पुनर्निर्माण-राष्ट्र निर्माण का व्यापार
राष्ट्र निर्माण या सामाजिक क्रान्ति या विकास सहित पूर्ण मानव निर्माण की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि की प्रक्रिया है इसके लिए दूरगामी आवश्यकता को दृष्टि में रखते हुए कार्य करने की विधि के लिए बिन्दु का निर्धारण होता है। जो हमारे मार्गदर्शक होते हैं-
01. औद्योगिक क्षेत्र में Japanese Institute of
Plant Engineers (JIPE) द्वारा उत्पादों के विश्वस्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए उत्पाद निर्माण तकनीकी- WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total
Productive Maintenance-Siri (छँटाई), Seton (सुव्यवस्थित), Sesso (स्वच्छता), Siketsu (अच्छास्तर), Shituke (अनुशासन) प्रणाली संचालित है। जिसमें सम्पूर्ण कर्मचारी सहभागिता (Total Employees Involvement) है। ये 5S मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
02. श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा मानव के विश्व स्तरीय निर्माण विधि को प्राप्त करने के लिए मानव निर्माण तकनीकी ॅWCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufacturing–Total
Life Maintenance-Satya, Heart, Yoga, Ashram,
Meditation. Conceousness) प्रणाली आविष्कृत है जिसमें सम्पूर्ण तन्त्र सहंभागिता (Total System Involvement-TSI) है। ये SHYAM.C मार्गदर्शक बिन्दु हैं।
03. सोमवार, 9 जून 2014 को भारत के 16वीं लोकसभा के संसद के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करते हुये श्री प्रणव मुखर्जी, राष्ट्रपति, भारत ने विकास व लक्ष्य प्राप्ति के कार्य के लिए अनके बिन्दुओं को देश के समक्ष रखें। जिसमें मुख्य था-1.आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर साकार होगा एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना। 2.सोशल मीडिया का प्रयोग कर सरकार को बेहतर बनाने की कोशिश। 3.सबका साथ, सबका विकास। 4.100 नये माॅडल शहर बसाना। 5.5T-ट्रेडिशन (Tradition), ट्रेड (Trade), टूरिज्म (Tourism), टेक्नालाॅजी (Technology) और टैलेन्ट (Talent) का मंत्र।
राष्ट्र निर्माण का व्यापार राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत किये गये मार्गदर्शक बिन्दुओं का सम्मिलित रूप है। नये शहर के रूप में वाराणसी के दक्षिण थ्री इन वन ”सत्यकाशी नगर“ की योजना उस क्षेत्र के विकास पर आधारित है तो आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत-श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार करने के लिए पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग (RENEW-Real Education National Express
Way) द्वारा राष्ट्र निर्माण का व्यापार समाजवाद पर आधारित भारत देश के आम आदमी के लिए प्रस्तुत है। किसी व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है कि उसे भोजन, स्वास्थ्य और निर्धारित आर्थिक आय को सुनिश्चित कर दिया जाय और यह यदि उसके शैक्षिक जीवन से ही कर दिया जाय तो शेष सपने को वह स्वयं पूरा कर लेगा। यदि वह नहीं कर पाता तो उसका जिम्मेदार भी वह स्वयं होगा, न कि अभिभावक या ईश्वर। पुनर्निर्माण, इसी सुनिश्चिता पर आधारित है।
