखा है- ”सभी को समान कायदा, नियम, अनुशासन पालन करवा कर सत्य पथ पर लायेगा। मैं नास्त्रेदमस एक बात निर्विवाद सिद्ध करता हूँ कि वह शायरन नया ज्ञान आविष्कार करेगा। वह सत्य मार्ग दर्शन करवाने वाला तारणहार एशिया खण्ड में जिस देश का नाम महासागर (हिन्द महासागर) है। उसी नाम वाले हिन्दुस्तान देश में जन्म लेगा। वह ना क्रिश्चियन, ना मुसलमान, ना ज्यू होगा, वह निःसन्देह हिन्दू होगा। अन्य भूतपूर्व धार्मिक नेताओं से महतर बुद्धिमान होगा और अजिंकय होगा। (शतक 6 श्लोक 70) उस से सभी प्रेम करेगें। उसका बोलबाला रहेगा। उसका भय भी रहेगा। कोई भी अपकृत्य करना नहीं सोचेगा। उसका नाम व कीर्ति त्रिखण्ड में गुंजेगी अर्थात आसमानो के पार उसकी महिमा का बोल-बाला होगा। अब तक अज्ञान निद्रा में गाढ़े सोये हुये समाज को तत्व ज्ञान की रोशनी से जगायेगा। सर्व मानव समाज हड़बड़ाकर जागेगा। उसके तत्व ज्ञान के आधार से भक्ति साधना करेगा। सर्व समाज से सत्य साधना करवायेगा।“
पृष्ठ-42 और 43 पर लिखा है- ”वह हिंसक क्रूरचन्द्र (महाकाल) कौन है, कहाँ है, यह बात शायरन ही बताएगा। उस क्रूरचन्द्र से वह शायरन ही मुक्त करवायेगा। शायरन के कारकिर्द में इस भूतल की पवित्र भूमि पर (हिन्दुस्तान में ) स्वर्णयुग का अवतरण होगा, फिर वह पूरे विश्व में फैलेगा। उस विश्व नेता व उसके सद्गुणों की, उसके बाद भी महिमा गायी जायेगी। उसके मन की शालीनता, विनम्रता, उदारता का इतना रेल-पेल बोलबाला होगा। शायरन अपने बारे में बस तीन ही शब्द बोलता है- एक विजयी ज्ञाता। इसके साथ और विशेषण न चिपकायें मुझे मंजूर नहीं होगा। (शतक 6 श्लोक 71) हिन्दू शायरन अपने ज्ञान से दैदिप्यमान उतुंग ऊँचा स्वरूप का विधान (तत्वज्ञान) फिर से बिना शर्त उजागर करवायेगा और मानवी संस्कृति निर्धोक संवारेगा, इसमें सन्देह नहीं। अभी किसी को मालूम नहीं, लेकिन अपने समय पर जैसे नरसिंह अचानक प्रकट हुआ था ऐसे ही वह विश्व महान नेता अपने तर्क शुद्ध, अचूक आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति तेज से विख्यात होगा। मैं नास्त्रेदमस अचम्भित हूँ। मैं ना उसके देश को तथा ना उसको जानता हूँ, मैं उसे सामने देख भी रहा हूँ, उसकी महिमा का शब्द बद्ध में कोई मिसाल नहीं कर सकता। बस उसे महान धार्मिक नेता कहता हूँ। अपने धर्म बन्धुओं की सद्दकालीन समस्या से दयनीय अवस्था से बैचेन होता हुआ स्वतन्त्र ज्ञान सूर्य का उदय करता हुआ अपने भक्ति तेज से जग का तारणहार 5वें शतक (20वीं सदी) के अन्त में अधेड़ उम्र का विश्व का महान नेता जैसे तेजस्वी सिंह मानव उदिग्न अवस्था से चैखट लाँघता हुआ मेरे (नास्त्रेदमस के) मन का भेद ले रहा है और मैं उसका स्वागत करता हुआ आश्चर्य चकित हो रहा हूँ। उदास भी हो रहा हूँ क्योंकि उसके होने का दुनिया को ज्ञान न होने से मेरा शायरन उपेक्षा का पात्र बन रहा है। मेरी (नास्त्रेदमस की) चित्तभेदक भविष्यवाणी की और उस वैश्विक सिंह मानव की उपेक्षा ना करें। उसके प्रकट होने पर तथा उसके तेजस्वी तत्वज्ञान रूपी सूर्य उदय होने से आदर्शवादी श्रेष्ठ व्यक्तियों का पुर्नउत्थान तथा स्वर्णयुग का प्रभात आज ईसवी सन् 1555 से 450 वर्ष अर्थात सन् 2005 के बाद से शुरूआत होगी। इस कृतार्थ शुरूआात का मैं (नास्त्रेदमस) दृष्टा हो रहा हूँ।“
पृष्ठ-44, 45 और 46 पर लिखा है-”तीन ओर से सागर से घिरे द्वीप (हिन्दुस्तान देश) में उस महान संत का जन्म होगा, उस समय तत्व ज्ञान के अभाव से अज्ञान अँधेरा होगा। नैतिकता का पतन होकर हाहाकार मचा होगा। वह शायरन अपने धर्म बल अर्थात भक्ति की शक्ति से तथा तत्व ज्ञान द्वारा सर्व राष्ट्र को नतमस्तक करेगा। एशिया में उसे रोकना अर्थात उसके प्रचार में बाधा करना पागलपन होगा। (शतक 1 श्लोक 50) वह अधेड़ उम्र में तत्व ज्ञान का ज्ञाता तथा ज्ञेय होकर त्रिखण्ड में कीर्तिमान होगा। मुझ (नास्त्रेदमस) को उसका नया उपाय साधना मंत्र ऐसा जालिम मालूम हो रहा है जैसे सर्प को वश करने वाला गारडू मंत्र से महाविषैले सर्प को वश कर लेता है। वह नया उपाय, नया कायदा बनाने वाला तत्ववेक्ता दुनिया के सामने उजागर होगा। उसके ज्ञान के दिव्य तेज के प्रभाव से उस द्वीपकल्प भारत मंे अक्रामक तूफान व खलबली मचेगी अर्थात अज्ञानी संतो द्वारा विद्रोह किया जायेगा। वह शायरन उदार मत वाला, कृपालु, दयालु, दैदिप्यमान, सनातन साम्राज्य अधिकारी, आदि सत्यपुरूष का अनुयायी होगा। उसकी सत्ता सार्वभौम होगी। उसकी महिमा, उपाय, गुरू श्रद्धा, गुरू भक्ति, तत्व ज्ञान का सत्संग करके प्रथम अज्ञान निद्रा में सोये अपने धर्म बंधुओं (हिन्दुओं) को जागृत करके, अंधविश्वास के आधार पर साधना कर रहे श्रद्धालुओं को शास्त्रविधि रहित साधना का बुरका फाड़कर गूढ़ गहरे तत्वज्ञान का प्रकाश करेगा। अपने सनातन धर्म का पालन करवा कर समृद्ध शान्ति का अधिकारी बनाएगा। तत्पश्चात् उसका तत्वज्ञान सम्पूर्ण विश्व में फैलेगा। उसके ज्ञान की बराबरी कोई भी नहीं कर सकेगा। इसलिए मैं (नास्त्रेदमस) वैश्विक सिंह महामानव इतना महान होगा कि मैं उसकी महिमा को शब्दों में नहीं बाँध पाउँगा। मैं उस ग्रेट शायरन को देख रहा हूँ।“
पृष्ठ-46 और 47 पर लिखा है-”नास्त्रेदमस कहता है कि निःसन्देह विश्व में श्रेष्ठ तत्वज्ञाता के विषय में मेरी भविष्यवाणी के शब्दा-शब्द को किसी नेताओं पर जोड़ कर तर्क-वितर्क करके देखेगें तो कोई भी खरा नहीं उतरेगा। मैं छाती ठोककर कह रहा हूँ कि मेरा शायरन का कृतत्व और उसका गहरा तत्वज्ञान ही सर्व की खाल उतारेगा। इस विधान का एक-एक शब्द का खरा-खरा समर्थन शायरन ही देगा।
