मानव निर्मित उत्पाद
01. शरीर आधारित मानव निर्मित उत्पाद
02. धन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
1. बैंकिग उत्पाद और उसका व्यापारिक गणित
2. शेयर, डिबेन्चर तथा म्यूचुल फण्ड और उसका व्यापारिक गणित
3. वायदा बाजार और उसका व्यापारिक गणित
4. सट्टा, पेपर एवं आॅन लाइन लाॅटरी और उसका व्यापारिक गणित
5. बाजी और उसका व्यापारिक गणित
03. मन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
04. मनोरंजन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
05. मशीन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
01. शरीर आधारित मानव निर्मित उत्पाद
02. धन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
1. बैंकिग उत्पाद और उसका व्यापारिक गणित
बैंकिंग उत्पाद वे उत्पाद हैं जो विभिन्न प्रकार के योजनाओं में धन जमा करवाते हैं। इसको निम्नलिखित दो प्रकार में बाँटा जा सकता है-
अ. जमा सम्बन्धित
जमा सम्बन्धित बैंकिंग उत्पाद जमा धन के बदले योजनाओ।के आधार पर ब्याज के रूप में लाभ देते हैं। ये अलग-अलग बैंक के योजनाओं के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। सामान्यतः जमा योजना उदाहरण हैं-बचत बैंक खाता, जिसमें धन जमा करने और निकालने के लिए कोई अवधि नहीं होती। आवर्ती जमा खाता, इसमें एक अवधि के समय में निर्धारित की गई राशि लगातार जमा करना पड़ता है और अवधि पूर्ण होने के बाद बयाज सहित वापसी होती है। सावधि जमा खाता, इसमें एक निश्चित राशि, एक निश्चित समय के लिए एक बार ही जमा की जाती है और अवधि पूर्ण होने पर एक बार में ही निकाल ली जाती है। सावधि जमा खाता में जमा धन के कुछ अवधि पूरे होने पर ऋण लेने की भी व्यवस्था होती है।
ब. बीमा सम्बन्धित
बीमा सम्बन्धित बैंकिंग उत्पाद जमा धन के बदले योजनाओ।के आधार पर ब्याज के रूप में लाभ देते हैं। साथ ही योजनाओं के अनुसार समयावधि के बीच धन के कुछ अंश की वापसी, अवधि पूर्ण होने पर ब्याज साथ धन की वापसी और समयावधि के बीच मृत्यु होने पर योजना के अनुसार वादा किये गये राशि का भुगतान होता है। बीमा उत्पाद के इस प्रकार के उत्पाद जीवन बीमा के अन्र्तगत आते हैं। जबकि स्वास्थ्य, दुर्घटना और अन्य जैसे मोटर-वाहन, दुकान-मकान इत्यादि के बीमा उत्पाद सामान्य बीमा के अन्तर्गत आते हैं।
बैंकिंग उत्पाद का सीधा सा गणित धन एकत्र करना और उसे किसी जरूरतमन्द व्यक्ति, व्यापारिक, औद्योगिक संगठन को ऋण के रूप में अधिक ब्याज पर देना और उसमें से कुछ कम ब्याज को धन जमा करने वाले को देना है।
2. शेयर, डिबेन्चर तथा म्यूचुल फण्ड और उसका व्यापारिक गणित
शेयर क्या होते हैं
शेयर का अर्थ है अंश यानी हिस्सा यदि आपके पास किसी कंपनी के शेयर है तो आप उस कंपनी के उतने हिस्से के मालिक बन जाते हैं जितने शेयर आपके पास हैं. शेयर को हिंदी में अंश कहते हैं और शेयर होल्डर को अंशधारक। शेयर बाजार से शेयर खरीद कर आप भी वहां लिस्टेड किसी भी कंपनी के मालिक बन सकते हैं। आप जितना शेयर खरीदेंगे उस कंपनी में आप उतने ही हिस्से के मालिक बन जाएंगे। सभी शेयर कंपनी द्वारा घोषित किये गए सभी डिविडेंड अथवा बोनस शेयर के अधिकारी होते हैं।
किसी भी कंपनी को शुरू करने के लिए बहुत बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है। यह बहुत कठिन है कि इतनी बड़ी पूंजी कोई एक व्यक्ति अपने पास से उस कंपनी में लगा सके यदि उस बड़ी पूंजी को छोटे-छोटे अंशों अथवा शेयरों में बांट दिया जाए तो बहुत से व्यक्ति उस कंपनी में हिस्सेदारी खरीदकर उस कंपनी के मालिक बन सकते हैं कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार शेयर खरीद कर कंपनी के उतने ही हिस्से का मालिक बन सकता है जितनी उसकी क्षमता है. कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी कंपनी के शेयर खरीद सके इसके लिए आवश्यक है कि वह कंपनी किसी ना किसी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड हो। एक बार यदि कोई कंपनी किसी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हो जाती है तो उस कंपनी के शेयरों की ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज में शुरू हो जाती है।
जो व्यक्ति अथवा व्यक्तियों का समूह किसी कंपनी को शुरू करने की योजना बनाते है उन्हें प्रमोटर कहा जाता है. प्रमोटर एक हिस्सा उन शेयरों में अपने पास रखते है और बाकी हिस्सा पब्लिक को पेश किया जाता है. जो हिस्सा प्रमोटरों के पास रहता है आमतौर पर वह हिस्सा शेयर मार्केट में ट्रेड होने के लिए नहीं आता। शेयर मार्केट में वही हिस्सा ट्रेड होता है जो पब्लिक के पास होता है।
लिस्टिंग के बाद उस कंपनी के शेयरधारक अपने शेयर उस स्टॉक एक्सचेंज पर बेच सकते है तथा उस शेयर को खरीदने के इच्छुक व्यक्ति उस शेयर को उसी स्टॉक एक्सचेंज से खरीद सकते हैं। जब किसी कंपनी का शेयर आसानी से बिकने या खरीदने के लिए उपलब्ध रहता है तो उसे कंपनी की शेयरों की लिक्विडिटी अथवा तरलता कहा जाता है किसी भी शेयर की वास्तविक बाजार कीमत उसके फेस वैल्यू से अधिक अथवा कम हो सकती है और यह कीमत शेयर की मांग और पूर्ति पर निर्भर करती है। यह शेयर बाजार का साधारणता नियम है कि जिस शेयर की मांग अधिक होती है उसकी कीमत बढ़ती है और जिस शेयर की मांग नहीं होती है उसे शेयर होल्डर बेचना चाहते है तो उस शेयर की कीमत घट जाती है.
