Wednesday, March 25, 2020

विश्वमानव और श्री हामिद अंसारी (1 अप्रैल, 1934 - )

श्री हामिद अंसारी (1 अप्रैल, 1934 - )

परिचय -
श्री मोहम्मद हामिद अंसारी का जन्म 1 अप्रैल, 1934 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। हालंाकि उनके माता-पिता गाजीपुर, उत्तर प्रदेश से हैं। उनकी शिक्षा-दीक्षा सेंट एडवर्डस हाई स्कूल, शिमला, सेंट जेवियर्स महाविद्यालय, कोलकाता और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई। श्री अंसारी ने अपने कैरियर की शुरूआत भारतीय विदेश सेवा के एक नौकरशाह के रूप में 1961 में की थी, जब उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था। वे आस्ट्रेलिया में भारत के उच्चायुक्त भी रहे। बाद में उन्होंने अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात तथा ईरान में भारत के राजदूत के तौर पर भी काम किया। 1984 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वे मई, 2000 से मार्च, 2004 तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे। उन्हें गुजरात दंगों के पीड़ितों को मुआवजा दिलाने और सद्भावना के लिए उनकी भूमिका के लिए भी सराहा जाता है। वे भारतीय अल्पसंख्यक आयोग के अघ्यक्ष भी रह चुके हैं। वे एक शिक्षाविद् तथा प्रमुख राजनेता हैं। वे 10 अगस्त, 2007 को भारत के 13वें उपराष्ट्रपति चुने गये।

”पिछली सदी में राष्ट्रवाद की अवधारणा काफी प्रबल रही। यह अलग बात है कि सदी के बीच में ही परस्पर अंतर निर्भरता ने विश्वग्राम की चेतना को जन्म दिया। इस चेतना ने राष्ट्रवाद की अवधारणा को काफी हद तक बदल दिया है। आज निरपेक्ष व सम्पूर्ण संप्रभुता का युग समाप्त हो गया है। राजनीतिक प्रभुता को भी विश्व के साथ जोड़ दिया है। आज मामले अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय को सौंपे जा रहे हैं। मानवाधिकारों के नये मानक लागू हो रहे हैं। इन सबसे ऐसा लगता है जैसे राज्यों का विराष्ट्रीकरण हो रहा है। आज समस्याएं राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर चली गई है। महामारी, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट आदि पूरे विश्व को प्रभावी कर रहा है। इनका हल वैश्विक स्तर पर बातचीत व सहयोग से ही संभव है। इसको देखते हुए हमें राष्ट्रवाद व अन्तर्राष्ट्रीयतावाद के विषय में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इन स्थितियों को देखते हुए नई सदी में विज्ञान, प्रौद्योगिकी व नवप्रवर्तन राष्ट्र की सम्पन्नता के लिए खासे महत्वपूर्ण साबित होगें। छात्रों से इस दिशा में प्रयास करने व लीक से हटकर  नया सोचने का  आह्वान करता हूँ। “ (बी.एच.यू के 93वें दीक्षांत समारोह व कृष्णमूर्ति फाउण्डेशन, वाराणसी में बोलते हुए)
- श्री हामिद अंसारी 
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 13 मार्च, 2011

