Wednesday, March 25, 2020

विश्वमानव और श्री राम नाइक (16 अप्रैल 1934 - )

श्री राम नाइक (16 अप्रैल 1934 - )

परिचय -
श्री नाईक का जन्म 16 अप्रैल 1934 को महाराष्ट्र के सांगली में हुआ. विद्यालयीन शिक्षा सांगली जिले के आटपाडी गांव में हुई। पुणे में बृहन् महाराष्ट्र वाणिज्य महाविद्यालय से 1954 में बी.काम. तथा मुंबई में किशनचंद चेलाराम महाविद्यालय से 1958 में एल.एल.बी. की स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की। श्री नाईक ने अपना व्यावसायिक जीवन ‘अकाउंटैंट जनरल’ के कार्यालय में अपर श्रेणी लिपिक के नाते शुरु किया। बाद में उनकी उच्च पदों पर उन्नति हुई और 1969 तक निजी क्षेत्र में कंपनी सचिव तथा प्रबंध सलाहकार के नाते उन्होंने कार्य किया। श्री राम नाईक बचपन से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवक हैं।
आदरणीय राष्ट्रपति जी ने 14 जुलाई 2014 को श्री राम नाईक को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के तौर पर मनोनीत करने के बाद श्री नाईक ने 22 जुलाई 2014 को लखनऊ में पद ग्रहण किया और 05 अगस्त 2014 को राजस्थान के राज्यपाल के नाते भी मनोनीत करने के बाद श्री राम नाईक ने 08 अगस्त 2014 से 03 सितम्बर 2014 तक राजस्थान के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार संभाला। साऊथ इंडियन एज्युकेशन सोसायटी, मुंबई की ओर से ‘राष्ट्रीय श्रेष्ठता पुरस्कार’ कांची कामकोटी पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्य जयेन्द्र सरस्वती स्वामीगल के हाथों श्री राम नाईक को मुंबई में दिनांक 13 दिसम्बर 2014 को प्रदान किया गया। इसके पूर्व इस पुरस्कार से पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ० शंकर दयाल शर्मा और पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए०पी०जे० अब्दुल कलाम जैसे महानुभावों को अलंकृत किया गया है।
इसके पूर्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठित मंत्री परिषद में 13 अक्टूबर 1999 से 13 मई 2004 तक श्री राम नाईक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री रहे। 1963 में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय का गठन हुआ। तब से अब तक लगातार पांच वर्ष कार्यरत वे एकमेव पेट्रोलियम मंत्री हैं। इसके पूर्व 1998 की मंत्री परिषद में श्री नाईक ने रेल (स्वतंत्र प्रभार), गृह, योजना एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन और संसदीय कार्य मंत्रालयों में राज्यमंत्री (13 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999) के रुप में कामकाज संभाला था। एक साथ इतने महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभालना विशेष माना जाता है। वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे तथा भाजपा शासित राज्य सरकारों के मंत्रियों की कार्यक्षमता बढ़े और गुणवत्ता का संवर्धन हो इसलिए गठित ‘सुशासन प्रकोष्ठ’ के राष्ट्रीय संयोजक भी थे। 2014 का लोकसभा चुनाव न लड़ने की तथा भविष्य में पार्टी को अपने राजनैतिक अनुभव देने के लिए राजनीति में सक्रिय रहने की घोषणा श्री राम नाईक ने भाजपा के आचार-विचार के प्रेरणाश्रोत तथा एकात्म मानववाद के जनक पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जयंती के दिन यानी 25 सितंबर 2013 को पत्रकार सम्मेलन में की। 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके उत्तर मुंबई निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार श्री गोपाल शेट्टी महाराष्ट्र में सबसे अधिक मतों से 6,64,004 और सबसे अधिक मताधिक्य 4,46,582 से जीते। श्री नाईक श्री शेट्टी के चुनाव प्रमुख थे।