आमतौर पर शेयरों में निवेश करने वाले को निवेशक कहा जाता है मगर बहुत से लोग डे ट्रेडिंग में काम करते है। वास्तविक निवेशक वही होते हैं जो शेयर खरीदने के बाद उसे कम से कम तीन वर्ष के लिए अपने पास रखें।
डे ट्रेडिंग में शेयर को खरीदने अथवा बेचने के बाद उसी दिन सौदे को वापस कर दिया जाता है। यानी कि यदि कोई डे ट्रेडर यह सोच कर की आज किसी इंडस्ट्रीज का शेयर बढ़ने वाला है मार्केट में ट्रेडिंग के शुरुआत में उसे खरीद लेता है और मार्केट बंद होने से पहले ही वापस बेच देता है तो उसे डे ट्रेडिंग कहेंगे। डे ट्रेडिंग बहुत ही खतरनाक खेल है और एक तरह से जुआ ही है इसलिए इससे अधिकतर निवेशकों को दूर ही रहना चाहिए। हो सकता है कि जब आप किसी ब्रोकर अथवा बैंक के पास अपना ट्रेडिंग अकाउंट खोलें तो वहां का स्टाफ आपको डे ट्रेडिंग के लिए निमन्त्रित करें। आप इस बात को समझ लीजिए कि आप जितनी बार भी ट्रेडिंग करेंगे तो ब्रोकर को अपनी ब्रोकरेज मिलेगी।
जरूरी नहीं है की हर सौदे में आपको प्रॉफिट ही हो इसलिए जब भी निवेश करें लंबी अवधि के बारे में सोच कर ही निवेश करें और अपने फैसले पर विश्वास रखें। बार बार शेयरों को स्विच करना फायदेमंद नहीं होता। हर तीन से छः महीने में अपने पोर्टफोलियो का आकलन जरूर कर लें।
शेयर बाजार
शेयर बाजार में काम के घंटों में ब्रोकर अपने ग्राहकों के लिए उनके द्वारा दिए गए आर्डर टर्मिनल में डाल देते हैं। इसके बदले में ब्रोकर को ब्रोकरेज या दलाली मिलती है। हम कह सकते हैं कि मुख्यतः शेयर बाजार की तीन कड़ियाँ हैं स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर और निवेशक।
ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य होते है और केवल वे ही उस स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेडिंग कर सकते हैं। ग्राहक सीधे जाकर शेयर खरीद या बेच नहीं सकते उन्हें केवल ब्रोकर के जरिए ही जाना पड़ता है।
देश में मुख्यतः BSE यानी मुंबई स्टॉक एक्सचेंज और NSE यानी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज हैं जिन पर शेयरों का कारोबार होता है। अधिकतर कंपनियां जिनके शेयर मार्केट में ट्रेड होते हैं इन दोनों स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड है मगर यह भी हो सकता है की कोई कंपनी इन दोनों में से किसी एक ही एक्सचेंज पर लिस्टेड हों। देश के मुख्यता सभी बड़े बैंक या उनकी सबसिडी कंपनियां और अन्य बड़ी वित्तीय कंपनियां इन एक्सचेंजों में ब्रोकर के तौर पर काम करती हैं। ग्राहक इन ब्रोकर कम्पनियों के पास जाकर अपने डीमैट अकाउंट की जानकारी देकर अपना खाता ब्रोकर के पास खुलवा सकता है। इस प्रकार ग्राहक का डीमैट एकाउंट ब्रोकर के अकाउंट से जुड़ जाता है और खरीदी अथवा बेची गई शेयर्स ग्राहक के डीमैट अकाउंट से ट्रांसफर हो जाती हैं। इसी प्रकार ग्राहक अपना बैंक खाता भी ब्रोकर के खाते के साथ जोड़ सकता है जिससे खरीदे अथवा बेचे गए शेयरों की धनराशि ग्राहक के खाते में ट्रांसफर की जाती है। ग्राहक द्वारा खरीदे गए शेयर इलेक्ट्रॉनिक रूप में उसके डीमैट एकाउंट में पड़े रहते हैं जब भी कोई कंपनी डिविडेंड की घोषणा करती है तो डीमैट अकाउंट से जुड़े बैंक खाते में डिविडेंड की राशि पहुंच जाती है। इसी प्रकार यदि कंपनी बोनस शेयरों की घोषणा करती है तो बोनस शेयर भी शेयरहोल्डर के डीमैट अकाउंट में पहुंच जाते हैं। ग्राहक जब शेयर बेचता है तो उसी डीमैट अकाउंट से वह शेयर ट्रान्सफर हो जाता है। शेयरों में कारोबार करने के लिए एक निवेशक के पास डीमैट अकाउंट, ब्रोकर के पास ट्रेडिंग अकाउंट और उससे जुडा एक बैंक खाता होना जरूरी है। कई बैंक इसके लिए थ्री इन वन खाता खोलने की सुविधा भी देते हैं।
अधिकतर ब्रोकर हाउस आपको ऑनलाइन शेयर ट्रेडिंग की सुविधा भी प्रदान करते हैं इसके अलावा आप फोन करके भी अपने ऑर्डर दे सकते है। यदि आप भी शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं तो शेयर बाजार क्या है और शेयर बाजार कैसे काम करता है यह आपके लिए समझना बहुत आवश्यक है.
