श्री प्रणव मुखर्जी (11 दिसम्बर 1935 - )
परिचय -
प्रणव कुमार मुखर्जी ( जन्म 11 दिसम्बर 1935, पश्चिम बंगाल) वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। नेहरू-गान्धी परिवार से उनके करीबी सम्बन्ध रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। सीधे मुकाबले में उन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया। उन्होंने 25 जुलाई 2012 को भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली।
प्रणव मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहाँ हुआ था। उनके पिता 1920 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय होने के साथ पश्चिम बंगाल विधान परिषद में 1952 से 64 तक सदस्य और वीरभूम (पश्चिम बंगाल) जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। उनके पिता एक सम्मानित स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफत के परिणामस्वरूप 10 वर्षो से अधिक जेल की सजा भी काटी थी। प्रणव मुखर्जी ने सूरी (वीरभूम) के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा पाई, जो उस समय कलकत्ता विश्वविद्यालयसे सम्बद्ध था। प्रणव का विवाह बाइस वर्ष की आयु में 13 जुलाई 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। उनके दो बेटे और एक बेटी - कुल तीन बच्चे हैं। पढ़ना, बागवानी करना और संगीत सुनना- तीन ही उनके व्यक्तिगत शौक भी हैं। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ साथ कानून की डिग्री हासिल की है। वे एक वकील और कॉलेज प्राध्यापक भी रह चुके हैं। उन्हें मानद डी.लिट उपाधि भी प्राप्त है। उन्होंने पहले एक कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। वे बाँग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) में भी काम कर चुके हैं। प्रणव मुखर्जी बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी एवं अखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।
उनका संसदीय कैरियर करीब पाँच दशक पुराना है, जो 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में (उच्च सदन) से शुरू हुआ था। वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से चुने गये। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मन्त्री के रूप में मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। वे सन 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे और और सन् 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। सन 1984 में, यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया गया। उनका कार्यकाल भारत के अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ऋण की 1.1 अरब अमरीकी डॉलर की आखिरी किस्त नहीं अदा कर पाने के लिए उल्लेखनीय रहा। वित्त मंत्री के रूप में प्रणव के कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। वे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की समर्थक मण्डली के षड्यन्त्र के शिकार हुए जिसने इन्हें मन्त्रिमण्डल में शामिल नहीं होने दिया। कुछ समय के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन सन 1989 में राजीव गान्धी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। उनका राजनीतिक कैरियर उस समय पुनर्जीवित हो उठा, जब पी.