Wednesday, March 25, 2020

विश्वमानव और श्री वी.एस.नाॅयपाल (17 अगस्त, 1932 - )

श्री वी.एस.नाॅयपाल (17 अगस्त, 1932 - )

परिचय -
विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल का जन्म 17 अगस्त, 1932 को ट्रिनिडाड के चगवानस में हुआ। इनका परिवार नाम नेपाल देश पर आधारित है, अतः नैपाल, ”जो नेपाल से हो“। ऐसी धारणा है कि इनके पूर्वज गोरखपुर के भूमिहार ब्राह्मण थे जिन्हें ट्रिनिडाड ले जाया गया इसलिए इस परिवार का नेपाल का छोड़ना, इससे पहले हुआ होगा। ट्रिनिडाड में जन्में भारतीय मूल के साहित्य क्षेत्र से नोबेल पुरस्कार (2001 में) विजेता लेखक हैं। उनकी शिक्षा ट्रिनिडाड और इंग्लैण्ड में हुई। वे दीर्घकाल से ब्रिटेन के निवासी हैं। उनके पिताजी श्रीप्रसाद नैपाल, छोटे भाई शिव नैपाल, भतीजे नील बिसुनदत्त, चचेरे भाई कपिलदेव सभी नामी लेखक रहे हैं। पहले पत्रकार रह चुकीं श्रीमती नादिरा नैपाल उनकी पत्नी हैं। इनके अनुज शिव नैपाल भी बहुत अच्छे लेखक थे। इनका सबसे महान उपन्यास ”ए हौस फार मिस्टर बिस्वास“ है। नैपाल परिवार और कपिलदेव परिवार ट्रिनिडाड में बहुत प्रभावशाली रहे हैं। विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल को नूतन अंग्रेजी छंद का गुरू कहा जाता है। वे कई साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किये जा चुके हैं, इनमें जोन लिलवेलीन रीज पुरस्कार (1958), दी सोमरसेट मोगम अवार्ड (1980), दी होवथोरडन पुरस्कार (1964), दी डबलु एच स्मिथ साहित्यिक अवार्ड (1968), दी बुकर पुरस्कार (1971) तथा दी डेविड कोहेन पुरस्कार (1993) ब्रिटीश साहित्य में जीवन पर्यन्त कार्यो के लिए, प्रमुख है। विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल को 2008 में दी टाइम्स ने अपनी 50 महान ब्रिटिश साहित्यकारों की सूची में सातवाँ स्थान दिया।

उपन्यास - The Mystic Masseur - (1957) , The Suffrage of Elvira - (1958) , Miguel Street - (1959) , A House for Mr Biswas (1961) , Mr. Stone and the Knights Companion - (1963) , A Flag on the Island - (1967) , The Mimic Men - (1967) , In a Free State - (1971) , Guerillas - (1975) , A Bend in the River (1979) , Finding the Centre - (1984) , The Enigma of Arrival - (1987) , A Way in the World - (1994) , Half a Life - (2001) , Magic Seeds - (2004) 

अन्य कृति - The Middle Passage: Impressions of Five Societies - British, French and Dutch in the West Indies and South America (1962) , An Area of Darkness (1964) , The Loss of El Dorado - (1969) , The Overcrowded Barracoon and Other Articles (1972) , India: A Wounded Civilization (1977) , A Congo Diary (1980) , The Return of Eva Perón and the Killings in Trinidad (1980) , Among the Believers: An Islamic Journey (1981) , Finding the Centre (1984) , A Turn in the South (1989) , India: A Million Mutinies Now (1990) , Beyond Belief: Islamic Excursions among the Converted Peoples (1998) , Between Father and Son: Family Letters (1999, edited by Gillon Aitken) 

”भारत बौद्धिक विस्फोट के मुहाने पर खड़ा है। हर क्षेत्र में भारतीयों का दखल हो रहा है। वह दिन समय नहीं, जब भारत भी पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाएगा। हालांकि इसका लाभ उठाने के लिए भारत को अतीत की पहेलीयों को सुलझाना होगा।“
-वी. एस. नाॅयपाल, (साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित) 
साभार - अमर उजाला, वाराणसी, दि0 31 अक्टूबर 2000

