Wednesday, April 8, 2020

डब्ल्यू.एस.(WS)-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक

डब्ल्यू.एस.(WS)-00 : विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक
(WS-00 : World Standard of Defination of
Subject & Specialist)

आत्यात्मिक आधारः
1. सत् का कारण असत् कभी नहीं हो सकता। शून्य से किसी वस्तु का उद्भव नही, कार्य-कारणवाद सर्वशक्तिमान है और ऐसा कोई देश-काल ज्ञात नहीं, जब इसका अस्तित्व नहीं था। यह सिद्धान्त भी उतना ही प्राचीन है, जितनी आर्य जाति। इस जाति के मन्त्र द्रष्टा कवियों ने उसका गौरव गान गया है। इसके दार्शनिकों ने उसको सूत्रबद्ध किया और उसको वह आधारशिला बनायी, जिस पर आज का भी हिन्दू अपने जीवन का समग्र योजना स्थिर करता है। -स्वामी विवेकानन्द (भारत का ऐतिहासिक क्रम विकास, पृष्ठ-1)

2. चाहे जिस विद्या में हो, प्रकृत सत्य में कभी परस्पर विरोध रह नहीं सकता। आभ्यन्तर सत्य समूह के साथ बाह्य सत्य समूह का समन्वय है। -स्वामी विवेकानन्द (धर्म विज्ञान, पृष्ठ-11)

3. क्रिया-कारण सिद्वान्त ही सर्वशक्तिमान है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड क्रिया का क्षेत्र है तथा इसके अतीत, कारण का ज्ञान ही देश-काल मुक्त अदृश्य व्यक्तिगत प्रमाणित सत्य-धर्म का सर्वस्व है एवम् क्रिया देश-काल मुक्त सार्वजनिक प्रमाणित सत्य ज्ञान है। क्रिया की प्रक्रिया का ज्ञान ही विज्ञान है। क्रिया ही प्राकृतिक सत्य, सर्वव्यापी, अटलनीय, अपरिवर्तनीय, विवादमुक्त और सर्वमान्य है। सार्वजनिक प्रमाणित सत्य है जिसे भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण ने ”परिवर्तन ही संसार का नियम है“ से सम्बोधित किया। दृश्य पदार्थ वैज्ञानिक आइन्सटाइन ने म्त्रडब्2 से सिद्व किया और वर्तमान भौतिक युग ने ”इस ब्रह्माण्ड में कुछ भी स्थिर नही है“ को व्यक्त किया। यह पुन-”आदान-प्रदान के शब्द से व्यक्त किया जा रहा है। यही शब्द सम्पूर्ण मानक का विषय व सूत्र है। -लव कुश सिंह ”विश्वमानव“

इस प्रकार ”आदान-प्रदान“ शब्द सम्पूर्ण मानक का विषय अर्थात् विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्व मानक का मूल सार्वजनिक प्रमाणित सूत्र है जिससे सभी विषयों एवम् विशेषज्ञों को परिभाषित किया जा सकता है।