वी. नरसिंह राव ने पहले उन्हें योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में और बाद में एक केन्द्रीय कैबिनेट मन्त्री के तौर पर नियुक्त करने का फैसला किया। उन्होंने राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मन्त्री के रूप में कार्य किया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया। सन 1985 के बाद से वह कांग्रेस की पश्चिम बंगाल राज्य इकाई के भी अध्यक्ष हैं। सन 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबन्धन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे। इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश विषयक मन्त्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मन्त्रालयों के मन्त्री होने का गौरव भी हासिल है। वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता रह चुके हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त वे लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मन्त्री भी रहे। लोकसभा चुनावों से पहले जब प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने अपनी बाई-पास सर्जरी कराई, प्रणव दा विदेश मन्त्रालय में केन्द्रीय मंत्री होने के बावजूद राजनैतिक मामलों की कैबिनेट समिति के अध्यक्ष और वित्त मन्त्रालय में केन्द्रीय मन्त्री का अतिरिक्त प्रभार लेकर मन्त्रिमण्डल के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।
प्रणव मुखर्जी के नाम पर एक बार भारतीय राष्ट्रपति जैसे सम्मानजनक पद के लिए भी विचार किया गया था. लेकिन केंद्रीय मंत्रिमण्डल में व्यावहारिक रूप से उनके अपरिहार्य योगदान को देखते हुए उनका नाम हटा लिया गया। मुखर्जी की वर्तमान विरासत में अमेरिकी सरकार के साथ असैनिक परमाणु समझौते पर भारत-अमेरिका के सफलतापूर्वक हस्ताक्षर और परमाणु अप्रसार सन्धि पर दस्तखत नहीं होने के बावजूद असैन्य परमाणु व्यापार में भाग लेने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के साथ हुए हस्ताक्षर भी शामिल हैं। सन 2007 में उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया। मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में मुखर्जी भारत के वित्त मन्त्री बने। इस पद पर वे पहले 1980 के दशक में भी काम कर चुके थे।
सम्मान और विशिष्टता
1.न्यूयॉर्क से प्रकाशित पत्रिका, यूरोमनी के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 1984 में दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मन्त्रियों में से एक प्रणव मुखर्जी भी थे।
2.उन्हें सन् 1997 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड मिला।
3.वित्त मन्त्रालय और अन्य आर्थिक मन्त्रालयों में राष्ट्रीय और आन्तरिक रूप से उनके नेतृत्व का लोहा माना गया। वह लम्बे समय के लिए देश की आर्थिक नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उनके नेतघ्त्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की अन्तिम किस्त नहीं लेने का गौरव अर्जित किया। उन्हें प्रथम दर्जे का मन्त्री माना जाता है और सन 1980-1985 के दौरान प्रधानमन्त्री की अनुपस्थिति में उन्होंने केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता की।
4.उन्हें सन् 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से नवाजा गया।
