Wednesday, March 25, 2020

विश्वमानव और श्री अटल बिहारी वाजपेयी ( 25 दिसम्बर, 1926 - )

श्री अटल बिहारी वाजपेयी ( 25 दिसम्बर, 1926 - )

परिचय -
उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर में 25 दिसम्बर, 1926 को ब्रह्ममुहूर्त में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था। पिता पं0 कृष्ण बिहारी मिश्र ग्वालियर में अध्यापन का कार्य करते थे। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति ”विजय पताका“ पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल जी की बी0ए0 की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। कानपुर के डी.ए.वी. कालेज से राजनीति शास्त्र में प्रथम श्रेणी में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर एल.एल.बी. की पढ़ाई शुरू की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर संघ कार्य में जुट गये। डाॅ0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं0 दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ पढ़ा। सम्पादक के रूप में पांचजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन का कार्यभार संभाला। वह भारतीय जन संघ की स्थापना करने वाले में से एक हैं और 1968 से 1973 तक वह उसके अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन सफलता नहीं मिली लेकिन 1957 में बलरामपुर, गोण्डा, उत्तर प्रदेश से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा पहुँचे। 1957 से 1977 तक (जनता पार्टी की स्थापना तक) जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1968 से 1973 तक वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में वह 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनाई। 1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। 6 अप्रैल, 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व श्री वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने 1997 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुनः प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने 5 वर्षो में देश ने प्रगति के नये आयाम छुए। सन् 2004 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एन.डी.ए) ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय (इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भाजपा विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई। सम्प्रति वे राजनीति से सन्यास ले चुके हैं।
श्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी हैं। ”मेरी इक्यावन कविताएँ“ वाजपेयी जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। अटल बिहारी वाजपेयी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रज भाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। उनकी सर्व प्रथम कविता ”ताजमहल“ थी। इसमें श्रृंगार, प्रेम प्रसून न चढ़ाकर ”एक शहनशाह ने बनावा के हंसी ताजमहल, मोहब्बत करने वालों का उड़ाया है मजाक“ की तरह उनका भी ध्यान शोषण पर ही गया। कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता। राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी व्यक्तिगत संवेदनशीलता प्रकट होती रही। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेलवास सभी हालातों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में अभिव्यक्ति पायी। उनकी कुछ प्रकाशित रचनाएँ है- मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान (लोकसभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह), कैदी कविराय की कुण्डलियाँ, संसद में तीन दशक, अमर आग है, कुछ लेख कुछ भाषण, सेक्युलरवाद, राजनीति की रपटीली राहें, बिन्दु-बिन्दु विचार इत्यादि।
अटल जी एक ऐसे नेता हैं जिन्होंने जो देशहित में था वो ही किया। आजीवन अविवाहित रहे। वे एक ओजस्वी एवं पटुवक्ता एवं हिन्दी कवि हैं। परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की सम्भावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए दृढ़ कदम भी उठाए। सन् 1998 में पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सी.आई.ए. को भनक नहीं लगने दी। अटल सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं। अटल ही पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने गठबन्धन सरकार को स्थायित्व और सफलता से संचालित किया और वे पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। भारत को लेकर उनकी दृष्टि थी- ”ऐसा भारत जो भूख और डर से, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो“

‘‘कुछ लोग कहते हैं कि हमारी सरकार भूमण्डलीकरण के खिलाफ है, लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूॅ कि मैं गीता के संन्देश को सारे भूमण्डल में प्रसारित करने का हिमायती हूॅ।’’ (दिल्ली के एक सार्वजनिक सभा में)
- श्री अटल विहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री, भारत)
साभार - आज, वाराणसी, दि0-11-4-98

