”भारत“ के विश्वरूप का नाम है-”इण्डिया“
भारत के संविधान के अनुच्छेद-एक में भारत के दो आधिकारिक नाम हैं-(इण्डिया दैट इज भारत) हिन्दी में ”भारत“ और अंगेजी में ”इण्डिया (INDIA)“। इण्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम ”इण्डस“ से हुई है। भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा भागवत पुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है-”आन्तरिक प्रकाश में लीन“। एक तीसरा नाम ”हिन्दुस्तान“ भी है जिसका अर्थ है-हिन्द या हिन्दू की भूमि, जो कि प्राचीन काल के ऋषियों द्वारा दिया गया था। प्राचीन काल में यह कम प्रयुक्त होता था तथा कालान्तर में अधिक प्रचलित हुआ। विशेषकर अरब/ईरान में। भारत में यह नाम मुगल काल से अधिक प्रचलित हुआ यद्यपि इसका समकालीन उपयोग कम और प्राय-उत्तरी भारत के लिए होता है। इसके अतिरिक्त भारतवर्श को वैदिक काल से ”आर्यावर्त“, ”जम्बूद्वीप“ और ”अजनाभदेश“ के नाम से भी जाना जाता रहा है। बहुत पहले यह देश सोने की चिड़िया जाना जाता था।
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्मा के मानसपुत्र स्वायंभुव मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के 10 पुत्र थे। 3 पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे-आग्नीध, जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध ने अपने 9 पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न 9 स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन 9 पु़त्रों में सबसे बड़े थे-नाभि, जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम से जोड़कर, अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे-ऋषभ। ऋषभदेव के 100 पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ऋषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे। विष्णु पुराण, वायु पुराण, लिंग पुराण, श्रीमद्भागवत, महाभारत इत्यादि में भारत का उल्लेख आता है। इससे पता चलता है कि महाभारत काल से पहले ही भारत नाम प्रचलित था। एक अन्य मत के अनुसार दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा परन्तु विभिन्न स्रोतों में वर्णित तथ्यों के आधार पर यह मान्यता गलत साबित होती है। पूरी वैष्णव परम्परा और जैन परम्परा में बार-बार दर्ज है कि समुद्र से लेकर हिमालय तक फैले इस देश का नाम प्रथम तीर्थंकर दार्शनिक राजा भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा। इसके अतिरिक्त जिस पुराण में भारतवर्ष का विवरण है वहाँ इसे ऋषभ पुत्र भरत के नाम पर ही पड़ा बताया गया है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान देना होगा कि 7वें मनु के आगे 2 वंश हो गये थे-पहला इक्ष्वाकु या सूर्यवंश और दूसरा चन्द्रवंश। इसी चन्द्रवंश में दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत का जन्म हुआ। जिसका स्पष्ट उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में है। इस सन्दर्भ में गीता के विभिन्न श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को भारत कह कर सम्बोधित करते हैं। इसके अतिरिक्त ऋषभ पुत्र भरत तथा दुष्यन्त पुत्र भरत में 6 मन्वन्तर का अन्तराल है। अत-यह देश अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत है।
भारत गणराज्य, पौराणिक जम्बूद्वीप, दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन-नेपाल-भूटान और पूर्व में बांग्लादेश-म्यांमार देश स्थित है। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण-पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व मंे इण्डोनेशिया है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत है और दक्षिण में हिन्द महासागर है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर है। भारत में कई बड़ी नदिया हैं। गंगा नदी भारतीय सभ्यता में अत्यन्त पवित्र मानी जाती हैं। अन्य बड़ी नदियाँ नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, चम्बल, सतलज, व्यास हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। यहाँ 300 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। यह विश्व की कुछ प्राचीनतम सभ्यताओं का पालना रहा है जैसे-सिन्धु घाटी सभ्यता और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यापार पथो का अभिन्न अंग रहा है। विश्व के चार प्रमुख धर्म-सनातन-हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा सिख भारत में जन्में और विकसित हुए।