”भारतवासियों के रूप में हमें भूतकाल से सीखना होगा, परन्तु हमारा ध्यान भविष्य पर केन्द्रित होना चाहिए। मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है जो कि भारत में अगला स्वर्ग युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रन्थों ने समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तम्भों पर खड़ा किया गया है। हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुँचाकर, इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। हमारा ध्येय वाक्य स्पष्ट है- ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए।
मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूँ जहाँ उद्देश्य की समानता से सबका कल्याण संचालित हो, जहाँ केन्द्र और राज्य केवल सुशासन की परिकल्पना से संचालित हों, जहाँ लोकतन्त्र का अर्थ केवल पाँच वर्ष में एक बार मत देने का अधिकार न हो, बल्कि जहाँ सदैव नागरिकों के हित में बोलने का अधिकार हो, जहाँ ज्ञान विवेक में बदल जाये, जहाँ युवा अपनी असाधारण ऊर्जा तथा प्रतिभा को सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रयोग करे। अब पूरे विश्व में निरंकुशता समाप्ति पर है, अब उन क्षेत्रों में लोकतन्त्र फिर से पनप रहा है जिन क्षेत्रों को पहले इसके लिए अनुपयुक्त माना जाता था, ऐसे समय में भारत आधुनिकता का माॅडल बनकर उभरा है।
जैसा कि स्वामी विवेकानन्द ने अपने सुप्रसिद्ध रूपक में कहा था कि- भारत का उदय होगा, शरीर की ताकत से नहीं, बल्कि मन की ताकत से, विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकट्ठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है- हरा, नीला अथवा लाल, बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की उस प्रखर चमक को पैदा करें, जो प्यार का रंग है।“ (प्रथम भाषण का संक्षिप्त अंश)
- श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, 26 जुलाई, 2012
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
भारत के स्वतन्त्रता के अनेक दशकों बाद प्रथम नागरिक के ये शब्द, मात्र केवल शब्द नहीं बल्कि भारत के उस अन्तिम और सर्वोच्च ऊँचाई के मार्ग का मूल सिद्धान्त, बीज, मन्त्र और नींव है। आपके इन शब्दों को अक्षरशः एक आम नागरिक अपने देश के प्रति कत्र्तव्य को समझते हुये पूर्ण कर चुका है और वह अनेक दिशाओं से प्रमाण प्राप्त करते हुये ”विश्वशास्त्र“ के रूप में व्यक्त है। अपने देश को मानक लोकतन्त्र के रूप में स्थापित करने के जो सिद्धान्त हैं वे कुछ ही पृष्ठों के हैं परन्तु अपने उद्देश्य से बहुत दूर निकल गये तथाकथित बौद्धिक भारतीय नागरिक और उनके नेतृत्वकर्ताओं के विभिन्न प्रकार के रंग से रंगे मन को एक सफेद रंग में लाने के प्रमाणों से ”विश्वशास्त्र“ लगभग 1700 पृष्ठों का बन गया। इन 1700 पृष्ठों में मनुष्य जाति के इस सृष्टि पर अन्तिम समय तक रहने तक के लिए ज्ञान संकलित कर दिया गया है जिसे भारत के महा-विभूषित, महा-मण्डित संत, महात्मा इत्यादि असम्भव ही समझते रहे हैं। इसलिए ही ”विश्वशास्त्र“ के साथ उसके गुण की पंक्ति (Tag Line) ”द नाॅलेज आॅफ फाइनल नॅालेज“ लगा हुआ है साथ ही शास्त्र के अन्त में ये भी लिखा है-”सभी सार्वेच्च विचार और सर्वोच्च कर्म मेरी ओर ही आते हैं“ और ये चुनौति भी है उन महा-विभूषित, महा-मण्डित संत, महात्मा इत्यादि के लिए जो भीड़ इकट्ठा कर भारत को विश्वगुरू बनाने का सपना दिखाते हैं, कि इससे कम पृष्ठों में अपनी प्रमाणिकता प्रस्तुत करें। आज वो हैं भीड़ है, कल जब वो नहीं रहेंगे तब ये भीड़ अनाथ हो जायेंगी और सपना तोड़ा जा चुका होगा। वे एक बार फिर ठगे जा चुके होंगे। उनका विश्वास उठ चुका होगा। फिर जब वो सत्य रूप में आयेगा तो उस पर कौन विश्वास करेगा क्योंकि भीड़ में बौद्धिकता नहीं होती। केवल अपने लोंगो को बताने की बात होती है कि मैं भी गया था। क्या देखा, क्या सुना, कुछ पता नहीं।
