Tuesday, April 14, 2020

राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन

राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन


”सहजीवन“ का अर्थ है निवासियों के समूह द्वारा आपस में मिल-लुलकर रहना तथा समस्याओं को हल करना जिससे समूह की सुरक्षा का कार्य भी सम्पन्न हो जाता है। ”रक्षा“ शब्द का अर्थ होता है कि किसी दुर्घटना होने पर या होने की सम्भावना को निष्प्रभावी करना जबकि ”सुरक्षा“ शब्द का अर्थ है कि किसी दुर्घटना होने या न होने की सम्भावना के बावजूद ऐसी व्यवस्था करना जिससे दुर्घटना की स्थिति को बनने ही न दिया जाय। ”रक्षा“ फल आधारित है तो ”सुरक्षा“ कारण आधारित। ”रक्षा“ परिणाम व्यक्त होने पर होती है तो ”सुरक्षा“ परिणाम व्यक्त ही न हो इसके लिए की जाती है। व्यष्टि (व्यक्ति) हो या समष्टि (संयुक्त व्यक्ति या देश) उसके मूलतः शारीरिक, आर्थिक व मानसिक दुर्घटना होने की सम्भावना रहती है। अर्थात् जिस प्रकार व्यक्ति के लिए शारीरिक, आर्थिक व मानसिक दुर्घटना होने की सम्भावना होती है ठीक उसी प्रकार व्यक्ति समूह अर्थात् देश के लिए शारीरिक, आर्थिक व मानसिक दुर्घटना की सम्भावना रहती है। रक्षा हो या सुरक्षा हो या शान्ति, एकता, स्थिरता इसका अर्थ यह नहीं होता कि यथावत् स्थिति बनाये रखा जाय और उसके लिए रक्षा, सुरक्षा, शान्ति, एकता, स्थिरता के उपाय किये जाय बल्कि इन उपायों के साथ शारीरिक, आर्थिक व मानसिक विकास भी होते रहना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा में व्यष्टि व समष्टि दोनों की सुरक्षा समाहित है। प्रारम्भ में राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन, व्यक्ति के शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा का आन्दोलन है। राष्ट्रीय रचनात्मक आन्दोलन व्यष्टि और समष्टि के शारीरिक, आर्थिक व मानसिक विकास व रचना का आन्दोलन है जो राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन के व्यष्टि मानसिक सुरक्षा और समष्टि आर्थिक व मानसिक सुरक्षा का कार्य भी सम्पन्न करता है। शेष सुरक्षा-समष्टि के शारीरिक सुरक्षा का कार्य सरकार के अधीन है। 
वर्तमान समय में राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन में वहीं कार्य हैं जो सरकार से मुक्त स्वव्यवस्था तथा सरकार के वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार व्यक्ति स्वयं अपनी उपलब्धता से सुरक्षित रह और कर सकता है अर्थात् व्यष्टि के शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा का कार्य। जो ”धर्मदान“ और ”सहभागिता“ के सत्य अर्थों तथा उसके महत्व को व्यक्त करता है। 
दान की आवश्यकता सामाजिक विषमता को कम करने के लिए होती है जिसका रुप शारीरिक, आर्थिक व मानसिक में से एक या दो या सभी हो सकते हैं। अपराधिक प्रवृत्ति युक्त योजना और मार्गदर्शन इत्यादि का कारण सामाजिक विषमता ही होती है। यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यदि किसी मुहल्ले में एक भूख से पीड़ित परिवार हो और एक सम्पन्न परिवार तो निश्चित रुप से यह विषमता सम्पन्न परिवार के लिए शारीरिक, आर्थिक व मानसिक रुप से घातक होती है या ऐसे मुहल्ले की गली, बिजली, पानी, स्वच्छता, व्यवस्था की स्थिति ठीक न हो तो क्या सम्पन्न परिवार उसके प्रभाव से बच पायेगा? जबकि सम्पन्न परिवारों के आपसी सहयोग से, जो उसके सन्तुलन पर कोई प्रभाव भी नहीं डाल सकता क्योंकि उसके उस सहयोग से दूरगामी लाभ उसके ही खर्च को बचाता है। मुहल्ले की व्यवस्था सुधर सकती है और स्वयं उसके पड़ोसी भी उससे भली-भाँति आत्मीय सम्बन्ध के आधार पर साथ ही साथ रहेंगे। फिर कौन अपराधिक योजना-मार्गदर्शन बनायेगा? फिर पूरा मुहल्ला ही एक दूसरे के लिए सुरक्षा प्रहरी ही बना रहेगा। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने-अपने सन्तुलन के साथ कम से कम मुहल्ले की व्यवस्था को ही देखने में उतनी रुचि लेनी चाहिए जितनी की वह अपनी व्यवस्था के लिए रुचि रखता है। साथ ही देश तथा विश्व स्तरीय सूचनाओं तथा व्यवस्थाओं का ज्ञान भी रखने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए जिससे वह स्वयं उच्च मन स्तर का बने तथा दूसरों के लिए जो अपने ही हैं, उनका मार्गदर्शन भी कर सकें। ज्ञान के लिए थोड़ा समय, अध्ययन, मनन और चर्चा ही खर्च होता है जो उसका अपना है परन्तु वह बहुत ही लाभकारी होता है जो किसी धन के बदले नहीं प्राप्त किया जा सकता। ज्ञान इसलिए लाभकारी है क्योंकि वह प्रत्येक क्षण व्यक्ति के लिए अनेक मार्ग व्यक्त करता है। और यह सब कर्म चलते फिरते, मिलते-जुलते ही हो जाने वाला कार्य है और सामाजिक प्रणी मानव का स्वभाव ही यहीं है बस उद्देश्य निर्धारित होना चाहिए।
राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन कोई संगठन नहीं है। इसकी प्रथम और सर्वोच्च इकाई मुहल्ले स्तर तक ही है। राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन मात्र इस सुरक्षा उपाय की जानकारी आप तक पहुँचा रहा है जो आपके अपनों के लिए, आप द्वारा स्वयं के लिए तथा आपके निवास स्थान के लिए है। और जो पूर्णतः आप पर ही निर्भर है। इसलिए गाँव व मुहल्ला स्तर पर ग्यारह सदस्यों की कमेटी गठित कर मुहल्ले की सार्वजनिक और व्यक्तिगत समस्याओं को सहभागिता से हल करें। शिव भाव से जीव सेवा करें। अपने से नीचे के लोगों को साथ लेकर बढ़ना भारतीय संस्कृति और दैवी प्रवृत्ति है जबकि दबाकर बढ़ना आसुरी प्रवृत्ति है।



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