अर्थ
मानक वह सर्वमान्य विषय है जिससे उस विषय की सर्वोचता, गुणव¬त्ता और सामानता का स्तर व्यक्त होता है जिसका वह मानक होता है। मानक कभी भी व्यक्तिगत प्रमाणित अर्थात् विचार नहीं हो सकता। मानक हमेशा सार्वजनिक प्रमाणित सत्य होता है। जिसकी उपयोगिता उत्पादित विषयों या प्रबन्धन की गुणवत्ता की माप करने में ही होती है। जब यह विशेष सीमित क्षेत्र तक के लिए होता है तो मानक कहलाता है और जब यह सम्पूर्ण विश्व के लिए होता है तब अन्तर्राष्ट्रीय मानक या सम्पूर्ण मानक या विश्वमानक या सम्पूर्ण सत्य या सम्पूर्ण सार्वजनिक सत्य कहलाता है। भारत में इसके उदाहरण खाद्य पदार्थो के लिए एग मार्क, उत्पादों और प्रबन्ध के लिए ब्यूरों आफॅ इण्डियन स्टैण्डर्ड (भारतीय मानक ब्यूरों) द्वारा निर्धारित ISI मार्क है। जिनका मान्य क्षेत्र भारत देश की सीमा है। इनके अलावा प्रत्येक राज्यों के अपने भी राज्य स्तरीय गुणवत्ता मानक के मार्क है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ISO मार्क अन्तराष्ट्रीय मानक के लिए निर्धारित है। ये सभी मार्क अलग अलग विषयों के लिए उनके गुणवत्ता के अनुसार अलग अलग संख्या द्वारा निर्धारित है। मानक को एक साधारण उदाहरण के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। स्वतन्त्रता से पहले भारत के विभिन्न हिस्सों में-दूरी नापने में-फुट, इंच का प्रयोग। वजन तौलने में-छटांक, पाव, सेर का प्रयोग। समय के लिए पहर, घड़ी का प्रयोग। मुद्रा के लिए इकन्नी, दुवन्नी का प्रयोग। तथा जमीन नापने के लिए विस्सा, विघा का प्रयोग होता था। जिससे अपने देश के ही एक हिस्से से दूसरे हिस्से में आदान-प्रदान में असुविधा होती थी। परन्तु स्वतन्त्रता के बाद इनके भारतीय सीमा तथा अन्तर्राष्ट्रीय सीमा त सर्वमान्य मानक का व्यावहारीकरण प्रारम्भ हुआ। परिणाम स्वरूप दूरी नापने में-किलोमीटर, मीटर, सेन्टीमीटर पद्धति। ठोस वजन तौलने में-क्विंटल, किलोग्राम, ग्राम पद्धति। तरल पदार्थ के लिए लीटर, मीलीलीटर पद्धति, समय के लिए घंटा, मिनट, सेकेण्ड पद्धति। मुद्रा के लिए रूपये, पैसे तथा जमीन नापने के लिए एअर, हेक्टेअर पद्धति प्रयोग में आया। सरकारी तौर पर तो ये मानक पूर्णरूप से व्यावहारिक हो चुके हैं परन्तु सामाजिक स्तर पर अभी भी पूर्ण रूप इनका व्यवहारिक होना शेष है। इनके निर्धारण से उदाहरणस्वरूप एक किलो कहने पर सम्पूर्ण विश्व उसके अर्थ को आसानी से समझ जाता है। भाषा क्षेत्र में विश्व भाषा के रूप में अंग्रेजी भी एक मानक भाषा है जिससे सभी देश आपस में जुड़े हुये हैं। इस प्रकार मानकीकरण एकता और एकत्व की ओर बढ़ता कदम ही है।
परिचय एवं उद्देश्य
प्रथम बार अन्तराष्ट्रीय मानकीकरण इलेक्ट्रोटेक्निकल क्षेत्र से प्रारम्भ हुआ। जिसके परिणामस्वरूप सन् 1906 में इण्टरनेशनल इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन (आई.ई.सी.) की स्थापना हुई मानकीकरण के विकास में उसके बाद अन्य क्षेत्रों में मानकीकरण के लिए 1927 में इण्टरनेशन फेडरेशन आॅफ द नेशनल स्टैण्र्डडाइजेशन एशोसियेशन (आई.एस.ए.) की स्थापना हुई जिसका मुख्य उद्देश्य मैकेनिकल इंजिनियरिंग क्षेत्र में मानकीकरण करना था। आई.एस.ए.