मानक के सम्बन्ध में विभिन्न वक्तव्य
“व्यक्ति भी हो सकते है आई.एस.ओ.मार्का”
(भारतीय मानक व्यूरो, मानक भवन, 9, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली-110002 से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ”मानकदूत“ वर्ष-19, अंक-2, अप्रैल-जून, 1999, पृष्ठ-28 से साभार)
अब आप अपने अन्तर्राष्ट्रीय वजूद पर इठला सकते हैं। गुणवत्ता का अन्तर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन-आई.एस.ओ.(इन्टरनेशनल स्टैण्डर्डस आर्गनाइजेशन) अब सिर्फ कम्पनीयों और उत्पादको तक सीमित न रहकर व्यक्तियों पर भी लागू हो सकेगा।
आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट अमेरिका स्थित मानक संस्था सर्टिफाइड मार्केटिंग सर्विस इन्टरनेशनल (सी.एम.एस.आई) द्वारा जारी किया जाता है। इस संस्था ने हाल में ही भारत को भी अपने ”चेप्टर“ में शामिल किया है। इसके अन्तर्गत सेल्स और मार्केटिंग से जुड़े कार्मिको के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जायेगा और इसके बाद उनका आइ.एस.ओ.मानक तय किया जा सकेगा। इस तरह वे आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकेंगें। आई.एस.ओ.की शीर्ष इकाई ”डच काउंसिल फाॅर एक्रिडिटेशन“ ने पहली मर्तबा सी.एम.एस.आई.को सेल्स और मार्केटिंग से जुड़े प्रोफेशनलो को मानक प्रमाण पत्र देने के लिए अधिकृत किया है। हाल में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने दिल्ली आये सी.एम.एस.आई.के अध्यक्ष रोनाल्ड मैथिस का कहना है कि वे भारतीय सेल्स प्रतिनिधियों के बीच गुणवत्ता की पहचान के नये मानक स्थापित करने जा रहे हैं। अब भारत में ग्राहको के समक्ष चयन के लिए न सिॅर्फ अनेकानेक उत्पाद होंगे बल्कि इन उत्पादो को उन तक पहुॅचाने वाले व्यक्तियों की भी वैरायटी होगी।
देश में सेल्स और मार्केटिंग के क्षेत्र में अभी तक करीब 70 लोगो को आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट दिये जा चुके है। मार्केटिंग कन्सल्टेन्ट रजनीश जैन कहते है-यह ऐसी ”करेंसी“ है जो दुनिया में कहीं भी स्वीकार की जा सकती है। श्री जैन उन चुनिंदा लोगो में हैं, जिन्हें आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट प्राप्त है। उनका कहना है कि सम्बन्धित क्षेत्र में साल का तजुर्बा रखने वाला कोई भी व्यक्ति आई.एस.ओ.के ट्रेंिनंग प्रोग्राम का हिस्सा बन सकता है। वह कहते हैं कि एम.बी.ए.तो मात्र एक एकेडमिक क्वालीॅिफकेशन है जबकि आई.एस.ओ.कार्यक्रम प्रोफेशनल दृष्टि से स्वाभाविक सम्पूर्णता देता है। सी.एम.एस.आई.सेल्स प्रोफेशनल को समुचित प्रशिक्षण दिया जाता है और उसे एक आचार संहिता से बंधना पड़ता है। ऐसा व्यक्ति चूँकि सतत निगरानी में रहता है, अत-वह ग्राहको को अपेक्षाकृत अधिक गुणकारी सेवा दे सकता है। उसे आई.एस.ओ.की नियमावली ई.एन.-45013 के तहत ही सर्टिफिकेट दिया जाता है।
आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट प्राप्त करने की प्रक्रिया में आवेदक के व्यावसायिक अनुभव को देखा जाता है। साथ ही व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनो स्तर पर इसे आंका जाता है। इसके अलावा उसे 70 फीसदी अंको के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करना जरूरी है और एक आचार संहिता पर दस्तखत करने होते है।
सी.एम.एस.आई.प्रशिक्षण कोर्स के कोआर्डिनेटर (मार्केटिंग) आलोक भार्गव कहते है कि व्यक्तिगत आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट कम्पनीयों को सेल्स और मार्केटिंग कन्सल्टेन्ट नियुक्त करने में भी मदद करता है। वे ऐसे व्यक्ति का चयन बेहिचक कर सकते है क्योंकि ऐसे हर व्यक्ति की सम्पूर्ण जाॅच पहले ही की जा चुकी होती है। श्री भार्गव के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र ने अपने कर्मचारियो के लिए आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट प्राप्त करने में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। उन्होंने बताया यहाँ तक कि भारतीय मानक संस्थान भी इस दिशा में काफी दिलचस्पी ले रहा है।
