हमारा व्यवसाय
डब्ल्यू.एस. (WS)-000
ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
के अनुसार
राष्ट्र निर्माण का हमारा व्यवसाय-एक मानक व्यवसाय
व्यवसाय को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-”व्यवसाय एक ऐसी क्रिया है, जिसमें लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तुओं अथवा सेवाओं का नियमित उत्पादन क्रय-विक्रय तथा विनिमय सम्मिलित है“ जिसके आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व होते हैं।
लोग लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से व्यवसाय चलाते हैं। लेकिन केवल लाभ अर्जित करना ही व्यवसाय का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता। समाज का एक अंग होने के नाते इसे बहुत से सामाजिक कार्य भी करने होते हैं। यह विशेष रूप से अपने अस्तित्व की सुरक्षा में संलग्न स्वामियों, निवेशकों, कर्मचारियों तथा सामान्य रूप से समाज व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र व समुदाय की देखरेख की जिम्मेदारी भी निभाता है। अतः प्रत्येक व्यवसाय को किसी न किसी रूप में इनके प्रति जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए। उदाहरण के लिए, निवेशकों को उचित प्रतिफल की दर का आश्वासन देना, अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन, सुरक्षा, उचित कार्य दशाएँ उपलब्ध कराना, अपने ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुएँ उचित मूल्यों पर उलब्ध कराना, पर्यावरण की सुरक्षा करना तथा इसी प्रकार के अन्य बहुत से कार्य करने चाहिए।
हालांकि ऐसे कार्य करते समय व्यवसाय के सामाजिक उत्तारदायित्वों के निर्वाह के लिए दो बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। पहली तो यह कि ऐसी प्रत्येक क्रिया धर्मार्थ क्रिया नहीं होती। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई व्यवसाय किसी अस्पताल अथवा मंदिर या किसी स्कूल अथवा कालेज को कुछ धनराशि दान में देता है तो यह उसका सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं कहलाएगा, क्योंकि दान देने से सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं होता। दूसरी बात यह है कि, इस तरह की क्रियाएँ कुछ लोगों के लिए अच्छी और कुछ लोगों के लिए बुरी नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए एक व्यापारी तस्करी करके या अपने ग्राहकों को धोखा देकर बहुत सा धन अर्जित कर लेता है और गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल चलाता है तो उसका यह कार्य सामाजिक रूप से न्यायोचित नहीं है। सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ है कि एक व्यवसायी सामाजिक क्रियाओं को सम्पन्न करते समय ऐसा कुछ भी न करे, जो समाज के लिए हानिकारक हो।
इस प्रकार सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा व्यवसायी को जमाखोरी व कालाबाजारी, कर चोरी, मिलावट, ग्राहकों को धोखा देना जैसी अनुचित व्यापरिक क्रियाओं के बदले व्यवसायी को विवेकपूर्ण प्रबंधन के द्वारा लाभ अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह कर्मचारियों को उचित कार्य तथा आवासीय सुविधाएँ प्रदान करके, ग्राहकों को उत्पाद विक्रय उपरांत उचित सेवाएँ प्रदान करके, पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करके तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा द्वारा संभव है।
एक समाज, व्यक्तियों, समूहों, संगठनों, परिवारों आदि से मिलकर बनता है। ये सभी समाज के सदस्य होते हैं। ये सभी एक दूसरे के साथ मिलते-जुलते हैं तथा अपनी लगभग सभी गतिविधियों के लिए एक दूसरे पर निर्भर होते हैं। इन सभी के बीच एक संबंध होता है, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष। समाज का एक अंग होने के नाते, समाज के सदस्यों के बीच संबंध बनाए रखने में व्यवसाय को भी मदद करनी चाहिए। इसके लिए उसे समाज के प्रति कुछ निश्चित उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना आवश्यक है। ये उत्तरदायित्व हैं-समाज के पिछड़े तथा कमजोर वर्गों की सहायता करना, सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना, रोजगार के अवसर जुटाना, पर्यावरण की सुरक्षा करना, प्राकृतिक संसाधनों तथा वन्य जीवन का संरक्षण करना, खेलों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान प्रोद्यौगिकी आदि के क्षेत्रों में सहायक तथा विकासात्मक शोधों को बढ़ावा देने में सहायता करना।