रूप या मार्ग या प्रमाण या काल या सत्य

प्रत्येक विषय के सत्य अर्थ को प्रकाशित होने के चार चरण होते है जिन्हें रूप या प्रमाण या मार्ग या काल कहते हैं। ये चरण एक ही व्यक्ति के मन स्तर के रूप में सर्वप्रथम व्यक्त होते हुए सम्पूर्ण विश्व में व्यक्त होते हैं। सम्पूर्ण विश्व की चरण की स्थिति के अनुसार व्यक्ति का होना ही व्यक्ति का वर्तमान में होना कहा जाता है तथा विशयों का वर्तमान सत्य अर्थ होता है। 
दैनिक जीवन में प्रमाणिकता के लिए सामान्यत-दो गवाहों को आवश्यक बताया जाता है। इसी प्रकार समिति, विधानसभा, संसद इत्यादि के माध्यम से कोई भी नियम बनाने के लिए कुल सदस्यों की संख्या का दो तिहाई संख्या का समर्थन आवश्यक होता है। ऐसा क्यों है? क्या ऐसा निर्धारण करने वाले व्यक्ति ने अनायास ही ऐसा निर्धारण कर दिया है या इसके कुछ मानवीय-प्राकृतिक आधार हैं? प्राय-जो नियम बन जाते हैं, हम उसका पालन और उसी रुप में उसे स्वीकार कर लेते हैं। हम ये नहीं जानना चाहते कि उसका आधार क्या है? जबकि उसका आधार ही सत्य जीने की कला प्रदान करता है। यहाँ हम गवाह में दो तथा नियम बनाने में दो तिहाई बहुमत की संख्या ही क्यों मान्य होती है? उसके मानवीय-प्राकृतिक आधार को प्रस्तुत कर रहे हैं जिससे मनुष्य अपनी वास्तविक छवि को इच्छानुसार छुपा या स्थापित कर सकता है। साथ ही किसी भी स्तर के समिति के भविष्य के समय को पहचानने में सक्षम हो सकता है।
प्रमाण के मूलत-दो प्रकार हैं-अदृश्य तथा दृश्य। तथा प्रत्येक प्रकार के प्रमाणों में पुन-दो प्रकार होते हैं-व्यक्तिगत प्रमाणित तथा सार्वजनिक प्रमाणित। इस प्रकार से कुल चार प्रकार के प्रमाण होते हैं। जो क्रमश-निम्नलिखित रुप से विस्तृत है।
व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्रमाण की स्थिति वह स्थिति है जिसमें नितान्त एकाकी व्यक्तिगत दृष्टि या सोच या कर्म हो या दो व्यक्तियों का आपसी व्यवहार जिसमें तीसरा व्यक्ति प्रमाण स्वरुप उपलब्ध नहीं होता है। ऐसी स्थिति में या तो एक ही व्यक्ति कर्ता या वक्ता व द्रष्टा या श्रोता होता है या दो व्यक्ति एक दूसरे के लिए कर्ता या वक्ता व द्रष्टा व श्रोता होते हैं। परिणामस्वरुप ऐसी स्थिति के तथ्य सर्वाधिक विवादास्पद होते हेैं उदाहरण रुप में 
प्रथम-ऐसी स्थिति हो सकती है कि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के समक्ष अपना वास्तविक रुप दिखाए तथा किसी अन्य के समक्ष ऐसा व्यवहार करे जिससे उसकी छवि नकारात्मक दिखाई दे परिणामस्वरुप देखने वाला व्यक्ति आजीवन अंधेरे में ही पड़ा रह सकता है या उसे पूर्ण रुप से जानने वाला बन सकता है। 
द्वितीय-ऐसी स्थिति हो सकती है कि कोई व्यक्ति अन्य किसी व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य स्थिति के कर्म से प्राप्त सूचना के आधार पर उस व्यक्ति को देखेगा और समझेगा। 
तीसरी-ऐसी स्थिति हो सकती है कि दो व्यक्तियों के बीच मौखिक व्यवहार हो और उसमें से एक व्यक्ति अपनी नैतिकता खोकर लाभ के लिए लेन-देन में परिवर्तित बात करता हो। ऐसी स्थिति में वास्तविक बात का कोई प्रमाण नहीं रहता परिणामस्वरुप विवाद की स्थिति आ जाती है। परन्तु यदि कोई तीसरा व्यक्ति वहाँ होेता या लिखित प्रमाण होता तो ऐसी स्थिति की सम्भावना नहीं बन पाती। इसलिए ही प्राय-गम्भीर मामलों में प्रामाणिकता के लिए प्रत्येक संविदा या घटना के साथ दो गवाहों की अनिवार्यता निर्धारित की गयी है। परन्तु साधारण व्यवहार में नैतिकता ही सर्वोपरि है क्योंकि छोटी-छोटी बातों का प्रत्येक के लिए गवाह न तो सम्भव होता है, न ही मानवीय दृष्टि से विश्वसनीयता के लिए उचित। 
सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य प्रमाण की स्थिति वह स्थिति है जिसमें प्रकृति या ब्रह्माण्ड की दृष्टि या कर्म हो जो सार्वजनिक प्रमाणित रुप से दिखाई तो पड़ती है। परन्तु प्रमाणिक रुप से प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग अपने मन स्तर से अनुभव करता है। उदाहरण स्वरुप-प्रकृति या ब्रह्माण्ड द्वारा अपने सन्तुलन को बनाये रखने के लिए विभिन्न क्रियाकलाप जिसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं। यह क्यों होता है? यह सार्वजनिक रुप से प्रमाणित नहीं है। परन्तु व्यक्तिगत रुप से यह प्रमाणित है कि प्रकृति में व्याप्त तीन गुण सत्व, रज और तम में से जब रज और तम का संयुक्त बल अधिक होता है तब सत्व अपना हस्तक्षेप करके सन्तुलन बनाये रखता है। मानवीय प्रकृति में भी ये तीन गुण व्याप्त हैं। किसी भी समिति, विधानसभा, संसद इत्यादि के सदस्यों में ये तीनों गुण न्यूनाधिक प्राथमिकता लिए विद्यमान रहती है। इसलिए जब भी कोई नियम बनाने की आवश्यकता होती है तब नियम पर अपनी सहमति देने के लिए कुल तीन में से दो अर्थात् दो तिहाई समर्थन आवश्यक होता है। अर्थात् सदस्य सत्व-रज, या सत्व-तम, या रज-तम की संयुक्त शक्ति से समर्थन प्रदान