पृष्ठ-52 पर लिखा है-”नास्त्रेदमस ने अपनी भविष्यवाणी में कहा है कि 21वीं सदी के प्रारम्भ में दुनिया के क्षितिज पर शायरन का उदय होगा। जो भी बदलाव होगा वह मेरी (नास्त्रेदमस) इच्छा से नहीं बल्कि शायरन की आज्ञा से नियति की इच्छा से सारा बदलाव होगा ही होगा। उस में से नया बदलाव मतलब हिन्दुस्तान सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र होगा। कई सदियों से ना देखा ऐसा हिन्दुओं का सुख साम्राज्य दृष्टिगोचर होगा। उस देश में पैदा हुआ धार्मिक संत ही तत्वदृष्टा तथा जग का तारणहार जगज्जेता होगा। एशिया खण्डों में रामायण, महाभारत आदि का ज्ञान जो हिन्दुओं में प्रचलित है, उससे भी भिन्न आगे का ज्ञान उस तत्वदर्शी संत का होगा। वह सत्पुरूष का अनुयायी होगा, वह एक अद्वितीय संत होगा।
पृष्ठ-74 पर लिखा है-”़बहुत सारे संत नेता आएगें और जाएगें, सर्व परमात्मा के द्रोही तथा अभिमानी होगें। मुझे (नास्त्रेदमस को) आंतरिक साक्षात्कार उस शायरन का हुआ है। हिन्दुस्तान का हिन्दू संत आगामी अंधकारी, प्रलयकारी, धुंधुकारी जगत को नया प्रकाश देने वाला सर्वश्रेष्ठ जगज्जेता धार्मिक विश्व नेता की अपनी उदासी के सिवा कोई अभिलाषा नहीं होगी। ना अभिमान होगा, यह मेरी भविष्यवाणी की गौरव की बात होगी कि वास्तव में वह तत्वदर्शी संत संसार में अवश्य प्रसिद्ध होगा। उसके द्वारा बताया ज्ञान सदियों तक छाया रहेगा। वह संत आधुनिक वैज्ञानिकों की आँखें चकाचैंध करेगा। उसका सर्वज्ञान शास्त्र प्रमाणित होगा। मैं कहता हूँ कि बुद्धिवादी व्यक्ति उसकी उपेक्षा न करें। उसे छोटा ज्ञानदीप न समझंे, उस तत्ववेता महामानव को सिंहासनस्थ करके उसको आराध्य देव मानकर पूजा करें। वह आदि पुरूष का अनुयायी दुनिया का तारणहार होगा।
2. स्वामी शिवानन्द के अनुसार- आज विश्व में जो भी घटनाएं घटित हो रही हैं वह शास्त्रानुार पहले से ही सुनिश्चित है। भविष्य पुराण में भगवान वेद व्यास जी ने स्वयं भविष्यवाणी की है कि 4,900 शताब्दि कलियुग बीतने के पश्चात् भारत में बौद्धों का राज्य होगा, तदन्तर आद्य शंकराचार्य जी का प्रादुर्भाव के साथ ही वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार होगा और मनुस्मृति के आधार पर राजा राज्य करेंगें। पुनः 300 वर्षो तक भवनों तथा 200 वर्ष तक ईसाईयों का राज्य रहेगा। उसके बाद मौन (मत पत्रों) का राज्य रहेगा, जो 11 टोपी (राष्ट्रपति) तक चलेगा। यह क्रम लगभग 50 वर्ष तक चलेगा। इसके बाद से किसी भी पार्टी को बहुमत प्राप्त नहीं हो सकेगा। मँहगाई-भ्रष्टाचार बढ़ेगें। माता-पिता, साधु-सन्त, ब्राह्मण-विद्वान अपमानित होगें, तब भयानक युद्ध होगा। भारत पुनः अपने अस्तित्व में आकर विश्व गुरू पद पर स्थापित होगा। भारत में शास्त्रानुसार पुनः राज्य परम्परा की स्थापना होगी। (राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र, वाराणसी, 8 सितम्बर, 1998)
3. तीसरी सहस्त्राब्दी के प्रारम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध ज्योतिषि श्री बेजन दारूवाला द्वारा की गयी भविष्यवाणी जो अमर उजाला समाचार पत्र, भारत के रविवासरीय अंक में 31 दिसम्बर, 2000 को प्रकाशित हुई थी। निम्न प्रकार है-
टेक्नोलाॅजी के पूरी तरह छीज जाने का तीसरा अंतिम दौर आएगा अप्रैल 2011 में, जब नेप्च्यून टेक्नोलाॅजी की राशि कुंभ राशि को छोड़ेगा और 5 अप्रैल 2011 से मानवता और आध्यात्मिकता की राशि में प्रवेश करेगा। जाहिर है इसका मतलब यह नहीं होगा कि टेक्नोलाॅजी और खासकर कम्प्यूटर कहीं फेंक दिये जायेगें और हम उन्हें इस्तेमाल करना बन्द कर देगें। निश्चय ही इसका मतलब यह होगा कि हम टेक्नोलाॅजी की ताकत का इस्तेमाल जनता के हित में करना सीख लेगें। टेक्नोलाॅजी अपना महत्व और अपनी सर्वोच्च हैसियत तीन दौरों में खो देगी। 1. 2003 के अंत में, 2.2008 के अंत में 3. अप्रैल 2011 के बाद। जीवन-जन्म-पुर्नजीवन का अन्तिम रहस्य 6 अक्टुबर 2012 और 23 दिसम्बर 2014 के बीच खुलेगा। मस्तिष्क के कामकाज इसकी कार्यप्रणाली, शक्ति व जटिलता के रहस्यों की छानबीन 2006 और 2011 के बीच अपने अंजाम तक पहंुचेगी, जब बृहस्पति मेष राशि में आयेगा। मेष राशि का मस्तिष्क के साथ काफी गहरा सम्बन्ध है। लिहाजा अचेतन रूप से और बगैर किसी इरादे के मैंने यह खोज की है कि सन 2011 हम मनुष्यों के लिए बहुत विशेष महत्व वाला होगा। सन् 2022 देवी शक्ति का साल होगा, जो अपनी उत्पत्ति में भारतीय होगी और प्रभाव में सार्वभौम। यह देवी बोध और अनुकम्पा का सदेह रूप होगी। यह बोध और अनुकम्पा प्रेम और संवेदना की हमारी समझ से परे होगी। साथ ही मैं खुले तौर पर यह भी स्वीकार करता हूॅ कि यह देवी भारतीय होगी, ऐसा मुझे सिर्फ इसलिए लगता है क्योंकि मैं भारतीय हूँ। चेस्टस्टन ने कहा था, ”ब्रह्माण्डीय दर्शन मनुष्य के अनुरूप बैठने के लिए नहीं, बल्कि ब्रह्माण्ड के अनुरूप बैठने के लिए रचा गया है। मनुष्य के पास ठीक उसी तरह अपना एक नीजी धर्म नहीं हो सकता, जिस तरह उसके पास एक निजी सूर्य और एक चंद्रमा नहीं हो सकता।