कल्कि अवतार एवं माँ वैष्णों देवी से सम्बन्ध
वैष्णों देवी की कथा
(कटरा-जम्मू में कथा के सम्बन्ध में बिकने वाली पुस्तिका, इन्टरनेट पर उपलब्ध कथा और गुलशन कुमार कृत ”माँ वैष्णों देवी“ प्रदर्शित फिल्म पर आधारित कथा)
वैष्णों देवी मन्दिर शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम् हिन्दू मन्दिर है जो भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में कटरा के पास पहाड़ी पर स्थित है। यह उत्तरी भारत के सबसे पूज्यनीय पवित्र स्थानों में से एक है। मन्दिर 5300 फीट की ऊँचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हिन्दू धर्म में वैष्णों देवी को, जो माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जानी जाती है, देवीजी का अवतार हैं। हर वर्ष लाखो तीर्थयात्री मन्दिर का दर्शन करते हैं। और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मन्दिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है। इस मन्दिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मण्डल द्वारा की जाती है। तीर्थ यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल सम्पर्क बनाया जा रहा है।
हिन्दू महाकाव्य के अनुसार, माँ वैष्णों देवी ने दक्षिण भारत में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। इनके लौकिक माता-पिता लम्बे समय तक निःसन्तान थे। दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आयेंगें। माँ वैष्णों देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलायी। जब त्रिकुटा नौ साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्रीराम अपनी सेना के साथ समुद्र किनारे पहुँचें। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी। त्रिकुटा ने श्रीराम से कहा-उसने उन्हें पति रूप में स्वीकार किया है। श्रीराम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेगें। इस बीच, श्रीराम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। रावण के विरूद्ध श्रीराम की विजय के लिए माँ ने नवरात्र मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त सन्दर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा माँ वैष्णों देवी की स्तुति गाई जायेगी। त्रिकुटा, वैष्णों देवी के रूप में प्रसिद्ध होगी और सदा के लिए अमर हो जायेगी।
श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड में एक देवी का वर्णन मिलता है। इन्होंने श्रीहनुमानजी तथा अन्य वानर वीरों को जल व फल दिया था तथा उन्हें गुफा से निकालकर सागर के तट पर पहुँचाया था। ये देवी स्वयंप्रभा हैं। यही देवी माता वैष्णव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कलयुग के अंतिम चरण में भगवान का कल्कि अवतार होगा । पुराणों के अनुसार यह अवतार भी भारत में ही सम्भलपुर नाम के एक गाँव में विष्णुयश नामक एक विप्र के यहाँ होगा। तब ये कल्कि भगवान दुष्टों को दंडित करेंगे और धरती पर धर्म की स्थापना करेंगे तथा देवी स्वयंप्रभा से श्रीरामावतार में दिए गए वचनानुसार विवाह करेंगे
समय के साथ-साथ, देवी माँ के बारे में कई कहानियाँ उभरी, ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की। श्रीधर माँ वैष्णों के प्रबल भक्त थे। वे वर्तमान कटरा से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हंसली गाँव में रहते थे। एक बार माँ ने मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिये। युवा लड़की ने विनम्र पण्डित से भण्डारा (भिक्षुकों व भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा। पण्डित गाँव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े। उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस ”भैरव नाथ“ को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए योजना बना रहें हैं। उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया, चूँकि पण्डित जी चिंता में डूब गये, दिव्य बालिका प्रकट हुई और कहा कि वे निराश न हों सब व्यवस्था हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो। उनके कहे अनुसार ही भण्डारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विध्न आयोजन सम्पन्न हुआ। भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियाँ थी और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया। 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूढता रहा, जिसे वह देवी माँ का अवतार मानता था। भैरव से दूर भागते हुये देवी ने पृथ्वी पर एक बाण (तीर) चलाया, जिससे पानी फूटकर बाहर निकला। यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा में में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं। नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी माँ के पैरों के निशान हैं जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं। इसके बाद वैष्णों देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहाँ वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियाँ प्राप्त की। भैरव द्वारा उन्हें ढूढ़ लेने पर उनकी साधना भ्ंाग हुई। जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णों देवी ने महाकाली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफा के द्वार पर देवी माँ प्रकट हुई। देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर, धड़ से अलग किया कि खोपड़ी पवित्र गुफा से 2. 5 किलोमीटर की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी। भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की। देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा सम्पन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी माँ के दर्शन के बाद, पवित्र गुफा के पास भैरव नाथ के मन्दिर के भी दर्शन करें। इस बीच वैष्णों देवी ने तीन पिण्ड सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पण्डित श्रीधर अधीर हो गये। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। अन्ततः वे गुफा के द्वार पर पहुँचें। उन्होंने कई विधियों से ”पिण्डों“ की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुई और उन्हें आशीर्वाद दिया। तब से श्रीधर और उनके वंशज माँ वैष्णों देवी की पूजा करते आ रहे हैं।
कल्कि अवतार एवं माँ वैष्णों देवी से सम्बन्ध
श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धाकाण्ड में एक देवी का वर्णन मिलता है। इन्होंने श्रीहनुमानजी तथा अन्य वानर वीरों को जल व फल दिया था तथा उन्हें गुफा से निकालकर सागर के तट पर पहुँचाया था। ये देवी स्वयंप्रभा हैं। यही देवी माता वैष्णव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। कलयुग के अंतिम चरण में भगवान का कल्कि अवतार होगा । पुराणों के अनुसार यह अवतार भी भारत में ही सम्भलपुर नाम के एक गाँव में विष्णुयश नामक एक विप्र के यहाँ होगा। तब ये कल्कि भगवान दुष्टों को दंडित करेंगे और धरती पर धर्म की स्थापना करेंगे तथा देवी स्वयंप्रभा से श्रीरामावतार में दिए गए वचनानुसार विवाह करेंगे इस अनुसार माँ वैष्णो देवी, कल्कि अवतार की पत्नी हुईं। माँ वैष्णों देवी पिण्ड रूप में हैं उनका ही साकार रूप सार्वभौम देवी-माँ कल्कि देवी के रूप में कल्कि अवतार द्वारा प्रक्षेपित किया गया है।
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