श्री बी.एल.जोशी (27 मार्च, 1936 - )
परिचय -
बनवारीलाल जोशी का जन्म 27 मार्च, 1936 को राजस्थान नागौर में छोटी खाटू नामक गा्रम में हुआ था। इन्होंने अपना स्नातक कोलकाता के स्काॅटिश चर्च कालेज से किया। उसके उपरान्त विश्वविद्यालय विधि महाविद्यालय, कोलकाता से विधि में स्नातक हुए। बनवारी लाल जोशी जी भारत के कई राज्यों- दिल्ली, उत्तराखण्ड, मेघालय, उत्तर प्रदेश के उपराज्यपाल एवं राज्यपाल के पद को सुशोभित करते रहें है। आप एक दूरदर्शी व चितंक के रूप में जाने जाते हैं।
वे 1957 में आई.पी.एस. के साथ अपने कैरियर को शुरू किये। वह इन्टरपोल, जालसाजी, नारकोटिक्स, औद्योगिक सुरक्षा, संयुक्त राष्ट्र सुधारात्मक कार्य, अपराध जैसे विभिन्न क्षेत्रों में खुफिया ब्यूरो के लिए काम किये। वह लाल बहादुर शास्त्री और इन्दिरा गाँधी के साथ, बाद में पी.एम.ओ. में 4 वर्ष काम किये। इस्लामाबाद और लन्दन में भारत के उच्चायोगों में प्रथम सचिव और वाशिंगटन डी.सी. में भारत के दूतावास में प्रमुख के रूप में विदेश मंत्रालय के लिए कार्य किये।
”विश्वविद्यालयों में सिर्फ परीक्षाओं में ही नहीं, शोध कार्यों में भी नकल का बोलबाला है, कोई भी विश्वविद्यालय ऐसा नहीं जिसके किसी शोध को अन्तर्राष्ट्रीय तो क्या, राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली हो।“ (लखनऊ में आयोजित 21 राज्य विश्वविद्यालयों व अन्य के कुलपतियों के सम्मेलन में)
-श्री बी.एल. जोशी
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 10 नवम्बर 2010
”विश्वविद्यालय को कुलपतियों और शिक्षकों को शिक्षा का स्तर और उन्नत करना चाहिए। एक बार अपना दिल टटोलना चाहिए कि क्या वाकई उनकी शिक्षा स्तरीय है। हर साल सैकड़ों शोधार्थियों को पीएच.डी की उपाधि दी जा रही है, लेकिन उनमें से कितने नोबेल स्तर के हैं। साल में एक-दो शोध तो नोबेल स्तर के हों।“(रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली, उ0प्र0, के दीक्षांत समारोह में) -श्री बी.एल. जोशी, राज्यपाल, उ0प्र0, भारत
साभार - अमर उजाला, लखनऊ, दि0 21 नवम्बर 2012
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
जैसी प्रजा वैसा राजा। जैसा शिक्षक वैसा शिक्षार्थी। जैसा पाठ्यक्रम वैसा शिक्षक और शिक्षार्थी। विश्वविद्यालय अब शोध नहीं कराते बल्कि शोध की विधि बताते हैं क्योंकि मानसिक विस्तार न होने से शोध के विषय भी समाप्त हो चुके हैं। विश्वविद्यालय में हो रहे शोध मात्र शोध की कला सीखाने की संस्था है न कि ऐसे विषय पर शोध सिखाने की कला जिससे सामाजिक, राष्ट्रीय व वैश्विक विकास को नई दिशा प्राप्त हो जाये। ”विश्वशास्त्र“ अनेक ऐसे शोध विषयों की ओर दिशाबोध भी कराता है जो मनुष्यता के विकास में आने वाले समय के लिए अति आवश्यक है। पीएच.डी. की डिग्रीयां अवश्य गर्व करने योग्य हैं। परन्तु यह केवल स्वयं के लिए रोजगार पाने के साधन के सिवाय कुछ नहीं है और वह भी संघर्ष से। जबकि डिग्रीधारीयों का समाज को नई दिशा देने का भी कत्र्तव्य होना चाहिए। आखिरकार डिग्रीधारी और सामज व देश के नेतृत्वकर्ता यह कार्य नहीं करेगें तो क्या उनसे उम्मीद की जाय जो दो वक्त की रोटी के संघर्ष के लिए चिंतित रहते है? आखिरकार सार्वजनिक मंचो से डिग्रीधारी किसको यह बताना चाहते हैं कि ऐसा होना चाहिए या वैसा होना चाहिए?
निम्नलिखित विषय स्वतः स्फूर्त प्रेरणा द्वारा एक नोबेल स्तर का शोध ही है क्योंकि मानव समाज का बौद्धिक विकास रूक सा गया था-
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त एक ही सत्य-सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत व संयुक्त मन को एकमुखी कर सर्वोच्च, मूल और अन्तिम स्तर पर स्थापित करने के लिए शून्य पर अन्तिम आविष्कार WS-0 श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है।
1. डब्ल्यू.एस. (WS)-0 : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. (WS)-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. (WS)-000 : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. (WS)-0000 : मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
और पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C है।
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