Action Plan of New Human, New India, New World based on Universal Unified Truth-Theory. According to new discovery World Standard of Human Resources series i.e. WS-0 Series like ISO-9000, ISO-14000 etc series
Thursday, April 16, 2020
भारत सरकार के विभाग के वेबसाइट
भारत सरकार के विभाग के वेबसाइट
For Full list of Government web sites: http://goidirectory.nic.in/
7 Ministry of Agriculture
8 Ministry of Chemicals & Fertilizers
11 Ministry of Commerce & Industry
32 Ministry of Micro, Small And Medium Enterprises www.trtcguwahati.org
शुरूआत
शुरूआत
हमें पूर्ण विश्वास है, निश्चित ही आप सबको ज्ञान हो चुका हैं, सारे संसार में, हम सब एक-दूसरे से हैं, एक-दूसरे के लिये हैं। सब हमारे शरीर के अंगों के समान हैं इन सब की सफाई-सुधार का पूरा ध्यान रखना है, जो गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन नियम से ही मुमकिन हैं। अक्षर ज्ञान आपको था ही और ज्ञान बढ़ाने में हमने सफल कोशिश की हैं। सारा संसार आपका हैं, सारा संसार आपके लिये हैं। आपका कहना सही हैं। आप गलती खूब करे, लेकिन बस गलती पर जुर्माना अदा करते रहें। कानून का आप ध्यान रखेंगे ही और आप जान ही गये हैं कि हर अनियमितता का सही विकल्प केवल जनता ही कर सकती हैं और अब जनता ही करेगी। अब के बाद होगी, जिन्दगी की नयी शुरूआत। अब होगी जिन्दगी की शुरूआत. . . . . . . . . . .।
जय जनता जय कानून
अब आप कहेंगे. . . . . . . .
सब कहेंगे. . . . . . . .
आप सब जरूर कहेंगे. . . . . . . .
* श्री गणेशाय नम्ः
* जय श्री राम. . . . . . . .
* बिसिमल्ला करें . . . . . . .
* अल्लाह हू अकबर. . . . . . . .
* वाहेगुरू जी का खालसा, वाहेगुरू जी की फतेह . . . . . .
* ओए चक दे फट्टे. . . . . . . .
* बी बिगनिंग
* याह. . . . . . . .
”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“।
जय जनता जय कानून
इति. . . . . . . . . . .
पूजा और इबादत
पूजा और इबादत
सृष्टि बनते ही सृष्टि के निर्माता के द्वारा प्रकृति ने या भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड ने हर जीव के दिमाग के द्वारा बड़ों की कद्र करने की आम, सोच दिमाग में पैदा की। एहसान मानना और बहुत सी अच्छाई अपने-आप बड़ंांे की कदर के बाद बनी, हर जीव हर बड़े की कदर का जज्बा रखता है। यह गुण जीव में ही नहीं निर्जीव में भी देखा, समझा जा सकता है। जैसे सूरज बड़ा है और उसके चारों तरफ छोटे ग्रह है, चक्कर काटते रहते हैं। यह चक्कर काटना भी एक किस्म से सूरज की पूजा, इबादत या कदर ही तो है।
84 लाख योनि में मनुष्य भी है और अच्छे खान-पान और लालन-पालन के कारण, बुद्धिजीवि कहलाया। जैसे-जैसे समय गुजरा और इसने प्रगति की। हर तरफ उस प्रगति, तजुर्बे को इस्तेमाल करने की व उसकी बढ़ोत्तरी के लिये हमेशा प्रयत्नशील रहा, उसे ज्यादा गहराई से बार-बार टटोला और बहुतांे ने मिलकर और सबके उत्थान के बारे में सोचकर नियम बनाये, जो समय, देश और जगह के मुताबिक, अलग-अलग महसूस होते हंै। इसमंे पूजा और इबादत भी रखी गयी है। ध्येय केवल बड़ों की इज्जत करना ही था। जिसमें हर चीज में, हर जीव में उत्थान रहे। हिन्दू धर्म सबसे पुराना है और इसमें बारीकी से रिसर्च हुई या ध्यान दिया गया, इसलिये सबसे बाद तक चलने वाला भी है। प्रत्यक्ष है, इतिहास बताता है, मनुष्य पहले-पहल एक दो ही थे, फिर बढ़ोत्तरी हुई, परिवार बना, कबीले बने। मुखिया ने अपने बच्चों को अलग-अलग उनकी समर्थता, टैलेन्ट और इच्छा के मुताबिक काम सौंपें, जो बाद में जाति के रूप में सामने आये।
बड़ों की कदर का गुण निश्चित ही, उनकी माँ के द्वारा सिखाया गया या उनकी माँ से सीखा गया होगा। इसी धर्म को निभाते हुए, यह कई भाई और हर बड़े के आर्डर में, इन्होंने अपना-अपना काम शुरू किया होगा, बाद में पहले, बड़ों की कदर की होगी, जिनमें सूरज भी, पृथ्वी व चन्द्रमा भी होंगे। क्योंकि मनुष्य ने अग्नि का इस्तेमाल, सूरज को देखकर गर्मी को महसूस करके, सालों में सीखा होगा। इसी दौरान और तजुर्बे से मनुष्य ने स्त्री, पुरूष और सब योनि में नर और मादा का ज्ञान हुआ, जैसे खुद किसी की सन्तान हैं, उसी प्रकार अपनी माँ-बाप की याद आयी होगी, जिनके आशीर्वाद से वह इतने आगे बढ़े। बड़ों को भगवान का रूप मानकर, पूजा-इबादत शुरू हुईं। मृत्यु के बाद सालों-साल मरने वाले की, गुप्त शक्ति छोटों की रक्षा करती है, साथ देती है और इसी पैथी (विधि) पर मनुष्य और अन्य जीव फायदा उठाते रहें। यह सब बड़े और छोटे, गानों में, कहानी किस्सों में, अपनों की चर्चा करते आये, जो इतिहास कहलाया।
स्त्री, पुरूष के शरीर में अन्तर देखकर, उनके गुणों में भिन्नता देखी। उसी हिसाब से उनके काम निश्चित किये गये। स्त्री, पुरूष बँधकर रहें, उनके सम्बन्ध निश्चित किये गये। बन्धन को बन्धन ना समझे जाये या यह बन्धन प्रिय लगे, इसलिये बन्धन को खूबसूरत गहनों का रूप दिया गया। पूजा-पाठ और आचरण में बाँधा गया, जिससे पुरूष से नारी और छोटे, बड़े सब एक-दूसरे से जुड़े रहें। इस पूजा इबादत को ऐसा रूप दिया गया कि जितने हमारे या जरूरत के थे, सब की पूजा या इबादत हो।
पूजा-इबादत से छोटों के व उनके लालन-पालन के रख-रखाव में भी रंग आने लगा। जैसे पेड़-पौधों में तुलसी, पीपल, दवाओं के पेड़, नदियों में गंगा, यमुना आदि, जल, वायु, पृथ्वी, सूरज, नौ ग्रह। जानवरों की सेवा और पत्थर को शिवजी का रूप मानकर पूजा-इबादत होती रही। पुरूष के काम घर से बाहर तक के, सारे भारी काम और नारी को घर के व हल्के काम दिये गये। पूजा-पाठ घर में, नारी के जिम्मेदारी में रखे गये। पूजा-पाठ करने के बड़े प्रिय तरीके बनाये गये। चार वेद और अठ्ठारह पुराणों को बनाया गया, जिसमें अलग-अलग, हर ज्ञान को तरतीब में रखकर दर्शाया गया।
आपराधिक तत्व हमेशा रहे। उस समय भी थे और इनके कारण अलगाव हुआ। अलगाव के बाद, एक पूरब की तरफ मुँह करके इबादत करता था, दूसरे ने पश्चिम की तरफ मुँह करके इबादत शुरू की। अपने से हिन्दू को अलग समझा और खुद को मुसलमान कहने लगा। अपना धर्म है, समझ कर हिन्दू से अलग आचरण करने लगे। जैसे हिन्दू साल के साल व्रत-हवन करते हंै, मुसलमान ने साल में एक बार लगातार तीस दिन व्रत के ही तरह रोजे रखने शुरू किये। हिन्दू ने सुबह-शाम दोनों के, मिलन के समय पर पूजा, इबादत करते थे। मुसलामान ने सुबह-शाम व रात में पाँच वक्त नमाज पढ़ने के नियम बनाये। हिन्दू पूजा से पहले स्नान करके, खुद को शुद्ध समझता था और पूजा, इबादत करता था, वहीं मुसलमान इबादत से पहले वजू करके खुद को पाक साफ समझकर, नमाज पढ़ने लगा। कारण अरब देशों में जहाँ मुसलमान थे, पानी की कमी के कारण या इबादत पाँच बार करने में, हर बार स्नान न हो सकने के कारण, वजू का नियम बनाया।
मतलब एक-दूसरे से अलग साबित करने की, हर कोशिश करके खुद को अलग किया। इसी प्रकार अंग्रेजांे ने मुसलमान और हिन्दू से अलग साबित करके, अलग धर्म के है, पूजा स्थल पर कैण्डिल जलाकर यीशु और गाॅड को बड़ा मानकर पूजा इबादत की। बाबा नानक के तीन सुनहरी उपदेश 1. नाम जपो, 2. किरत (श्रम) करो तथा 3. वंड छको (बाँट के खाओ) को मानने वाले सिख कहलाये। गुरू नानक द्वारा चलाये गये मिशन को पूरा करने के लिए, गुरू नानक ज्योति को दस पातशाहियों के रूप में लायें और इस काम को करने में 239 वर्षों का समय लगा। दसम पातशाही गुरू गोविन्द सिंह द्वारा, सिख को संत-सिपाही बनाकर खालसा पंथ की सृजना की गई तथा ”नानक पंथ“ को ”खालसा पंथ“ में परिवर्तित किया गया। अमृत छका कर, पाँच रहतों में बांधा गया। एक उच्च जीवन दर्शन समझाया गया, जिस पर चलकर, मनुष्य संसार में सिर उँचा कर, अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। अमृत छका कर केश, कड़ा, कंघा, कचहरा (कच्छा), कृपाण अनिवार्य किया गया। बाबा नानक का मिशन था-”घर-घर अंदर धरमसाल“ जिसे बाद में गुरूद्वारा कहा जाने लगा। सिख धर्म के बुनियादी उसूलों पर चलने वाला मनुष्य, गुरसिख कहलाया गया।
वक्त-वक्त पर मुखिया, राजा, बादशाह बने और अपने-अपने नियम व धर्म पर राज चलाया। नियम अलग-अलग रहे लेकिन ध्येय एक ही रहा, चाहे तरीके अलग-अलग रखे गये। पूजा का ध्येय केवल बड़ों की इज्जत करना, उनको याद रखना, कदर करना और शरीर ठीक रहें, ही रहा है। पूजा का ध्येय अलग समाज दर्शाना भी या अलगाव मजबूत करने के लिये भी रहा हैं। हिन्दू मूर्ति, फोटो लगाकर फूल, धूप, खुशबु, पकवान और सुन्दर कपड़े द्वारा पूजा इबादत करते थे, वहीं मुसलमान अपने तरीके से, एकान्त में चुप-चाप शान्ति से पूजा या इबादत करते रहे।
खान-पान के अन्तर और जगह के अन्तर से पूजा व नमाज के नियम व समय निश्चित किये गये। हिन्दू ने नारी को, मुसलमान ने पुरूष को पूजा इबादत के लिये वरीयता दी। पूजा इबादत के तरीके सीखाने वाले, बड़े को पण्डित, मौलवी, पादरी, ग्रंथी का नाम दिया गया। शरीर ठीक रहे इसके लिये पूजा इबादत में योग, महायज्ञ, व्रत, रोजे, नमाज में झुककर, खड़े होकर, घुटनों के बल और माथा टेक कर पूजा-इबादत के नियम बनाये और शरीर ठीक व तंदरूस्त रखा। हिन्दू में भगवान को, मुसलमान ने अल्लाह को, सिखों ने वाहेगुरू को, इसाई न गाॅड को माना इसके अलावा और सब बड़ो को, देवी-देवता, पीर-पैगम्बर आदि का नाम दिया गया या माना गया। श्रद्धा, प्यार, इज्जत बढ़ाने का तरीका पूजा इबादत ही है। हिन्दू के यहाँ पर बड़ांे की कद्र मुख्य थी।
इसलिये पीर-पैगम्बर व गुरूद्वारे में या गिरजाघर हो, हिन्दू सबकी पूजा-इबादत करते रहें। इस समय ही नहीं, शुरू में हर धर्म के लोग सब धर्म की इज्जत करते थे, बढ़ावा देते थे, मानते थे। अब भी सब एक-दूसरे के धर्म स्थल पर पूजा इबादत करते देखे जाते हैं। क्योंकि सबका ध्येय एक ही है। इसमें मुख्य ध्येय नारी-पुरूष को परिवार व समाज के लिये बाँधना, सुन्दर बनाना, अच्छा बनाना भी था, जिससे मनुष्य की नस्ल और अच्छी हो पाये।