“ सन 2034 में सार्वभौम विलायक का चिन्ह मीन कर्क राशि में स्थित शनि के साथ अत्यन्त मेल की स्थिति में बैठने जा रहा है। बृहस्पति भी कर्क में स्थित यूरेनस के साथ वैसे ही सुंदर सहमेल की स्थिति में है। यूरेनस विशाल, निष्पक्ष, वस्तुगत मूल्यों के लिए आता है। यूरेनस का स्वरूप कब्जावर नहीं होता। यूरेनस सच्ची जागृती, सच्चा प्रकाश लाने वाला है। एक विश्व सरकार 14 अप्रैल 2047 और जनवरी 2050 के बीच आकार ग्रहण करेगी। बृहस्पति और शनि दोनो उस समय पूर्ण शक्ति की स्थिति में होंगे। बृहस्पति कर्क और शनि मकर राशि में होगा। प्लूटो मीन राशि में होगा और लिहाजा यह बृहस्पति और शनि, दोनो के लिए कृपालु होगा। इतना ही महत्वपूर्ण यह तथ्य भी है कि मैं अपनी नंगी आँखो से महाद्वीपों, छोटे देशों, पहाड़ों, जमीन के बड़े-बड़े हिस्सों, छोटे रकबों अथवा जमीन के हिस्सों को बगैर किसी भूकम्प के एक साथ आते देख रहा हूँ। यह सब मिलकर एक एकीकृत सम्पूर्ण में बदल रहा है। मैं शीशे जैसी कोई चीज देख रहा हूँ जो इस तक भेजी गई हर चीज को शक्तिशाली और प्रभावी तरीके से वापस फंेक रही है। हर चीज से मेरा मतलब मिसाइल से लेकर किसी नकारात्मक विचार अथवा घृणा की भावना तक से है। यह ”बूमरैंग ढाल“ 2049 में पूरी तरह सम्पूर्ण हो जायेगी लेकिन अस्तित्व में यह अभी ही आ चुकी है। सन 2091 संसार की पूर्णता का चरम होगा। सर्वोच्च ऊर्जा के रूप में ईश्वर का अस्तित्व और उसका रहस्य खुल कर सामने आ जायेगा। इसका सौन्दर्य और विरोधाभास यह होगा कि विज्ञान ईश्वर की सर्वोच्च ऊर्जा को वास्तविक रूप में दिखाने व प्रदर्शित करने में मददगार साबित होगा। इसी समय लोग यह जान सकेगें कि ईश्वर चिन्हों व आत्मिक शक्ति के रूप में हमारे सामने प्रकटीकरण चाहता है। गणेश जी की कृपा से मैं आप सभी के लिए यह भविष्यवाणी करने में सफल रहा हूँ। इसका कोई श्रेय मैं स्वयं को नहीं देता।
4. पुस्तक - ”अमर भविष्यवाणियाँ“, लेखक -डा नारायण दत्त श्रीमाली जी, प्रकाशक - मयूर पेपर बैक्स, नई दिल्ली (भारत) के अनुसार
क. ध्यान योगी, बंगाल के सुप्रसिद्ध भविष्यवक्ता तथा संत के अनुसार - संसार को सतयुग का प्रकाश देने वाली आत्मा का जन्म भारत वर्ष में हो चुका है।
ख. डाॅ0 नारायण दत्त श्रीमाली जी के अनुसार - भारत में ईश्वर का जन्म हो चुका है। और वह जल्द ही समाज के सामने प्रकट होगा।
ग. शिवानन्द जी, उत्तरांचल के प्रसिद्ध संत के अनुसार - भारत को सही रास्ता दिखाने वाले नेता का जन्म हो चुका है। भारत की प्रतिष्ठा विश्व में निरंतर बढ़ती रहेगी।
घ. दक्षिण के प्रसिद्ध संत तथा विचारक ”मूर्ति“ के अनुसार - कल्कि भगवान का अवतार भारत में हो चुका हैं। भारत आयुर्वेद, ज्योतिष आदि ज्ञान में विशेष प्रगति करेगा। भारत के चतुर्दिक जो छोटे-छोटे देश हैं वे सब भारत वर्ष में मिल जायेंगे।
च. मि0 एडर्सन, अमेरिका के अनुसार - एशिया ही नहीं अपितु पूरे विश्व में भारत की शक्ति बढ़ेगी तथा उसका प्रभुत्व एवं वर्चस्व स्थापित होगा। सन् 1999 तक पूरा विश्व एक झंडे के तले कार्य करेगा तथा विश्व राष्ट्र का सपना साकार होगा। 20वीं सदी के अन्त से पहले या 21वीं सदी के प्रथम दशक में विश्व में असभ्यता का नंगा ताण्डव होगा। इस बीच भारत के एक देहात का एक धार्मिक व्यक्ति एक मानव, एक भाषा और झण्डा की रूपरेखा का संविधान बनाकर संसार को सदाचार, उदारता, मानवीय सेवा व प्यार का सबक देगा। वह मसीहा विश्व में आगे आने वाले हजारों वर्षो के लिए धर्म व सुख-शान्ति भर देगा। युग परिवर्तन परमात्मा की नीजी इच्छा है और वह रूकेगी नहीं। वह युग बदल कर ही रहेगा। इसमें सन्देह नहीं है।
छ. पादरी पियो, इटली के अनुसार - भारत सन् 1970 के बाद प्रगति करेगा और 1995 तक विश्व का एक प्रमुख राष्ट्र बन जायेगा। विश्व युद्ध के बाद भारत संसार की एक प्रमुख हस्ती होगी और लोग उसकी बात को मानने के लिए बाध्य होगें।
ज. योगी आनन्दाचार्य, नार्वे के अनुसार - सन् 1995 तक विश्व में शक्तिशाली देशों में भारत का नाम छठे स्थान में होगा। सन् 1971 के बाद भारत शक्तिशाली बनेगा। सन् 1975 के बाद विश्व में संस्कृत भाषा का तीव्रता से विकास होगा और पाश्चात्य में भी संस्कृत भाषा को पूर्ण मान्यता मिलेगी। सन् 1998 के बाद एक शक्तिशाली धार्मिक संस्था भारत में प्रकाश में आयेगी, जिसके स्वामी एक गृहस्थ व्यक्ति की आचार संंिहता का पालन सम्पूर्ण विश्व करेगा। धीरे-धीरे भारत औद्योगिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से विश्व का नेत्त्व करेगा और उसका विज्ञान अर्थात आध्यात्मिक तत्वज्ञान ही पूरे विश्व को मान्य होगा।
अ. गंगोत्री के प्रसिद्ध सन्त ”निर्वाणानन्द जी“ के अनुसार - भारत आध्यात्मिक दिृष्ट से उन्नति करेगा। युग परिवर्तन की प्रक्रिया अप्रैल 1999 से चालू होगी।
ब. विश्वविख्यात महिला ”जीन डिक्सन“, अमेरिका के अनुसार - भारत के एक ग्रामीण परिवार में एक ऐसे व्यक्ति का जन्म होगा जो अपने कार्यों से पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा, तथा गांधी जी की तरह समाज का मार्ग दर्शन भी करेगा। इस बीच भारत वर्ष में एक छोटे देहात में जन्में व्यक्ति का धार्मिक प्रभाव न केवल भारतवर्ष वरन् दूसरे देशों में भी बढ़ने लगेगा। वह व्यक्ति इतिहास का सर्वश्रेष्ठ मसीहा बनेगा। संसार के तमाम संविधानों के समानान्तर ”एक मानवीय संविधान“ का निर्माण करेगा, जिसमें सारे संसार की एक भाषा, एक संघीय राज्य, एक सर्वोच्च न्यायपालिका, एक झण्डे की रूपरेखा होगी। इस प्रयत्न के प्रभाव से मनुष्य में संयम, सदाचार, न्याय, नीति, त्याग और उदारता की होड़ लगेगी। आज संसार धर्म और संस्कृति के जिस स्वरूप की कल्पना भी नहीं करता, उस धर्म का तेजी से विस्तार होगा और वह सारे संसार पर छा जायेगा। यह धर्म-संस्कृति भारतवर्ष की होगी और यह मसीहा भी भारतवर्ष का ही है, जो इस आने वाली क्रान्ति की नींव सुदृढ़ बनाने में जुटा हुआ है।
