कैलेण्डर
कैलेण्डर शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के calendarium शब्द से हुआ है जिसका अर्थ किताब में लिखना हाता है। ये पुराने जमाने में प्रत्येक माह के पहले दिन (kalendae) की सूची बनाने में इस्तेमाल होता था।
कालदर्शक एक प्रणाली है जो समय को व्यवस्थित करने के लिये प्रयोग की जाती है। कालदर्शक का प्रयोग सामाजिक, धार्मिक, वाणिज्यिक, प्रशासनिक या अन्य कार्यों के लिये किया जा सकता है। यह कार्य दिन, सप्ताह, मास, या वर्ष आदि समयावधियों को कुछ नाम देकर की जाती है। प्रत्येक दिन को जो नाम दिया जाता है वह ”तिथि“ कहलाती है। प्रायः मास और वर्ष जो किसी खगोलीय घटना से सम्बन्धित होते हैं ;जैसे चन्द्रमा या सूर्य का चक्र सेद्ध किन्तु यह सभी कैलेण्डरों के लिये जरूरी नहीं है। अनेक सभ्यताओं और समाजों ने अपने प्रयोग के लिये कोई न कोई कालदर्शक निर्मित किये थे जो प्रायः किसी दूसरे कालदर्शक से व्युत्पन्न थे। कालदर्शक एक भौतिक वस्तु ;प्रायः कागज से निर्मितद्ध भी है। कालदर्शक शब्द बहुधा इसी अर्थ में प्रयुक्त होता है।
आजकल अधिकतर देश ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना चुके हैं। किन्तु अब भी कई देश ऐसे हैं जो प्राचीन कैलेंडरों का उपयोग करते हैं। इतिहास में कई देशों नें कैलेंडर बदले। आइए उनके विषय में एक नजर देखें-
समय घटना
3761 ई.पू. यहूदी कैलेंडर का आरंभ
2637 ई.पू. मूल चीनी कैलेंडर आरंभ हुआ
45 ई.पू. रोमन साम्राज्य के द्वारा जूलियन कैलेंडर अपनाया गया
0 ई. ईसाई कैलेंडर का आरंभ
79 ई. हिन्दू कैलेंडर आरंभ हुआ
597 ई. ब्रिटेन में जूलियन कैलेंडर को अपनाया गया
622 ई. इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत
1582 ई. कैथोलिक देश ग्रेगोरियन कैलेंडर से परिचित हुए
1752 ई. ब्रिटेन और उसके अमेरिका समेत सभी उपनिवेशो में ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया
1873 ई. जापान नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
1949 ई. चीन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया
कभी हमने ध्यान दिया कि चार साल में फरवरी 28 कि क्यों होती है और इसे लीप ईयर क्यों कहा जाता है साथ ही यह कभी अपने अन्य 11 भाइयों की तरह 30 या 31 कि उम्र नहीं देख पाती तो जरा कैलेण्डर के इतिहास पर गौर करें-
आज के युग में भी कैलेण्डर अमीर से अमीर व्यक्ति भी अपने पास रखना चाहता है जबकि मोबाइल फोन में भी कैलेण्डर है ...कैलेण्डर बना रहेगा। हो सकता है भविष्य में उसके स्वरुप में परिवर्तन आये। दरअसल वर्तमान कैलेण्डर कई पुराने प्रकार के कैलेंडरों का मिश्रण है जिसमे मिश्र, रोमन और जूलियन कैलेण्डर भी अलग अलग विशेषताएं हैं।
मिश्र वासियों ने 12 महीने का कैलेण्डर बनाया था जिसमे 30 दिन थे। बाद में सूर्य को पूजने वाले मिश्र वासियों ने इसमें 5 दिन और जोड़ दिए ताकि सौर वर्ष के मुताबिक पूरे दिन इसमें शामिल किये जा सकें। मिश्र सहित कुछ देशों में 24 फरवरी का दिन कैलेण्डर के लिए समर्पित है।