हर समय, हर जगह, हर धर्म में, हर समाज में अच्छों के साथ बुरे लोग भी होते हैं। अब भी हैं। उन्होंने पूजा इबादत से ही फायदे उठाने के लालच में, अनेक प्रपंच शुरू किये, जो आज तक हद से बाहर जाने की स्थिति में है। कुछ लोगों की नासमझी से धर्म के नियम, तोड़ने, जैसी कोशिश से पूजा इबादत के गुणों में अन्तर भी आया है। लेकिन हिन्दू धर्म में बारीकी से, गहराई से सोचकर आसान नियम बनाये हैं। उन नियमों को सम्बन्धों में व आचरण में लाकर ज्यादा फायदा उठाया है।
जो बड़ों का आज्ञाकारी नहीं, छोटों को अच्छी तरह से पाल नहीं सकता, उसकी पूजा कभी सफल नहीं होती। वह अब भी कमजोर है और हमेशा कमजोर रहेगा।
छोटों का भगवान, उसके पास जो भी बड़ा है, जिन्दा है, वह भगवान का रूप है। जैसे पुरूष में बाप, बाबा, चाचा, ताऊ आदि और इन बड़ों के पास सब छोटे भगवान का रूप हैं, जैसे बेटा, भाई, भतीजा और सब पुरूष वर्ग। नारी में शादी से पहले पुरूष वर्ग, भगवान रूप है। जैसे बाप, बाबा, चाचा, ताऊ, भाई, भतीजा और सारे पुरूष वर्ग छोटे व बडे़। लेकिन शादी के बाद सबसे पहले उसका पति ही भगवान रूप है। इसके बाद ही उसका ससुर और सारे पुरूष वर्ग परिवार में जिसके सिर पर परिवार की पगड़ी बँधी हों, वह पूरे परिवार और जो उस परिवार में आता है, सब नारी के लिए, भगवान रूप है। पति की अनुपस्थिति में और उसका बेटा व पोता भी भगवान का रूप है, यहाँ तक उसकी गोद का पुरूष जाति भी।
पुरूष में ठहराव गुण हैं, इसलिये एक ही भगवान है, बाकी सब छोटे भगवान रूप हैं। बड़ों को भगवान मानकर औरांे की भी कदर करेगा, पालेगा, तो अतिउत्तम है। नारी का गुण चंचल है इसलिये समय-समय पर, इसका भगवान बदलता रहता है, जैसे पहले उसका बाप भगवान रूप है। शादी के बाद उसका पति भगवान रूप है, पति के बाद, बड़ा लड़का और उसके बाद उसका पोता भी भगवान रूप है। यह भगवान गोद में है, नादान है, तब भी केवल बड़े भगवान के नियम पर चलकर ही, नारी का उद्धार है और सबका उद्धार है।
पुरूष या नारी भगवान (बड़ांे) की कदर नहीं करते, उनकी आज्ञा में नहीं रहते, तो आगे के सारे नियम अपने आप टूट जाते हंै और हर व्याधा, हर बीमारी, हर परेशानी भुगतनी पड़ती है। यह आम पुरूष या नारी के लिये है, लेकिन छोटों के लिए नियम में उनके कर्म के अनुसार थोड़ा सा अन्तर है। नौकर के लिये उसका अधिकारी या मालिक उसका भगवान है। उसका मातहत, छोटे बेटे के समान भगवान हैं। उसके साथी भी भगवान जैसे ही हैं, जहाँ वह काम करता है, वह पूजा-स्थल है। नेता के लिये, सारी जनता उसका भगवान है। बड़े भगवान व छोटे भगवान हंै और नेता की हद में आने वाला स्थान पूजा-स्थल हैं, इसके अलावा और सब स्थान सब छोटे पूजा-स्थल है। आम नारी के लिये, पति का घर खासतौर से पति का कमरा बड़ा पूजा-स्थल, बाकी पूरा घर, छोटा पूजा-स्थल है और सब दूसरे स्थल केवल स्थल है। दूसरे स्थल पर कम से कम सुख है या दुःख ही दुःख है या अधूरे स्थल हैं। शादी के बाद चाहे वह उसके बाप का ही घर क्यों न हों, चाहे वहाँ सारे सुख क्यों न हों केवल स्थल ही हैं। इसके बाद या पति के बाद, बेटे का पूरा घर बेटे के कमरे को छोड़कर पूजा-स्थल है, क्योंकि बेटे की पत्नी या आपकी पुत्र वधु का, सबसे बड़ा पूजा-स्थल आपके बेटे का खास कमरा ही है।
हर बाप के लिये, पूरा घर या जहाँ वह रहे हैं, वह पूजा-स्थल ही है। हर पूजा-स्थल साफ-सुथरा रखने के लिये होता है। पूजा इबादत करने के लिये होता है। सब छोटांे के लिये होता है। सब बड़ांे के लिये है। हर बड़े, छोटे का धर्म है। साफ-सुथरा रखे। पाक-साफ विचार से बड़ों को बाप समान मानकर व छोटों को बेटा मानकर, बाप के घर का इस्तेमाल करें। बाप का घर, केवल अपनी धरोहर मानकर तो कभी नहीं।
बाप के घर में जो भी करें, सच्ची श्रद्धा से करें और बिना लालच के करें। बड़ों ने छोटों को सुख देना है, छोटों ने बड़ों को सुख देना है, सोचकर ही पूजा-स्थल की सफाई, सुधार और पूजा-स्थल में रहकर, कर्मठता से सुख देने के लिये ही इस्तेमाल करें। नारी और पुरूष के, जोडे़ रहकर, हर छोटे को बेटा मानकर भगवान का रूप मानकर, हमेशा अच्छे तरीके से पालना चाहिये खासतौर से नर जाति को यह सोचकर कि अपने बाप से ज्यादा धुरंधर बनाने और लड़की, माँ से ज्यादा देवी रूप बनाने के ध्येय से पालना चाहिये बच्चों के पैर जल्द मजबूत हों अच्छाई मंे, यह सोचकर पालना चाहिये यह बच्चे छोटे भगवान जैसी कदर के हकदार हैं और निश्चित बड़ा भगवान बनाना है, सोचकर ही पालन करें।
यह खास ड्यूटी पुरूष की पत्नी की होती है। हर पुरूष को पत्नी का ध्यान रखना चाहिए कि वह भगवान और देवी मानकर पाल रही है या नहीं, छोटी सी गलती का भी ध्यान रखें। इतिहास गवाह है, धर्मगं्रथ गवाह हैं, छोटांे को भगवान मानकर पाले गये बच्चे ही राम, कृष्ण, गुरू नानक, अब्राहिम जैसे अनेक भगवान, देवी-देवता या पीर-पैगम्बर हुए हंै, जो बड़ा मानकर ही पाले गये थे। इन्हांेने पूरे संसार की सफाई-सुधार किया, संसार चलाया और आज भी पूजे जा रहे हैं। बड़ांे की कदर करेंगे तो छोटांे को अच्छी तरह पाल पायंेगे। यही सच्ची पूजा है, यही इबादत है। हम पूजा इबादत करते हैं तो यही कहते हंै या यही माँगते हैं कि बच्चे ऐसे बने। नाम जपने का मतलब है उस जैसे गुण हमारे अन्दर आयें।
कोई बीमारी का इलाज माँगता है, कोई नौकरी लगे माँगता हैं, कोई शादी हो जाये माँगता हैं, कोई जमीन, जायदाद, धन, सम्पदा माँगता हैं और पूजा-इबादत के बाद, हरेक की हर इच्छा पूरी होती नजर आती है। जैसा पूजा करने वाला है। वैसा ही माँगता है। नारी पूजा में शादी से पहले, बाप-भाई के लिये, अपने लिये माँगती है। शादी के फौरन बाद पति के लिये माँगती है। बच्चे होने के बाद बच्चों के लिए, पोते होने के बाद पोतों के लिए माँगती है, क्योंकि नारी गुण ही चलायेमान हैै। सबूत है, इतिहास बताता है कि रावण ने भी माँगा। बाली, हनुमान सारे देवी देवता ने माँगा और उन्हें मिला। जो माँगा पूजा-इबादत के बाद मिला है, इतिहास बताता है। प्रमाण भी है। लेकिन सच्चाई खासतौर दूसरी है।
कर्म ही पूजा है, जिसने जो माँगना है, उसके मुताबिक कर्म करेगा। तब वह उपलब्धि होगी या होती है। हमने उसे तपस्या माना है, कठोर मेहनत भी तो तपस्या ही तो है और छोटांे को व भक्तों को उलझाने के लिये, पूजा इबादत की है, कह दिया।
निश्चित ही जिस प्रकार, बन्दूक-बम बनाने में, एक गँवार और एक वैज्ञानिक मेहनत करके हल्का और अच्छे के अन्तर से बना पाते हैं, इसी प्रकार राम, रावण, बाली, कृष्ण, राणा ने मेहनत से वही सब कुछ पाया, जिसे हम वरदान कहते हंै। राम ने धनुष-बाण मंे मेहनत की, तो अग्नि बाण जैसे बाण बनाये। बाली ने मेहनत की तो दुश्मन की आधी शक्ति को खींच लेने का गुण आया। कृष्ण ने, अपनी मेहनत से चक्र सुदर्शन जैसा हथियार बनाया। राणा तलवार, भाले में निपुण हुआ। पृथ्वीराज की मेहनत से, उसने शब्द भेदीबाण में निपुणता पाई। मेहनत और कर्म से ही कुछ सम्भव है। जिसने जो पाया, पहले पाने वाले की मजबूती के लिए, परवरिश करने वालो की कठोर मेहनत का भी फल है। एक, पहले बीबी पर ध्यान कम देता है, फिर यह पति-पत्नी, बच्चों पर कम ध्यान देती है या ध्यान जाता नहीं, ध्यान देते नहीं और कहते हैं, बहुत ध्यान देते हैं या बहुत मेहनत कर रहे हैं, तो यह बच्चा बनता तो है, लेकिन घटिया नौकर बनता है। परवरिश की कमी से घटिया नेता बनता है। पालन का तरीका माँ-बाप का ही है, बच्चे का दिमाग मेहनत करने की आदत भी, माँ-बाप के, उस समय के सबूत हैं, जब उसको पेट में पाल रहे थे। कभी-कभी हम उसे गुरू की देन मानते हंै, नजर भी आता है। एक अच्छा डाॅक्टर बनता है, एक केवल डाॅक्टर ही बनता है। गुरू एक ही होता है। यह सब सबूत माँ-बाप के पालन-पोषण का है। एक ज्यादा आज्ञाकारी था। वह अच्छा डाॅक्टर बना। यहाँ अच्छा आज्ञाकारी बनाना, माँ-बाप की अच्छी परवरिश का सबूत है। यहाँ सारी कमी नारी के चलायेमान गुण के कारण है और नारी छोटी होने के कारण, पुरूष के कन्ट्रोल न होने के कारण है। कन्ट्रोल न कर पाना, पुरूष का दोष है, यहाँ नारी की आजादी सबसे बड़ा नारी-दोष है। नारी का ही नहीं पुरूष के वंश तक का नुकसान है।
इसीलिये नारी को पूजा-इबादत में मशगूल रखा गया, यहाँ पर पूजा का रूप गलत ही गलत हो जाता हैं और ज्यादा नुकसानदायक साबित हुई, सबूत है। हर धर्म में बताया गया है। छोटों को बड़ों की आज्ञा में रहना चाहिये और नेताओं ने नारी-पुरूष को बराबर का बता कर, सब छोटों का नुकसान कर दिया, जो बड़ांे को भुगतना पड़ रहा है। नारी खुद को छोटा मानती ही नहीं, यह बेहद बड़ा दोष बन गया। मनुष्य के लिये, धर्म, धर्मगं्रन्थ और बड़े कहते हंै कि हर पूजा में नारी-पुरूष जोड़े में हांे, साथ हों तब ही, पूजा सफल होती है। नारी हर काम अकेले करने की कोशिश करती है या अपनी समझ से या बड़े की बिना आज्ञा के या बिना सलाह के करती है और सब गलत हो जाता है। सही वही काम होगा, जब बड़ा (पति) उसे करने की इजाजत देता है। नारी चाहे, फिर अकेेले ही करे। अपनी इच्छा से या बड़े की बिना इजाजत के, हर काम का यहाँ तक कि पूजा तक का फल विपरीत हो जाता है और पति का या मालिक का नुकसान हो जाता है। यही स्थिति नौकर, बच्चा, मशीन और पशुु के साथ है। प्रत्यक्ष नजर आता है, नुकसान सब जगह हो रहा है।
हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि गणेश की पूजा सबसे पहले हो। वरना पूजा खण्डित होती है। बेहद गहरी बात है और हर धर्म में एकदम फिट है। गणेश, शिवजी भगवान का पुत्र है। नारी गणेश की पहले पूजा न करके, उसको नजरअन्दाज कर देती है, प्रमुख रूप से उसकी पूजा या काम खण्डित हो जाता है। एक तो भगवान या बड़े की आज्ञा नहीं ली, दूसरा गणेश को नजर अन्दाज किया, तब ही तो इसका फल गलत हुआ। नारी का पुत्र ही गणेश है, जिसको प्रातः ही गाली देती है, मारती है और रोता छोड़कर मन्दिर जाती है, यह दोष हजारों गुना, तब बढ़ जाता है जब इतनी बड़ी गलती पर, उसका पति उसे कुछ नहीं कहता और देखता रहता है। यह दोष केवल नारी के मालिक, भगवान को ही भुगतना पड़ता है, पुरूष का वंश ही खराब हो जाता है। यह पुत्र सफल पुत्र नहीं बनता, बड़ा होकर कमजोर या बेकार हो जाता है और पति-पत्नी किस्मत ठोकते हंै। लड़का भी बुरा हो गया, जबकि गलती पत्नी की थी और पत्नी को गलती की सजा न देने से पति भी गलत हो गया। आप कहीं भी जाते हैं, किसी के घर, तब आप कुछ न कुछ लेकर जाते हैं क्यांेकि वहाँ कोई बच्चा हैं, आप जाते ही, उसे पुचकारते हैं, उसे खाने की चीज देते हैं, यह भी गणेश का रूप हैं, मेजबान समझ जाता है, कि आप उन सब के वफादार हैं। आपकी बड़ी खातिरदारी होती है। पुत्र (गणेश) की पूजा का बड़ा महत्व है। साउथ में तो गणेश पर्व सबसे बड़ा पर्व माना जाता हैं लेकिन मतलब खासतौर के भूल गये हैं। ज्ञानी, समझदार सब जानते हैं, पुरूष जाति से ही सब कुछ है और हर नारी-पुरूष का बेटा ही गणेश है।
ज्ञान सब को इकट्ठा करता है, सबको सिकोड़कर एक बिन्दु तक पहुँचता है, जो ठीक है। केन्द्र बिन्दु इसकी लास्ट सीमा है। केन्द्र बिन्दु तक पहुँचना मुश्किल जरुर है लेकिन नामुमकिन नहीं, इसी कारण इसमंे सच्चा सुख है, सब सुख है, सबसे ज्यादा सुख है, आखिर तक सुख है। विज्ञान में फैलाव है। किसी को भी टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटना है। बाँटने की कोई सीमा नहीं होती। आकाश की कोई सीमा हो सकती है। बाँटने की कभी कोई सीमा नहीं होती, यह काम नामुमकिन है। इसी के कारण, हर रिसर्च अधूरे रहते हैं। इसीलिये विज्ञान अध्ुारा है। इससे भौतिक सुख तो है। यह भौतिक सुख आखिर में कष्टदायक होते हंै या छुट जाते हैं। इसी को झूठा सुख कहते है, सपना कहते हैं। बुद्धि की भी कोई सीमा नहीं होती चाहे जितना बढ़ा लो।
आप खुद देखिये, आज विज्ञान के कारण कितनी उपलब्धि नजर आती है। रेल है, दूरदर्शन है, कपड़े हंै, खाना है और एक प्राणी या कुछ प्राणी, इसे रखने वाला या इस्तेमाल करने वाला गर्व महसूस करता है, सुख महसूस करता है और कुछ पल कुछ समय बाद कहता हैं, छोड़ो इसे बेकार है। एक ट्रेन में सफर करता है। खुश होता है, यही इसी टेªन मंे लाखों लोग दुःखी हैं। लेट है, तेज नहीं चलती है, बेकार है आदि-आदि। हर चीज में मोटा खर्च, मेंटिनेंस, देखभाल और हर परेशानी, अकाल मृत्यु तक है। बुढ़ापे में आकर, समझदार होने पर या ज्ञानवान होने पर बेकार है, कहना ही पड़ता है और भौतिक चीजों से या भौतिक सुख से दूर रहने की कोशिश करता है।
आज मनुष्य के अलवा, हर जीव ज्यादा सुखी है। यह ज्ञान और विज्ञान का अन्तर है। पूजा इबादत में भी ज्ञान और विज्ञान के इस्तेमाल से बेहद अन्तर आया है। ज्ञान के अनुसार, एक बड़ा है, बाकी छोटे हैं। सबकी कदर और या लालन-पालन है। विज्ञान के द्वारा फैलाव है, पण्डित, मौलवियों ने फैलाव करके सबको गड़गबड़ा दिया। भगवान राम की सीता के दो-दो रूप बता दिये। सबकी पूजा-इबादत में प्रपंच बढ़ा दिये। रामायण जैसे गं्रन्थ में रावण को दोषी बता गये। कहीं राक्षस-देवता बता गये। पूजा-पाठ का समय गड़बड़ा दिया। आश्रम जैसी जगह में, तो ज्ञान को भूलाकर, विज्ञान की पैथी (विधि) अपनाकर सब गड़बड़ कर दिया। इसी का सबूत है कि इस समय हर सरकारी प्राणी व नेता अनियमितता पार कर रहे हैं, जनता पिस रही है, हर इंसान परेशान है। इतने पण्डित, मौलवी, गुरू आश्रम होते हुए बच्चा, नौकर, पशुु, मशीन, नारी और नेता वश में नहीं है, शर्म की बात है, निश्चित शर्म की ही बात है।
बड़े-बड़े ऋषि मुनि तपस्या में लीन रहते थे। इतिहास बताता है लोगों को तजुर्बा भी है। जब चाहे बारिश, आँधी करा देते थे। इच्छापूर्ति करा देते थे, वरदान-श्राप दे देते थे। अब भी लोग करते हैं। बारिश न होने पर, व्याधा आने पर, अखण्ड पाठ, जगराते, अखण्ड रामायण से, व्याधा खत्म होने की उम्मीद करते हंैं। क्या सच है, क्या झूठ है? किसी के लिये भी बताना मुश्किल है। बस कह देते है, इनकी तपस्या सिद्धि आदि है, यह बातें सच है। इसका एक ही तरीका है, जिसने अपने शरीर को रोक कर, सही बड़ों की कदर की, छोटांे को, अपना बच्चा समझकर केवल अपनी आत्मशक्ति बढ़ाई, विल पावर बढ़ने से, सच्चाई जानने के बाद शान्त रहने पर, कुछ समय में अन्य जीव-जन्तु की तरह ज्ञान हो जाता है। गुजरे हुए बड़े अपनो की रेंज हमारा पूरा ध्यान रखती है और हमारी छठी इन्द्रिय पूरी तरह जाग्रत होती है, हमारी आकर्षण शक्ति, हर वह चीज जिसकी हम इच्छा करते हैं, वह हमारे मुताबिक हो जाती है।
तपस्या, पूजा-इबादत केवल विल पावर को बढ़ाती है या हम पूजा-इबादत करते हुए सब झंझटांे से दूर हो जाते हैं और आकर्षण शक्ति, विल पावर बढ़ जाती है। प्रमाण तो बहुत हैं जैसे तानसेन-बैजूबावरा सुरो के मास्टर थे, जिस मौसम के राग वह गाते थे, वैसा मौसम आ जाता था। बारिश करना, हवा चलना, पत्थर पिघलना अतिशयोक्ति भी थी, इन्हंे इतना ज्ञान था कि मौसम को समझकर गाना गाते थे, लोग समझते थे कि तानसेन ने वर्षा करा दी। इन्हांेने तपस्या नहीं की थी, बल्कि राग-सुर ही सीखे थे। कृष्ण में 16 कलाएँ थी। वह पूजा-इबादत से नहीं, बल्कि प्रैक्टिस और ब्रह्मचर्य पालन के कारण थी, उस सब में माँ-बाप की मेहनत का फल था। ज्ञान को बढ़ाना भी कर्म करना है, पूजा-तपस्या है, लेकिन नाम का जाप, अखण्ड पाठ, धूप-दीप जलाना, पूजा तपस्या नहीं, हिन्दू की, मुसलमान की, सिख की, इसाई की इच्छा पूरी होती है, इनमें कोई देवी-देवता का, पुजारी है, कोई मस्जिद में नमाज पढ़ता है। अलग-अलग इबादत है, और हर धर्म कहता है कि हमारी पूजा श्रेष्ठ है, फिर दूसरे सबकी इच्छा कैसे पूरी हुई? जवाब है केवल इच्छा शक्ति बढ़ाने से, पूजा-इबादत से नहीं, केवल कर्म से या ज्ञान बढ़ाने से। एक चींटी को ज्ञान हुआ कि अब मौसम बदलेगा, तब वह अपने अण्डे एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है, उसके पास मौसम विभाग की खबर नहीं है, न विज्ञान है। बस ज्ञान है, जो इसके पुरखे, हजारांे साल से सीखते आऐ और अपने छोटों को सीखाते रहे।
पूजा, इबादत सबसे, खतरनाक, प्यारा नशा है, करने वाला सोचता रहता है, मैं बेहद बड़ा धर्म कर रहा हूँ और दूसरे सब परेशान रहते हैं। हिन्दू मन्दिर में घंटे बजाते हंै, शोर मचाकर पूजा-इबादत करते हैं, मस्जिद में पाँचों वक्त की नमाज, लाउडस्पीकर पर शोर मचाकर पूरी करते हैं, गुरूद्वारें में वाहेगुरू का जाप हर तरीके से करते हैं, इसाई गिरजाघर में कैन्डिल जलाते हैं। चाहे किसी बच्चे की पढ़ाई खराब हो, चाहे किसी मरीज का, बच्चे का, नारी का, कर्मठ इंसान की नींद खराब हो, कष्ट हो, पूजा-इबादत वाले को आनन्द ही आनन्द है। कोई फिक्र नहीं, एक नारी, बच्चा, नौकर, अपनी ड्यूटी-धर्म व बड़ों की आज्ञा के बिना, तीर्थस्थल पर, व्रत रखकर पैदल यात्रा करते हंै, बड़े के सम्बन्धों को निभााते नहीं। सड़क रोककर, गली रोककर जगराते करते हंै या सड़क पर नमाज अदा करते हैं। गैर सरकारी व सरकारी प्राणी को, नाजायज परेशान करते हैं। यह पूजा-इबादत हो ही नहीं सकती, इसका फल विपरीत ही मिलता है और कष्ट, महँगाई, अनियमितताएँ बढ़ती हैं, प्रत्यक्ष हैं। धर्म करने से सम्बन्ध व खुशहाली बढ़ती है, ना कि व्याधा और अनियमितताएँ या परेशानी।
पूजा-इबादत बड़ा अच्छा कर्म व धर्म है। बड़ों की इज्जत बढ़ती है। बच्चों का अच्छी तरह लालन-पालन होता है, खुद को शान्ति-सकून मिलता है। सबको सुख मिलता है। किसी को कष्ट नहीं होता। समृद्धि होती है। हर अनियमितता खत्म होती है, गलत को सजा मिलती है, अच्छे को इनाम मिलता हैं, क्यांेकि आपने, अपनी विल पावर बढ़ाई हैं और उससे सब अच्छा ही अच्छा हुआ। हर गलत इंसान, हर गलती करता है। 24 घंटे और प्रातः ही पूजा, इबादत करता है, गलती की क्षमा माँगता है और फिर 24 घंटे हर गलती करता है। यह पूजा इबादत है ही नहीं। जानवर पक्षियों को मारता है, बलि चढ़ाता है, देवी-देवता, पीर-पैगम्बर को खुश करने की गलत कोशिश करता है, यह पूजा इबादत है ही नहीं। कथा, भागवत करता है, पत्नी, बच्चों को, परिवार, सम्बन्धियों, मिलने वालों को इकट्ठे करता है, प्रसाद, भण्डारे बाँटता है, करता है, जबकि इनमें कोई किसी का आज्ञाकारी नहीं, शुभ चिन्तक नहीं। पूजा-इबादत के बाद भी, यह सब गद्दारी करते हैं। कोई रिश्वत लेता है, ड्यूटी पर अनियमितता करता है, सम्बन्धों में गड़बड़ करता है। हर बड़े की आज्ञा का उल्लंघन करता है। नेता, जनता के साथ गद्दारी करता है, यह पूजा-इबादत है ही नहीं। इसका गलत फल 24 घंटे में, पूजा-इबादत करने वालांे को और ऐसी पूजा-इबादत मंे सम्मिलित होने वाले और सारे सहयोगी को निश्चित मिलता है, प्रत्यक्ष है।
ऐसी पूजा-इबादत करने वालों के, किसी बच्चे या संम्बन्धी की तबीयत खराब होना, कोई नुकसान होना, उसके जानवर द्वारा दूध न देना, उनकी मशीन खराब होना, कैसी भी मन में परेशानी होना, छोटांे का आज्ञा उल्लंघन करना, नारी का आजाद होना जैसे, कोई भी गलत फल के रूप में, केवल 24 घंटे में निश्चित भुगतता है, भुगतता था, भुगतता रहेगा।
हर कर्म करने वाला निश्चित समय में, उस कर्म का समापन कर देता है और आगे करना नहीं पड़ता। जैसे पढ़ाई की। इन्टर तक, बच्चों को सनद मिली, आगे पढ़ेगा तो बी. ए. कहलायेगा। इन्टर की किताबें, फिर पढ़नी नहीं पड़ती। मतलब मंजिल पर पहुँचने के लिये, जितना रास्ता तय कर दिया, दोबारा चलना नहीं पड़ता। इबादत-पूजा पूरे जन्म करते रहो, केवल एक दिन छोड़ दो, तो पूजा-इबादत करने वाला सोचता है, कहता है, अब फल गलत होंगे और वह फिर पूजा-इबादत में लग जाता है और लगा रहता है। क्योंकि हम पूजा-इबादत का मतलब या ध्येय जानते ही नहीं?
