Saturday, April 11, 2020

मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM) - एक परिचय, संचालक कौन? और आधार

मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM)  
एक परिचय, संचालक कौन? और आधार

मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM) -एक परिचय
जिस प्रकार वर्तमान व्यावसायिक-समाजिक-धार्मिक इत्यादि मानवीय संगठन में विभिन्न पद जैसे प्रबन्ध निदेशक, प्रबन्धक, शाखा प्रबन्धक, कर्मचारी, मजदूर इत्यादि होते हैं और ये सब उस मानवीय संगठन के एक विचार जिसके लिए वह संचालित होता है, के अनुसार अपने-अपने स्तर पर कार्य करते हैं और वे उसके जिम्मेदार भी होते हैं। उसी प्रकार यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ईश्वरीय संगठन है जिसमें सभी अपने-अपने स्तर व पद पर होकर जाने-अनजाने कार्य कर रहें हैं। यदि मानवीय संगठन का कोई कर्मचारी दुर्घटनाग्रस्त होता है तो उसका जिम्मेदार उस मानवीय संगठन का वह विचार नहीं होता बल्कि वह कर्मचारी स्वयं होता है। इसी प्रकार ईश्वरीय संगठन में भी प्रत्येक व्यक्ति की अपनी बुद्धि-ज्ञान-चेतना-ध्यान इत्यादि गुण ही उसके कार्य का फल देती है जिसका जिम्मेदार वह व्यक्ति स्वयं होता है न कि ईश्वरीय संगठन का वह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त। मानवीय संगठन का विचार हो या ईश्वरीय संगठन का सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त यह दोनों ही कर्मचारी के लिए मार्गदर्शक नियम है। जिस प्रकार कोई मानवीय संगठन आपके पूरे जीवन का जिम्मेदार हो सकता है उसी प्रकार ईश्वरीय संगठन भी आपके पूरे जीवन का जिम्मेदार हो सकता है। जिसका निर्णय आपके पूरे जीवन के उपरान्त ही हो सकता है परन्तु आपके अपनी स्थिति के जिम्मेदार आप स्वयं है। जिस प्रकार मानवीय संगठन में कर्मचारी समर्पित मोहरे की भाँति कार्य करते हैं उसी प्रकार ईश्वरीय संगठन में व्यक्ति सहित मानवीय संगठन भी समर्पित मोहरे की भाँति कार्य करते हैं, चाहे उसका ज्ञान उन्हें हो या न हो। और ऐसा भाव हमें यह अनुभव कराता है कि हम सब जाने-अनजाने उसी ईश्वर के लिए ही कार्य कर रहें है जिसका लक्ष्य है-ईश्वरीय मानव समाज का निर्माण जिसमें जो हो सत्य हो, शिव हो, सुन्दर हो और इसी ओर विकास की गति हो।
यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक ईश्वरीय संगठन है जो मल्टी लेवेल पर आधारित है। इस ब्रह्माण्ड में सब एक दूसरे पर निर्भर, एक दूसरे से प्रभावित और एक दूसरे से लाभ-हानि प्राप्त कर रहे हैं। मल्टी लेवेल मार्केटिंग का विचार ऐसे ही मनुष्य मस्तिष्क की उत्पत्ति है जो इस ब्रह्माण्ड के सांगठनिक स्वरूप को समझ सके हैं और उसका प्रयोग मार्केटिंग प्रणाली में किये हैं इस समझ को भी मार्केटिंग में प्रयोग अनेक प्रकार से किया गया है परन्तु सिद्धान्त वही एक है। इस प्रयोग को मूलतः निम्न तीन भागो में विभक्त कर सकते हैं-

