Wednesday, April 1, 2020

सौर मण्डल

सौर मण्डल

अपना सूर्य जिस नीहारिका का परिभ्रमण कर रहा है उसका नाम मंदाकिनी और व्यास प्रायः 4 लाख प्रकाश वर्ष है। सूर्य इन दिनांे 2 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की चाल से चल रहा है। अपनी नीहारिका का एक पूरा चक्कर लगाने में उसे 25 करोड़ प्रकाश वर्ष लगते हैं। अनुमान है कि अपने सूर्य को अपनी नीहारिका की 10 परिक्रमा लगाते-लगाते बुढ़ापा आ जायेगा और एक-दो परिक्रमा और कर लेने के उपरान्त उसका मरण हो जायेगा। अपनी नीहारिका अब तक 10 हजार तारा गुच्छकों को जन्म दे चुकी है। प्रत्येक तारा गुच्छक में कम से कम 100 सूर्य हैं। इस प्रकार इसके पुत्र सूर्यो की संख्या 10 लाख को पार कर गई है। जिस प्रकार अपने सूर्य के 9 ग्रह और 32 उपग्रह हैं उसी प्रकार इन 10 लाख सूर्यो के भी बाल-बच्चे होगें। यह सारा परिवार बेटे-तारा गुच्छक, पोते-सूर्य, परपोते-ग्रहपिण्ड और उनके भी पुत्रगण-उपग्रहों समेंत अरबों की संख्या में सदस्यों का बन चुका है। इतने पर भी अपनी नीहारिका की न तो जवानी समाप्त हुई है और न उसके प्रजनन कृत्य में कोई कमी आई है। उसके अपने निजी पुत्र तारा गुच्छक अभी और जन्मेंगें। वे उसके पेट में कुलबुला रहे हैं और भ्रूण की तरह पक रहे हैं। समयानुसार प्रसव होते रहेंगे और यह परिवार अभी अकल्पनीय काल तक इसी प्रकार बढ़ता रहेगा। यह तो मात्र अपनी एक नीहारिका की बात है। फिर ऐसी-ऐसी अन्य सहस्त्रों नीहारिकाएँ और भी हैं। उन सबके अपने-अपने परिवार ओर विस्तार मिला लेने पर ब्रह्माण्ड विस्तार की परिकल्पना और भी अधिक कठिन हो जाती है।
सौर परिवार अति विशाल है। सूर्य की गरिमा अद्भुत है। उसका वजन सौर परिवार के समस्त ग्रहों-उपग्रहों के सम्मिलित वजन से लगभग 750 गुना अधिक है। सौरमण्डल केवल विशाल ग्रह और उपग्रहों का ही सुसम्पन्न परिवार नहीं है, उसमें छोटे और नगण्य समझे जाने वाले क्षुद्र ग्रहों का अस्तित्व भी अक्षुण्ण है और उन्हें भी समान, सम्मान एवं सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह विश्व सहयोग पर टिका हुआ है, संघर्ष पर नहीं। संघर्ष की उद्धत नीति अपनाकर बड़े समझे जाने वाले भी क्षुद्रता से पतित होता है। यह क्षुद्र ग्रह यह बताते रहते हैं कि हम कभी महान थे पर संघर्ष के उद्धत आचरण ने हमें इस दुर्गति के गर्त में पटक दिया।
अपने सौरमण्डल के सदस्यों में कुछ ग्रह हैं, कुछ उपग्रह। ग्रहों में सूर्य को छोड़कर 9 ग्रह हैं। इनमें से कुछ तो खुली आँखों से देखे जा सकते हैं और कुछ ऐसे हैं जो अधिक दूरी तथा रोशनी की कमी के कारण विशेष उपकरणों से ही देखे जा सकते हैं। इन ग्रहों की दूरी, परिधि, भ्रमण कक्षा तथा प्रति सेकण्ड चाल का लेखा-जोखा निम्न प्रकार है-