पूजा-इबादत है। बड़ों की, अच्छों की कद्र करना, छोटों का सही लालन-पालन, सबका सही इस्तेमाल करना या सब जीव-निर्जीव का सही इस्तेमाल सीखना और इस्तेमाल करना, हर अनियमितता को रोकना, गलत को अविलम्ब सजा देना, शरीर को ठीक रखना, हर आचरण ठीक करना, अच्छों का शुभचिन्तक होना, सच्चाई मानना, सच्चाई समझना-जानना ही पूजा इबादत है। माला या नाम जपना मतलब है उसके गुण हमारे अन्दर आये।
इंसान के अलावा, एक कम 84 लाख योनि है और हर योनि के असंख्य जीव हैं। सब अपनी-अपनी पैथी (विधि) से निश्चित, पूजा-इबादत करते हंै, उनमें असीम गुण आये हंै, वह बिना विज्ञान के सुखी है। प्रकृति को समझते हैं, सही जीवन चक्र चलाते हैं, उनकी उम्र आज भी उतनी है। शरीर मरते दम तक ठीक रहता है, निरोग रहता है। बड़ों की कद्र करते हैं, अपने छोटे को अच्छी तरह पालते हैं। उनकी एकता या दुश्मनी बरकरार है। सुख-दुःख में साथ होते हैं। सहनशील है, मेहनती और कर्मठ हंै। एक-दूसरे के प्रति गलत लालच नहीं है। यह है सही पूजा-इबादत और सही पूजा-इबादत का फल।
हम जीव-जन्तु, गाय, पेड़, पौधे पालते हैं। उनकी पूजा करते हैं, लेकिन खान-पान में बेकदरी कर देते हैं। जैसे गाय को तिलक लगाते हंै, हर दिन रोटी निकालते हैं, लेकिन खूंटे से बाँधकर रखते हैं और चारे का भी ध्यान नहीं, उसके बच्चे को पास बाँधते हैं और खुद दूध निकालते हैं। यह पूजा-इबादत नहीं। पूजा-इबादत किस की किस समय करनी चाहिये, यह गहरी बात है। लेकिन जो पूजा-इबादत को समझ गये हैं, वह जान गये होंगे कि किस समय और किस की, किस तरह करनी चाहिये।
पूजा-इबादत बड़ांे की कद्र, उनकी आज्ञा में रहना, छोटों को मजबूत करने के लिये पालना, गलती पर अविलम्ब सजा देकर, उन्हें दोषमुक्त करके, उसको व सबको बचाना, अच्छों को प्रोत्साहन देना है, यह सच्चाई है, जो होश सम्भालते ही बचपन से ही, हर एक को करनी चाहिये और मरते दम तक करनी चाहिये, करते भी हैं, लेकिन तोड़-तोड़ कर, कर्मठता बढ़ानी चाहिये आज करोड़ों रुपये, दिन धर्म के नाम पर जगराते, जैसे प्रोग्राम पर, आश्रमों में लाखों रुपये दिन का खाना भी खिलाया जाता है, यह सब अज्ञानता ही मानी जानी चाहिये या एक अपना, अलग समाज बनाना जैसा लगेगा। ऐसे काम करने वाले हर अनियमितता को जानकर बढ़ा रहे हंै, सबूत है हर नेता लगातार गद्दारी कर रहा है, इनके कारण, हर सरकारी प्राणी गद्दार बनता जा रहा है। नेता और सरकारी प्राणी के द्वारा, हर गैर सरकारी नारी, पुरूष, बच्चे, विद्यार्थीगण या तो पिस रहें हैं या बिगड़ रहे हैं। खुद नेता, हर सरकारी प्राणी व हर गैर सरकारी प्राणी, बेहद परेशान हैं, तो हर धर्म करना, जगराते करना, भण्डारे करना, तीर्थ स्थल पर मेहनत और पैसा खर्च करना, हर हाल में गलत है। हम सब अच्छा भूलते जा रहे हैं, छोड़ते जा रहे हैं, हर धर्म जानकर तोड़ रहे हैं और हर दिन पूजा-इबादत की कमी नहीं करते। जबकि हरेक से, हर सम्बन्ध जानकर तोड़ रहे हैं। यह ज्ञान हो ही नहीं सकता।
हम चुनाव कराते या करते हैं, शाम को रात को लोटे में नमक डालकर निर्णय करते हैं और अगले दिन वोट देकर जीता देते हैं। ऐसी युक्ति हम गलत को सजा दिलाने की कोशिश में क्यों नहीं करते? जुर्माना कराना ही तो है। अविलम्ब राजकोष में जमा हो, तो कराना हैं। जिससे हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई, हमारे विद्यार्थीगण, हर जीव व हर अच्छा प्राणी सुखी रहे। जो गलत है, वह अच्छे बनें, किसी की नौकरी नहीं छूटा रहे हैं, किसी की बेइज्जती नहीं कर रहे हैं, ऐसी पूजा-इबादत, ऐसा धर्म क्यों नहीं करते या क्यांे नहीं कराते? हम नये उम्र के बच्चे को, जिसे हर तीन घंटे में खाना चाहिए, उससे व्रत या रोजे रखवाते हैं, हर नारी व्रत, रोजे रखती और रखवाती है। लेकिन अनियमितता की शिकायत तक नहीं कर सकते या करवा नहीं सकते?
एक फौजी बार्डर पर गोली मारने और गोली खाने को तैयार रहता है। एक किसान धरती का सीना चीर कर अन्न पैदा करता है, हर कर्मचारी 60 साल मेहनत करता है, हर पूजा-पाठी, पूजा-इबादत करता है, हर नेता जनता को झूठ बोल कर चुनाव जीतता है, हर बदमाश गोली मारता और गोली खाता है, लेकिन अनियमितता को खत्म करना तो दूर, उसकी शिकायत भी नहीं कर सकता। ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम पर अमल नहीं कर सकता? ऐसा इंसान कुछ नहीं कर सकता, उसका जन्म ही बेकार है, वह धरती पर बोझ है, वह हिन्दुस्तानी या अपने देश का वासी कहलाने लायक ही नहीं या देशभक्त व देशप्रेमी नहीं, वह माटी का कर्ज नहीं उतार सकता, वह माँ के दूध की इज्जत या लाज नहीं रख सकता, वह बाप का नाम रोशन नहीं कर सकता। आप कुछ नहीं कर सकते, तो केवल इतना तो कर ही सकते हैं, किसी भी अनियमितता की शिकायत रुपये 5/-के डाक टिकट के साथ हम तक पहँुचायंे, इसमंे तीन प्राणीयों के वोटर/आधार नम्बर सहित हस्ताक्षर हों, आपकी हर समस्या पर ध्यान दिया जायेगा, उसकी आपको सूचना दी जायेगी। आप साथ दें, सहयोेग दें, हर अनियमितता का सुधार होगा, गलती करने वाला अविलम्ब गलती का जुुर्माना राजकोष में जमा करायेगा, राजकोष मजबूत होगा तो हर समस्या हल होगी।
दुनिया ऐसी बावरी, पाथर पूजन जाये,
घर का पाथर कोई न पूजे, जिसका पीसा खाये।
करत करत अभ्यास के, जड़मत होत सूजान,
आवत जावत रासरी, पाथर देह कटान।
अर्थात बार-बार मुलायम रस्सी के आने-जाने से पत्थर भी कट जाता है
पूजा-इबादत हर जीव करता था, करता है, हमेशा करता रहेगा। पूजा-इबादत सही हो, उससे नुकसान न हों और ज्यादा फायदेमन्द हो। संसार के सारे पूजा-पाठी, धर्म-स्थल वाले व आश्रम वाले या इन पर थोड़ी सी भी श्रद्धा रखने वाले, सबको निमंत्रण हैं, आपमें से कोई भी या सब मिल कर, कम से कम अपने-अपने यहाँ की, कैसी भी कोई अनियमितता या सारे संसार की हर अनियमितता दूर करके, सारे संसार को सुनहरा बनायंे, साबित करंे, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू व गाॅड सब कुछ अच्छा करता है, खुद को व सबको धन्य करे, इस बड़े धर्म के काम में हमारा साथ दे या सहयोग दे। हम सब एक-दूसरे के लिये हैं। एक-दूसरे से हैं। हम सब एक हैं। हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई ही नहीं पृथ्वी पर रहने वाले सारे धर्म व सारे मनुष्य। हमें पूजा-इबादत इस प्रकार करनी चाहिये कि मनुष्य जाति का भला हो। अच्छाई की तरफ अग्रसर हो। हर अनियमितता खत्म हो। सारे कर्मठ और समृद्ध हांे। हर जीव को कष्ट न हो या कष्ट कम हो। हर जीव इनमें, मनुष्य भी है। सबका सही इस्तेमाल हो। किसी के प्रति और किसी के द्वारा अत्याचार न हो। खासतौर से, हर मनुष्य समझदार हो और अनियमितता के प्रति भिड़ने मंे मजबूत और अग्रसर हो। सारे जगरूक हों। इसके लिये कुछ नियम बनाने हैं और सख्ती से अमल में लाने है।
राम-राम जितना कहो, कुछ भी राम न होय,
राम जैसा, जब करो, जय-जय राम की होय।
पूजा-इबादत बड़ों की कदर करना है और बड़ों की कदर तब होती हैं, जब बड़ों के बतायें हुए कर्म करें। अपने बाप के बतायें काम न करें और उससे लिपटे रहे, उसका नाम बार-बार लेते रहें, तो बाप खुश रह ही नहीं सकता और हमारी कर्मठता, बाप का नाम लेते-लेते बाधित हो जाती हैं, तब भविष्य में कैसी भी व्याधा या बीमारी घेरने लगती है और हम कहते हैं कि किस्मत खराब है, वक्त बलवान है, भगवान जैसा रखना चाहे, रहना पड़ता है। नारी, नौकर, बच्चा और नेता तो, अपने पति, मालिक, बाप और जनता को पूर्णरूप से दोष देते हैं, बुरा कहते हैं। यहाँ पण्डित, मौलवी और ज्यादा पूजा-पाठ, नमाज, हवन, मंत्रों का जाप, तीर्थयात्रा बताकर बाँधते हैं और कर्मठता से दूर कर देते हैं।
सुधार-सफाई के लिए विचार
01. हर शुभ काम में, पूजा इबादत तक में भी गणेश की पूजा सबसे पहले बताई गयी है। हमंे इसका मतलब या भावार्थ समझना चाहिये गणेश की पूजा सबसे पहले ही करें। पूजा का भाव लालन-पालन भी है। आप बाप हैं, सबके लिये या परिवार के लिये बड़े है। अपने पुत्र के लिए सबसे पहले कोशिश करें। उसकी मजबूती के लिये उसकी परवरिश और सब उसका पहले ध्यान रखें। जो आपके पुत्र पर ध्यान नहीं देता, वह आपका कुछ नहीं है। आपका नुकसान कर देगा और खुद का नुकसान करेगा, क्योंकि गणेश की पूजा नहीं कर रहा है। आपकी पत्नी भी इस बात का पूरा ध्यान रखें, वह इसलिए कि मेरे पति भगवान के पुत्र, गणेश की पूजा नहीं कर रहा है। तो वह किसी लायक नहीं, उससे बचने में ही फायदा है। चाहे वह बाप हो, ससुर भी हो, नियम सबके लिये एक ही होना चाहिये।
02. आप बड़े हैं। एक-दो पुत्र हैं। आप और बड़े बनिये, जितने आपकी नजर में, जो भी बच्चे हंै। सब नर-जाति गणेश है और नारी जाति, देवी मान लेंगे, तो आप और बड़े खुद बन जायेंगे। आपके लिये भी गणेश (पुत्र) की पूजा लाभकारी है, आपको भी करनी ही चाहिये अपने पुत्र को अपने व सब के सहयोग से सही तरीके से पालना ही गणेश की पूजा है, और नारी जाति पर सही कन्ट्रोल (सही पालन), देवी पूजा है।
03. हर धर्मग्रंथ में लिखा है। सब जानते हंै। जोड़े की ही कदर है। जोड़े के बिना पूजा-पाठ तक सफल नहीं है। इस नियम को अपनाईये, खासतौर से नारी, नौकर और बच्चा, पशुु और मशीन के साथ, शादी के बाद या पहले कोई भी नारी, अपने संरक्षक (शादी से पहले अपने पीहर का कोई पुरूष जाति) या पति के साथ हो, तो कदर कीजिये, वरना नजर अन्दाज कीजिए। खासतौर से शादी के बाद उसका पति या गणेश (पुत्र) उसके साथ हो, तो वह पूज्यनीय है अन्यथा नहीं। कोई धर्म-स्थल या आश्रम, पूजा-इबादत करने में, जो भी यह नियम अपनाता है। वह अपनाने योग्य है, अन्यथा त्याज्य है। बच्चे के साथ संरक्षक, नौकर के साथ मालिक का, नेता के साथ प्रजा का, पशुु के साथ उसका मालिक या मालिक का कोई। मशीन के साथ उसका मालिक या मालिक की इजाजत अनिवार्य है।
