Wednesday, April 8, 2020

भारत गणराज्य-संक्षिप्त शासकीय परिचय

भारत गणराज्य-संक्षिप्त शासकीय परिचय


परिचय
भारत के संविधान के अनुच्छेद-एक में भारत के दो आधिकारिक नाम हैं-(इण्डिया दैट इज भारत) हिन्दी में ”भारत“ और अंगेजी में ”इण्डिया (INDIA)“। इण्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम ”इण्डस“ से हुई है। भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋशभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा भागवत पुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत (भा ़ रत) शब्द का मतलब है-”आन्तरिक प्रकाश में लीन“। एक तीसरा नाम ”हिन्दुस्तान“ भी है जिसका अर्थ है-हिन्द या हिन्दू की भूमि, जो कि प्राचीन काल के ऋषियों द्वारा दिया गया था। प्राचीन काल में यह कम प्रयुक्त होता था तथा कालान्तर में अधिक प्रचलित हुआ। विशेषकर अरब/ईरान में। भारत में यह नाम मुगल काल से अधिक प्रचलित हुआ यद्यपि इसका समकालीन उपयोग कम और प्राय-उत्तरी भारत के लिए होता है। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से ”आर्यावर्त“, ”जम्बूद्वीप“ और ”अजनाभदेश“ के नाम से भी जाना जाता रहा है। बहुत पहले यह देश सोने की चिड़िया जाना जाता था।
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव सभ्यता का पहला राष्ट्र था। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्मा के मानसपुत्र स्वायंभुव मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के 10 पुत्र थे। 3 पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे-आग्नीध, जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध ने अपने 9 पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न 9 स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन 9 पु़त्रों में सबसे बड़े थे-नाभि, जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम से जोड़कर, अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे-ऋषभ। ऋषभदेव के 100 पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ऋषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे। विष्णु पुराण, वायु पुराण, लिंग पुराण, श्रीमद्भागवत, महाभारत इत्यादि में भारत का उल्लेख आता है। इससे पता चलता है कि महाभारत काल से पहले ही भारत नाम प्रचलित था। एक अन्य मत के अनुसार दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा परन्तु विभिन्न स्रोतों में वर्णित तथ्यों के आधार पर यह मान्यता गलत साबित होती है। पूरी वैष्णव परम्परा और जैन परम्परा में बार-बार दर्ज है कि समुद्र से लेकर हिमालय तक फैले इस देश का नाम प्रथम तीर्थंकर दार्शनिक राजा भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष पड़ा। इसके अतिरिक्त जिस पुराण में भारतवर्ष का विवरण है वहाँ इसे ऋषभ पुत्र भरत के नाम पर ही पड़ा बताया गया है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान देना होगा कि 7वें मनु के आगे 2 वंश हो गये थे-पहला इक्ष्वाकु या सूर्यवंश और दूसरा चन्द्रवंश। इसी चन्द्रवंश में दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत का जन्म हुआ। जिसका स्पष्ट उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में है। इस सन्दर्भ में गीता के विभिन्न श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को भारत कह कर सम्बोधित करते हैं। इसके अतिरिक्त ऋषभ पुत्र भरत तथा दुष्यन्त पुत्र भरत में 6 मन्वन्तर का अन्तराल है। अत-यह देश अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारत है।
भारत गणराज्य, पौराणिक जम्बूद्वीप, दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन-नेपाल-भूटान और पूर्व में बांग्लादेश-म्यांमार देश स्थित है। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण-पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व मंे इण्डोनेशिया है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत है और दक्षिण में हिन्द महासागर है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर है। भारत में कई बड़ी नदिया हैं। गंगा नदी भारतीय सभ्यता में अत्यन्त पवित्र मानी जाती हैं। अन्य बड़ी नदियाँ नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, चम्बल, सतलज, व्यास हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। यहाँ 300 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं। यह विश्व की कुछ प्राचीनतम सभ्यताओं का पालना रहा है जैसे-सिन्धु घाटी सभ्यता और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यापार पथो का अभिन्न अंग रहा है। विश्व के चार प्रमुख धर्म-सनातन-हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा सिख भारत में जन्में और विकसित हुए। 
पषाण युग भीमबेटका मध्य प्रदेश की गुफाएँ भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण है। प्रथम स्थाई बस्तियों ने 9000 वर्ष पूर्व स्वरूप लिया। यही आगे चल कर सिन्धु घाटी सभ्यता में विकसित हुई, जो 2600 ईसापूर्व और 1900 ईसापूर्व के मध्य अपने चरम पर थी। लगभग 1600 ईसापूर्व आर्य भारत आए और उत्तर भारतीय क्षेत्रों में वैदिक सभ्यता का सूत्रपात किया। इस सभ्यता के स्रोत वेद और पुराण हैं। किन्तु आर्य आक्रमण सिद्धान्त अभी विवादित है। कुछ विद्वानों की मान्यता यह है कि आर्य भारतवर्ष के स्थायी निवासी रहे हैं तथा वैदिक इतिहास करीब 75000 वर्ष प्राचीन है। इसी समय दक्षिण भारत में द्रविड़ सभ्यता का विकास होता रहा। दोनों जातियों ने एक दूसरे की खूबियों को अपनाते हुए भारत में एक मिश्रित संस्कृति का निर्माण किया।
500 ईसापूर्व के बाद कई स्वतंत्र राज्य बन गये। भारत के प्रारम्भिक राजवंशों में उत्तर भारत का मौर्य राजवंश उल्लेखनीय है जिसके प्रतापी राजा सम्राट अशोक का विश्व इतिहास में विशेष स्थान है। 180 ईसवी के आरम्भ से मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तर भारतीय महाद्वीप में यूनानी, शक, पार्थी और अंतत-कुषाण राजवंश स्थापित हुए। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का ”स्वर्णिम काल“ कहलाया। दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, पल्लव तथा पांड्य चले। ईसा के आसपास संगम साहित्य अपने चरम पर था जिसमें तमिल भाषा का परिवर्धन हुआ। सातवाहनों और चालुक्यों ने मध्य भारत में अपना वर्चस्व स्थापित किया। विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्यौगिकी, धर्म तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फले-फूले।
12वीं शताब्दी के प्रारम्भ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगलवंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। मुगलों के संक्षिप्त अधिकार के बाद सत्रहवीं सदी में दक्षिण और मध्य भारत में मराठों का उत्कर्ष हुआ। उत्तर पश्चिम में सिक्खों की शक्ति में वृद्धि हुई। 17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रंास, ब्रिटेन सहित अनेकों यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की शासकीय अराजकता का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और 1840 तक लगभग सम्पूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। 1857 में ब्रिटीश इस्ट इण्डिया कम्पनी के विरूद्ध असफल विद्रोह, जो कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।
20वीं सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार ओर विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तन एवं आन्दोलनों की नींव रखी। 1885 में कांग्रेस पार्टी की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक औपचारिक स्वरूप दिया। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में एक लम्बे समय तक स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए विशाल अंहिसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गाँधी, जो कि आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता से सम्बोधित किये जाते हैं, ने किया। इसके साथ-साथ चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकर आदि के नेतृत्व में चले क्रान्तिकारी संघर्ष के फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णत-स्वतन्त्रता प्राप्त की। तदुपरान्त 26 जनवरी, 1950 को भारत एक गणराज्य बना।
भारत का संविधान, भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्ट मिनिस्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग है-न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका।
भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की विभिन्नताओं से भरी जनता में भाषा, जाति और धर्म, सामाजिक और राजनीतिक संगठन के मुख्य शत्रु हैं। भारत में सबसे अधिक हिन्दू हैं। अन्य धर्मो में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, अयावलि, यहूदी, पारसी, अहमदी, बहाई आदि हैं। भारत दो मुख्य भाषा सूत्रों, आर्य और द्रविण का भी स्रोत है। भारत का संविधान कुल 23 भाषाओं को मान्यता देता है। हिन्दी और अंग्रेजी केन्द्रीय सरकार द्वारा सरकारी कामकाज के लिए उपयोग की जाती है। संस्कृत और तमिल जैसी अति प्राचीन भाषाएं भारत में ही जन्मी हैं। कुल मिलाकर भारत में 1652 से भी अधिक भाषाएं एवं बोलियाँ बोली जाती हैं। भाषाई मामले में भारतवर्ष विश्व के समृद्धतम देशों में से एक है। यहाँ मुख्यत-बोली जाने वाली भाषा मराठी, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, राजस्थानी, नेपाली, भोजपुरी, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, बांग्ला, असमिया, ओड़िया, कश्मीरी, लद्दाखी, मणिपुरी, कांेकणी, डोगरी इत्यादि है।
वैश्विीकरण के इस युग में शेष विश्व की तरह भारतीय समाज पर भी अंग्रेजी तथा यूरोपीय प्रभाव पड़ रहा है। बाहरी लोगों की खूबियों को अपनाने की भारतीय परम्परा का नया दौर कई भारतीयों की दृष्टि में अनुचित है। एक खुले समाज के जीवन का यत्न कर रहे लोगों को मध्यमवर्गीय तथा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग इसे भारतीय पारम्परिक मूल्यों का हनन मानते हैं। विज्ञान तथा साहित्य में अधिक प्रगति ना कर पाने की वजह से भारतीय समाज यूरोपीय लोगों पर निर्भर होता जा रहा है। ऐसे समय में लोग विदेशी आविष्कारों का भारत में प्रयोग अनुचित भी समझते हैं।
भारत सन् 1000-1400 ई0 के सांस्कृतिक अस्मिता के विलोप काल, सन् 1401-1757ई0 तक की गुलामी के दौर की शुरूआत के काल, अंग्रेजों के काल सन् 1757 से 1947 तक में 10 मई सन् 1857 से पहला स्वतन्त्रता संग्राम के फलस्वरूप 15 अगस्त सन् 1947 को वह स्वतन्त्र हुआ। देश की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए जो व्यवस्था अपनायी गई वह है-प्रजातन्त्र या लोकतन्त्र प्रणाली। इस प्रणाली के संचालन के लिए संचालक का निराकार नियम का निर्माण ही संविधान के रूप में सन् 1927, सन् 1930, सन् 1945 के असफल प्रयत्नों के बाद, सत्य मुक्त संयुक्त मनों द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त, प्रस्तुत करते हुये उसे 26 जनवरी सन् 1950 से लागू कर भारत को एक गणराज्य के रूप में स्थापित कर संविधान के अनुसार वर्तमान में भी संचालित किया जा रहा है।
केन्द्र सरकार का स्वरूप
01. व्यवस्थापिका (राज्यसभा और लोकसभा) 
02. कार्यपालिका (राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री परिषद) 
03. न्यायपालिका (उच्चन्यायलय)
गणराज्य का क्षेत्र -36 राज्यों/केन्द्र शासित क्षेत्र में 624 जनपद में 5436 विकास खण्ड में 638365 ग्राम लगभग।
विधायिका में भागीदारी -राज्यों के विधानसभा में कुल 4120 सदस्य
संसद में भागीदारी -संसद के लोकसभा में 545 तथा राज्य सभा में 245 सदस्य
मंत्रालय -लगभग 40 और उनके विभाग।
राजधानी -भारत के लिए नई दिल्ली तथा राज्यों के लिए उनके राज्यों में।

