गणराज्यों के संघ-भारत को सत्य और अन्तिम मार्गदर्शन
गणराज्यों का संघ भारत अपनी स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से अब तक वाह्य जगत का विकास करते-करते इस मोड़ तक आ चुका है जहाँ से आगे की ओर जाने के लिए उसे अन्त-जगत का विकास करना होगा। इस विकास के न होने के कारण ही भारत के पास विवाद तो है परन्तु हल नहीं। विरोध तो है परन्तु हल के साथ विरोध नहीं। विरोध है पर उचित कारण के साथ विरोध नहीं। फलस्वरुप समाज (जनता) के अधिपत्य वाला गणराज्य, राज्य (व्यक्ति) समर्थित गणराज्य की ओर बढ़ गया है। वहीं दूसरी तरफ विवशता वश गणराज्य के सत्य रुप की ओर भी बढ़ रहा है। अन्त-जगत का विकास न होने के कारण यह स्पष्ट भी कर पाना मुश्किल हो गया है कि कौन से मुद्दे गणराज्य के हैं और कौन से मुद्दे सम्प्रदाय के हैं। विवादित मुद्दों की एक लम्बी श्रंृखला है जिनमें से कुछ को तो सिद्धान्त द्वारा हल किया जा सकता है परन्तु कुछ तो बिना नैतिक उत्थान के सम्भव ही नहीं हैं। क्योंकि हाथी पर अधिकृत हाथ में अंकुश युक्त महावत के नैतिकता पर ही यह निर्भर करता है कि वह अंकुश का प्रयोग हाथी को संचालित करने के लिए करे या हाथी को मौत देने के लिए करे। यह सिद्धान्त द्वारा नियन्त्रित नहीं हो सकता। विवादित मुद्दे जिस पर भारत क्रियाशील हो चुका है उनमें से प्रमुख हैं-संविधान-समीक्षा, शिक्षा-पाठ्यक्रम, धर्मस्थल विधेयक, प्रादेशिक स्वायत्तता, राज्यों का पुनर्गठन, महिला आरक्षण इत्यादि और भविष्य में आने वाले समय सीमा के अन्दर युवाओं को पैतृक सम्पत्ति का अधिकार। जो मुद्दे उठ चुके हैं उन्हें दबाया नहीं जा सकता क्योंकि वहाँ तक मनस्तर बढ़कर बीज रुप में व्यक्त होे गया है।
भारत को इस प्रस्तुत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से मार्गदर्शन प्राप्त कर अपने तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन के लिए क्रियान्वयन करना चाहिए। यह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त विरोध नहीं बल्कि वह जो कुछ समाज में अब तक के महामानवों द्वारा उपलब्ध कराया गया था जिसको स्वीकारने, मानने और समझने वाले हैं, उन सबको स्वीकार के साथ सत्य का प्रस्तुतीकरण है। जो एक तरह से स्वीकार और हल के साथ विरोध ही है। जिसका विकल्प किसी राजनीतिक दल, अन्य संगठन या मोर्चा के पास नहीं हो सकता क्योंकि सत्य का विकल्प सिर्फ सत्य होता है और वह एक ही होता है। भारतीय संविधान के अनुसार बिना संसद के विश्वास के कोई भी संवैधानिक परिवर्तन सम्भव नहीं है इसलिए इससे पहले की यह किसी दल का राजनीतिक मुद्दा बने, सामूहिक रुप से सभी राजनीतिक दल इसे संसद में प्रस्तुत करें और व्यापक चिंतन करके क्रियान्वयन के लिए मंजूरी दे। क्योंकि इसके समर्थन के बिना कोई भी व्यक्ति, दल, संगठन स्वयं अपने आप को भारतीय या भारत का शुभचिंतक भी नहीं कह सकता। भारत सत्य आधारित है और उस सत्य का देश-काल मुक्त सर्वव्यापी सार्वजनिक प्रमाणित स्वरुप व्यक्त हो आपके समक्ष प्रस्तुत है। सोचने का विषय है कि यदि उस राज्य का नाम हिन्दू हो या एक व्यक्ति से व्यक्त हुआ हो तो क्या उस सत्य को सत्य नहीं कहेंगे? यदि किसी मिठाई का नाम जहर रख दिया जाये तो क्या उस मिठाई को खाना छोड़ा जा सकता है? कदापि नहीं इससे तो स्वयं की ही हानि होगी। सत्य को स्वीकारने और आत्मसात करने पर एक तरह से हिन्दू और उस व्यक्ति का ही स्वीकार और आत्मसात करना हुआ। परन्तु नाम नहीं गुण देखें यहीं विकास का मार्ग है।
