निवेशक
01. निवेश (Investment)
निवेश या विनियोग ;प्दअमेजउमदजद्ध का सामान्य आशय ऐसे व्ययों से है जो उत्पादन क्षमता में वृद्धि लाये। यह तात्कालिक उपभोग व्यय या ऐसे व्ययों से संबंधित नहीं है जो उत्पादन के दौरान समाप्त हो जाए। निवेश शब्द का कई मिलते जुलते अर्थों में अर्थशास्त्र, वित्त तथा व्यापार-प्रबन्धन आदि क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। यह पद बचत करने और उपभोग में कटौती या देरी के संदर्भ में प्रयुक्त होता है। निवेश के उदाहरण हैं-किसी बैंक में पूंजी जमा करना, या परिसंपत्ति खरीदने जैसे कार्य जो भविष्य में लाभ पाने की दृष्टि से किये जाते हैं। सामान्यतया इसे किसी वर्ष में पूँजी स्टॉक में होने वाली वृद्धि के रूप में परिभाषित करते हैं। संचित निवेश या विनियोग ही पूँजी है। निवेश के कुछ माध्यम इस प्रकार है-वित्त बाजार, शेयर बाजार, अंतर्राष्ट्रीय फंड, इंडेक्स फंड, ईटीएफ, गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडिंग फंड, ग्रीनफील्ड इन्वेस्टमेण्ट, निवेश प्रबंधन, पोर्टफोलियो ;वित्तद्ध, ब्राउनफील्ड निवेश, म्यूचुअल फंड, यूटीआई एमएफ इत्यादि।
02. निवेशक (Investor)
निवेशक उन व्यक्ति या संस्थाओं को कहा जाता है, जो किसी योजना में अपना धन निवेश करते हैं। निवेशक कई प्रकार के होते हैं, जैसे व्यक्तिगत निवेशक, सामाजिक संस्थाएं और विदेशी संस्थागत निवेशक इत्यादि।
व्यक्तिगत निवेशक
संख्या के अनुसार देखें, तो यह समूह शेयरधारकों का सबसे बड़ा भाग होता है। सार्वजनिक निर्गम के संदर्भ में, व्यक्तिगत निवेशकों को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहले वह जो अधिकतम एक लाख रुपए के शेयर के लिए आवेदन कर सकते हैं और दूसरे वह जो एक लाख या उससे अधिक मूल्य के शेयरों के लिए आवेदन कर सकते हैं। इन निवेशकों को एचएनआई कहा जाता है। आईपीओ में फुटकर निवेशकों का हिस्सा 35 और एचएनआई का 25 प्रतिशत होता है।
सामाजिक संस्थाएं
ये कई लोगों द्वारा आपस में मिलकर बनाई गई संस्थाएं होती हैं, लेकिन ये संस्थाएं अपने बनाए गए नियम कानूनों के तहत ही शेयर बाजार में निवेश कर सकती हैं।
विदेशी संस्थागत निवेशक
ये वे संस्थाएं होती है जिनकी रचना भारत में निवेश करने हेतु विदेश में की गई है। भारत में निवेश करने के लिए इन संस्थाओं को सेबी के साथ अपना पंजीकरण विदेशी संस्थागत निवेशक के रूप में करना होता है। सेबी के नियमों के मुताबिक इस तरह की संस्थाएं किसी भारतीय कंपनी के आईपीओ के कुल मूल्य के दस प्रतिशत से ज्यादा पर निवेश नहीं कर सकतीं।
वित्तीय संस्थाएं
वित्तीय संस्थाओं के अंतर्गत बैंक, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड आदि के लिए धन लगाने वाली संस्थाएं होती हैं। निवेशकों के संदर्भ में कहें, तो प्राथमिक और द्वितीयक बाजार के ये सबसे बड़े निवेशक होते हैं।
03. निवेश के तरीके
मनुष्य के जीवन में विकास करने की इच्छा सदैव बनी रहती है। इस क्रम में वह आर्थिक लाभ के लिए व्यापार, नौकरी इत्यादि करता है। अपने व्यक्तिगत व पारीवारिक खर्चों के सम्भालने के बाद बचे धन को वह अपने भविष्य के लिए संचित करता है तथा ऐसे प्रणाली में निवेश करता है जहाँ से उस धन के बदले अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। इस निवेश के मूल आधार निम्न प्रकार हैं-
1. निवेश की पारम्परिक विधि (प्राकृतिक चेतना विधि)
यह विधि सामान्य व्यवहार में हमेशा से चलती आ रही है। इस विधि में किसी बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती। यदि आपके पास धन है तो आप सीधे इस विधि से निवेश कर धन के बदले लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जैसे राष्ट्रीयकृत, सार्वजनिक क्षेत्र व अन्य बैंक की जमा योजनाएँ, बीमा योजनाएँ, भूमि-मकान में निवेश। इस विधि में लाभ की गति सामान्य रहती है और वह प्राकृतिक रूप से बढ़ती है। इस विधि में लाभ का निर्धारणकर्ता वह संस्थान होता है जिसमें निवेश किया जाता है।
2. निवेश की आधुनिक विधि (सत्य चेतना विधि)