करते हैं। परन्तु रज-तम गुण प्रधान बनने की स्थिति में सत्व-सत्व गुण प्रधान (राष्ट्रपति, राज्यपाल, अध्यक्ष इत्यादि यदि वे इस योग्य होते हैं तब) का हस्तक्षेप हो जाता है। प्रकृति में व्याप्त तीन गुण के कारण ही नियम बनाने में दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता अनिवार्य मानी गयी है। प्रत्येक समिति, विधानसभा, संसद में नियमों पर सहमति के आधार पर यह जाना जा सकता है कि वह समिति, सभा या संसद किन गुणों की प्राथमिकता में चल रहा है। और सत्व-सत्व गुण का हस्तक्षेप का समय क्या हो सकता है। सत्व-रज गुण आधारित सभा उच्चस्तरीय, सत्व-तम गुण आधारित सभा मध्यम तथा रज-तम आधारित सभा निम्नस्तरीय होती है। सत्व गुण एकात्म प्रधान, रज गुण कर्म प्रधान तथा तम गुण शरीर प्रधान गुण है। 
व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य प्रमाण की स्थिति वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति की दृष्टि या कर्म हो जो सार्वजनिक प्रमाणिक रुप से दिखाई तो पड़ती है परन्तु प्रमाणिक रुप से प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग अपने मन स्तर से अनुभव करता है। इस प्रमाण में कर्ता व्यक्ति स्वयं को आत्मीय सत्य केे अनुसार समझते हुए कर्म करता है तथा व्यक्ति को नियमबद्ध करने के लिए सार्वजनिक रुप से समर्थन प्राप्त नहीं करता क्योंकि सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्तियों की प्रकृति का व्यक्तिगत रुप से अलग-अलग वह परीक्षण कर चुका होता है। इस प्रमाण का उदाहरण श्रीकृष्ण का जीवन है। जिनसे ”महाभारत“ सम्पन्न हुआ और ”गीता“ उपदेश व्यक्त हुआ। गीता का उपदेश अर्थात्् श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य प्रमाण का ही उदाहरण है। क्योंकि घटना सार्वजनिक प्रमाणित रुप से दिख रही थी परन्तु संवाद को एक साथ दो या अधिक व्यक्ति नहीं सुन रहे थे। यदि सुन भी रहे थे तो वे एक साथ नहीं थे अर्थात्् सुनने वाले भी एक दूसरे से अलग थे। इस उपदेश को देखने व सुनने में 
पहला स्थान-सिर्फ अर्जुन अकेले देख व सुन रहा था। 
दूसरा स्थान-वृक्ष पर धड़ से अलग बरबरीक का सिर सिर्फ देख रहा था। 
तीसरा स्थान-दिव्य दृष्टि के द्वारा संजय अकेले देखकर साथ बैठे अन्धे धृतराष्ट्र व अन्धी बनीं गान्धारी को वर्णन सुना रहा था। 
चैथा स्थान-दोनों पक्षों की सेना सिर्फ श्रीकृष्ण और अर्जुन को देख पा रही थी परन्तु कुछ सुन नहीं पा रही थी । 
पाँचवां स्थान-महाभारत शास्त्र साहित्य के रचयिता महर्षि व्यास जी अकेले देख, सुन व लिपिबद्ध कर रहे थे। 
इन पाँचों स्थितियों में कहीं भी ऐसी स्थिति नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि गीता का उपदेश सार्वजनिक प्रमाणित रुप से दिया गया था बल्कि यह व्यक्तिगत प्रमाणित रुप से सिर्फ अर्जुन को व्यक्तिगत रुप सेे दिया गया था और विश्वरुप भी सिर्फ व्यक्तिगत प्रमाणित रुप से ही देखा गया था। इस प्रकार व्यक्त आत्म ज्ञान सत्य होते हुए भी व्यक्तिगत प्रमाणित ही है। यहाँ यह विचार करने योग्य विषय अवश्य है कि जब आत्म ज्ञान व्यक्तिगत रूप से ही प्रमाणित होने वाला विषय है। तबं ”महाभारत“ व ”गीता“ के व्यक्तकत्र्ता उस घटना को ऐसी स्थिति में कैसे प्रस्तुत कर सकते थे जो सार्वजनिक प्रमाणित हो? केवल बुद्धि व मस्तिष्क देखिये शेष आस्था व श्रद्धा में तो मानव समाज पूरा जीवन व्यतीत कर ही रहा है।
सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य प्रमाण की स्थिति वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति की दृष्टि व कर्म सार्वजनिक प्रमाणित रुप से दिखाई पड़ती है तथा सार्वजनिक रुप से एक साथ व्यक्ति अनुभव भी करता है। इस प्रमाण में कर्ता व्यक्ति स्वयं को सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अनुसार समझते हुए कर्म करता है तथा व्यक्ति को नियमबद्ध करने के लिए सार्वजनिक रुप से समर्थन प्राप्त नहीं करता इस प्रमाण का उदाहरण श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ का जीवन है। जिनसे समष्ठि धर्म शास्त्र ”कर्मवेद-प्रथम, अन्तिम तथा पंचमवेद“ तथा समष्ठि धर्म निरपेक्ष, सर्वधर्मसमभाव धर्म शास्त्र मन का विश्वमानक और पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी समाहित ”विश्वभारत“ शास्त्र-साहित्य व्यक्त हुआ। जो सार्वजनिक रुप से व्यक्त सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त है। और सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य है। क्योंकि यहाँ कोई भी कर्म व्यक्तिगत रूप से व्यक्त नहीं हो रहा है। यदि है भी तो वह नहीं के बराबर है अर्थात् श्री कृष्ण में जो सार्वजनिक प्रमाणित सूक्ष्म था और व्यक्तिगत प्रमाणित व्यापक था वह श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ में विपरीत होकर सार्वजनिक प्रमाणित व्यापक और व्यक्तिगत प्रमाणित सूक्ष्म होकर व्यक्त हुआ है।