भारत में अनेक अपराधिक और घोटाले की फाइल में ”विश्वशास्त्र“ से अधिक पृष्ठ होते हैं या यूँ कहे कि ”विश्वशास्त्र“ में निम्नलिखित के अनुसार ही पृष्ठ हैं-
01. कक्षा 8 तक की शिक्षा प्राप्त करने तक सभी विषयों को मिलाकर जिनते पृष्ठ पढ़ा जाता है, विश्वशास्त्र उससे छोटा है।
02. उच्च शिक्षा के किसी भी एक विषय के पाठ्य पुस्तक से विश्वशास्त्र छोटा है।
03. विश्वविद्य़ालय में किसी विषय पर किये गये 5 शोध-पत्रों से विश्वशास्त्र छोटा है।
04. किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए पढ़े गये पुस्तकों से विश्वशास्त्र छोटा है।
05. 5 उपन्यासों के कुल पृष्ठ से विश्वशास्त्र छोटा है।
06. किसी सबसे अधिक पढ़े जाने वाले हिन्दी समाचार पत्र के मात्र 15 दिनों के समाचार पत्र से विश्वशास्त्र छोटा है।
07. एक क्रिकेट टेस्ट मैच के दौरान क्रिकेट के सम्बन्ध में दूरदर्शन के चैनल पर किये गये कमेन्ट्री व वार्ता से निकले वाक्यों से विश्वशास्त्र छोटा है।
08. 10 फिल्मों के पटकथा से विश्वशास्त्र छोटा है।
09. किसी एक घोटाले के जाँच पर तैयार किये गये रिपोर्ट से विश्वशास्त्र छोटा है।
10. 4 औरतों को बिना किसी मुद्दे पर चर्चा के बात करने के लिए 1 सप्ताह एक साथ रखने पर निकले वार्ता से विश्वशास्त्र छोटा है।
11. एक सास-बहू या किसी दूरदर्शन धारावाहिक को देखने में जितना समय लगेगा, उससे कम समय में विश्वशास्त्र पढ़ा जा सकता है।
12. एक लड़की जिसका एक लड़का मित्र (ब्वाॅय फ्रेण्ड) हो, मोबाइल पर बात करने के लिए स्वतन्त्र कर दिया जाय तो वह 5 दिन में जितना बात करेगी, उसके मूल्य और निकले साहित्य से विश्वशास्त्र छोटा है।
और ”विश्वशास्त्र“ की सारांश में उपयोग
01. निरक्षर के लिए इस शास्त्र का मूल्य शून्य है, साक्षर के लिए यह उपयोगी है, पशु-प्रवृत्तियों के लिए यह विश्वशास्त्र गोवर्धन पर्वत है, योगियों के लिए यह अँगुली पर उठाने योग्य है, धनिकों के लिए यह व्यर्थ है, नई पीढ़ीयों के लिए यह भविष्य निर्माता है, नेतृत्वकर्ताओं के लिए यह नेतृत्व की कला है, ज्ञान पिपासुओं के लिए यह मार्गदर्शक और उपलब्धि है।
02. काशी क्षेत्र का विश्वशास्त्र सत्य रूप है, उसकी संस्कृति है, उसका प्रतिनिधि शास्त्र है और उसका गौरव है।
03. भारत के लिए विश्वशास्त्र भारतीयता है तथा मानवता का चरम विकसित बिन्दु है। राष्ट्र के लिए राष्ट्रीयता है।
04. युग के लिए यह युग-परिवर्तक है, व्यवस्था के लिए यह व्यवस्था-सत्यीकरण है।
05. लोकतन्त्र के लिए यह पुष्टिकारक है, संविधान के लिए यह मार्गदर्शक है, विभिन्न शास्त्रों के बीच विश्वशास्त्र ही गुरू है और आत्मतत्व का दृश्य रूप है।
और हमारे इस ग्रह पृथ्वी के देश भारत में हजारों विश्वविद्यालय, लाखों विद्यालय-महाविद्यालय, लाखों प्रोफेसर-लेक्चरर इत्यादि शिक्षा क्षेत्र से हैं। भारत के ”पुनर्निर्माण व आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार एक भारत-श्रेष्ठ भारत का निर्माण” के लिए प्रस्तुत प्रथम और अन्तिम प्रारूप ”विश्वशास्त्र“ के 1700 पृष्ठों पर निर्णय कितने दिनों में आयेगा, इससे ही निर्धारित होगा भारत की बौद्धिकता का कालानुसार योग्यता कि वो भूतकाल में हैं या वर्तमान में या भविष्य के लिए तुरन्त कार्यवाही करने को तैयार है।