गणराज्यों के स्तर
01. गणराज्यों का संघ-भारत 
02. गणराज्य-राज्य 
03. गणराज्य-जिला पंचायत 
04. गणराज्य-नगर पंचायत, नगर परिषद, नगर निगम 
05. गणराज्य-क्षेत्र पंचायत 
06. गणराज्य-ग्राम पंचायत।

भारत का एक
भारत का राष्ट्रीय ध्वज-तिरंगा भारत का राष्ट्रीय गान-जन-गण-मन
भारत का राष्ट्रीय गीत-वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रीय चिन्ह-अशोक स्तम्भ
भारत का राष्ट्रीय पंचांग-शक संवत भारत का राष्ट्रीय वाक्य-सत्यमेव जयते
भारत की राष्ट्रीयता-भारतीयता भारत की राष्ट्र भाषा-हिंदी
भारत की राष्ट्रीय लिपि-देव नागरी भारत का राष्ट्रीय ध्वज गीत-हिंद देश का प्यारा झंडा
भारत का राष्ट्रीय नारा-श्रमेव जयते भारत की राष्ट्रीय विदेशनीति-गुट निरपेक्ष
भारत का राष्ट्रीय पुरस्कार-भारत रत्न भारत का राष्ट्रीय सूचना पत्र-श्वेत पत्र
भारत का राष्ट्रीय वृक्ष-बरगद भारत की राष्ट्रीय मुद्रा-रूपया
भारत की राष्ट्रीय नदी-गंगा         भारत का राष्ट्रीय पक्षी-मोर
भारत का राष्ट्रीय पशु-बाघ         भारत का राष्ट्रीय फूल-कमल
भारत का राष्ट्रीय फल-आम         भारत का राष्ट्रीय खेल-हॉकी
भारत की राष्ट्रीय मिठाई-जलेबी भारत के राष्ट्रीय मुद्रा चिन्ह ()
भारत के राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) और 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस)
भारत की राष्ट्रीय योजना-पंच वर्षीय योजना (पहले योजना आयोग अब नीति आयोग)
भारत का राष्ट्रीय शास्त्र-अभी निर्धारित नहीं।