शेयर बाजार कैसे काम करता है
जब भी हम किसी बाजार की कल्पना करते है तो हमारे दिमाग में किसी ऐसी जगह की इमेज बनती है, जहाँ बहुत-सी दुकानें होंगी या कोई मॉल जहां जाकर आप खरीदारी कर सकते हैं मगर शेयर बाजार ऐसा बाजार नहीं है। शेयर बाजार में खरीदने और बेचने का काम पूरी तरह से कंप्यूटर द्वारा ऑटोमेटिक तरीके से होता है। कोई भी शेयर खरीदने या बेचने वाला अपने ब्रोकर के द्वारा एक्सचेंज पर अपना आर्डर देता है और पलक झपकते ही पेंडिंग आर्डरों के अनुसार ऑटोमेटिकली सौदे का मिलान हो जाता है।
मुंबई का शेयर बाजार
सन् 1875 में स्थापित यह एशिया का पहला शेयर बाजार है। शेयर बाजार एक ऐसा बाजार है जहाँ कंपनियों के शेयर खरीदे-बेचे जा सकते हैं। किसी भी दूसरे बाजार की तरह शेयर बाजार में भी खरीदने और बेचने वाले एक-दूसरे से मिलते हैं और मोल-भाव कर के सौदे पक्के करते हैं। पहले शेयरों की खरीद-बिक्री मौखिक बोलियों से होती थी और खरीदने-बेचने वाले मुंहजबानी ही सौदे किया करते थे। लेकिन अब यह सारा लेन-देन स्टॉक एक्सचेंज के नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटरों के जरिये होता है। इंटरनेट पर भी यह सुविधा मिलती है। आज स्थिति यह है कि खरीदने-बेचने वाले एक-दूसरे को जान भी नहीं पाते।
एक प्रकार से देखे तो यहा पर शेयरो की नीलामी होती है। अगर किसी को बेंचना होता है तो सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को ये शेयर बेंच दिया जाता है। या अगर कोई शेयर खरीदना चाह्ता है तो बेचने वालों में से जो सबसे कम कीमत पर तैयार होता है उससे शेयर खरीद लिया जता है। शेयर मन्डी ;जैसे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज इस तरह कि बोलियाँ लगाने के लिये जरूरी सभी तरह कि सुविधाये मुहैया कराते है। सोचिये, एक दिन मे करोड़ो शेयरों का आदान-प्रदान होता है। कितना मुश्किल हो जाये अगर सभी कारोबरियोँ को चिल्ला चिल्ला के ही खरीदे और बेंचने वालो को ढूंढ्ना हो। अगर ऐसा हो तो शेयर खरीद्ना और बेंचना कमोबेश असम्भव हो जायेगा। शेयर मन्डियाँ इस काम को सरल और सही ढंग से करने का मूलभूत ढांचा प्रदान करती है। कई प्रकार के नियम, कम्प्यूटर की मदद, शेयर ब्रोकर, इंटरनेट के माध्यम से ये मूलभूत ढांचा दिया जाता है। असल मे शेयर बाजार एक बहुत ही सुविधाजनक सब्जी मंडी से ज्यादा कुछ भी नही है।
कुछ साल पहले तक बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज मे सीधे खरीद फरोख्त करनी पड़ती थी। पिछ्ले कुछ सालो से कम्प्यूटरों और इंटरनेट के माध्यम से कोई भी घर बैठे शेयर खरीद और बेच सकता है। सूचना क्रांति का ये एक उत्कृष्ट नमुना है। जो काम पहले कुछ पैसे वाले लोग ही कर सक्ते थे अब वोह सब एक आम आदमी भी कर सकता है।
आम ग्राहक को किसी डीमैट सर्विस देने वले बैंक मंे अपना खाता खोलना पडता है। आजकल कई बैंक जैसे आईसीआईसीआई, एच डी एफ सी, भारतीय स्टेट बैंक, इत्यादि डीमैट सर्विस देते है। इस तरह के खाते की सालाना फीस 500-800 रु0 तक होती है।
शेयर बाजार किसी भी विकसित देश की अर्थ्व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते है। जिस तरह से किसी देश, गाँव या शहर के विकास के लिये सडके, रेल यातायात, बिजली, पानी सबसे जरूरी होते है, वैसे ही देश के उद्योगों के विकास के लिये शेयर बाजार जरूरी है। उद्योग धन्धों को चलाने के लिये कैपिटल चहिये होता है। ये उन्हें शेयर बाजार से मिलता हैे। शेयर बाजार के माध्यम से हर आम आदमी बडे़ से बडे़ उद्योग मे अपनी भागिदारी कर सकता है। इस तरह की भागीदारी से वो बडे़ उद्योगों मे होने वाले मुनाफे में बराबर का हिस्सेदार बन सकता है। मान लीजिये, अगर किसी भी नागरिक को ये लगता है कि आने वाले समय मे रिलायंस या इंफोसिस भारी मुनाफा कमाने वाली है, तो वह इस कम्पनीयों के शेयर खरीद के इस मुनाफे मे भागीदार बन सकता है। और ऐसा करने के लिये तो व्यवस्था चहिये वो शेयर बाजार प्रदान करता है। एक अच्छा शेयर बाजार इस बात का ख्याल रखता है कि किसी भी निवेशक को बराबर का मौका मिले।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज व नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के अलावा देशभर मे 27 क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज है। विश्व के प्रमुख शेयर बाजार हैं-न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, नैशनल स्टॉक एक्सचेंज
शेयर बाजार टिप्स
यदि आप इनका ध्यान रखेंगे तो शेयर बाजार में आपको कभी घाटा नहीं होगा और अवश्य ही आप यहाँ अच्छा खासा मुनाफा कमा कर जायेंगे.