”भारत“ ने विश्व का सर्वप्रथम, प्राचीन और वर्तमान तक अकाट्य ”क्रिया-कारण“ दर्शन कपिल मुनि के माध्यम से दिया जिसे आज का दृश्य विज्ञान (पदार्थ या भौतिक विज्ञान) ने भी आइन्सटाइन के माध्यम से E=mc2 देकर और दृढ़ता ही प्रदान की है। भारत प्रत्येक वस्तु जिससे मनुष्य जीवन पाता है और ऐसी प्रत्येक वस्तु जिससे मनुष्य का जीवन संकट में पड़ सकता है उसे देवता मानता है। इस प्रकार हमारे भारत में 33 करोड़ देवता पहले से ही हैं और हमारा भारत सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ही देवता और ईश्वर के रूप में देखता व मानता है और इसकी व्यवस्था व विकास हेतु कर्म करता रहा है। ”भारत“ ने ”शून्य“ व ”दशमलव“ दिया जिसपर विज्ञान की भाषा गणित टीकी हुई है। ”भारत“ का अपनी भाषा में नाम ”भारत“ है तथा विश्वभाषा में नाम ßINDIAÞ है। ßINDIAÞ का विरोध नहीं होना चाहिए बल्कि भारत को विश्वभारत बनाकर नाम ßINDIAÞ को पूर्णता प्रदान करना चाहिए। संकुचन में नहीं बल्कि व्यापकता में विश्वास करना चाहिए। अंश में नहीं बल्कि पूर्णता, समग्रता व सार्वभौमिकता में विश्वास करना चाहिए। समग्र ब्रह्माण्ड निरन्तर फैल रहा है। मानव जाति को भी अपने मस्तिष्क और हृदय को फैला कर विस्तृत करना होगा। तभी विकास, शान्ति, एकता व स्थिरता आयेगी।
भारत में एक
भारत का राष्ट्रीय ध्वज-तिरंगा भारत का राष्ट्रीय गान-जन-गण-मन
भारत का राष्ट्रीय गीत-वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रीय चिन्ह-अशोक स्तम्भ
भारत का राष्ट्रीय पंचांग-शक संवत भारत का राष्ट्रीय वाक्य-सत्यमेव जयते
भारत की राष्ट्रीयता-भारतीयता भारत की राष्ट्र भाषा-हिंदी
भारत की राष्ट्रीय लिपि-देव नागरी भारत का राष्ट्रीय ध्वज गीत-हिंद देश का प्यारा झंडा
भारत का राष्ट्रीय नारा-श्रमेव जयते भारत की राष्ट्रीय विदेशनीति-गुट निरपेक्ष
भारत का राष्ट्रीय पुरस्कार-भारत रत्न भारत का राष्ट्रीय सूचना पत्र-श्वेत पत्र
भारत का राष्ट्रीय वृक्ष-बरगद भारत की राष्ट्रीय मुद्रा-रूपया
भारत की राष्ट्रीय नदी-गंगा भारत का राष्ट्रीय पक्षी-मोर
भारत का राष्ट्रीय पशु-बाघ भारत का राष्ट्रीय फूल-कमल
भारत का राष्ट्रीय फल-आम भारत का राष्ट्रीय खेल-हॉकी
भारत की राष्ट्रीय मिठाई-जलेबी भारत के राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह ()
भारत के राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) और 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस)
भारत की राष्ट्रीय योजना-पंच वर्षीय योजना (पहले योजना आयोग अब नीति आयोग)
भारत का राष्ट्रीय शास्त्र-अभी निर्धारित नहीं।
भारत के विश्वरूप का शास्त्र ही ”विश्वशास्त्र“ है। जिसकी उपयोगिता एक राष्ट्र-एक शास्त्र के रूप है। वर्तमान समय में भारतीय संविधान को ही राष्ट्रीय शास्त्र के रूप में माना जाता है जबकि श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का कहना है-”किसी देश का संविधान, उस देश के स्वाभिमान का शास्त्र तब तक नहीं हो सकता जब तक उस देश की मूल भावना का शिक्षा पाठ्यक्रम उसका अंग न हो। इस प्रकार भारत देश का संविधान भारत देश का शास्त्र नहीं है। संविधान को भारत का शास्त्र बनाने के लिए भारत की मूल भावना के अनुरूप नागरिक निर्माण के शिक्षा पाठ्यक्रम को संविधान के अंग के रूप में षामिल करना होगा। जबकि राष्ट्रीय संविधान और राष्ट्रीय शास्त्र के लिए हमें विश्व के स्तर पर देखना होगा क्योंकि देश तो अनेक हैं राष्ट्र केवल एक विश्व है, यह धरती है, यह पृथ्वी है। भारत को विश्व गुरू बनने का अन्तिम रास्ता यह है कि वह अपने संविधान को वैश्विक स्तर पर विचार कर उसमें विश्व शिक्षा पाठ्यक्रम को शामिल करे। यह कार्य उसी दिशा की ओर एक पहल है, एक मार्ग है और उस उम्मीद का एक हल है। राष्ट्रीयता की परिभाषा व नागरिक कर्तव्य के निर्धारण का मार्ग है। जिस पर विचार करने का मार्ग खुला हुआ है।“ -लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
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