Wednesday, April 8, 2020

पौराणिक देवी-देवता-मनुष्य समाज के विभिन्न पदों के मानक चरित्र

पौराणिक देवी-देवता-मनुष्य समाज के विभिन्न पदों के मानक चरित्र


पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई, मानव एवं अन्य जीवधारी तथा वनस्पतियों का क्रमिक विकास कैसे हुआ? फिर ईश्वर, अवतार, देवी-देवता कैसे आये? इसे जानने के केवल दो रास्ते हैं।

अ. अदृश्य काल-यह वह समय है जिसमें आधुनिक भौतिक विज्ञान का विकास नहीं हुआ था। इस काल में 1.सत्ययुग, 2.त्रेतायुग और 3.द्वापर युग था।
1. धार्मिक मत का रास्ता-वर्तमान से 5000 वर्ष पुराने वैदिक धर्म के अनुसार
2. वैज्ञानिक मत का रास्ता-आधुनिक विज्ञान उपलब्ध नहीं था

ब. दृश्य काल-यह वह समय है जिसमें आधुनिक भौतिक विज्ञान का विकास हो चुका था। इस काल में 4.कलियुग था।
1. धार्मिक मत का रास्ता-वर्तमान से 2000 वर्ष पुराने ईसाइ धर्म और वर्तमान से 1400 वर्ष पुराने इस्लाम धर्म के अनुसार
2. वैज्ञानिक मत का रास्ता-आधुनिक विज्ञान के अनुसार

धार्मिक मतानुसार सृष्टि की रचना ईश्वर ने की और ईश्वर द्वारा ही जल-प्रलय किया गया। सभी धर्मो में जीव उत्पत्ति, सृष्टि संरचना एवं जल-प्रलय की विचारधारा समान ही है। जो ईसाई, मुस्लिम, चीनी, असीरियन, मैक्सिको, पर्शिया, युनान, अर्गगीज और पुराण जैसे शास्त्र व इतिहास में मिलता है। धार्मिक दृष्टिकोण से सबसे प्राचीन और धर्म का प्रारम्भ वैदिक धर्म ही सनातन धर्म है जिसमें विश्व के शेष अन्य धर्म-सम्प्रदायों का अंश विद्यमान है। ईश्वरीय आदेश पर मात्र नूह या मनु तथा उनके साथ अन्य जीवधारी ही बचे, जिससे सृष्टि के सृजन का कार्य चला।
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार, अरबों वर्ष पहले इस पृथ्वी का आविर्भाव हुआ। प्रारम्भ में यह आग के गोले के रूप में थी। धीरे-धीरे यह ठण्डी होती गई। करोड़ों वर्ष बीतने पर इसमें जल, वायु, मिट्टी, अग्नि और आकाश पंच महाभूतों के संयोजन से जीवन का क्रमश-विकास हुआ। धीरे-धीरे महासागरों का आविर्भाव हुआ। प्रारम्भ में इसमें जल में रहने वाले जीवों का विकास हुआ, जैसे मछली। फिर जल और थल दोनों में जीवित रह सकने वाले प्राणी विकसित हुए, जैसे मेढक, केंकड़ा इत्यादि। तदन्तर केवल स्थल में जीवित रहने वाली प्राणी विकसित हुए। कालचक्र की गति चलती रही और नभचर प्राणियों का भी विकास हुआ। प्रकृति के तमाम थपेड़ों अनेकानेक बार बाढ़, जलप्लावन, अकाल, सामूहिक मृत्यु