(द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य “नवसृजन” के
प्रथम भाग “सार्वभौम ज्ञान” के शास्त्र ”गीता“ के बाद कलियुग में
द्वितीय और अन्तिम भाग “सार्वभौम कर्मज्ञान” और “पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र”)
विश्वशास्त्र - द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज
पूर्ण शिक्षा में परास्नातक
(Master in Complete Education-MCE)
प्रथम भाग “सार्वभौम ज्ञान” के शास्त्र ”गीता“ के बाद कलियुग में
द्वितीय और अन्तिम भाग “सार्वभौम कर्मज्ञान” और “पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र”)
विश्वशास्त्र - द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज
पूर्ण शिक्षा में परास्नातक
(Master in Complete Education-MCE)
परिशिष्ट
परिशिष्ट-अ (साभार-राम कृष्ण मिशन प्रकाशन)
स्वामी विवेकानन्द
परिशिष्ट-ब
लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
Click Here=> भाग-2: वार्ता, वक्तव्य, दिशाबोध, पत्रावली एवं जनहित याचिका
Click Here=> उप भाग-2. वक्तव्य
Click Here=> 02. भोगेश्वर रुप (कर्मज्ञान का विश्वरुप): मैं एक हूँ परन्तु अनेक नामों से जाना जाता हूँ
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“प्रस्तुत शास्त्र का मूल उद्देश्य एक पुस्तक के माध्यम से पूर्ण ज्ञान उपलब्ध कराना है जिससे उस पूर्ण ज्ञान के लिए वर्तमान और हमारे आने वाली पीढ़ी को एक आदर्श नागरिक के लिए बिखरे हुए न्यूनतम ज्ञान के संकलन करने के लिए समय-शक्ति खर्च न करना पड़े। समय के साथ बढ़ते हुए क्रमिक ज्ञान का संगठित रूप और कम में ही उन्हें अधिकतम प्राप्त हो, यही मेरे जीवन का उन्हें उपहार है। मुझे जिसके लिए कष्ट हुआ, वो किसी को ना हो इसलिए उसे हल करना मेरे जीवन का उद्देश्य बन गया” - लव कुश सिंह “विश्वमानव”
भारत सरकार के लिए सार्वजनिक घोषणा
प्रस्तुत विश्वशास्त्र द्वारा अनेक नये विषय की दिशा प्राप्त हुई है जो भारत खोज रहा था। इन दिशाओं से ही ”आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत-श्रेष्ठ भारत निर्माण“, मन (मानव संसाधन) का विश्वमानक, पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी, हिन्दू देवी-देवता मनुष्यों के लिए मानक चरित्र, सम्पूर्ण विश्व के मानवों व संस्था के कर्म शक्ति को एकमुखी करने के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित एक प्रबन्ध और क्रियाकलाप, एक जीवन शैली इत्यादि प्राप्त होगा। भारत सरकार को वर्तमान करने के लिए इन आविष्कारों की योग्यता के आधार पर मैं (लव कुश सिंह ”विश्वमानव“), स्वयं को भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ”भारत रत्न“ के योग्य पाता हूँ क्योंकि ऐसे ही कार्यो के लिए ही ये सम्मान बना है। और इसे मेरे जीते-जी पहचानने की आवश्यकता है। शरीर त्याग के उपरान्त ऐसे सम्मान की कोई उपयोगिता नहीं है। भारत में इतने विद्वान हैं कि इस पर निर्णय लेने और आविष्कार की पुष्टि में अधिक समय नहीं लगेगा क्योंकि आविष्कारों की पुष्टि के लिए व्यापक आधार पहले से ही इसमें विद्यमान है।
-लव कुश सिंह “विश्वमानव”
आविष्कारक - “मन का विश्वमानक-शून्य (WS-0) श्रंृखला और पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी (WCM-TLM-SHYAM.C)”
अगला दावेदार - भारत सरकार का सर्वोच्च नागरिक सम्मान - “भारत रत्न”
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