उपरोक्त क्रम में हमारा व्यवसाय व्यक्ति से लेकर, देश व विश्वराष्ट्र तक के उत्तरदायित्व को पूर्ण करते हुये एक मानक व्यवसाय के रूप में संचालित है। जिसका पूर्ण विवरण आगे के पृष्ठो में है।
हमारा व्यवसाय
डब्ल्यू.एस. (WS)-000
ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक
के अनुसार
एक पूर्ण व्यापारिक संगठन के लिए आवश्यक है कि वह डब्ल्यू.एस. (WS)-000 ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक के अनुसार हो। अर्थात् उस संगठन की संरचना और कार्य निम्न सभी चक्र को अवश्य ही संचालित करती हो-
सूत्र-1. ज्ञानातीत चक्र: चक्र-0-धर्म ज्ञान से बिना युक्त के मुक्त अर्थात् अपना मालिक अन्य और धर्म ज्ञान से युक्त होकर मुक्त अर्थात् अपना मालिक स्वंय की स्थिति। ज्ञानावस्था से होकर यही चक्र 7 भी कहलाता है। यह स्थिति शिशु और ज्ञानी की होती है।
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या- एक पूर्ण व्यापारिक संगठन का मालिक या तो कोई और ;ईश्वरद्ध होता है या उस संगठन में शामिल एक या अनेक ईश्वर ;व्यक्तिद्ध होते हैं। जिस प्रकार ईश्वर किसी जीव-निर्जीव, स्त्री-पुरूष, जाति-सम्प्रदाय इत्यादि से बिना भेद-भाव के सभी के लिए कार्य करता है उसी प्रकार एक पूर्ण व्यापारिक संगठन को भी उसी प्रकार कार्य करना चाहिए। जिस प्रकार ईश्वर दिन-रात, वर्षा-सूखा, गर्मी-सर्दी, तूफान-शान्ति इत्यादि बिना किसी भेद-भाव अर्थात् एकात्म के द्वारा करता है उसी प्रकार एक पूर्ण व्यापारिक संगठन को भी उसी प्रकार कार्य करना चाहिए। एक शिशु मानव और ज्ञानी मानव दोनों ही समभाव अर्थात् एकात्म में स्थित होकर ही क्रियाशील रहते हैं। बस शिशु अज्ञानावस्था में रहता है जबकि ज्ञानी मानव ज्ञानावस्था में रहकर वही करता है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के समभाव में स्थित होकर संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा वर्षा होती है जिसको जितना जल लेना हो ले ले, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी मनुष्यों के लिए है जिसको जितने में शामिल होना है हो लें।
सूत्र-2. भौतिकवाद या भोगवाद कर्म चक्र:
चक्र-1. TRANSACTION-आदान-प्रदान चक्र। यही ज्ञानावस्था में चक्र-6 कहलाता है।
उपचक्र 1.1-शारीरिक
उपचक्र 1.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 1.3-मानसिक
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-
सूत्र-1 से युक्त चक्र-1 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-1 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-1 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
चक्र-2. RURAL-ग्रामीण चक्र
उपचक्र 2.1-शारीरिक
उपचक्र 2.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 2.3-मानसिक
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-ग्रामीण का व्यापक अर्थ है-वे जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में पीछे हैं।
सूत्र-1 से युक्त चक्र-2 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में पीछे हैं, उनके लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में पीछे हैं, उनके लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान जो ईश्वर से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में पीछे हैं। हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में पीछे हैं, उनके लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-2 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-2 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
चक्र-3.ADVANCEMENT या ADAPTABILITY -आधुनिकता या अनुकूलन चक्र
उपचक्र 3.1-शारीरिक
उपचक्र 3.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 3.3-मानसिक