स. आर्थर चाल्र्सक्लार्क के अनुसार - जिस प्रकार इस समय संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय अमेरिका में है। उसी प्रकार संयुक्त ग्रह राज्य संघ का मुख्यालय मंगल ग्रह या गुरू पर हो सकता है। सन् 1981 तक भारत अपने आप में शक्तिशाली हो जायेगा तथा वहां से एक ऐसी जबरदस्त विचार क्रान्ति उठेगी जो पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। भारत का धर्म और अध्यात्म पूरा विश्व स्वीकार करेगा।
द. प्रोफेसर हरार, इजराइल के अनुसार - भारत में एक ऐसा व्यक्ति पैदा हो गया है। जो कि आने वाले समय में विश्व का मार्गदर्शक होगा। वह व्यक्ति ब्राम्हण है, तथा वर्ण-गोरा है, वह यज्ञ तथा पूजा पाठ में विशेष प्रवीण होगा। इसका विकास सन् 1970 के बाद होना चाहिये। दिव्य देहधारी पुरूष ने जन्म लिया है। वे सबके मन में प्रसन्नता भरेगें। दुनिया भर के कष्ट दूर करेगें। अन्यायी और अत्याचारियों को भी वही ठीक करेगें। भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई0 से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रान्ति की जड़े मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उसके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा।
य. डाॅ0 जूलबर्न, फ्रांसीसी भविष्यवक्ता के अनुसार - भारत में एक ऐसे व्यक्ति का जन्म सन् 1962 के पहले ही हो चुका है। जो पूरी दुनिया को आगे चलकर रास्ता दिखाने में सहायक होगा। इतिहास का सबसे समर्थ व्यक्ति का अवतरण हो चुका है। वह शीघ्र ही सारी दुनिया को बदल डालेगा। उसकी ज्ञान-क्रान्ति उठेगी और आँधी-तुफान की तरह सारे विश्व में छा जायेगी। एक ओर इस तरह संघर्ष हो रहे होगें और दूसरी ओर एक विल्कुल नई धार्मिक क्रान्ति उठ खड़ी होगी, ईश्वर (परमेश्वर) और आत्मा के नये-नये रहस्य प्रकट करेगी। विज्ञान उसकी पुष्टि करेगा। फलस्वरूप नास्तिकता और बामपन्थ नष्ट होता चला जायेगा और उसके स्थान पर लोगों में श्रद्धा, आस्तिकता, न्याय-नीति, अनुशासन और कत्र्तव्यपरायणता के भाव उगते हुये चले जायेगें। यह परिवर्तन ही विश्व शान्ति के आधार बन सकते हैं। मुझे आभास होता है कि यह ज्ञान (धार्मिक) क्रान्ति भारतवर्ष से ही उठेगी। सन् 1990 के बाद यूरोपीय देश भारत की धार्मिक सभ्यता की ओर तेजी से झुकेगें। सन् 2000 तक विश्व की आबादी 640 करोड़ के आस-पास होगी। भारत से उठी ज्ञान की धार्मिक क्रान्ति नास्तिकता का नाश करके आँधी तूफान की तरह विश्व को ढक लेगी। उस भारतीय महान आध्यात्मिक व्यक्ति के अनुयायी देखते-देखते एक संस्था के रूप में आत्मशक्ति से सम्पूर्ण विश्व पर प्रभाव जमा लेगें।
5. पुस्तक - ”विश्व की आश्चर्यजनक भविष्यवाणियाँ“, लेखक नरेन्द्र शर्मा, प्रकाशक - पवन पाकेट बुक्स, दिल्ली (भारत) के अनुसार
अ. श्रीमती आयरिन हयूजेज, अमेरिका के अनुसार - ईश्वर का जन्म भारत में हो चुका है। जो कि युद्ध के बाद शेष संसार को शांति का संदेश देगा।
ब. कीर्तिधरण, सिंगापुर के अनुसार - ईश्वर का जन्म भारत में हो चुका है। इसे ही हमारे ग्रन्थों में ईश्वर अवतार (कल्कि अवतार) कहा गया है।
स. प्रो गेरार्ड क्राइसे, हालैंड के अनुसार - भारत में एक ऐसी दिव्यात्मा ने जन्म ले लिया है जो पूरे विश्व को सत्य धर्म का रास्ता दिखाएगी। पापों का अंत उसी के द्वारा होगा। ज्योतिष के क्षेत्र में भी भारत एक शीर्ष स्थान प्राप्त करेगा तथा पूरा विश्व उसका लोहा मानेगा।
द. पीटर हरकौस, हालैण्ड के अनुसार - भारत देश ही एक ऐसा देश होगा जिसका आध्यात्मिक प्रभाव प्रकाश बनकर विश्व के चारों ओर फैलता जायेगा। लोग इससे लाभ उठायेंगे और हर देश भारत की ओर झुकेगा।
6. पुस्तक - ”दुर्लभ भविष्यवाणियाँ“, लेखक - अशोक कुमार शर्मा, प्रकाशक - तुलसी पब्लिकेशन, मेरठ, उत्तर प्रदेश (भारत) के अनुसार
अ. संत गुरूनानक देव जी का कथन - संकेतों में भविष्यवाणी करने वाले गुरू नानक जी महाराज ने भी यहाँ 1997 में किसी वीर पुरूष के उठने, आगे आने की बात कही है वह शब्द हैं। ”आवन अठ तरै जान सतानवे, होर भी उठसी मरद का चेला“
ब. बाबाजी लक्ष्मणदास मदान के अनुसार - सन् 1998 में अप्रैल माह तक कोई विलक्षण व अलौकिक शक्ति सम्पन्न भारतीय संत पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करेगा
7. एजटेक सभ्यता की भविष्यवाणीयाँ पहले पहल सफल नहीं हुई और उनके साम्राज्य का काफी हिंसक अंत हुआ। एजटेक की पौराणिक मान्यता के अनुसार मानवजाति का पहला युग, जानवरों द्वारा इंसानों को खाने, दूसरा हवा, तीसरा आग व चैथा पानी से नष्ट होना था। वर्तमान पाँचवां युग नहुई-ओलिन (भूकम्प का सूरज) कहलाता है जो 3113 ई.पू. में शुरू हुआ और 24 दिसम्बर 2011 को अंत की भविष्यवाणी है।
8. इंका की आखिरी जाति ने हाल ही में ंअंत समय से जुड़ी बातें प्रकट की कि कैसे कैरो अगले पकाकुटी की प्रतीक्षा में है, जो धरती को बदल देगा व इसे दुनिया का अंत मानते हैं। वे मानते हैं कि उथल-पुथल के लक्षण शुरू हो गये हैं, जो चार साल तक रहेगा जिससे एक नई मानवता का उदय होगा। इसके लक्षणों में पहाड़ी लैगून सूखना व महान सौर ताप आदि शामिल है। इसके बाद हम पाँचवें सूरज में प्रकट होगें।
9. वर्ष 2008 में अमेरिका के महात्मा स्काट मानडेल्कर ने दावा किया - एक ई.टी. की आत्मा ने उसे आॅनलाइन न्यूज चैनल पर चेतावनी दी है कि 2010 या 2012 में कोई अजीब सी घटना घटेगी। 21 मई, 2011, शुक्रवार को कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटेगीं क्योंकि तकरीबन 11,013 ई.पू. में उसी दिन ईश्वर ने जीव जगत की रचना की थी। उन्होंने घोषणा की कि 21 अक्टुबर 2011 को यह दुनिया आग से नष्ट हो जायेगी। बाइबिल व्याख्याताओं के अनुसार भी 21, अक्टुबर, 2011 इस दुनिया का आखिरी दिन होगा।