भारत का संविधान
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत सम्बन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेंजा जिसमें 3 मंत्री थे। 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर, 1947 से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं से निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गये थे। जवाहरलाल नेहरू, डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में कुल 166 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में डाॅ0 भीमराव अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई इसलिए उन्हंें संविधान का निर्माता कहा जाता है।
भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसमें 444 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ है। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन-राज्यों की परिषद राज्यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा है। संविधान की धारा 74(1) में यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रीपरिषद् होगी जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति इस मंत्री परिषद् की सलाह के अनुसार अपने कार्यो का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रीपरिषद् में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है। मंत्रीपरिषद् सामूहिक रूप से लोगों के सदन लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है।
प्रत्येक राज्य में एक विधान सभा है। जम्मू कश्मीर, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है जिसे विधान परिषद् कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें विहित होगी। मंत्रीपरिषद् जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री है, राज्यपाल को उसके कार्यो के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मंत्रीपरिषद् सामूहिक रूप से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है।
संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायलय ने इसको संघात्मक संविधान माना है। शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त फ्रंेच दार्शनिक मान्टेस्कयू ने दिया था, उसके अनुसार राज्य की शक्ति उसके तीन भागों-कार्य, विधान तथा न्यायपालिकाओं में बाँट देना चाहिए। ये सिद्धान्त राज्य को सर्वाधिकारवादी होने से बचा सकता है तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। अमेरिकी संविधान पहला ऐसा संविधान था जिसमें ये सिद्धान्त अपनाया गया था। भारतीय संविधान में इसका साफ वर्णन न होकर संकेत मात्र है। इस हेतु संविधान में तीनों अंगो का पृथक वर्णन है। संसदीय लोकतन्त्र होने के कारण भारत में कार्यपालिका तथा विधायिका में पूरा अलगाव नहीं हो सका है। कार्यपालिका (मंत्रीपरिषद्), विधायिका में से ही चुनी जाती है तथा उसके निचले सदन के प्रति उत्तरदायी होती है। अनु 51 के अनुसार कार्यपालिका तथा न्यायपालिका को पृथक होना चाहिए इसलिए ही 1973 में दण्ड प्रक्रिया संहिता पारित की गई जिस के द्वारा जिला मजिस्ट्रेट की न्यायायिक शक्ति लेकर न्यायायिक मजिस्ट्रेट को दे दी गयी थी।
राष्ट्रपति, संघ का कार्यपालक अध्यक्ष है। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उस के नाम से किये जाते हैं। अनु 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति उसमें निहित है। इन शक्तियों का प्रयोग क्रियान्वयन राष्ट्रपति संविधान के अनुरूप ही सीधे अथवा अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा। वह शस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी होता है। सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध-शान्ति की घोषणा करने वाला होता है। देश का प्रथम नागरिक है तथा राज्य द्वारा जारी वरीयता क्रम में उसका सदैव प्रथम स्थान होता है। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक होता है तथा उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री की दशा, प्रधान की तरह है। वह कैबिनेट का मुख्य स्तम्भ है। मंत्री परिषद् का मुख्य सदस्य भी वहीं है। अनु 74 स्पष्ट रूप से मंत्रीपरिषद् की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानमंत्री की उपस्थिति आवश्यक मानता है। उसकी मृत्यु या त्यागपत्र की दशा में समस्त परिषद् को पद छोड़ना पड़ता है। वह अकेले ही मंत्री परिषद् का गठन करता हे। राष्ट्रपति मंत्रीगण की नियुक्ति उसके ही सलाह से करता है। राष्ट्रपति तथा मंत्री परिषद् के मध्य सम्पर्क सूत्र भी वही है। परिषद् का प्रधान प्रवक्ता भी वही है। वह किसी भी मंत्रालय से कोई भी सूचना मंगवा सकता है। इन सब कारणों के चलते प्रधानमंत्री को देश का सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक व्यक्तित्व माना जाता है।
न्यायिक सक्रियता का अर्थ, न्यायपालिका द्वारा निभायी जाने वाली सक्रिय भूमिका है जिसमें राज्य के अन्य अंगों को उनके संवैधानिक कृत्य करने को बाध्य करे। यदि वे अंग अपने कृत्य संपादित करने में सफल रहे तो जनतन्त्र तथा विधि शासन के लिए न्यायपालिका उनकी शक्तियों-भूमिका का निर्वाह सीमित समय के लिए करेगी। यह सक्रियता जनतन्त्र की शक्ति तथा जन विश्वास को पुर्नस्थापित करती है। इस तरह यह सक्रियता न्यायपालिका पर एक असंवेदनशील-गैर जिम्मेदार शासन के कृत्यों के कारण लादा गया बोझ है। यह सक्रियता न्यायिक प्रयास है जो मजबूरी में किया गया है। यह शक्ति उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट के पास है। ये उनकी पुनरीक्षा तथा रिट क्षेत्राधिकार में आती है। जनहित याचिका को हम न्यायिक सक्रियता का मुख्य माध्यम मान सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट, एक तरफ संविधान का संरक्षक, अंतिम व्याख्याकर्ता, मौलिक अधिकारों का रक्षक, केन्द्र-राज्य विवादों में एक मात्र मध्यस्थ है, वहीं यह संविधान के विकास में भी भूमिका निभाता रहा है। इसने माना है कि निरंतर संवैधानिक विकास होना चाहिए ताकि समाज के हित संवर्धित हो। न्यायिक पुनरीक्षण शक्ति के कारण यह संवैधानिक विकास में सहायता करता है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकास यह है कि भारत में संविधान सर्वोच्च है। इसने संविधान के मूल ढाँचे का अदभुत सिद्धान्त दिया है जिसके चलते संविधान काफी सुरक्षित हो गया है। इसे मनमाने ढंग से बदला नहीं जा सकता है। इसने मौलिक अधिकारों का भी विस्तार किया है। इसने अनु 356 के दुरूपयोग को भी रोका है। सुप्रीम कोर्ट इस उक्ति का पालन करता है कि संविधान खुद नहीं बोलता है यह अपनी वाणी न्यायपालिका के माध्यम से बोलता है।

संविधान का स्वरूप 
संविधान में निम्नलिखित चार खण्ड है।
1. खण्ड-एक 
संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय-उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है। प्रस्तावना में निम्नलिखित संकल्प हैं-
”हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न धर्म निरपेक्ष समाजवादी लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए और इसके सब नागरिकों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्त, धर्म, विश्वास व पूजा की स्वतन्त्रता, हैसियत तथा अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए और राष्ट्र की एकता तथा एक बद्धता बनाये रखते हुये सभी में बन्धुत्व की भावना बढ़ाने के लिए संकल्प होकर अपनी इस संविधान में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 मिती मार्ग शीर्ष, शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हजार छ-विक्रमी को एतद्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित तथा आत्मापिर्त करते है।“
2. खण्ड-दो 
संविधान के प्रावधान-इस खण्ड में अनेकों खण्डों में अनुच्छेद/ धारा के अन्तर्गत संघ और राज्य क्षेत्र, नागरिकता, मौलिक अधिकार, नीति निर्देशक तत्व, मौलिक कत्र्तव्य, संघीय कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका, राज्य की कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका, केन्द्र शासित प्रदेशों को शासन, केन्द्र राज्य प्रबन्ध, व्यापार, वाणिज्य और समागम, संघ और राज्यों के अधीन लोक सेवायें, चुनाव आयोग, कतिपय वर्ग विशेष से सम्बन्धित उपबन्ध, राष्ट्रभाषा और प्रादेशिक भाषा, आपातकाली उपबंध, संविधान की प्रक्रिया इत्यादि है।
रूस से प्रेरित होकर 42वें संशोधन द्वारा भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य जोड़ा गया है।
3. खण्ड-तीन 
अनुसूची-इसमें खण्ड-दो के अनुच्छेद/धारा के अधीन विस्तृत विवरण है। जैसे-25 राज्य तथा 6 केन्द्र शासित प्रदेशों का विवरण, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, नियत्रंक व महालेखापरीक्षक के वेतन तथा भत्ते का विवरण। शपथ सम्बन्धी प्रारूप, राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से राज्यसभा के सीटों का आवंटन, अनुसूचित क्षेत्रों व जातियों के प्रशासन विषयक प्रावधान, असम, मेघालय, मिजोरम की जनजातियों के प्रशासन के सम्बन्ध में प्रावधान। संघ तथा राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन (संघ सूची 97 विषय, राज्य सूची 66 विषय, समवर्ती 4 विषय), संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाओं का विवरण भू-सूधार सम्बन्धी प्रावधान, दल-बदल अधिनियम, पंचायती राज सम्बन्धी प्रावधान इत्यादि है।
खण्ड 2 तथा 3 मिलकर संविधान की आत्मा तथा चेतना कहलाते हैं क्योंकि किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए मौलिक अधिकार तथा निति निर्देश देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नीति निर्देशक तत्व जनतान्त्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्व हैं। सर्वप्रथम ये आयरलैंड के संविधान में लागू किये गये थे। ये वे तत्व हैं जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए हैं। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। भारतीय संविधान के इस भाग में नीति निर्देशक तत्वों का रूपाकार निश्चित किया गया है। मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देशक तत्व में भेद बताया गया है और नीति निर्देशक तत्वों के महत्व को समझाया गया है।
4. खण्ड-चार 
परिशिष्ट-इसमें खण्ड दो के अनुच्छेद/धारा के अधीन जम्मू और कश्मीर से सम्बन्धी विवरण है। ये संविधान का मूल स्वरूप है परन्तु संविधान लागू होने से अब तक 64 वर्ष हो गये इस बीच शासन से प्राप्त अनुभव से आवश्यकतानुसार अनुच्छेद/धारा के अन्तर्गत अनेकों बार संशोधन किये गये है और किये जाते रहेंगे।