आदि से बहुत से जीवों की जातियां विकसित भी हुई और बहुत सी लुप्त भी हो गईं, जैसे विसालकाय डायनासोर। क्रमिक विकास के द्वारा जीवधारीयों में मछली, स्तनपायी, वानर, चिम्पैंजी, वनमानुष और फिर मनुष्य का विकास हुआ। वैज्ञानिक मान्यता है कि मनुष्य का पूर्वज बंदर था। विचार की शक्ति से धीरे-धीरे बन्दर जैसा प्राणी चार पैरों में से अगले दो पैरों का उपयोग फल आदि तोड़ने में करने लगा और चैपाये से दो पाये वाले मनुष्य का विकास हुआ। बन्दर की पूँछ का उपयोग न होने से धीरे-धीरे वह गायब हो गई। मनुष्य की रीढ़ के अन्तिम छोर पर उसका अवशेष अब भी पाये जाते हैं।
इस प्रकार धार्मिक एवं वैज्ञानिक मतों का तालमेल एवं वर्णन लगभग समान ही है। जिस इतिहास के बारे में जानकारी नहीं है, मात्र कल्पना, तर्क तथा तत्कालीन वस्तुओं, घटनाओं के आधार पर काल निर्धारण किया जाता है, वह प्रागैतिहासिक काल कहा जाता है। और जिस इतिहास के बारे में क्रमबद्ध सही जानकारी प्राप्त होती है, उसे ऐतिहासिक काल कहा जाता है। यह आधार हमारी सृष्टि रचना एवं आदिमानव की उत्पत्ति एवं विकास पर भी लागू होती है। विश्व की संस्कृति एवं सभ्यताओं का उद्भव व विकास नदी घाटीयों से प्रारम्भ हुआ। विश्व की सभी सभ्यताओं का समय लगभग एक ही है। जो पूर्वी विश्व के भू-भाग से प्रारम्भ हुई, इस कारण उनमें आपस में बहुत ही सामंजस्य है।
वैदिक-सनातन-हिन्दू धर्म में जो बातें उपलब्ध होती है, उनमें सबसे प्राचीन वंश स्वायंभुव मनु से प्रारम्भ होता है। स्वायंभुव मनु से पहले का समय प्रागैतिहासिक काल था। स्वायंभुव मनु से ही ऐतिहासिक काल प्रारम्भ होता है। स्वायंभुव मनु से प्रारम्भ हुये ऐतिहासिक काल को पौराणिक, ऐतिहासिक व भविष्य के वंश में विभाजित किया जा सकता है। स्वायंभुव मनु के स्वयं उत्पन्न होने के कारण इन्हें स्वायंभुव मनु कहा गया है। यह सर्वमान्य सत्य है कि बिना स्त्री-पुरूष के सम्बन्ध से किसी का उत्पन्न होना विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है। यह हो सकता है कि स्वायंभुव मनु के पूर्वजों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं थी इसलिए इन्हें स्वायंभुव मनु कहा गया। स्वायंभुव मनु के बारे में भिन्न-भिन्न धर्म ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न नाम से वर्णन किया गया है जैसे आदेश्वर, अशिरष, वैवस्वत मनु, आदम और नूह। अत-यहाँ से शुरू होता है-”सर्वप्रथम विकसित मानव का इतिहास“।