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
‘‘गीता का सन्देश ‘समभाव (अद्वैत) में स्थित होकर कर्म करो और परिणाम की इच्छा मुझ (आत्मा) पर छोड़ दो।’ जिसे आप सारे भूमण्डल में फैलाना चाहते हैं। वह कर्म वेदान्त के विकास का प्रथम चरण था। जिसे बहुत से धार्मिक संगठन, ज्ञानी जन लगातार सारे भूमण्डल में फैला रहे है। गीता का सन्देश व्यष्टि (व्यक्ति) के लिए था। कर्म वेदान्त का अगला चरण स्वामी विवेकानन्द द्वारा वेदान्त की व्यावहारिकता पर जोर था। तथा अन्तिम चरण कर्मवेदान्त का पूर्ण रूप- कर्मवेदः प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद है। जो कालानुसार व्यष्टि के लिए है। भूमण्डलीकरण ‘भूमण्डलीकरण’ शब्द से नहीं बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त विषय कर्म और ज्ञान आधारित सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त या विश्व व्यवस्था का न्यूनतम एवम् अधिकतम साझा कार्यक्रम या विकास दर्शन या निर्माण का आध्यात्मिक न्यूट्रान बम से होगा। वही पूर्ण रूप से विवादमुक्त होगा। वह है-कर्मवेदः प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद (धर्मयुक्त नाम) अर्थात् विश्वमानक-शून्य श्रंृखलाः मन की गुणवत्ता का विश्वमानक (धर्मनिरपेक्ष एवम् सर्वधर्म समभाव नाम) और उसका सन्देश- ‘परिणाम के ज्ञान से युक्त एवम् समभाव (अद्वैत) में स्थित होकर कर्म करो और परिणाम की इच्छा मुझ (आत्मा) पर छोड़ दो ।’ जिसकी घोषणा भारत की ओर से करने पर ही ‘‘गीता का सन्देश‘ विश्वव्यापी रूप से प्रसारित होगा न कि गीता पुस्तक को भेंट करने से। गीता पुस्तक तो अनेक संस्थाओं द्वारा बहुत वर्षो से व्यापारिक माध्यम से फैल ही रही है।
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”हिन्दुत्व महज धर्म नहीं, जीवन शैली है, आने वाली सदी में हिन्दुत्व ही विश्व को रास्ता दिखाएगा।”
- श्री अटल बिहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री, भारत)
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 28-9-98

लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
‘‘समस्त विषयों को व्यक्त, मूल्यांकित और वर्गीकृत कर्ता मानव ही है। मानव ने ही मन (व्यक्तिगत सत्य या मत) को व्यक्त किया तथा मानव ने ही मन की चरम विकसित स्थिति-आत्मा (सार्वजनिक सत्य या धर्म या मानक) को व्यक्त करेगा। सत्य भाव जो व्यक्तिगत और सार्वजनिक सत्य का संयुक्त भाव है, जिस मानव सम्प्रदाय के द्वारा आविष्कृत हुआ उन्हें हिन्दू तथा आविष्कृत भाव हिन्दू धर्म के रूप में व्यक्त हुआ। व्यक्तिगत सत्य या मन या मत से जुड़ना योग है तथा व्यक्तिगत सत्य सहित सार्वजनिक सत्य या आत्मा या सत्य-धर्म-ज्ञान से जुड़ना योगेश्वर है। योगेश्वर, योग का ही चरम विकसित और अन्तिम बाह्य चक्र है। सत्य-धर्म-ज्ञान