लंबी अवधि के लिये है शेयर बाजार-छोटी अवधि में शेयर बाजार भावनाओं पर चलता है। बाजार के अनुकूल अथवा प्रतिकूल समाचार बाजार के घटाव बढ़ाव को प्रभावित करते हैं। मगर लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था का असर बाजार पर अवश्य ही आयेगा। यदि कोई कंपनी आर्थिक प्रगति कर रही है तो देर सवेर उसका असर उसके बाजार भावों पर अवश्य ही पड़ेगा।
यदि आपके पास कुछ पैसा निवेश के लिये उपलब्ध है मगर केवल छह माह के लिये तो बाजार में ना लगा कर उसे बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट या डेब्ट म्यूच्यूअल फण्ड में ही लगायें। बाजार में निवेश कम से कम तीन वर्ष के लिये करें।
शुरुआत म्यूचल फंड से-शुरू में म्यूचल फंड में निवेश करें और वह भी SIP (Systematic
Investment Plan) के द्वारा। इससे आपको रोज रोज ना तो बाजार पर नजर रखनी पड़ेगी और न ही स्वंय को अधिक समय बाजार में देना पड़ेगा। बस विशेषज्ञों पर भरोसा करें और अपने निवेश को बढ़ते हुए देखें।
डाइवर्सिफाई यानी विविधिकरण-आपने यह कहावत तो सुनी ही होंगी कि कभी भी अपने सभी अंडे एक ही टोकरी में नहीं रखने चाहियें। जब भी निवेश करें एक ही कंपनी में अपना सारा निवेश कभी मत करें। कम से कम चार कम्पनियां चुनें और वह भी अलग अलग उद्योगों से। इसी प्रकार लार्ज कैप, मिड कैप और स्माल कैप कंपनियों में भी डाइवर्सिफाई किया जा सकता है।
सारा पैसा शेयर बाजार में सीधे निवेश ना करके कुछ निवेश म्यूच्यूअल फण्ड के जरिये भी करें। म्यूच्यूअल फण्ड में भी निवेश को डाइवर्सिफाई करने की सुविधा रहती है। इसके अलावा सोने और फिक्स्ड डिपाजिट जैसे सुरक्षित निवेश के माध्यमों में भी कुछ राशि निवेशित रखें। अपने निवेश को कैसे डाइवर्सिफाई करें और निवेश का कितना हिस्सा किस तरह निवेश करें, यह आपके आयु, आय की क्षमता, निवेश का उद्देश्य और रिस्क लेने की क्षमता पर निर्भर करता है।
जिस कंपनी में निवेश करना चाहते हैं उस कंपनी को जानिये। उसके उत्पादो को समझिये। कई बार लोग दूसरों के दिये टिप्स पर किसी भी कंपनी में निवेश कर देते हैं बिना यह जाने कि कंपनी करती क्या है। कंपनी के काम काज को समझिये।
जिस उद्योग में कंपनी है उस उद्योग में कंपनी का योगदान किस प्रकार है। उदाहरण के लिये तेल उत्पादक कंपनियां और तेल वितरक कंपनियां। मोबाइल उत्पादक कंपनियां, मोबाइल वितरक कंपनियां, मोबाइल टावर मैन्टेनस कम्पनियाँ और मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां। उदहारण के लिए भारती एयरटेल मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी है और भारती इन्फ्राटेल मोबाइल टावर का निर्माण और मैन्टेनस करती है।
म्यूचुअल फण्ड
म्यूचुअल फण्ड किस किस प्रकार के होते हैं और इनकी कौन कौन सी श्रेणियां होती हैं. भिन्न भिन्न प्रकार के म्यूचुअल फण्ड कहाँ और कैसे निवेश करते हैं और किस प्रकार के म्यूचुअल फण्ड में कितना रिस्क होता है। यह भी समझेंगे कि कौन सा म्यूचुअल फण्ड का प्रकार रिस्क फ्री होता है और किस में अधिक कमाई के मौके आ सकते हैं. अलग अलग तरह के म्यूचुअल फण्ड इस तरह डिजाईन कियी जाते हैं कि अलग अलग श्रेणी के निवेशक अपने जोखिम लेने की क्षमता, निवेश के लक्ष्यों, निवेश की अवधि और निवेश की राशी के अनुसार उनका चयन कर सकें।
म्यूचुअल फण्डों को हम मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं-ओपन एंडेड और क्लोज्ड एंडेड.
ओपन एंडेड योजना
ओपन एंडेड योजना में योजना अवधि के दौरान किसी भी समय निवेशक इकाइयों यानि यूनिट्स को खरीद या बेच सकता है. इसकी कोई निश्चित मैच्योरिटी यानि परिपक्वता तिथि नहीं होती. आप जब आवश्यक हो अपने निवेश को भुना सकते हैं यानी ओपन एंडेड स्कीम में लिक्विडिटी अर्थार्थ तरलता रहती है. कुछ ओपन एंडेड फंड्स में लॉक इन पीरियड रहता है जैसे कि म्स्ैै स्कीम. लॉक इन पीरियड के दौरान आप अपने यूनिट्स को रिडीम नहीं कर सकते. म्यूचुअल फण्डों की ओपन एंडेड फंड्स की श्रेणी में डेट फण्ड क्मइज थ्नदक, लिक्विड फण्ड स्पुनपक थ्नदक, इक्विटी फण्ड म्ुनपजल थ्नदक और बैलेंस्ड फण्ड ठंसंदबमक थ्नदक आते हैं.
डेट फण्ड क्मइज थ्नदक में अधिकतर निवेश डिबेंचर, सरकारी प्रतिभूतियों और अन्य ऋण उपकरणों में किया जाता है. डेट फण्ड इक्विटी फण्ड के मुकाबले कम लाभ दे सकते हैं मगर कम जोखिम के साथ यह फण्ड एक निश्चित लाभ देने में सक्षम हो सकते हैं. एक स्थिर आय चाहने वालों के लिए यह फण्ड आदर्श हो सकते हैं.
लिक्विड फण्ड स्पुनपक थ्नदक कम समय के लिए यदि आपके पास पैसे पड़े हैं तो आप उन्हें यहाँ निवेश कर सकते हैं. लिक्विड फण्ड ैीवतज ज्मतउ क्मइज प्देजतनउमदजे यानि अल्पकालिक ऋण उपकरणों में निवेश करते हैं. लिक्विड फण्ड कम चार्जेज के साथ एक सुरक्षित निवेश का विकल्प प्रदान करते हैं.
इक्विटी फण्ड म्ुनपजल थ्नदक इक्विटी फण्ड शेयर बाजार में निवेश करते हैं. यह वो श्रेणी है जहां अधिकतर निवेशक म्यूचुअल फण्ड में निवेश करते हैं. हालाँकि छोटी अवधि इक्विटी फण्ड में निवेश जोखिम भरा हो सकता है मगर लम्बी अवधि में आप इन फंड्स में अच्छे रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं. इक्विटी फंड्स के कुछ मुख्य श्रेणियां हैं इंडेक्स फण्ड प्दकमÛ थ्नदक, सेक्टोरल फण्ड ैमबजवतंस थ्नदक, ईएलएसएस फण्ड म्स्ैै थ्नदक, डपक ब्ंच ैउंसस ब्ंच थ्नदक मिड कैप स्माल कैप फण्ड और क्पअमतेपपिमक निदक डाइवर्सिफाइड फण्ड. सभी प्रकार के इक्विटी फंड्स पर उनके निवेश के प्रकार, जोखिम और लाभ की संभावनाएं अलग रहती हैं.