सी.एम.एस.आई.के अधिकारियों का विश्वास है कि साॅफ्टवेयर उद्योग में उछाल के बाद आई.एस.ओ.सर्टिफिकेट प्राप्त प्रोफेशनलो की विदेशो में भी काफी माँग बढ़ गयी है।
01.पं0 जवाहर लाल नेहरु
(14 नवम्बर, 1889-27 मई, 1964)
परिचय
गाँधी युगीन स्वतन्त्रता संग्राम के महान प्रहरी, नवीन भारत के निर्माता और देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद (प्रयाग) में मोतीलाल जी के घर 14 नवम्बर, 1889 को हुआ था। नेहरू ने बी.ए.आनर्स एवं कानून की पढ़ाई इंग्लैण्ड में की। 1912 ई.में नेहरू वापस भारत आये और इसी वर्ष बांकीपुर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया। 1921 ई.में उन्हें कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। 1929, 1936, 1937 एवं 1951-56 ई.तक वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे। 1921 ई.में एक किसान आन्दोलन में भाग लेने के कारण नेहरू को लखनऊ में अपने जीवन की प्रथम जेल यात्रा करनी पड़ी, तत्पश्चात् देश के आजाद होने तक उन्हें कुल 9 बार जेल जाना पड़ा, जहाँ उन्होंने कुल 9 वर्ष का समय बिताया। 1930 ई.के नमक सत्याग्रह एवं 30 अक्टुबर, 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में नेहरू ने हिस्सा लिया। 1946 ई.में बनी अन्तरिम सरकार में वे प्रधानमन्त्री बनें। भारत के आजाद होने पर भी स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री बनने का सौभाग्य जवाहरलाल नेहरू को ही मिला और इस पद पर वे मृत्यु पर्यन्त अर्थात् 27 मई, 1964 ई.तक बने रहे। नेहरू के बारे में गाँधी जी ने कहा है कि-”वे नितान्त उज्जवल हैं और उनकी सच्चाई सन्देह से परे है, राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है।“ नेहरू में पूर्ण विश्वास करते हुए गाँधी जी ने यहाँ तक कहा कि नेहरू उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं।
गाँधी जी के विचारों के प्रतिकूल नेहरू ने देश में औद्योगिकरण को महत्व देते हुए भारी उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया। विज्ञान के विकास के लिए 1947 ई.में नेहरू ने ”भारतीय विज्ञान कांग्रेस“ की स्थापना की। उन्होंने कई बार भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भाषण दिया। भारत के विभिन्न भागों में स्थापित वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अनेक केन्द्र इस क्षेत्र में उनकी दूरदर्शिता के स्पष्ट प्रतीक हैं। खेलों में नेहरू की व्यक्तिगत रूचि थी। उन्होंने खेलों को शारीरिक व मानसिक विकास के लिए आवश्यक बताया। वे एक देश से दूसरे देश से मधुर सम्बन्ध कायम करने के लिए 1951 ई.में दिल्ली में प्रथम एशियाई खेलों का आयोजन करवाया। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेहरू ने भारत में लोकतान्त्रिक समाजवाद की स्थापना का लक्ष्य रखा। उन्होंने आर्थिक योजना की आवश्यकता पर बल दिया। वे 1938 ई.में कांग्रेस द्वारा नियोजित ”राष्ट्रीय योजना समिति“ के अध्यक्ष भी थे। स्वतन्त्रता पश्चात् वे राष्ट्रीय योजना आयोग के प्रधान बनें। नेहरू ने साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। उनके व्यक्तिगत प्रयास से ही भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।
जवाहरलाल नेहरू ने भारत को तत्कालीन विश्व की दो महान शक्तियों का पिछलग्गू न बनाकर तटस्थता की नीति का पालन किया। नेहरू ने निर्गुटता एवं पंचशील जैसे सिद्धान्तों का पालन कर विश्व-बन्धुत्व एवं विश्व शान्ति को प्रोत्साहन दिया। नेहरू ने पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, जातिवाद एवं उपनिवेशवाद के खिलाफ जीवनपर्यन्त संघर्ष किया। अपने कैदी जीवन में नेहरू ने ”डिस्कवरी आॅफ इण्डिया“, ”ग्लिम्पसेज आॅफ वल्र्ड हिस्ट्री“ एवं ”मेरी कहानी“ नामक पुस्तकों की रचना की।