1. पूर्ण कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति आधारित
इस मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में सिर्फ वही व्यक्ति लाभ प्राप्त कर पाते हैं जो व्यक्ति कार्य करते हैं अर्थात् जो अधिक से अधिक व्यक्ति को निर्देश ;रेफरद्ध करते हैं। इस प्रणाली में अ-कार्यशील ;नान-वर्किंगद्ध व्यक्ति को कोई लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। सिर्फ वे उत्पाद लेकर ही उसका उपयोग कर सकते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग मल्टी लेवेल मार्केटिंग में बहुत हुआ। यह बहुत अधिक पसन्द नहीं किया गया क्योंकि जो व्यक्ति कार्य नहीं कर सके उन्हें लाभ नहीं मिला और वे इस प्रणाली से दूर भाग गये।

2. आशिंक कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित आशिंक अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति आधारित
इस मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति भी लाभ प्राप्त करते हैं जो व्यक्ति कार्य करते हैं अर्थात् जो अधिक से अधिक व्यक्ति को निर्देश (रेफर) करते हैं उन्हें अधिक लाभ तथा जो अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति होते हैं उन्हें कम लाभ प्राप्त होता है। इस प्रणाली का प्रयोग मल्टी लेवेल मार्केटिंग में हुआ। यह पसन्द तो किया गया लेकिन अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति को लाभ प्राप्त होने की धीमी गति होने के कारण वे इस प्रणाली से दूर भाग गये।

3. पूर्ण कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित पूर्ण अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति आधारित
इस मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति दोनों को लाभ प्राप्त करने का समान अवसर देता है। सिर्फ जो व्यक्ति कार्य करते हैं अर्थात् जो अधिक से अधिक व्यक्ति को निर्देश (रेफर) करते हैं उन्हें अधिक लाभ होता है। व्यक्ति को लाभ प्राप्त करने की तेज गति होने के कारण यह मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली की सबसे अधिक पसन्द की जाने वाली प्रणाली है।

सामान्यतः मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में 2 का मैट्रिक्स बाइनरी (1, 2, 4, 8, 16, 32.........) का प्रयोग किया जाता है। लेकिन 3 का मैट्रिक्स (1, 3, 9, 27.........), 5 का मैट्रिक्स (1, 5, 25, 125.........) इत्यादि का भी प्रयोग होता है। इस प्रकार के मैट्रिक्स में समस्या ये हो जाती है कि लेवेल बढ़ने से नीचे के लेवेल में इतनी अधिक संख्या की आवश्यकता आ जाती है कि लेवेल भरने में अधिक समय लगने लगता है। परिणामस्वरूप ऊपर के लेवेल को तो लाभ हो जाता है बाद के व्यक्ति को लाभ कम या नहीं के बराबर होता है। और यह लगभग असफल कार्यक्रम हो जाता है। क्योंकि यह केवल मैट्रिक्स के विकास पर ही आधारित होता है। 
ईश्वरीय/ब्रह्माण्डिय सिद्धान्त है-आदान-प्रदान या परिवर्तन या जन्म-मृत्यु-जन्म। केवल जन्म और मृत्यु तक सोचना भौतिकवादी प्रणाली है। अभी तक मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में यही प्रयोग हुआ है। जन्म और मृत्यु, और फिर जन्म यह सोचना आध्यात्मवादी प्रणाली है। अब मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में इसके प्रयोग का समय आ गया है। पूर्ण कार्यशील (वर्किंग) व्यक्ति सहित पूर्ण अ-कार्यशील (नान-वर्किंग) व्यक्ति आधारित मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली यही प्रणाली है। 

मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM)-संचालक कौन?
अन्य व्यवसाय की भाँति मल्टी लेवेल मार्केटिंग भी एक मार्केटिंग व्यवसाय है। जिसके संचालन के लिए सरकारी नियमानुसार व्यावसायिक संगठन का पंजीकरण कराना होता है।
व्यावसायिक संगठनों के अनेक स्वरूप हैं, जिन पर आप अपनी कंपनी के लिए विचार कर सकते हैं। इन विभिन्न स्वरूपों की जानकारी देने से पहले हम नीचे कुछ कारकों का उल्लेख कर रहे हैं, जिन पर आपको व्यावसायिक संगठन का स्वरूप चुनते समय विचार करना चाहिए।
व्यवसाय की प्रकृति-आपके व्यवसाय का संगठन आपके व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर होगा।
परिचालनों की मात्रा-व्यवसाय की मात्रा तथा बाजार क्षेत्र का आकार प्रमुख पहलू हैं। बड़े बाजार परिचालनों के लिए सार्वजनिक या निजी कंपनियाँ बेहतर रहती हैं। छोटे परिचालनों के लिए साझेदारी या प्रोप्राइटरशिप का गठन किया जाता है।
नियंत्रण की मात्रा-यदि आप सीधा नियंत्रण रखना चाहें, तो प्रोप्राइटरशिप अच्छा विकल्प है। व्यवसाय के लिए कंपनी बनाने से स्वामित्व और प्रबंधन का पृथक्करण हो जाता है।
पूँजी की राशि-जब संसाधनों की जरूरत बढ़ती है तो स्वरूप में परिवर्तन करना पड़ता है, जैसे साझेदारी फर्म को कंपनी बनाना पड़ता है। जोखिमों और देयताओं की मात्रा-यह देखना होगा कि मालिक किस सीमा तक जोखिम उठाने को तैयार हैं। पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी में ऊँचा जोखिम रहता है, जबकि सार्वजनिक या निजी कंपनी में मालिकों के लिए जोखिम कम होता है, क्योंकि विधिक संस्था और उसके मालिक अलग-अलग होते हैं।
तुलनात्मक कर देयता-आपकी कंपनी की कर देयता आपके चुने हुए संगठन के स्वरूप के अनुसार होंगी।
व्यावसायिक संगठनों के निम्न स्वरूप हैं-
1. पूर्ण स्वामित्व वाले प्रतिष्ठान
2. साझेदारी प्रतिष्ठान
3. सीमित देयता साझेदारी (एलएलपी)
4. निजी (प्राइवेट) लिमिटेड कंपनी
5. सार्वजनिक (पब्लिक) लिमिटेड कंपनी

मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM) का आधार
किसी भी मल्टी लेवेल मार्केटिंग कम्पनी में एक प्रोडक्ट ;उत्पादद्ध होता है जिसे आधार बनाकर मुद्रा का आदान-प्रदान किया जाता है यह प्रोडक्ट पैण्ट-शर्ट-बैग, मेडिसिन, वर्चुअल करेंसी जैसे-सर्वे में वर्चुअल डाॅलर, सोशल हेल्प प्रोग्राम में मुद्रा या करेंसी प्वाईण्ट, एड पोस्टिंग, ई-मेल, एस.एम.एस भेजना, एजुकेशनल सी.डी, कोई सेवा, बीमा पाॅलिसी इत्यादि के रूप मंे होता है। जो आपके सामने आ चुका है। 

नेटवर्कर-एक तेज आर्थिक गति का कार्यकत्र्ता परन्तु असम्मानित
मल्टी लेवेल मार्केटिंग प्रणाली में कार्य करने वाले व्यक्ति नेटवर्कर कहलाते हैं। 

नेटवर्कर की स्थिति
1. समाज के व्यक्ति को ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली से परिचित कराते हैं।
2. बाजार में न मिलने वाले उपयोगी, स्वास्थ्यवर्धक, दवाओं, उत्पादों को सीधे उपभोक्ता तक पहुँचाते हैं।
3. उपभोक्ता को मात्र ग्राहक ही नहीं बल्कि व्यापारी भी बनाते हैं।
4. अपने आवश्यकता के खर्च से भी धन लाभ प्राप्त करने की प्रणाली को बताते हैं।
5. उपभोक्ता का नेटवर्क तैयार करने की शिक्षा देकर तेज गति से आर्थिक विकास करने की प्रणाली बताते हैं।
6. अपने नेटवर्क को बढ़ाने के लिए लम्बी-लम्बी यात्रा, मिटिंग, सेमिनार करते हैं। जिसमें आय भी खर्च होते रहते हैं।

