Friday, March 13, 2020

”विश्वशास्त्र“ की रचना क्यों?

”विश्वशास्त्र“ की रचना क्यों?

”विश्वशास्त्र“ की रचना मात्र निम्न कारणो से की गई है और अगर प्रस्तुत शास्त्र, ”विश्वशास्त्र“ नहीं है तो ऐसे शास्त्र की रचना मानव बुद्धि शक्ति समाज द्वारा निम्न कारणों के लिए की जानी चाहिए।
1. प्रकृति के तीन गुण- सत्व, रज, तम से मुक्त होकर ईश्वर से साक्षात्कार करने के ”ज्ञान“ का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ उपल्ब्ध हो चुका था परन्तु साक्षात्कार के उपरान्त कर्म करने के ज्ञान अर्थात ईश्वर के मस्तिष्क का ”कर्मज्ञान“ का शास्त्र उपलब्ध नहीं हुआ था अर्थात ईश्वर के साक्षात्कार का शास्त्र तो उपलब्ध था परन्तु ईश्वर के कर्म करने की विधि का शास्त्र उपलब्ध नहीं था। मानव को ईश्वर से ज्यादा उसके मस्तिष्क की आवश्यकता है।
2. प्रकृति की व्याख्या का ज्ञान का शास्त्र ”श्रीमदभगवद्गीता या गीता या गीतोपनिषद्“ तो उपलब्ध था परन्तु ब्रह्माण्ड की व्याख्या का तन्त्र शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
3. समाज में व्यष्टि (व्यक्तिगत प्रमाणित) धर्म शास्त्र (वेद, उपनिषद्, गीता, बाइबिल, कुरान इत्यादि) तो उपलब्ध था परन्तु समष्टि (सार्वजनिक प्रमाणित) धर्म शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे मानव अपने-अपने धर्मो में रहते और दूसरे धर्म का सम्मान करते हुए विश्व-राष्ट्र धर्म को भी समझ सके तथा उसके प्रति अपने कत्र्तव्य को जान सके।
4. शास्त्र-साहित्य से भरे इस संसार में कोई भी एक ऐसा मानक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे पूर्ण ज्ञान - कर्म ज्ञान की उपलब्धि हो सके साथ ही मानव और उसके शासन प्रणाली के सत्यीकरण के लिए अनन्त काल तक के लिए मार्गदर्शन प्राप्त हो सके अर्थात भोजन के अलावा जिस प्रकार पूरक दवा ली जाती है उसी प्रकार ज्ञान - कर्म ज्ञान के लिए पूरक शास्त्र उपलब्ध नहीं था जिससे व्यक्ति की आजिविका तो उसके संसाधन के अनुसार रहे परन्तु उसका ज्ञान - कर्म ज्ञान अन्य के बराबर हो जाये। 
5. ईश्वर को समझने के अनेक भिन्न-भिन्न प्रकार के शास्त्र उपलब्ध थे परन्तु अवतार को समझने का शास्त्र उपलब्ध नहीं था।
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Why the creation of "Vishwashastra"?

"Vishwashastra" has been composed only for the following reasons and if the scripture presented is not "Vishvastra", then such scripture should be composed by the human intelligence power society for the following reasons.

1. The three virtues of nature - Srimad, Raja, Tama, freeing and interviewing God, the scripture of "knowledge", Srimad Bhagavadgita or Gita or Geetopanishad "had become available, but after the interview, the knowledge of doing deeds means God's brain" The scripture of "Karmigyan" was not available, that is, the scripture for interviewing God was available, but the scripture of the method of doing God was not available. Was In. Man needs his brain more than God.

2. The scripture of knowledge of the interpretation of nature "Shrimad Bhagavadgita or Gita or Geetopanishad" was available but the scripture of the interpretation of the universe was not available.

3. Individual (personally attested) Dharma Shastra (Vedas, Upanishads, Gita, Bible, Quran etc.) was available in the society but Samasthi (publicly attested) Dharma Shastra was not available so that humans live in their respective religions and respect other religion. While doing so, the world nation can also understand religion and know its duty towards it.

4. There was no such standard scripture available in this world full of scriptures and literature, which would lead to the achievement of complete knowledge and action, as well as guidance for the eternalization of man and his system of governance, that is, for ever. In the same way as supplementary medicine is taken in addition to food, in the same way supplementary science was not available for knowledge - karma knowledge, so that a person's livelihood can be used for his resources. Accordingly are but his knowledge - action knowledge should be equal to the other.

5. Many different types of scriptures were available to understand God, but the scripture to understand the avatar was not available.



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