अर्थात् एकता- शान्ति- स्थिरता- ईश्वर- मानवता- समता- समभाव- अद्वैत- वेदान्त। जो सर्वव्याप्त है, शाश्वत से पीठासीन है। धर्म कोई भी हो उसमें सत्य का होना उसकी शाश्वतता है अन्यथा नश्वरता। धर्म का ही दृश्यरूप जीवन शैली है। व्यक्तिगत सत्य से जुड़ी जीवनशैली भोग है तथा व्यक्तिगत सत्य सहित सार्वजनिक सत्य या आत्मा या सत्य-धर्म-ज्ञान से जुड़ना भोगेश्वर है। भोगेश्वर, योगेश्वर का ही दृश्य रूप है। योगेश्वर व्यक्तिगत सत्य तो भोगेश्वर सार्वजनिक सत्य-सिद्धान्त है, मानक है, अन्त है, उसी योगेश्वर भाव अर्थात सत्य-र्धम- ज्ञान- एकता- स्थिरता- ईश्वर- मानवता- समता- समभाव- अद्वैत- वेदान्त का दृश्य रूप भोगेश्वर भाव अर्थात सिद्धान्त- कर्मज्ञान- कर्मवेद- क्रियाकलापों का विश्वमानक- विकास दर्शन- निर्माण का आध्यात्मिक न्यूट्रान बम- विश्वमानक: शून्य श्रृंखला-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक -विश्व व्यवस्था का न्यूनतम एवम् अधिकतम साझा कार्यक्रम-ऐजेन्डा 2012$ -शिक्षा  2012$-विवादमुक्त तन्त्रों पर आधारित संविधान है। सत्य चर्चा का विषय नहीं आत्मासात् का विषय होता है। सत्यभाव जिस प्रकार सर्वव्याप्त है उसी प्रकार सिद्धान्त भी सर्वव्यापी है। सिद्धान्त से ही सिद्धान्त को व्यक्त करने वाला सिद्धान्त को व्यक्त कर रहा है। भोगेश्वर, उपलब्ध संसाधनों का ईश्वरत्व भाव से भोग है। एक सर्वोच्च अन्तिम सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त चक्र में सम्पूर्ण को समभाव से समेट लेना जिससे भोगकत्र्ता और भोग विषय दोनों ही ईश्वरत्व की ओर बढ़े। जब जब जिस मानव शरीर से ये सिद्धान्त स्तरीय रूप में व्यक्त हुआ वे ही महानता का प्राप्त हुये। यह सत्य है कि ‘हिन्दुत्व महज धर्म नहीं, जीवन शैली है’ लेकिन इस सम्पूर्ण सत्य में जो भाग अभी पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं हुआ है वह है- ‘जीवन शैली’ । इस श्रृंखला में धर्मज्ञान का अन्त हो चुका है। अब उसके दृश्य रूप कर्मज्ञान के व्यक्त होने का समय चल रहा है। अर्थात् ‘सम्पूर्ण जीवन शैली’, भोगेश्वर रूप में व्यक्त होने की ओर है। जिसमें गति और और विश्व व्यापी स्थापना की घोषणा करना ही भारत का सत्यरूप और भारत का धर्म है। धर्म वही है जो समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त है और ब्रह्माण्ड उसे धारण किये हुये है। उसी का आविष्कार करना ऋषियों का कार्य है। वर्तमान रूप में धर्म कोई भी हो लेकिन ब्रह्माण्ड में व्याप्त उसी धर्म को व्यक्ति धारण किये हुये हैं बस उन्हें उनका ज्ञान नहीं है। वह धर्म ही विश्वधर्म के रूप में व्यक्त हुआ है।’’    
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‘‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’’
- श्री अटल विहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री, भारत)
परमाणु बम परीक्षण ‘मई’ 98 के बाद भारत के लिए 