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
इस पृथ्वी का अब आगे का समय वैश्विक मानक आधारित है जिसमें ”विश्वमानक व्यक्ति“, ”विश्वमानक शिक्षा“, ”विश्वमानक संविधान“, ”विश्वमानक प्रबन्ध“, ”विश्वमानक क्रियाकलाप“, ”विश्वमानक देश“, ”विश्वमानक ग्राम“, ”विश्वमानक नगर“ इत्यादि का है। और सब आविष्कृत किया जा चुका है। जिसका आधार ही लीक से हटकर नयी सोच है। इसलिए ही कहा गया है - ”एक आइडिया जो बदल दे पूरी दुनिया, जोश सत्य का और तरक्की के लिए नया और अन्तिम नजरिया“। जो एक मात्र शेष दसवें और अन्तिम अवतार - कल्कि अवतार द्वारा अहिंसक और शान्ति रूप से इसलिए व्यक्त किया गया है क्योंकि वर्तमान समाज में मनुष्य को मानव बुद्धि व विश्व-राष्ट्र के विकास की सभी उम्मीद धर्म गुरूओं और राजनेताओं से ही है। उन्हें ईश्वर और उनके अवतारों की कोई आवश्यकता नहीं है।
”ग्लोबलाईज्ड“ दृष्टि ही ”दिव्य दृष्टि“ है। जिसका मात्र विरोध हो सकता है नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि यह प्राकृतिक बल के अधीन है जो मानव से विश्वमानव तक के विकास के लिए अटलनीय है। दृष्टि, अहंकार है, अंधकार है, अपूर्ण मानव है तो दिव्य दृष्टि, सिद्धान्त है, प्रकाश है, पूर्णमानव-विश्वमानव है। तुम मानव की अवस्था से विश्वमानव की अवस्था में आने का प्रयत्न करो न कि विश्वमानव का विरोध। विरोध से तुम्हारी क्षति ही होगी। जिस प्रकार ”कृष्ण“ नाम है ”योगेश्वर“ अवस्था है, ”गदाधर“ नाम है ”रामकृष्ण परमहंस“ अवस्था है, ”सिद्धार्थ“ नाम है ”बुद्ध“ अवस्था है, ”नरेन्द्र नाथ दत्त“ नाम है ”स्वामी विवेकानन्द“ अवस्था है, ”रजनीश“ नाम है ”ओशो“ अवस्था है। उसी प्रकार व्यक्तियों के नाम, नाम है ”भोगेश्वर विश्वमानव“ उसकी चरम विकसित, सर्वोच्च और अन्तिम अवस्था है। ”दृष्टि“ से युक्त होकर विचार व्यक्त करना निरर्थक है, प्रभावहीन है, यहाँ तक की विरोध करने का भी अधिकार नहीं क्योंकि वर्तमान और भविष्य के समय में इसका कोई महत्व नहीं, अर्थ नहीं क्योंकि वह व्यक्तिगत विचार होगा न कि सार्वजनिक संयुक्त विचार। यह सार्वजनिक संयुक्त विचार ही ”एकात्म विचार“ है और यही वह अन्तिम सत्य है, यहीं ”सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ है। यहीं धर्मनिपरपेक्ष और सर्वधर्मसमभाव नाम से विश्वमानक - शून्य श्रंृखला: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक तथा धर्म नाम से कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम और पंचमवेदीय श्रंृखला है जिसकी शाखाएं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड व्यक्त है जिसकी स्थापना चेतना के अन्तिम रुप-दृश्य सत्य चेतना के अधीन है। यहीं ”मैं“ का दृश्य रुप है। यहीं ”विश्व-बन्धुत्व“, ”वसुधैव-कुटुम्बकम्“, ”बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय“, ”एकात्म-मानवतावाद“, ”सर्वेभवन्तु-सुखिनः“ की स्थापना का ”एकात्म कर्मवाद“ आधारित अन्तिम मार्ग है।
युग के अनुसार सत्यीकरण का मार्ग उपलब्ध कराना ईश्वर का कर्तव्य है आश्रितों पर सत्यीकरण का मार्ग प्रभावित करना अभिभावक का कर्तव्य हैै। और सत्यीकरण के मार्ग के अनुसार जीना आश्रितों का कर्तव्य है जैसा कि हम सभी जानते है कि अभिभावक, आश्रितों के समझने और समर्थन की प्रतिक्षा नहीं करते। अभिभावक यदि किसी विषय को आवश्यक समझते हैं तब केवल शक्ति और शीघ्रता से प्रभावी बनाना अन्तिम मार्ग होता है। विश्व के बच्चों के लिए यह अधिकार है कि पूर्ण ज्ञान के द्वारा पूर्ण मानव अर्थात् विश्वमानव के रुप में बनना। हम सभी विश्व के नागरिक सभी स्तर के अभिभावक जैसे- महासचिव संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्रों के राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री, धर्म, समाज, राजनीति, उद्योग, शिक्षा, प्रबन्ध, पत्रकारिता इत्यादि द्वारा अन्य समानान्तर आवश्यक लक्ष्य के साथ इसे जीवन का मुख्य और मूल लक्ष्य निर्धारित कर प्रभावी बनाने की आशा करते हैं। क्योंकि लक्ष्य निर्धारण वक्तव्य का सूर्य नये सहस्त्राब्दि के साथ डूब चुका है। और कार्य योजना का सूर्य उग चुका है। इसलिए धरती को स्वर्ग बनाने का अन्तिम मार्ग सिर्फ कर्तव्य है। और रहने वाले सिर्फ सत्य-सिद्धान्त से युक्त संयुक्तमन आधारित मानव है, न कि संयुक्तमन या व्यक्तिगतमन के युक्तमानव।

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