पेट्रोलियम मंत्री के रुप में श्री राम नाईक ने अक्टूबर 1999 में पदभार संभाला। उस समय 1 करोड़ 10 लाख ग्राहक घरेलू गैस की प्रतीक्षा-सूची में थे। यह घरेलू गैस की प्रतीक्षा-सूची समाप्त करने के साथ-साथ कुल 3 करोड़ 50 लाख नये गैस कनेक्शन श्री नाईक ने अपने कार्यकाल में जारी करवाए। उसके पूर्व 40 वर्षों में कुल 3.37 करोड़ गैस कनेक्शन दिए गए थे। माँगने पर नया सिलंडर मिलना प्रारंभ हुआ था। इस पृष्ठभूमि पर श्री नाईक की कार्यक्षमता उभर कर सामने आती है। साथ-साथ दुर्गम तथा पहाड़ी इलाकों की जरुरतों को व अल्प आय वाले लोगों को राहत देने के लिए 5 किलो के गैस सिलेंडर भी उनके कार्यकाल में ही जारी किए गये। उस समय 70 प्रतिशत कच्चा तेल (क्रूड ऑइल) आयात किया जाता था। कच्चे तेल के आयात की इस निर्भरता को कम करने के लिए उन्होंने विविध योजनाएं बनाकर उन्हें कार्यरूप देना शुरु किया। उन योजनाओं में से एक महत्वपूर्ण निर्णय अर्थात इथेनॉल का पेट्रोल में 10 प्रतिशत मिश्रण करना है। कारगिल युद्ध में शहीद वीरों की पत्नियों/निकटस्थ रिश्तेदारों को तेल कंपनियों के माध्यम से पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी की डीलरशिप देने की विशेष योजना भी उनके द्वारा ही मंजूर की गई। संसद भवन पर हुए हमले में शहीद कर्मचारियों के परिवारजनों को भी पेट्रोल पंप आवंटित किए। पेट्रोल-डीजल के वाहनों से प्रदूषण कम हो इसलिए दिल्ली और मुंबई में सीएनजी गैस देना प्रारंभ किया। इस समय मुंबई में 1.40 लाख आटो रिक्शा, 53 हजार टैक्सी, 7,500 निजी मोटरकारें तथा 8,400 बस-ट्रक-टेम्पो सीएनजी पर चलते हैं, इसके अलावा रसोई के एलपीजी सिलंडर के बदले अधिक सुरक्षित, उपयोग के लिए आसान और तुलना में सस्ता पाइप गैस शुरु किया। इसका लाभ मुंबई में 7 लाख परिवारों को और 1,900 लघु-उद्योगों को मिल रहा है।
मुंबईवालों की नजर में ‘उपनगरीय रेल यात्रियों के मित्र’ यह श्री राम नाईक की असली पहचान है. श्री नाईक ने 1964 में ‘गोरेगांव प्रवासी संघ’ की स्थापना कर उपनगरीय यात्रियों की समस्याओं को सुलझाने का कार्य प्रारंभ किया। बाद में रेल राज्यमंत्री के नाते विश्व के व्यस्ततम मुंबई उपनगरीय रेल के 76 लाख यात्रियों को उन्नत सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए ‘मुंबई रेल विकास निगम’ की स्थापना की। मुंबई के उपनगरी यात्रियों को राहत देने की दृष्टि से श्री राम नाईक ने अनेक विषयों की पहल की जैसे कि उपनगरी क्षेत्र का विरार से डहाणू तक विस्तार, 12 डिब्बों की गाड़ियां, संगणीकृत आरक्षण केन्द्र, बोरीवली-विरार चैहरीकरण, कुर्ला-कल्याण छः लाईनें, महिला विशेष गाड़ी आदि. संपूर्ण देश में रेल प्लेटफार्मों पर तथा यात्री गाड़ियों में सिगरेट तथा बीड़ी बेचने पर पाबंदी लगाने का ऐतिहासिक काम भी श्री नाईक द्वारा किया गया। यात्रियों से सुझाव लेकर नई गाड़ियों का नामकरण करने की अनोखी लोकप्रिय पद्धति का प्रारंभ भी श्री राम नाईक ने ही किया। 11 जुलाई 2006 को लोकल गाड़ियों में हुए बम विस्फोट से पीड़ित परिवारों को सहायता पहुंचाने के लिए विशेष प्रयास किए। 16 अप्रैल 2013 से डहाणू-चर्चगेट लोकल सेवा प्रारंभ हुई, जिसके पीछे श्री नाईक के सफल प्रयास रहे हैं। इस निर्णय से पश्चिम रेलवे का उपनगरीय सेवा का क्षेत्र 60 किलोमीटर से 124 किलोमीटर हुआ।
