श्री केशरी नाथ त्रिपाठी (10 नवम्बर, 1934 - )
परिचय -
श्री केशरी नाथ त्रिपाठी जी का जन्म 10 नवम्बर, 1934 को इलाहाबाद में हुआ था। आपने बी.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्य किया। अपने छात्र जीवन में कश्मीर आन्दोलन के लिए आप जेल गये। आप कई साहित्यिक और समाजिक सेवा संगठनों के साथ जुड़े रहे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एशोसिएशन के अध्यक्ष पद पर 1987-1989 तक आप रहें। आप 1977-1980, 1989-1991, 1991-1992, 1993-1995, 1996-2002 और 2002 के उत्तर प्रदेश विधानसभा में सदस्य रहे। 1977-1979 में आप मन्त्री संस्थागत वित्त भी रहे। उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष पद पर आप 1991-1993, 1997-2002, फिर 14 मई 2002 से 19 मार्च 2004 तक रहें। अध्यक्ष उत्तर प्रदेश शाखा, राष्ट्रमण्डल संसदीय एशोसिएशन के पद पर आप 1991-1993 और 1997 में रहें। 1991, 1992, 1997, 1998, 2000, 2001 में राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ के सम्मेलन में आपकी भागीदारी हुई। आप उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष भी रहें। भाजपा के अखिल भारतीय कार्य समिति के सदस्य और उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष भी रहें।
कानून, शिक्षा, साहित्य और संस्कृति में आपकी रूचि सहित आप एक लेखक व कवि भी हैंे। आपके दो काव्य पुस्तके ”मनोनुकृति“ और ”आयुपंख“ प्रकाशित हैं। आपने एक ”लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951“ भी लिखा है। आप बर्लिन, बहामा, टोरंटो, टोक्यो, बीजिंग, बैंकाॅक, हांगकांग, माॅरीशस, लंदन, लाॅस एंजिल्स, न्यूयार्क, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, स्विटजरलैण्ड, जर्मनी, आॅस्ट्रिया, कनाडा, माल्टा, नेपाल, ग्रीस, नीदालैण्ड, इटली, रूस की विदेश यात्रा कर चुके हैं। आप उत्तर प्रदेश रत्न, विश्व भारती सम्मान, अभिषेक श्री और भारत गौरव से सम्मानित किये जा चुके हैं।
‘‘शिक्षा में दूरदृष्टि होनी चाहिए तथा हमारी शिक्षा नीति और शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे हम भविष्य देख सके और भविष्य की आवश्यकताओं को प्राप्त कर सकें।
- श्री केशरीनाथ त्रिपाठी
साभार - आज, वाराणसी, दि0-25-12-98
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
‘‘बिल्कुल सत्य दृष्टि है परन्तु व्यावहारिक और स्थापना स्तर तक लाने के लिए उसका प्रारूप क्या होगा? उसके विषय क्या होंगे? विवादमुक्त कैसे होगा? उसके प्रारूप की उत्पति किस विवादमुक्त सूत्र से होगी? इन सब का उत्तर ही कर्मवेदः प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद अर्थात् विश्वमानक -शून्य श्रंृखलाः मन की गुणवत्ता का विश्वमानक है और उस पर पर आधारित विवादमुक्त तन्त्रों पर आधारित भारत का संविधान भाग-2 होगा। यह सब नव काल, नव युग, इक्कीसंवीं सदी और भविष्य के लिए नव अविष्कृत है। सत्य वाणी सत्य होती है। लेकिन व्यावहारिक सिद्धान्त को कौन प्रस्तुत करेगा? यदि प्रस्तुत हो भी गया तो उसके स्थापना में आपका योगदान क्या होगा?’’
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