रोमन कैलेण्डर में भी 12 महीने का साल था लेकिन इसकी शुरुआत मार्च से होती थी। बाद में रोमनों ने जनवरी को पहला महीना बनाया ऐसा उन्होंने घडी को सही बैठाने के लिहाज से किया। इन्हीं लोगों ने फरवरी को छोटा करके लीप वर्ष की अवधारणा को जन्म दिया। शायद लीप वर्ष को सौर और चन्द्र कैलेण्डर के हिसाब से दिन निर्धारित करने के लिए ऐसा किया होगा।
जुलियस सीजर ने एक प्रख्यात खगोलविद से बेहतर कैलेण्डर सुझाने को कहा और उसने इसे 30 और 31 दिन के बीच बाँट दिया और उन्होंने ही दिनों की गणना करते हुए फरवरी को 28 दिन का बताया और इस तरह आया अलग अलग कैलेंडरों से मिलकर आधुनिक कैलेण्डर ...गौरतलब है चीनी कैलेण्डर बिलकुल अलग होता है उनका नववर्ष अलग होता है और गणनाएं अलग होती हैं मजे की बात है कि हमारे यहाँ भी कैलेण्डर अलग-अलग होते हैं क्योंकि ज्योतिषीय गणनाएं सूर्य आधारित या फिर चन्द्र आधारित होती हैं।
मुहम्मद पैगंबर ईस्वी सन 622 तारीख 15 के दिन मक्के मदीना आ गए थे-उस दिन से हिजरी सन की शुरुआत हुई। इसकी शुरुआत मौहर्रम मास की पहली तारीख से होता है। इनका वर्ष चांद मास का माना जाता है। अमावस्या के बाद जिस दिन पहला चन्द्र दर्शन होता है उस दिन को ही मास का पहला दिन माना जाता है। कारण चन्द्रदर्शन रात को ही होता है। अतः वार का प्रारम्भ भी रात को ही होता है। इनका वर्ष 354 का होता है। यह हिजरी सन चन्द्र वर्ष होने के कारण हरेक तीसरे वर्ष इनका मौहर्रम हमारे मास से पहले का होता है। इस तरह से 32 व 33 वर्ष पर इनके हिजरी सन का एक अंक बढ़ जाता है।
पारसी सन् जिसको ऐजदी जर्द सन पारसी भाषा में कहते हैं-का प्रारम्भ ईस्वी सन 630 में शुरू हुआ था। इनके मास 30 सावन दिन के होते हैं। अतः इनका सन सौर वर्ष से सम्बन्ध रखने के लिए प्रति वर्ष के अंत में 5 दिन अधिक मानते हैं।
मलमास, अधिक मास संवत में सूर्य और चन्द्र के वर्षों के भेद से होता है सूर्य का वर्ष 365 दिनों से कुछ अधिक और चन्द्र वर्ष 354 दिन का होता है। इस कारण दोनों प्रकार के संवत वर्ष वर्ष में अंतर को सही रखने के लिए मलमास का प्रयोग विधान है अन्यथा कभी तो भाद्र का महीना पड़े, वर्षा ऋतु में तो कभी प्रचंड गर्मी में और कभी घोर जाड़े में। ऐसा न हो इसलिए दोनों प्रकार के वर्षों में 11 दिन के अंतर को पाटने के लिए मलमास या अधिक मास जिसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है की योजना कर दी गई है। अस्तु, जब दो संक्रांति के बीच में एक चन्द्र मास पड़ जाता है तो उसे अधिकमास कहते है। इस कारण उनके ताजिये और रोजे-चंद्रमास के हिसाब से कभी जाड़े में होते हैं तो कभी गर्मियों में।
ज्योतिष की समस्त गणनाएं सूर्य एवं चन्द्रमा के आधार पर ही सम्भव है और संसार के सभी लोगों ने इनकी महत्ता दी है। चाहे कोई भी धर्म हो कोई भी भाषा हो या देश हो या विदेश। सभी जगह मान्यता सूर्यदेव और चन्द्रमा की अवश्य है।
चीनी कैलेंडर
भारत की ही तरह चीन नें भी ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया है फिर भी वहां छुट्टियां, त्योहार और नववर्ष इत्यादि चीनी कैलेंडर के अनुसार ही मनाए जाते हैं।
माया कैलेंडर