10. ”दी बाइबिल कोड“ के लेखक मिशेल ड्रोसनिन के अनुसार- 21 दिसम्बर, 2012 में एक धूमकेतू पूरी पृथ्वी को नष्ट कर देगा।
11. पादरी जाॅन मेलार्ड (हीलिंग लाइफ के सम्पादक) के अनुसार - आज संसार की समस्यायें इतनी जटिल हो गयी हैं कि उन्हें मानवीय बुद्धि और बल पर सुलझाया नहीं जा सकता। विश्व शान्ति अब मनुष्य की ताकत के बाहर हो गयी है। तथापि हमें निराश होने की बात नहीं, क्योंकि ऐसे संकेत मिल रहें है कि भगवान स्वयं धरती पर आ गये हैं और वे अपनी सहायक शक्तियों के साथ धर्म स्थापना के प्रयत्नों में जुट गये हैं। उनकी बौद्धिक व धार्मिक क्षमता उनके अपने आप अवतार होने की बात स्पष्ट कर देगी। वह दुनिया का उद्धारक देर तक पर्दे में छिपा नहीं रह सकता।
12. श्रीमान् करलोस बेरियोस के अनुसार - मायावासियों ने 21 दिसम्बर, 2012 में एक पुनर्जन्म, पाँचवें सूरज के आरम्भ की दुनिया के रूप में देखा। जब सोलन मैरीडियन गैलक्टिक इक्वेटर को पार करेगा तथा पृथ्वी स्वयं आकाशगंगा के मध्य सरेखित होगी तो यह एक नये युग की शुरूआत होगी। हम मायां कैलेण्डर तथा भविष्यवाणीयों के युग में जी रहे हैं। सारी दुनिया की भविष्यवाणीयों तथा परम्पराए बदल रही हैं। झूठे खेलों के लिए समय नहीं है। इस युग का आध्यात्मिक विचार है-”कर्म“। इस युग में कई शक्तिशाली आत्माएं और अधिक शक्ति से इस युग में अवतार लेंगी। काफी बदलाव आयेगें, लेकिन यह लोगों पर निर्भर करता है कि वे इन्हें आसानी से लेते हैं या मुश्किल से। हम उस युग के द्वार पर हैं जहाँ से शान्ति की शुरूआत होगी, लोग धरती माँ के साथ सामंजस्य बनाएगें, हम चैथे सूरज की दुनिया में नहीं है लेकिन अभी पाँचवें सूरज की दुनिया में भी नहीं पहुँचे। यह बीच का परागमन काल है।
13. डूरबे आंदोलन के नेता सोलारा अंतरा अमारा के अनुसार - 11 जनवरी, 1992 से 31 दिसम्बर, 2011 तक हमें एक ”अवतार का द्वार“ मिला है, जिसमें मानवता को बुराइयों से छूटकर चेतना के ऊँचे स्तर तक लाने का मौका मिलेगा या फिर सर्वनाश होगा।
14. टेरेंस मेकेना के अनुसार - मायां क्रमिक विकास व नये युग के मेल - नावल्टी सिद्धान्त से धरती से कोई छोटा ग्रह टकरायेगा, किसी दूसरे रूप में बदलाव होगा या फिर 21 दिसम्बर, 2012 को बिल्कुल नवीन घटना घटित होगी।
15. इंग्लैण्ड के ज्योतिष कीरो के अनुसार - किरो ने सन् 1925 में लिखी पुस्तक में भविष्यवाणी की है कि 20वीं सदी अर्थात् सन् 2000 ई0 के उत्तरार्द्ध में सन् 1950 के पश्चात् उत्पन्न सन्त ही विश्व में ”एक नई सभ्यता“ लाएगा जो सम्पूर्ण विश्व में फैल जाएगी। भारत का वह एक व्यक्ति सारे संसार में ज्ञानक्रान्ति ला देगा। भारत वर्श का सूर्य बलवान है और कुम्भ राशि पर है। उसका अभ्युदय संसार की कोई ताकत नहीं रोक सकती, विशुद्ध धर्मावलम्बी नीति के एक सशक्त व्यक्ति के भारत वर्ष में जन्म लेने के योग हैं। यह व्यक्ति सारे देश को जगाकर रख देगा। उसकी आध्यात्मिक शक्ति दुनिया भर की तमाम भौतिक शक्तियों से अधिक होगी। बृहस्पति का योग होने के कारण ज्ञान क्रांति की संभावना है। जिसका असर दुनिया में पडे़ बिना नहीं रहेगा।
16. भविष्यवक्ता श्री वेजीलेटिन के अनुसार - 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में विश्व में आपसी प्रेम का अभाव, मानवता का हा्रस, माया संग्रह की दौड़, लूट व राजनेताओं का अन्यायी हो जाना आदि आदि बहुत से उत्पात देखने को मिलेगें। परन्तु भारत से उत्पन्न हुई शान्ति भ्रातृभाव पर आधारित नई सभ्यता, संसार में देश, प्रान्त और जाति की सीमायें तोड़कर विश्वभर में अमन व चैन उत्पन्न करेगी।
17. अमेरिका के चाल्र्स क्लार्क के अनुसार - 20वीं सदी के अन्त से पहले एक देश विज्ञान की उन्नति में सब देशों को पछाड़ देगा परन्तु भारत की प्रतिष्ठा विशेषकर इसके धर्म और दर्शन से होगी, जिसे पूरा विश्व अपना लेगा। यह धार्मिक क्रान्ति 21वीं सदी के प्रथम दशक में सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करेगी और मानव को आध्यात्मिकता पर विवश कर देगी।
18. हंगरी की महिला ज्योतिषी बोरिस्का के अनुसार - सन् 2000 ई0 से पहले-पहले उग्र परिस्थितियों हत्या और लूटमार के बीच ही मानवीय सद्गुणों का विकास एक भारतीय फरिस्ते द्वारा भौतिकवाद से सफल संघर्ष के फलस्वरूप होगा, जो चिरस्थायी रहेगा, इस आध्यात्मिक व्यक्ति के बड़ी संख्या में छोटे-छोटे लोग ही अनुयायी बनकर भौतिकवाद को आध्यात्मिकता में बदल देगें।
19. डाॅ0 निरूपमा राव, निदेशक, नेहरू तारामण्डल, भारत के अनुसार - 18 से 22 नवम्बर, 1997 के बीच सूर्यास्त से आधे घण्टे बाद आकाश में सूर्यमण्डल के 9 में से 8 अर्थात पृथ्वी को छोड़कर क्योंकि हम उस पर ही है, ग्रहों के परेड के दुर्लभ दर्शन की घटना पर डाॅ0 निरूपमा राव के विचार- प्राचीन काल में जब उत्तरायण के समय ऐसे ग्रहों का समूहन होता था तब नये युग के शुरूआत का निर्धारण होता था। आर्यभट्ट ने पाँचवी सदी ईसा पूर्व में जो गणना की थी वह वास्तव में ऐसे ही ग्रह समूहन पर आधारित था। यह समूहन 17-18 फरवरी के दिन ईसा पूर्व 3102 में हुआ माना जाता है, जो द्वापर युग की समाप्ति और कलियुग के प्रारम्भ का काल था।
20. ज्योतिषि राजनारायण, पंजाब के अनुसार - आखिरी अवतार श्री कल्किजी हैं। अगली चतुर्युगी की धर्म मर्यादा श्री कल्कि जी बाँधेगें। नया सम्वत् चलेगा। (चेतावनी, उर्दू, 1942 पृष्ठ संख्या 109, गुड़गाँवाँ, पंजाब, भारत)