”हम अपनी योजनाओं को सक्रिय रुप से क्रियान्वित करंे, इसके लिए मानकों का होना अत्यन्त आवश्यक है तथा यह जरुरी है कि मानकों के निर्धारण व पालन हेतु प्रयत्नशील रहें।“ -पं0 जवाहर लाल नेहरु
भारतीय मानक ब्यूरो त्रैमासिकी-”मानक दूत“, वर्ष-19, अंक-1, 1999 से साभार)
02.इन्दिरा गाँधी
(19 नवम्बर, 1917-31 अक्टुबर, 1984)
परिचय
इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमंत्री रहीं और उसके बाद चैथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।
इन्दिरा प्रियदर्शिनी का जन्म 19 नवम्बर, 1917 में पं0 जवाहर लाल नेहरू और उनकी पत्नी कमला नेहरू के यहाँ हुआ। वे उनकी एक मात्र संतान थीं। नेहरू परिवार अपने पुरखों की खोज जम्मू और कश्मीर तथा दिल्ली के ब्राह्मणों में कर सकते हैं। इन्दिरा के पितामह मोती लाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से एक धनी बैरिस्टर थे। जवाहर लाल नेहरू पूर्व समय में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बहुत प्रमुख सदस्यों में से थे। उनके पिता मोती लाल नेहरू भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक लोकप्रिय नेता रहे। इन्दिरा के जन्म के समय महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जवाहर लाल नेहरू का प्रवेश स्वतन्त्रता आन्दोलन में हुआ।
उनकी परवरिश अपनी माँ की सम्पूर्ण देखरेख में, जो बीमार रहने के कारण नेहरू परिवार के गृह सम्बन्धी कार्यो से अलग रहीं, होने से इन्दिरा में मजबूत सुरक्षात्मक प्रवृत्तियों के साथ-साथ एक निःसंग व्यक्तित्व विकसित हुआ। इन्दिरा ने युवा लड़के-लड़कियों के लिए वानर-सेना बनाई, जिसने विरोध, प्रदर्शन और झण्डा जुलूस के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं की मदद में संवेदनशील प्रकाशनों तथा प्रतिबन्धित सामग्रीयों का परिसंचरण कर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में छोटी लेकिन उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। सन् 1936 में उनकी माँ कमला नेहरू तपेदिक से एक लम्बे संघर्ष के बाद अंतत-स्वर्गवासी हो गई। इन्दिरा तब 18 वर्ष की थीं और इस प्रकार अपने बचपन में उन्हें कभी भी एक स्थिर पारिवारिक जीवन का अनुभव नहीं मिल पाया था। उन्होंने प्रमुख भारतीय, यूरोपीय तथा ब्रिटीश स्कूलों में अध्ययन किया, जैसे शान्तिनिकेतन, बैडमिंटन स्कूल और आॅक्सफोर्ड। 1930 के दशक के अन्तिम चरण में आॅक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैण्ड के सोमरविल्ले काॅलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान वे लन्दन में आधारित स्वतन्त्रता के प्रति कट्टर समर्थक भारतीय लीग की सदस्य बनीं।
महाद्वीप यूरोप और ब्रिटेन में रहते समय उनकी मुलाकात एक पारसी कांग्रेस कार्यकर्ता फिरोज गाँधी से हुई और अंतत-16 मार्च, 1942 को आनन्द भवन, इलाहाबाद में एक नीजी आदि धर्म ब्रह्म वैदिक समारोह में उनसे विवाह किया। ठीक भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरूआत से पहले जब महात्मा गाँधी और कांग्रेस पार्टी द्वारा चरम एवं पुरजोर राष्ट्रीय विद्रोह शुरू की गई। सितम्बर 1942 में वे ब्रिटीश अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार की गई और बिना कोई आरोप के हिरासत में डाल दिये गये थे। अंतत-243 दिनों से अधिक जेल में बिताने के बाद उन्हें 13 मई 1943 को रिहा किया गया। 