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
‘‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान से अभी भारत का पूर्ण रूप व्यक्त नहीं हुआ है। भारत का पूर्ण रूप ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय ज्ञान, जय कर्मज्ञान’ है। विवाद और बेरोजगारी के मूल दो कारण है- जय ज्ञान और जय कर्मज्ञान का उपलब्ध न होना । अज्ञान के कारण ही व्यक्ति अपने कर्मो के कारण को व्यक्त और विवाद मुक्त नहीं कर पाता तथा कर्मज्ञान के न होने के कारण ही कार्य कुशलता और योजना निर्माण का ज्ञान शक्तिशाली नहीं जिससे संसाधन होते हुये भी बेरोजगारी और निर्भरता बढ़ रही है। जय ज्ञान और जय कर्मज्ञान के लिए ही भारत अधुरा है और विश्व भूखा है।’’ 
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”अकेेले राजशक्ति के सहारे समाजिक बदलाव सम्भव नहीं“
- श्री अटल विहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री, भारत)
(30 जून, 1999 को लखनऊ मंे राष्ट्रीय पुर्ननिर्माण वाहिनी के शुभारम्भ मंे)

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
सतयुग में एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयी, हुआ यह कि एक प्रतापी, धर्मपरायण, प्रजावत्सल, सेवाभावी, दानवीर, सौम्य, सरल यानी सर्वगुण सम्पन्न राजा हुआ-बलि। लोग इसके गुण गाने लगे और समाजवादी राज्यवादी होने लगे। राजा बलि का राज्य बहुत अधिक फैल गया। समाजवादियों के समक्ष यानी मानवजाति के समक्ष एक गम्भीर संकट पैदा हो गया कि अगर राज्य की अवधारणा दृढ़ हो गयी तो मनुष्य जाति को सदैव दुःख, दैन्य व दारिद्रय में रहना होगा क्योंकि अपवाद को छोड़कर राजा स्वार्थी होगें, परमुखपेक्षी व पराश्रित होगे। अर्थात अकर्मण्य व यथास्थिति वादी होगे। यह भयंकर स्थिति होगी परन्तु समाजवादी असहाय थे। राजा बलि को मारना संभव न था और उसके रहते समाजवादी विचारधारा का बढ़ना सम्भव न था। ऐसी स्थिति में एक पुरूष की आत्मा अदृश्य प्राकृतिक चेतना द्वारा निर्मित परिस्थितियों में प्राथमिकता से वर्तमान में कार्य करना, में स्थापित हो गयी। वह राजा बलि से थोड़ी सी भूमि समाज या गणराज्य के लिए माॅगा। चूँकि राजा सक्षम और निश्ंिचत था कि थोड़ी भूमि में समाज या गणराजय स्थापित करने से हमारे राज्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसलिए उस पुरूष को राजा ने थोड़ी भूमि दे दी। जिस पर उस पुरूष ने स्वतन्त्र, सुखी, स्वराज आधारित समाज-गणराज्य स्थापित किया और उसका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता गया और वह राजा बलि के सुराज्य को भी समाप्त कर दिया और समाज या गणराज्य की स्थापना की गयी। चूँकि यह पुरूष बौना अर्थात् छोटे कद का तथा स्वभाव और ज्ञान में ब्राह्मण गुणों से युक्त था इसलिए कालान्तर में इसे ”समाज“ शब्द का जन्मदाता बामन अवतार का नाम दिया गया। राजा बलि द्वारा इस अवतार को दी गई भूमि का क्षेत्र ही वर्तमान का उ0प्र0 के मीरजापुर जनपद का चुनार क्षेत्र है। जिस पर इस अवतार के कार्य का प्रथम चरण प्रारम्भ हुआ था जिसके कारण ही चुनार का प्रचीन नाम चरणाद्रिगढ़ था। जहाॅ आज भी मूल मानव जाति कूर्मि का बाहुल्य हैं।
महोदय आपके विचार सत्य हैं। राजशक्ति को ये भ्रम है कि वही जनता का कल्याणकर्ता है। जबकि पृथ्वी पर बहुत से ऐसे देश हैं जो राजशक्ति पर कम औद्योगिक व व्यवसायिक घरानों पर अधिक विश्वास रखती है। जब तक समाज शक्ति अपने देश-राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी ना निभाये, राजशक्ति केवल एक देश-राष्ट्र के प्रबन्धक के सिवा कुछ नहीं हैं। राजशक्ति को सदैव अपने नागरिक के बौद्धिक शक्ति को बढ़ाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए नहीं तो राजशक्ति पर रोजगार देने का बोझ बढ़ता जायेगा और राजशक्ति की क्षमता से बाहर होने पर उससे विश्वास ही हटेगा। प्रत्येक देश के राजशक्ति को चाहिए कि वो अपने देश के प्रति समर्पित नागरिक के निर्माण के लिए शिक्षा पाठ्यक्रम को संविधान का अंग बनाये जिससे एक समान बौद्धिक शक्ति का निर्माण हो और देश-राष्ट्र शक्तिशाली बने।
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”लोकनायक का सम्पूर्ण जीवन एक प्रयोगशाला था। उन्होंने विचारों से अधिक मूल्यों को महत्व दिया। - श्री अटल बिहारी वाजपेयी (पूर्व प्रधानमंत्री, भारत)

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
”महोदय जिन्हें समाज को कुछ देना होता है वे अपने जीवन को प्रयोगशाला की भाँति ही संचालित करते हैं।  और जिन्हें कुछ पाना होता है वे ऐसे प्रयोगशाला से खोजे गये सूत्रों को लाभ उठाने के लिए पकड़ते हैं न कि उनके जीवन शैली को। और जिन्हें समाज कांे कुछ देना नहीं होता वे आजीवन उसी विषय क्षेत्र में रहकर भी कुछ नहीं दे पाते हैं। और अपने स्वार्थ की पूर्ति करते रहते हैं। विचार तो प्रत्येक व्यक्ति के हो सकते हैं जैसे- ओसामा बिन लादेन के, जार्ज डब्ल्यू0 बुश के, कोफी अन्नान के, वी0 एस0 नायपाल के और आपके भी, परन्तु किसी के विचार को आतंकवादी, किसी को नोबेल पुरस्कार, किसी को सही कदम तथा किसी को स्त्रीयोचित कह दिया जाता है। क्योंकि निम्नतम स्तर-विध्वंसक विचार से सर्वोच्च स्तर- सकारात्मक, रचनात्मक, समन्वयात्मक के जितना करीब होता है। उसमें उतना ही मूल्य होता है।“


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