श्री राम नाईक ने महाराष्ट्र के उत्तर मुंबई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से लगातार पांच बार जीतने का कीर्तिमान बनाया है। इसके पूर्व तीन बार वे महाराष्ट्र विधानसभा में बोरीवली से विधायक भी रहे हैं। तेरहवीं लोकसभा चुनाव में उन्हें 5,17,941 मत प्राप्त हुए जो कि महाराष्ट्र के सभी जीतने वाले सांसदों में सर्वाधिक थे। मुंबई में सफलतापूर्वक लगातार आठ बार चुनाव जीतने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले श्री नाईक पहले लोक प्रतिनिधि हैं। जनप्रतिनिधि की जवाबदेही की भूमिका में मतदाताओं को वे प्रतिवर्ष कार्यवृत्त प्रस्तुत करते रहे। राज्यपाल का दायित्व सम्भालने के बाद भी आपने पहले तीन महीनों का कार्यवृत्त ‘राजभवन में राम नाईक’ 20 अक्टूबर 2014 को प्रस्तुत किया.
श्री राम नाईक संसद की गरिमामय लोक लेखा समिति के 1995-96 में अध्यक्ष थे। लोकसभा में वे भाजपा के मुख्य सचेतक भी रहे। संसदीय रेलवे समन्वय समिति, प्रतिभूमि घोटाला के लिए संयुक्त जांच समिति, महिला सशक्तिकरण को बल प्रदान करने हेतु संसदीय समिति जैसी प्रमुख समितियों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लोकसभा की कार्यवाही को सुचारु चलाने के लिए लोकसभा की सभापति तालिका के भी वे सदस्य रहे हैं।
श्री राम नाईक ने संसद में ‘वंदे मातरम’ का गान प्रारंभ करवाया। उनके प्रयासों के फलस्वरुप ही अंग्रेजी में ‘बॉम्बे ’ और हिन्दी में ‘बंबई’ को उसके असली मराठी नाम ‘मुंबई’ में परिवर्तित करने में सफलता मिली। संसद सदस्यों को निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए सांसद निधि की संकल्पना श्री नाईक की ही है। इस राशि को रुपए 1 करोड़ प्रति वर्ष से रुपए 2 करोड़ प्रतिवर्ष कराने का निर्णय भी योजना एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन राज्य मंत्री के नाते श्री नाईक ने लिया। अब यह राशि रुपए 5 करोड़ की गयी है। संसद सदस्य के नाते उन्होंने ‘स्तनपान को प्रोत्साहन और शिशु खाद्य के विज्ञपनों पर रोक’ का ‘निजी विधेयक’ प्रस्तुत किया। तद्नुसार इस विधेयक को सरकार द्वारा स्वीकृति मिली और बाद में यह अधिनियम बना।
राजनैतिक स्तर पर उन्होंने भारतीय जनसंघ के स्थानीय कार्यकर्ता के रुप में मुंबई का उपनगर गोरेगांव में कार्य शुरु किया। 1969 में भारतीय जनसंघ के मुंबई क्षेत्र के संगठन मंत्री के नाते कार्य करने के लिए उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने लगातार आठ वर्षों तक संगठन का कार्य किया। वे भाजपा मुंबई विभाग के तीन बार अध्यक्ष भी रहे। वे पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के विशेष आमंत्रित सदस्य तथा भाजपा के ‘सुशासन प्रकोष्ठ’ के राष्ट्रीय संयोजक भी थे।
श्री राम नाईक को 1994 में कैंसर की बीमारी हुई परंतु श्री राम नाईक ने उस रोग को भी मात दी, तत्पश्चात् विगत 20 वर्षों में पहले जैसे वे उसी उत्साह और कार्यक्षमता से काम कर रहे हैं. श्री राम नाईक एक विशिष्ट छवि वाले व्यक्ति हैं जो प्रत्येक कार्य में सूक्ष्मता और पारदर्शिता एवं जागरुकता के लिए जाने जाते हैं.
