बाजार
बाजार ऐसी जगह को कहते हैं जहाँ पर किसी भी चीज का व्यापार होता है। आम बाजार और खास चीजों के बाजार दोनों तरह के बाजार अस्तित्व में हैं। बाजार में कई बेचने वाले एक जगह पर होतें हैं ताकि जो उन चीजों को खरीदना चाहें वे उन्हें आसानी से ढूँढ सकें। बाजार जहां पर वस्तुओं और सेवाओं का क्रय व विक्रय होता है उसे बाजार कहते हैं।
बाजार हमारा निकटवर्ती सार्वजनिक स्थान है। यह हमारे पड़ोस में स्थित व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र होता है। यहाँ व्यापारियों और ग्राहकों का जमावड़ा होता है। यहाँ से लोग अपने दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुएँ खरीदते हैं। बाजार लोगों की आवश्यकता की पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बाजार शहरों, कस्बों और गाँवों में भी होते हैं। शहरों में स्थायी बाजार होते हैं। यहाँ साप्ताहिक बाजार भी लगते हैं। कस्बों और गाँवों के बाजार प्रायः अस्थायी होते हैं। यहाँ के बाजार सप्ताह में एक या दो दिन लगा करते हैं। यहाँ अपराह्न लगने वाले बाजार सायंकाल तक समाप्त हो जाते हैं। शहरों के स्थायी बाजार सुबह से शाम तक सप्ताह के छह दिनों तक खुले होते हैं। ये बाजार सजे-धजे तथा सभी प्रकार की आवश्यक वस्तुओं से सज्जित होते हैं। यदि महानगरों के बाजार देखें तो यहाँ और भी रौनक रहती है। इनकी सजावट देखते ही बनती है।
बाजार का महत्त्व सब जानते हैं। बाजार देश की अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं। यहाँ क्रेताओं और विक्रेताओं का सम्मिलन होता है। यहाँ लाखों, करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं। यहाँ समाज के हर श्रेणी के लोग आते हैं। हर कोई अपनी जेब देखकर खरीदारी करता है। बाजारों के अलग-अलग नाम और कोटियाँ हैं। बाजारों की अपनी पहचान है। बाजार हमारी आवश्यकता की पूर्ति में बहुत मददगार होते हैं।
बाजार में सब कुछ बिकता है। सब्जियाँ, कपड़े, अनाज, फल, रसोई की अन्य चीजें, घरेलू आवश्यकता की वस्तुएँ, स्टेशनरी की चीजें, गहने आदि यहाँ उपलब्ध होते हैं। यहाँ घड़ियाँ, टेलीविजन सेट, रेडियो, फर्नीचर, कृषि यंत्र, सजावटी वस्तुएँ, खिलौने, मोबाइल फोन, बिजली के सामान, मिठाइयाँ, नमकीन तथा खाने-पीने की सभी चीजें मौजूद होती हैं। बड़े बाजारों में साइकिल, स्कूटर, मोटर साइकिल, कार आदि वाहन भी बिकते हैं। जिसे जो चाहिए, खरीद ले। एक पसंद न हो तो दूसरी खरीद ले। कपड़ों, जूतों की दस दुकानें हैं। मिठाइयों की भी अनेक दुकानें हैं। कतारों में फलों और सब्जियों की दुकानें हैं। पर गाँवों, कस्बों तथा शहरों के साप्ताहिक अस्थायी बाजारों में सब कुछ नहीं मिलेगा। यहाँ सब्जियाँ, फल, कपड़े, घरेलू उपकरण तथा खाने-पीने की चीजें ही मिलेंगीं। यहाँ वे चीजें ही मिलेंगीं जिनकी आवश्यकता गृहणियों को हर रोज होती है। व्यापारी यहाँ आए, दुकानें सजाईं और आवाजें लगाकर अपनी वस्तुएँ बेचने लगे। ग्राहक आए, बाजार का चक्कर लगाया और दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदने लगे। मोल-तोल भी यहाँ खूब होता है।
01. पारम्परिक बाजार-अर्थ एवं प्रकार
गाँव के बाजार-हाट, हटिया या पेठिया
हाट, हटिया या पेठिया आमतौर पर भारत के गाँवों में लगने वाले स्थानीय बाजार को कहा जाता है। सब्जी, फल, ताजा मांस, खाद्यान्न या परचून सामग्री आदि हाट में खरीद-बिक्री की जानेवाली प्रमुख मद हैं। गाँव के लोगों की दैनिक जरुरतों को पूरा करने में हाट की भूमिका अतिमहत्वपूर्ण है। सदियों से भारत के गाँवों की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने में हाट की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। कृषि-विपणन के अलावे हाट स्थल महत्वपूर्ण मिलन बिंदु एवं सांस्कृतिक केंद्र भी है।
सामान्यतया गाँवों में लगनेवाले हाट 2-3 घंटों का होता है लेकिन उस क्षेत्र में बाजार का विस्तार एवं दूरी भी लगने वाले हाट की अवधि को तय करती है। जनसंख्या घनत्व के आधार पर हाट सप्ताह में दो या तीन दिन के लिए लगता है। कई कस्बों या छोटे शहरों में यह कुछ घंटों के लिए दैनिक भी लगाया जाता है। महानगरों में स्थायी तौर पर बनी सब्जी मंडी हाट का विकसित रूप है।
शहर के बाजार
शहर के बाजार में हर चीज उपलब्ध है। कुछ दुकानदार थोक में वस्तुएँ बेचते हैं। थोक बाजार में एक ही प्रकार की वस्तु अधिक मात्रा में लेने पर सस्ती पड़ती है। छोटे व्यापारी तथा खुदरा व्यापारी थोक में वस्तुएँ खरीद लेते हैं और मुनाफा सहित खुदरा बेच देते हैं। आपस में इनका सामंजस्य होता है। वस्तुओं की कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं। यहाँ माँग और पूर्ति का नियम काम करता है। माँग में वृद्धि हुई तो कीमतें बढ़ गईं और माँग में कमी आई तो कीमतें घट गईं। सजग व्यापारी कीमतों में उतार-चढ़ाव पर प्रतिदिन नजर रखते हैं।
महानगर के सुपर बाजार और मॉल
महानगरों में बड़े-बड़े बाजार होते हैं। यहाँ की चमक-दमक देखते ही बनती हैं। इन बड़े और भव्य बाजारों को सुपर बाजार कहा जाता है। यहाँ आवश्यकता की सभी चीजें एक ही स्थान पर अर्थात् एक ही परिसर में मिल जाती हैं। अब तो मॉल बन गए हैं। बड़े-बड़े मॉल्स शहरों की पहचान बनते जा रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में शॉपिंग माँल्स बाजारवाद को बढ़ावा देने में बहुत मदद कर रहे हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी अब सब्जियाँ, फल तथा परचून की वस्तुएँ बेच रही हैं।
02. आभासी बाजार-अर्थ एवं प्रकार
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