जहां पर आज मैक्सिको का यूकाटन नामक स्थान है वहां किसी जमाने में माया सभ्यता के लोग रहा करते थे। माया सभ्यता के लोग ज्ञान विज्ञान गणित आदि के क्षेत्र में काफी अग्रणी थे। स्पेनी आक्रांताओं के आने के बाद उनकी सभ्यता और संस्कृति का धीरे धीरे क्षरण होने लगा। माया कैलेंडर में 20-20 दिनों के 18 महीने होते थे और 365 दिन पूरा करने के लिए 5 दिन अतिरिक्त जोड़ दिए जाते थे। इन 5 दिनों को अशुभ माना जाता था। माया कैलेंडर के महीने-
Pop (पॉप), Uo (उओ), Zip (जिप), Zot (जॉ्ट्ज), Tzec (टीजेक), Xul(जुल), Yaxkin (याक्सकिन), Mol (मोल), Chen (चेन), Yax (याक्स), Zac (जैक), Ceh (सेह), Mac (मैक), Kankin (कान किन), Muan (मुआन), Pax (पैक्स), Kayab (कयाब), Cumbu (कुम्बू)।
ग्रेगोरियन कैलेंडर
ग्रेगोरियन कैलेंडर अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्टैण्डर्ड माना जाने वाला और पुरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाला कलेंडर है। इसका आधार वर्ष ईसा मसीह के जन्म को माना जाता है। इसके पहले के वर्ष को BC (Before Christ) या ईसा पूर्व (ई0पू0) और बाद के वर्ष को AD (Anno Domini) या ईसवी (ई0) कहा जाता है। कुछ लोग ई0 के "CE"
(Common Era) और ई0पू0 को "BCE"
(Before Common Era) भी कहते हैं।
वर्तमान समय में सबसे अधिक उपयोग में आने वाला कैलेंडर ग्रेगोरियन है। इस कैलेंडर की शुरुआत पोप ग्रेगोरी तेरहवें नें सन 1582 में की थी। इस कैलेंडर में प्रत्येक 4 वर्षों के बाद एक लीप वर्ष होता है जिसमें फरवरी माह 29 दिन का हो जाता है। आरंभ में कुछ गैर कैथोलिक देश जैसे ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने से इंकार कर दिया था। ब्रिटेन में पहले जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था जो कि सौर वर्ष के आधार पर चलता था। इस कैलेंडर के मुताबिक एक वर्ष 365.25 दिनों का होता था (जबकि असल में यह 365.24219 दिनों का होता है) अतः यह कैलेंडर मौसमों के साथ कदम नहीं मिला पाया। इस समस्या को हल करने के लिए सन 1752 में ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि 3 सितम्बर 14 सितम्बर में बदल गया। इसीलिए कहा जाता है कि ब्रिटेन के इतिहास में 3 सितंबर 1752 से 13 सितंबर 1752 तक कुछ भी घटित नहीं हुआ। इससे कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि इससे उनका जीवनकाल 11 दिन कम हो गया और वे अपने जीवन के 11 दिन वापिस देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।
हिब्रू और इस्लामी कैलेंडर
हिब्रू और इस्लामी कैलेंडर दोनों ही चंद्रमा की गति पर आधारित हैं। नये चंद्रमा के दिन अथवा उसके दिखाई देने के दिन से नववर्ष आरंभ होता है। लेकिन मौसम की वजह से कभी-कभी चंद्रमा दिखाई नहीं देता अतः छपे कैलेंडरों में नव वर्ष की शुरूआत के दिनों में थोड़ा अंतर हो सकता है।
क्र० हिब्रू महीने दिन इस्लामी महीने
01 तिशरी 30 मुहर्रम
02 हेशवान 29 सफर
03 किस्लेव 30 रबिया-1
04 तेवेत 29 रबिया-2
05 शेवत 30 जुमादा-2
06 अदर 29 जुमादा-2
07 निसान 30 रजाब
08 अइयर 29 शबान
09 सिवान 30 रमादान