भारत के विश्वरूप का शास्त्र ही ”विश्वशास्त्र“ 
भारत के विश्वरूप का शास्त्र ही ”विश्वशास्त्र“ है। जिसकी उपयोगिता एक राष्ट्र-एक शास्त्र के रूप है। वर्तमान समय में भारतीय संविधान को ही राष्ट्रीय शास्त्र के रूप में माना जाता है जबकि श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का कहना है-”किसी देश का संविधान, उस देश के स्वाभिमान का शास्त्र तब तक नहीं हो सकता जब तक उस देश की मूल भावना का शिक्षा पाठ्यक्रम उसका अंग न हो। इस प्रकार भारत देश का संविधान भारत देश का शास्त्र नहीं है। संविधान को भारत का शास्त्र बनाने के लिए भारत की मूल भावना के अनुरूप नागरिक निर्माण के शिक्षा पाठ्यक्रम को संविधान के अंग के रूप में षामिल करना होगा। जबकि राष्ट्रीय संविधान और राष्ट्रीय शास्त्र के लिए हमें विश्व के स्तर पर देखना होगा क्योंकि देश तो अनेक हैं राष्ट्र केवल एक विश्व है, यह धरती है, यह पृथ्वी है। भारत को विश्व गुरू बनने का अन्तिम रास्ता यह है कि वह अपने संविधान को वैश्विक स्तर पर विचार कर उसमें विश्व शिक्षा पाठ्यक्रम को शामिल करे। यह कार्य उसी दिशा की ओर एक पहल है, एक मार्ग है और उस उम्मीद का एक हल है। राष्ट्रीयता की परिभाषा व नागरिक कर्तव्य के निर्धारण का मार्ग है। जिस पर विचार करने का मार्ग खुला हुआ है।“ 
भारतीय संसद
भारत की राजनीतिक व्यवस्था को या सरकार जिस प्रकार बनती और चलती है उसे संसदीय लोकतन्त्र कहा जाता है। भारत के लिए लोकतन्त्र कोई नयी बात नहीं है। संसार के सबसे पुराने गणतन्त्र भारत में ही जन्मे-पन्पे। संसद पुराने संस्कृत साहित्य का शब्द है। पुराने समय में राजा को सलाह देने वाली सभा संसद कहलाती थी। राजा संसद की सलाह को ठुकरा नहीं सकता था। बौद्ध सभाओं में संसदीय प्रक्रिया सम्बन्धी नियम आजकल की संसदो के नियमों से बहुत मिलते-जुलते थे। खुली बात-चीत, बहुमत का फैसला, ऊँचे पदो के लिए चुनाव, वोट डालना, समितियों द्वारा विचार आदि से हमारी लोकतान्त्रिक संस्थाए हजारों साल पहले परिचित थीं। संसार के सबसे पुराने ग्रन्थ ऋृग्वेद में सभा और समिति के बारे में लिखा हुआ है। समिति एक आम सभा या लोक सभा की तरह हुआ करती थी। सभा कुछ छोटी और चुने हुए बड़े लोगों की संस्था होती थी। उसकी तुलना आज की राज्य सभा या विधान परिषदों से की जा सकती है। ग्राम-पंचायतें हमारे जन-जीवन का अभिन्न अंग रही है। पुराने समय में गांवों की पंचायत चुनाव से गठित की जाती थी। उसे न्याय ओर व्यवस्था दोनों ही क्षेत्र में खूब अधिकार मिले हुए थे। पंचायतों के सदस्यों का राजदरबार में बड़ा आदर होता था। यही पंचायतें भूमि का बँटवारा करती थीं। कर वसूल करती थीं। गांव की ओर से सरकार का हिस्सा देती थीं। कहीं कहीं ग्राम पंचायतों के ऊपर एक बड़ी पंचायत भी होती थी। यह उन पर निगरानी और नियंत्रण रख्ती थी। कुछ पुराने शिलालेख यह भी बताते हैं कि ग्राम पंचायतों के सदस्य किस प्रकार चुने जाते थें। सदस्य बनने के लिए जरूरी गुणों और चुनावों में महिलाओं की भागीदारी के नियम भी इस पर लिखे थे। अच्छा आचरण न करने पर अथवा राजकीय धन का ठीक-ठाक हिसाब न पाने पर कोई भी सदस्य पद से हटाया जा सकता था। पदों पर किसी भी सदस्य का कोई निकट सम्बन्धी नियुक्त नहीं किया जा सकता था। मध्य युग में आकर संसद संभा और समिति जैसी संस्थाए गायब हो गई। ऊपर के स्तर पर लोकतन्त्रात्मक संस्थाओं का विकास रूक गया। सैकड़ो वर्षो तक हम आपसी लड़ाइयों में उलझे रहे। विदेशियों के आक्रमण पर आक्रमण होते रहे। सेनाएं हारती-जीतती रहीं। शासक बदलते रहे। हम विदेशी शासन की गुलामी में जकड़े रहे। सिंध से असम तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक पंचायत संस्थाए बराबर चलती रहीं। ये प्रादेशिक, जनपद परिषद्, नगर परिषद्, पौर सभा, ग्राम सभा, ग्राम संघ जैसे अलग अलग नामों से पुकारी जाती रहीं। सत्य में ये पंचायतें ही गांवों की संसद थीं।
भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम, 1947 में भारत की संविधान सभा को पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न निकाय घोषित किया गया। 14-15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को उस सभा ने देश का शासन चलाने की पूर्ण शक्तियाँ ग्रहण कर लीं। अधिनियम की धारा 8 के द्वारा संविधान सभा को पूर्ण विधायी शक्ति प्राप्त हो गई। किन्तु साथ ही साथ यह अनुभव किया गया कि संविधान सभा के संविधान निर्माण के कार्य तथा विधानमंडल के रूप में इसके साधारण कार्य में भेद बनाए रखना जरूरी होगा। संविधान सभा (विधायी) की एक अलग निकाय के रूप में पहली बैठक 17 नवम्बर, 1947 को हुई। इसके अध्यक्ष सभा के प्रधान डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान अध्यक्ष पद के लिए केवल एक नाम श्री जी0वी0मावलंकर का नाम प्राप्त हुआ था इसलिए उन्हें विधिवत चुना हुआ घोषित किया गया। 14 नवम्बर, 1948 को संविधान का प्रारूप संविधान सभा में प्रारूप समिति के सभापति बी0आर0अम्बेडकर ने पेश किया। प्रस्ताव के पक्ष में बहुमत था। 26 जनवरी, 1950 को स्वतन्त्र भारत के गणराज्य का संविधान लागू हो गया। इसके कारण आधुनिक संस्थागत ढांचे और उसकी अन्य सब शाखा-प्रशाखाओं सहित पूर्ण संसदीय प्रणाली स्थापित हो गई। संविधान सभा भारत की अस्थाई संसद बन गई। वयस्क मताधिकार के आधार पर पहले आम चुनावों के बाद नये संविधान के उपबंधों के अनुसार संसद का गठन होने तक इसी प्रकार कार्य करती रही। नये संविधान के तहत पहले आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए। इसके साथ ही विश्व का सबसे बड़ा संविधान और लोकतन्त्र स्थापित हो गया। पहली चुनी हुई संसद जिसके दो सदन थे-राज्य सभा व लोक सभा, मई 1952 में बनी। 1952 में पहली बार गठित राज्य सभा एक निरंतर रहने वाला स्थायी सदन है। जिसका कभी विघटन नहीं होता। हर दो वर्ष पर इसके एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं।
भारतीय लोकतन्त्र में संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है। इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है। जनमत सर्वोपरि है। संसदीय शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतन्त्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे संसद कहते हंै। भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को संसद कहा जाता है। यह वह धुरी है जो देश के शासन की नींव है। भारतीय संसद राष्ट्रपति और दोनों सदनों-राज्य सभा और लोक सभा से मिलकर बनती है। संसदीय शासन का अर्थ होना चाहिए संसद द्वारा शासन किन्तु संसद स्वयं शासन नहीं करती और न ही कर सकती है। मंत्रिपरिषद के बारे में एक तरह से कहा जा सकता है कि संसद की महान कार्यपालिका समिति होती है। जिसे मूल निकाय की ओर से शासन करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है। संसद का कार्य विधान बनाना, मंत्रणा देना, आलोचना करना और लोगों की शिकायतों को व्यक्त करना है। कार्यपालिका का कार्य शासन करना है यद्यपि वह संसद की ओर से ही शासन करती है।
भारत के प्रधानमंत्री व उनका कार्यकाल
सं. नाम कार्यकाल आरंभ कार्यकाल समाप्त राजनैतिक दल
01 जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त, 1947 27 मई, 1964 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
02 गुलजारीलाल नंदा 27 मई, 1964 9 जून, 1964 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
03 लालबहादुर शास्त्री 9 जून, 1964 11 जनवरी, 1966 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
04 गुलजारीलाल नंदा 11 जनवरी, 1966 24 जनवरी, 1966 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
05 इन्दिरा गाँधी 24 जनवरी, 1966 24 मार्च, 1977 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
06 मोरारजी देसाई 24 मार्च, 1977 28 जुलाई, 1979 जनता पार्टी
07 चैधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 14 जनवरी, 1980 जनता पार्टी
08 इन्दिरा गाँधी 14 जनवरी, 1980 31 अक्टूबर, 1984 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
09 राजीव गाँधी 31 अक्टूबर, 1984 2 दिसम्बर, 1989 कांग्रेस आई
10 विश्वनाथ प्रताप सिंह 2 दिसम्बर, 1989 10 नवंबर, 1990 जनता दल
11 चंद्रशेखर 10 नवंबर, 1990 21 जून, 1991 जनता दल
12 नरसिंह राव 21 जून, 1991 16 मई, 1996 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
13 अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई, 1996 1 जून, 1996 भारतीय जनता पार्टी 
14 एच डी देवगौड़ा 1 जून, 1996 21 अप्रैल, 1997 जनता दल
15 इंद्रकुमार गुजराल 21 अप्रैल, 1997 19 मार्च, 1998 जनता दल
16 अटल बिहारी वाजपेयी 19 मार्च, 1998 22 मई, 2004 भारतीय जनता पार्टी 
17 मनमोहन सिंह 22 मई, 2004 22 मई, 2009 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 
18 मनमोहन सिंह 22 मई, 2009 17 मई 2014 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 
19 नरेन्द्र मोदी 26 मई, 2014 अभी तक भारतीय जनता पार्टी