यह विधि व्यवहार में रहते हुए भी आम व्यक्ति को समझ में नहीं आती क्योंकि इस विधि में बुद्धि की आवश्यकता होती है। यदि आपके पास धन है तो आप सीधे इस विधि से निवेश कर धन के बदले तीव्र गति से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जैसे किसी शहर के बसने या विस्तार या किसी सरकारी या नीजी उ़द्योग के किसी क्षेत्र में लगने से भूमि के मूल्य में एका-एक बढ़ोत्तरी, शेयर बाजार में निवेश। इस विधि में लाभ की गति सामान्य से तीव्र रहती है और वह सत्य रूप से बढ़ती है।
इस विधि से वे व्यक्ति अधिकतम लाभ उठा पाते हैं जो योजना बनने के बाद ही गुप्त रूप से जानकारी प्राप्त कर लेते हैं कि इस योजना की स्थापना किस क्षेत्र में होनी है। ये योजना सरकारी या नीजी क्षेत्र, दोनों में से किसी की भी हो सकती है। सरकारी व नीजी क्षेत्र द्वारा लगने वाले उद्योग व शहर का विस्तार इसके उदाहरण हैं। इस विधि में लाभ का निर्धारणकर्ता योजना निर्माता होता है जिसकी योजना पर निवेश किया जाता है।
04. रियल इस्टेट (प्रापर्टी) में निवेश
इतिहास गवाह है मँहगाई कभी कम नहीं हुयी है। समय के साथ प्रत्येक का विकास होता रहा है। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती आवश्यकता और बढ़ते धन के साथ प्रत्येक वस्तु की कीमत भी बढ़ रही है। निवेश के अनेक साधन के बावजूद भूमि-मकान में निवेश सबसे सुरक्षित साधन है। सामान्यतः व्यक्ति इसमें निवेश करना पसन्द करते हैं। किसी भी भूमि की उपयोगिता को अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग नजरिये से भी देख सकते हैं। एक किसान, का नजरिया कृषि योग्य भूमि के लिए हो सकता है तो एक व्यापारी का व्यापार की दृष्टि से हो सकता है, तो किसी हाउसिंग डेवलपमेन्ट कम्पनी का घर-मकान बनाकर बेचने का हो सकता है, तो किसी का उद्योग स्थापित करने की दृष्टि, तो किसी का धार्मिक स्थल बनाने का हो सकता है। यह सब दृष्टि, उस भूमि और उसके आस-पास के संसाधन व उस क्षेत्र की ऐतिहासिकता से सम्बन्धित होता है। रियल स्टेट में निवेश की निम्न विधियाँ है जो अच्छा लाभ देती है-
1. रियल इस्टेट (प्रापर्टी) में निवेश की पारम्परिक विधि (प्राकृतिक चेतना विधि)
इस विधि को पारम्परिक विधि कहते हैं क्योंकि इसमें किसी बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती। यदि आपके पास धन है तो किसी भी शहर में या उसके आस-पास भूमि-मकान खरीद ले, आपका धन समय के साथ बढ़ता रहेगा। इसे प्राकृतिक चेतना विधि इसलिए कहते हैं कि यह स्वाभाविक विकास के साथ विकास करता है अर्थात् उसके कीमत के विकास में आपका कोई योगदान नहीं होता।
2. रियल इस्टेट (प्रापर्टी) में निवेश की आधुनिक विधि (सत्य चेतना विधि)
इस विधि को आधुनिक विधि कहते हैं क्योंकि इसमें बुद्धि-योजना-व्यापार नीति की अत्यधिक आवश्यकता होती। यदि आपके पास धन है तो किसी भी शहर में या उसके आस-पास भूमि खरीद ले, और वहाँ के लिए एक अच्छी योजना बनायें, उसे प्रचारित करें जिससे आपका धन समय के साथ-साथ तथा आपके योजना के कारण तेजी से बढ़ता रहेगा। इसे सत्य चेतना विधि इसलिए कहते हैं कि यह स्वाभाविक विकास के साथ-साथ आपकी योजना के कारण विकास करता है अर्थात् उसके कीमत के विकास में आपकी योजना का योगदान होता है। ऐसी योजना या तो सरकार बनाती है या कोई सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था।
सरकार की योजना में नगर विकास, औद्योगिक क्षेत्र का विकास, पर्यटन क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थान इत्यादि के विकास से होता है और उस क्षेत्र के भूमि की कीमत तेजी से बढ़ जाती है। इसका लाभ वहीं लोग ले पाते हैं जो सरकार की योजना को पहले ही जान जात हैं।