1944 में उन्होंने फिरोज गाँधी के साथ राजीव गाँधी और इसके दो साल बाद संजय गाँधी को जन्म दिया। गाँधीगण बाद में इलाहाबाद में बस गये, जहाँ फिरोज ने एक कांग्रेस पार्टी समाचार पत्र और एक बीमा कम्पनी के साथ काम किया। उनका वैवाहिक जीवन प्रारम्भ ठीक रहा लेकिन बाद में जब इन्दिरा अपने पिता के पास नई दिल्ली चली गयीं, उनके प्रधानमंत्रीत्व काल में जो अकेले तीन मूर्ति भवन में एक उच्च मानसिक दबाव के माहौल में जी रहे थे, वे उनकी विश्वस्त, सचिव और नर्स बनीं। उनके बेटे उनके साथ रहते थे लेकिन वो अंतत-फिरोज से स्थायी रूप से अलग हो गईं, यद्यपि विवाहित का तमगा जुटा रहा। तनाव की चरम सीमा की स्थिति में इन्दिरा अपने पति से अलग हुईं। हालांकि सन् 1958 में उप निर्वाचन के थोड़े समय के बाद फिरोज को दिल का दौरा पड़ा जो नाटकीय ढंग से उनके टृटे हुए वैवाहिक बंन्धन का अंत किया। कश्मीर में उन्हें स्वास्थोद्धार में साथ देते हुए उनकी परिवार निकटवर्ती हुई परन्तु 8 सितम्बर, 1960 को जब इन्दिरा अपने पिता के साथ एक विदेश दौरे पर गयीं थी, फिरोज की मृत्यु हुई।
जब भारत का पहला आम चुनाव 1951 में समीपवर्ती हुआ, इन्दिरा अपने पिता एवं अपने पति जो रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे, दोनों के प्रचार प्रबन्ध में लगी रहीं। फिरोज अपने प्रतिद्ववंदिता चयन के बारे में नेहरू से सलाह मशविरा नहीं किये थे और यद्यपि वह निर्वाचित हुए, दिल्ली में अपना अलग निवास का विकल्प चुना। फिरोज ने बहुत ही जल्द एक राष्ट्रीयकृत बीमा उद्योग में घटे प्रमुख घोटोले को उजागर कर अपने राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाकू होने की छवि को विकसित किया जिसके परिणामस्वरूप नेहरू के एक सहयोगी वित्तमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। 1959 और 1960 के दौरान इन्दिरा चुनाव लड़ी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं। उनका कार्यकाल घटनाविहीन था। वो अपने पिता के कर्मचारियों के प्रमुख की भूमिका निभा रहीं थीं। नेहरू का देहांत 27 मई, 1964 को हुआ और इन्दिरा नए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रेरणा पर चुनाव लड़ी और तत्काल सूचना और प्रसारण मंत्री के लिए नियुक्त हो सरकार में शामिल हुई।
ताशकन्द में सावियत मध्यस्थता में पाकिस्तान के अयूब खान के साथ शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया। तब कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के.कामराज ने शास्त्री ने इन्दिरा गाँधी के प्रधानमंत्री बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गाँधी ने शीघ्र ही चुनाव जीतने के साथ-साथ जनप्रियता के माध्यम से विराधियों के ऊपर हावी होने की योग्यता दर्शायी। वह अधिक बामवर्गी आर्थिक नीतियाँ लायीं ओर कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में एक निर्णायक जीत के बाद की अवधि में अस्थिरता की स्थिति में उन्होंने सन् 1975 में आपातकाल लागू किया। उन्होंने एवं कांग्रेस पार्टी ने 1977 के आम चुनाव में पहली बार हार का सामना किया। शुरू में संजय गाँधी उनका वारिस चुना गया था लेकिन एक उड़ान दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद, उनकी माँ ने अनिच्छुक राजीव गाँधी को पायलट की नौकरी परित्याग कर फरवरी, 1981 में राजनीति में प्रवेश के लिए प्रेरित किया। सन् 1980 में सत्ता में लौटने के बाद वह अधिकतर पंजाब के अलगाववादियों के साथ बढ़ते हुए द्वन्द में उलझी रहीं जिसमें आगे चलकर 31 अक्टुबर, सन् 1984 में अपने ही अंगरक्षकों द्वारा उनकी राजनैतिक हत्या हुई। उनका अन्तिम संस्कार 3 नवम्बर, 1984 को राजघाट के समीप हुआ और यह जगह शक्ति स्थल के रूप में जानी गई। उनके मौत के बाद नई दिल्ली के साथ-साथ भारत के अन्य शहरों, जिनमें कानपुर, आसनसोल और इन्दौर शामिल है में साम्प्रदायिक अशांति घिर गई और हजारों सिखों के मौत दर्ज किये गये।