21. महात्मा तिष्वरंजन ब्रम्हचारीख्याति के अनुसार - देश में एक महान आध्यात्मिक क्रांति होगी तथा इस क्रांति का संचालन यद्यपि मध्यभारत से ही होगा पर उसका सम्बन्ध भारत वर्ष के हर प्रान्त से होगा।
22. विख्यात भविष्यवक्ता प्रो0 ए0 के0 दुबे पद्मेश के अनुसार - सन् 2000 के आस पास ही भविष्य का अवतारी पुरूष प्रकट होगा। यह अवतारी पुरूष चमत्कारी शक्तियों के कारण अल्पायु में ही ख्याति प्राप्त करेगा। वह एक ही ईश्वर की पूजा का संदेश देगा, मगर कोई नया धर्म नहीं चलायेगा। संसार के अनेक देशों में वह सत्ता परिवर्तन का कारण बनेगा, मगर उन देशों का शासन अपने द्वारा नियुक्त लोगों से करायेगा।
23. प्रभात खरे के अनुसार - धूमकेतु का बृहस्पति से टक्कर बुरा भी और अच्छा भी। धूमकेतु के बुरे प्रभाव से सभी परिचित हैं परन्तु जो अच्छा प्रभाव इन्होनें लिखा है वह निम्न है इस घटना से संभवतः पहली बार हो रहा है कि धूमकेतु की गुरू से टक्कर का एक अच्छा कल्याणकारी प्रभाव होगा। जिसे हम ऐसे समझ सकते हैं। केतु जिसका कारक या प्रतिनिधित्व करता है वह है- जननांग, बाल, धर्म, धागा, तंत्रिकातंत्र, बाधा, चेन, मनकों वाली माला, जाल में उलझना इत्यादि, ज्योतिष में इन कारकों का उपयोग प्रतीक के रूप में होता है। इस तरह शूमेकर लेवी धूमकेतु जो कि 21 मनकों वाली माला के रूप में आगे बढ़कर गुरू के साथ युति कर रहा है। जिसका अर्थ हुआ केतु का गुरू के साथ योग, साथ ही साथ केतु की छाया ग्रह की सातवीं दृष्टि भी है मेष राशि से, अतः इसका अर्थ हुआ कि संसार में आध्यात्मिक प्रगति जोर पकडे़गी जिसके फलस्वरूप 1. धर्म प्रधान देश उन्नति करेंगे जैसे भारत, इजिप्स, चीन। 2. आध्यात्म और परामनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभा रखने वाले व्यक्ति लोक हित कार्यो में आगे आयेंगे। एक संभावना यह भी है कि कोई महात्मा या योगी, एक नये धर्म का प्रचार प्रसार करेगा और सबसे बड़ी बात यह है कि इस व्यक्ति को व्यापक जन समर्थन सभी धर्मो के व्यक्तियों से मिलेगा।
साभार- नव भारत (समाचार पत्र) 25 जून 1994, बिलासपुर (म.प्र.) भारत
24. साभार- दैनिक नवभारत, रविवार, 13 नवम्बर 1998, जबलपुर (म. प्र.) भारत के अनुसार - यूरोप जातियों का झुकाव भारत वर्ष जैसे धार्मिक देश की ओर तेजी से होगा केवल लोग भारतीयों का अनुगमन, वेशभूषा, खान-पान, गृहस्थ संबंधों के रूप में करेंगे वरन् भारतीय धर्म तथा संस्कृति के प्रति श्वेत जातियों का आकर्षण इतना बढ़ेगा कि सन् 2000 तक दूसरे देशों मे बीसियों हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिरों की स्थापना हो चुकी होगी और उसमें लाखों लोग पूजा, उपासना, भजन-कीर्तन और भारतीय पद्धति के संगीत का आनंद लेने आने लगेंगे, यूरोपवासियों के घरों में भारतीय देवी-देवताओं के चित्र तक लगेंगे, -चीन अणुबम बनाकर भी एशिया का प्रभुता सम्पन्न देश नहीं बनेगा उसकी भारतवर्ष से काफी समय तक शत्रुता बनी रहेगी भारत न केवल अपनी भूमि छुड़ा लेेगा वरन् तिब्बत भी मुक्त हो जायेगा उसके भारत वर्ष में मिल जाने की संभावना भी है संसार के किसी सर्वाधिक प्राचीन पर्वत से जो वर्ष भर बर्फ से का रहता है संभवतः हिमालय उससे कुछ ऐसी सामग्री, पुस्तकों और स्वर्ण मुद्राओं का भंडार मिल सकता है जो ईसा के पूर्व के इतिहास को बिलकुल ही बदल सकता है यही नही, उससे संबधिंत देश सम्भवतः भारत इतना शक्तिशाली हो सकता है कि रूस, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मन मिलकर भी उसका सामना करने में समर्थ नही होंगे। -उपरोक्त किसी भू-भाग से एक रहस्यमय व्यक्ति का अभ्युदय होगा जो आज तक के इतिहास का सबसे समर्थ व्यक्ति सिद्ध होगा उनके बनाये विधान सारे संसार में लागू होंगे और 2050 तक यह विधान सारी पृथ्वी को एक संघीय राज्य में बदल देंगे -सन् 2000 तक विश्व की आबादी 640 करोड़ के लगभग होगी, परमाणु युद्ध तो नहीं होंगे पर वर्ग-संघर्ष बढ़ेगा एक ओर इस तरह के संघर्ष हो रहे होंगे व दूसरी ओर एक विश्वव्यापी धार्मिक क्रांति उठ खड़ी होगी जो ईश्वर और आत्मा के नये-नये रहस्य प्रकट करेगी, विज्ञान उनकी पुष्टि करेगा फलस्वरूप नास्तिकता और वामपंथी नष्ट होता चला जाएगा उसके स्थान पर लोगों में आस्तिकता, न्याय, नीति, श्रद्धा अनुशासन और कर्तव्यपरायणता के भाव उगते चले जायेंगे यह परिवर्तन ही विश्व शांति के आधार बन सकते हैं -प्रो जूलबर्न ने बताया है कि यह आध्यात्मिक क्रांति भारतवर्ष से ही उठेगी व इसके संचालन के लिए वह व्यक्ति सन् 1962 के पूर्व ही जन्म ले चुका है इस समय उसे भारतवर्ष के किसी महत्वपूर्ण कार्य में संलग्न होना चाहिये उसके अनुयाइयों की बड़ी संख्या भी है व एक समर्थ संस्था के रूप में प्रकट होंगे और देखते ही देखते सारे विश्व में प्रभाव जमा लेंगे असंभव दिखने वाले परिवर्तनों को आत्मशक्ति के माध्यम से सरलता व सफलतापूर्वक सम्पन्न करेंगे।