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-आधुनिकता या अनुकूलन का अर्थ है-वे जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगे हैं उनके शारीरिक-आर्थिक-मानसिक प्रणाली को स्वीकार या स्वयं को उस अनुसार बनाना।
सूत्र-1 से युक्त चक्र-3 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगे हैं, उन्हें स्वीकार या स्वयं को उस अनुसार बनाते हुये उनके लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगेे हैं, उनके लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान जो ईश्वर से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगे हैं। हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी जो स्वयं से शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगेे हैं, उनके लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-3 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-3 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
चक्र-4. DEVELOPMENT-विकास चक्र
उपचक्र 4.1-शारीरिक
उपचक्र 4.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 4.3-मानसिक
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-विकास का अर्थ है-स्वयं को शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगे बढ़ाने से हैं।
सूत्र-1 से युक्त चक्र-4 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर स्वयं कोे शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर स्वयं के शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगेे बढा़ता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में विकास हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी स्वयं कोे शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगेे बढ़ाने के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-4 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-4 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
चक्र-5.EDUCATION-शिक्षा चक्र
उपचक्र 5.1-शारीरिक
उपचक्र 5.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 5.3-मानसिक
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-शिक्षा का अर्थ है-स्वयं को शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र के विषय में मस्तिष्क को चिन्तन स्तर पर लाने से हैं।
सूत्र-1 से युक्त चक्र-5 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर स्वयं कोे शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में शिक्षित करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर स्वयं के शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगेे बढा़ने के लिए शिक्षित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में शिक्षण हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी स्वयं कोे शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आगेे बढ़ाने के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए शिक्षित करता है और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-5 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में शिक्षित करता करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-5 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
सूत्र-3. आध्यात्मवाद-ज्ञानचक्र:
चक्र-6. NATURAL TRUTH -प्राकृतिक सत्य चक्र: यही चक्र अज्ञानावस्था में चक्र-1 कहलाता है।
उपचक्र-1.1-अदृश्य प्राकृतिक अर्थात् अदृश्य आत्मा
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-
सूत्र-1 से युक्त चक्र-6 उपचक्र-1.1 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर अदृश्य प्राकृतिक या अदृश्य आत्मा के लिए आदान-प्रदान करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर अदृश्य प्राकृतिक या अदृश्य आत्मा के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा अदृश्य प्राकृतिक या अदृश्य आत्मा के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी अदृश्य प्राकृतिक या अदृश्य आत्मा के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-6 उपचक्र-1.1 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-6 उपचक्र-1.1 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