बैलेंस्ड फण्ड ठंसंदबमक थ्नदक कम जोखिम के साथ अधिक लाभ पाने की चाह रखने वाले निवेशकों के लिए इस प्रकार की योजनायें आदर्श हैं. बैलेंस्ड फण्ड पहले से निर्धारित अनुपात में इक्विटी और फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. इक्विटी में निवेश फण्ड को तेजी से बढ़ने में मदद करता है और फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में निवेश फण्ड को सुरक्षित विकास की तरफ ले जाता है.
क्लोज्ड एंडेड योजना
क्लोज्ड एंडेड योजना में केवल योजना की शुरुआत में जब NFO यानि New
Fund Offer जारी किया जाता है तभी निवेश कर सकते हैं. क्लोज्ड एंडेड योजना में एक मैच्योरिटी यानि परिपक्वता तिथि पहले से निर्धारित होती है. परिपक्वता तिथि से पहले क्लोज्ड एंडेड योजना से बाहर नहीं निकला जा सकता इसलिए कह सकते हैं कि क्लोज्ड एंडेड योजना में लिक्विडिटी अर्थात् तरलता नहीं होती है. क्लोज्ड एंडेड योजनाओं में मुख्य रूप से दो तरह के फण्ड होते हैं कैपिटल प्रोटेक्शन फण्ड (Capital
Protection Fund) और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (Fixed
Maturity Plan)
कैपिटल प्रोटेक्शन फण्ड (Capital
Protection Fund) में मुख्य रूप से निवेश की गई राशी को सुरक्षित रखते हुए लाभ कमाने के लिए निवेश किया जाता है. इस योजना में मुख्य रूप से फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है मगर एक छोटा भाग इक्विटी में भी निवेश किया जाता है. इन फंड्स में कैपिटल को सुरक्षित रखने का दबाव रहता है और क्योंकि यह एक क्लोज्ड एंडेड योजना होती है इसीलिए केवल निश्चित समय अवधि तक ही निवेश किया जाता है इसलिए फण्ड मेनेजर के पास अधिक रिस्क लेने की संभावना ही नहीं रहती है.
फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (Fixed
Maturity Plan) में पहले से मैच्योरिटी का समय निर्धारित रहता है और ऐसे डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश किया जाता है जो फण्ड की अवधि के साथ मैच्योर हो रहे हों. इस प्रकार के फंड्स में भी चार्जेज कम रहते हैं क्योंकि फण्ड मेनेजर को पहले से निर्धारित इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करना होता है और फण्ड प्रबंधन के लिए अधिक कुछ करने की संभावना ही नहीं बचती।
3. वायदा बाजार और उसका व्यापारिक गणित
वायदा बाजार क्या है
भविष्य में नियत तारीख तक ट्रेडर्स की ओर सौदा सेटल करने के वादे को वायदा बाजार कहते हैं। वायदा बाजार में एक निश्चित तारीख पर सौदे के सेटलमेंट किेए जाते हैं। वायदा बाजार में सौदे आम तौर पर एक महीने में सेटल हो जाते हैं। वायदा बाजार में कीमतें मांग और सप्लाई के नियम से तय होते हैं। हर महीने के आखिरी गुरूवार को सेटलमेंट होते हैं। सेटलमेंट की तारीख को एक्सपायरी डेट कहा जाता है। ट्रेडर्स चाहें तो अपने सौदे को अगले महीने के लिए रोल ओवर भी कर सकते हैं। वायदा बाजार 2 तरह से होता है-फ्यूचर और ऑप्शन।
डेरिवेटिव क्या है
वायदा बाजार में डेरिवेटिव्स में कारोबार होता है। डेरिवेटिव्स में स्टॉक्स, इंडेक्स, मेटल, गोल्ड, क्रूड, करेंसी शामिल है। वायदा कारोबार में ट्रेडिंग के लिए कोई एक डेरिवेटिव होना जरूरी है।
फ्यूचर क्या है
कम पैसे में बाजार में ट्रेडिंग फ्यूचर के जरिए मुमकिन है। मार्जिन मनी जमा करने पर ही ट्रेडिंग की जा सकती है। मार्जिन एक्सचेंज तय करता है। फ्यूचर ट्रेडिंग महीने भर के लिए होती है। फ्यूचर ट्रेड में हर दिन का नफा-नुकसान का हिसाब किताब होता है। नुकसान होने पर ब्रोकर की भरपाई ट्रेडर को करनी पड़ती है। फ्यूचर कारोबार इंडेक्स या स्टॉक्स में होता है। फ्यूचर कैश मार्केट के मुकाबले प्रीमियम पर ट्रेड करते हैं। फ्यूचर अनुभवी ट्रेडर्स का काम है। फ्यूचर हेजिंग में भी काम आता है।
ऑप्शन क्या है
ऑप्शन में ट्रेडर्स के पास ट्रेडिंग के कुछ विकल्प होते हैं। ऑप्शन ट्रेडिंग की 1 सीरीज 1 महीने की होती है। ऑप्शन में शेयर,उनकी संख्या, प्राइस पहले से तय हो जाती है। लेकिन ट्रेडिंग का वक्त तय नहीं होता है। ऑप्शन में ट्रेडिंग 1 महीने में कभी भी हो सकती है। ऑप्शन 2 तरह के होते हैं-बायर ऑप्शन और सेलर ऑप्शन। ऑप्शन बायर के पास कई राइट्स होते हैं। जबकि इन राइट्स के बदले प्रीमियम मिलता है। ऑप्शन बायर को इन राइट्स के लिए प्राइस चुकानी पड़ती है। साल में ऑप्शन ट्रेडिंग की 12 सीरीज होती हैं। अक्सर 9-10 सीरीज में फायदा ऑप्शन सेलर को ही होता है। ऑप्शन सेलर ज्यादा स्मार्ट माने जाते हैं
इंडेक्स में फ्यूचर ट्रेडिंग