मानव एवम् संयुक्त मानव (संगठन, संस्था, ससंद, सरकार इत्यादि) द्वारा उत्पादित उत्पादों का धीरे-धीरे वैश्विक स्तर पर मानकीकरण हो रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रबन्ध और क्रियाकलाप का वैश्विक स्तर पर मानकीकरण करना चाहिए। जिस प्रकार औद्योगिक क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन ¼International Standardization Organisation-ISO) द्वारा संयुक्त मन (उद्योग, संस्थान, उत्पाद इत्यादि) को उत्पाद, संस्था, पर्यावरण की गुणवत्ता के लिए ISO प्रमाणपत्र जैसे- ISO-9000, ISO-14000 श्रंृखला इत्यादि प्रदान किये जाते है उसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ को नये अभिकरण विश्व मानकीकरण संगठन ¼World Standardization Organisation-WSO) बनाकर या अन्र्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन को अपने अधीन लेकर ISO/WSO-0 का प्रमाण पत्र योग्य व्यक्ति और संस्था को देना चाहिए जो गुणवत्ता मानक के अनुरूप हों। भारत को यही कार्य भारतीय मानक व्यूरो (Bureau of Indian Standard-BIS) के द्वारा प्ै.0 श्रंृखला द्वारा करना चाहिए। भारत को यह कार्य राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली ¼National Education System-NES½ व विश्व को यह कार्य विश्व शिक्षा प्रणाली ¼World Education System-WES) द्वारा करना चाहिए। जब तक यह शिक्षा प्रणाली भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जनसाधारण को उपलब्ध नहीं हो जाती तब तक यह ”पुनर्निर्माण“ द्वारा उपलब्ध करायी जा रही है।
जो व्यक्ति या देष केवल आर्थिक उन्नति को ही सर्वस्व मानता है वह व्यक्ति या देष एक पशुवत् जीवन निर्वाह के मार्ग पर है-जीना और पीढ़ी बढ़ाना। दूसरे रूप में इसे ऐसे समझा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति जिनका लक्ष्य धन रहा था वे अपने धन के बल पर अपनी मूर्ति अपने घर पर ही लगा सकते हैं परन्तु जिनका लक्ष्य धन नहीं था, उनका समाज ने उन्हें, उनके रहते या उनके जाने के बाद अनेकों प्रकार से सम्मान दिया है और ये सार्वजनिक रूप से सभी के सामने प्रमाणित है। पूर्णत्व की प्राप्ति का मार्ग शारीरिक-आर्थिक उत्थान के साथ-साथ मानसिक-बौद्धिक उत्थान होना चाहिए और यही है ही। इस प्रकार भारत यदि पूर्णता व विश्व गुरूता की ओर बढ़ना चाहता है तब उसे मात्र कौशल विकास ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय बौद्धिक विकास की ओर भी बढ़ना होगा। बौद्धिक विकास, व्यक्ति व राष्ट्र का इस ब्रह्माण्ड के प्रति दायित्व है और उसका लक्ष्य है। राष्ट्र के पूर्णत्व के लिए पूर्ण शिक्षा निम्नलिखित शिक्षा का संयुक्त रूप है-
अ-सामान्यीकरण (Generalization) शिक्षा-ज्ञान के लिए-यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का बौद्धिक विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय सुख में वृद्धि होती है।
ब-विशेषीकरण (Specialization) शिक्षा-कौशल के लिए-यह शिक्षा व्यक्ति और राष्ट्र का कौशल विकास कराती है जिससे व्यक्ति व राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि होती है।
स-सत्य नेटवर्क (REAL NETWORK)&-समाज में प्रकाशित होने के लिए
वर्तमान समय में विशेषीकरण की शिक्षा, भारत में चल ही रहा है और वह कोई बहुत बड़ी समस्या भी नहीं है। समस्या है सामान्यीकरण शिक्षा की। व्यक्तियों के विचार से सदैव व्यक्त होता रहा है कि-मैकाले शिक्षा पद्धति बदलनी चाहिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति व पाठ्यक्रम बनना चाहिए। ये तो विचार हैं। पाठ्यक्रम बनेगा कैसे?, कौन बनायेगा? पाठ्यक्रम में पढ़ायेगें क्या? ये समस्या थी। और वह हल की जा चुकी है। जो भारत सरकार के सामने सरकारी-निजी योजनाओं जैसे ट्रांसपोर्ट, डाक, बैंक, बीमा की तरह निजी शिक्षा के रूप में पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग द्वारा पहली बार इसके आविष्कारक द्वारा प्रस्तुत है। जो राष्ट्र निर्माण का व्यापार है।
06.पुनर्निर्माण क्यों?
