Wednesday, March 25, 2020

विश्वमानव और श्री मुरली मनोहर जोशी (5 जनवरी, 1934-)

श्री मुरली मनोहर जोशी (5 जनवरी, 1934-)

परिचय -
डाॅ0 मुरली मनोहर जोशी, भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता हैं। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के शासनकाल में वे भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री थे। इनका जन्म 5 जनवरी, 1934 को दिल्ली में हुआ था। उनका पैत्रिक निवास स्थान वर्तमान उत्तराखण्ड के कुमायूँ क्षेत्र में है। उनकी प्राथमिक शिक्षा चांदपुर जिला बिजनौर और अल्मोड़ा में हुई। उन्होंने अपना बी.एससी. मेरठ कालेज और एम.एससी. इलहाबाद विश्वविद्यालय से किये यहाँ उनके एक शिक्षक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह थे जो बाद में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक बन गये। यहीं से उन्होंने अपनी डाॅक्टरेट की उपाधि भी अर्जित की। उनका शोधपत्र स्पेक्ट्रोस्कोपी पर था। अपना शोधपत्र हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करने वाले वे प्रथम शोधार्थी हैं। अपनी पीएच.डी पूरी करने के बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी में अध्यापन शुरू कर दिये। बाद में वे राष्ट्रीय राजनीति में आ गये।
वे युवा उम्र में ही दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये और 1953-1954 में गाय संरक्षण आन्दोलन में भाग लिये। 1955 में कुंभ, इलाहाबाद के भू-राजस्व आकलन की मांग के किसान आन्दोलन में भाग लिए। भारत के आपातकाल की अवधि 1975-1977 के दौरान आप 26 जून, 1975 से 1977 में लोकसभा चुनाव तक जेल में रहे। आप अल्मोड़ा से जनता दल के उम्मीदवार बनकर लोकसभा सदस्य चुने गये थे और दल के संसदीय महासचिव चुने गये थे। 1980 में जनता दल के सरकार के पतन के बाद गठित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पहले महासचिव फिर कोषाध्यक्ष के रूप में भी आपने कार्य किया। भाजपा के महासचिव के रूप में बिहार, बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों के प्रभारी भी थे। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी तब आप मानव संसाधन विकास मन्त्री के रूप में देश की सेवा की। आपको वीर सावरकर, श्री गुरूजी और दीनदयाल उपाध्याय के जीवन और कर्म से प्रभावित हुआ माना जाता है। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी 13 दिनों की सरकार में आप गृहमंत्री भी थे। 2009 के आम चुनाव के भाजपा के घोषणा पत्र तैयार करने वाले बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भी आप नियुक्त थे। 2009 के 15वीं लोकसभा में आप वाराणसी, उत्तर प्रदेश संसदीय क्षेत्र से संसद सदस्य भी है।

‘‘काल का बोध न रखने वाले राष्ट्र का आत्मबोध व दिशाबोध भी समाप्त हो जाता है।’’
- श्री मुरली मनोहर जोशी, 
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 10-7-98

