श्री लाल कृष्ण आडवाणी (8 नवम्बर, 1927-)
परिचय -
श्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवम्बर, 1927 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उनके पिता श्री के.डी.आडवाणी और माँ ज्ञानी आडवाणी थीं। विभाजन के बाद भारत आ गए आडवाणी ने 25 फरवरी, 1965 को कमला आडवाणी को अपनी अर्धांगिनी बनाया। आडवाणी के दो बच्चे हैं। लालकृष्ण आडवाणी की शुरूआती शिक्षा लाहौर में ही हुई पर बाद में भारत आकर उन्होंने मुम्बई के गवर्नमेन्ट लाॅ कालेज से लाॅ में स्नातक किया। आज वे भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम हैं। गाँधी के बाद वे दूसरे जननायक हैं जिन्होंने हिन्दू आन्दोलन का नेतृत्व किया औा पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी) की सरकार बनावाई। लेकिन पिछले कुछ समय से अपनी मौलिकता खोते हुए नजर आ रहे हैं। जिस अक्रामकता के लिए वे जाने जाते थे, उस छवि के ठीक विपरीत आज वो समझौतावादी नजर आते हैं। हिन्दुओं में नई चेतना का सूत्रपात करने वाले आडवाणी में लोग नब्बे के दशक का आडवाणी ढंूढ रहे हैं। अपनी बयानबाजी की वजह से उनकी काफी फजीहत हुई। अपनी किताब और ब्लाॅग से भी वो चर्चा में आए और आलोचना भी हुई। वर्ष 1951 में डाॅ0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की, तब से लेकर सन् 1957 तक आडवाणी पार्टी के सचिव रहे। वर्ष 1973 से 1977 तक आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व सम्भाला। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक श्री लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्हीेंने सम्भाला। इसी दौरान वर्ष 1990 में राममन्दिर आन्दोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बीच में ही गिरफ्तार कर लिया गया, पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। 1990 की रथयात्रा ने श्री लाल कृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुँचा दिया था। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है। श्री लाल कृष्ण आडवाणी 3 बार भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं। श्री लाल कृष्ण आडवाणी 4 बार राज्यसभा के और 5 बार लोकसभा के सदस्य रहे। वर्ष 1977 से 1979 तक पहली पहली बार केन्द्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने दायित्व संम्भाला। श्री लाल कृष्ण आडवाणी इस दौरान सूचना प्रसारण मंत्री रहे। श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने अभी तक के राजनीतिक जीवन में सत्ता का जो सर्वोच्च पद सम्भाला है वह है- एन.डी.ए. शासनकाल के दौरान उपप्रधानमंत्री का। श्री लाल कृष्ण आडवाणी वर्ष 1999 में एन.डी.ए. की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्रीय गृहमंत्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून, 2002 को उपप्रधानमंत्री का दायित्व सौंपा गया। भारतीय संसद में एक अच्छे सांसद के रूप में श्री लाल कृष्ण आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत किये गये। श्री लाल कृष्ण आडवाणी किताबों, संगीत और सिनेमा में खासी रूचि रखते हैं। श्री लाल कृष्ण आडवाणी, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। भारतीय जनता पार्टी को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका योगदान सर्वोपरि कहा जा सकता है। वे कई बार भा.ज.पा. के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। लाल कृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौहपुरूष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं- लाल कृष्ण आडवाणी।
-शासन में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्र आगे आएं।
- लाल कृष्ण आडवाणी, केन्द्रीय गृह मन्त्री, भारत
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
महोदय, मान लिजिए छात्र आगे आ गये, अब वे क्या करेंगे यह भी तो बताएं? आप सरकार में हैं। आपका शासन है। तो भ्रष्टाचार को छात्र कैसे दूर करेंगे? यदि आप छात्र द्वारा भ्रष्टाचारीयों की पिटाई को अपराध से मुक्त रखने की घोषणा भी कर देंगे तो भी भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता। कारण, भ्रष्टाचारी के घर भी तो छात्र हैं फिर अपनों के विरुद्ध आवाज उठाने से तो उनका चरित्र ही गिर जायेगा जो आपके श्रीराम के चरित्र के विरुद्ध हो जायेगा। क्योंकि आपके श्रीराम के अनुसार बड़ों का आदर (चाहें वे कैसे भी हों?) करना ही तो धर्म है। हाँ, भ्रष्टाचार मिटाने का यह उपाय है कि- जिस प्रकार आप लोगों ने 18 वर्ष की उम्र को वोट (मत) देने का अधिकार दिया है उसी प्रकार 25 वर्ष के उम्र पर पैत्रिक सम्पत्ति का अधिकार तथा नैतिक उत्थान के लिए पूर्ण ज्ञान - कर्म ज्ञान आधारित विश्वमानक शून्य: मन (मानव संसाधन) की गुणवत्ता का विश्वमानक की शिक्षा सहित ‘शिक्षा का सही अर्थ धन अर्जित कर लेना ही नहीं है बल्कि समाज को उचित आवश्यकता प्रदान करना, अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठानी भी है जो अपनत्व की भावना से पूर्णतया मुक्त हो।“ का प्रसार करना पड़ेगा। परन्तु क्या आप यह करेंगे, नहीं। क्योंकि यह तो सत्य कार्य हो जायेगा और इससे आपको लगेगा कि यह तो मेरा कार्य हो गया।
