ट्रस्टों की स्पष्ट निति निम्नवत् है।
01. ट्रस्ट भारत सहित विश्व के लिए ”जय-जवान, जय-किसान, जय-विज्ञान“ के बाद उसके पूर्णरुप ”जय-जवान, जय-किसान, जय-विज्ञान, जय-ज्ञान, जय-कर्मज्ञान“ में से ”जय-ज्ञान, जय-कर्मज्ञान“ पर आधारित है।
02. ट्रस्ट ”ईश्वर“ को सर्वशक्तिमान, निराकार, र्निविवाद, अदृश्य स्वीकार करते हुये भी उसके होने और न होने पर कोई बहस नहीं करना चाहता। ट्रस्ट ”ईश्वर“ को निराकार रुप में ”एकीकृत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ का रुप मानता है जिसके सामने सभी का समर्पण हमेशा से होता आया है। समय-समय पर कालानुसार इसी निराकार ”एकीकृत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ को प्रत्यक्ष या प्रेरक, अंश या पूर्ण रुप से स्थापित करने वाले मानव शरीर को ट्रस्ट ”साकार ईश्वर“ या ”अवतार“ मानता है। ट्रस्ट इसी निराकार “एकीकृत सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त“ को ईश्वर का मस्तिष्क मानता है और इसी की उपयोगिता को आवश्यक समझता है न कि ईश्वर को। क्योकि मानव यदि ईश्वर के मस्तिष्क को अपना ले तो वह अपने इष्ट तक असानी से उठ सकता है जो मानव जीवन का लक्ष्य है।
03. ट्रस्ट का मूल प्रकृति के दृश्य, एक, अपरिवर्तनीय, सार्वजनिक प्रमाणित, विवादमुक्त नियम आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। ट्रस्ट का सम्पूर्ण ज्ञान व कार्य इसी मुक्त आदान-प्रदान की शिक्षा पर आधारित है। मनुष्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करने के लिए उत्पन्न है न कि उसके अधीन होने के लिए इसलिए ट्रस्ट की शिक्षा आदान-प्रदान को मनुष्य के अधीन करने की शिक्षा है जिसे सत्य चेतना कहते है और जो सभी मनुष्य की आवश्यकता है जिससे प्रत्येक मनुष्य स्वयं को अपने-अपने इष्ट तक उठा सकें।
04. ट्रस्ट किसी सम्प्रदाय का संस्थापक नहीं है न ही उसके पास किसी विशेष वस्त्र का प्रचलन, किसी विशेष मूर्ति की पूजा, गुरु-शिष्य परम्परा, गुरु दक्षिणा, गुरु मंत्र, जीवन शैली का प्रविधान है न ही उसका संचालन इसका उद्देश्य है। ट्रस्ट ज्ञान-कर्मज्ञान-दृश्य कर्मज्ञान के प्रसार एवं उसे प्रमाणित करने के लिए कर्म करने का संस्था मात्र है जिससे मानव, मानव से जुड़कर स्वयं अपने सहित जहाँ भी वह रहे, वहाँ स्वतः स्फूर्त सत्य-चेतना से संतुलित कार्य कर सके जो ब्रह्माण्डीय विकास की दिशा में हो।
05. कर्म, अदृश्य ज्ञान का दृश्य रुप है। अर्थात् दृश्य क्रिया या व्यापार या आदान-प्रदान या परिवर्तन या अनेक या चक्र या TRADE या प्राकृतिक सत्य का अदृश्य रुप आत्मा या CENTRE या केन्द्र या सत्य या धर्म या ईश्वर या ब्रह्म है। पिछले चारो वेदों के ज्ञान काण्ड अर्थात् उपनिषद् ज्ञान अपने चरम विकास को प्राप्त कर चुका है जिसे वेदान्त कहते हैं। अब ज्ञान के दृश्य रुप अर्थात् कर्म-ज्ञान का क्रम विकास चल रहा है। जिसे प्रथमतया भगवान कृष्ण ने फल की इच्छा से मुक्त होकर कर्म करने की शिक्षा देकर की। और अब उसका पूर्णरुप फल को जानकर कर्म करने की शिक्षा है। जो अदृश्य पूर्णज्ञान का दृश्य पूर्ण कर्म के रुप में परिवर्तन है। जो देश-काल मुक्त ज्ञान ब्रह्माण्डीय सीमा तक सत्य है वहीं वेद है और जो देश-काल मुक्त कर्मज्ञान ब्रह्माण्डीय सीमा तक प्रभावी है वहीं कर्मवेद है।