अ. पौराणिक वंश
संसार के सर्वप्रथम मनु-स्वायंभुव मनु थे। उनके दो पुत्र थे-प्रियव्रत और उत्तानपाद। साथ ही तीन पुत्रियाँ थीं-आकूति, प्रकूति तथा देवहूति। देवहूति का विवाह कर्दम ऋषि से हुयी जिनसे विश्व का प्राचीन और प्रथम सांख्य दर्शन को देने वाले कपिल मुनि पैदा हुये। प्रियव्रत और उत्तानपाद के वंशज मनुर्भरत कहे गये हैं। मनुर्भरतों की कुल 45 पीढ़ियाँ थीं। अन्तिम व्यक्ति दक्ष प्रजापति थें। उस समय के समूची मानवजाति के प्रजापति ये ही 45 पीढ़ियाँ थीं।
मनुर्भरत वंश की उत्तानपाद शाखा में स्वायंभुव मनु से लेकर दक्ष वंश तक का काल सत्ययुग काल कहा गया। इसी दक्ष वंश के प्रजापति उर के वंशजों का एक राज्य कर्तार प्रदेश (वर्तमान कतर) में था जहाँ का राजा सर्वप्रथम विष्णु कर्तार नाम से हुआ। इस गद्दी पर बैठने वाले सभी विष्णु कर्तार कहलाये। गद्दी पर बैठने वाले पाँचवें विष्णु कर्तार के पुत्र का नाम नाभि कर्तार, और नाभि कर्तार के पुत्र का नाम कमल कर्तार, और कमल कर्तार के पुत्र का नाम ब्रह्मा कर्तार था। विष्णु कर्तार के साम्राज्य का विस्तार प्रथम विष्णु कर्तार ने वर्तमान क्षीर सागर तथा अराल सागर तक फैलाया। इन सागरों के आस-पास नागवंशीयों तथा गरूण वंशीयों का साम्राज्य था जिसे प्रथम विष्णु ने विजित कर अपने अधीन कर लिया। ब्रह्मा कर्तार ने ही सर्वप्रथम वेदों की ऋचाओं की संरचना एवं संकलन किया। 
ब. ऐतिहासिक वंश
ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों 1. मन से मरीचि, 2. नेत्रों से अत्रि, 3. मुख से अंगिरा, 4. कान से पुलस्त्य, 5. नाभि से पुलह, 6. हाथ से कृतु, 7. त्वचा से भृगु, 8. प्राण से वशिष्ठ, 9. अँगूठे से दक्ष तथा 10. गोद से नारद उत्पन्न हुये। मरीचि ऋषि, जिन्हें ”अरिष्टनेमि“ के नाम से भी जाना जाता है, का विवाह देवी कला से हुआ। देवी कला कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। उनकी कोख से महातेजस्वी दो पुत्र 1.कश्यप और 2.अत्रि हुये। संसार के सर्वप्रथम मनु-स्वायंभुव मनु की पुत्री देवहूति से कर्दम ऋषि का विवाह हुआ था। 
कश्यप की 13वीं अदिति नामक स्त्री से आदित्य (सूर्य) उत्पन्न हुए। अदिति, मनुर्भरतवंश के 45वीं पीढ़ी में उत्तानपाद शाखा के प्रजापति दक्ष की पुत्री थी (बृहद्वेता, 3.57)। 
कश्यप-अदिति के आदित्य (सूर्य) की दूसरी पत्नी संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमी नामक पुत्री थी। यम की दो पत्नीयाँ 1.संध्या और 2.वसु थी। यम की पहली पत्नी संध्या से सांध्य (सीदीयन जाति) पुत्र हुये जिनके तीन पुत्र 1.हंस (जर्मन जाति) 2.नीप (नेपियन जाति) 3.पाल (पलास जाति)। यम की दूसरी पत्नी वसु से 8 पुत्र 1.धर 2.धुन 3.सोम 4.अह 5.अनिल 6.अनल 7.प्रत्यूष और 8.प्रभाष पैदा हुये जो अष्टवसु कहलाये। अष्टवसु धर की पत्नी उमा से महाप्रतापी पुरूष त्रयम्बक रूद्र पुत्र उत्पन्न हुए थे जिन्हें शिव की उपाधि मिली। यही रूद्र शिव शिवदान (वर्तमान सूडान) प्रदेश के राजा थे जिन्हें दक्ष ने अपनी पुत्री उमा के विवाह में दान में दिया था। यही उमा अपने पति का अपमान न सहन कर सकने के कारण अपने पिता के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। इस पर क्रुद्ध होकर शिव ने इस वंश का नाश ही कर दिया था और यहीं से उमा का नाम सती हो गया।
शिव गद्दी पर बैठने वाले सभी राजा शिव कहलायें। इस वंश में 12 चक्रवर्ती राजा हुये। शेष अन्य छोटे राजा थे। इस प्रकार कुल 52 साम्राज्य शिव वंश के थे। शिव वंश का साम्राज्य वर्तमान भारत का शैव पीठ, ईरान का रूद्रवर क्षेत्र, वर्तमान अफ्रीका के सूडान (शिवदान), वर्तमान उमा प्रदेश (उर्मिया झील के आस-पास का क्षेत्र), बगदाद का उत्तरी हिस्सा, कुर्दिस्तान का दक्षिणी भाग, अरब के काव्य क्षेत्र काबा तक स्थापित था। इसके अतिरिक्त एशिया माइनर सरवन प्रदेश तथा वाणासुर की राजधानी ”वन“ में रूद्र शिव का निवास रहा। रूद्र शिव से 11 कुल चले जिनसे द्रविण और हूण जाति का विकास हुआ।
पुराणों में पौराणिक वंश के विष्णु कर्तार व ब्रह्मा कर्तार ही विष्णु और ब्रह्मा के नाम से तथा ऐतिहासिक वंश के शिव, शिव के नाम से दिखाये गये हैं।