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि - ”जीवन में मेरी सर्वोच्च अभिलाषा यह है कि ऐसा चक्र प्रर्वतन कर दूँ जो कि उच्च एवम् श्रेष्ठ विचारों को सब के द्वार-द्वार पर पहुँचा दे। फिर स्त्री-पुरूष को अपने भाग्य का निर्माण स्वंय करने दो। हमारे पूर्वजों ने तथा अन्य देशों ने जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर क्या विचार किया है यह सर्वसाधारण को जानने दो। विशेषकर उन्हें देखने दो कि और लोग क्या कर रहे हैं। फिर उन्हंे अपना निर्णय करने दो। रासायनिक द्रव्य इकट्ठे कर दो और प्रकृति के नियमानुसार वे किसी विशेष आकार धारण कर लेगें-परिश्रम करो, अटल रहो। ‘धर्म को बिना हानि पहुँचाये जनता की उन्नति’-इसे अपना आदर्श वाक्य बना लो।“
और इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way) की योजना ”सत्य मानक शिक्षा“ को सबके द्वारा पर पहुँचाने के लिए बनाईं गई है। जो भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन आधारित स्वदेशी विपणन प्रणाली 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) से युक्त है अर्थात इसमें शामिल होने वाले व्यक्ति/संस्था को शिक्षा के साथ-साथ, छात्रवृत्ति और रायल्टी या सहायता निश्चित रूप से प्राप्त होती है।
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1. आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर साकार होगा एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना।
2. सोशल मीडिया का प्रयोग कर सरकार को बेहतर बनाने की कोशिश।
3. सबका साथ, सबका विकास।
4. 100 नये माॅडल शहर बसाना।
5. 5T - ट्रेडिशन (Tradition), ट्रेड (Trade), टूरिज्म (Tourism), टेक्नालाॅजी (Technology), और टैलेन्ट (Talent) का मंत्र। (भारत के 16वीं लोकसभा के संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करते हुये, सोमवार, 9 जून 2014 ई0)
- श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
इस ब्रह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु एक निश्चित उद्देश्य के लिए अपनी प्रकृति के साथ व्यक्त हैं। इस प्रकार ईश्वर, अवतार और मनुष्यों के लिए उनकी अपनी शक्ति सीमा निर्धारित है। स्वयं से अलग दूसरे की शक्ति सीमा के लिए वह इच्छा-विचार तो व्यक्त कर सकता है परन्तु उसे कर पाना असम्भव होता है।
आपके द्वारा भारत के 16वीं लोकसभा के संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधन में बोले गये 1. आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर साकार होगा एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना, अवतारों के शक्ति सीमा का कार्य है। यह किसी भी मनुष्य द्वारा पूर्ण नहीं किया जा सकता। चाहे हजारों देश के सर्वोच्च अधिकार युक्त नेतृत्वकर्ता क्यों न आयें-जायें परन्तु बिना अवतार के अवतरण के यह कार्य पूर्ण करना असम्भव है।
2. सोशल मीडिया का प्रयोग कर सरकार को बेहतर बनाने की कोशिश, ये सरकार के ही इच्छा शक्ति पर ही निर्भर है।
3. सबका साथ, सबका विकास, आशिंक रूप से सरकार कर सकती है लेकिन पूर्ण रूप से अवतार के द्वारा व्यक्त तन्त्र-प्रणाली ही कर सकता है।