राष्ट्र निर्माण के लिए प्रत्येक व्यक्ति को तथा उसके निवास क्षेत्र से ही पूर्णता के निर्माण के लिए ज्ञान और कौशल विकास की उपलब्धता छात्रवृत्ति सहित अन्य सहायता व सुविधा के साथ पहुँचाने के उद्देश्य से पुनर्निर्माण-सत्य शिक्षा का राष्ट्रीय तीव्र मार्ग प्रणाली को विकसित किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान से युक्त करने की आवश्यकता भारत सहित विश्व को आ गई है इसलिए पुनर्निर्माण आवश्यक है।
07.प्रवेश पंजीकरण की योग्यता (Eligibility)
01. कोई भी व्यक्ति/संस्था उपरोक्त वेबसाइट पर पंजीकरण ¼Registration½ और लाॅगइन ¼Login½ कर सकता है। पंजीकृत प्रत्येक व्यक्ति/संस्था हमारा विद्यार्थी कहलाता है। पंजीकरण के उपरान्त अपना विवरण भरें।
02. एक माह के अन्दर पाठ्यक्रम शुल्क भुगतान कम्पनी या अपने नजदीकी डाक क्षेत्र प्रवेश केन्द्र ¼Postal area Admission Center-PAC½ को करें।
03. पहले पंजीकृत व्यक्ति/संस्था पहले छात्रवृत्ति प्राप्त करने का अधिकारी होगा चाहे वह पाठ्यक्रम शुल्क का भुगतान अन्य के बाद ही क्यों न किया हो।
04. कोई भी व्यक्ति/संस्था एक साथ अनेक पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकता है। प्रत्येक पाठ्यक्रम के लिए अलग-अलग पंजीकरण करना होगा।
05. पाठ्यक्रम प्रारम्भ होने की निर्धारित तिथि के उपरान्त ही कार्यक्रमानुसार पाठ्य सामग्री भेजी जाती है।
08.छात्रवृत्ति (स्कालरशिप), सहायता और रायल्टी देने का हमारा आधार
राष्ट्र निर्माण का हमारा कार्य एक महान और ऐतिहासिक उद्देश्य के लिए व्यक्ति से लेकर विश्व के चहुमुखी विकास के लिए विकसित की गयी है जिसका सपना सत्य रूप में अपने देश भारत से प्रेम करने वाले देखते होेगें। हमारा कार्य नागरिकों को कैसे और किन क्षेत्रों में लाभ देता है इसके लिए निम्नलिखित का क्रमिक अध्ययन आवश्यक है-
01. व्यापार का जन्म विचार से होता है। विचार पहले किसी एक व्यक्ति के अन्दर जन्म लेता है उसके उपरान्त भले ही वह कई व्यक्ति के समूह का बन जाये, अलग बात है। जब समूह का बन जाता है तब वह कम्पनी, कार्पोरेशन, एन.जी.ओ., ट्रस्ट और यदि अधिक शक्तिशाली हो तो राष्ट्र का व्यापार बन समाज के सामने आता है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
- राजनीतिक क्षेत्र में एक ग्राम प्रधान/सभासद, क्षेत्र पंचायत सदस्य, क्षेत्र प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक, सांसद, मंत्री इत्यादि बनने का विचार सर्वप्रथम उस व्यक्ति के मन में आता है। फिर वह बाहर व्यक्त होता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह धन, सम्बन्ध, जन आधार इत्यादि का प्रयोग करता है।
- व्यापारिक क्षेत्र में व्यापार के वस्तु का विचार सर्वप्रथम व्यक्ति के अन्दर आता है फिर वह बाहर प्रोप्राइटरश्पि, पार्टनरशिप, प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी, लिमिटेड कम्पनी इत्यादि के रूप में बाहर आता है और उस व्यापार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह सरकारी प्रक्रिया, कार्यालय, उत्पाद निर्माण, विज्ञापन, प्रचार-प्रसार, कर्मचारी वेतन, योजना, प्रलोभन इत्यादि पर धन खर्च करता है।
- धार्मिक क्षेत्र में भी आजकल स्वयं के विचार के अनुसार स्वयं को लक्ष्य के अनुसार स्थापित करने के लिए व्यक्ति सरकारी प्रक्रिया, कार्यालय, उत्पाद निर्माण, विज्ञापन, प्रचार-प्रसार, कर्मचारी वेतन, योजना, प्रलोभन इत्यादि पर धन खर्च करता है।