इन्दिरा गाँधी के मृत्यु के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बनें। मई 1991 में उनकी भी राजनैतिक हत्या लिबरेशन टाइगर्स आॅफ तमिल ईलम के आतंकवादियों के हाथों हुई। राजीव की विधवा सोनिया गाँधी ने संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन को 2004 के लोकसभा निर्वाचन में एक आश्चर्य चुनावी जीत का नेतृत्व दिया। सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री कार्यालय का अवसर को अस्वीकार कर दिया लेकिन कांग्रेस की राजनैतिक उपकरणों पर उनका लगाम है। राजीव के सन्तान राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी भी राजनीति में प्रवेश कर चुके हैं। संजय गाँधी की विधवा मेनका गाँधी, के पुत्र वरूण गाँधी राजनीति में भारतीय जनता पार्टी में सक्रिय हैं।
”राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिए मानकीकरण एवं गुणता नियन्त्रण अनिवार्य है। ये उत्पाद को उसकी सामग्री और मानवीय साधनों के पूर्ण उपभोग में सहायता करते हैं उपभोक्ता का बचाव करते हैं और आंतरिक व्यवहार तथा निर्यात का स्तर ऊँचा उठाते हैं। इस प्रकार से ये आर्थिक विकास में भागीदार बनते हैं।“ -श्रीमती इन्दिरा गाँधी
(भारतीय मानक ब्यूरो त्रैमासिकी-”मानक दूत“, वर्ष-19, अंक-1“ 1999 से साभार)
03.राजीव गाँधी
(20, अगस्त, 1944-21 मई, 1991)
परिचय
राजीव गाँधी का जन्म 20, अगस्त, 1944 को हुआ था। वे श्रीमती इन्दिरा गाँधी के पुत्र और जवाहरलाल नेहरू के पौत्र थे। राजीव का विवाह एन्टोनिया मैनो से हुआ जो उस समय इटली की नागरिक थीं। विवाहोपरान्त उनकी पत्नी ने नाम बदलकर सोनिया गाँधी कर लिया। कहा जाता है कि राजीव गाँधी से मुलाकात तब हुई जब राजीव कैम्ब्रिज में पढ़ने गये थे। उनकी शादी 1968 ई.में हुई जिसके बाद वे भारत में रहने लगी। राजीव व सोनिया के दो बच्चे हैं-पुत्र राहुल गाँधी (जन्म 19 जून, 1970) और पुत्री प्रियंका गाँधी (जन्म 12 जनवरी, 1972) जिनका विवाह राबर्ट वड्रा से हुआ है। राजीव गाँधी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पायलट की नौकरी करते थे। आपातकाल के उपरान्त जब इन्दिरा गाँधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, तब कुछ समय के लिए राजीव परिवार के साथ विदेश में रहने चले गये थे। परन्तु 1980 ई.में अपने छोटे भाई संजय गाँधी की एक हवाई जहाँ ज दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा को सहयोग देने के लिए सन् 1982 में राजीव गाँधी ने राजनीति में प्रवेश लिया, वो अमेठी उ0प्र0 से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने। 31 अक्टुबर, 1984 ई.को सिख आतंकवादीयों द्वारा प्रधानमंत्रीं इन्दिरा गाँधी का हत्या किये जाने के बाद उनके पुत्र राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बनें। और अगले चुनावों में भारी बहुमत के साथ भारत के 9वें प्रधानमंत्री बने थे। उनके प्रधानमंत्रीत्व काल में भारतीय सेना द्वारा बोफोर्स तोप की खरीददारी में लिये गये किकबैक (कमीशन या घूस) का मुद्दा उछला, जिसका मुख्य पात्र इटली का एक नागरिक ओटावियो क्वात्रोची था, जो कि सोनिया गाँधी का मित्र था। उसके बाद 1989 ई.के आम चुनावों में कांग्रेस की हार हुई और पार्टी 2 वर्ष तक विपक्ष में रही। अगले चुनावों में कांग्रेस के जीतने और राजीव गाँधी के पुन-प्रधानमंत्री बनने की पूरी सम्भावना थी, परन्तु 21 मई, 1991 ई.को तमिल आतंकवादीयों ने राजीव गाँधी की एक बम विस्फोट में हत्या कर दी।
”यह समय की माँग है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में गुणता के प्रति राष्ट्रीय प्रतिबद्धता हो। हमारी संतुष्टि किसी भी प्रकार के उत्पादन से नहीं अपितु हमारे द्वारा उत्पादित उत्कृष्ट वस्तुओं और दी जाने वाली उत्कृष्ट सेवाओं से हो।“ -श्री राजीव गाँधी
भारतीय मानक ब्यूरो त्रैमासिकी-”मानक दूत“, वर्ष-20, अंक-1-2, 2000 से साभार)
04.श्री डब्ल्यू.टी.कैबैनो
”किसी भी समाज का मानकीकरण पद्धति, इसे सृजित करने वाले समाज से न तो बेहतर होगी और न ही बदतर। इसकी प्रथमिकताएं, समाज के लक्ष्य हैं और इसके मूल्य समाज के मूल्य हैं।“ -डब्ल्यू0.टी.कैबेनो.