4. 100 नये माॅडल शहर बसाना, ये सरकार के ही इच्छा शक्ति पर निर्भर है। आध्यात्म जगत में जैसे ही कोई आविष्कार होता है वह व्यापार बन जाता है जो आविष्कारक के जीवन, ज्ञान और कर्म से जुड़ा होता है। पुनः आविष्कारक के जीवन, ज्ञान और कर्म पर आधारित अन्य आविष्कार भी होने लगते हैं। जैसे - श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिव-शंकर, बुद्ध, माँ वैष्णों देवी, सांई बाबा, विश्व के तमाम धर्म संस्थापकों के जीवन, ज्ञान व कर्म पर अनेकों व्यापार विकसित हो गये हैं। भारतीय आध्यात्म और दर्शन जगत ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है। उसी प्रकार मेरे जीवन से जुड़ा वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र हैं जो सत्यकाशी: पंचम, अन्तिम और सप्तम काशी के रूप में व्यक्त हुआ है। इस क्षेत्र के बीच नया माॅडल शहर सत्यकाशी के नाम से बसाना है। यह 5T का सर्वोच्च उदाहरण है।
5. 5T - ट्रेडिशन (Tradition), ट्रेड (Trade), टूरिज्म (Tourism), टेक्नालाॅजी (Technology) और टैलेन्ट (Talent) का मंत्र, ये विकास व लक्ष्य प्राप्ति के कार्य के लिए मार्गदर्शक बिन्दु है जिस पर आधारित होकर सरकार भी काम कर सकती है और अन्य नीजी संगठन भी। नीजी क्षेत्र में प्रयोग का मेरा यह कार्य सर्वोच्च उदाहरण है।
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”क्या आर्थिक विकास ही विकास है? आज विकास का जो स्वरूप दिख रहा है, इसका वीभत्स परिणाम भी ग्लोबल वार्मिंग, ग्लेशियर का पिघलना, मौसम मे बदलाव आदि के रूप में सामने दिख रहा है। हमें यह देखना होगा कि विकास की इस राह में हमने क्या खोया और क्या पाया। समाज शास्त्री विमर्श कर यह राह सुझायें जिससे विकास, विविधता व लोकतंन्त्र और मजबूत बनें। विकास वह है जो समाज के अन्तिम व्यक्ति को भी लाभान्वित करे। भारत में एकता का भाव, व्यक्ति का मान होना चाहिए क्योंकि इसमें ही देश का सम्मान निहित है। समाज के लोग आगे आयें और सरकारों पर दबाव बनायें। विविधता भारत की संस्कृति की थाती है। भारत की यह संस्कृति 5000 वर्ष से अधिक पुरानी व जीवन्त है। काशी ज्योति का शहर है क्योंकि यहाँ बाबा का ज्योतिर्लिंग है। यह ज्ञान व एकता की ज्योति है। इसके प्रकाश से यह शहर ही नहीं, बल्कि पूरा देश आलोकित हो रहा है। यह शहर ज्ञान की असीम पूँजी लिए देश को अपनी ओर बुला रहा है।“ (महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में भारतीय समाजशास्त्रीय सोसायटी के 40वें अधिवेशन के उद्घाटन में)
- श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, 30 नवम्बर, 2014
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था -”जितने दिनों से जगत है उतने दिनों से मन का अभाव- उस एक विश्वमन का अभाव कभी नहीं हुआ। प्रत्येक मानव, प्रत्येक प्राणी उस विश्वमन से ही निर्मित हो रहा है क्योंकि वह सदा ही वर्तमान है। और उन सब के निर्माण के लिए आदान-प्रदान कर रहा है।“ (धर्म विज्ञान, रामकृष्ण मिशन, पृष्ठ-27)
जिस प्रकार विश्वमन, सभी मनों को निर्मित और प्रभावित कर रहा है उसी प्रकार सभी मन भी विश्वमन को प्रभावित कर रहे हैं। इसलिए पहले सभी मनों का शान्ति, एकता, स्थिरता प्रदान करने की जरूरत है। फिर अपने आप विश्वमन भी शान्ति, एकता, स्थिरता को प्राप्त हो जायेगा परिणामस्वरूप प्रकृति द्वारा की जा रही उठा-पटक भी सामान्य में परिवर्तित हो जायेगी।
ज्ञान, समान्यीकरण को कहते हैं जो ग्लोबल (वैश्विक) दृष्टि से आती है। आजकल शोध किसी विशेष बिन्दु-शीर्षक पर विशेषीकृत होकर होते हैं जो शोध की कला सीखा देते हैं और शोध परिणाम निरर्थक देते है। शोध से डिग्री और सेमिनार में शोध-पत्र पढ़ने से अतिरिक्त योग्यता प्राप्त होती है जो नौकरी पाने में सहायक होती है। नौकरी मिला काम समाप्त। काम समाप्त फिर मनुष्य धन बनाना और पीढ़ी बढ़ाने में व्यस्त। इसलिए समाजशास्त्रीयों से कोई हल नहीं मिल सकता और ना मिला। जब लक्ष्य ही नहीं पता तो अधिक विचार-विमर्श का परिणाम शून्य ही होता है। उनका काम अकेले पूर्ण कर दिया हूँ और उनके लिए सरकार पर दबाब बनाने का काम छोड़ दिया हूँ।