10 तम्मूज 29 शव्वल
11 अव 30 धु-अल-कायदा
12 एलुल 29 धु-अल-हिज्जाह
भारतीय कालदर्शक (कैलेण्डर)
प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान है। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियाँ, अभी भी प्रयोग में हैं। इसके साथ-साथ ही हिन्दू ग्रन्थों में लम्बाई, भार, क्षेत्रफल मापन की भी इकाईयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू समय मापन ;काल व्यवहारद्ध में नाक्षत्रीय मापन, वैदिक समय इकाईयाँ, चाँद्र मापन, ऊँष्ण कटिवन्धीय मापन, पितरों की समय गणना, देवताओं की काल गणना, पाल्या इत्यादि हैं।
हिन्दू पुराण के अनुसार ब्रह्माण्ड का सृजन क्रमिक रूप से सृष्टि के ईश्वर ब्रह्मा द्वारा होता है जिनकी जीवन 100 ब्राह्म वर्ष होता है। ब्रह्मा के 1 दिन को 1 कल्प कहते हैं। 1 कल्प, 14 मनु ;पीढ़ीद्ध के बराबर होता है। 1 मनु का जीवन मनवन्तर कहलाता है और 1 मनवन्तर में 71 चतुर्युग ;अर्थात् 71 बार चार युगों का आना-जानाद्ध के बराबर होता है। ब्रह्मा का एक कल्प ;अर्थात् 14 मनु अर्थात् 71 चतुर्युगद्ध समाप्त होने के बाद ब्रह्माण्ड का एक क्रमद्ध समाप्त हो जाता है और ब्रह्मा की रात आती है। फिर सुबह होती है और फिर एक नया कल्प शुरू होता है। इस प्रकार ब्रह्मा 100 वर्ष व्यतीत कर स्वयं विलिन हो जाते हैं। और पुनः ब्रह्मा की उत्पत्ति होकर उपरोक्त क्रम का प्रारम्भ होता है। गिनीज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है।
काल मनवन्तर के मनु के नाम अवतार
भूतकाल 1. स्वायंभुव मनु यज्ञ
भूतकाल 2. स्वारचिष मनु विभु
भूतकाल 3. उत्तम मनु सत्यसेना
भूतकाल 4. तामस मनु हरि
भूतकाल 5. रैवत मनु वैकुण्ठ
भूतकाल 6. चाक्षुष मनु अजित
वर्तमान 7. वैवस्वत वामन
भविष्य 8. सावर्णि मनु सार्वभौम
भविष्य 9. दत्त सावर्णि मनु रिषभ
भविष्य 10. ब्रह्म सावर्णि मनु विश्वकसेन
भविष्य 11. धर्म सावर्णि मनु धर्मसेतू
भविष्य 12, रूद्र सावर्णि मनु सुदामा
भविष्य 13. दैव सावर्णि मनु योगेश्वर
भविष्य 14. इन्द्र सावर्णि मनु वृहद्भानु
हम वर्तमान में ब्रह्मा के 58वें वर्ष में 7वें मनु-वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, 28वें चतुर्युग का अन्तिम युग-कलियुग के ब्रह्मा के प्रथम वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम सम्वत् 2069 ;सन् 2012 ई0द्ध में हैं। वर्तमान कलियुग ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार दिनांक 17-18 फरवरी को 3102 ई.पू. में प्रारम्भ हुआ था। इस प्रकार अब तक 15 नील, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 61 हजार, 624 वर्ष इस ब्रह्मा के सृजित हुए हो गये हैं
भारतीय कैलेंडर सूर्य एवं चंद्रमा की गति के आधार पर चलता है और यह शक संवत से आरंभ होता है जो कि सन् ७९ के बराबर है। इसका प्रयोग धार्मिक तथा अन्य त्योहारों की तिथि निर्धारित करने के लिए किया जाता है। किन्तु आधिकारिक रूप से ग्रेगोरियन कैलेंडर का प्रयोग होता है।
महीनों के नाम-