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय
न्यायिक सक्रियता का अर्थ, न्यायपालिका द्वारा निभायी जाने वाली सक्रिय भूमिका है जिसमें राज्य के अन्य अंगों को उनके संवैधानिक कृत्य करने को बाध्य करे। यदि वे अंग अपने कृत्य संपादित करने में सफल रहे तो जनतन्त्र तथा विधि शासन के लिए न्यायपालिका उनकी शक्तियों-भूमिका का निर्वाह सीमित समय के लिए करेगी। यह सक्रियता जनतन्त्र की शक्ति तथा जन विश्वास को पुर्नस्थापित करती है। इस तरह यह सक्रियता न्यायपालिका पर एक असंवेदनशील-गैर जिम्मेदार शासन के कृत्यों के कारण लादा गया बोझ है। यह सक्रियता न्यायिक प्रयास है जो मजबूरी में किया गया है। यह शक्ति उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट के पास है। ये उनकी पुनरीक्षा तथा रिट क्षेत्राधिकार में आती है। जनहित याचिका को हम न्यायिक सक्रियता का मुख्य माध्यम मान सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट, एक तरफ संविधान का संरक्षक, अंतिम व्याख्याकर्ता, मौलिक अधिकारों का रक्षक, केन्द्र-राज्य विवादों में एक मात्र मध्यस्थ है, वहीं यह संविधान के विकास में भी भूमिका निभाता रहा है। इसने माना है कि निरंतर संवैधानिक विकास होना चाहिए ताकि समाज के हित संवर्धित हो। न्यायिक पुनरीक्षण शक्ति के कारण यह संवैधानिक विकास में सहायता करता है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण विकास यह है कि भारत में संविधान सर्वोच्च है। इसने संविधान के मूल ढाँचे का अदभुत सिद्धान्त दिया है जिसके चलते संविधान काफी सुरक्षित हो गया है। इसे मनमाने ढंग से बदला नहीं जा सकता है। इसने मौलिक अधिकारों का भी विस्तार किया है। इसने अनु 356 के दुरूपयोग को भी रोका है। सुप्रीम कोर्ट इस उक्ति का पालन करता है कि संविधान खुद नहीं बोलता है यह अपनी वाणी न्यायपालिका के माध्यम से बोलता है।
भारत के संविधान के खण्ड-दो में अनेकों खण्डों में अनुच्छेद/ धारा के अन्तर्गत संघ और राज्य क्षेत्र, नागरिकता, मौलिक अधिकार, नीति निर्देषक तत्व, मौलिक कत्र्तव्य, संघीय कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका, राज्य की कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका, केन्द्र षासित प्रदेषों को षासन, केन्द्र राज्य प्रबन्ध, व्यापार, वाणिज्य और समागम, संघ और राज्यों के अधीन लोक सेवायें, चुनाव आयोग, कतिपय वर्ग विशेष से सम्बन्धित उपबन्ध, राष्ट्रभाषा और प्रादेशिक भाषा, आपातकाली उपबंध, संविधान की प्रक्रिया इत्यादि है।
रूस से प्रेरित होकर 42वें संशोधन द्वारा भारतीय संविधान के धारा-51(ए) के अन्तर्गत नागरिक का मौलिक कत्र्तव्य जोड़ा गया है जो निम्नलिखित है-
01. स्ंाविधान के प्रति प्रतिबद्धता, इसके आदर्शो, धाराओं, राष्ट्रीय ध्वज व राष्ट्रीय गान का आदर करना।
02. स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतु प्रेरित करने वाले सुआदर्शाे का अनुकरण करना व उन्हें चिरस्थायी बनाना।
03. भारत की सर्वोच्चता, एकता और अखण्डता की रक्षा करना तथा समर्थन करना।
04. जब भी आवश्यकता पड़े देश की रक्षा करना व राष्ट्रीय सेवाओं हेतु समर्पित होना।
05. समाज में भाई-चारें की भावना का विस्तार करना, मातृत्व भाव, धार्मिक, भाषायिक, क्षेत्रीय विभिन्नताओं में एकता कायम करना तथा नारी सम्मान आदि का ध्यान देना।
06. अपने मिश्रित संस्कृति का मूल्यांकन करना उसको स्थायित्व देना और इसकी परम्परा को कायम रखना।
07. प्राकृतिक सम्पदा की रक्षा करना जिसमें जलवायु, जंगल, झील, नदियां, जंगली जीवों व समस्त जीवों के प्रति दया का भाव सम्मिलित है।
08. वैज्ञानिक भावना को प्रोत्साहित करना, मानवीय भावनाओं के स्वरूप की परख करते रहना।
09. जन सम्पत्ति की सुरक्षा करना और हिंसा आदि का परित्याग करना।
10. व्यक्तिगत, सामूहिक गतिविधियों के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वोच्चता हासिल करना, जिससे राष्ट्र शतत उत्थान, प्रयत्न व प्राप्ति की ओर अग्रसर होता रहे।
11. जो कि माता-पिता या अभिभावक हो, वे अपने 6 साल से 14 साल के बच्चों को शिक्षा या अन्य ऐसे सुअवसरों का लाभ उन्हें मुहैया करावें। 

सर्वोच्च न्यायालय का जनहित याचिकाएँ 
जनहित याचिकाओं का विचार अमेरिका में जन्मा, वहाँ इसे सामाजिक कार्यवाही याचिका कहते हैं। यह न्यायपालिका का आविष्कार तथा न्यायाधीश निर्मित विधि है। जनहित याचिका भारत में श्री पी.एन.भगवती ने प्रारम्भ की थी। ये याचिकाएँ जनहित को सुरक्षित तथा बढ़ाना चाहती हैं। ये लोकहित भावना पर कार्य करती है। ये ऐसे न्यायायिक उपकरण हैं जिनका लक्ष्य जनहित प्राप्त करना है। इनका लक्ष्य तीव्र तथा सस्ता न्याय एक आदमी को दिलवाना तथा कार्यपालिका-विधायिका को उनके संवैधानिक कार्य करवाने हेतु किया जाता है। ये समूह हित में काम आती हैं, न कि व्यक्ति हित में। यदि इनका दुरूपयोग किया जाये ता याचिकाकर्ता पर जुर्माना तक किया जा सकता है। इनको स्वीकारना या न स्वीकारना न्यायालय पर निर्भर करता है। इनकी स्वीकृति हेतु सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नियम बनाये हैं-
1. लोकहित से प्रेरित कोई भी व्यक्ति और संगठन इसे ला सकता है।
2. कोर्ट को दिया गया पोस्टकार्ड भी रिट याचिका मानकर ये जारी की जा सकती है।
3. कोर्ट को अधिकार होगा कि वह इस याचिका हेतु सामान्य न्यायालय शुल्क भी माफ कर दे।
4. ये राज्य के साथ ही निजी संस्थान के विरूद्ध भी लायी जा सकती है।
देश के हर नागरिक को संिवधान की ओर से छह मूल अधिकार दिए गए है। ये हैं-1.समानता का अधिकार, 2.स्वतंत्रता का अधिकार, 3.शोषण के खिलाफ अधिकार, 4.संस्कृित और शिक्षा का अधिकार, 5.धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और 6.मूल अधिकार पाने का रास्ता।
अगर किसी नागरिक (आम आदमी) के किसी भी मूल अधिकार का हनन हो रहा है, तो वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मूल अधिकार के के लिए गुहार लगा सकता है। वह अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट का और अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। अगर यह मामला निजी न होकर व्यापक जनिहत से जुड़ा है तो याचिका को जनिहत याचिका के तौर पर देखा जाता है। पीआईएल डालने वाले शख्स को अदालत को यह बताना होगा कि कैसे उस मामले में आम लोंगो का हित प्रभावित हो रहा है? अगर मामला निजीहित से जुड़ा है या निजी तौर पर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा है तो उसे जनिहत याचिका नहीं माना जाता। ऐसे मामलों में दायर की गईं याचिका को पर्सनल इन्टरेस्ट लिटिगेशन कहा जाता है और इसी के तहत उसकी सुनवाईं होती है। दायर की गई याचिका जनहित है कि नहीं, इसका फैसला कोर्ट ही करता है।
पीआईएल में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सरकार को उचित निर्देश जारी करती है। यानी पीआईएल के जरिए लोग जनहित के मामलों में सरकार को अदालत से निर्देश जारी करवा सकते हैं।
कहाँ दखिल होती है पी.आई.एल
पीआईएल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती है। इससे नीचे की अदालतों में पीआईएल दािखल नहीं होती। कोई भी पीआईएल आमतौर पर पहले हाई कोर्ट में ही दािखल की जाती है। वहां से अर्जी खारिज होने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है। कई बार मामला व्यापक जनिहत से जुड़ा होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट सीधे भी पीआईएल पर अनुच्छेद-32 के तहत सुनवाई करती है।