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण  
‘‘जब व्यष्टि मन की शान्ति, स्थिरता और एकता अन्तः अदृश्य विषयों पर केन्द्रित होता है तो उसे व्यष्टि अदृश्य काल कहते हैं। जब व्यष्टि मन की शान्ति, स्थिरता और एकता बाह्य दृश्य विषयों पर केन्द्रित होती है तो उसे व्यष्टि दृश्य काल कहते हैं। इसी प्रकार जब अधिकतम व्यष्टि के मन की शान्ति, स्थिरता और एकता अन्तः अदृश्य विषयों पर केन्द्रित होती है तो उसे समष्टि अदृश्य काल कहते हैं और बाह्य दृश्य विषयों पर केन्द्रित होती है तो उसे समष्टि दृश्य काल कहते हैं। अदृश्य काल के लिए अनेक ईश्वर नाम तथा दृश्य काल के लिए एक ईश्वर नाम होते हैं। इस ईश्वर नाम या शब्द का दर्शन ही मानव तथा राष्ट्र को आत्मबोध वा दिशाबोध प्रदान करता है। अदृश्य काल से दृश्य काल में परिवर्तन की सूचना व्यक्तिगत स्तर से सार्वजनिक पत्र मुद्रित कराकर केन्द्रिय सचिवालय, दिल्ली, पी0 टी0 आई0 भवन, दिल्ली, मथुरा व वाराणसी के मन्दिरों व पत्र द्वारा सम्पूर्ण देश में वितरित किये गये थे और समष्टि स्तर से ब्रह्माण्ड द्वारा दिंनाक -18-11-97 से 22-11-97 (पाॅच दिन) खगोल विज्ञान द्वारा प्रमाणित सभी ग्रहों का एक सीध में आना द्वारा सूचित किया जा चुका है। कालानुसार ज्ञान द्वारा मानव को पूर्ण मानव में विकसित न करना मानवाधिकार का स्पष्ट हनन है। यह सत्य है कि काल का बोध न रखे वाले राष्ट्र का का आत्मबोध व दिशाबोध भी समाप्त हो जाता है। परन्तु इस काल की वर्तमान स्थिति से जन साधारण को परिचित कौन करायेगा? सरकार और मानव संसाधन मंत्री तो आप हैं। वेद या ज्ञान या सत्य की बातें सत्य होती हैं परन्तु व्यावहारिक नहीं। मात्र व्यावहारिक सत्य ही आत्मबोध या दिषाबोध दे सकता है।’’
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‘‘मैं आवाहन करता हूॅ-देश की युवा पीढ़ी का, जो इस महान गौरवशाली देश का नेतृत्व करें और संकीर्णता, भय, आसमानता, असहिष्णुता से ऊपर उठकर राष्ट्र को ज्ञान-विज्ञान के ऐसे धरातल पर स्थापित करे कि लोग कहें यही तो भारत महान है।’’ (विज्ञापन द्वारा प्रकाशित अपील)
- श्री मुरली मनोहर जोशी
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 11-8-98

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
‘‘देश में युवा हैं जो इस गौरवशाली देश का नेतृत्व बिना किसी पद पर बैठे ही सकीर्णता, भय, असमानता, असहिष्णुता से ऊपर उठकर राष्ट्र को ज्ञान-विज्ञान के ऐसे धरातल पर स्थापित कर सकते हैं, जिससे भारत की महानता सार्वजनिक रूप से सिद्ध हो सकती है। या यूॅ कहें कि भारत का वर्तमान रूप राम, कृष्ण, आादि शंकर, स्वामी विवेकान्द, स्वामी दयानन्द, भगत सिंह, रजनीश इत्यादि जैसे युवाओं ने वैचारिक और प्रत्यक्ष क्रान्ति द्वारा ही, अपने जीवन को अन्य जीवन के लोगो से अलग रखकर व्यक्त किया है। और जब भी भारत अपनी महानता को स्थापित करेगा वह युवा के द्वारा ही होगा क्योंकि कोई भी यहाॅ जन्म लेकर और पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त कर भारत को महानता नहीं दिला सकता क्योंकि फिर इतने बड़े कार्य के लिए एक जीवन तो ज्ञान की खोज में ही निकल जायेगा-फिर कर्म कब होगा? ऐसे युवा जिन्होनें अपने जीवन को बलिदान स्वरूप रखकर भारत को सतत महानता की ओर ले जाने के लिए प्रयत्न किये है वे तो सिर्फ कर्म करने आये, ज्ञान तो, उन्हें पूर्वजन्म से ही प्राप्त था। आपने आवाहन किया जो एक अच्छा कदम है लेकिन समस्या है कि कोई युवा आपसे मिलने आये तो आपके पास समय न होगा और उस युवा के चेहरे पर लिखा भी न होगा कि भारत को महानता दिलाने वाला यही युवा है। यदि पत्र दे तो भी वह कुड़ेदान में चला जायेगा लेकिन भारत के कार्यो में यदि भारत के नेतृत्व कत्र्ता ही साथ न दे तो भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। हाॅ पत्रों के प्रति निष्क्रियता-आपके निष्क्रियता का प्रमाणपत्र अवश्य बन जाती है। ऐसा ही पत्र आपको आपके आवाहन के जवाव में भेजा गया था’’         
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‘‘देश के सभी विद्यालयों में वेद की शिक्षा दी जायेगी’’ 
- श्री मुरली मनोहर जोशी
साभार - आज, वाराणसी, दि0 10/12/98

