Tuesday, April 14, 2020

विश्व एकीकरण आन्दोलन (सैद्धान्तिक)

विश्व एकीकरण आन्दोलन (सैद्धान्तिक)
विश्व एकीकरण (सैद्धान्तिक) का संचालक कोई भी इच्छुक नेता या छात्र नेता हो सकता है।
विश्व एकीकरण (सैद्धान्तिक) का अर्थ यह नहीं है कि सभी देशांे का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाये बल्कि विश्व शान्ति, एकता, स्थिरता व विकास के लिए सभी सम्प्रदायों का मूल विषय (साझा विषय) ज्ञान व कर्म अर्थात् एकात्मकर्मवाद (न कि एकात्म संस्कृतिवाद) मन की गुणवत्ता का विश्व मानक की श्रृंखला WS-0  पर आधारित एकीकरण है। 
वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति के क्रियाकलापों से विश्व व्यवस्था और उसके सन्तुलन पर प्रभाव पड़ने लगा है जो निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। यदि व्यक्ति के अन्दर यह चेतना नहीं आती तो संकुचित एवं विशेषीकृत होकर संयुक्त राष्ट्र संघ के शान्ति, स्थिरता, एकता एवं विकास के कार्यक्रमों को कभी भी प्रभावी नहीं होने देगा। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो गया है कि मानव मन को विश्व मन से जोड़ने के लिए अन्तः विषयों विचार एवम् साहित्य, विषय एवम् विशेषज्ञ, ब्रह्माण्ड (अदृश्य एवम् दृश्य) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप, मानव (अदृश्य एवम् दृश्य) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप तथा उपासना स्थल का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानकीकरण किया जाय। जिससे व्यक्ति का मन उस उच्च स्तर पर स्थापित हो जाय जहाँ से वह स्वयं के प्रत्येक क्रियाकलापों को विश्वस्तर पर पड़ने वाले प्रभाव से जोड़कर देखें और उसके अनुसार ही कर्म कर सकें। 21 वीं सदी के लिए यह आवश्यक भी है तथा प्रत्येक मानव का यह मानवाधिकार भी है कि उसे समाज, संगठन, सरकार एवं व्यक्ति द्वारा पूर्ण शिक्षा प्रणाली प्राप्त हो ताकि वह पूर्ण और व्यापक मानव के रुप में निर्मित हो। यह सदी जो मानव की सत्य चेतना आधारित सदी है उसमें विश्व के भविष्य के निति निर्माताओं को अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐसी व्यवस्था देना उनका कर्तव्य है जिस प्रकार से एक माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य होता है। 
संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अंग विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अस्तित्व में आ जाने से यह आवश्यक हो गया था कि मानव द्वारा उत्पादित उत्पादनों का अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण हो परिणामस्वरुप अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) ने गुणवत्ता का अन्तर्राष्ट्रीय मानक की श्रृंखला ISO-9000 की स्थापना की और उन उत्पादक उद्योगों को प्रदान करने लगा जो उसके अनुरुप हैं। इसी प्रकार देशांें के बीच वैचारिक आदान-प्रदान से यह आवश्यक हो गया है कि मानव, समाज, संगठन और सरकार द्वारा उत्पादित मानव मन का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानकीकरण हो इस प्रकार यह आवश्यक हो गया है कि अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO) मन की गुणवत्ता का अन्तर्राष्ट्रीय मानक की श्रृंखला WSO/ISO-0 की स्थापना करे तथा उस राज्य और देश को प्रदान करे जो इसके अनुरुप हांे अर्थात् वहाँ के मानव मन को विश्व मन के रुप में उत्पादन प्रारम्भ किया जा चुका हो जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों के भविष्य के प्रति समर्थक मानव का निर्माण होना प्रारम्भ हो जाये। 
यह एक ऐसा कार्य है जिसके प्रति आन्दोलन का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि यह भारत की जिम्मेदारी और संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य जिसे स्वेच्छा से स्थापित करना चाहिए। ऐसा न करना भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रति अविश्वसनीयता सहित ऐसे गैर जिम्मेदार होने के अधिकारी भी होंगे जैसे कोई माता-पिता अपने सन्तान के भविष्य को ही नष्ट करना चाहता हो। फिर भी भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तक इस आवाज को पहुँचाने के लिए आन्दोलन आवश्यक है। 

                        
”युवाओं विश्व को एक करो“ (”मन की बात“ रेडियो कार्यक्रम द्वारा श्री बराक ओबामा के साथ)
- श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत
साभार - दैनिक जागरण व काशी वार्ता, वाराणसी संस्करण, दि0 28 जनवरी, 2015