इंडेक्स में सेसेंक्स और निफ्टी शामिल हैं। निफ्टी फ्यूचर्स में ट्रेडिंग ज्यादा होता है। सीरीज खत्म होने के दिन फ्यूचर्स और स्पॉट के भाव बराबर हो जाते हैं। इंडेक्स फ्यूचर्स की भारत में डिलीवरी सेटल नहीं होती है। स्टॉक फ्यूचर्स की डिलीवरी मुमकिन है। इंडेक्स फ्यूचर्स हमेशा कैश सेटल होते हैं। इंडेक्स फ्यूचर्स की दिशा तय करने में टेक्निकल और फंडामेंटल बड़ा असर डालते हैं।
इंडेक्स फ्यूचर्स में ट्रेड के फायदे
इंडेक्स फ्यूचर्स को ट्रैक करना आसान होता है। कम पैसे में ज्यादा बड़ा ट्रेड मुमकिन है। इंडेक्स फ्यूचर्स में मार्जिन भी कम है। निफ्टी फ्यूचर्स का मार्जिन केवल 7-8 फीसदी होता है। बैंक निप्टी फ्यूचर्स में काफी वॉल्यूम मिलता है। आईटी इंडेक्स में भी काफी ट्रेड होता है।
स्टॉक फ्यूचर्स क्या हैं
फ्यूचर्स में ट्रेड होने वाले शेयरों को स्टॉक फ्यूचर्स कहते हैं। इन शेयरों की लिस्ट एक्सचेंज तैयार करते हैं। सेबी की मंजूरी के बाद ही शेयर फ्यूचर्स में ट्रेड हो सकते हैं। मार्केट कैप, वॉल्यूम और लिक्विडिटी देखकर शेयर स्टॉक फ्यूचर्स में शामिल किए जाते हैं। फिलहाल 250 शेयर स्टॉक फ्यूचर्स में ट्रेड करते हैं। कम पैसे में बड़ी पोजिशन स्टॉक फ्यूचर्स में संभव है। एफआईआई, घरेलू संस्थागत निवेशक स्टॉक फ्यूचर्स में ज्यादा निवेश करते हैं। फ्यूचर्स में हमेशा लॉट साइज में ट्रेडिंग होती है। कम से कम 1 लॉट खरीदना जरूरी है। लॉट की वैल्यू आमतौर पर लगभग 5 लाख रुपये होती है। वॉल्यूम और लिक्विडिटी के चलते बड़े निवेशक स्टॉक फ्यूचर्स में निवेश करते हैं।
ऑप्शन में ट्रेडिंग
ऑप्शन में ट्रेडिंग दो तरह से होता है कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन। ऑप्शन में बायर यानि खरीदार और सेलर यानि विक्रेता होते हैं। बायर राइट्स खरीदता है, सेलर राइट्स बेचता है। बदले में सेलर को प्रीमियम दिया जाता है। ऑप्शन में ट्रेडिंग प्रीमियम की होती है। खरीदने का राइट को कॉल ऑप्शन कहते हैं। बिकवाली के राइट मांगने को पुट ऑप्शन कहा जाता है। ऑप्शन में सौदे प्रीमियम के लिए होते हैं। ऑप्शन में अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस होती है।
वायदा बाजार आयोग
वायदा कारोबार आयोग एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्घ्थापना वायदा अनुबंध ;विनियमनद्ध अधिनियम, 1952 के तहत की गई है। यह आयोग उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन काम करता है। आयोग वस्तुओं में वायदा कारोबार को मान्यता प्राप्त संगठनों के माध्यम से नियंत्रित करता है और वस्तुओं में अग्रिम व्यापार संचालन करने वाले संगठनों को मान्यता प्रदान करने मान्यता समाप्त करने तथा देश में वायदा बाजार की कार्य प्रणाली में सामान्य सुधार लाने की सिफारिश करता है।
वर्तमान में देशभर में कुल 24 एक्सचेंज कार्यरत हैं। इनमें से 3 राष्ट्रीय स्घ्तर के एक्सचेंज हैं जिन्हें देश में भविष्य वायदा कारोबार के लिए मान्यता प्रात है। ये सभी प्रकार की वस्तुओं का कारोबार कर सकते हैं। वर्तमान वर्ष के दौरान ”तापीय कोयला“ और ”कार्बन क्रेडिट“ के लिए भी मान्यता प्राप्त वस्तु विनिमय के आधार पर व्यापार की अनुमति दी गई है।
भारत में जिंस बाजार के उदारीकरण के मद्देनजर सभी सेवारत एक्सचेंजों को विभिन्न सुधारों को अपनाने के लिए कहा गया है। इनमें ऑनलाइन कारोबार, समय पर मुहर लगाना, व्यापार की गारंटी और सेटलमेंट की व्यवस्था, बोर्ड में एक तिहाई निर्दलीय सदस्यों का प्रतिनिधित्व और स्वाचालित कार्यालयों की व्यवस्था शामिल है। तीन राष्ट्रव्यापी बहुजिंस एक्सचेंजों की स्थापना के अतिरिक्त कई ऐसे सहायक क्षेत्र हैं जहां जिंस के व्युत्पन्न बाजार के क्रमबद्ध और सुव्यवस्थित विकास की ओर ध्यान दिया जा रहा है। इसमें वस्तुओं के आवागमन और मूल्य पर से नियंत्रण समाप्त करना, करों से संबंधित कुछ मुद्दों का हल, मानकीकरण, प्रमाणीकरण और गोदाम से जुड़े मुद्दे, गोदाम की रसीदों का उपयोग, विभिन्न कारोबारी समूहों, बैंकों, एफआई और एफआईआई की भागीदारी आदि शामिल हैं। सरकार इन सभी दिशाओं की ओर साथ-साथ प्रयास कर रही है।
वस्तु वायदा बाजार को वायदा समझौतों ;विनियमनद्ध के अधिनियम, 1952 ;एफसीआर अधिनियमद्ध के प्रावधानों के तहत नियंत्रित किया जाता है। इस विभाग ने एफसीआर अधिनियम को कुछ संशोधन प्रस्तावित किए हैं ताकि वस्तु वायदा बाजार में हाल में हुए विकास के साथ तालमेल रखने वाले कुछ नए पहलुओं को शामिल किया जा सके। तदानुसार वायदा समझौता ;विनियमनद्ध संशोधन बिल, 2006 लोकसभा में 21-03-2006 को लाया गया। तब से वित्तीय एवं बाजार एकीकरण से संबंधित मुद्दों के लिए सरकार ने वायदा समझौता ;विनियमनद्ध अध्यादेश की 31-01-2008 को घोषण करके संशोधन की प्रक्रिया को तेज किया है। संशोधन के मुख्य घटक इस प्रकार हैं-