समाज के व्यक्ति की स्थिति
1. समाज के व्यक्ति को ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली की समझ मानसिक विकास न होने के कारण नेटवर्क की शक्ति की समझ का अभाव।
2. बाजार में न मिलने वाले उपयोगी, स्वास्थ्यवर्धक, दवाओं, उत्पादों पर विश्वास नहीं जबकि उत्पाद विश्वास से नहीं बल्कि गुणवत्ता आधारित होते हैं।
3. उपभोक्ता को ग्राहक और व्यापारी के अन्तर की समझ नहीं।
4. अपने आवश्यकता के खर्च से भी धन लाभ प्राप्त कर अपने आर्थिक उन्नति के मार्ग पर चलने की समझ नहीं। धन लगाकर भी काम करने की इच्छा नहीं और बिना धन लगाये भी कार्य करने की इच्छा नहीं।
5. नेटवर्क तैयार कर तेज गति से आर्थिक विकास करने की प्रणाली की समझ नहीं क्योंकि यह बुद्धि आधारित व्यापार होता है। और तमाम समस्याओं का जड़ बुद्धि की कमी ही है, इस पर विश्वास नहीं।
6. अपने जीवन का अधिकतम समय व्यक्ति और घटना चर्चा पर खर्च करने की आदत जबकि योजना और बुद्धि पर खर्च करना उपयोगी होता है।
7. प्रत्येक कर्म का परिणाम मिलता है, यह रायल्टी/ईश्वरीय का सिद्धान्त है जिसके अनुसार ही हमारा जीवन है, इसकी समझ नहीं।
8. व्यापारिक ज्ञान व बुद्धि का अभाव। जिसके कारण सदैव ग्राहक ही बने रह जाना।

नेटवर्क कम्पनी की स्थिति
1. भारत में अधिकतम नेटवर्क कम्पनी स्थायी और बड़े लक्ष्य को लेकर स्थापित ही नहीं हुई, स्थापना से ही इनका लक्ष्य धन कमाना और कम्पनी को बन्द कर देना रहा। ऐसा भारतीय कानून के कमजोर पकड़ के कारण हुआ। परिणामस्वरूप एक तरफ नेटवर्कर के साथ धोख हुआ तो दूसरी तरफ समाज इस व्यवसाय को एक ठगने वाला व्यवसाय समझने लगा।
2. नेटवर्क कम्पनी के इस चरित्र के कारण नेटवर्कर-एक तेज आर्थिक गति का कार्यकत्र्ता से असम्मानित व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
3. नेटवर्क कम्पनी स्थायी और बड़े लक्ष्य के साथ ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली के अनुसार स्वयं की योजना नहीं बना पायीं। रायल्टी, एवार्ड और बड़े सपने दिखाने के बावजूद रायल्टी, एवार्ड और बड़े सपने दिखाने वाली कम्पनी ही गायब हो जाती हैं।
उपरोक्त स्थिति को देखते हुये नेटवर्क व्यवसाय और नेटवर्कर को उसके सही अर्थ में समझाने और उसके सम्मान को स्थापित करने की आवश्यकता है। जिसके लिए-
1. शास्वत (हमेशा आवश्यक) उत्पाद के लिए पारम्परिक एवं डायरेक्ट मार्केटिंग का संयुक्त रूप आधारित व्यवसाय।
2. ईश्वरीय सिद्धान्त व प्रणाली के अनुसार योजना।
3. ग्रुप आॅफ नेटवर्क कम्पनी।
4. नेटवर्कर के लिए स्थायी नेटवर्क क्षेत्र और कार्य करने के लिए सम्पूर्ण भारत देश।
5. भारतीय कानून का शत-प्रतिशत स्वीकार
6. नेटवर्कर और अन्य के बौद्धिक शक्ति को सदैव बढ़ाते रहने के लिए मुद्रित सामग्री द्वारा प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है।



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