Wednesday, April 15, 2020

पाँचवें युग-स्वर्णयुग में प्रवेश का आमंत्रण

पाँचवें युग-स्वर्णयुग में प्रवेश का आमंत्रण

जिस प्रकार त्रेतायुग से द्वापरयुग में परिवर्तन के लिए वाल्मिकि रचित “रामायण“ आया, जिस प्रकार द्वापरयुग से कलियुग में परिवर्तन के लिए महर्षि व्यास रचित “महाभारत“ आया उसी प्रकार कलियुग से पाँचवें युग-स्वर्णयुग में परिवर्तन के लिए “विश्वशास्त्र“ सत्यकाशी क्षेत्र जो वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है, से व्यक्त हुआ है। प्रत्येक अवतार के समय शास्त्राकार अन्य होते थे और शास्त्र में नायक अलग होता था परन्तु “विश्वशास्त्र“ का नायक और शास्त्राकार एक ही है इसलिए अवतार के होने न होने पर कोई विवाद नहीं होगा क्योंकि यह सदैव सिद्ध रहेगा कि यह शास्त्र है तो शास्त्राकार भी रहा होगा। यही इस अन्तिम अवतार की कला थी जो अवतारों के अनेक कलाओं में पहली और अन्तिम बार प्रयोग हुआ है। अवतारों के प्रत्यक्ष से प्रेरक तक की यात्रा में पूर्ण प्रेरक रूप का यह सर्वोच्च और अन्तिम उदाहरण है। जिस प्रकार प्रत्येक वस्तु में स्थित आत्मा प्रेरक है उसी प्रकार मनुष्य के लिए यह शास्त्र पूर्ण प्रेरक के रूप में सदैव मानव समाज के समक्ष रहेगा।
इस “विश्वशास्त्र“ को आप सभी को समर्पित करने के बाद ईश्वर के पास कुछ भी शेष नहीं है और ईश्वर अपने कर्तव्य से मुक्त और मोक्ष को प्राप्त कर चुका है। निर्णय आपके हाथ में है कि आप ज्ञान-कर्मज्ञान का आस करेंगे या समय का पास। यह पूर्णतः आप पर ही निर्भर हैै। केवल मन से युक्त होकर पशु मानव जीते है। संयुक्त मन से युक्त होकर जीना मानव का जीना है तथा सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त से युक्त संयुक्त मन, ईश्वरीय मानव की अवस्था है। यह “विश्वशास्त्र“ ही आपका अपना यथार्थ स्वरूप और आपका कल्याणकर्ता है। 
हम वर्तमान में ब्रह्मा के 58वें वर्ष में 7वें मनु-वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, 28वें चतुर्युग का अन्तिम युग-कलियुग के ब्रह्मा के प्रथम वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम सम्वत् 2096 (सन् 2012 ई0) में हैं। वर्तमान कलियुग ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार दिनांक 17-18 फरवरी को 3102 ई. पू. में प्रारम्भ हुआ था। इस प्रकार अब तक 15 नील, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 61 हजार, 624 वर्ष इस ब्रह्मा के सृजित हुए हो गये हैं
इस प्रकार दिनांक 21 दिसम्बर, 2012 दिन शुक्रवार (मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, नवमी, विक्रम संवत् 2069) जिस दिन मायां सभ्यता का कैलेण्डर पूर्णता को प्राप्त किया है, से दसवें और अन्तिम महावतार लव कुश सिह “विश्वमानव“ की ओर से युग का चैथा और अन्तिम युग-कलियुग का समय तथा काल का पहला अदृश्य काल समाप्त होकर युग का पाँचवाँ और अन्तिम युग-स्वर्णयुग तथा काल का दूसरा और अन्तिम काल-दृश्य काल दिनांक 22 दिसम्बर, 2012 दिन शनिवार (मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, दशमी, विक्रम संवत् 2069) से प्रारम्भ होता है। और समस्त संसार के समक्ष और मनुष्य जीव के अस्तित्व तक शनिचर और शंकर रूपी “विश्वशास्त्र“ उसके ज्ञान की परीक्षा लेने के लिए सदैव सामने व्यक्त रहेगा।
अब आप मेरे ईश्वरीय समाज में आने के लिए स्वतन्त्र है जिसके लिए आपको कहीं आना-जाना नहीं है। आप जिस समाज, धर्म, सम्प्रदाय, मत इत्यादि में हैं, वहीं रहे। सिर्फ “विश्वशास्त्र“ को पढ़े और पूर्णता को प्राप्त करें क्योंकि कोई भी विचारधारा चाहे उसकी उपयोगिता कालानुसार समाज को हो या न हो, यदि वह संगठन का रूप लेकर अपना आय स्वयं संचालित करने लगती है तो उसके साथ व्यक्ति जीवकोपार्जन, श्रद्धा व विश्वास से जुड़ता है न कि ज्ञान के लिए। पाँचवें युग-स्वर्णयुग और ईश्वरीय समाज में प्रवेश करने के लिए आप सभी को मैं लव कुश सिंह “विश्वमानव“ हृदय से आमंत्रित करता हूँ।

शनिवार, 22 दिसम्बर, 2012 सेप्रारम्भ हो चुका है-

1. काल के प्रथम रूप अदृश्य काल से दूसरे और अन्तिम दृश्य काल का प्रारम्भ।
-इसलिए कि अधिकतम व्यक्ति व समाज का मन दृश्य विषयों पर केन्द्रित है।

2. मनवन्तर के वर्तमान 7वें मनवन्तर वैवस्वत मनु से 8वें मनवन्तर सांवर्णि मनु का प्रारम्भ।
-इसलिए कि सांवर्णि मनु के “सार्वभौम“ गुण का प्रयोग कर श्री लव कुश सिंह “विश्वमानव“ व्यक्त हैं।

3. अवतार के नवें बुद्ध से दसवें और अन्तिम अवतार-कल्कि महावतार का प्रारम्भ।
-इसलिए कि आधुनिक युग के लिए एकीकरण व मानकीकरण के सभी प्रणाली व्यष्टि व समष्टि के लिए संयुक्त एवं अन्तिम रूप से कल्कि अवतार द्वारार व्यक्त है।

4. युग के चैथे कलियुग से पाँचवें युग स्वर्ण युग का प्रारम्भ।
-इसलिए कि युग परिवर्तन के लिए कल्कि अवतार का आगमन हो चुका है।

5. व्यास और द्वापर युग में आठवें अवतार श्रीकृष्ण द्वारा प्रारम्भ किया गया कार्य“नवसृजन“ के प्रथम भाग“सार्वभौम ज्ञान“ के शास्त्र “गीता“ से द्वितीय अन्तिम भाग “सार्वभौम कर्मज्ञान“, पूर्णज्ञान का पूरक शास्त्र“, लोकतन्त्र का “धर्मनिरपेक्ष धर्मशास्त्र“ और आम आदमी का “समाजवादी शास्त्र“ द्वारा व्यवस्था सत्यीकरण और मन के ब्रह्माण्डीयकरण और नये व्यास का प्रारम्भ।
-इसलिए कि नया और अन्तिम शास्त्र “विश्वशास्त्र“ प्रकाशित हो चुका है।



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