के क्रियाकलाप सन् 1942 में बन्द हो गये। सन् 1946 में 25 देशों के प्रतिनिधि मण्डल ने लंदन में यह आवश्यकता व्यक्त किये की एक नया अन्तर्राष्ट्रीय संगठन होना चाहिए जिसका उद्देश्य ”अन्तर्राष्ट्रीय समन्वय को बढ़ावा देना और औद्योगिक मानकीकरण का एकीकरण“ होना चाहिए जिसके फलस्वरूप 23 फरवरी 1947 को वैध रूप से नये संगठन ”अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई.एस.ओ0) ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। जो वर्तमान समय में भी अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन के नाम से है जिसमें प्रत्येक देश से एक सदस्य के रूप में 130 सदस्य है। आई.एस.ओ.एक स्वैच्छिक संगठन है। प्रत्येक सदस्यों को यह अधिकार है कि वे कोई भी मानक विकास कर सकते है जिसमें उस देश का अर्थ क्षमता महत्वपूर्ण स्थान रखता है लेकिन यह आवश्यक नहीं कि अर्थशक्ति और उसका प्रसार क्षेत्र कितना है। आई.एस.ओ.का प्रत्येक सदस्य एक मत (वोट) का अधिकार रखता है। आई.एस.ओ.की समस्त कार्य प्रणाली, प्रबन्धकीय तथा प्रत्येक मानक के तकनीकी अवयव के निर्देशन में प्रत्येक सदस्य एक समान अधिकार के स्तर पर होकर लोकतन्त्रीय प्रणाली के अनुसार कार्य का क्रियान्वयन करते हैं। आई.एस.ओ.मानक स्वैच्छिक हैं। जिसकी स्थापना के लिए संगठन कोई दबाव नहीं डालता लेकिन इसकी स्थापना से प्राप्त प्रमाणपत्र द्वारा उद्योगों और उत्पादों की साख अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ जाती है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के गठन के उपरान्त आई.एस.ओ.मानक का महत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई.एस.ओ.) का केन्द्रीय सचिवालय जेनेवा (स्वीटजरलैण्ड) में स्थित है। वर्तमान समय तक इसके द्वारा 11000 से अधिक मानक विकसित किये जा चुके हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण और तेजी से प्रसार करता हुआ आई.एस.ओ.-9000 श्रृंखला-उद्योगों की गुणवत्ता का अन्तर्राष्ट्रीय मानक है। भारत के बहुत से उद्योग इस मानक के अनुरूप हो चुके है जिन्हें प्रमाण पत्र जारी किया जा चुका है। इसकी स्थापना से प्राप्त प्रमाणपत्र द्वारा उद्योगों और उत्पादों की साख अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ जाती है। अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई.एस.ओ.) का उद्देश्य ”अन्तर्राष्ट्रीय समन्वय को बढ़ावा देना और औद्योगिक मानकीकरण का एकीकरण“ है। जिसके अनुसार मानव द्वारा प्रबन्धित उद्योग और उसके उत्पाद का मानकीकरण करते हुये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एकीकरण करना है। जिसकी चरम विकसित अवस्था व्यक्ति, समाज, संगठन और सरकार द्वारा उत्पन्न किये जा रहे मानव मन का मानकीकरण कर एकीकरण करना है। जिसके लिए उसे विचार एवम् साहित्य, विषय एवम् विशेषज्ञों की परिभाशा, ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम स्थूल प्रबन्ध और क्रियाकलाप मानव प्रबन्ध और क्रियाकलाप तथा उपासना स्थल का मानकीकरण कर एकीकरण करना है तभी अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन अपने उद्देश्य को पूर्ण रूप से पाप्त कर पायेगा।
आवश्यकता