उपचक्र 1.2-दृश्य प्राकृतिक अर्थात् दृश्य आत्मा
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-
सूत्र-1 से युक्त चक्र-6 उपचक्र-1.2 का संचालन-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन सूत्र-1 के भाव ;ह्दयद्ध से युक्त होकर दृश्य प्राकृतिक या दृश्य आत्मा के लिए आदान-प्रदान करता है। इसे आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार का है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के आध्यात्मिकता या धर्म या समभाव या एकात्म में स्थित होकर दृश्य प्राकृतिक या दृश्य आत्मा के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा दृश्य प्राकृतिक या दृश्य आत्मा के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान प्रदान हो रहा है, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी दृश्य प्राकृतिक या दृश्य आत्मा के लिए शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान विकास के लिए और शामिल हाने वालों के लिए करता है।
सूत्र-1 से मुक्त चक्र-6 उपचक्र-1.2 का संचालन-सूत्र-1 से मुक्त व्यापारिक संगठन भी शारीरिक-आर्थिक-मानसिक क्षेत्र में आदान-प्रदान करता है। इसे भौतिकता या अधर्म या असमभाव या अनेकात्म से युक्त व्यवसाय या आदान-प्रदान कहते है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन सूत्र-1 से मुक्त होकर चक्र-6 उपचक्र-1.2 का कार्य नहीं करता। यह उसका विशिष्ट उद्देश्य है।
सूत्र-4. ज्ञानातीत चक्र: चक्र-7-RELIGIONधर्मचक्र: अपना मालिक स्वंय की स्थिति। यही अज्ञानावस्था में चक्र-0 भी कहलाता है।
उपरोक्त सूत्र के अनुसार हमारे व्यवसाय की व्याख्या-एक पूर्ण व्यापारिक संगठन का मालिक या तो कोई और ;ईश्वरद्ध होता है या उस संगठन में शामिल एक या अनेक ईश्वर ;व्यक्तिद्ध होते हैं। जिस प्रकार ईश्वर किसी जीव-निर्जीव, स्त्री-पुरूष, जाति-सम्प्रदाय इत्यादि से बिना भेद-भाव के सभी के लिए कार्य करता है उसी प्रकार एक पूर्ण व्यापारिक संगठन को भी उसी प्रकार कार्य करना चाहिए। जिस प्रकार ईश्वर दिन-रात, वर्षा-सूखा, गर्मी-सर्दी, तूफान-शान्ति इत्यादि बिना किसी भेद-भाव अर्थात् एकात्म के द्वारा करता है उसी प्रकार एक पूर्ण व्यापारिक संगठन को भी उसी प्रकार कार्य करना चाहिए। एक शिशु मानव और ज्ञानी मानव दोनों ही समभाव अर्थात् एकात्म में स्थित होकर ही क्रियाशील रहते हैं। बस शिशु अज्ञानावस्था में रहता है जबकि ज्ञानी मानव ज्ञानावस्था में रहकर वही करता है।
हमारा व्यापार और व्यापारिक संगठन भी इसी प्रकार है। वह अपने कार्यो-योजनाओं-व्यापारिक नियमों को बिना किसी भेद-भाव के समभाव में स्थित होकर संचालित करता है। जिस प्रकार ईश्वर द्वारा वर्षा होती है जिसको जितना जल लेना हो ले ले, उसी प्रकार हमारा व्यापार भी मनुष्यों के लिए है जिसको जितने में शामिल होना है हो लें। और यह सब ज्ञानावस्था अर्थात् धर्म में स्थित होकर करता है।
जिस प्रकार “ओउम” शब्द, उस अदृश्य व्यक्तिगत प्रमाणित ईश्वर का नाम है और “ओउम” शब्द की व्याख्या, उस ईश्वर को समझने-जानने का मार्ग है। उसी प्रकार ÞTRADE CENTREß शब्द, इस दृश्य सर्वाजनिक प्रमाणित ईश्वर-ब्रह्माण्ड का नाम है और ÞTRADE CENTREß शब्द की व्याख्या, इस ईश्वर-ब्रह्माण्ड में सार्वभौम कर्मज्ञान को समझने-जानने का मार्ग है। शब्द ÞTRADE CENTREß ब्रह्माण्ड के पर्यायवाची शब्द के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि यह ब्रह्माण्ड ही सबसे बड़ा व्यापार केन्द्र है। शब्द ÞTRADE CENTREß की व्याख्या के अनुसार ही इस संसार में व्यक्ति से लेकर संगठन, सरकार और विश्व तक संचालित हो रहे हैं।
इस प्रकार-जव to step up TRADE
through CENTRE (सभी कर्म व्यापार को सार्वभौम आत्मा केन्द्र के ज्ञान द्वारा आगे बढ़ाना) अर्थात् विस्तार में जव to step up
Transaction, Rural, Advancement (Adaptability), Development, Education through