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”शिक्षा का स्वदेशी माॅडल चाहिए” (गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में)
- लाल कृष्ण आडवाणी, केन्द्रीय गृह मन्त्री, भारत
साभार - दैनिक जागरण, वाराणसी, दि0 8-06-2008
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
भारत यदि पूर्णता व विश्व गुरूता की ओर बढ़ना चाहता है तब उसे मात्र कौशल विकास ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय बौद्धिक विकास की ओर भी बढ़ना होगा। बौद्धिक विकास, व्यक्ति व राष्ट्र का इस ब्रह्माण्ड के प्रति दायित्व है और उसका लक्ष्य है।
राष्ट्र के पूर्णत्व के लिए पूर्ण शिक्षा निम्नलिखित दो शिक्षा का संयुक्त रूप है-
अ - सामान्यीकरण (Generalisation) शिक्षा - यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का बौद्धिक विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय सुख में वृद्धि होती है।
ब - विशेषीकरण (Specialisation) शिक्षा - यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का कौशल विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि होती है।
वर्तमान समय में विशेषीकरण की शिक्षा, भारत में चल ही रहा है और वह कोई बहुत बड़ी समस्या भी नहीं है। समस्या है सामान्यीकरण शिक्षा की। व्यक्तियों के विचार से सदैव व्यक्त होता रहा है कि - मैकाले शिक्षा पद्धति बदलनी चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति व पाठ्यक्रम बनना चाहिए। ये तो विचार हैं। पाठ्यक्रम बनेगा कैसे?, कौन बनायेगा? पाठ्यक्रम में पढ़ायेगें क्या? ये समस्या थी। और वह हल की जा चुकी है। जो भारत सरकार के सामने सरकारी-निजी योजनाओं जैसे ट्रांसपोर्ट, डाक, बैंक, बीमा की तरह निजी शिक्षा के रूप में पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग द्वारा पहली बार इसके आविष्कारक द्वारा प्रस्तुत है। जो शिक्षा का स्वदेशी माॅडल है।
मानव एवम् संयुक्त मानव (संगठन, संस्था, ससंद, सरकार इत्यादि) द्वारा उत्पादित उत्पादों का धीरे-धीरे वैश्विक स्तर पर मानकीकरण हो रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रबन्ध और क्रियाकलाप का वैश्विक स्तर पर मानकीकरण करना चाहिए। जिस प्रकार औद्योगिक क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (International Standardisation Organisation-ISO) द्वारा संयुक्त मन (उद्योग, संस्थान, उत्पाद इत्यादि) को उत्पाद, संस्था, पर्यावरण की गुणवत्ता के लिए ISO प्रमाणपत्र जैसे- ISO-9000, ISO-14000 श्रंृखला इत्यादि प्रदान किये जाते है उसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ को नये अभिकरण विश्व मानकीकरण संगठन (World Standardisation Organisation-WSO) बनाकर या अन्र्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन को अपने अधीन लेकर ISO/WSO-0 का प्रमाण पत्र योग्य व्यक्ति और संस्था को देना चाहिए जो गुणवत्ता मानक के अनुरूप हों। भारत को यही कार्य भारतीय मानक व्यूरो (Bureau of Indiand Standard-BIS) के द्वारा IS-0 श्रंृखला द्वारा करना चाहिए। भारत को यह कार्य राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (National Education System-NES) व विश्व को यह कार्य विश्व शिक्षा प्रणाली (World Education System-WES) द्वारा करना चाहिए। जब तक यह शिक्षा प्रणाली भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जनसाधारण को उपलब्ध नहीं हो जाती तब तक यह ”पुनर्निर्माण - सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW - Real Education National Express Way)“ द्वारा उपलब्ध करायी जा रही है।
वैसे तो यह कार्य भारत सरकार को राष्ट्र की एकता, अखण्डता, विकास, साम्प्रदायिक एकता, समन्वय, नागरिकों के ज्ञान की पूर्णता इत्यादि जो कुछ भी राष्ट्रहित में हैं उसके लिए सरकार के संस्थान जैसे- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.), एन.सी.ई.आर.टी, राष्ट्रीय ज्ञान आयोग, राष्ट्रीय नवोन्मेष परिषद्, भारतीय मानक ब्यूरो के माध्यम से ”राष्ट्रीय शिक्षा आयोग“ बनाकर पूर्ण करना चाहिए जो राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अति आवश्यक और नागरिकों का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निर्धारण व परिभाषित करने का मार्ग भी है।
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