25.दैनिक नवभारत, रविवार 25 अक्टूबर 1998, जबलपुर (म.प्र.) भारत के अनुसार - तीन सागरों की श्रृंखला में जन्मा पूर्व में एक ऐसा नेता पैदा होगा, जो ”बृहस्पतिवार“ को अपना उपासना दिन सरकारी अवकाश घोषित करेगा उस गैर ईसाई व्यक्ति की महिमा, प्रशंसा और अधिकार इतने प्रबल होंगे कि समस्त धरती व समुद्र पर्यन्त वह तूफान की तरह छाया रहेगा। यह नास्त्रेदमस की सर्वाधिक चर्चित भविष्यवाणी है भौगोलिक स्थिति के अनुसार संपूर्ण विश्व में भारत ही एक ऐसा स्थान है, जिसके दोनों छोर पर दो सागर हैं तथा चरणों में एक महासागर है नास्त्रेदमस के अनुसार एशिया का महान नेता भारत में जन्म लेगा वह ईसाई नहीं होगा, अपितु ऐसा व्यक्ति होगा जो ”बृहस्पतिवार“ गुरुवार को शुभ दिन मानेगा। संसार के प्रत्येक धर्म के उपासनावार एवं शुभवार अलग - अलग हैं ईसाइयों का पूजा दिवस रविवार है, मुसलिम धर्माचार्यों का पवित्र दिवस शुक्रवार है यहूदियों का प्रार्थना दिवस शनिवार है विश्व में एक हिन्दू जाति ही ऐसी है, जो बृहस्पतिवार गुरुवार को सर्वाधिक श्रेष्ठ व शुभ मानती है, क्योंकि यह देवगुरु बृहस्पति का वार है जो देवताओं के गुरु कहलाये गये हैं।
26. श्री देवी प्रसाद दुआरी, नासा के खगोलविद् व कोलकाता (प0 बंगाल, भारत) स्थित एम.पी.बिड़ला प्लेनेटोरियम के निदेशक के अनुसार (18 दिसम्बर, 2012 दैनिक जागरण, वाराणसी) - 21 दिसम्बर, 2012 दुनिया का अंत नहीं बल्कि एक युग का अन्त और नये युग की शुरूआत है।
27. राहु-शनि नें मिलाया हाथ अब मचेगी खलबली (18 दिसम्बर, 2012 दैनिक जागरण, वाराणसी) ज्योतिषाचार्य रामनरेश त्रिपाठी, इलाहाबाद के अनुसार - 23 दिसम्बर, 2012 की दोपहर एक बजे से राहु एवं केतु अपनी राशि बदलेगें। दो विषम ग्रह राहु और शनि एक ही घर में बैठने जा रहे हैं। दोनों एक साथ कुल 18 महीने रहेंगे। ऐसा योग पूरे 147 वर्ष बाद बनने जा रहा है। यह योग सन् 1865 में बना था। 2012 के बाद यह योग अब सन् 2161 में 194 साल बाद बनेगा। 147 वर्ष बाद बन रहे इस योग से राजनीतिक व सामाजिक दृष्टि से कई परिवर्तन होंगे। ज्योतिषाचार्य रवि किशन मिश्रा, इलाहाबाद के अनुसार- कुंभ के अवसर पर शनि-राहु का योग पड़ना किस्मत में कई उलटफेर की ओर इशारा करता है। परोपकार करने वाले और सच्चे दिल वाले लोगों के लिए यह योग फलदायक होगा।
28. बुधवार, 28 अगस्त, 2013 को हम सबने जन्माष्टमी का महापर्व मनाया । महापर्व इसलिए क्योंकि श्री कृष्ण भगवान के जन्म के बाद पहली बार यह योग बना है। अर्थात् पूरे 5241 वर्षोँ बाद। 28 अगस्त, 2013, रात्रि 12 बजकर 12 मिनट का दिन, नक्षत्र, घड़ी, लगन, मुहूर्त, योग आदि विशेष सभी उसी समान था । जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। उस समय चन्द्रमा वृष राशि मेँ उच्च लग्न मेँ स्थित था, सूर्य सिँह राशि मेँ स्थित था, नक्षत्र भी रोहिणी थी ,भाद्रपद कृष्ण अष्टमी और दिन भी बुधवार था, काल सर्प योग भी था। अर्थात् ऐसे योग भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद पहली बार बने हैँ। ये सब देख कर मन उत्साहित हुआ क्योंकि इतिहास गवाह है। जब- कंस और रावण आएंगे भगवान किसी न किसी रूप में हमारे सामने जरूर आयेंगे चाहे श्रीराम के रूप में या श्रीकृष्ण रूप में। तो क्या इस होनी को एक दिव्य संकेत माने ! हमे ऐसा लगता है - अवश्य ही कुछ अच्छा होने वाला है, क्योंकि जब कंस था, तभी भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। और अब तमाम तरीके के समस्याएं कंस की तरह समाज में जो फैली है संभवतः इंनके खात्मे का समय आ गया है।
युग परिवर्तन और परिवर्तनकर्ता का शास्त्र व भविष्यवाणियों के आँकड़ों पर व्याख्या
कोई भी मनुष्य जब भविष्य के ईश्वर के अवतरण के लिए भविष्यवाणी करता है तो वह जिस धर्म, सम्प्रदाय, सभ्यता का होता है उस धर्म, सम्प्रदाय, सभ्यता का पूर्वाग्रह उसके साथ होता है। और उसके भविष्यवाणीयों में उसकी छाप की झलक निश्चित रूप से व्यक्त होती है। विचारों का कोई आकृति या स्वरूप नहीं होता परिणामस्वरूप अपने भविष्यवाणी को व्यक्त करने के लिए वह उन्हीं धर्म, सम्प्रदाय, सभ्यता के प्रतीको का प्रयोग करता है जिस धर्म, सम्प्रदाय, सभ्यता का वह होता है। क्योंकि सत्य की अनुभूति किसी सम्प्रदाय या धर्म की पूंजी नहीं है बल्कि वह मनुष्य जीव की पूंजी है और उसको कोई भी मनुष्य अपने और समाज हित में प्रयोग कर सकता है। सत्य अनुभूति के उपरान्त वह उस अनुभूति को वह जो रूप देता है, वह उसके अपने सम्प्रदाय और धर्म के संस्कृति-संस्कारों के अनुसार ही गढ़ता है। बिजली तो एक स्थान से ही प्रवाहित होती है। उसे सिद्ध करने के लिए बल्ब, ट्यूबलाईट इत्यादि अनेकों प्रकार के उपकरण हैं। यहाँ बिजली वही आत्मानुभूति या सत्यानुभूति या आत्मप्रकाश है तथा उपकरण उसे व्यक्त करने वाले सम्प्रदाय व धर्म के संस्कार-संस्कृति हैं।
इस प्रकार किसी भी सम्प्रदाय में कोई महापुरूष जन्म ले सकता है और ऐसा हुआ भी है। हम ऐसा कभी भी नहीं कह सकते कि महापुरूष केवल किसी एक धर्म-सम्प्रदाय में ही जन्म ले सकते हैं। हम सब किसी आवासीय कालोनी में जाते हैं तो देखते हैं कि भूमि सबकी बराबर है परन्तु सबके मकान अलग-अलग नक्शे व रंग के हैं। चाहते तो वे एक ही नक्शे व रंग के हो सकते थे परन्तु सभी अपने-अपने विशेष पहचान के लिए रंग-बिरंगे हो गये। उसमें रहने वाले भी रंग-बिरंगे हैं। लेकिन सबके घर में बिजली, पानी, हवा, प्रकाश, अन्न, फल, सब्जी सब एक जैसा ही आ रहा है। यह एक जैसा ही आत्म प्रकाश है और बाहर से दिखने वाला रंग-बिरंगा ही सम्प्रदाय है।
उपरोक्त आॅकड़ो पर विश्लेषण को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि किसकी भविष्यवाणी सत्य के अधिकतम पास थी और वे भविष्य को देखने में वे कितना सफल हुये थे।
अ. हिन्दू शास्त्र व मान्यता के अनुसार व्याख्या - हिन्दू शास्त्र व मान्यता के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - हिन्दू धर्म शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय की व्याख्या इस भाँति की गई है कि यदि वह वर्तमान में आ गया तो भी अपनी बात सही और जब तक नहीं आ रहा है, तब तक के लिए समय अवधि इतनी लम्बी है कि प्रतीक्षा तो चलती ही रहेगी। कुल मिलाकर इनका दावा सत्य ही रहेगा।