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
महोदय स्वामी विवेकानन्द ने जिस समय कहा था- एक विश्व, एक मानव, एक धर्म, एक ईश्वर, तब लोगों ने इस बात का उपहास किया था, लोगों ने इस प्रकार की संभावना पर संदेह प्रकट किया था, लोग स्वीकार नहीं कर पाये थे। किन्तु आज सभी लोग संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की ओर दौडे़ चले जा रहे हैं। जाओ, जाओ की अवस्था ने मानो उनको दबोच लिया है।
हमेशा यूरोप से सामाजिक तथा एशिया से आध्यात्मिक शक्तियों का उद्भव होता रहा है एवं इन दोनों शक्तियों के विभिन्न प्रकार के सम्मिश्रण से ही जगत का इतिहास बना है। वर्तमान मानवेतिहास का एक और नवीन पृष्ठ धीरे-धीरे विकसित हो रहा है एवं चारो ओर उसी का चिन्ह दिखाई दे रहा है। कितनी ही नवीन योजनाओं का उद्भव तथा नाश होगा, किन्तु योग्यतम वस्तु की प्रतिष्ठा सुनिश्चित है- सत्य और शिव की अपेक्षा योग्यतम वस्तु और हो ही क्या सकती है? (1प 310)  - स्वामी विवेकानन्द
यदि हम अपने व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन में वैज्ञानिक चेतना सम्पन्न एवं आध्यात्मिक एक साथ न हो पाए, तो मानवजाति का अर्थपूर्ण अस्तित्व ही संशय का विषय हो जाएगा। (पृ0-9)  - स्वामी विवेकानन्द
मन पर ही आविष्कार का परिणाम है-विश्वमानक शून्य: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक श्रृंखला, जो वर्तमान में आविष्कृत कर प्रस्तुत किया गया है। जिसके बिना अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व स्तर का मानव निर्माण ही असम्भव है। यही लोक या जन या गण का सत्य रुप है। यहीं आदर्श वैश्विक मानव का सत्य रुप है। जिससे पूर्ण स्वस्थ लोकतन्त्र, स्वस्थ समाज, स्वस्थ उद्योग की प्राप्ति होगी। इसी से विश्व-बन्धुत्व की स्थापना होगी। इसी से विश्व शिक्षा प्रणाली विकसित होगी। इसी से विश्व संविधान निर्मित होगा। इसी से संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उद्देश्य को सफलता पूर्वक प्राप्त करेगा। इसी से 21 वीं सदी और भविष्य का विश्व प्रबन्ध संचालित होगा। इसी से मानव को पूर्ण ज्ञान का अधिकार प्राप्त होगा। यही परमाणु निरस्त्रीकरण का मूल सिद्धान्त है। भारत को अपनी महानता सिद्ध करना चुनौती नहीं है, वह तो सदा से ही महान है। पुनः विश्व का सर्वोच्च और अन्तिम अविष्कार विश्वमानक शून्य श्रृंखला को प्रस्तुत कर अपनी महानता को सिद्ध कर दिखाया है। बिल गेट्स के माइक्रोसाफ्ट आॅरेटिंग सिस्टम साफ्टवेयर से कम्प्यूटर चलता हेै। भारत के विश्वमानक शून्य श्रृंखला से मानव चलेगा। बात वर्तमान की है परन्तु हो सकता है स्वामी जी के विश्व बन्धुत्व की भाँति यह 100 वर्ष बाद समझ में आये। अपने ज्ञान और सूचना आधारित सहयोग की बात की है। विश्वमानक शून्य श्रृंखला से बढ़कर ज्ञान का सहयोग और क्या हो सकता है? इस सहयोग से भारत और अमेरिका मिलकर विश्व को नई दिशा सिर्फ दे ही नहीं सकते वरन् यहीं विवशतावश करना भी पड़ेगा। मनुष्य अब अन्तरिक्ष में उर्जा खर्च कर रहा है। निश्चय ही उसे पृथ्वी के विवाद को समाप्त कर सम्पूर्ण शक्ति को विश्वस्तरीय केन्द्रीत कर अन्तरिक्ष की ओर ही लगाना चाहिए। जिससे मानव स्वयं अपनी कृति को देख आश्चर्यचकित हो जाये जिस प्रकार स्वयं ईश्वर अपनी कृति को देखकर आश्चर्य में हैं और सभी मार्ग प्रशस्त हैं। भाव भी है। योजना भी है। कर्म भी है। विश्वमानक शून्य श्रृंखला भी है। फिर देर क्यों? और कहिए- वाहे गुरु की फतह!“
एक परफेक्ट देश के लिए व्यक्ति-विचार आधारित नहीं बल्कि मानक आधारित होना जरूरी है। अब हमें विश्व में मानक देश (Standard Country) का निर्माण करना होगा। और यह पहले स्वयं भारत और अमेरिका को होना पड़ेगा। भारत गणराज्य-लोकतन्त्र का जन्मदाता रहा है जिसका क्रम या मार्ग - जिस प्रकार हम सभी व्यक्ति आधारित राजतन्त्र में राजा से उठकर व्यक्ति आधारित लोकतन्त्र में आये, फिर संविधान आधारित लोकतन्त्र में आ गये उसी प्रकार पूर्ण लोकतन्त्र के लिए मानक व संविधान आधारित लोकतन्त्र में हम सभी को पहुँचना है।
भारत का अब धर्म के नाम पर बँटना नामुमकिन है क्योंकि अब वह ”विश्वधर्म“ और उसके शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ को जन्म दे चुका है। विश्व का एकीकरण तभी हो सकता है जब हम सब प्रथम चरण में मानसिक रूप से एकीकृत हो जायें। फिर विश्व के शारीरिक (भौगोलिक) एकीकरण का मार्ग खुलेगा। एकीकरण के प्रथम चरण का ही कार्य है - मानक एवं एकात्म कर्मवाद आधारित मानव समाज का निर्माण। जिसका आधार निम्न आविष्कार है जो स्वामी विवेकानन्द के वेदान्त की व्यावहारिकता और विश्व-बन्धुत्व के विचार का शासन के स्थापना प्रक्रिया के अनुसार आविष्कृत है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त एक ही सत्य-सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत व संयुक्त मन को एकमुखी कर सर्वोच्च, मूल और अन्तिम स्तर पर स्थापित करने के लिए शून्य पर अन्तिम आविष्कार WS-0 श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है। 
1. डब्ल्यू.एस. (WS)-0 : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
2. डब्ल्यू.एस. (WS)-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
3. डब्ल्यू.एस. (WS)-000 : ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
4. डब्ल्यू.एस. (WS)-0000 : मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
5. डब्ल्यू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
और पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C है। 



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