हर महीना शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। जिस नक्षत्र में पूर्णिमा पड़ती है उन्हीं के नाम पर महीनों के नाम हैं। वर्षारम्भ होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से। नक्षत्रों व संबंधित महीनों के नाम इस प्रकार हैं-
क्र० भारतीय नक्षत्र भारतीय माह दिन ग्रेगोरियन माह अनुमानित ग्रेगोरियन दिनांक
01 चित्रा चैत्र 30 मार्च-अप्रैल 22 मार्च
02 विशाखा वैसाख 31 अप्रैल-मई 21 अप्रैल
03 ज्येष्ठ ज्येष्ठ 31 मई-जून 22 मई
04 पूर्व आषाढ़ आषाढ़ 31 जून-जुलाई 22 जून
05 श्रवण श्रवण 31 जुलाई-अगस्त 23 जुलाई
06 पूर्व भाद्रपद भाद्रपद 31 अगस्त-सित्मबर 23 अगस्त
07 अश्विनी अश्विन 30 सितम्बर-अक्टुबर 23 सितम्बर
08 कृतिका कार्तिक 30 अक्टुबर-नबम्बर 23 अक्टूबर
09 मृगशिरा मार्गशीर्ष(अग्रहायण) 30 नवम्बर-दिसम्बर 22 नवम्बर
10 पुष्य पौष (पूस) 30 दिसम्बर-जनवरी 22 दिसम्बर
11 मघा माघ 30 जनवरी-फरवरी 21 जनवरी
12 पूर्वा फाल्गुनी फाल्गुन 30 फरवरी-मार्च 20 फरवरी
भारतीय कालदर्शक ;कैलेण्डरद्ध सौर और चन्द्र गणनाओं के समन्वय पर अधारित है। 1 संवत ;सालद्ध 12 महीनों में बँटा हुआ है। सौर और चन्द्र गणनाओं में समन्वय रखने के लिए 19 वर्षों में 7 महीने बढाए जाते हैं। इस तरह हर तीन साल बाद 1 अधिक मास होता है। लीप वर्ष में चैत्र 31 दिन का होता है और वह २१ मार्च को आरंभ होता है।
तिथियों के नाम
हर माह के दो पक्ष हैं-शुक्ल व कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष-अमवस्या की स्माप्ति से पूर्णिमा तक। कृष्ण पक्ष-पूर्णिमा के अंत से अमावस्या तक। हर पक्ष में 15 दिन होते हैं-1. प्रतिपदा, 2. द्वितीया, 3. तृतीया, 4. चतुर्थी, 5. पंचमी, 6. षष्टी, 7. सप्तमी, 8. अष्टमीए 9. नवमी, 10. दशमी, 11. एकादशी, 12. द्वादशी, 13. त्रयोदशी, 14. चतुर्दशी, 15. पूर्णिमा, 30. अमावस्या
ऋतुओं के नाम
कुल 6 ऋतु हैं व इन्हीं 12 महीनों में समाईं हैं। हिन्दू धर्म में सभी त्योहार ऋतुओं के अनुरूप हैं।
1. वसंत दृ ैचतपदह दृ वसंतोत्सव ;होलीद्ध, शिवरात्रि, नवरात्रि
2. ग्रीष्म दृ ैनउउमत
3. वर्षा दृ त्ंपद
4. शरद दृ।नजनउद दृ शिवरात्रि, नवरात्रि, विजय-दशमी, दीपावली
5. हेमंत दृ ॅपदजमत
6. शिशिर दृ ब्ववस दृ लोहडी
नक्षत्रों के नाम
1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृगशिरा 6. आद्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वा फाल्गुनी 12. उत्तरा फाल्गुनी 13. हस्ति 14. चित्रा 15. स्वाति 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ़ 21. उत्तराषाढ़ 22. श्रवण 23. घनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वभाद्रपद 26. उत्तर भाद्रपद 27. रेवती
दुनिया का सबसे पुराना कैलेण्डर
ब्रिटिश पुरातत्वविदों का दावा है कि उन्होंने एडर्बीनशायर के इलाके में चंद्रमा की गति पर आधारित दुनिया का सबसे पुराना कैलेण्डर खोज निकाला है। कार्थेसके किले में एक खेत की खुदाई के दौरान 12 गड्ढों की एक श्रृंखला मिली है, जो चंद्रमा की अवस्थाओं और चंद्र महीने की तरफ संकेत करती है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली एक टीम के मुताबिक इस प्राचीन स्मारक को करीब 10 हजार साल पहले शिकारियों ने बनवाया था। वॉरेन फील्ड के इन गड्ढों की खुदाई पहली बार सन् 2004 में हुई थी। इन गड्ढों का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि हो सकता है कि उनमें कभी लकड़ी के खम्भे रहे हों।