”दो या दो से अधिक माध्यमों से उत्पादित एक ही उत्पाद के गुणता के मापांकन के लिए मानक ही एक मात्र उपाय है। सतत् विकास के क्रम में मानकों का निर्धारण अति आवश्यक कार्य है। उत्पादों के मानक के अलावा सबसे जरुरी यह है कि मानव संसाधन की गुणता का मानक निर्धारित हो क्योंकि राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के मन को भी आधुनिक अर्थात्् वैश्विक-ब्रह्माण्डीय करना पड़ेगा। तभी मनुष्यता के पूर्ण उपयोग के साथ मनुष्य द्वारा मनुष्य के सही उपयोग का मार्ग प्रशस्त होगा। उत्कृष्ट उत्पादों के लक्ष्य के साथ हमारा लक्ष्य उत्कृष्ट मनुष्य के उत्पादन से भी होना चाहिए जिससे हम लगातार विकास के विरुद्ध नकारात्मक मनुष्योें की संख्या कम कर सकें। भूमण्डलीकरण सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में कर देने से समस्या हल नहीं होती क्योंकि यदि मनुष्य के मन का भूमण्डलीकरण हम नहीं करते तो इसके लाभों को हम नहीं समझ सकते। आर्थिक संसाधनों में सबसे बड़ा संसाधन मनुष्य ही है। मनुष्य का भूमण्डलीकरण तभी हो सकता है जब मन के विश्व मानक का निर्धारण हो। ऐसा होने पर हम सभी को मनुष्यों की गुणता के मापांकन का पैमाना प्राप्त कर लेगें, साथ ही स्वयं व्यक्ति भी अपना मापांकन भी कर सकेगा। जो विश्व मानव समाज के लिए सर्वाधिक महत्व का विषय होगा। विश्व मानक शून्य श्रृंखला मन का विश्व मानक है जिसका निर्धारण व प्रकाशन हो चुका है जो यह निश्चित करता है कि समाज इस स्तर का हो चुका है या इस स्तर का होना चाहिए। यदि यह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित होगा तो निश्चित ही अन्तिम मानक होगा।“ 
भारतीय आध्यात्म-दर्शन-संस्कृति के लिए यह एक नयी और आधुनिक सूक्ष्म दृष्टि ही है कि मानव समाज के एकीकरण के लिए सदैव अपने विचार-सिद्धान्त से मानकीकरण करना ही भारतीय आध्यात्म-दर्शन-संस्कृति का मूल उद्देश्य रहा है जबकि समाज के मानव उसे न अपनाकर मानकीकरण के आविष्कारक और उनके जीवन की ओर बढ़ गये। इतना ही नहीं आविष्कार के आधार पर अनेक आविष्कार भी करते चले गये परिणास्वरूप मानव समाज मानकीकरण के मूल उद्देश्य से इतना दूर आ चुका है कि इस मूल उद्देश्य को स्वीकारना भी उन्हें गलत लगेगा जबकि इस उद्देश्य के बिना उनका पूर्णता की ओर बढ़ना असम्भव भी है और अन्तिम मार्ग भी है।
सृष्टि में साकार और निराकार सृष्टि के दो रूप हैं। साकार सृष्टि यह हमारा दृश्य ब्रह्माण्ड है तो निराकार सृष्टि सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त है। इसी प्रकार मानव के सम्बन्ध में भी है निराकार मानव, मानव का अपना विचार है और साकार मानव, मानव का दृश्य शरीर है। भारतीय आध्यात्म-दर्शन इसे मानव सभ्यता के विकास के प्रारम्भ में ही समझ गया था इसलिए वह सदैव मानव समाज के एकीकरण के लिए मानक का विकास करता रहा है। जिसके निम्न विकास क्रम हैं-
अ. व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य निराकार एवं साकार मानक
01. सार्वभौम मानक-सार्वभौम आत्मा या ईश्वर का आविष्कार।
02. सार्वभौम मानक के पुस्तक-वेद का आविष्कार।
03. सार्वभौम मानक का नाम-ऊँ का आविष्कार।
04. सार्वभौम मानक के नाम के व्याख्या का पुस्तक-उपनिषद् का आविष्कार।
05. सार्वभौम व्यक्तिगत व्यक्ति का मानक-ब्रह्मा (सत्व गुण) का आविष्कार।
06. सार्वभौम सामाजिक व्यक्ति का मानक-विष्णु (सत्व-रज गुण) का आविष्कार।
07. सार्वभौम वैश्विक व्यक्ति का मानक-शिव-शंकर (सत्व-रज-तम गुण) का आविष्कार।
08. सार्वभौम व्यक्तिगत व्यक्ति के मानक के कृति का पुस्तक-ब्रह्मा आधारित पुराण का आविष्कार।
09. सार्वभौम सामाजिक व्यक्ति के मानक के कृति का पुस्तक-विष्णु आधारित पुराण का आविष्कार।
10. सार्वभौम वैश्विक व्यक्ति के मानक के कृति का पुस्तक-शिव-शंकर आधारित पुराण का आविष्कार।