ऐसी योजना सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था बना सकती हैं। भारत देश एक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। घूमना मनुष्य की प्रकृति है। उसे उसके घर में चाहे कितना भी संसाधन क्यों न उपलब्ध हो, वह घूमने-पर्यटन करने जायेगा ही जायेगा। साथ ही वह सत्य-सुन्दर-शान्त स्थान पर रहना भी चाहेगा। और जब मनुष्य ऐसे स्थान पर रहना प्रारम्भ करने लगता है तब अपने-आप मनुष्य की आवश्यकता से सम्बन्धित वस्तुओं का व्यापार व व्यापारी भी उन्हीं में से निकल आते हैं। फिर जहाँ मनुष्य निवास करने लगता है तब सरकार व सरकारी व्यवस्था भी अपने-आप वहाँ पहुँचने लगती है। ऐसी योजनाओं के बहुत से उदाहरण हैं जहाँ का विकास का मूल कारण सरकारी नियमानुसार व्यापारिक-सामाजिक संस्था ही हैं।
वर्तमान समय में चल रहा निम्नलिखित उदाहरण इस विधि का प्रमाण है-
निवेश के सत्य चेतना विधि द्वारा निर्मित हो रहा है
भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य का ब्रज क्षेत्र (जिला-मथुरा) अर्थात् सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र कंस-श्रीकृष्ण से सम्बन्धित है। मथुरा कंस की नगरी थी और श्रीकृष्ण का जन्म स्थान। श्रीकृष्ण के बाल-लीला का क्षेत्र ब्रज क्षेत्र है। श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका (गुजरात प्रदेश) में थी। ब्रज क्षेत्र भारत के लोगों के लिए एक आस्था का स्थान है। इस आस्था का उपयोग करते हुये वृन्दावन में एक योजना इस्काॅन के भक्तों ने बनाया जिसका नाम-“कृष्ण भूमि-ए वन्डर लैण्ड” रखा और विशाल मन्दिर-टाउनशिप की योजना दी।
110 एकड़ के इस मन्दिर-टाउनशिप योजना में श्रीकृष्ण से सम्बन्धित 70 एकड़ में फैले श्री कृष्ण मन्दिर, वेदान्त वन, विश्व का पहला कृष्ण लीला थीम पार्क की योजना दी गयी। जिसमें 5 एकड़ में फैला 210 मीटर अर्थात् 700 फिट विश्व के सबसे ऊँचे श्रीकृष्ण मन्दिर का नाम “चन्द्रोदय मन्दिर” रखा गया। शेष 40 एकड़ में आधुनिक संविधा एवं संसाधन से युक्त आवासीय व व्यापारिक स्थान की योजना बनायी गयी।
यह योजना जिस भूमि पर बनायी गयी, वह इस योजना के पहले एक उपेक्षित स्थान व सस्ते कीमत का रहा होगा परन्तु योजना के घोषित होते ही आस-पास की भूमि, आवासीय, व्यापारिक स्थान की कीमत तेजी से बढ़ गयी। इस टाउनशिप में आवासीय व व्यापारिक स्थानों की कीमत का निर्धारण तो इस योजना के व्यापारीगण ही किये। श्रीकृष्ण से आस्था, मन्दिर की विशालता और आधुनिक सुविधा ने लोगों को वहाँ खींचा और एक क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास हो गया। आवासीय-व्यापारिक स्थान के विक्रय से जो लाभ हुआ उससे मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ। मन्दिर बनना प्रारम्भ हुआ तो आवासीय-व्यापारिक स्थान का कीमत बढ़ा।
निष्कर्ष यह है कि भारत देश में ऐसी योजना बनाने और उसे स्थापित करने की बहुत सी सम्भावनाएँ हैं। योजना बनाकर किसी भी स्थान का महत्व बढाया जा सकता है। स्थान की विशेषता होने पर लोग वहाँ रहना भी चाहते हैं। केवल शहर का विस्तार करते रहने से लोग स्वाभाविक रूप से ही रियल स्टेट में निवेश करते हैं। विशेषताएँ बना देने से इच्छा बनती है और निवेश में तेजी आती है।
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हम सभी साधारण जीवन में ऐसा देखते हैं कि जहाँ कहीं भी कोई फैक्ट्री, नगर निर्माण या विस्तार का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। वहाँ एक अलग ही दुनियाँ बसने लगती है और एक व्यापक जन समुदाय को अपने जीवन संचालन के लिए मार्ग प्राप्त हो जाता है। जो किसी जाति, सम्प्रदाय या धर्म आधारित नहीं होती। वह सिर्फ व्यक्ति की योग्यता पर आधारित और वह पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए होती है।
हम सभी साधारण जीवन में ऐसा देखते हैं कि जहाँ कहीं भी कोई फैक्ट्री, नगर निर्माण या विस्तार का कार्य प्रारम्भ हो जाता है। वहाँ एक अलग ही दुनियाँ बसने लगती है और एक व्यापक जन समुदाय को अपने जीवन संचालन के लिए मार्ग प्राप्त हो जाता है। जो किसी जाति, सम्प्रदाय या धर्म आधारित नहीं होती। वह सिर्फ व्यक्ति की योग्यता पर आधारित और वह पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए होती है।
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