(भारतीय मानक ब्यूरो त्रैमासिकी-”मानक दूत“, वर्ष-20, अंक-1-2, 2000 से साभार)
05.श्री कौफी अन्नान
(8 अप्रैल, 1938-)
परिचय
कोफी अन्नान, एक घाना निवासी राजनयिक जो 7वें संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के रूप में 1 जनवरी 1997 से 31 दिसम्बर 2006 तक सेवा किये हैं। अन्नान और संयुक्त राष्ट्र संघ को 2001 में संयुक्त रूप से शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें ग्लोबल एड्स और मानव स्वास्थ्य के लिए फण्ड बनाने के कार्य के लिए दिया गया था।
कोफी अन्नान का जन्म 8 अप्रैल, 1938 को कुमासी, गोल्ड कोस्ट, घाना के ईसाई धर्म में पैदा हुये थे। वे एक बहन के साथ जुड़वा पैदा हुये थे। घानानियन परम्परा में बच्चों के नाम जिस दिन वे पैदा होते है, के अनुसार रखे जाते हैं। कोफी का नाम शुक्रवार से सम्बन्ध रखता है। 1870 के दशक में स्थापित म्फैन्ट्सीपीम मेथोडिस्ट बोर्डिंग स्कूल, केप कोस्ट में 1954 से 1957 में शिक्षा ग्रहण किये। 1957 में उन्होंने इस स्कूल से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1958 में घाना ने ब्रिटेन से स्वतन्त्रता प्राप्त की। अन्नान ने कुमासी कालेज से अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। उन्होंने 1961 में फोर्ड फाउण्डेशन का अनुदान प्राप्त कर सेंट पाल, मिनेसोटा, संयुक्त राज्य अमेरिका के मैनक्लेस्टर कालेज में प्रवेश लिया। सन् 1961-62 में वे अन्तर्राष्ट्रीय और विकास अध्ययन संस्थान, जिनेवा, स्विटजरलैण्ड से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में डिग्री प्राप्त की। कुछ समय कार्य अनुभव के पश्चात् वे स्लोअन फैलो प्रोगा्रम द्वारा एम.आई.टी.प्रबन्धन स्कूल, स्लोअन से मास्टर आॅफ साइंस की डिग्री प्राप्त की। अन्नान धारा प्रवाह अंग्रेजी, फ्रेंच, क्रु और अन्य अफ्रीकी भाषा बोलते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव पद पर नियुक्त होने के पूर्व वे घाना और संयुक्त राष्ट्र के अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं। अन्नान अनेक अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्करों से सम्मानित हो चुके हैं।
”..........लेकिन भूमण्डलीय क्रिया का प्रारम्भ कहीं निर्मित हो चुका है और यदि संयुक्त राष्ट्र संघ में नहीं तो कहाँ? .........मैं जानता हूँ स्वयं की एक घोषणा कम महत्व रखती है। परन्तु दृढ़ प्रतिज्ञा युक्त एक घोषणा और यथार्थ लक्ष्य, सभी राष्ट्रों के नेताओं द्वारा निश्चित रुप से स्वीकारने योग्य, अपने सत्ताधारी की कुशलता का निर्णय के लिए एक पैमाने के रुप में विश्व के व्यक्तियों के लिए अति महत्व का हो सकता है। ...........और मैं आशा करता हूँ कि यह कैसे हुआ? देखने के लिए सम्पूर्ण विश्व पीछे होगा।“
-श्री कोफी अन्नान
(लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा 6 जून, 2000 को पंजीकृत डाक द्वारा श्री कोफी अन्नान को प्रेषित पत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 5-7 सितम्बर, 2000 को आयोजित विश्व शान्ति सहस्त्राब्दि सम्मेलन, न्यूयार्क के वक्तव्य का अंश, जो ”द टाइम्स आफ इण्डिया“, नई दिल्ली, 7 सितम्बर“ 2000 को प्रकाशित हुआ था।)
पहले मानक के सम्बन्ध में विभिन्न वक्तव्य और अब अन्त में मेरा
वक्तव्य और विश्वमानक
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ (16 अक्टुबर 1967-)
आविष्कारकर्ता-मन (मानव संसाधन) का विश्व मानक एवं पूर्ण मानव निर्माण की तकनीकी
अगला दावेदार-भारत सरकार का सर्वोच्च नागरिक सम्मान-”भारत रत्न“
परिचय
अपने विशेष कला के साथ जन्म लेने वाले व्यक्तियों के जन्म माह अक्टुबर के सोमवार, 16 अक्टुबर 1967 (आश्विन, शुक्ल पक्ष-त्रयोदशी, रेवती नक्षत्र) समय 02.15 ए.एम.बजे को रिफाइनरी टाउनशिप अस्पताल (सरकारी अस्पताल), बेगूसराय (बिहार) में श्री लव कुश सिंह का जन्म हुआ और टाउनशिप के म्1.53ए म्2.53ए क्2थ्.76ए क्2थ्.45 और साइट कालोनी के क्.58ए ब्.45 में रहें। इनकी माता का नाम श्रीमती चमेली देवी तथा पिता का नाम श्री धीरज नारायण सिंह जो इण्डियन आॅयल कार्पारेशन लि0 (आई.ओ.सी.लि.) के बरौनी रिफाइनरी में कार्यरत थे और उत्पादन अभियंता के पद से सन् 1995 में स्वैच्छिक सेवानिवृत हो चुके हंै। जो कि ग्राम-नियामतपुर कलाँ, पुरूषोत्तमपुर, मीरजापुर (उ0प्र0) पिन-231305 के निवासी हैं। दादा का नाम स्व.राजाराम व दादी का नाम श्रीमती दौलती देवी था। जन्म के समय दादा स्वर्गवासी हो चुके थे जो कभी कश्मीर के राजघराने में कुछ समय के लिए सेवारत भी थे। मार्च सन् 1991 में इनका विवाह चुनार क्षेत्र के धनैता (मझरा) ग्राम में शिव कुमारी देवी से हुआ और जनवरी सन् 1994 में पुत्र का जन्म हुआ। मई सन् 1994 में शिव कुमारी देवी की मृत्यु होने के उपरान्त वे लगभग घर की जिम्मेदारीयों से मुक्त रह कर भारत देश में भ्रमण करते हुये चितन व विश्वशास्त्र के संकलन कार्य में लग गये। किसी भी व्यक्ति का नाम उसके अबोध अवस्था में ही रखा जाता है अर्थात् व्यक्ति का प्रथम नाम प्रकृति प्रदत्त ही होता है। लव कुश सिंह नाम उनकी दादी स्व0 श्रीमती दौलती देवी के द्वारा उन्हें प्राप्त हुआ।
भारत देश के ग्रामीण क्षेत्र से एक सामान्य नागरिक के रूप में सामान्य से दिखने वाले श्री लव कुश सिंह एक अद्भुत नाम-रूप-गुण-कर्म के महासंगम हैं जिसकी पुनरावृत्ति असम्भव है। इनकी शिक्षा न्यू प्राइमरी स्कूल (प्राथमिक), रिफाइनरी टाउनशिप, बेगूसराय (बिहार), माधव विद्या मन्दिर इण्टरमीडिएट कालेज, पुरूषोत्तमपुर, मीरजापुर, उ0प्र0 (दसवीं-1981, 13 वर्ष 6 माह में), प्रभु नारायण राजकीय इण्टर कालेज, रामनगर, वाराणसी, उ0प्र0 (बारहवीं-1983, 15 वर्ष 6 माह में) और बी.एससी.