आदरणीय राष्ट्रपति द्वारा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त किए जाने की घोषणा के बाद 15 जुलाई 2014 को श्री राम नाईक ने भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से तथा सभी पदों से इस्तीफा दिया है

”देश विविधता से भरा है। इसमें आस्था ऐसा पहलू है जो एका बनाता है। भले ही बोली भाषा, पहनावा, संस्कृति में भिन्नता हो पर माँ गंगा के प्रति आस्था तो एक जैसी है। इसे विकास से जोड़ने का यह उपयुक्त वक्त है। काशी की इसी धरती पर आदि शंकराचार्य को अद्वैत ज्ञान मिला था। यहाँ के कण-कण में पाण्डित्य व्याप्त है जो हमें संस्कृति की ओर आकर्षित करता है। देश में भले ही विभिन्न राज्यों की अपनी संस्कृति और सम्प्रभुता है मगर काशी, देश के सभी राज्यों को अद्वैत भाव से एकता के साथ लेकर आगे बढ़ती है। देश को एकता के साथ विकास का भाव जगाने के लिए काशी की ओर देखना चाहिए।“ (महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में भारतीय समाजशास्त्रीय सोसायटी के 40वें अधिवेशन के उद्घाटन में)
- श्री राम नाइक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, भारत
साभार -  दैनिक जागरण, 30 नवम्बर, 2014


”रिजर्व बैंक से दस गुना विचार धन दे गये विवेकानन्द” (स्वामी विवेकानन्द के शिकागो वकृतता के 122 वर्षगाॅठ पर सन् 2015 में अलीगढ़ में) - श्री राम नाइक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, भारत

”सोचवीर नहीं, कृतिवीर बनें। जब रामसेतू बन रहा था तब एक गिलहरी भी श्रमदान कर रही थी। क्योंकि वह किनारे बैठकर सोचने की बजाए पूरी ताकत से कृति में जुट गई थी। देशवासीयों को भी इस कथा से प्रेरणा लेनी चाहिए।” (महमूरगंज, वाराणसी के एक अभिनन्दन समारोह में)
  - श्री राम नाइक, राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, भारत

लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
काशी, सत्य प्रकाशित करने वाला एक क्षेत्र है। मूलतः जिन महापुरूषों के कारण वाराणसी ने गौरव प्राप्त किया उनमें से अधिकतम, वहाँ के निवासी ही नहीं थे। 
रामनगर (वाराणसी की ओर से गंगा उस पार) का महात्म्य महर्षि वेदव्यास के तप स्थलों के रूप में विदित है। त्रिकोण की संरचना में वेदव्यास के स्थान से जितनी दूरी पर दुर्गा मन्दिर है, ठीक उतनी ही दूरी पर बाबा कीनाराम के द्वारा स्थापित वेदव्यास मंदिर है, जो रामनगर किले के अन्दर स्थित है। जिसे साधारण जनता छोटा वेदव्यास के नाम से जानती है। वास्तव में वेदव्यास की यह सबसे प्राचीन मूर्ति है। व्यासजी द्वारा काशी को शाप देने के कारण विश्वेश्वर ने व्यासजी को काशी से निष्कासित कर दिया था। तब व्यासजी लोलार्क मन्दिर के आग्नेय कोण में गंगाजी के पूर्वी तट पर स्थित हुए। इस घटना का उल्लेख काशी खण्ड में इस प्रकार है-
लोलार्कादं अग्निदिग्भागे, स्वर्घुनी पूर्वरोधसि। 
स्थितो ह्यद्यापि पश्चेत्सः काशीप्रासाद राजिकाम्।। - स्कन्दपुराण, काशी खण्ड 96/201
