श्री गिरधर मालवीय (14 नवम्बर 1936 - )
परिचय -
श्री गिरिधर मालवीय का जन्म इलाहाबाद में 14 नवम्बर 1936 को हुआ था। आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पं. मदन मोहन मालवीय के पौत्र है। आपकी प्राथमिक शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय, बी.एच.यू. एवं बेसेंन्ट थियोसोफिकल स्कूल से तथा उच्च शिक्षा एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) और एल.एल.बी काशी हिन्दू विश्व विद्याालय से पूर्ण हुई। आपका शौक यात्रा, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में रहा है। आप इलाहाबाद उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं।
”वैदिक काल से भारत के ज्ञान-विज्ञान एवं सत्य-अहिंसा के सिद्धान्तों का पूरा विश्व लोहा मानता आ रहा है। वर्तमान में उच्च कोटि के डाॅक्टर, इंजिनियर और सूचना विज्ञान के विशेषज्ञ पूरे विश्व में अपनी प्रतिभा के दम पर छाये हुये हैं। आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की पहचान बन रही है। इन्हीं खूबियों के बूते भारत और सनातन धर्म फिर से विश्व गुरू की पदवी हासिल करेगा।“ (गाँधी विद्या संस्थान, वाराणसी में)
-गिरधर मालवीय
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 26 दिसम्बर, 2010
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
निश्चित रूप से वर्तमान में उच्च कोटि के डाॅक्टर, इंजिनियर और सूचना विज्ञान के विशेषज्ञ पूरे विश्व में अपनी प्रतिभा के दम पर छाये हुये हैं। आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की पहचान बन रही है। अब इन खूबियों को वैश्विक मानव के रूप में स्थापित करने का वक्त आ गया है जिससे भारत और सनातन धर्म फिर से विश्व गुरू की पदवी हासिल कर सके।
कर्म के शारीरिक, आर्थिक व मानसिक क्षेत्र में ”विश्वशास्त्र“ मानसिक कर्म का यह सर्वोच्च और अन्तिम कृति है। भविष्य में यह विश्व-राष्ट्र शास्त्र साहित्य और एक विश्व-राष्ट्र-ईश्वर का स्थान ग्रहण कर ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इस ”विश्वशास्त्र“ की भाषा शैली मस्तिष्क को व्यापक करते हुये क्रियात्मक और व्यक्ति सहित विश्व के धारण करने योग्य ही नहीं बल्कि हम उसमें ही जीवन जी रहें हैं ऐसा अनुभव कराने वाली है। न कि मात्र भूतकाल व वर्तमान का स्पष्टीकरण व व्याख्या कर केवल पुस्तक लिख देने की खुजलाहट दूर करने वाली है। वर्तमान और भविष्य के एकीकृत विश्व के स्थापना स्तर तक के लिए कार्य योजना का इसमें स्पष्ट झलक है। ”विश्वशास्त्र“ मानने वाली बात पर कम बल्कि जानने और ऐसी सम्भावनाओं पर अधिक केन्द्रित है जो सम्भव है और बोधगम्य है। शास्त्र द्वारा शब्दों की रक्षा और उसका बखूबी से प्रयोग बेमिसाल है। ज्ञान को विज्ञान की शैली में प्रस्तुत करने की विशेष शैली प्रयुक्त है। मन पर कार्य करते हुये, इतने अधिक मनस्तरों को यह स्पर्श करता है जिसको निर्धारित कर पाना असम्भव है। और जीवनदायिनी शास्त्र के रूप में योग्य है।
”विश्वशास्त्र“ इस स्थिति तक योग्यता रखता है कि वैश्विक सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक एकीकरण सहित विश्व एकता-शान्ति-स्थिरता-विकास के लिए जो भी कार्य योजना हो उसे देश व संयुक्त राष्ट्र संघ अपने शासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्राप्त कर सकता है। और ऐसे आविष्कारकर्ता को इन सबसे सम्बन्धित विभिन्न पुरस्कारों, सम्मानों व उपाधियों से बिना विलम्ब किये सुशोभित किया जाना चाहिए। यदि यथार्थ रूप से देखा जाये तो विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार-नोबेल पुरस्कार के शान्ति व साहित्य क्षेत्र के पूर्ण रूप से यह योग्य है। साथ ही भारत देश के भारत रत्न से किसी भी मायने में कम नहीं है।
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