देशों के बीच सहयोग, विश्व शान्ति, विश्व एकता, विश्व स्थिरता तथा विश्व विकास के लिए गठित संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.,) विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) इत्यादि अपने सहयोगी संगठनों की भांति अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आई.एस.ओ.) को अपने अधीन लेकर उसे विश्व मानकीकरण संगठन (डब्ल्यू.एस.ओ.) का रूप दे और उसके माध्यम से डब्ल्यू.एस.ओ.-शून्य (WSO-0) श्रृंखलां-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक अर्थात् उपरोक्त विषयो पर आधारित इसकी पाँच शाखा 1.डब्ल्यू.एस (WSO-0) : विचार एवम् साहित्य का विश्वमानक,
2.डब्ल्यू.एस.(WSO-00) : एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक,
3.डब्ल्यू.एस.(WSO-000) :ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक,
4.डब्ल्यू.एस.(WSO-0000) :मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक,
5.डब्ल्यू.एस.(WSO-00000) : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक की स्थापना करें ।
औद्यागिक प्रबन्ध और उद्योगो के उत्पादों के मानकीकरण को स्वैच्छिक रखें लेकिन डब्ल्यू.एस.ओ.-शून्य श्रृंखला की स्थापना प्रत्येक देशों के लिए अनिवार्य करें। क्योंकि जब तक व्यक्ति के मन को विश्वस्तर से जोड़ा नहीं जाता तब तक संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकता और उसके अन्य संगठन द्वारा विश्व विकास के लिए चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों पर कये जा रहे खर्च का पूर्ण उपयोग नहीं हो पायेगा। चूकि WSO-0 श्रृंखला सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त सामान्य विषय कर्म और ज्ञान पर आधारित है। इसलिए किसी भी धर्म और सम्प्रदाय की संस्कृति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ेगा बल्कि उन्हें अपने धर्म और सम्प्रदाय के तत्वों को समझने की शक्ति प्रप्त होगी । वह विवादमुक्त सत्य-सिद्धान्त भी है ।
2.डब्ल्यू.एस.(WSO-00) : एवम् विशेषज्ञों की परिभाषा का विश्वमानक,
3.डब्ल्यू.एस.(WSO-000) :ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म एवम् स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक,
4.डब्ल्यू.एस.(WSO-0000) :मानव (सूक्ष्म तथा स्थूल) के प्रबन्ध और क्रियाकलाप का विश्वमानक,
5.डब्ल्यू.एस.(WSO-00000) : उपासना और उपासना स्थल का विश्वमानक की स्थापना करें ।
औद्यागिक प्रबन्ध और उद्योगो के उत्पादों के मानकीकरण को स्वैच्छिक रखें लेकिन डब्ल्यू.एस.ओ.-शून्य श्रृंखला की स्थापना प्रत्येक देशों के लिए अनिवार्य करें। क्योंकि जब तक व्यक्ति के मन को विश्वस्तर से जोड़ा नहीं जाता तब तक संयुक्त राष्ट्र संघ अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकता और उसके अन्य संगठन द्वारा विश्व विकास के लिए चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों पर कये जा रहे खर्च का पूर्ण उपयोग नहीं हो पायेगा। चूकि WSO-0 श्रृंखला सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त सामान्य विषय कर्म और ज्ञान पर आधारित है। इसलिए किसी भी धर्म और सम्प्रदाय की संस्कृति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ेगा बल्कि उन्हें अपने धर्म और सम्प्रदाय के तत्वों को समझने की शक्ति प्रप्त होगी । वह विवादमुक्त सत्य-सिद्धान्त भी है ।