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
”सत्य के अनुभूति का साहित्य वेद है। ऋगवेद-ज्ञान से सत्य की ओर, सामवेद-गायन से सत्य की ओर, यजर्वुेद-व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य कर्म से सत्य की ओर, अथर्ववेद-औषधि से सत्य की ओर और कर्मवेद-सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य कर्म से सत्य की ओर जाने का साहित्य है। प्रथम चार वेद में ज्ञान, विज्ञान और व्यक्तिगत प्रमाणित मानव एवम् प्रकृति के सन्तुलन के लिए कर्मज्ञान हैं। जिस पर आधारित और सत्य की ओर ले जाने वाले अनेकों साहित्य-संहिता, ब्राह्मण, अरण्यक, पुराण, उपनिषद् आदि हैं। इतने साहित्यों के उपरान्त वेदो और उपनिषदों के सत्य के मूलरूप को व्यक्त करता और कर्म की ओर प्रेरित करता साहित्य गीता है। उसके उपरान्त कर्म ज्ञान पर आधारित शुद्ध और अन्तिम सार्वजनिक सत्य-सिद्धान्त का साहित्य कर्मवेदः प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद अर्थात् विश्वमानक -शून्य श्रंृखला: मन की गुणवत्ता का विश्वमानक है। हजारों वर्षो से समयानुसार आवश्यकतानुसार परिष्कृत होकर व्यक्त हुआ सत्य जो व्यक्ति को सीधे पूर्ण ज्ञान से जोड़ सकता है, वह वेद विद्यालयों में शिक्षा देने योग्य है कि वह जो हजारों वर्ष पूर्व का वेद है जिसकी एक एक ऋचा को समझने में और सत्य की अनुभूति करने में अधिकतम समय लगता हैै। यह सोचने का विषय है- वर्तमान समय में व्यक्ति इतने अधिक नियम, कानून, समस्या, दायित्व और कत्र्तव्यों से घिरा है कि वह न्यूनतम समय में अधिकतम प्राप्त करना चाहता है। ऐसे में समयानुसार और आवश्यकतानुसार ही सम्पूर्ण मानव समाज को सर्वाधिक विवादस्पद सत्य-धर्म-ज्ञान से विवादमुक्त करने और कर्मज्ञान-दृश्य कर्मज्ञान को स्थापित करने के लिए कर्मवेद व्यक्त हुआ है। जिसकी शिक्षा आने वाली पीढ़ी और वर्तमान के व्यक्तियों के बीच नेतृत्व कर्ताओं को स्वेच्छा से स्थापित उसी भाॅति करना चाहिए जिस प्रकार एक माता-पिता अपने अबोध सन्तान को आवश्यकतानुसार एवम समयानुसार विषयों को उपलव्ध कराते हैं। जिसके प्रति किसी प्रकार का आन्दोलन स्वयं माता-पिता और नेतृत्वकत्र्ताओं के नैतिकता पर प्रश्न उठा सकता है। इसलिए इसके प्रति आन्दोलन न करना ही मेरा मार्ग है।’’ 
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”प्रधानमंत्री ने भी भारत के कायाकल्प के लिए अंतरनिहित सिद्धांतों को स्पष्ट किया है। उन्होंने हजारों वर्षों से चली आ रही भारतीय परंपराओं से अनुभव हासिल करने वाले विशेषज्ञों, जनता के सुझावों और विपरीत विचारों को ध्यानपूर्वक सुनने का सुझाव दिया है। यदि हमने ऐसा कर दिया तो हम नीतियों और योजनाओं को न सिर्फ विफल होने से बचा लेंगे, बल्कि भविष्य के जोखिमों से भी इन्हें सुरक्षित कर देंगे। इन सबका अर्थ है भविष्य की योजनाओं और विकास के लिए जरूरी बुनियादी बातों को फिर से परिभाषित करना और उन्हें नए रूप में रचना। इसके लिए सोच के एक नए स्तर की जरूरत होती है। यह किस तरह होगा, यह बहुत कुछ आयोग की टीम की रूपरेखा और दृष्टिकोण पर निर्भर करेगा। प्रधानमंत्री ने नीति आयोग की टीम के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश तय किए हैं। अब नीति आयोग पर निर्भर करता है कि वह आशाओं के अनुरूप आचरण करे और परिणाम दे। (”अगली सदी की तैयारी“ शीर्षक से दैनिक जागरण में प्रकाशित लेख) 
- डॉ. मुरली मनोहर जोशी, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
महोदय, नीति आयोग के लिए एकदम सत्य दृष्टि। ”आध्यात्मिक विरासत के आधार पर एक भारत - श्रेष्ठ भारत“ का निर्माण इस विचार के बिना नहीं हो सकता। और यह ईश्वर के अवतारों के अधीन है। ये कार्य नौकरी पेशा विद्वानों के वश का है ही नहीं क्योंकि भारत ऐसे लागों से निर्मित नहीें बल्कि ऋषि निर्मित है।