काशीखण्डोक्त लोलार्क कुण्ड से दक्षिण दिशा की ओर टीला-शिखर पर आदि वेदव्यास का स्थान है। काशी खण्ड के प्रमाण से ही यह सिद्ध होता है कि इस परिक्षेत्र में अतिप्राचीन मेला होता था जो अब समाप्तप्राय है (मघा नक्षत्र युक्ता पूर्णिमा)। माघ महीने में लगने वाला यह मेला वर्तमान में राजकीय व्यवस्था के अभाव से अब समाप्त है। कहा जाता है कि शिव द्वारा वेदव्यास को वरदान था कि काशीवास का पुण्य तभी प्राप्त होगा जब माघ महीने में वेदव्यास का दर्शन किया जाये। इस दर्शन द्वारा एक वर्ष काशीवास का पुण्य प्राप्त होता है। यह मेला मात्र मेला न होकर दूर-दराज के आये लोगों के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक मंच होता था। किले में स्थित वेदव्यास मंदिर के दर्शन के पश्चात हजारों लोग तालाब में स्नान कर बगीचों व तालाबों के किनारे भोजन कर पुनः वेदव्यास का दर्शन करते थे इस दौरान तालाबों के किनारो पर सैकड़ों दुकानें लगती थीं। जो लोगों की आजीविका तथा राजस्व का एक साधन थे। व्यास काशी क्षेत्र की कुल सीमा करीब 15 किलोमीटर के व्यास में है, जो छोटा मीरजापुर, पटनवाँ, हमीदपुर, जिवनाथपुर, रामनगर से साहुपुरी तक विस्तृत है।
महर्षि वेदव्यास की तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध प्राचीन रामनगर घाट के किनारे की एक बस्ती के रूप में था, जहाँ पर शहर का एक धनाढ्य वर्ग जौहरी, सेठ के रूप में रहता था। 
ध्यान रहे कि गंगा पार क्षेत्र से ही अन्तिम जीवनदायिनी शास्त्र ”विश्वशास्त्र“ और ”सत्यकाशी क्षेत्र“ व्यक्त हुआ है। प्रभु नारायण राजकीय इण्टर कालेज से कक्षा-11 व 12 के अपने शिक्षा ग्रहण के दौरान 2 वर्ष रामनगर में गोलाघाट स्थित स्व.एस.एस.लाल के मकान सं0 1/782 में किराये पर मेरा (लव कुश सिंह ”विश्वमानव“) रहना हुआ। ध्यान का विषय है-शिव से काशीवासी और काशी है या काशीवासी और काशी से शिव हैं’’, काशी (वाराणसी) में एक काशी करवट मन्दिर भी है।
प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदी जी ने काशी का ध्यान केन्द्रित करते हुये अपने विचार को इस प्रकार व्यक्त किये थे - ”काशी के राष्ट्र गुरू बने बिना भारत जगत गुरू नहीं बन सकता। देश अतीत की तरह आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुँचेगा तो स्वतः आर्थिक वैभव प्राप्त हो जायेगा। इसी खासियत की वजह से इतिहास में कभी भारत सोने की चिड़िया थी।“ परन्तु काशी अभी तक उस जिम्मेदारी को नहीं पूण कर पा रहा। ”सत्यकाशी क्षेत्र-व्यास क्षेत्र” जो कभी काशी राज्य का ही अंग हुआ करता था, द्वारा ”काशी-सत्यकाशी“ के राष्ट्रगुरू बनने की योग्यता प्रस्तुत हो चुकी है।
स्वामी विवेकानन्द जी सत्य रूप में रिजर्व बैंक से दस गुना विचार धन दे गये। और वो 100 से अधिक वर्ष पूर्व ही दे गये। अभी भारत उसे कैश (नगद) में परिवर्तित ही नहीं करा पा रहा है तो भारत को उस विचार धन से क्या लाभ? जबकि स्वामी जी के विचार की अगली किस्त आ गई है और वह कैश (नगद) में परिवर्तित होगी। अगली किस्त अनन्त है और वह इतना है कि जैसे-जैसे खर्च होगा वैसे-वैसे बढ़ता ही जायेगा। क्योंकि वो किस्त इस रूप में है-
शब्द से सृष्टि की ओर...