यदि सामूहिक रुप से संसद में इसे प्रस्तुत नहीं किया गया और यदि एक किसी दल का राजनीतिक मुद्दा भी न बना तो भी चिन्ता का विषय नहीं कम से कम यह जानकर खुशी होगी की भारत का शुभचिन्तक सिर्फ इस सिद्धान्त का आविष्कारकर्ता और उसका समूह ही है। नवमानव सृष्टिकर्ता ईश्वर (सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त) के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य और प्रथम चरण के लिए व्यक्त व्यक्तिगत प्रमाणित आत्मा के निराकार स्वरुप का साहित्य ”गीता“ के प्रचार-प्रसार का परिणाम ही है जिससे आत्मीय प्राकृतिक बल सक्रिय होकर विवशता वश ग्राम, क्षेत्र, नगर जनपद स्तर पर पंचायत तथा प्रदेश और देश स्तर पर गणराज्य का अविकसित रुप व्यक्त हुआ है। क्योंकि ज्ञान बढ़ने से सिद्धान्त की प्राप्ति होती है और अब प्रारम्भ किया गया कार्य और अन्तिम चरण के लिए व्यक्त सार्वजनिक प्रमाणित आत्मा के निराकार स्वरुप का साहित्य-”कर्मवेद-प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेदीय श्रंृखला“ अर्थात्् ”विश्वमानक-शून्य-मन की गुणवत्ता का विश्व मानक श्रंृखला“ के प्रस्तुतीकरण के प्रभाव से विवशतावश व्यक्ति से विश्व तक को गणराज्य के सत्य रुप को प्राप्त करने के लिए विवश कर देगा। तुम कर्म करते-करते भारत का नाश करते हुए वहीं सिद्धान्त प्राप्त कर मुझ तक ही आओगे जो मैं पहले ही तुम्हारे सामने व्यक्त कर चुका हूँ। तुम वर्तमान भारत को भारत न बनने दो और मैं भविष्य का भारत सम्पूर्ण विश्व को भारत बनाने का यन्त्र-आध्यात्मिक-न्यूट्रान बम व्यापकता से छोड़ दिया हूँ। भारत का नाश करने वाले पहले तुम आराम से थे मैं परेशान था, अब तुम परेशान रहोगे मैं आराम करुँगा। तब ही मेरी जीत निश्चित है। ये हैं-मानवीय सीमा से परे की बुद्धि, चेतना और आत्मशक्ति! व्यक्तिगत प्रमाणित प्रथम समन्वयाचार्य योगेश्वर श्रीकृष्ण की व्यक्तिगत शिक्षा व्यक्ति के लिए थी-”समभाव (अद्वैत) में स्थित हो कर्म करो और परिणाम की इच्छा मुझ (आत्मा) पर छोड़ दो।“ और अब सार्वजनिक प्रमाणित अन्तिम समन्वयाचार्य भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह विश्वमानव की सार्वजनिक शिक्षा व्यक्ति तथा संयुक्त व्यक्ति के लिए है-”समभाव (अद्वैत) में स्थित तथा परिणाम के ज्ञान से युक्त हो कर्म करो और परिणाम की इच्छा मुझ (आत्मा) पर छोड़ दो“ द्वारा प्रत्येक स्तर के व्यक्ति और संयुक्त व्यक्ति के लिए परिणाम का ज्ञान उसके समक्ष है।
ईश्वर के आठवें प्रत्यक्ष एवम प्रेरक व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार श्री कृष्ण तथा विष्णु (एकात्म वाणी, एकात्म ज्ञान, एकात्म कर्म व एकात्म प्रेम) के पूर्णावतार के रुप में व्यक्त श्री कृष्ण का मुख्य गुण आदर्श सामाजिक व्यक्ति का चरित्र तथा अवतारी गुणों में साकार शरीर आधारित ”परशुराम परम्परा“ की असफलता को देखते हुये उसका नाश करके निराकार नियम आधारित ”परशुराम परम्परा“ को प्रारम्भ करना था। जिसके लिऐ वे विश्व मानक ज्ञान व व्यक्तिगत प्रमाणित विश्वशास्त्र-गीतोपनिषद् व्यक्त किये।
श्रीकृष्ण का नाम बेचने वाले सिर्फ भक्ति में ही लीन हैं। उनके मूल कार्य विश्व मानक ज्ञान तथा निराकार नियम आधारित ”परशुराम परम्परा“ का नाम ही नहीं लेते जबकि भारत तथा विश्वस्तर पर गणराज्य का सवरुप निम्नलिखित रुप में व्यक्त हो चुका है।
भारत में निम्न्लिखित रुप व्यक्त हो चुका था।
1. ग्राम, विकास खण्ड, नगर, जनपद, प्रदेश और देश स्तर पर गणराज्य और गणसंघ का रुप।