04. पूजा-इबादत का समय और जगह की कोई बन्दिश नहीं होती, यह सत्य हैं। कोई प्रपंच की जरूरत ही नहीं, हर जगह पूजा-इबादत के लिये सही हैं, यह बच्चे के समान हमेशा पवित्र है, मानना ही चाहिये, जैसे आपका गन्दा बच्चा भी आपको प्रिय होता है। हमेशा आपके व सबके कलेजे का टुकड़ा होता है। हर जीव का बच्चा कद्र करने लायक होता है। इसी प्रकार पूजा-इबादत है। भाषा बदलने से उसके गुणों में अन्तर नहीं आता और गलत स्थल पर गलत फलदायक नहीं होती। केवल मन और श्रद्धा की ही बात है। सारा खेल है और किसी को नुकसान देना है, यह सोच कर की गई पूजा, कई गुना सजा, पूजा करने वाले को जरूर भुगतनी पड़ती है, यह सच्चाई है। लेकिन जहाँ भी कोई धर्म-स्थल है, वहाँ सरकारी प्राणी, नेता अगर गलत है या अनियमित है, तो पूजा-इबादत से पहले इनका सुधार अतिआवश्यक है, वरना आपको व आप सबका वंश तक नाश हो सकता हैं, प्रत्यक्ष है।
05. पूजा ईबादत के लिये प्रपंच करने वालों से बचना ही श्रेयस्कर है। जो ज्यादा पैसा खर्च कराते या करते हैं, वह प्रपंच में फँसना-फँसाना है और निश्चित नुकसानदायक है, जो पैसा खर्च कराने वाले को भी बाद में ही भुगतना पड़ता है और अभी खर्च भी करता है, सही पूजा-ईबादत से भटक जाता है, अशान्ति पाता है। अपने छोटों का भी निश्चित नुकसान कर देता है।
06. इसमें गृहस्थ आश्रम सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा अच्छा है, इसे अपनाना है। हिन्दू धर्म के मुताबिक जीवन के चार आश्रम माने गये हैं। ब्रहचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम, सब आश्रम को पालन करने का समय 25 वर्ष तय किया गया है। इसमें गृहस्थ आश्रम सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा अच्छा फलदायक माना गया है। गृहस्थ आश्रम का सही पालन, सारी पूजा-ईबादत और प्रकृति का, हर नियम पूरा करता है। जो गृहस्थ आश्रम का पालन नहीं करता, वह कुछ नहीं कर सकता, मानना और समझना ही चाहिये यह नियम, हर धर्म, हर जाति, हर देशवासी के लिये है। जो अपनी-अपनी भाषा, धर्म, और धर्म-गं्रन्थ, अपने-अपने तरीके से मानते और आचरण में लाते हंै। यही सही पूजा और ईबादत है। बड़ांे की कदर करना व छोटों को अच्छी तरह मजबूती के लिये पालन ही पूजा-ईबादत है, जो केवल गृहस्थ आश्रम से सीखा व अमल करने पर ही जाना जाता है।
07. सही दान या खैरात लेना या देना, हर कर्म से कठिन है। इसका भावार्थ या ध्येय समझना जरूरी है। हम दान कर देते हैं, बेहद बड़ा धर्म मानकर इससे अनेक लगभग सब प्रकार की अनियमितता निश्चित खत्म हो जाती है। यह बेहद बड़े ज्ञान की बात हैं। अज्ञानता से किया हुआ दान, सारी सृष्टि के हर, जीव को बाधित या दूषित करती है, हर जगह अनियमितता लाती हैं। बड़े की आज्ञा या बड़े की नजर में आये बिना कोई भी दान देना एकदम गलत है, क्योंकि आपकी हर धरोहर, आपके हर छोटे की हैं। बड़ा अगर दान भी करता है, तो उसे अपने छोटों से इजाजत लेनी, अतिआवश्यक है, क्यांेकि यह दान देने वाली, हर चीज छोटों की ही है, छोटांे के इस्तेमाल की है। दान देने वाले को अपने बड़े की आज्ञा और छोटांे से सलाह लेना या बताना अतिआवश्यक है। अगर अपने छोटे या बड़े के साथ से, दान करायें, तो बेहद बड़ा धर्म है।
”इस कलयुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात एक मात्र कर्म है और दानांे में धर्म दान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्न दान। जो धर्म का ज्ञानदान करते हैं वे अनन्त जन्म और मृत्यु के प्रवाह से आत्मा की रक्षा करते है, जो विद्या दान करते हैं वे मनुष्य की आँखें खोलते, उन्हें आध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते है। दूसरे दान यहाँ तक कि प्राण दान भी उनके निकट तुच्छ है। आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार से मनुष्य जाति की सबसे अधिक सहायता की जा सकती है।“ - महर्षि मनु
”पुण्य, व्यक्तिगत कर्म के लिए सत्य पात्र को दान, दूसरांे की सेवा और देखभाल, अपने पुण्य का भाग दूसरों को देना, दूसरे द्वारा दिये गये पुण्य के भाग को स्वीकारना।“ -भगवान बुद्ध
”सावधान रहो। तुम मनुष्यों को दिखाने के लिए अपने धर्म के काम न करो, नहीं तो अपने स्वर्ग स्थित पिता से कोई फल नहीं पाओगे। इसलिए जब तू दान करे, तो अपने आगे तुरही न बजवा जैसा कपटी लोग सभाओं व गलियों में करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करंे। मंै तुमसे सच कहता हूँ कि वे अपना फल पा चुकें।“
- ईसामसीह
”यह कि तू कहे कि मैनें सर्वोच्च अल्लाह की दासता स्वीकार की है और मैं उसका ही हूँ और यह कि तू नमाज (प्रार्थना) कायम कर और जकात (दान) दे। यह कि तू भूखों को खाना खिला और तू जिन्हें जानता है और जिन्हें नहीं जानता, उन सबको सलाम कर“ - मुहम्मद पैगम्बर
”धनी व्यक्तियों को अपने धन से भगवान और भक्तों की सेवा करनी चाहिए और निर्धनों को भगवान का नाम जपते हुए उनका भजन करना चाहिए।“ - श्री माँ शारदा
”दान से बड़ा और धर्म नहीं। हाथ सदा देने के लिए ही बनाए गये थे। कुछ मत माँगों बदले में कुछ मत चाहो। तुम्हें जो देना है दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आयेगा, पर अभी उसकी बात मत सोचो। वह वर्धिक होकर, सहस्त्र गुना वर्धिक होकर वापस आयेगा, पर ध्यान उधर न जाना चाहिए। तुममंे केवल देने की शक्ति है। दे दो, बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है।“ - स्वामी विवेकानन्द
”भगवान से दान लेने वाले थक जाते हैं किन्तु उनकी उदारता अथक है। युगों से मानव, भगवान की उदारता पर पलता आ रहा है। अरे नानक, उनकी इच्छा संसार का निर्देशन करती है परन्तु फिर भी वे असक्त अथवा चिन्ता से अलिप्त रहते है।“ -गुरू नानक
दान मजबूर, गरीब, बीमार, लाचार को देना धर्म है, यही मानकर करते हैं और निश्चित ही गलत कर देते हंै। अपने पाप कम हों, हमारे दोष कम हों, यह सोचकर दान करते हंै। ध्यान दें यह सोचना या करना एकदम गलत है, कहीं गाय को रोटी देना, भिखारी को भीख देना, चींटी को जिमाना, पक्षीयांे को दाना डालना, यह सब इन जीवों को कर्मठता से दूर करता है और जिसके लिये, यह धन है, उसका नुकसान करना है। दान लेने वाला या खाने वाला, दान लेकर, हर धर्म तोड़ेगा, निश्चित है। सबूत है, मिसाल है। जिस गाय को रोटी दे रहे हंै, वह चुगने (सबसे बड़ा कर्म) क्यों जायेगी? जबकि छोटी सी, एक रोटी उसकी जाड़ में ही रह जाती है, यह रोटी आपका बच्चा, बड़ा या मेहमान खाता तो अच्छा था। गाय को चारा डालना ही फायदेमंद है। वह भी उस समय, जब उसका मालिक अगर चाहे, अगर मालिक धर्म पर चलने वाला है, तब यह गाय उसकी है। चारा आप डालेंगे, तो यह अपनी गाय की क्यों सेवा करेगा और उसका दूध वह और उसका परिवार ही क्यों पीयेगा?
यह सब लालच में आकर गाय को चारा न डालकर, कर्मठता से दूर निश्चित हो जायेंगे। इनकी देखा-देखी सारा समाज अनियमित हो सकता है और होगा। दान लेना-देना केवल मनुष्य जाति में ही है, अन्य में बिल्कुल नहीं, क्योंकि यह एकदम गलत है, इसके भाव बेहद गहरे हैं। हम चींटी को जिमाते है, जिसमें हजारों जीवों को खिलाया मानते हैं। चीटीं को चीनी, आटा डालते हैं, क्योंकि करोड़ांे का दान लगाता है, यह सोचकर। यह चींटी कुदरत, भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड की बनाई, एक जीव है। उसका दाना-खाना उसकी कर्मठता से चींटी का निश्चित है। इसकी इकट्ठा करने की प्रवृत्ति ने या कर्मठता ने अथाह व अनगिनत भण्डार भरे हैं। आपके एक दो कण आटा, एक चीनी का दाना, इसके लिये कोई मायने नहीं रखता। इसके अलावा एक-एक दाना करके, आप किलो और बोरी तक बाँट देते हंै, जो आपके गणेश जैसे बेटे, परिवार, मेहमान के काम आना था। इस चींटी को एक दाना मिलने पर, वह मेहनत क्यों करने जायेगी? यही दाना जो उसके शरीर से बड़ा है और उँचाई से उसके उपर गिरता है, चींटी को चोटिल कर सकता है, अपंग कर सकता है। उसका, उसके परिवार का नुकसान हो सकता है। उसका वंश कमजोर हो सकता है या होगा ही। यह केवल आपके चींटी जिमाने के गलत कर्म के कारण हुआ। मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर के दरवाजे पर, आप अपने घर पर, पब्लिक पैलेस पर दान करते हैं। खाना खिलाते हंै, पैसे देते या चढ़ाते हैं। इसे लेने वाला, खाने वाला, मेहनत क्यों करेगा? अपने बड़ांे की आज्ञा में रहने वाला, यहाँ क्यों आता? दान का, दूसरों का माल, खुद की मेहनत किये बिना क्यों खाता या क्यों लेता? कर्मठ प्राणी, कमजोर, लाचार, गरीब होे सकता है, लेकिन गरीब रह नहीं सकता। उस पर कोई व्याधा आ ही नहीं सकती थी। उसका परिवार, एक बड़ा समाज, उनके रिश्तेदार थे। वह सब उसके थे। उसने कुछ गलत किया तो उसके साथ कोई नहीं रहा। आप समझिये, यह खाना और धन, किसको और कितना खराब करेगा। दान या भीख लेने वाला प्राणी औरांे को उकसाकर, दूसरों को अपने जैसा बनाकर अपने और आपके, पूरे समाज को ही खराब करेगा। वह दारू भी पीयेगा, जुआ भी खेलेगा, हर ऐब भी करेगा। वह मेहनत क्यों करेगा? क्योंकि उसे बिना मेहनत के सब कुछ मिल जाता है। अपने बड़ो की छत्र-छाया या आज्ञा में क्यों रहेगा? अपने छोटों में क्यों रहेगा? अगर रहेगा भी, तो उन्हें भी अपनी लाईन पर लगाकर खराब करेगा। कोई मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर या हर धर्म स्थल नहीं दिखा सकते, जहाँं दान और खैरात के पैसे में गड़बड़ न की गई हो या इनके नाम से, हर गलती ना की गई हो। आप समझदार हैं, आप खैरात नहीं लेते क्योंकि आप खुद्दार हैं, मेहनती हंै, समझदार हंै। आपके माँ-बाप ने, बड़ों ने आपको दान देना सिखाया है, दान लेना नहीं। क्योंकि यह दान लेना गलत है, नुकसानदायक है। अगर करना है तो गलती की शिकायत करो, करोड़ांे मजलूम, मजबूर की सहायता होगी, संसार सुनहरा होगा।
उत्तम खेती, मध्यम बान, निषिध चाकरी, भीख न दान।
कभी एक दो भिखारी होते थे। अब करोड़ांे हैं, क्योंकि यह धर्म जानते ही नहीं या लालची हैं। दान लोग-बाग लालच से लेते हंै और अपना परिवार पालते हैं, मौज करते हैं कर्मठता छोड़ देते हैं तो गलत है। आप दान या खैरात न देकर उन्हें ज्ञान दें, धर्म सिखायें। उन्हें कर्मठ बनायें, काम दे, तो उनका ही नहीं सबका जीवन सफल हो जोयगा। मनुष्य जाति को सुधारना है।
मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, गिरजाघर, होने तो चाहिये लेकिन अपने भाईयों से या एक-दूसरे से अलग करने के लिये नहीं। आपका अपना घर, खुद एक धर्म-स्थल है जहाँ पाप होते ही नहीं या पाप करने वाले, पाप करने से डरते हैं। घर को छोड़कर, हर धर्म-स्थल पर पाप कर ही देते हैं या पाप हो ही जाते हैं। मनुष्य में अपराधिक तत्व हैं, जो पाप ही करते हैं। धर्म-स्थल की ओट में और धर्म-स्थल पर ही पाप करते हैं। मस्जिद, गुरुद्वारे, मन्दिर में गलत प्राणी, गलत हथियार मिलना, अवैध चीजें मिलना आदि, हर आश्रम मंे गलत हुआ, गलत होता है। भारत में, बड़े बड़े गुरूआंे के, बड़े बड़े आश्रम हैं, जहाँ लाखों का खाना हर दिन खिलाया जाता है। अपनी संगत के लोग, बेहद श्रद्धा से, छोटी से छोटी सेवा करते हैं। डाॅक्टर, वकील, लैट्रीन-बाथरूम तक साफ करते हैं। बूढ़े, बूढ़ी औरतें, टोकरी ढोती हैं, बर्तन पोछा करती हैं। वहाँ कोई पगार या दबाव नहीं होता, केवल श्रद्धा होती है। एक रुपये जैसे थोड़े से पैसांे की श्रद्धा होती है। आप सोचिए, वहाँ राजा, मुखिया, बड़ा नेता या बाप जैसा, एक केवल गुरू जी होता है, उस पर श्रद्धा है। आप उसकी आज्ञा में हैं, तब ही तो सब कुछ चल रहा है। यह आपने, अपने गृहस्थ में क्यों नहीं चलाया? गृहस्थ में आपके बड़े, आपका खून, उन गुरू जी से भी बड़ा है। यह गुरू जी धर्म जानते तक नहीं, धर्म जानते तो आपको सिखाते और इतना बड़ा आश्रम बन ही नहीं सकता था।
यह खुद कुँवारी लड़कियों के हाथों से, दूध से नहाते हैं। आपके, बाप-दादा कभी कन्या के हाथ से नहाये? गुरू जी धर्म जानते, तो अकेली नारी को गुरू मंत्र ही नहीं देते। आश्रम में आप पत्नी के साथ जाते हैं, तो वह शुरू में ही अलग-अलग कर देते हैं। क्या आप के, बड़ों ने पति-पत्नी को कभी अलग किया? किसी धर्म में, किसी धर्मग्रंथ में ऐसा लिखा है। गुरू जी, इतनी भेड़-बकरी भी पालते हैं, तो उनके दूध, ऊन और मेगनी से सारे देशवासी पलते। यहाँ खाने वाले बड़े-बड़े अधिकारी हैं, छोटे कर्मचारी हैं और नेता हैं, जो बाहर आते ही हर अनियमितता करते हैं। डाॅक्टर, जिन्दा की खाल निकालते हैं। आप क्या कर रहे हैं? थोड़ी सी मेहनत, घर में करते या थोड़ी सी श्रद्धा, गृहस्थ में रखते, तो वहाँ स्वर्ग न होता। घर में नखरे, दूसरों की सेवा यह धर्म, तो है ही नहीं इसीलिये, तो हर व्याधा, हर बीमारी आपके यहाँ है, आपके देश में है।
धर्म स्थल के मुखिया, पुलिस अदालत के चक्कर में आये और आते रहेंगे। नेता (गलत नेता) धर्मस्थल के सौजन्य से, बेहद फायदा उठाते हंैं। प्रपंच करते हैं, बेवकूफ बनाते हंै। जनता में कत्लेआम, नस्लकुशी (1984-सिख नस्लकुशी) तक कराते हैं। पण्डित, मौलवी, ग्रंथी जी, पादरी जी गलती करते हुए भी गलती मान लें, नामुमकिन है। यह गृहस्थ आश्रम तक को दूषित कर देते है। सही धर्म जानते, तो सही धर्म करते और सिखाते, तो आज हर जगह, हर अनियमितता होती ही नहीं। सरकारी प्राणी और गैर सरकारी प्राणीे नेता व देश का भविष्य विद्यार्थीगण अनियमित हो रहे हैं। यह सब बचना चाहते हैं, लेकिन बच ही नहीं पा रहे हंै। यह सब मजबूर, कमजोर और खत्म हो रहे हैं, अत्याचार कर रहे हैं, अत्याचार देख रहे हैं और अत्याचार सह रहे हैं। सबकी व देश की इज्जत नारी का बेहद बुरा हाल है।
हमारी देवियाँ मन्दिर में जाती हैं, गुरूद्वारे में जाती हैं, पूजा-इबादत करने, प्रातः ही नहाना, सिर धोना, बाल खुले हैं। इस उम्र में रंग रूप पूरा होता है। मन्दिर में जाकर जल चढ़ाती हैं। वहाँ अन्य पुरूष वर्ग भी हंै। शिवजी को स्नान कराती हैं। मन्दिर के फेरे लगाती हैं। जल चढ़ाते हुए, शरीर का ज्ञान तक नहीं रहता। दूसरों से सम्पर्क होता है। मन्दिर छोटा सा ही होता है, जो शरीर पति के लिए था, वह गैरों के सम्पर्क में आता है। वहाँ शरीर का तो ज्ञान ही नहीं रहता। यह नारी या लड़की, अपने पुत्र, पति, बाप, भाई को छोड़कर, घर से आयी है भगवान को खुश करने। भगवान इतना बेवकुफ है कि खुश हो जायेगा। सिर पर पल्ला नहीं, शरीर का ज्ञान नहीं। जिनसे नाता है, सम्बन्ध है, उनका साथ नहीं, आज्ञा तक नहीं और शिवजी जैसे, कठोर नियम के पक्के भगवान को, खुश करने चली है। यह पूजा श्रद्धा कई-कई साल से है, बल्कि कोई तो 70, 80 साल से नारी कर रही है। वह धर्म के मुखिया पति बेटे की, इज्जत न करके भगवान को खुश कर लेगी? नारी के साथ पति है, बच्चा है। कभी-कभी सास या परिवार की नारी भी होती है कोइ साथ नहीं। ऐसी नारी, नेता, नौकर व बच्चें और उनका परिवार हमेशा परेशान रहते हैं।
गुरूद्वारे के दरवाजे तक सिर खुला रहता है। गेट आते ही चुन्नी सिर पर आ जाती है। जैसे पति, सुसर या बाप, बड़े भाई के सामने पहुँचने पर होना चाहिये और गुरूद्वारे से बाहर निकलते ही, फिर सिर से चुन्नी या पर्दा उतर जाता है, अपने आप सरक जाता है। भगवान क्या बच्चा है, जो समझेगा नहीं और ऐसी नारी से प्रसन्न हो जायेगा, जो बाप भाई के सामने सही आचरण नहीं करती।
माथे तिलकु हथि माला बानाँ, लेगन रामु खिलउुना जानाँ।
(शब्द भक्त कबीर जी, गुरू ग्रंथ साहिब, पृष्ठ-1158)
हम जगराते करवाते हैं, 20 हजार से, लेकर लाखों खर्च करते हैं, बाहर का एक पुजारी मोटे पैसे लेकर ही, यह सब करता है और हमारी बहू-बेटी पत्नी को बरगला देता है। अधिकतर नई उम्र वाले बच्चों की अनियमिततायें बढ़ जाती हैं। हमारी पूरी नारी जाति हमारी बात भी सुनने में, तौहिन समझती है। लेकिन जगराते में, गैर के कहने से, हाथ उपर करो, ताली बजाओ, डांस करो, जोर से बोलो, सारे प्रपंच करती है। जगराता अधिकतर सड़क, गली रोक कर करते हैं। जहाँ 70 प्रतिशत लोग निश्चित जगराते वालों को बुरा कह कर, उनके लिए अपशब्द कहकर गुजरते हैं। आप खुद अवरोध भुगत कर, उसके लिए, ये गाली सोचते हुए मुड़ते हैं। यह सब क्या है? खेड़े पर नारी का नाचना, धर्म स्थल पर पूजा-इबादत हो ही नहीं सकती। जाहरवीर की पूजा में भागड़ा, डांस या देवी-देवता के सामने करती है या समाज में अभद्रता फैलाती है। खुद नारी जाति की बेइज्जती करती है। मनुष्य जाति की दुर्गती करती है। बड़ों की बेइज्जती करती है। भगवान, देवी-देवता, इतने बेवकुफ हो ही नहीं सकते कि ऐसी नारी से वह खुश हो जायें। खुश होता है, बेवकुफ इंसान, अज्ञानी लडका-लड़की, माँ-बाप, सारे अज्ञानी बड़े और बढ़ाती है, अनियमितता, अभद्रता, हर व्याधा, हर बीमारी, हर कमजोरी और खत्म होती है, समृद्धता, शर्म, इज्जत, और पूरी मनुष्य जाति। अगर मुसलमान धर्म, नारी को मस्जिद में नमाज पढ़ने की छूट दे देता, तो अनर्थ ही हो जाता। पूजा-इबादत केवल बड़ांे की कद्र, बड़ों के व धर्मग्रंथों के बनाये नियमों पर व गहराई से उनका सार समझकर, करने से ही पूरी होती है। अभद्रता से, तो कभी नहीं। मन्दिर में नारी जाति, हनुमान की पूजा गलत तरीके से करती है, नारी को हनुमान जैसे ब्रह्मचारी की जांघ पर या पैर पर हाथ लगाकर सिन्दुर का तिलक, अपने माथे पर लगाना, वह भी कुँआरी कन्या का, सारे धर्म तोड़ना है, यह माथा उसके पति के नाम की बिन्दी लगाने के लिये था।
धर्मग्रंथ व ज्ञान के द्वारा नारी का शरीर उसके पति का होता है और हनुमान की पूजा, तो नारी के लिए अवैध मानी जाती है। खासतौर से हनुमान का शरीर छू कर। लेकिन न पुजारी रोकता है, न बड़े ज्ञान देते हैं। ऐसे गलत कर्म मनुष्य जाति को खत्म करने के बराबर हैं। मुर्दाघाट जैसी जगह पर हिन्दू धर्म के मुताबिक, अशुद्धता होती है। वहाँ पर खाना-पीना, अवैध होता है। नारी जाति का वहाँ पर पहुँचना, अवैध होता है। नारी जाति के द्वारा वहाँ कोई कार्य करना, अवैध होता है। लेकिन एक लड़की ने, अपने बाप को अग्नि दी और बजाय रोकने के अखबार वालांे ने वाह-वाह की। जैसे मरने वाले का वंश ही खत्म हो गया था, सारा पुरूष वर्ग ही नहीं रहा, यह सबूत है। आज मुर्दाघाट पर भण्डारे होते हैं, नारी भी जाती है, जो निषेध है, अवैध है।
सारी मनुष्य जाति को ऐसी अज्ञानता या अनियमितता को और अभ्रदता को रोकना ही चाहिए। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई सदाबहार हैं और ज्ञान ही ज्ञान का भण्डार निश्चित है। नेताओं के कारण, अनियमितता बेहद बढ़ी है। अब माँ का नाम स्कूल की सनद तक में है, राशन कार्ड, नारी के नाम से बना कर नारी के पति (भगवान) की इज्जत कम की गई और भारतीय नारी ने कभी गुरेज नहीं किया, यह या तो भारतीय नारी नहीं या नारी के नाम पर कलंक है। पाठकगण बुरा न मानें, कठोर सच्चाई है। ऐसी नारी पतिव्रता होती ही नहीं, अद्र्धांगिनी नहीं हो सकती, याद रखें। हम मनुष्य नस्ल जितनी गिरेगी, या बच्चा, नौकर, नारी जितने अनियमित होंगे, 5 साल कार्यकाल वाले या अनियमितता करने वालों का उतना ही ज्यादा फायदा होगा। बात अच्छी है, लेकिन बाप की कद्र कम करके, तो कभी नहीं। लेकिन ऐसा हो रहा है। नोट और वोट के चक्कर में नारी-पुरूष बराबर कहे जाते हैं, लेकिन नारी-पुरूष बराबर हो ही नहीं सकते, हाँ पुरूष जरूर नारी को अपने बराबर बनाता है, जब वह नये प्राणी की रचना करता है। केवल उसी की ताकत और हिम्मत है कि वह, बड़ा या बराबर का बना सकता है, दूसरे ही पल नारी अपनी सही स्थिति में आ जाती है, यहाँ पर नारी पति को असीम सुख देने के लिये बराबर का बनती हैं और एहसानमन्द होती हैं, समझदार नारी जानती हैं कि नारी का सुख, इज्जत, बड़प्पन, केवल पुरूष से छोटा बनकर रहने में ही है, यही सच्चाई है।
लड़का या लड़की निश्चित ही शुरू में मात्र जीव ही हैं। इनमें निश्चित देवता और देवी वास करते हैं। मात्र शरीर में वह अलग-अलग हैं, हमें उजागर करना है। अपने उपर कठोर संयम, नियम, धर्म, कानून में रहकर, इन्हें पालना पड़ता है, जो बेहद आसान हैं और पालना भी बेहद आसान है। जैसे दिन वर्जिश करने वाला, दो कुन्टल का वजन आसानी से उठा लेता है। हर लड़की नाचना चाहती है, यह कुदरती देन है। हर नारी जरूर नाचेगी, लेकिन लड़की, केवल एक के आगे नाचना चाहती है और हम उसे सबके सामने नचा रहे हैं, वह नाचना चाहती है, एक के आगे कुदरती, उसे वंश चलाना है। वह, उसे पूर्ण रूप से खुश करना चाहती है। पूरी तरह अर्पण होना चाहती है और हम सड़कों पर, मन्दिरों में, धर्म स्थल पर बाजार में, गुरू जी के सामने नचा देते हैं। बल्कि मजबूर कर देते हैं। नंगा करके नचा देते हैं। आप देख रहे हैं, हम ही तो उसे पहनना, खाना, नाचना, सिखा रहे हैं। निश्चित है, जानते हैं वह नाचेगी। नाचने में शरीर तक का ज्ञान नहीं रहता, लेकिन हमारी गोद में, पली है। कपड़े हमने दिये हैं, पसन्द हमारी है। मेकअप की इजाजत दी है, सिखाया भी है। वह नाचना भी चाहती है, लेकिन एक के सामने। कोई नारी बताये, वह दो के आगे नाचना चाहती है? निश्चित तवायफ भी मना कर देगी। इस तबायफ पर भी शुरू में पैसा, जेवर का लालच भी, नचाने के लिये बेअसर थे। आज वह पैसे-पैसे के लिए नाचती है। हमने ही तो मजबूर किया था, लेकिन वह एक के सामने ही नाचना चाहती है। जरूर नाचेगी। परन्तु हमने, सबके सामने, नाचने के लिए, शिक्षा दी, छूट दी, मजबूर किया। लड़का तक नाचना नहीं चाहता, वह भी, एक अपनी प्रिय या पत्नी के आगे ही नंगा होना चाहता है। लेकिन वह बड़ा है और बड़ा सब कुछ कर सकता है, यह जायज हो सकता है।