उपरोक्त कर्म करने के बाद भी बहुत से व्यक्ति अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त कर पाते फिर भी वे कोशिश जारी रखते हैं। जिस प्रकार भारत सरकार हो या प्रदेश सरकार घाटे में भी चलने के बावजूद अपना व्यापार, सामाजिक-जन कल्याण का कार्य बन्द नहीं करती बल्कि कर्ज लेकर भी उसे चलाते रहती है।
02. राष्ट्र निर्माण के इस व्यापार में भी उपरोक्त के अनुसार इसके आविष्कारक ने आविष्कार की स्थापना और अपने कार्य पर भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ”भारत रत्न“ को प्राप्त (लक्ष्य) करने के लिए सरकारी प्रक्रिया, कार्यालय, उत्पाद निर्माण, विज्ञापन, प्रचार-प्रसार, कर्मचारी वेतन, योजना, प्रलोभन इत्यादि पर धन खर्च कर रहा है। जिसके निम्न स्रोत हैं-
अ.आविष्कारक का स्वयं का धन।
ब.आविष्कारक के शुभचिन्तकों द्वारा प्राप्त आर्थिक सहयोग।
स.आविष्कार के स्थापनार्थ स्थापित प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में शामिल शेयरधारकों द्वारा निवेश किया गया धन।
द.व्यापार के सशक्त प्रणाली के कारण अन्य स्थापित प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी व मल्टीनेशनल कम्पनी से समझौता।
य.व्यापार प्रारम्भ होने से प्राप्त धन व लाभ को व्यापार विकास में निवेश करने की प्रबल इच्छा।
अर्थात् हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने तक अपने व्यापार में शामिल लोगों के साख को सदैव निभाने में पूर्णतया सक्षम हैं।
उदाहरण स्वरूप सभी शिक्षा संस्थान, शिक्षा देने के बदले एक शुल्क लेते हैं। उसमें से शिक्षकों का वेतन, अन्य खर्चों इत्यादि देने के बाद जो बचता है। वह उस शिक्षा संस्थान का लाभ होता है। छात्रवृत्ति, सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। बहुत कम लेकिन ऐसे शिक्षा संस्थान भी हैं जो सभी छात्रों को शिक्षण शुल्क का शत-प्रतिशत छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं। ये छात्रवृत्ति की राशि उन्हें सरकार, औद्यौगिक व व्यापारिक समूहों द्वारा शिक्षा के विकास के लिए प्राप्त होती है जो कहीं न कहीं से जनता के साथ किये गये व्यापार द्वारा ही उन्हें प्राप्त होता है। एक तरफ व्यापार, दूसरी तरफ समाज सेवा और लक्ष्य विकास और करने वाले की प्रसिद्धि यही एक पूर्ण व्यापार का कर्मज्ञान है। यदि यह आप समझ गये तो आपको व्यापार समझ में आ जायेगा।
हमारे ”सत्य मानक शिक्षा“ प्रणाली में हम छात्रवृत्ति, बाद के छात्र से प्राप्त शुल्क में से लाभ को पहले के छात्रों में छात्रवृत्ति के रूप में वितरित करते रहते हैं। स्पष्ट है हम विद्यार्थी से जो शुल्क पाते हैं उसमें हमारा लाभ भी है। हम अपने खर्चो को सम्भालते हुए, शेष राशि को छात्रवृत्ति के रूप में प्रदान करते रहते हैं जिससे इस शिक्षा के प्रति रूचि बढ़े। शिक्षा संस्थान ऐसा नहीं करते लेकिन हम ऐसा कर रहे हैं। भारत में ऐसा कोई कानून नहीं कि उत्पाद का मूल्य सरकार निर्धारित करे। और ऐसी स्थिति में तो और भी मुश्किल है जब उत्पाद का आविष्कार किसी व्यक्ति का स्वयं का हो।