कैसे दािखल करें पी.आई.एल
1. लेटर (पत्र) के जरिये
अगर कोई शख्स आम आदमी से जुड़े मामले में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखता है, तो कोर्ट देखता है कि क्या मामला वाकई आम आदमी के हित से जुड़ा है। अगर ऐसा है तो उस लेटर को ही पीआईएल के तौर पर लिया जाता है और सुनवाई होती है।
लेटर में यह बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनिहत से जुड़ा है और याचिका में जो भी मुद्दे उठाए गए हैं, उनके हक में पुख्ता सबूत क्या हैं। अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भी लेटर के साथ लगा सकते हैं। लेटर जनिहत याचिका में तब्दील होने के बाद संबंिधत पक्षों को नोटिस जारी होता है और याचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है। सुनवाई के दौरान अगर याचिकाकर्ता के पास वकील न हो तो कोर्ट वकील मुहैया करा सकती है।
लेटर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम लिखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम भी यह लेटर लिखा जा सकता है। लेटर हिन्दी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। यह हाथ से लिखा भी हो सकता है और टाइप किया हुआ भी। लेटर डाक से भेजा जा सकता है। जिस हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से संबंिधत मामला है, उसी को लेटर लिखा जाता है। लिखने वाला कहाँ रहता है, इससे कोई मतलब नहीं है।
दिल्ली से संबंिधत मामलों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में, फरीदाबाद और गुड़गांव से संबधित मामलों के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में और यूपी से जुड़े मामलों के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में लेटर लिखना होगा। लेटर लिखने के लिए कोर्ट के पते इस तरह हैं-
1.चीफ जस्टिस 2.चीफ जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंिडया दिल्ली हाई कोर्ट,
तिलक मार्ग, नई दिल्ली-110001 शेरशाह रोड, नई दिल्ली-110003

3.चीफ जस्टिस 4.चीफ जस्टिस
इलाहाबाद हाई कोर्ट पंजाब एण्ड हरियाणा हाई कोर्ट
1, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग, इलाहाबाद सेक्टर 1, चंडीगढ़

लेटर (पत्र) का प्रारूप
पत्र निम्न प्रकार प्रारम्भ करें और निचे अपना नाम और पता लिखें-

दिनांक-....................................

सेवा में,
मुख्य न्यायाधीश
सर्वोच्च न्यायालय, भारत
तिलक मार्ग, नई दिल्ली-110001

विषय-.......................................................................................................................................................................

माननीय महोदय,
...................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................

पूर्ण सम्मान के साथ
दिनांक- प्रार्थी (याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर)
पूरा पता- (पूरा नाम)

2. वकील के जरिये
कोई भी शख्स वकील के मदद से जनहित याचिका दायर कर सकता है। वकील याचिका तैयार करने में मदद करते हैं। याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरह उसे ड्राफ्ट किया जाएगा, इन बात के लिए वकील की मदद जरूरी है। पीआईएल दायर करने के लिए कोई फीस नहीं लगती। इसे सीधे काउंटर पर जाकर जमा करना होता है। हां, जिस वकील से इसके लिए सलाह ली जाती है, उसकी फीस देनी होती है। पीआईएल ऑनलाइन दायर नहीं की जा सकती।
कोर्ट का खुद संज्ञान
अगर मीडिया में जनिहत से जुड़े मामले पर कोई खबर छपे, तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अपने आप संज्ञान ले सकती है। कोर्ट उसे पीआईएल की तरह सुनती है और आदेश पारित करती है।

भारतीय सम्मान और पदक
1. नागरिक
अ. अंतर्राष्ट्रीय-गाँधी शांति पुरस्कार, इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार, इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार
ब. राष्ट्रीय-भारत रत्न, पद्म पुरस्कार-(पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री), राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार
राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिये)
स. केंद्रीय -महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, गंगाशरण सिंह पुरस्कार, गणेश विद्यार्थी पुरस्कार
आत्माराम पुरस्कार, सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार, डॉ.जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार
पद्मभूषण डॉ॰ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार
2. विभिन्न श्रेणियों में
अ. साहित्य-ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार
ब. चलचित्र-दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, भारतीय फिल्म हस्ती का शताब्दी पुरस्कार
स. अन्य कलाएँ-संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 
द. खेल-राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार (प्रशिक्षण)
ध्यानचंद पुरस्कार (आजीवन उपलब्धियों के लिये)
राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार
य. विज्ञान और प्रौद्योगिकी-शांति स्वरूप भटनागर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पुरस्कार
र. चिकित्सा-डॉ.बी.सी.राय पुरस्कार
ल. ब्लॉग-परिकल्पना सम्मान
व. सेना
युद्ध के समय-परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र
शांति के समय-अशोक चक्र, कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र
युद्ध अथवा शांति में सेवा एवं वीरता के लिये-सेना पदक, नौ सेना पदक, वायु सेना पदक
युद्ध में विशिष्ट सेवा के लिये-सर्वोत्तम युद्ध सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक
शांति में विशिष्ट सेवा के लिये-परम विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, विशिष्ट सेवा पदक
श. अन्य-वेब रत्न पुरस्कार, प्रवासी भारतीय सम्मान