भारत सरकार को यह सलाह दी जाती है कि संसद का जो अन्तिम उद्देश्य है वह WSO-0 श्रंखला ही है। और यह भारत का विश्व के प्रति कर्तव्य और दायित्व है कि विश्व शान्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष इसकी स्थापना के लिए अपना पक्ष प्रस्तुत करें । वहीं दूसरी ओर भारतीय मानक ब्यूरो को यह आदेश दे कि वह WSO-0 श्रंृखला का मानक विकसित करने के लिए अन्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आइ.एस.ओ.) में अपना पक्ष प्रस्तुत कर मत इकट्ठा करें।
प्रत्येक मानव का यह अधिकार है कि उसे पूर्ण ज्ञान द्वारा पूर्ण मानव अर्थात् विश्वमानव के रूप में विकसित किया जाये जिससे वह समाज, लोकतन्त्र और विश्व के प्रति अपना कर्तव्य और दायित्व को समझने सहित विश्व विकास की दिशा में होकर कार्य कर सकें । साथ ही वह प्रबन्धकीय व नेतृत्व गुणों से युक्त हो सकें और स्वयं अपने मालिक बनकर रोजगार के लिए उपलब्ध संसाधनों पर योजना तैयार कर आत्मनिर्भर बन सके। जनहित के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को अपने देश की जनता तथा एमनेस्टी इण्टरनेशनल द्वारा विश्व की जनता के अधिकार के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
मार्च 1997 में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव श्री कौफी अनान ने भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन के लिए अपना योगदान देने को कहा था। उपरोक्त आवश्यकता और सलाह भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र संघ के पुर्नगठन के लिए योगदान है जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ को यथाशीघ्र विचार कर विश्व शान्ति, विश्व एकता, विश्व स्थिारता, विश्व रक्षा तथा विश्व विकास के लिए सत्य चेतना की ओर बढ़ते विश्व में भारी पाढ़ियों के लिए ऐसा यथाशीघ्र करना चाहिए। तभी एक सत्य, शान्त और सुन्दर विश्व के दूरगामी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। जो विश्व के विभिन्न सम्प्रदायों सहित देशों के बीच एवम् आन्तरिक समस्याओं से मुक्ति का अन्तिम मार्ग सहित 21 वीं शदी और उसके उपरान्त के समय का दूरगामी लक्ष्य का कार्यक्रम है।
उपरोक्त आवश्यकता को ही प्रकाशित करते हुये स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था कि ”समग्र संसार का अखण्डत्व, जिसके ग्रहण करने के लिए संसार प्रतीक्षा कर रहा है, हमारे उपनिषदों का दूसरा महान भाव है। प्राचीन काल के हदबन्दी और पार्थक्य इस समय तेजी से कम हाते जा रहें हैं। हमारे उपनिषदों ने ठीक ही कहा है, अज्ञान ही सर्व प्रकार के दुखों का कारण है। समाजिक अथवा आध्यात्मिक जीवन की हो जिस अवस्था में देखों, यह बिल्कुल सही उतरता है। अज्ञान से ही हम परस्पर घृणा करते हैं, अज्ञान से ही हम एक दूसरे को जानते नहीं और इसलिए प्यार नहीं करते। जब हम एक दूसरे को जान लेगे, प्रेम का उदय होगा। प्रेम का उदय निश्चित है क्योंकि क्या हम सब एक नहीं है? इसलिए हम देखते है चेष्टा न करने पर भी, मह सब का एकत्व भाव स्वभाव ही से आ जाता है। यहाँ तक कि राजनीति और समाजिक नीति के क्षेत्रों में भी जो समस्यायें बीस वर्ष पहले केवल राष्ट्रीय थी, इस समय उनकी मीमांसा केवल राष्ट्रीयता के आधार पर औेर विशाल आकार धारण कर रही है। केवल अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय विधान, ये ही आजकल के मूलमन्त्र स्वरूप है। (स्वामी विवेकानन्द का मानवता वाद-पृष्ठ संख्या-48 से)
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