पुनर्निर्माण, राष्ट्र निर्माण का व्यापार है इसे उसी प्रकार किया जा रहा है जिस प्रकार एक कम्पनी का प्रबन्ध और मार्केटिंग की जाती है। आम जनता से जुड़ा हुआ जब कोई व्यापार होता है तब कम्पनी एक निर्धारित धन विज्ञापन व प्रचार-प्रसार में खर्च करती है जो पम्फलेट, पोस्टर, बैनर, पत्रिका, समाचार-पत्र, प्रदर्शन, पुस्तिका इत्यादि के रूप में होती है। इस व्यापार के प्रचार-प्रसार में भी समय-समय पर इनका प्रयोग सदैव होता ही रहेगा। इन सब के साथ एक और विधि प्रयोग की जा रही है जिससे हमें प्रचार-प्रसार का लाभ प्राप्त होता है वह है नगद राशि (छात्रवृत्ति)। यह छात्रवृत्ति इस व्यापार के प्रचार-प्रसार के अन्तर्गत विज्ञापन खर्च का ही हिस्सा है। जिसकी राशि भी समूह व कम्पनी के अन्य परियोजनाओं के प्रचार-प्रसार व मार्केटिंग विकास के कारण व्यापारिक, ऋण, निवेश व अनुदान के रूप में प्राप्त होती है और उसका प्रयोग हम नगद राशि (छात्रवृत्ति) व सामाजिक सहायता के रूप में प्रदान करते रहते हैं।
कोई अपने व्यापार से प्राप्त लाभ को अपने व अपने परिवार के लिए संचित करता है। यदि कोई अपने व्यापार से प्राप्त लाभ को सम्पूर्ण रूप से समाज पर ही खर्च कर दें तो उस पर भारत का कौन सा कानून काम करेगा? व्यापार से अलग साख का लाभ गोपनीय और बेहिसाब होता है। अगर उसे हमें समाज को देना है तो वह मनुष्य को ही दिया जाता है। इसलिए पता तो हो किसे दिया जाय, जिसके लिए पंजीकरण आवश्यक है।
हमारे आय व धन आदान-प्रदान के विभिन्न परियोजनाएँ भी हैं।
09.पाठ्यक्रम शुल्क (Course Fees)
प्रत्येक पाठ्यक्रम का शुल्क अलग-अलग हैं जिसे तीन किस्त प्रथम 25 प्रतिशत, द्वितीय 50 प्रतिशत, अन्तिम 25 प्रतिशत के तीन किस्त में दिया जा सकता है। अलग-अलग पाठ्यक्रमों के शुल्क अलग-अलग होते हैं।
प्रत्येक पाठ्यक्रम पर छात्र द्वारा चुनी गयी सहायता जैसे छात्रवृत्ति सहायता (Scholarship Help)] शिक्षा सहायता (Education Help)] पर्यटन सहायता (Tourism Help)] घरेलू पुस्तकालय सहायता (Home Library Help)] स्वास्थ्य सहायता (Health Help) में से एक दी जाती है।
10.छात्रवृत्ति और रायल्टी ¼Scholarship & Royalty½
01. वेबसाइट पर पंजीकृत सभी व्यक्ति/संस्था छात्रवृत्ति और सहायता के क्रम में आते हैं। छात्रवृत्ति और सहायता प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम शुल्क का भुगतान अनिवार्य है।
02. पंजीकरण के साथ ही आपका पाठ्यक्रम में प्रवेश हो जाता है और आपको अनुक्रमांक व पासवर्ड प्राप्त हो जाता है। साथ ही पाठ्यक्रम के व्यापार से प्राप्त होने वाले लाभ द्वारा छात्रवृत्ति और सहायता के लिए आप स्वतः ही साफ्टवेयर द्वारा स्वचलित छात्रवृत्ति और सहायता वितरण प्रणाली से जुड़ जाते हैं। पंजीकरण के उपरान्त यदि आप पाठ्यक्रम का पूर्ण शुल्क (तीनो किस्त) एक माह के अन्दर अपने डाक क्षेत्र प्रवेश केन्द्र ¼Postal Area Admission Centre-PAC½ पर नहीं जमा करते हैं तो प्रतिदिन विलम्ब शुल्क रू0 25/-, मूल शुल्क में जुड़ने लगता है। बिलम्ब शुल्क के साथ शुल्क जमा करने के लिए हम आपकी प्रतीक्षा करते है जबकि हम आपको इस दौरान छात्रवृत्ति और सहायता देते रहते हैं जिसे आप अपने अनुक्रमांक व पासवर्ड से सदैव देख सकते हैं परन्तु आपके शुल्क जमा न करने के कारण वह आपको भुगतान नहीं हो पाता है।