मध्य पाषाण युग का यह कैलेण्डर अब तक के ज्ञात सबसे पुराने कैलेण्डर मेसोपोटामिया के कैलेण्डर से भी हजारों साल पुराना है। यह विश्लेषण इण्टरनेट आर्कियोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय में लैंडस्केप आर्कियोलॉजी के प्रोफेसर विन्स गैफेनी ने इस विश्लेषण-परियोजना का नेतृत्व किया। वह कहते हैं, इन प्रमाणों से पता चलता है कि स्कॉटलैण्ड के शिकारियों के पास साल भर के समय-चक्र पर नजर रखने की क्षमता थी।
यह कैलेण्डर पूरब में मिले पहले औपचारिक कैलेण्डर के पाँच हजार साल पहले अस्तित्व में आ गया था। इस अध्ययन में सेण्ड एण्ड्रयूज, लीस्टर और ब्रैडफोर्ड विश्वविद्यालय भी शामिल थे। सेण्ड एण्ड्रयूज विश्वविद्यालय के डॉक्टर रिचर्ड बेट्स कहते हैं-यह खोज शुरुआती मध्य पाषाण युग के स्कॉटलैण्ड के बारे में नए रोमांचक सबूत उपलब्ध कराती है। वे कहते हैं, इस तरह की संरचना का यह सबसे पहला उदाहरण है। वॉरेन फील्ड में इस स्मारक के बनाए जाने के हजारों साल बाद भी ब्रिटेन और यूरोप में इस तरह का कोई और स्मारक नहीं बन पाया। वॉरेन फील्ड को पहली बार स्कॉटलैण्ड के प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों के रॉयल कमीशन (आर.सी.ए.एच.एम.एस) ने हवाई सर्वेक्षण के दौरान खोजा था। आर.सी.ए.एच.एम.एस की हवाई सर्वेक्षण परियोजना के प्रबन्धक डेव काउली कहते हैं, हम पिछले करीब 40 साल से स्कॉटिस भूमि की तस्वीरें ले रहे हैं, हजारों पुरातत्विक जगहों की रिकॉर्डिंग की है, जिन्हें जमीन से कभी नहीं खोजा जा सकता था। वे कहते हैं-वॉरेन फील्ड का एक खास महत्व है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि हमारे हवाई सर्वेक्षण ने उन जगहों को खोजने में मदद की है, जहाँ पहली बार समय की परिकल्पना की गई थी। कार्थेस किले की देखभाल नेशनल ट्रस्ट फॉर स्कॉटलैण्ड (एन.एस.टी) करता है। इस जगह की खुदाई 2004 से 2006 के बीच एन.एस.टी के कर्मचारियों और मरे पुरातत्व सेवा ने मिलकर की थी। एन.टी.एस के पुरातत्वविद् डॉक्टर शैनन जर कहते हैं, यह एक उल्लेखनीय स्मारक है, जो ब्रिटेन में अद्वितीय है। वे कहते हैं, हमारे खुदाई करने से करीब दस हजार साल पहले के लोगों के सांस्कृतिक जीवन की आकर्षक झलक मिलती है। यह नवीनतन खोज समय और आकाश के साथ सम्बन्ध के बारे में हमारी समझ को और आगे बढ़ाएगी।
हमारे द्वारा प्रारम्भ किया गया कैलेण्डर
जिस प्रकार अनेक धर्म संस्थापकों के जन्मदिन से नया कैलेण्डर समाज में स्थापित है उसी प्रकार काल, मनवन्तर, युग, शास्त्र और अनिर्वचनीय कल्कि महाअवतार भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ के अवतरण से विश्वधर्म के प्रवर्तक की योग्यता के अधिकार से उनके जन्मदिन 16 अक्टुबर 1967 से नये कैलेण्डर की शुरूआत हो गई है।
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