वाराणसी जिसे काशी कहा जाता है वह मोक्षदायिनी काशी है। यहाँ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग है जो सार्वभौम एकत्व और आदि योगी शिव-शंकर का प्रतीक है। यहाँ जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य जन्म-जात ज्ञानी होता है। उसे जन्म से ही ज्ञात होता है कि यह जगत् एक सपना और झूठा है। यह जगत् सत्य नहीं है इसलिए यहाँ के लोग काम नहीं करना चाहते। सीधी बात है जब सब छोड़कर जाना ही है तो बहुत काम करने से कोई अर्थ नहीं निकलता। जिस असीम ज्ञान को लेकर काशी अपनी ओर देश को बुला रहा है वह जीवनदायिनी सत्यकाशी से व्यक्त हुआ है। वाराणसी से ज्ञान निकलना बन्द हो गया है क्योंकि विश्वेश्वर ने व्यास को काशी से निष्काशित कर दिया था (देखे-स्कन्द पुराण, काशी खण्ड)। व्यास जी काशी के गंगा उस पार आ गये। जो अब जीवनदायिनी सत्यकाशी है और ”विश्वशास्त्र“ को व्यक्त करने वाला क्षेत्र है, इस योग्यता के कारण वह तेरहवाँ और अन्तिम भोगेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना का अधिकार रखता है।
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”तैयार करें मूल्यों और उम्मीदों पर आधारित ब्लूप्रिन्ट“ (विडिओ कान्फ्रेसिंग से छात्रों और शिक्षकों को सन्देश - राष्ट्र निर्माण का आह्वानं) - श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
साभार - दैनिक जागरण, 20 जनवरी, 2016
”शिक्षा पद्धति में बदलाव की जरूरत। ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो समर्पित, विश्वसनीय और आत्म विश्वास से लवरेज युवा तैयार करे। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो न केवल काबिल पेशेवर दे बल्कि वो समाज व देश के प्रति जुड़ाव भी महसूस करे।“ (स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के पहले दिक्षांत समारोह में बोलते हुएं) - श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
स्कूल-कालेजों के जाल से शिक्षा के व्यापार का विकास होता है न कि शिक्षा का। शिक्षा का विकास तो शिक्षा पाठ्यक्रम पर निर्भर होता है जिससे शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों निर्मित होते हैं। जब तक पूर्ण शिक्षा पाठ्यक्रम का निर्माण नहीं होता, शिक्षा का विकास नहीं हो सकता लेकिन शिक्षा के व्यापार का विकास होता रहेगा।
आपने विडिओ कान्फ्रेसिंग से छात्रों और शिक्षकों को सन्देश से राष्ट्र निर्माण का आह्वान कर उन्हें एक लक्ष्य - मूल्यों और उम्मीदों पर आधारित ब्लूप्रिन्ट तैयार करने का दिया। जो राष्ट्र को मुख्य धारा में लाने के लिए मार्ग है। परन्तु आप-हम और सभी उसी छात्र जीवन से यहाँ तक पहुँचे हैं। उस छात्र जीवन की सोच में जिन्हें कुछ कर दिखाना होता है उनके मन-हृदय में सिर्फ एक हल्की सी ज्योति जलती रहती है - ”मुझे कुछ कर दिखाना है“। इस ज्योति का ध्यान, इस ज्योति से योग, इस ज्योति की रक्षा, इस ज्योति के प्रकाश को विकसित करने का प्रयास जो अपने जीवन से बढ़कर करता है, वही कुछ कर पाता है। और प्रकट होता है आप और हम जैसा बनकर। जिसे अन्य लोग सिर्फ एक वाक्य में कहकर समाप्त कर देते हैं - ”सब किस्मत की बात है“।