Center for Enhancement of Natural Truth & Religious Education (सभी कर्म आदान-प्रदान, ग्रामीण, आधुनिकता-अनुकूलन, विकास, शिक्षा को प्राकृतिक सत्य और धार्मिक शिक्षा के ज्ञान द्वारा आगेे बढ़ाना) हुआ अर्थात् जो व्यक्ति और संस्था समभाव और निष्पक्ष में स्थित होकर सभी शारीरिक, आर्थिक व मानसिंक कर्म आदान-प्रदान, ग्रामीण, आधुनिकता-अनुकूलन, विकास, शिक्षा को सदैव एक साथ करता है वही मानक व्यक्ति और संस्था कहलाता है।
इस प्रकार इस सिद्धान्त से देखने पर पायेगें कि जो व्यक्ति और संस्था सफल हैं या सफलता प्राप्त कर रहें हैं उनके मूल में यही सिद्धान्त है। यही नहीं यह किसी देश के कार्य प्रणाली पर भी उतना ही सत्य है। और सिर्फ इतना ही नहीं आॅठवे व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार श्री कृष्ण भी इसी सिद्धान्त से ही अपने जीवन की समग्र योजना का निर्माण किये थे। यही मानव ;व्यक्तिगत मनद्ध और संस्था ;संयुक्त मनद्ध के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक (WS-0000 & WS-000) भी है। जब तक भारत इस सिद्धान्त को स्वयं के लिए प्रयोग नहीं करता तब तक आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर ”एक भारत-श्रेष्ठ भारत“ का निर्माण नहीं हो सकता और जब तक भारत इस सिद्धान्त को विश्व में स्थापित नहीं करता तब तक वह इस दृश्य काल में विश्व गुरू नहीं बन सकता।
शब्द TRADE CENTRE का दर्शन बहुत ही विस्तृत और शक्तिशाली है। जिसका पूर्ण विवरण ” ”विश्वशास्त्र“-द नाॅलेज आॅफ फाइनल नाॅलेज“ के अध्याय-तीन में है। सभी के लिए होते हुये भी उपरोक्त मार्गदर्शक बिन्दु व सिंद्धान्त ही एक आदर्श मानक वैश्विक नागरिक व संस्था के लिए विशेष रूप से मार्गदर्शक बिन्दु व सिंद्धान्त है।
उपरोक्त मानक के अनुसार ही हमारा व्यवसाय है जिसमें व्यापारिक और सामाजिक उत्तरदायित्व दोनों का समावेश है। प्रत्यक्ष व्यापार और समाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ यह है कि उसमें आविष्कारक श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव” शामिल हैं तथा अप्रत्यक्ष अर्थात् प्रेरक का अर्थ उनके मार्गदर्शन से अन्य के लिए उपलब्ध है, जो निम्न प्रकार हैं-
राष्ट्र निर्माण का हमारा व्यवसाय (प्रत्यक्ष)
01.सत्य मानक शिक्षा का व्यापार-पुनर्निर्माण (RENEW - Real Education National Express Way)
01. शिक्षा से सम्बन्धित विचार
02. शिक्षा, शिक्षा माध्यम, शिक्षक/गुरू, विद्यार्थी/छात्र और शिक्षा पाठ्यक्रम
03. ”व्यापार“ और ”शिक्षा का व्यापार“
04. ”सत्य मानक शिक्षा का व्यापार“-एक अन्तहीन व्यापार
05. पुनर्निर्माण-राष्ट्र निर्माण का व्यापार
06. पुनर्निर्माण क्यों?
07. प्रवेश पंजीकरण की योग्यता (Eligibility)
08. छात्रवृत्ति (स्कालरशिप), सहायता और रायल्टी देने का हमारा आधार
09. पाठ्यक्रम शुल्क (Course Fees)
10. छात्रवृत्ति और रायल्टी ¼Scholarship & Royalty½
11. ये पाठ्यक्रम क्या है?
अ-सामान्यीकरण (Generalization) शिक्षा
01. सत्य शिक्षा (REAL EDUCATION)
02. सत्य पेशा (REAL PROFESSION)
03. सत्य पुस्तक (REAL BOOK)
04. सत्य स्थिति (REAL STATUS)
05. सत्य एस्टेट एजेन्ट (REAL ESTATE AGENT)
06. सत्य किसान (REAL KISAN)
ब-विशेषीकरण (Specialization) शिक्षा
01. सत्य कौशल (REAL SKILL)
02. डिजीटल कोचिंग (DIGITAL COACHING)
स-सत्य नेटवर्क (REAL NETWORK)
01. डिजिटल ग्राम नेटवर्क (Digital Village Network)
02. डिजिटल नगर वार्ड नेटवर्क (Digital City Ward Network)
03. डिजिटल एन.जी.ओ/ट्रस्ट नेटवर्क (Digital NGO/Trust Network)
04. डिजिटल विश्वमानक मानव नेटवर्क (Digital World Standard Human Network)
05. डिजिटल नेतृत्व नेटवर्क (Digital Leader Network)
06. डिजिटल जर्नलिस्ट नेटवर्क (Digital Journalist Network)
07. डिजिटल शिक्षक नेटवर्क (Digital Teacher Network)
08. डिजिटल शैक्षिक संस्थान नेटवर्क (Digital Educational Institute Network)
09. डिजिटल लेखक-ग्रन्थकार-रचयिता नेटवर्क (Digital Author Network)
10. डिजिटल गायक नेटवर्क (Digital Singer Network)
11. डिजिटल खिलाड़ी नेटवर्क (Digital Sports Man Network)
12. डिजिटल पुस्तक विक्रेता नेटवर्क (Digital Book Saler Network)
13. डिजिटल होटल और आहार गृह नेटवर्क (Digital Hotel & Restaurant Network)
12. पुनर्निर्माण-3-एफ विपणन प्रणाली से युक्त
13. हमारा उद्देश्य क्या है?
14. मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM) का आधार
15. पुनर्निर्माण-मल्टी लेवेल मार्केटिंग (MLM) नहीं हैं।
16. आपकी समस्या और हमारा उपाय
17. पुनर्निर्माण-छात्रवृत्ति, सहायता व रायल्टी वितरण तिथि
18. पुनर्निर्माण-प्रणाली की विशेषताएँ
19. पुनर्निर्माण के प्रेरक (Catalyst)
02. डिजिटल प्रापर्टी और एजेन्ट नेटवर्क (Digital Property & Agent Network)
03. राष्ट्र निर्माण के पुस्तक
04. पेय जल
05. कैलेण्डर
राष्ट्र निर्माण का हमारा व्यवसाय (अप्रत्यक्ष)
01. कार्पोरेट विश्वमानक मानव संसाधन विकास प्रशिक्षण
(Corporate World Standard Human Resources Development Training)
02. सत्यकाशी महायोजना
03. फिल्म एवं टी0 वी सिरियल-”महाभारत“ के बाद ”विश्वभारत“
04. गीत
05. राष्ट्र निर्माण के लिए शोध व प्रणाली विकास
1. नयी पीढ़ी के लिए नया विषय-ईश्वर शास्त्र, मानक विज्ञान, एकात्म विज्ञान
2. विश्व राजनीतिक पार्टी संघ (World Political Party Organisation - WPPO
3. विश्वशास्त्र पर आधारित आॅडियो-विडियो
हमारा सामाजिक उत्तरदायित्व (प्रत्यक्ष)
01. विश्व शान्ति के लिए गठित ट्रस्टों की स्पष्ट नीति
02. मेरे विश्व शान्ति के कार्य हेतु बनाये गये सभी ट्रस्ट मानवता के लिए सत्य-कार्य एवं दान के लिए सुयोग्य पात्र
03. राष्ट्र निर्माण का हमारा सामाजिक उत्तरदायित्व (अप्रत्यक्ष)
01. साधु एवं सन्यासी के लिए-सत्ययोगानन्द मठ (ट्रस्ट)
02. राजनीतिक उत्थान व विश्वबन्धुत्व के लिए-प्राकृतिक सत्य मिशन (ट्रस्ट)
1. राष्ट्रीय रचनात्मक आन्दोलन: स्वायत्तशासी उपसमिति /संगठन
I. प्राकृतिक सत्य एवं धार्मिक शिक्षा प्रसार केन्द्र (CENTRE)
II. ट्रेड सेन्टर (TRADE CENTRE)
III. विश्व राजनीतिक पार्टी संघ (WPPO)
(क) परिचय
(ख) राष्ट्रीय क्रान्ति मोर्चा
(ग) राष्ट्रीय सहजीवन आन्दोलन
(घ) स्वराज-सुराज आन्दोलन
(च) विश्व एकीकरण आन्दोलन (सैद्धान्तिक)
2. प्राकृतिक सत्य मिशन के विश्वव्यापी स्थापना का स्पष्ट मार्ग
3. राम कृष्ण मिशन और प्राकृतिक सत्य मिशन
03. श्री लव कुश सिंह के रचनात्मक कायों के संरक्षण के लिए-विश्वमानव फाउण्डेशन (ट्रस्ट)
04. व्यावहारिक ज्ञान पर शोध के लिए-सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय (ट्रस्ट)
05. ब्राह्मणों के लिए-सत्यकाशी (ट्रस्ट)
04. राष्ट्र निर्माण का हमारा सामाजिक उत्तरदायित्व (अप्रत्यक्ष)
01. वाराणसी (उ0प्र0) -काशी एरिया ब्रेन इन्टीग्रेशन एण्ड रिसर्च चैरिटेबल ट्रस्ट
02. इलाहाबाद (उ0प्र0) -अविरल सरस्वती प्रवाह एजुकेशन चैरिटेबल ट्रस्ट
03. गाजीपुर (उ0प्र0) -भारत सत्य मिशन ट्रस्ट
04. सहारनपुर (उ0प्र0) -सूर्योदय ट्रस्ट
राष्ट्र निर्माण का हमारा वैश्विक उत्तरदायित्व (अप्रत्यक्ष)
वैश्विक एकीकरण, मानक और वैश्विक मानव निर्माण के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित प्रारूप का प्रस्तुतिकरण।
इस प्रकार हमारा राष्ट्र निर्माण का व्यापार आर्थिक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य, मानवीय उद्देश्य, राष्ट्रीय उद्देश्य, वैश्विक उद्देश्य व सामाजिक उत्तरदायित्व को पूर्ति करता हुआ एक मानक व्यवसाय है।
No comments:
Post a Comment