सृष्टि से शास्त्र की ओर...
शास्त्र से काशी की ओर...
काशी से सत्यकाशी की ओर...
और सत्यकाशी से अनन्त की ओर...
                  एक अन्तहीन यात्रा...............................
वहीं पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे, अब्दुल कलाम जी ने कहा था-”नवीनता के द्वारा ही ज्ञान को धन में बदला जा सकता है।“ ज्ञान को व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन के लिए उपयोगी बनाने और उसके व्यापारीकरण से ही कल्याण होता है। सभी जानते हैं - ”जगत एक सपना है, यह जगत असत्य है, ब्रह्म ही सत्य“, तो क्या कोई काम न किया जाये?

स्वामी विवेकानन्द जी की वाणी है -
”बहुत सेे व्यक्तियों के समूह कांे समष्टि कहते हैं और प्रत्येक व्यक्ति, व्यष्टि कहलाता है आप और मैं दोनों व्यष्टि हैं, समाज समष्टि है आप और मैं- पशु, पक्षी, कीड़ा, कीड़े से भी तुक्ष प्राणी, वृक्ष, लता, पृथ्वी, नक्षत्र और तारे यह प्रत्येक व्यष्टि है और यह विश्व समष्टि है जो कि वेदान्त में विराट, हिरण गर्भ या ईश्वर कहलाता है। और पुराणों में ब्रह्मा, विष्णु, देवी इत्यादि। व्यष्टि को व्यक्तिशः स्वतन्त्रता होती है या नहीं, और यदि होती है तोे उसका नाम क्या होना चाहिए। व्यष्टि को समष्टि के लिए अपनी इच्छा और सुख का सम्पूर्ण त्याग करना चाहिए या नहीं, वे प्रत्येक समाज के लिए चिरन्तन समस्याएँ हैं सब स्थानों में समाज इन समस्याओं के समाधान में संलग्न रहता है ये बड़ी-बड़ी तरंगों के समान आधुनिक पश्चिमी समाज में हलचल मचा रही हैं जो समाज के अधिपत्य के लिए व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का त्याग चाहता है वह सिद्धान्त समाजवाद कहलाता है और जो व्यक्ति के पक्ष का समर्थन करता है वह व्यक्तिवाद कहलाता है।”
  (पत्रावली भाग-2, पृष्ठ - 288)
जब रामसेतू बन रहा था तब एक गिलहरी भी श्रमदान कर रही थी क्योंकि गिलहरी को ये पता था कि कौन सा कार्य प्राथमिक है। भारत की स्थिति तो ये है कि पहले गिलहरी ही राम से अपना काम करवायेगी और उसके बाद फुर्र हो जायेगी। भारत, कार्य की स्तरीय प्राथमिकता का विवेक भी खो चुका है। उसे पता ही नहीं कि शारीरिक, आर्थिक और मानसिंक कार्य में कौन सा प्राथ्मिक है, कौन मध्यम और कौन निम्न। समष्टि कार्य के उत्थान के लिए व्यष्टि को अपनी शक्ति लगानी चाहिए। इस ओर कार्य करने को ही बलिदान-त्याग-शहीद होना कहते हैं।
जबकि महर्षि मनु का कहना था - ”इस कलयुग में मनुष्यों के लिए एक ही कर्म शेष है आजकल यज्ञ और कठोर तपस्याओं से कोई फल नहीं होता। इस समय दान ही अर्थात एक मात्र कर्म है और दानो में धर्म दान अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान का दान ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरा दान है विद्यादान, तीसरा प्राणदान और चैथा अन्न दान। जो धर्म का ज्ञानदान करते हैं वे अनन्त जन्म और मृत्यु के प्रवाह से आत्मा की रक्षा करते है, जो विद्या दान करते हैं वे मनुष्य की आॅखे खोलते, उन्हें आध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते है। दूसरे दान यहाॅ तक कि प्राण दान भी उनके निकट तुच्छ है। आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार से मनुष्य जाति की सबसे अधिक सहायता की जा सकती है।“ 

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