Sunday, March 29, 2020

मेरा प्रकाट्य

मेरा प्रकाट्य


”मैं इस लव कुश सिंह नामक भौतिक शरीर को प्रणाम करता हूँ जिसके माध्यम से और उसका प्रयोग कर मैंने स्व को व्यक्त करने के लिए एवं मानव कल्याण हेतु इस शास्त्र को आपके समक्ष प्रस्तुत किया। साथ ही इस शरीर के माध्यम से नकारात्मक व सकारात्मक चरित्रों को व्यक्त कर विश्व के दर्पण के रूप में इसे प्रस्तुत किया। जिससे मानव यह जान सके कि मैं इन सब से मुक्त था। मैं प्रारम्भ से अन्त तक केवल उस शरीर पर ही ध्यान करता रहा हूँ जिससे यथार्थ धर्म की स्थापना करता हूँ शेष सभी तो साधन मात्र हैं। ध्यान के लिए यही मेरी सत्य विधि रही है। मंत्र, मूर्ति, प्रतीक, शब्द इत्यादि तो केवल उपविधियाँ हैं जिससे भटकाव भी सम्भव है।“
  -विश्वात्मा/विश्वमन

”जितने दिनों से जगत है उतने दिनों से मन का अभाव-उस एक विश्वमन का अभाव कभी नहीं हुआ। प्रत्येक मानव, प्रत्येक प्राणी उस विश्वमन से ही निर्मित हो रहा है क्योंकि वह सदा ही वर्तमान है। और उन सब के निर्माण के लिए आदान-प्रदान कर रहा है।“ 
(धर्म विज्ञान, राम कृष्ण मिशन, पृष्ठ-27)
-स्वामी विवेकानन्द



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