रूप या प्रमाण या मार्ग
आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे परिणाम या फल प्राप्त होता है। रूप या प्रमाण या मार्ग कहलाती है। इसके निम्न रूप है।
1. अदृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग-व्यक्तिगत प्रमाणित आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे परिणाम या फल प्राप्त होता है। अदृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग कहलाता है। इसके निम्न रूप हैं।

क. व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग-व्यक्तिगत प्रमाणित आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे व्यक्तिगत प्रमाणित परिणाम या फल प्राप्त होता है। व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग कहलाता है। जैसे-आत्मीय आदान-प्रदान।

ख. सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग-व्यक्तिगत प्रमाणित आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे सार्वजनिक प्रमाणित परिणाम या फल प्राप्त होता है। सार्वजनिक ¬प्रमाणित अदृश्य या प्रमाण या मार्ग कहलाता है। जैसे-ब्रह्माण्डीय और प्राकृतिक आदान-प्रदान।

2. दृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग-सार्वजनिक प्रमाणित आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे परिणाम या फल प्राप्त होता है। दृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग कहलाता है। इसके निम्न रूप है।

क. व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग-सार्वजनिक प्रमाणित आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे व्यक्तिगत प्रमाणित परिणाम या फल प्राप्त होता है। व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग कहलाता है। जैसे-व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार द्वारा आदान-प्रदान और व्यक्तिगत रूप से आदान-प्रदान।

ख. सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य रूप या प्रमाण या मार्ग-सार्वजनिक प्रमाणित आदान-प्रदान की क्रिया या कर्म जिससे सार्वजनिक प्रमाणित परिणाम या फल प्राप्त होता है। सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य रूप या दप्रमाण या मार्ग कहलाता है। जैसे-सार्वजनिक प्रमाणित पूर्णावतार द्वारा आदान-प्रदान और सार्वजनिक रूप से आदान-प्रदान।



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