भारत रत्न
”भारत रत्न“ देश का सर्वोच्च सम्मान है। इस अलंकरण से उन व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है जिन्होंने देश के किसी भी क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किए हों, अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य कर हमारे देश का गौरव बढ़ाया और हमारे देश को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई। भारत रत्न उच्चतम नागरिक सम्मान है जो कला, साहित्य, विज्ञान, राजनीतिज्ञ, विचारक, वैज्ञानिक, उद्योगपति, लेखक और समाजसेवी को असाधारण सेवा के लिए तथा उच्च लोक सेवा को मान्यता देने के लिए भारत सरकार की ओर से दिया जाता है। ”भारत-रत्न“ ऐसी विभूतियों का चरित्र-चित्रण है जिनके बिना देश का इतिहास अधूरा है।
यह प्रतिवर्ष दिया जाने वाला अलंकरण नहीं। यह किसी व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व और देश के प्रति उसकी अत्यन्त समर्पण भावना के लिए यदा-कदा दिया जाने वाला अलंकरण है। यह उन आदर्श महान पुरुषों को ही दिया जाता है जिनकी जीवन गाथा पुण्य-भागीरथी के समान है, जिसे जानकर एक साधारण मनुष्य अपने आप को पाप मुक्त और निर्मल पाता है। ”भारत-रत्न“ में ऐसी विभूतियों के दिव्य चरित्र हैं जिन्होंने जीवन को इतनी ऊँचाइयों तक पहुँचाया जहाँ की कोई कल्पना नहीं कर सकता। संभवत-इकबाल ने ऐसे ही महान पुरुषों के लिए कहा था-
”खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है“ 
”भारत-रत्न“ अनेक महान व्यक्तियों की जीवन-गाथा के साथ यह भारत के उस काल का इतिहास भी है, जिस काल से इन आदर्श पुरुषों का संबंध रहा। ”भारत-रत्न“ केवल राजनेताओं का ही नहीं वरन् इसमें वे लोग भी सम्मिलित हैं जिन्होंने देश को नई उपलब्धि दी और देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करने का यत्न किया।
पदक
मूल रूप में इस सम्मान के पदक का डिजाइन 35 मि.मि.गोलाकार स्वर्ण मैडल था। जिसमें सामने सूर्य बना था, ऊपर हिन्दी में भारत रत्न लिखा था, और नीचे पुष्प हार था। और पीछे की तरफ राष्ट्रीय चिह्न और मोटो था। फिर इस पदक के डिजाइन को बदल कर तांबे के बने पीपल के पत्ते पर प्लेटिनम का चमकता सूर्य बना दिया गया। जिसके नीचे चाँदी में लिखा रहता है ”भारत रत्न“ और यह सफेद फीते के साथ गले में पहना जाता है।
इतिहास
यह पुरस्कार 2 जनवरी 1954 को प्रारम्भ किया गया था। यह पुरस्कार भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद द्वारा घोषित किया गया था। दूसरे अलंकरणों के भाँति इस सम्मान को भी, नाम के साथ पदवी के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। शुरू में इस सम्मान को मरणोपरांत नहीं दिया जाता था, किंतु 1955 के बाद यह निर्णय लिया गया और यह मरणोपरांत भी दिया जाने लगा। 13 जुलाई, 1977 से 26 जनवरी, 1980 तक इस पुरस्कार को स्थगित कर दिया गया था।
परम्परा
भारत रत्न पुरस्कार की परम्परा 1954 में शुरू हुई थी।
01. भारत रत्न 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है।
02. सबसे पहला पुरस्कार प्रसिद्ध वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन को दिया गया था। तब से अनेक विशिष्ट जनों को अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता पाने के लिए यह पुरस्कार प्रस्तुत किया गया है।
03. जनता पार्टी द्वारा इस पुरस्कार को 1977 में बंद कर दिया गया था किंतु 1980 में कांग्रेस सरकर ने इसे फिर से दोबारा शुरू किया।
04. 1980 में दोबारा शुरू होने पर इसे सर्वप्रथम मदर टेरेसा ने प्राप्त किया था।
05. हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति, वैज्ञानिक डॉ0 ए.पी.जे.अब्दुल कलाम को भी 1997 में यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया।
06. इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है कि ”भारत रत्न“ केवल भारतीय नागरिकों को ही दिया जाएगा।
07. यह पुरस्कार स्वाभाविक रूप से भारतीय नागरिक बन चुकी एग्नेस गोंखा बोजाखियू, जिन्हें हम मदर टेरेसा के नाम से जानते हैं, को दिया गया।
08. दो अन्य अभारतीय-खान अब्दुलगफ्फार खान को 1987 में और नेल्सन मंडेला को 1990 में यह पुरस्कार दिया गया।
09. यह भी अनिवार्य नहीं है कि भारत रत्न सम्मान प्रतिवर्ष दिया जाएगा।
10. मरणोपरांत सर्वप्रथम लालबहादुर शास्त्री को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
11. श्री सत्यपाल आनन्द ने राजीव गाँधी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की प्रक्रिया को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
विरोधाभास
01. स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को 1992 में भारत रत्न से मरणोपरान्त सम्मानित किया गया था। किंतु उनकी मृत्यु विवादित होने के कारण अनेक प्रश्नों को उठाया गया था। अतः भारत सरकार ने यह पुरस्कार वापस ले लिया था। यह पुरस्कार वापस लेने का यह एकमात्र उदाहरण है।
02. स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को जब भारत रत्न दिया गया तो उन्होंने इसका विरोध किया। उनका विचार था कि इसकी चयन समिति में रहे व्यक्ति को यह सम्मान नहीं दिया जाना चाहिये। 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया।
भारत रत्न सम्मानित व्यक्तित्व सूची
क्रम वर्ष नाम जीवन कार्य क्षेत्र
01 1954 डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन 5 सितंबर 1888-17 अप्रैल 1975 दार्शनिक
द्वितीय राष्ट्रपति, भारत  
02 1954 चक्रवर्ती राजगोपालाचारी 10 दिसंबर 1878-25 दिसंबर 1972 स्वतंत्रता सेनानी
अंतिम गवर्नर जनरल
03 1954 डॉ.सी.वी.रमन 7 नवंबर 1888-21 नवंबर 1970 भौतिकशास्त्री
नोबेल पुरस्कार विजेता
04 1955 डॉक्टर भगवान दास 12 जनवरी 1869-18 सितंबर 1958 स्वतंत्रता सेनानी, लेखक  
05 1955 डॉ.मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या 15 सितंबर 1861-14 अप्रैल 1962 सिविल इंजीनियर
मैसूर के दीवान  
06 1955 पं.जवाहर लाल नेहरू 14 नवंबर 1889-27 मई 1964 स्वतंत्रता सेनानी, लेखक
प्रथम प्रधानमंत्री, भारत
07 1957 गोविंद बल्लभ पंत 10 सितंबर 1887-7 मार्च 1961 स्वतंत्रता सेनानी
प्रथम मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश 
द्वितीय गृहमंत्री, भारत  
08 1958 डॉ.धोंडो केशव कर्वे 18 अप्रैल 1858-9 नवंबर 1962 शिक्षक, समाजसुधारक  
09 1961 डॉ.बिधान चंद्र राय 1 जुलाई 1882-1 जुलाई 1962 चिकित्सक
मुख्यमंत्री, पश्चिमी बंगाल
10 1961 पुरुषोत्तम दास टंडन 1 अगस्त 1882-1 जुलाई 1962 स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक  
11 1962 डॉ.राजेंद्र प्रसाद 3 दिसंबर 1884-28 फरवरी 1963 स्वतंत्रता सेनानी, विधिवेत्ता
प्रथम राष्ट्रपति, भारत  
12 1963 डॉ.जाकिर हुसैन 8 फरवरी 1897-3 मई 1969 विद्वान
तृतीय राष्ट्रपति, भारत  
13 1963 डॉ.पांडुरंग वामन काणे 1880-1972 भारतविद, संस्कृत विद्वान  
14 1966 लाल बहादुर शास्त्री 2 अक्तूबर 1904-11 जनवरी 1966, स्वतंत्रता सेनानी
तृतीय प्रधानमंत्री, भारत 
(मरणोपरान्त)  
15 1971 इंदिरा गाँधी 19 नवंबर 1917-31 अक्तूबर 1984
चतुर्थ प्रधानमंत्री, भारत  
16 1975 वराहगिरी वेंकट गिरी 10 अगस्त 1894-23 जून 1980 श्रमिक संघवादी
चतुर्थ राष्ट्रपति, भारत
17 1976 के.कामराज 15 जुलाई 1903-1975, स्वतंत्रता सेनानी
मुख्यमंत्री-मद्रास
(मरणोपरान्त)
18 1980 मदर टेरेसा 26 अगस्त 1910-5 सितंबर 1997 कॅथोलिक नन 
मिशनरीज संस्थापक 
नोबेल पुरस्कार विजेता
19 1983 आचार्य विनोबा भावे 11 सितंबर 1895-15 नवंबर 1982 स्वतंत्रता सेनानी
समाज सुधारक
(मरणोपरान्त)  
20 1987 खान अब्दुलगफ्फार खान 20 जनवरी 1890-1988 स्वतंत्रता सेनानी
प्रथम अ-भारतीय प्राप्तकर्ता  
21 1988 मरुदुर गोपालन रामचन्द्रन 17 जनवरी 1917-24 दिसंबर 1987, अभिनेता
मुख्यमंत्री, तमिलनाडु
(मरणोपरान्त)  
22 1990 डॉ.भीमराव आम्बेडकर 14 अप्रैल 1891-6 दिसंबर 1956 भारतीय संविधान के वास्तुकार
राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, विद्वान, 
(मरणोपरान्त)  
23 1990 नेल्सन मंडेला 18 जुलाई 1918, रंगभेद विरोधी आंदोलन के नेता
द्वितीय अभारतीय प्राप्तकर्ता 
नोबेल पुरस्कार विजेता
24 1991 राजीव गाँधी 20 अगस्त1944-21 मई 1991 सातवें प्रधानमंत्री, 
(मरणोपरान्त)
25 1991 सरदार वल्लभ भाई पटेल 31 अक्तूबर 1875-15 दिसंबर 1950 स्वतंत्रता सेनानी
प्रथम गृहमंत्री, भारत 
(मरणोपरान्त)  
26 1991 मोरारजी देसाई 29 फरवरी 1896-10 अप्रैल 1995 स्वतंत्रता सेनानी
पांचवे प्रधानमंत्री, भारत  
27 1992 मौ0 अबुल कलाम आजाद 11 नवंबर 1888-22 फरवरी 1958 स्वतंत्रता सेनानी
प्रथम शिक्षामंत्री, भारत
(मरणोपरान्त)  
28 1992 जे.आर.डी.टाटा 29 जुलाई 1904-29 नवंबर 1993 उद्योगपति 
(मरणोपरान्त)  
29 1992 सत्यजीत रे (राय) 2 मई 1921-23 अप्रैल 1992 फिल्म निर्माता-निर्देशक  
30 1997 डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम 15 अक्तूबर 1931 वैज्ञानिक ग्यारहवें राष्ट्रपति, भारत  
31 1997 गुलजारीलाल नन्दा 4 जुलाई 1897-15 जनवरी 1998 स्वतंत्रता सेनानी
दो बार कार्यवाहक 
प्रधानमंत्री, भारत  
32 1997 अरुणा आसफ अली 16 जुलाई 1909-29 जुलाई 1996 स्वतंत्रता सेनानी
(मरणोपरान्त)
33 1998 एम.एस.सुब्बालक्ष्मी 16 सितंबर 1916-11 दिसंबर 2004 गायिका शास्त्रीय संगीत  
34. 1998 सी.सुब्रह्मण्यम 30 जनवरी 1910-7 नवंबर 2000 स्वतंत्रता सेनानी, कृषि मंत्री, भारत
35 1998 जयप्रकाश नारायण 11 अक्तूबर 1902-8 अक्तूबर 1979 स्वतंत्रता सेनानी
राजनीतिज्ञ
(मरणोपरान्त)  
36 1999 पं.रवि शंकर 7 अप्रैल 1920 सितार वादक  
37 1999 अमर्त्य सेन 3 नवंबर 1933 अर्थशास्त्री, 
नोबेल पुरस्कार विजेता
38 1999 गोपीनाथ बोरदोलोई 1890-1950 स्वतंत्रता सेनानी
मुख्यमंत्री-असम
(मरणोपरान्त)  
39 2001 लता मंगेशकर 28 सितंबर 1929 पार्श्वगायिका  
40 2001 उस्ताद बिस्मिल्ला खां 21 मार्च 1916-21 अगस्त 2006 शहनाई वादक
41 2008 पं.भीमसेन जोशी 4 फरवरी 1922-24 जनवरी 2011 शास्त्रीय गायक  
42 2013 प्रो.सी.एन.आर.राव 30 जून, 1934 रसायन वैज्ञानिक  
43 2013 सचिन तेंदुलकर 24 अप्रैल, 1973 क्रिकेट खिलाड़ी
44 2014 मदन मोहन मालवीय 25 दिसंबर, 1861-12 नवंबर, 1946 राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता आंदोलन नेता
(मरणोपरान्त) और पत्रकार  
45 2014 अटल बिहारी वाजपेयी 25 दिसंबर, 1924 ़ राजनीतिज्ञ
प्रधानमंत्री, भारत