जिनके छात्र जीवन में सिर्फ यही सोच हो कि एक नौकरी मिल जाये, माता-पिता से दूर एक घर हो और हम और हमारे दो बस, उनसे राष्ट्र निर्माण के लिए ब्लू प्रिण्ट की उम्मीद ही व्यर्थ है। और यदि नौकरी शिक्षा क्षेत्र में मिल गई तो एक ही विषय को अपने सेवा निवृत्ति के उम्र तक दोहराते हुए बुद्धि बद्ध हो गये। और नौकरी मिल ही गई है तो और जानने की जरूरत ही क्या है। आखिर वर्तमान सामय के अर्थ में ज्ञान का चरम लक्ष्य और उसकी प्रमाणिकता धन ही तो है।
इतिहास गवाह है इस संसार का विकास और मनुष्यता को पूर्णता की ओर ले जाने का काम डिग्रीधारीयों के द्वारा कभी भी सम्पन्न नहीं हुआ है। ये कार्य वही करते हैं जो समय-समय पर सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त का अनुभव कर समाज में प्रसारित करते रहे हैं। और फिर वही घटना घटित हुई है। उस पर आधारित राष्ट्र निर्माण का प्रथम और अन्तिम ब्लू प्रिन्ट ”विश्वशास्त्र“ के रूप में प्रकाशित है।
प्रस्तुत विश्वशास्त्र का मूल उद्देश्य एक पुस्तक के माध्यम से पूर्ण ज्ञान उपलब्ध कराना है जिससे उस पूर्ण ज्ञान के लिए वर्तमान और हमारे आने वाली पीढ़ी को एक आदर्श नागरिक के लिए बिखरे हुए न्यूनतम ज्ञान के संकलन करने के लिए समय-शक्ति खर्च न करना पड़े। समय के साथ बढ़ते हुए क्रमिक ज्ञान का संगठित रूप और कम में ही उन्हें अधिकतम प्राप्त हो, यही मेरे जीवन का उन्हें उपहार है। मुझे जिसके लिए कष्ट हुआ, वो किसी को ना हो इसलिए उसे हल करना मेरे जीवन का उद्देश्य बन गया।
विश्वशास्त्र द्वारा अनेक नये विषय की दिशा प्राप्त हुई है जो भारत खोज रहा था। इन दिशाओं से ही ”आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत-श्रेष्ठ भारत निर्माण“, मन (मानव संसाधन) का विश्वमानक, पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी, हिन्दू देवी-देवता मनुष्यों के लिए मानक चरित्र, सम्पूर्ण विश्व के मानवों व संस्था के कर्म शक्ति की एकमुखी करने के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित एक प्रबन्ध और क्रियाकलाप, एक जीवन शैली इत्यादि प्राप्त होगा। भारत सरकार को वर्तमान करने के लिए इन आविष्कारों की योग्यता के आधार पर मैं (लव कुश सिंह ”विश्वमानव“), स्वयं को भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ”भारत रत्न“ के योग्य पाता हूँ क्योंकि ऐसे ही कार्यो के लिए ही ये सम्मान बना है। और इसे मेरे जीते-जी पहचानने की आवश्यकता है। शरीर त्याग के उपरान्त ऐसे सम्मान की कोई उपयोगिता नहीं है। भारत में इतने विद्वान हैं कि इस पर निर्णय लेने और आविष्कार की पुष्टि में अधिक समय नहीं लगेगा क्योंकि आविष्कारों की पुष्टि के लिए व्यापक आधार पहले से ही इसमें विद्यमान है। “रत्न” उसे कहते हैं जिसका अपना व्यक्तिगत विलक्षण गुण-धर्म हो और वह गुण-धर्म उसके न रहने पर भी प्रेरक हो। पद पर पीठासीन व्यक्तित्व का गुण-धर्म मिश्रित होता है, वह उसके स्वयं की उपलब्धि नहीं रह जाती। भारत के रत्न वही हो सकते हैं जो स्वतन्त्र भारत में संवैधानिक पद पर न रहते हुये अपने विलक्षण गुण-धर्म द्वारा भारत को कुछ दिये हों और उनके न रहने पर भी भारतीय नागरिक प्रेरणा प्राप्त करता हो। इस क्रम में ”भारत रत्न“ का अगला दावेदार मैं हूँ और नहीं तो क्यों? इतना ही नहीं नोबेल पुरस्कार के साहित्य और शान्ति के संयुक्त पुरस्कार के लिए भी योग्य है जो भारत के लिए गर्व का विषय है।