Sunday, March 29, 2020

धर्म गुरूओं को समर्पित

विभिन्न धर्मो 
के 
वर्तमान धर्म गुरूओं 
को 
समर्पित
”विश्वशास्त्र“ साहित्य 
और 
मेरी अन्तिम इच्छा

”मैंनें बिना किसी धर्म के धर्म गुरू के मागदर्शन के ”विश्वशास्त्र“ की रचना स्वप्रेरणा से की है। वर्तमान समाज कहता है कि बिना गुरू के ज्ञान नहीं होता। इस सूत्र से मैं अभी भी अज्ञानी हूँ और मुझे ज्ञान की आवश्यकता अभी भी है। मैंने जीवन पर्यन्त प्रत्येक से कुछ न कुछ ज्ञान प्राप्त किया है इसलिए मेरा कोई एक गुरू नहीं हो सकता। मेरी इच्छा है कि वर्तमान समय में उपलब्ध विभिन्न धर्म के धर्म गुरूओं का मैं शिष्यत्व ग्रहण करूँ। शिष्य अपनी योग्यता प्रस्तुत कर चुका है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि विभिन्न धर्म के धर्म गुरूओं को मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करने पर गर्व का अनुभव होगा। जब समाज को यह विश्वास हो जाये कि मैं ही राष्ट्र-पुत्र स्वामी विवेकानन्द का सार्वजनिक प्रमाणित पुर्नजन्म हँू और उनके विश्व-बन्धुत्व के विचार के विश्वव्यापी स्थापना के लिए शासन प्रणाली के अनुसार प्रारूप प्रस्तुत किया हूँ तब मुझे किसी राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में वैसा ही वस्त्र धारण कराया जाय जैसा कि राष्ट्र-पुत्र स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो धर्म संसद वकृतता में धारण कर रखा था तथा ब्रह्माण्ड से मेरे असीम प्रेम को सार्वजनिक प्रमाणित सिद्ध किया जाये क्योंकि बिना व्यापक प्रेम के व्यापक कर्म नहीं हो सकता, न ही बिना व्यापक कर्म के व्यापक प्रेम हो सकता है। यह इसलिए है कि प्रेम व कर्म एक दूसरे के अदृश्य व दृश्य रूप है। और मैं कर्म करके ऋृषि, महात्मा या सन्यासी का वस्त्र पाना चाहता हूँ जिससे मैं यह जान सकूँ कि मैं इस योग्य हूँ। बस इतना ही समाज से मेरी अन्तिम इच्छा है।“
-लव कुश सिंह ”विश्वमानव“



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