ब. सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य निराकार एवं साकार मानक
1. शरीर की अवस्था-आश्रम के मानक का निम्न रूप है-
        01. ब्रह्मचर्य आश्रम-5 से 25 वर्ष उम्र तक-ज्ञान-विज्ञान-तकनीकी शिक्षा तथा व्यवहार।
        02. गृहस्थ आश्रम-26 से 50 वर्ष उम्र तक-पारिवारिक जीवन में ज्ञान युक्त कत्र्तव्य और दायित्व।
     03. वानप्रस्थ आश्रम-51 से 75 वर्ष उम्र तक-माँगें जाने पर अपने अनुभव से परिवार व समाज का मार्गदर्शन।
       04. सन्यास आश्रम-76 से शरीर त्याग तक-आत्मा में स्थित होकर ब्रह्माण्डीय दायित्व व कर्तव्य।

2. कर्म की अवस्था-वर्ण के मानक का निम्नरूप है-
       01. ब्राह्मण वर्ण-सूक्ष्म बुद्धि व आत्मा में स्थित हो धर्म से कार्य।
       02. क्षत्रिय वर्ण-भाव व मन में स्थित हो बल से कार्य।
       03. वैश्य वर्ण-इन्द्रिय व प्राण में स्थित हो धन से कार्य।
       04. शूद्र वर्ण-शरीर में स्थित हो शरीर से कार्य।

3. मानव का मानक-अवतारवाद-अवतारवाद का मुख्य उद्देश्य मानव समाज में मानव का मानक निर्धारित करना है। जिसका विकास क्रम निम्न प्रकार है-

01. मत्स्यावतार-इस अवतार द्वारा धारा के विपरीत दिशा (राधा) में गति करने का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

02. कच्छप अवतार-इस अवतार द्वारा सहनशील, शांत, धैर्यवान, लगनशील, दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ की भूमिका वाला गुण (समन्वय का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

03. बाराह अवतार-इस अवतार द्वारा सूझ-बुझ, सम्पन्न, पुरूषार्थी, धीर-गम्भीर, निष्कामी, बलिष्ठ, सक्रिय, अहिंसक और समूह प्रेमी, लोगों का मनोबल बढ़ाना, उत्साहित और सक्रिय करने वाला गुण (प्रेरणा का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

04. नरसिंह अवतार-इस अवतार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से एका-एक लक्ष्य को पूर्ण करने वाले (लक्ष्य के लिए त्वरित कार्यवाही का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

05. वामन अवतार-इस अवतार द्वारा भविष्य दृष्टा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूमि पर गणराज्य व्यवस्था की स्थापना व व्यवस्था को जिवित करना, उसके सुख से प्रजा को परिचित कराने वाले गुण (समाज का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

06. परशुराम अवतार-इस अवतार द्वारा गणराज्य व्यवस्था को ब्रह्माण्ड में व्याप्त व्यवस्था सिद्धान्तों को आधार बनाने वाले गुण और व्यवस्था के प्रसार के लिए योग्य व्यक्ति को नियुक्त करने वाले गुण (लोकतन्त्र का सिद्धान्त और उसके प्रसार के लिए योग्य उत्तराधिकारी नियुक्त करने का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

07. राम अवतार-इस अवतार द्वारा आदर्श चरित्र के गुण के साथ प्रसार करने वाला गुण (व्यक्तिगत आदर्श चरित्र के आधार पर विचार प्रसार का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

08. कृष्ण अवतार-इस अवतार द्वारा आदर्श सामाजिक व्यक्ति चरित्र के गुण, समाज मंे व्याप्त अनेक मत-मतान्तर व विचारों के समन्वय और एकीकरण से सत्य-विचार के प्रेरक ज्ञान को निकालने वाले गुण (सामाजिक आदर्श व्यक्ति का सिद्धान्त और व्यक्ति से उठकर विचार आधारित व्यक्ति निर्माण का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

09. बुद्ध अवतार-इस अवतार द्वारा प्रजा को प्रेरित करने के लिए धर्म, संघ और बुद्धि के शरण में जाने का गुण (धर्म, संघ और बुद्धि का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।

10. कल्कि अवतार-इस अवतार द्वारा आदर्श मानक सामाजिक व्यक्ति चरित्र समाहित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र अर्थात् सार्वजनिक प्रमाणित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित करने का काम वर्तमान है और वो अन्तिम भी है।

उपरोक्त दस अवतार द्वारा स्थापित विचार-सिद्धान्त का संयुक्त रूप ही मानक पूर्ण मानव का रूप है। प्रत्येक पूर्व के अवतार द्वारा स्थापित विचार-सिद्धान्त अगले अवतार में वह संक्रमित अर्थात् विद्यमान रहते हुये अवतरण होता है। इस प्रकार अन्तिम अवतार में पूर्व के सभी अवतार के गुण विद्यमान होंगे और अन्तिम अवतार ही मानव समाज के लिए मानक मानव होगा।





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