क्षेत्र वासीयों गर्व से कहो-“हम सत्यकाशी निवासी हैं”
कर्मवेदान्त की प्रथम शिक्षा आधारित गीता उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आदि में मैं (आत्मा) और अन्त में भी मैं (आत्मा) हूँ। अदृश्य (सार्वजनिक प्रमाणित) काल में उन्होंने युद्ध क्षेत्र में अपने योगेश्वर रुप (सार्वभौम ज्ञान/आत्मा का विश्व रुप अर्थात् भोगेश्वर का अदृश्य रुप) द्वारा यह व्यक्त किये और वर्तमान के दृश्य (सार्वजनिक प्रमाणित) काल में श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने ”विश्वशास्त्र“ द्वारा भोगेश्वर रुप (सार्वभौम दृश्य कर्मज्ञान/सिद्धान्त का विश्व रुप अर्थात् आत्मा का दृश्य रुप अर्थात् योगेश्वर का दृश्य रुप) को व्यक्त किये जिसका पूर्ण दर्शन समाज को अब हो रहा है। क्योंकि ज्ञान, कर्म का अदृश्य रुप और कर्म, ज्ञान का दृश्य रुप है। अर्थात् कर्म को जानो व्यक्ति के ज्ञान को जान जाओगे। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश में कर्म करने की शिक्षा तो दी लेकिन उस सिद्धान्त की शिक्षा न दी जिसके आधार पर उन्होनें धर्म स्थापना की। बस यहीं सिद्धान्त ही कर्मवेद है। जिसका ज्ञान न होने के कारण ही मानसिक गुलामी के साथ आश्रितों की संख्या बढ़ रही है। वर्तमान समय विश्वव्यापी धर्म स्थापना का है न कि धर्म प्रचार का क्योंकि धर्म स्थापना की आवश्यकता की पहचान तीन सम्बन्धों द्वारा ज्ञात होता है। देश सम्बन्ध, रिश्ता सम्बन्ध और रक्त सम्बन्ध। श्रीराम के समय देश सम्बन्ध खराब तथा शेष दो सम्बन्ध ठीक था। श्रीकृष्ण के समय देश सम्बन्ध और रिश्ता सम्बन्ध खराब था, सिर्फ रक्त सम्बन्ध ठीक था और वर्तमान समय में तीनों सम्बन्ध खराब हो चुके हैं। परिणामसवरुप कर्म आधारित मानव सम्बन्ध बढ़ रहे है और बस यहीं सम्बन्ध धर्म है। राज्य और समाज क्षेत्र के बीच बढ़ती दूरी भी धर्म स्थापना का प्रतीक है।
वेदान्त की अन्तिम शाखा-कर्म वेदान्त के प्रथम चरण में कर्म की शिक्षा भगवान श्रीकृष्ण (पूर्ण ब्रह्म की प्रथम कड़ी) द्वारा, वेदान्त की व्यवहारिकता की शिक्षा स्वामी विवेकानन्द के द्वारा और अन्त में कर्मवेदान्त अर्थात् पूर्ण व्यवहारिक कर्म ज्ञान का विश्व रुप की शिक्षा श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा व्यक्त ”विश्वशास्त्र“ द्वारा पूर्ण हुई है।
इस क्षेत्र के कल्याण का एक और अन्तिम रास्ता है-श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा ”विश्वशास्त्र“ में व्यक्त व सार्थक योजनाबद्ध किया गया ”सत्यकाशी महायोजना“। जिसमें सहयोग ही आपका स्वयं के लिए सहयोग है। जो बुद्धि युक्त है और जो बुद्धि एवं धन युक्त है-वे इस निर्माण का भरपुर लाभ उठा लेंगे लेकिन वे जो सिर्फ धनयुक्त हैं वे सिर्फ देखते रह जायेंगे। जो जितना क्रमशः उच्चतर-शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक विषयों का आदान-प्रदान करता है वहीं विकास करता है जीवकोपार्जन तो पशु पक्षी भी कर लेते हैं। दूर-दृष्टि से लाभ उठायें और गर्व से कहें-”हम सत्यकाशी निवासी हैं
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