नीति आयोग, भारत सरकार के पास क्या ऐसे अनुभवी व्यक्ति हैं यदि नहीं तो आध्यात्मिक विरासत के आधार पर एक भारत - श्रेष्ठ भारत का सपना छोड़ दें- ये है हमारे ”एक“ का सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक के 10 जन्मों का अनुभव -
मछलियों ंके स्वभाव जल की धारा के विपरीत दिशा (राधा) में गति करने से ज्ञान (अर्थात राधा का सिद्धान्त) प्रथम अवतार मत्स्य अवतार का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। एक सहनशील, शांत, धैर्यवान, लगनशील, दोनों पक्षो के बीच मध्यस्थ की भूमिका वाला गुण सहित प्रथम अवतार के गुण सहित वाला गुण द्वितीय अवतार कूर्म अवतार का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। एक मेधावी, सूझ-बुझ, सम्पन्न, पुरूषार्थी, धीर-गम्भीर, निष्कामी, बलिष्ठ, सक्रिय, शाकाहारी, अहिंसक और समूह प्रेमी, लोगों का मनोबल बढ़ाना, उत्साहित और सक्रिय करने वाला गुण सहित द्वितीय अवतार के समस्त गुण से युक्त वाला गुण तृतीय अवतार वाराह अवतार का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। प्रत्यक्ष रूप से एका-एक लक्ष्य को पूर्ण करने वाले गुण सहित तृतीय अवतार के समस्त गुण से युक्त वाला गुण चतुर्थ अवतार नरसिंह अवतार का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। भविष्य दृष्टा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूमि पर गणराज्य व्यवस्था की स्थापना व व्यवस्था को जिवित करना, उसके सुख से प्रजा को परिचित कराने वाले गुण सहित चतुर्थ अवतार के समस्त गुण से युक्त गुण पाँचवें अवतार का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। गणराज्य व्यवस्था को ब्रह्माण्ड में व्याप्त व्यवस्था सिद्धान्तों को आधार बनाने वाले गुण और व्यवस्था के प्रसार के लिए योग्य व्यक्ति को नियुक्त करने वाले गुण सहित पाँचवें अवतार के समस्त गुण से युक्त वाला गुण छठें अवतार परशुराम का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। आदर्श चरित्र के गुण तथा छठें अवतार तक के समस्त गुण को प्रसार करने वाला गुण सातवें अवतार श्रीराम का गुण था जो अगले अवतार में संचरित हुई। आदर्श सामाजिक व्यक्ति चरित्र के गुण, समाज मंे व्याप्त अनेक मत-मतान्तार व विचारों के समन्वय और एकीकरण से सत्य-विचार के प्रेरक ज्ञान को निकालने वाले गुण सहित सातवें अवतार तक के समस्त गुण आठवें अवतार श्रीकृष्ण का गुण था। जिससे व्यक्ति, व्यक्ति पर विश्वास न कर अपने बुद्धि से स्वयं निर्णय करें और प्रेरणा प्राप्त करता रहे। प्रजा को प्रेरित करने के लिए धर्म, संघ और बुद्धि के शरण में जाने की मूल शिक्षा देना नवें अवतार भगवान बुद्ध का गुण था। आदर्श वैश्विक व्यक्ति चरित्र सहित सभी अवतारों का सम्मिलित गुण व मन निर्माण की प्रक्रिया से निर्मित अन्तिम मन स्वामी विवेकानन्द के मन के गुण मिलकर दसवें अन्तिम अवतार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ में व्यक्त हुआ। 
पुराण पढें और देखें है न, पृथ्वी की समस्या पहले ब्रह्मा के पास जाती है। यदि वह उनसे हल नहीं हो पाती तो अपने उच्च अधिकारी विष्णु के पास फाइल फरवार्ड की जाती है। यदि उनसे भी नहीं हल होती तो मुख्य कार्यालय शिव-शंकर के कार्यालय में भेज दी जाती है। जब सभी अन्धे होते हैं तो काना (एक आॅख) वाला शासन करता है। जब सभी काने होते हैं तो दो आॅख वाला शासन करता है। जब सभी दो आॅख वाले होते हैं तब तीसरे नेत्र वाले का शासन आता है। जबकि सभी शासक अपने समय के अनुसार सर्वश्रेष्ठ ही होते हैं। नीति आयोग दो आॅख वालों का समूह है, अब उसे काशी-सत्यकाशी से तीसरे नेत्र का प्रकाश माॅगना चाहिए। ससम्मान निवेदन करें या अपनी क्षमता-बौद्धिकता पेश करें।


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