01. बुध- सूर्य से अधिकतम दूरी 579 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 88 दिन में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 58.6 दिन, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 48 किलो मीटर।

02. शुक्र- सूर्य से अधिकतम दूरी 1082 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 225 दिन में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 250 दिन, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 35 किलो मीटर।

03. पृथ्वी- सूर्य से अधिकतम दूरी 1495 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 365.26 दिन में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 23.9 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 29.8 किलो मीटर।

04. मंगल- सूर्य से अधिकतम दूरी 2279 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 687 दिन में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 25 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 24.1 किलो मीटर।

05. बृहस्पति- सूर्य से अधिकतम दूरी 7783 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 11.86 वर्ष में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 9.55 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 13.1 किलो मीटर।

06. शनि- सूर्य से अधिकतम दूरी 14269 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 29.3 वर्ष में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 10.4 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 9.6 किलो मीटर।

07. अरूण (यूरेनस)- सूर्य से अधिकतम दूरी 28709 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 84 वर्ष में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 16.2 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 6.8 किलो मीटर।

08. वरूण (नेप्च्यून)- सूर्य से अधिकतम दूरी 214970 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 166 वर्ष में, अपनी धुरी परिभ्रमण 18 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 5.4 किलो मीटर।

09. यम (प्लूटो)- सूर्य से अधिकतम दूरी 59135 लाख किलो मीटर, सूर्य की परिक्रमा 248.6 वर्ष में, अपनी धुरी पर परिभ्रमण 6 दिन 9.3 घंटे, अपने कक्ष पर गति प्रति सेकण्ड 4.7 किलो मीटर।

गुरूत्वाकर्षण बल के कारण सभी 9 ग्रह घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इन ग्रहों के भ्रमण का कक्ष दीर्घवृत्तीय होता है। बुध सूर्य के सर्वाधिक निकट ग्रह है। इसके बाद क्रमशः शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरूण, वरूण एवं प्लूटो का स्थान आता है। प्लूटो को छोड़कर अन्य ग्रहों को दो वर्गो में विभाजित किया जाता है।
01. आन्तरिक ग्रह- चट्टानों से निर्मित बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल। इस वर्ग में पृथ्वी सबसे बड़ी।
02. बाह्य ग्रह- गैसों से निर्मित बृहस्पति, शनि, अरूण एवं वरूण।
उपरोक्त ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो निम्न प्रकार हैं-
1. बुध-कोई उपग्रह नहीं, 2. शुक्र-कोई उपग्रह नहीं, 3. पृथ्वी-1 (चन्द्रमा), 4. मंगल-2, 5. बृहस्पति-16, 6. शनि-22, 7. अरूण (यूरेनस)-15, 8. वरूण (नेप्च्यून)-8, 9. यम (प्लूटो)-3
अंतरिक्ष नामकरण की एकमात्र अधिकृत संस्था अन्तर्राष्ट्रीय खगोलशास्त्रीय संघ (International Astronomical Union-IAU) द्वारा 24 अगस्त, 2006 से यम (प्लूटो) की ग्रहीय मान्यता समाप्त की जा चुकी है। जिसका कारण यह है कि प्लूटो की कक्षा पड़ोसी ग्रह वरूण की कक्षा को काटती है तथा अपने गुरूत्वाकर्षण के लिए उसका न्यूनतम द्रव्यमान इतना नहीं है कि वह लगभग गोलाकार हो।
इस सौर मण्डल के पृथ्वी ग्रह पर मानव सहित अनेक जन्तु व वनस्पतियों का निवास है। मनुष्य इस पृथ्वी पर अपने ज्ञान-विज्ञान व बुद्धि से अनेक प्रकार के प्रपंच को फैला रखा है परन्तु वह पदार्थ यहीं से प्राप्त करता है जो उसके द्वारा निर्मित नहीं है।


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