श्री लव कुश सिंह “विश्वमानव” द्वारा स्पष्टीकरण
“रत्न” उसे कहते हैं जिसका अपना व्यक्तिगत विलक्षण गुण-धर्म हो और वह गुण-धर्म उसके न रहने पर भी प्रेरक हो। पद पर पीठासीन व्यक्तित्व का गुण-धर्म मिश्रित होता है, वह उसके स्वयं की उपलब्धि नहीं रह जाती। भारत के रत्न वही हो सकते हैं जो स्वतन्त्र भारत में संवैधानिक पद पर न रहते हुये अपने विलक्षण गुण-धर्म द्वारा भारत को कुछ दिये हों और उनके न रहने पर भी भारतीय नागरिक प्रेरणा प्राप्त करता हो। इस क्रम में ”भारत रत्न“ का अगला दावेदार मैं हूँ और नहीं तो क्यों? इतना ही नहीं नोबेल पुरस्कार के साहित्य और शान्ति के संयुक्त पुरस्कार के लिए भी योग्य है जो भारत के लिए गर्व का विषय है।
भारत रत्न पुरस्कार 2 जनवरी 1954 को प्रारम्भ किया गया था। सामान्यतः कोई कानून या व्यवस्था बनने के बाद उस दिन से ही लागू होता है जिस दिन से प्रारम्भ होता है। और उन सब पर प्रभावी होता है जो जिवित हैं और कत्र्तव्यरत हैं। परन्तु भारत रत्न पुरस्कार व्यवस्था बनने के बाद 3 (सरदार वल्लभ भाई पटेल, गोपीनाथ बोरदोलोई, मदन मोहन मालवीय) ऐसे व्यक्तित्व को यह पुरस्कार दिया गया जो भारत रत्न व्यवस्था बनने के पहले ही जन्मे और उनकी मृत्यु भी हो गयी। इसमें कोई शक नहीं कि वे इसके योग्य नहीं थे। परन्तु इस अनुसार तो भारत के निर्माण में योगदान देने वाले अनेकों प्रतिभाशाली व्यक्तित्व हो चुके हैं। इसका प्रायश्चित मात्र इससे ही हो सकता है कि हम ”विस्मृत भारत रत्न स्मारक“ का निर्माण कर संयुक्त रूप से ऐसे व्यक्तित्व को याद करें जिन्हें हम वर्तमान में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित नहीं कर सकते। 
सम्पूर्ण भारत की बुद्धि भूतकाल में चल रही है जिसका सबसे बड़ा प्रमाण प्रतिभा की पहचान मृत्युपरान्त करना और पुरस्कृत करना है। “भारत रत्न” पुरस्कार कोई फैशन शो और धन कुबेर का मेरिट लिस्ट नहीं जो वस्त्र, शरीर और धन से प्राप्त किया जाता है। यह भारत और इस पृथ्वी के कल्याण के लिए किये गये कार्य का पुरस्कार है, कार्य करो और पा लो, यह सबके लिए अवसर है।
प्रस्तुत विश्वशास्त्र द्वारा अनेक नये विषय की दिशा प्राप्त हुई है जो भारत खोज रहा था। इन दिशाओं से ही ”आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विरासत के आधार पर एक भारत-श्रेष्ठ भारत निर्माण“, मन (मानव संसाधन) का विश्वमानक, पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी, हिन्दू देवी-देवता मनुष्यों के लिए मानक चरित्र, सम्पूर्ण विश्व के मानवों व संस्था के कर्म शक्ति की एकमुखी करने के लिए सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित एक प्रबन्ध और क्रियाकलाप, एक जीवन शैली इत्यादि प्राप्त होगा। भारत सरकार को वर्तमान करने के लिए इन आविष्कारों की योग्यता के आधार पर मैं (लव कुश सिंह ”विश्वमानव“), स्वयं को भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ”भारत रत्न“ के योग्य पाता हूँ क्योंकि ऐसे ही कार्यो के लिए ही ये सम्मान बना है। और इसे मेरे जीते-जी पहचानने की आवश्यकता है। शरीर त्याग के उपरान्त ऐसे सम्मान की कोई उपयोगिता नहीं है। भारत में इतने विद्वान हैं कि इस पर निर्णय लेने और आविष्कार की पुष्टि में अधिक समय नहीं लगेगा क्योंकि आविष्कारों की पुष्टि के लिए व्यापक आधार पहले से ही इसमें विद्यमान है।
-लव कुश सिंह ”विश्वमानव“
आविष्कारक-”मन का विश्वमानक-शून्य (WS-0) श्रंृखला और 
पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी-WCM-TLM-SHYAM.C
अगला दावेदार-भारत सरकार का सर्वोच्च नागरिक सम्मान-”भारत रत्न“



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