वह नारी किस्मत वाली है, जिनके पति को कोई और भी चाहता है। एक माँ के अपने बेटे को, ज्यादा प्यार करने वाले हैं, तो वह गर्व करती है। लेकिन नारी, लालचवश अपने पति के साथ, दूसरी नारी को पसन्द ही नहीं करती। चाहे वह उसकी माँ ही क्यों न हो। यह प्राकृतिक या नारी सुलभ गुण है। इसी नारी को, हमें पूरी तरह, सही छत्रछाया देनी है। जिससे मनुष्य जाति और अच्छी या अच्छी से अच्छी बने। नारी को ही नहीं, बच्चा, नौकर, नेता, जानवर और मशीन सबकी पूरी तरह से देखभाल करनी है, सही चलाना है। गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन नियम पर अमल करके, खरा सोने जैसा बनाना है। यही पूजा-इबादत है, हवन, यज्ञ, व्रत, रोजे, तीर्थ करना, हज करना है, दिवाली-ईद मनाना है। बड़ा दिन (क्रिसमस) मनाना है, गुरूद्वारे जाना, भण्डारे करना है, गुरूपर्व मनाना है, सबका जन्मदिन मनाना है। सब गुजरे हुओं को, श्रद्धांजलि देना है।
यह लड़की पराया धन है, इसे किसी दूसरे खानदान का वंश चलाना है, महापुरूष और महादेवी को जन्म देना है। इसे हम खिलौना बना रहे हैं। वह भी घिनौना खिलौना। खिलौना ही तो है। जींस, पैण्ट पहना कर स्कूल, मन्दिर में भेजते हैं। आजादी मोबाइल, गाड़ी भी दे दी। क्या आप अपनी बीवी और माँ को भी जींस दे देंगे? अरे मेरे प्रिय भाई, लड़की नारी को, उसके सही पहनावे में देखो, तो मन बाग-बाग हो जाता है। लड़की या नारी हमेशा जोड़े में अच्छी लगती है, शुभ है, धर्म ग्रंथ कहते हैं। आपका सच्चा ज्ञान कहता है। बच्चा, नौकर, पशुु, नेता, नारी और मशीन को जरा सी छूट दी या छूट मिली और नुकसान हुआ, पूरी जिन्दगी पछताना ही पड़ेगा। वंश, समाज, देश, धर्म सब खत्म ही होगा। इसीलिए खासतौर से नारी, जोड़े में और हसीन बंधन में ही अच्छी है, शुभ है। नारी को इज्जत देनी है, आजादी नहीं। बच्चा, नौकर, पशुु, नेता, मशीन और नारी, यह सब इज्जत के लायक हैं। लेकिन आजादी तो, एक पल की भी नहीं।
यह सब केवल, धर्म के ठेकेदार, नारी की अज्ञानता और आजादी का नतीजा है। हम एक अबला नारी, एक बच्चा, नौकर, नेता पर कन्ट्रोल नहीं कर सकते जबकि हमारे पास गृहस्थ व सारा समाज, कानून, पैसा सब है, लेकिन ज्ञान नहीं है, कर्मठता नहीं है। गृहस्थ या घर मंे ही नहीं कर सकते, तो धर्म-स्थल पर, दान से, पूजा या ईबादत से, कैसे कर पायेंगे? मनुष्य तो है, लेकिन हम तो, जीव-जन्तुओं को भी खराब कर रहेें हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम पूरा नहीं कर पाये, तो गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम भी, पूरा कैसे कर पायेंगे? कर पायेंगे कैसे, ऐसे जैसे हो रहा हैं, कर रहे हैं।
राम-राम जपता रहे, कुछ भी राम न होय,
राम जैसा जो करे, जय-जय राम की होय।
राम बड़ा है, वो बड़ा, जो दे मजबूती यार,
छोटों को दे बड़कपन, बड़ांे को इज्जत यार।
कर पायें उद्धार कर, आना पड़ेगा पास,
(सबके उद्धार के लिये)
तेरी गति गारण्टी है, अपना तो हैं राम।
चन्दन है क्यों कर भला, जिस पर लिपटे नाग,
पास भी जा ना पाउँ कभी, क्या चन्दन क्या बास।
न नाम लें, ना याद कर, दिल में रख लेें गाँठ,
कर्म ही तेरे काम के, या छाया बलवान।
राम-राम करता रहा, ना दुश्मन पर ध्यान।
तू कुछ भी, न कर पायेगा, बिना कर्म मेरे यार।
ज्ञान-दान सबसे बड़ा, कर्मठ देह बनाये,
रोग, गरीबी, व्याधा हरे, सुनहरा बन जाये संसार।
धर्म-स्थल होने ही चाहिये, हर धर्म-स्थल, हर जगह हैं। सब धर्म-स्थल सबकेे लिये हैं और सबके लिये रहेंगे। लेकिन उपर वाले के, आप कर्मठ बच्चे हैं। हिन्दू, मुसलमान, सिख और इसाई सब धर्माे के लोग। हर धर्म-स्थल की, सब भाई रक्षा करें, मिलकर रक्षा करें। आपको उपर वाले ने रक्षा करने के लिये, पूरी तरह सक्षम बनाया है। इसी प्रकार किसी को भी गलती पर मिलकर, अविलम्ब सजा देना भी सिखाया है। इसमें आप पास क्यों नहीं होते? आप चारो के धर्म स्थल पर कोई अभद्रता या अशुद्धता फैलाता है तो आप बिलकुल विचलित न हों, आपके किसी साथी को फोड़कर उससे करवाया हो सकता है। इस काम में नेता सर्वोपरि हैं। इन्हें जीतने मत दिजिये, याद रखें। हर धर्म के धर्मस्थल आपके पाप से अपवित्र होता है। दूसरा या दुश्मन नापाक कर ही नहीं सकता। धर्मस्थल या घर बचाना है, नस्ल बचानी है तो 5 साल वालों से बचो या इनको बाँधें, नकेल बनाओ, कन्ट्रोल करो, फिर सब कुछ बचेगा। नारी, नौकर, बच्चा, धर्म और देश बचेगा। फिर होगा सुनहरा संसार।
इसी कमी के कारण, हर धर्म-स्थल दूषित है। यही दूषित धर्म, सबको दूषित या अनियमित करने का सबसे बड़ा जरिया है। धर्म-स्थल में कुदरत के खास नियम का कठोरता से पालन कीजिए। सफाई व सुधार रखिये, झाडू, धोने से लेकर, यहाँ पहुँचने वाले की गलती तक का सुधार करके रखियें, यह कानून के मन्दिर (अदालत) के समान है और उपर वाले की इच्छा है कि आप जज बनें। जनता सजा देने वाली, आपके हुक्म का या आज्ञा का इन्तजार कर रही है। हम पाँच वक्त की नमाज अदा करते हैं, वजू करते हंै, पाक होते हैं। नमाज में अरबी भाषा में मंत्रोच्चारण करते हैं। यह अपनी भाषा में भी करें, तो पूरे फालदायक निश्चित है। नमाज अदा करते समय झुकना, उठना, माथा रगड़ना पड़ता है। यह शरीर को मजबूत निश्चित बनाता है।
हमारा खाना-पीना भी ऐसा ही है। आकर्षण शक्ति, स्टेमिना बनाता है। पाँच वक्त की नमाज हमंे कर्मठ बनाती है, लेकिन सुबह ही नमाज के बाद अधिकतर, हम नींद लेते हैं और नमाज का फल विपरीत हो जाता है। रोजे रखना पूरे साल की पिछली और भविष्य के पूरे साल निरोग रहना या हर बीमारी खत्म करना है। ज्यादा कर्मठ बनना है। इबादत का मतलब या भाव समझना बेहद जरूरी है वरना फल विपरीत हो जाता है, जो कि हो रहा है और सब भुगत रहे हैं।
हलाल करके खाने का मतलब भी अलग है। ईद का मतलब है, अपने बड़े की इज्जत करना, इबादत करना है। अपने बच्चे के समान पाला हुआ, बकरा हलाल करते हंै, मतलब हम अपनी औलाद भी कुरबान कर देते हैं। हलाल का मतलब खाने का हक अदा करना है। ना कि कलमा पढ़ कर धीरे-धीरे काटना। लेकिन एक पूरा समाज, इस पैथी (विधि) को सदियों से कर रहा है। सही माना जा सकता है। लेकिन सबूत है, पूरी जमीन जन्नत से दोजख बन चुकी है। हर इंसान अनियमितता की तरफ बढ़ा है। यह आंकड़ें इतिहास के अनुसार केवल हजारों साल पहले के ही हैं। क्या सही इबादत करने के बाद फल इतने विपरीत हो सकते हैं? सुधार के ध्येय से शिकायत करें। इन्टरनेट का इस्तेमाल करें। देश हजारों साल पहले जैसा पाक-साफ होगा।
आज हमारे मुसलमान भाई झाड़-फूँक से मोटा पैसा कमा रहे हैं। सब जानते हैं। झाड-़फूँक और पैसे का बैर है। पैसा लेने वाला झाड़-फूँक कर ही नहीं सकता, यह नाजायज है। ईद पर हलाल करना सही है। यह बड़ांे के प्रति सम्मान दिखाना ही है। ध्येय यह है कि बड़ों की इज्जत के लिये, हम अपनी औलाद को भी तड़पा कर मार सकते हंै। वैसे तड़पाना किसी धर्म में ठीक नहीं है, लेकिन शिकार करना, जीव को मारना केवल पेट की भूख के लिये, हर धर्म में जायज हो सकता है। हर जीव एक-दूसरे के द्वारा ही जिन्दा हैं। पेट की आग शान्त करते हैं। पूरा ब्रह्माण्ड चलाना है, लेकिन तड़पाना गलत है। भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड का नियम है। अगर यह गलत होता, तो हर जीव दूसरे जीव को क्यांे खाता? यह सब नियम रब के हैं। गलत हो ही नहीं सकते। लेकिन मनुष्य बुद्धिजीवि है और अच्छे को और अच्छा बनाता है। दूसरा मनुष्य, मनुष्य की कदर करता है और खुद को या मनुष्य को काटकर खाने से मनुष्य जाति की बेइज्जती है। मनुष्य बुद्धिजीवी और सर्वोपरि है।
इससे यह भी साबित होता है कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई, एक ही बाप की औलाद हैं और किसी कारणवश ही अलग हुए हैं। हज करना मुसलमान का सबसे बड़ा धर्म है और बच्चे सुखी हों, परिवार खुश हो, पड़ोसी खुश हों, जहाँ हम रहते हैं, हर इंसान हर अनियमितता से बचा रहे। यह भी हज करने जैसा सबाब है या सीधा हज करना है। आपका घर, आपका शहर, आपका देश मक्का मदीना ही, तो है आपकी कर्मठता इसे मक्का मदीना बना भी तो सकती है। कहीं भी जाने की जरूरत ही कहाँ है। केवल लोटे में नमक डालकर शिकायत करने व सुधार करने का बीड़ा ही तो उठाना है। रब की बनाई पूरी कायनात की सफाई ही तो करनी है। उपर वाला सजा देता है, लेकिन मारता कभी नहीं। जीव मरता है अपनी और अपनों की गलती के कारण। भारत का हर गाँव, हर शहर, हर चार घर, सब व सब के घर धर्मस्थल हैं, पूजा-इबादत की जगह है। इसे गन्दा न करें, गन्दा न होने दें, यह शोर-शराबे की पूजा-इबादत से या 5 साल कार्यकाल वालों से ही नापाक हो सकता हैै। माइक, लाउडस्पीकर का साथ छोड़िये, नेताओं का साथ छोड़िये, सब तीर्थ, मक्का-मदीना, गुरूद्वारा, गिरजाघर सदा बहार होंगे, ईद, दिवाली, गुरूपर्व, क्रिसमस दिन मनेंगे, सही ज्ञानवान कहलायेंगे। अच्छे अब सुखी न हो या गलत को सजा न दें पाये, तो धर्म स्थल की जरूरत ही कहाँ है, चारो भाई मिलकर खुशी-गम बाँट न पायें, जहाँ गधे पंजीरी खा रहें हों, वह जगह न होना ही बेहतर है। खुद्दार इंसान तो गलत का चुल्हा भी फोड़ देता है। गलत वह है जो किसी भी धर्म में अनियमितता फैला रहा हो, चाहे लाउडस्पीकर से शोर-शराबा, सड़क अवरोध हो, 5 साल कार्यकाल वालों से तो कर्मठता भंग होना या अनियमित कर्मचारी, अधिकारी, बेटा हो या प्रिय पत्नी।