06. ट्रस्ट अपने साहित्य एवं विचार को व्यक्त करने के लिए प्रयोग में लाये गये शब्द या नाम जिन्हें वर्तमान समाज में व्यक्ति किसी सम्प्रदाय विशेष का समझते हैं, किसी भी परिस्थितियों में उन शब्दों का प्रयोग कर किसी भी मानव आविष्कृत सम्प्रदाय को सर्वोच्च प्राथमिकता देना ट्रस्ट की नीति नहीं है। उन शब्दों या नामों का प्रयोग ट्रस्ट मात्र अपने विचार को व्यक्त करने के लिए करता है। यदि कोई यह सोचे कि ट्रस्ट किसी विशेष सम्प्रदाय का समर्थक है तो वह उसका स्वयं का विचार होगा जो उसके मन द्वारा ही भ्रमवश या अल्पज्ञता के कारण उत्पन्न हुआ होगा। ट्रस्ट केवल प्रकृति आविष्कृत सम्प्रदाय मानव एवं प्रकृति सम्प्रदाय का समर्थक है।
07. जिस प्रकार उन शब्दों का प्रयोग जिन्हें वर्तमान समय में साम्प्रदायिक समझा जाता हैं, स्वयं को व्यक्त करने के लिए उनका प्रयोग हमारी मजबूरी है। उसी प्रकार यह भी हमारी मजबूरी है कि हम ऐसे विषय को किसी ऐसे विषय से नहीं जोड़ सकते जो अव्यक्त हो, अदृश्य हो और जो अन्धभक्ति उत्पन्न करे और जिसे हम सार्वजनिक प्रमाणित न कर सकें। क्योकिं किसी भी व्यक्ति का व्यक्त रुप उसके ज्ञान व कर्मज्ञान के व्यक्त करने के उपरान्त ही स्थापित होता है। ट्रस्ट का सम्पूर्ण क्रियाकलाप एक ही भौतिक शरीर जिसका नाम ”लव कुश सिंह “ हैं, के द्वारा व्यक्त हो रहा है और इस नाम का प्रयोग भी हमारी मजबूरी है।
08. व्यक्ति से व्यक्ति के बीच सम्बन्ध में एक न्यूनतम एवं अधिकतम् साझा कार्यक्रम है, पुनः एक संगठन का उस संगठन से जुड़े सभी व्यकितयों का एक न्यूनतम् एवं अधिकतम साझा कार्यक्रम है। इसी प्रकार संगठन से संगठन एवं देश से देश के बीच एक न्यूनतम एवं अधिकतम साझा कार्यक्रम होगा। यह यदि मानव के लिए होगा तो मानव व्यवस्था का तथा मानव सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कार्यक्रम होगा तो वह क्रियाकलापों का विश्व मानक कहा जायेगा और उस ज्ञान से युक्त मन, मन का विश्व मानक कहा जायेगा और इस मन से युक्त मानव, विश्वमानव। यहीं आई0 एस0 ओ0/डव्ल्यू0 एस0 ओ0 शून्य श्रृंखला अर्थात् मन का अन्तर्राष्ट्रीय/विश्व मानक है। यहीं एकता या धर्मनिरपेक्ष या सर्वधर्मसमभाव रुप में आई0 एस0 ओ0/डव्ल्यू0 एस0 ओ0 शून्य श्रृंखला की उत्पत्ति की दिशा है।
09. ट्रस्ट व्यक्ति के जीवन शैली पर नहीं बल्कि व्यक्ति द्वारा आविष्कृत / उत्पादित, उत्पाद पर ध्यान देता है। यह उसी प्रकार है जिस प्रकार एक वैज्ञानिक द्वारा आविष्कृत उत्पाद का लाभ सभी प्राप्त करते है जवकि वैज्ञानिक के जीवन शैली को कोई नहीं अपनाता। कहने का तात्पर्य यह है कि कर्मवेद या मन का विश्व मानक के आविष्कार का लाभ समाज व राष्ट्र उठाये, न कि आविष्कारक के जीवन शैली को जानने की कोशिश करें क्योकि कोई भी आविष्कारक, आविष्कार एवं उसकी स्थापना के लिए स्वयं को अनेक विचित्र परिस्थितियो से गुजारता है। और आविष्कार पूर्ण हो जाने पर प्रयोग के परिस्थितियो से गुजरने की आवश्यकता नहीं रह जाती।
पाँच ट्रस्ट निम्नलिखित हैं-
1. साधु एवं सन्यासी के लिए-सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
2. राजनीतिक उत्थान व विश्वबन्धुत्व के लिए-प्राकृतिक सत्य मिशन (ट्रस्ट)
3. श्री लव कुश सिंह के रचनात्मक कायों के संरक्षण के लिए-विश्वमानव फाउण्डेशन (ट्रस्ट)
4. व्यावहारिक ज्ञान पर शोध के लिए-सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (ट्रस्ट)
5. ब्राह्मणों के लिए-सत्यकाशी (ट्रस्ट)
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