2. रूप - सभी कर्म का मूल कारण समय के साथ व्यक्ति तथा देश के ऊपर शारीरिक, आर्थिक व मानसिक क्रम से प्राथमिक होकर आता है। विचार का कोई रूप नहीं होता इसलिए हिन्दू ने अपने विचारों को जो रूप दिया है वह विल्कुल सत्य है कि वह शान्ति के सफेद घोड़े पर सवार हाथ में ज्ञान की तलवार लेकर आयेगा। ज्ञान के तलवार से मानसिक वध अर्थात पुराने मानसिकता का नये मानसिकता में परिवर्तन ही तो होगा और वह शान्ति से ही होगा। यह रूप किसी धर्म के प्रतीक के साथ नहीं है।
हिन्दू के सम्बन्ध में रमेश पारसनाथ (सिधारी, आजमगढ़, उ0प्र0) की छोटी कविता साहित्यिक मासिक पत्रिका ”हंस“ के नवम्बर, 2010 अंक के पृष्ठ-75 पर प्रकाशित हुई थी जो निम्नवत् है-
हिंदू, जिसके खसरा, खतौनी का पता नहीं,
लेकिन, दावा हरेक जगह ठोकता है
ब. बौद्ध धर्म के अनुसार व्याख्या - बौद्ध धर्म के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - बौद्ध उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय की व्याख्या अभी नहीं कर पाये हैं, अभी वे उसे खोज रहें हैं।
2. रूप - बौद्ध उस अन्तिम अवतार के स्थिति, विभिन्न गुणों और उसके आने के बाद परिणाम लाभ को खोज पाये हैं, परन्तु उसका रूप बुद्ध के रूप में ही होगा अर्थात वे अपने धर्म के पूर्वाग्रह से बाहर निकल कर मनुष्य तक नहीं आ पाये।
बौद्ध के सम्बन्ध में रमेश पारसनाथ (सिधारी, आजमगढ़, उ0प्र0) की छोटी कविता साहित्यिक मासिक पत्रिका ”हंस“ के नवम्बर, 2010 अंक के पृष्ठ-75 पर प्रकाशित हुई थी जो निम्नवत् है-
बौद्ध, फाॅसिल्स,
जिसकी खोज अभी जारी है, आमीन!!
स. यहूदी शास्त्र के अनुसार व्याख्या - यहूदी शास्त्र व मान्यता के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - यहूदी शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय को निश्चित नहीं किया गया है परन्तु केवल विश्वास किया गया है कि ऐसा समय जरूर आयेगा।
2. रूप - यहूदी शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के रूप के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है।
द. ईसाई शास्त्र के अनुसार व्याख्या - ईसाई शास्त्र व मान्यता के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - ईसाई शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय की व्याख्या इस समय हो रहे राशि परिवर्तन के समय केवल घटना घटित होने सम्बन्ध में की गई है, जो एक परिवर्तन के रूप में होगी। वह प्रलय कारक भी हो सकती है ऐसा कहा गया है। प्रलय ही है परन्तु वह मानसिक होगा, न कि शारीरिक।
2. रूप - ईसाई शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के रूप को समस्त गुणों के दृश्य प्रतीकों के साथ व्यापक रूप में दिखाया गया है। वास्तविक रूप में ऐसा जीव सम्भव नहीं है परन्तु गुण के प्रक्षेपण रूप में सत्य है।
य. इस्लाम शास्त्र के अनुसार व्याख्या - इस्लाम शास्त्र व मान्यता के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - इस्लाम शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय को निश्चित नहीं किया गया है परन्तु केवल विश्वास किया गया है कि ऐसा समय जरूर आयेगा। उस समय के लक्षण के विषय में अवश्य कहा गया है जो कुछ रूप में वर्तमान समय चल रहा है।
2. रूप - इस्लाम शास्त्र में उस अन्तिम अवतार के रूप के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है।
र. सिक्ख धर्म के अनुसार व्याख्या - सिक्ख धर्म के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - सिक्ख धर्म में उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय को निश्चित नहीं किया गया है।
2. रूप - सिक्ख धर्म में उस अन्तिम अवतार के रूप के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा गया है।
ल. मायां कैलण्डर के अनुसार व्याख्या - मायां कैलेण्डर के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - मायां कैलेण्डर के द्वारा उसके व्याख्याकारों नें उस अन्तिम अवतार के आने के सम्बन्ध में समय का निर्धारण 21 दिसम्बर, 2012 तक कर रखा है, जो सत्य रूप में है कि उस दिन से विध्वंस प्रारम्भ हो जायेगा परन्तु वह मानसिक होगा, न कि शारीरिक।
2. रूप - रूप के सम्बन्ध में अधिक कुछ नहीं कहा गया है परन्तु गुण के सम्बन्ध में कहा गया है कि 9 देवता लौटेगें अर्थात 9 देवताओं (अवतारों) की शक्ति लौटेंगी, और उसके प्रभाव के सम्बन्ध में कहा गया है जो सत्य है।
व. विभिन्न भविष्यवाणीयाँे के अनुसार व्याख्या - विभिन्न भविष्यवाणीयों के अनुसार युग परिवर्तन और उसके माध्यम अन्तिम अवतार के सम्बन्ध में समय और रूप की व्याख्या निम्नवत् है।
1. समय - विभिन्न भविष्यवक्ताओं ने वर्तमान समय को सत्य रूप में देखा है परन्तु बहुत से भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणीयाँ ऐसी भी हैं जिनका कोई आधार ही नहीं है। मेरे विचार से इस प्रकार की आधारहीन भविष्यवाणीयाँ केवल खुद को चर्चित या लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से की गई हैं।
2. रूप - विभिन्न भविष्यवक्ताओं ने उस व्यक्ति के सत्य रूप को देखकर भविष्यवाणी की और उसके कार्यो और गुणों का भी निर्धारण किया है परन्तु बहुत से भविष्यवक्ताओं ने रूप के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा हैं।