03. विद्यार्थी पाठ्यक्रम शुल्क जमा करने के तीन माह बाद आवश्यकता पड़ने पर शुल्क वापस ले सकते हैं और फिर जमा भी कर सकते है परन्तु उस समय तक आवश्यक है कि आप कम से कम दो नये विद्यार्थी का प्रवेश करा चुके हों। इस अवधि में आपकी छात्रवृत्ति और सहायता तो बनती है परन्तु वह भुगतान नहीं होता। भुगतान तभी होता है जब पाठ्यक्रम शुल्क और बिलम्ब शुल्क (इस स्थिति में रू0 100/- प्रतिदिन) आप जमा करते हैं।
04. दूसरे पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने से पूर्व में लिए गये पाठ्यक्रम में प्रवेश की छात्रवृत्ति और सहायता बन्द नहीं होती।
05. छात्रवृत्ति और सहायता तभी बन्द होती है जब आप स्वयं डाक क्षेत्र प्रवेश केन्द्र ¼Postal Area Admission Centre-PAC½ पर जाकर अपना पाठ्यक्रम शुल्क वापस लेते हैं और छात्रवृत्ति और सहायता प्रणाली से बाहर होने के लिए कहते हैं और उस समय तक आप कम से कम दो नये विद्यार्थी का प्रवेश करा चुके होते हैं।
06. शत प्रतिशत छात्रवृत्ति और सहायता प्राप्त करने के लिए शिक्षार्थी की वेबसाइट पर 50 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्य है। 50 प्रतिशत से कम उपस्थिति होने पर छात्रवृत्ति की राशि से 10 प्रतिशत की कटौती निर्धारित है। शिक्षार्थी की उपस्थिति विज्ञापनों के बाद आने वाले प्रश्नों के उत्तर देने से हमें ज्ञात होता है। प्रतिदिन एक प्रश्न दोपहर के 12 बजे आपके लिए आते हैं जो अगले दिन दोपहर 12 बजे तक दूसरे प्रश्न के आने तक आपके लाॅगइन एरिया में रहता है। माह में कुल 30 प्रश्न आते हैं जिसमें से 15 प्रश्नों (वर्ष में 180 प्रश्न) के उत्तर देने पर आपकी उपस्थिति 100 प्रतिशत मानी जाती है और आप शत प्रतिशत छात्रवृत्ति और सहायता प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं।
07. कोई भी शिक्षार्थी किसी अन्य शिक्षार्थी का प्रवेश पंजीकरण वेबसाइट पर करा सकता है यह नया शिक्षार्थी जब भी अपना पाठ्यक्रम शुल्क जमा करता है तब प्रवेश कराने वाले पुराने शिक्षार्थी को शुल्क का 10 प्रतिशत का अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है और जब नया शिक्षार्थी छात्रवृत्ति रू0 5,000/- प्राप्त करता है तब प्रवेश कराने वाले पुराने शिक्षार्थी को छात्रवृत्ति रू0 5,000/- का 10 प्रतिशत का अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त होता है। इस प्रकार ”पढ़ने और पढ़ाने“ के इस कार्य में ज्ञान के साथ आर्थिक लाभ का व्यापार भी है।
08. पाठ्यक्रम के बदले में छात्रवृत्ति चुनने व पाठ्यक्रम शुल्क जमा करने पर एक वर्ष में न्यूनतम रू0 5,000/- दी जाती है।
09. वर्ष में एक बार छात्रवृत्ति रू0 5,000/- प्राप्त करने के उपरान्त हमारे व्यापार के लाभांस/रायल्टी को सदैव प्राप्त करने के लिए जीवन में एक बार दो नये विद्यार्थीयों को पाठ्यक्रम के बारे में बताना व उनका प्रवेश कराना अनिवार्य है। जब तक आप दो नये विद्यार्थीयों को पाठ्यक्रम के बारे में बताना व उनका प्रवेश नहीं करा देते तब तक लाभांस/रायल्टी का भुगतान नहीं होता परन्तु लाभांस/रायल्टी बनती रहती है। जब आप हमारे विद्यार्थी रहते हैं तब आपको छात्रवृत्ति या चुनी गई सहायता प्राप्त होती है। जब हमारे लिए आप व्यापार करते हैं तब आप रायल्टी की योग्यता में आते हैं।
10. लाभांस/रायल्टी की राशि रू0 5,000/- के गुणक में ही दी जाती है जिसकी अधिकतम सीमा प्रवेश लेने वाले विद्यार्थीयों की संख्या पर निर्भर करता है।
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