वायदा बाजार आयोग के सदस्यों की अधिकतम संख्या को बढ़ाकर चार से नौ करना जिसमें तीन पूर्णकालिक सदस्य और एक अध्यक्ष होगा।
वायदा बाजार आयोग को शुल्क लगाने का अधिकार प्रदान करना।
वायदा बाजार आयोग के सामान्य कोष के गठन के लिए प्रदान करना ख्जिसमें दंड को छोड़कर वायदा बाजार आयोग द्वारा प्राप्त किए सभी अनुदानों, शुल्कों और सभी योगों का आकलन किया जाएगा, और आयोग के खर्चों को पूरा करने के लिए धन का उपयोग करना।
वायदा बाजार आयोग द्वारा मंजूर की जाने वाली स्कीम के साथ मान्यता प्राप्त एसोसिएशनों के निगमीकरण और गैर परस्परीकरण के लिए प्रावधान बनाना।
सदस्यों और मध्यस्थों के निजीकरण के लिए प्रावधान बनाना।
विकल्पों में कारोबार की अनुमति देना।
वायदा समझौदा विनियमन अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन करने की स्थिति में जांच, प्रवर्तन और दंड के लिए प्रावधान बनाना।
वायदा बाजार में रिस्क फैक्टर
वायदा बाजार में ट्रेडिंग से पहले रिसर्च करें, क्योंकि वायदा बाजार में रिस्क ज्यादा होता है। ट्रेडिंग से पहले आरडी डॉक्यूमेंट पर दस्तखत करने होते हैं। शॉर्ट सेलिंग में रिस्क ज्यादा होता है। शॉर्ट सेलिंग ज्यादा अनुभवी लोगों का काम करता है। कैश मार्केट के मुकाबले वायदा कारोबार में रिस्क ज्यादा होता है। वायदा बाजार में ज्यादा रिस्क, ज्यादा मुनाफा होता है। निवेशक ट्रेडिंग की शुरुआत वायदा कारोबार से ना करें, बल्कि कैश मार्केट से करें। क्योंकि नुकसान होने पर एक्सट्रा मार्जिन भरना पड़ सकता है। वायदा कारोबार में ट्रेडर्स के पास लिक्विडिटी होना जरूरी है। ज्यादा उतार-चढ़ाव होने पर एक्सचेंज मार्जिन बढ़ा देते हैं।
वायदा कारोबार में एहतियात
वायदा कारोबार में ट्रेडिंग करते वक्त स्टॉप-लॉस का ख्याल रखें। बड़ी घटनाओं के वक्त ट्रेड ना करें। बड़ी घटनाओं के वक्त ट्रेड करते वक्त ऑप्शन में ट्रेडिंग करें। कैश मार्केट ट्रेडिंग पैटर्न सीखने के बाद ही वायदा कारोबार में आएं। शुरुआत इंडेक्स से करें। इंडेक्स में भी ऑप्शन से ट्रेडिंग शुरु करें। शुरुआत में 1 लॉट से ट्रेडिंग करें। शुरुआत में सीखने के हिसाब से ट्रेडिंग करें। निफ्टी के ऑप्शन में ट्रेडिंग अच्छा विकल्प है।
दुनिया का वायदा बाजार का मतलब ”अधिकारिक जुआ“ जिसको सरकारे खेलाती हे जिसमे 99 प्रतिशत जनता नुकसान देती है, तो इस बाजार की जानकारी कीजिये।
1. शहर जिन्स शेयर आदि की चाल होती हे चाल को देखना चाहिये
2. हमेशा नीचे मे खरीदना चाहिये उपर मे बेचना चाहिये माल ना होने की दशा बेचकर नही खेलना चाहिये द्य
3. शेयरो को हमेशा ऊचे रेट के कीमत मे लेना चाहिए
कमोडिटी एक्सचेंज (Commodities Exchange)
कमोडिटी एक्सचेंज यानि वस्तुओं के विनिमय का कारोबार, वह विनिमय है, जहाँ विभिन्न जिंसों ;कमोडिटीजद्ध एवं उनके व्युत्पन्न वस्तुओं का व्यापार होता है। विश्व के अधिकांश जींस बाजार कृषि उत्पादों एवं अन्य कच्चे उपादों ;जैसे गेहूँ, चीनी, दाल, तेल, कपास, धातुएँ आदिद्ध का व्यापार करते हैं। इनके व्यापार में तरह-तरह के सौदे ;कांट्रैक्टद्ध होते हैं जैसे स्पॉट मूल्य ;ेचवज चतपबमेद्ध, फारवर्ड ;वितूंतकेद्ध, वायदा ;निजनतमेद्ध आदि।
भारत के प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंज-भारत में मान्यता-प्राप्त 25 कमोडिटी एक्सचेंज हैं, जिनमें से प्रमुख हैं-
1. मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड
2. नेशनल मल्टी-कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड
3. नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (National Commodity And Derivatives Exchange)
4. नेशनल स्पॉट एक्सचेंज (National Spot Exchange)
5. भारत डायमंड बोर्स (Bharat Diamond Bourse)
6. अन्तरर्राष्ट्रीय काली मिर्च एक्सचेंज (International Pepper Exchange)
क्या है कमोडिटी कारोबार