आप भी गलती पर, केवल धन में जुर्माने की सजा दें, न की मारने की। आप खुद भगवान का रूप हैं। जीव बनाते हैं, बचाने की, हर सम्भव कोशिश करते हैं। मारते तो कभी नहीं। इतिहास गवाह है, जीव बचाने में, बचाने वालों की जानें तक गई हैं। ”घर का सुधार = गलती पर अविलम्ब सजा मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम पर अमल करें। सच्ची पूजा-इबादत होगी। हज करना और चारों धाम घूमना होगा। हर धर्म-स्थल, हर एक के बड़े का घर होता हैं और हर बड़े के घर की, सुधार-सफाई करना, हर छोटे का सबसे बड़ा धर्म है। इसे कठोरता से अमल करना ही चाहिये हमारी सारी पृथ्वी धर्म-स्थल है। हम सबको मिलकर सफाई-सुधार करना, हमारा सबसे बड़ा धर्म निभाना हैं, रब को खुश करना है। सारे तीर्थ करना है, रहने वाली जगह को तीर्थ बनाना है।
08. कानून का हमेशा ध्यान रखें, वह न टूटे लेकिन कानून का इंतजार अल्टीमेटम देकर, कम करायें। आपके प्रार्थना पत्र पर, कानून निश्चित समय में फैसला नहीं करता, तो वह जनता के, अपने विभाग के, देश क्या सारी सृष्टि के, वह और उसके कर्मचारी व अधिकारी दोषी है। निश्चित सजा के अधिकारी हंै। उनका मातहत उनका साथी, उनका अधिकारी निश्चित दोषी है। हर काम से पहले उनको दण्डित कराना, सबका सुधार-सफाई करना है। खाने से भी पहले यह काम करें, हर काम से पहले, उनको दण्डित कराना, सबका सुधार-सफाई करना है। याद रखें कानून आपके लिये है। आप कानून के लिये कभी नहीं। यह सबसे बड़ी, पूजा-इबादत होगी, जिसका फल सब पूजा-इबादत से बड़ा होगा। आने वाले समय में, हर छोटे को हर सुख मिलेगा। निश्चित ही खुदा ने, इंसान को अपनी इबादत के लिये चुना है, लेकिन खुदा की बनाई पूरी कायनात की सफाई-सुधार करना ही, तो खुदा की ईबादत करना है, खुदा की सच्ची ईबादत करना है। 5 वक्त की नवाज पढ़ना, हज करना, केवल अपना शरीर ठीक रखना और समाज को बाँधना या सुधारना ही ईबादत का एक हिस्सा है, अपने आपको गृहस्थ और अच्छे समाज के लायक बनाना है।
09. हर यूनिटी, हर आश्रम अच्छा है। अगर वह अत्याचार से भिड़ने की इच्छा करे। वहाँ से बाहर निकलकर, वैसे ही आचरण, आपने छोटे-बड़ों के साथ भी करें। हर जगह पर पैसे वाले को ही वरीयता दी जाती है, वह सब जगह गलत हैं। केवल पिक्चर ग्रुप ही ऐसा ग्रुप है। जो पूजा-इबादत को लगभग सही रूप में दिखाने की कोशिश करती है, क्योंकि पूरा इतिहास देखकर, समझकर ज्यादा मेहनत करके, किताबें देखकर दूर-दूर तक जाकर तजुर्बे करके दिखाते हैं। मोटा खर्च करते हैं, किसी दूसरे धर्म की बुराई या तौहिन नहीं करते, गाने कव्वाली, पहनावे तक में सच्चाई दिखाते हैं। उसको देखना समझना ही ठीक है। वैसे ध्येय पैसा कमाना भी है और जितने टी. वी. सीरियल, कैसिट, सी. डी. लोक संगीत नाटक आदि हैं, हर जगह त्रुटिपूर्ण है। पैसा कमाना है प्रपंच करना, बेवकुफ बनाना हैं। हर धर्म-स्थल, आश्रम में केवल एक यूनिट बनाना है। हर धर्म तोड़ना है। हर ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, सन्यास आश्रम की गलत सीख (अज्ञानी लोगों के ज्ञान से सिखकर) अपना मतलब हल करना है। हर धर्म-स्थल पर बड़े-बड़े सक्षम इंसान भी लैट्रीन बाथरूम साफ करते देखे जाते हैं। नारी तो मिट्टी ढोती है और बुढ़िया मेहनत तक करती देखी जाती है। अधिकतर पढ़े लिखे डाॅक्टर इंजीनियर, बड़े अधिकारी तक मेहनत करते हैं और आश्रम से बाहर निकलते ही हर अनियमितता शुरू कर देते हंै। अधिकतर बूढ़े जो अपने बच्चों, बड़ों को कोसते और बुरा कहते रहते है, बाहर आकर, केवल हर गलत काम ही करते हैं। जब हम बाप, बेटे, चाचा, ताऊ, पति-पत्नी और सब सम्बन्धियों से, अपने विभाग, साथी, जनता, देशवासी, सबसे सही तरीके से सम्बन्ध नहीं निभा सकते, तो भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड से कैसा भी सम्बन्ध निभा ही नहीं सकते।
हमारे जितने देवी-देवता, पीर-पैगम्बर हैं, सबने जरूरत पर, हर अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की है, गलती पर सजा दी है। माफी माँगने पर माफ किया है। हम सब उनकी नकल भी नहीं कर सकते, तो ज्ञान कहाँ है, पूजा-इबादत कहाँ है? रब ने हमंे, अपनी सब खूबियाँ दी हैं। सारी इन्द्रियाँ दी हैं, दिमाग जैसी अनमोल चीज दी है, सारी कायनात दी है, सारे सम्बन्धी दिये हैं। उनका सच्चाई से इस्तेमाल करना है, सुधार करना है, निभाना है।
सेक्स दिया है अपना वंश चलाने के लिये। वंश पति-पत्नी से चलता है। पति-पत्नी के सम्बन्ध बनाये फिर सेक्स, बच्चे पैदा करने के लिये है। हाथ, आँख, पैर गलती न करे। गलती न करने दें। हमारे सारे सरकारी प्राणी और सारे नेता व गैर सरकारी प्राणी शरीर के अंगों के समान हैं। अकर्मठता के, अत्याचार के खिलाफ और हर अनियमितता के खिलाफ क्यों नहीं लड़ते?
हर परिवार में लड़की पैदा होते ही गम सा छा जाता है और लड़की के होश सम्भालते ही, सबका ध्यान उसकी तरफ होता है, बेटी है, देवी है, पराया धन है, हर छूट, हर काम, हर पढ़ाई, हर प्यार, खासतौर से नारी और लगभग हर पुरूष ऐसा ही करते है। चाहे वह किसी जाति या धर्म के हों, लड़की के आगे बिछने को तैयार रहते हैं। दूसरी तरफ लड़का पैदा होते ही बेहद खुशी मनाई जाती है और बेहद प्यार करते हैं, उसके पैरांे पर चलते ही लगभग, हर नारी खासतौर से आपकी पत्नी उस लड़के की माँ ही, दुर्गति शुरू कर देती है, हर समय परेशान करता है, सोता नहीं या खाता नहीं या नुकसान करता रहता है। नई-नई गालियाँ प्रातः ही उसको, धमका कर या मार कर पूजा-इबादत करना, जैसा बड़ा पाप करती हैं, उस लड़के के लिये, हर सिरदर्द पैदा हो जाते है। शादी के बाद तो और ज्यादा होते हैं, लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा माँ-बाप लड़के को कोसते हैं, बुरा कहते है, ताने देते हैं, जैसे जब से पैदा हुआ है, नुकसान ही नुकसान करता है। हमने 9 माह पेट में रखा, सूखे में सुलाया, खुद गीले में सोये, दूध पिलाया है, यहाँ तक कि पैदा न होता, तो अच्छा था या लड़की होती, तो अच्छा था। मतलब हर बुराई ऐसा क्यों? अरे भाई वह पैदा थोड़े ही हुआ था, आपने मिल कर पैदा किया था, यह लड़का है, आपकी लड़की भी उसी पेट में रही है, उसने भी वही दूध पिया है, जो लड़के ने पिया है, आप दूध न पिलाती, तो आपको परेशानी होती, सुखे में न सुलाती, तो भी आपको ही परेशानी होती। आपने 9 माह पेट में क्यों रखा? एक दिन ज्यादा या कम रख सकती है नहीं। फिर इन बातों का मतलब क्या है?
यह लड़का बेचारा शुरू में माँ, बाप के कठोर बन्धन में डाँट, पिटाई, गाली, सब सही होश सम्भालते ही, मास्टर की स्कूल में, पढ़ने के बाद, नौकरी पर अधिकारी की सही, शादी हुई पत्नी की ज्यादियाँ हो सकती हैं। इस लड़के के पास घर-बाहर का काम, सबके आर्डर, बाहर खेल-कूद, यार दोस्तों से निभाने का काम, पढ़ाई का काम मतलब, हर सिरदर्द भुगतता है, फिर भी कोई खुश नहीं। लड़की को पढ़ाई के लिये, हर सुविधा, कपड़ों तक की छूट, जबकि हर हाल में काम चल सकता था। बाहर वाले भी लड़की का ही ध्यान रखते हैं, सबको धूप, पानी बारिश तक का ध्यान है। लड़की के पास काम भी हल्के ही हंै, किसी ने लड़के को भी कभी पूछा।
लड़की पर भी लगभग, लड़के के जितना खर्च आता है, थोड़ा ज्यादा आता है। लड़की की शादी के बाद भी ध्यान रखा जाता है, उस पर भाई, चाचा, ताऊ, बाबा, दादी तक ध्यान रखते हंै, लड़के पर किसी का ध्यान है? कभी बहन भी भाई की परेशानी में काम आयी? यही बहन भी कह देती है, भाई कुछ नहीं करता। माँ-बाप भी परेशान रहे हैं, इसके कारण। यह लड़का हर तरीके से, बुरा साबित किया जाता है क्यों? लड़की का गलत पहनावा, बन-ठन कर स्कूल जायेगी, आजादी इतनी कि फिल्मी गाने गुनगुनाते हुए, इठलाती हुई चाल, बुढ़ों को भी विचलित कर दे, तो लड़का क्यों कर आकर्षित नहीं होगा? समझदार भी कम है। नई उम्र है। बीमार, कमजोर भी नहीं है। नजर भी कमजोर नहीं है। फिर भी लड़की की या उसके माँ-बाप की गलती नहीं निकलती, सारा समाज जानता है। हर पुरूष-नारी जानती है, जज और कानून जानता हैं, कि 4 बदमाश भी एक लड़की को लड़की की बिना इच्छा के, कैसे भी काबू नहीं पा सकते। बदमाश भी किसी शरीफ लड़की की तरफ आँख मिलाकर बात नहीं कर सकता, फिर सारा दोष लड़के का क्यों?
यह सारा भेद, अज्ञानता ही तो है। लड़का-लड़की बराबर हैं, उनको, हमंे ही पालना है। सही परवरिश लड़के, लड़की की अलग-अलग है। प्यार बराबर, सजा में दोनों के लिये अन्तर है। यह सब बातें, धर्मग्रन्थ व बड़े, बताते और सिखाते हैं, सही परवरिश करना ही, पूजा-इबादत है। आज हम लड़के, लड़की को, समान समझते हैं। अरे भई, कुत्ते के गले में पट्टा बाँधा जाता है। बैल के नाथ होती है, घोड़े के, लगाम होती है। प्यार बराबर होता है। लड़का-लड़की, बराबर नहीं होते। पुरूष-नारी, बराबर नहीं होते। पृथ्वी, सूरज, बराबर नहीं होते। गाड़ी के दो पहिये, जरूर हंै, लेकिन बराबर नजर आते हुए, बराबर नहीं होते, दोनांे के काम में, फिटिंग में, अन्तर जरूर होता है, दोनांे पहियों पर वजन का अन्तर तक, होता है। सही ज्ञान होना और दिमाग का सही इस्तेमाल होना ही, पूरी कायनात की पूजा-इबादत है।
देशभक्ति भी सबसे बड़ी पूजा-इबादत है। धरती का कर्ज उतारना, माँ के दूध का कर्ज उतारना, बाप के खून का कर्ज उतारना, भी पूजा-इबादत है। लेकिन सजा और सुधार, उससे भी पहले जरुरी है। सही पूजा-इबादत करने के लिये ”घर का सुधार, गलती पर अविलम्ब सजा और मेहनती को प्रोत्साहन“ नियम अपनाना ही पड़ेगा।
हर सरकारी विभाग, पूरा कानून हमेशा खासतौर से गैर सरकारी की गलती पर कठोर सजा देने को तैयार रहता है, जबकि यह नियम कठोरता से सरकारी प्राणी और नेता पर पहले लागू होना चाहिये हर प्राणी, सारे सरकारी प्राणी, गैर सरकारी प्राणी, सारे नेता, सारे देश का भविष्य, गलती पर अविलम्ब सजा पर अमल करे और अमल कराये। यही सही पूजा-इबादत होगी। हर अनियमितता की शिकायत करे और गलती पर अविलम्ब सजा (केवल नकद जुर्माना, राजकोष में जमा करायें) दिलायें और यह है, सही पूजा-इबादत। जो ऐसा नहीं करते, वह कोई पूजा-इबादत कर ही नहीं सकते। कोई दान, हर त्यौहार, चाहे 26 जनवरी, 15 अगस्त या कोई जयन्ती मना ही नहीं सकते।
बिना कर्म, कुछ सम्भव नहीं, नाम लेत, क्या होय,
अल्लाह-अल्लाह करता रहा, अल्लाह, कब क्या होय।
Subscribe to:
Posts (Atom)