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
महोदय, आपकी दूरदृष्टि बिलकुल सत्य है। भारत बौद्धिक विस्फोट और अपने विश्व गुरूता के लिए अपने सभी अतीत के पहेलीयों को सुलझा चुका है। और वह ”विश्वधर्म“ के लिए ”विश्वशास्त्र“ के रूप में प्रकाशित है। स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था -
”हिन्दू भावों को अंग्रेजी में व्यक्त करना, फिर शुष्क दर्शन, जटिल पौराणिक कथाएं और अनूठे आश्चर्यजनक मनोविज्ञान से ऐसे धर्म का निर्माण करना, जो सरल, सहज और लोकप्रिय हो और उसके साथ ही उन्नत मस्तिष्क वालों को संतुष्ट कर सके- इस कार्य की कठिनाइयों को वे ही समझ सकते हैं, जिन्होंने इसके लिए प्रयत्न किया हो। अद्वैत के गुढ़ सिद्धान्त में नित्य प्रति के जीवन के लिए कविता का रस और जीवन दायिनी शक्ति उत्पन्न करनी है। अत्यन्त उलझी हुई पौराणिक कथाओं में से जीवन प्रकृत चरित्रों के उदाहरण समूह निकालने हैं और बुद्धि को भ्रम में डालने वाली योगविद्या से अत्यन्त वैज्ञानिक और क्रियात्मक मनोविज्ञान का विकास करना है और इन सब को एक ऐसे रुप में लाना पड़ेगा कि बच्चा-बच्चा इसे समझ सके।“ - स्वामी विवेकानन्द 
”यदि कभी कोई सार्वभौमिक धर्म हो सकता है, तो वह ऐसा ही होगा, जो देश या काल से मर्यादित न हो, जो उस अनन्त भगवान के समान ही अनन्त हो, जिस भगवान के सम्बन्ध में वह उपदेश देता है, जिसकी ज्योति श्रीकृष्ण के भक्तों पर और ईसा के प्रेमियों पर, सन्तों पर और पापियों पर समान रूप से प्रकाशित होती हो, जो न तो ब्राह्मणों का हो, न बौद्धों का, न ईसाइयों का और न मुसलमानों का, वरन् इन सभी धर्मों का समष्टिस्वरूप होते हुए भी जिसमें उन्नति का अनन्त पथ खुला रहे, जो इतना व्यापक हो कि अपनी असंख्य प्रसारित बाहूओं द्वारा सृष्टि के प्रत्येक मनुष्य का प्रेमपूर्वक आलिंगन करें।... वह विश्वधर्म ऐसा होगा कि उसमें किसी के प्रति विद्वेष अथवा अत्याचार के लिए स्थान न रहेगा, वह प्रत्येक स्त्री और पुरूष के ईश्वरीय स्वरूप को स्वीकार करेगा और सम्पूर्ण बल मनुष्यमात्र को अपनी सच्ची, ईश्वरीय प्रकृति का साक्षात्कार करने के लिए सहायता देने में ही केन्द्रित रहेगा। हमें दिखलाना है- हिन्दुओं की आध्यामिकता, बौद्धो की जीवदया, ईसाइयों की क्रियाशीलता एवं मुस्लिमों का बन्धुत्व, और ये सब अपने व्यावहारिक जीवन के माध्यम द्वारा। हमने निश्चय किया- हम एक सार्वभौम धर्म का निर्माण करेंगें।“ - स्वामी विवेकानन्द
”हमें ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जिससे हम मनुष्य बन सकें। हमें ऐसे सिद्धान्तों की आवश्यकता है, जिससे हम मनुष्य हो सकें। हमें ऐसी सर्वांगसम्पन्न शिक्षा चाहिए, जो हमें मनुष्य बना सके और यह रही सत्य की कसौटी-जो भी तुम्हे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दुर्बलता लाए, उसे जहर की भांति त्याग दो; उसमें जीवन-शक्ति नहीं है, वह कभी सत्य नहीं हो सकता। सत्य तो बलप्रद है, वह पवित्रता स्वरूप है, ज्ञान स्वरूप है। सत्य तो वह है जो शक्ति दे, जो हृदय के अन्धकार को दूर कर दे, जो हृदय में स्फूर्ति भर दें। उसी मूल सत्य की फिर से शिक्षा ग्रहण करनी होगी, जो केवल यहीं से, हमारी इसी मातृभूमि से प्रचारित हुआ था। फिर एक बार भारत को संसार में इसी मूल तत्व का-इसी सत्य का प्रचार करना होगा। ऐसा क्यों है? इसलिए नहीं कि यह सत्य हमारे शास्त्रों में लिखा है वरन् हमारे राष्ट्रीय साहित्य का प्रत्येक विभाग और हमारा राष्ट्रीय जीवन उससे पूर्णतः ओत-प्रोत है। इस धार्मिक सहिष्णुता की तथा इस सहानुभूति की, मातृभाव की महान शिक्षा प्रत्येक बालक, स्त्री, पुरुष, शिक्षित, अशिक्षित सब जाति और वर्ण वाले सीख सकते हैं। तुमको अनेक नामों से पुकारा जाता है, पर तुम एक हो। मैं जिस आत्मतत्व की बात कर रहा हूँ वहीं जीवन है, शक्तिप्रद है और अत्यन्त अपूर्व है। केवल वेदान्त में ही वह महान तत्व है जिससे सारे संसार की जड़ हिल जायेगी और जड़ विज्ञान के साथ धर्म की एकता सिद्ध होगी।“    - स्वामी विवेकानन्द
यह सनातन धर्म का देश है। देश गिर अवश्य गया है, परन्तु निश्चय फिर उठेगा। और ऐसा उठेगा कि दुनिया देखकर दंग रह जायेगी। (विवेकानन्दजी के संग में, पृष्ठ-159) - स्वामी विवेकानन्द

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