कमोडिटी का वायदा ;फ्यूचरद्ध बाजार भारत में तेज गति से बढ़ रहा है। कमोडिटी को एक ऐसे अभिन्नीकृत उत्पाद के तौर पर समझा जा सकता है, जिसका कारोबार संगठित बाजार में (एक्सचेंज प्लेटफार्म) या मंडी में मुद्रा के बदले में या अन्य कमोडिटी के बदले में किया जा सकता है। कमोडिटी, समान गुणवत्ता की (एक स्तर पर) मूल्यवान वे चीजें हैं, जिनका उत्पादन विभिन्न उत्पादकों द्वारा किया जाता है। इनको उपयोगकर्ता अपने परिप्रेक्ष्य में वर्गीकृत कर सकता है, जैसे कि कपास, जूट (रेशेदार फसलें) रबर, काफी, चाय (बागानी फसलें) आम, चीनी, संतरा (नर्म उत्पाद) मसाले, तिलहन, दलहन, गेहूं, चावल (अन्य कृषि उत्पाद) क्रूड ऑयल, आधारभूत धातुएं जैसे लोहा आदि, सीमेंट, लौह अयस्क, इस्पात, कार्बन क्रेडिट, प्राकृतिक गैस (औद्योगिक उत्पाद) प्लेटिनम, चांदी, स्वर्ण (बहुमूल्य धातुएं) आदि-आदि।
भारत में कृषि उत्पादन विपणन समितियों के माध्यम से कमोडिटी का कारोबार मुख्य रूप से होता है। आधुनिक कमोडिटी बाजार की जड़ें कृषि उत्पादों की परंपरागत विपणन व्यवस्थाओं (मंडी और हाट) में निहित हैं, जबकि अंग्रेजों के समय से ही मानक सौदों के आधार पर यह कारोबार शुरू हुआ। बाम्बे कॉटन एसोशिएशन द्वारा 1875 में बाम्बे कॉटन एक्सचेंज की स्थापना की गई थी। 1900 से तिलहन में वायदा कारोबार की शुरूआत करने वाली गुजराती व्यापारी मंडली ने मूंगफली, कपास और कैस्टर सीड में भी वायदा की शुरूआत की। गेहूं में वायदा हापुड़ मंडी में 1913 से शुरू हुआ। इसके कुछ सालों बाद कोलकाता (तब कलकत्ता) में कच्चे जूट और जूट सामानों का वायदा कारोबार जारी किया गया।
1920 के दशक में ही मुंबई बुलियन कारोबार का केंद्र बन गया था। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा अग्रेषित कारोबार संबंधी नियम और आयोग का गठन 1950 के बाद किया गया। 1960 के दशक में तिलहन उत्पादन में तीव्र गिरावट के बाद मुख्य तिलहन उत्पादों की कीमतें बेतहाशा बढीं। कृत्रिम तरीके से महंगाई बढाने के लिए वायदा कारोबार को जिम्मेदार मानते हुए सरकार ने अधिकांश कमोडिटीज के वायदा पर रोक लगा दी।
2002-03 में फिर से कमोडिटी वायदा के दिन बहुरे। सरकार ने देशव्यापी बहु-कमोडिटी एक्सचेंजों के गठन के साथ फारवर्ड कांट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट-1952 के तहत ज्यादातर जिंसों के वायदा कारोबार का रास्ता साफ कर दिया। आज 21 क्षेत्रीय केंद्रों के साथ तीन बड़े एक्सचेंज एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई कार्यरत हैं। आपूर्ति और मांग के कारक यहां भी कीमतों को नियंत्रित करते हैं। कमोडिटी का वायदा, शेयर और बांडों की तुलना में कम अस्थिर माना जाता है। शेयर बाजारों की गिरावट का इनसे संबंध नहीं होता और यहां जोखिमों का प्रबंधन अधिक बेहतर तरीके से होता है। फारवर्ड कांट्रैक्ट एक गैर स्टैंडर्डाइज्ड समझौता होता है, जो दो पक्षों के मध्य भविष्य की किसी तिथि पर किसी कमोडिटी की खरीद/बिक्री से संबंधित होता है जबकि फ्यूचर कांट्रैक्ट गुणवत्ता मूल्यों और अन्य चीजों के सम्बन्ध में स्टैंडर्डाइज्ड सौदे की तरह होता है।
अहस्तांतरणीय विशिष्ट आपूर्ति समझौता (एनटीएसडी) के समझौतों में शर्तों को दोनों पक्षों के आधार पर तय किया जाता है और डिलीवरी के साथ यह संपन्घ्न होता है, जिससे संबंधित रेलवे या गोदाम रसीदों का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता। इसके उलट टीएसएसडी में रसीदें हस्तांतरणीय होती हैं और आपूर्ति प्रथम विक्रेता से अन्तिम खरीदार को करते हुए सौदा पूरा होता है।
चूंकि मांग और आपूर्ति के कारक यहां कीमतों के लिए नियामक का कार्य करते हैं, इसलिए वायदा कारोबार के जरिए जिंस उत्पादक अपने भावी घाटे (कीमतों में भावी कमी की आशंका के मद्देनजर) के विरुद्द हेजिंग कर सकता है। फ्यूचर ट्रेडिंग पूरी तरह से हेजिंग का साधन ही है। इस तरह, कीमतों में नाटकीय वृद्धि और कमी के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले कमोडिटी एक्सचेंज, भारतीय अर्थव्यवस्था में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उत्पादकों को उनके उत्पादन का समुचित मूल्य दिलाते हैं। सरकार बैंकों, म्युचुअल फंडों और दूसरी वित्तीय संस्थाओं को भी कमोडिटी कारोबार में हिस्घ्सा लेने की अनुमति दे सकती है। यहां एक बात कहना आवश्यक है कि कमोडिटी बाजार सिर्फ बड़े टर्नओवर वाले कारोबारियों और पूंजी के खिलाड़ियों को फायदा पहुंचाते हैं, सामान्य छोटे उत्पादक अपनी सीमाओं के चलते इस बाजार के प्रत्यक्ष लाभों से वंचित ही रह जाते हैं।
4. सट्टा, पेपर एवं आॅन लाइन लाॅटरी और उसका व्यापारिक गणित
5. बाजी और उसका व्यापारिक गणित
03. मन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
04. मनोरंजन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
05. मशीन आधारित मानव निर्मित उत्पाद
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