2. सिर्फ ग्राम और नगर स्तर पर राजा (ग्राम व नगर पंचायत अध्यक्ष) का चुनाव सीधे जनता द्वारा।
3. गणराज्य को संचालित करने के लिए संचालक का निराकार रुप-संविधान।
4. गणराज्य के तन्त्रों को संचालित करने के लिए तन्त्र और क्रियाकलाप का निराकार रुप-नियम और कानून।
5. राजा पर नियन्त्रण के लिए ब्राह्मण का साकार रुप-राष्ट्रपति, राज्यपाल, जिलाधिकारी इत्यादि।
विश्व स्तर पर निम्नलिखित रुप व्यक्त हो चुका था।
1. गणराज्यों के संघ के रुप में संयुक्त राष्ट्र संघ का रुप।
2. संघ के संचालन के लिए संचालक और संचालक का निराकार रुप-संविधान।
3. संघ के तन्त्रों को संचालित करने के लिए तन्त्र और क्रियाकलाप का निराकार रूप-नियम और कानून।
4. संघ पर नियन्त्रण के लिए ब्राह्मण का साकार रूप-पाँच वीटो पावर।
5. प्रस्ताव पर निर्णय के लिए सदस्यों की सभा।
6. नेतृत्व के लिए राजा-महासचिव।
श्रीकृष्ण की दिशा से शेष कार्य मानक कर्म ज्ञान का प्रस्तुतीकरण द्वारा नियम आधारित ”परशुराम परम्परा“ को पूर्णता प्रदान करना है। जिसके लिए निम्नलिखित की आवश्यकता है-
1. गणराज्य या लोकतन्त्र के सत्य रुप-गणराज्य या लोकतन्त्र के स्वरूप का विश्व मानक।
2. राजा और सभा सहित गणराज्य पर नियन्त्रण के लिए साकार ब्राह्मण का निराकार रूप-मन का विश्व मानक।
3. गणराज्य के प्रबन्ध का सत्य रूप-प्रबन्ध का विश्व मानक।
4. गणराज्य के संचालन के लिए संचालक का निराकार रूप-संविधान के स्वरूप का विश्व मानक।
5. साकार ब्राह्मण निर्माण के लिए शिक्षा का स्वरूप-शिक्षा पाठ्यक्रम का विश्व मानक।
आविष्कार विषय-”व्यक्तिगत मन और संयुक्तमन का विश्व मानक और पूर्णमानव निर्माण की तकनीकी है जिसे धर्म क्षेत्र से कर्मवेद-प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेदीय श्रृंखला तथा शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की गुणवत्ता का विश्व मानक श्रृंखला तथा WCM-TLM-SHYAM.C तकनीकी कहते है। सम्पूर्ण आविष्कार सार्वभौम सत्य-सिद्वान्त अर्थात् सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त अटलनीय, अपरिवर्तनीय, शाश्वत व सनातन नियम पर आधारित है, न कि मानवीय विचार या मत पर आधारित।“
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त एक ही सत्य-सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत व संयुक्त मन को एकमुखी कर सर्वोच्च, मूल और अन्तिम स्तर पर स्थापित करने के लिए शून्य पर अन्तिम आविष्कार WS-0 : श्रृंखला की निम्नलिखित पाँच शाखाएँ है।
01. डब्ल्यू.एस.(WS)-0 -विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक
02. डब्ल्यू.एस.(WS)-00 -विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
03. डब्ल्यू.एस.(WS)-000 -ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
04. डब्ल्यू.एस.(WS)-0000 -मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
05. डब्ल्यू.एस.(WS)-00000 -उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक
भारत सरकार इस श्रृंखला को स्थापित करने के लिए संसद में प्रस्ताव प्रस्तुत कर अपने संस्थान भारतीय मानक ब्यूरो ¼BIS½ के माध्यम से समकक्ष श्रृंखला स्थापित कर विश्वव्यापी स्थापना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन ¼ISO½ के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ ¼UNO½ में भी प्रस्तुत कर संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन व पूर्ण लोकतंत्र की प्राप्ति के लिए मार्ग दिखा सकता है।
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