(जीव विज्ञान) में 17 वर्ष 6 माह के उम्र में सन् 1985 ई0 में तत्कालिन गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध श्री हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, वाराणसी से पूर्ण हुई। तकनीकी शिक्षा में कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग एण्ड सिस्टम एनालिसिस में स्नातकोत्तर डिप्लोमा इण्डिया एजुकेशन सेन्टर, एम-92, कनाॅट प्लेस, नई दिल्ली से सन् 1988 में पूर्ण हुई। परन्तु जिसका कोई प्रमाण पत्र नहीं है वह ज्ञान अद्भुत है। अपने तीन भाई-बहनों व एक पुत्र में वे सबसे बड़े व सबसे कम प्रमाणित शिक्षा प्राप्त हैं। एक अजीब पारिवारिक स्थिति यह है कि प्रारम्भ निरक्षर माँ से होकर अन्त ”विश्वशास्त्र“ को व्यक्त करने वाले श्री लव कुश सिंह तक एक ही परिवार में हैं।
सभी धर्मशास्त्रों और भविष्यवक्ताओं के अनुसार और सभी को सत्य रूप में वर्तमान करने के लिए ”विश्वशास्त्र“ को व्यक्त करने वाले श्री लव कुश सिंह समय रूप से संसार के सर्वप्रथम वर्तमान में रहने वाले व्यक्ति हैं क्यूँकि वर्तमान की परिभाषा है-पूर्ण ज्ञान से युक्त होना और कार्यशैली की परिभाषा है-भूतकाल का अनुभव, भविष्य की आवश्यकतानुसार पूर्णज्ञान और परिणाम ज्ञान से युक्त होकर वर्तमान समय में कार्य करना। स्वयं को आत्म ज्ञान होने पर प्रकृति प्रदत्त नाम के अलावा व्यक्ति अपने मन स्तर का निर्धारण कर एक नाम स्वयं रख लेता है। जिस प्रकार ”कृष्ण“ नाम है ”योगेश्वर“ मन की अवस्था है, ”गदाधर“ नाम है ”रामकृष्ण परमहंस“ मन की अवस्था है, ”सिद्धार्थ“ नाम है ”बुद्ध“ मन की अवस्था है, ”नरेन्द्र नाथ दत्त“ नाम है ”स्वामी विवेकानन्द“ मन की अवस्था है, ”रजनीश“ नाम है ”ओशो“ मन की अवस्था है। उसी प्रकार लव कुश सिंह ने अपने नाम के साथ ”विश्वमानव“ लागाकर मन की अवस्था को व्यक्त किया है और उसे सिद्ध भी किया है। व्यक्तियों के नाम, नाम है ”भोगेश्वर विश्वमानव“ उसकी चरम विकसित, सर्वोच्च और अन्तिम अवस्था है जहाँ समय की धारा में चलते-चलते मनुष्य वहाँ विवशतावश पहुँचेगा ऐसा उनका मानना है। जिस प्रकार श्रीकृष्ण के जन्म से पहले ही ईश्वरत्व उन पर झोंक दिया गया था अर्थात् जन्म लेने वाला देवकी का आठवाँ पुत्र ईश्वर ही होगा, यह श्रीकृष्ण को ज्ञात होने पर जीवनभर वे जनभावना को उस ईश्वरत्व के प्रति विश्वास बनाये रखने के लिए संघर्ष करते रहे, उसी प्रकार इस ”लव-कुश“ का नाम उन्हें ज्ञात होने पर वे भी इसे सिद्ध करने के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे जिसका परिणाम आपके समक्ष है।
श्री लव कुश सिंह “विश्वमानव” ने कभी किसी पद पर सरकारी नौकरी नहीं की इस सम्बन्ध में उनका कहना था कि-“नौकरी करता तो यह नहीं कर पाता। पद पर रहता तो केवल पद से सम्बन्धित ही विशेषज्ञता आ पाती। वैसे भी पत्र-व्यवहार या पुस्तक का सम्बन्ध ज्ञान और विचार से होता हैं उसमें व्यक्ति के शरीर से क्या मतलब? क्या कोई लंगड़ा या अंधा होगा तो उसका ज्ञान-विचार भी लंगड़ा या अंधा होगा? क्या कोई किसी पद पर न हो तो उसकी सत्य बात गलत मानी जायेगी? विचारणीय विषय है। परन्तु इतना तो जानता हूँ कि यह आविष्कार यदि सीधे-सीधे प्रस्तुत कर दिया जाता तो सभी लोग यही कहते कि इसकी प्रमाणिकता क्या है? फिर मेरे लिए मुश्किल हो जाता क्योंकि मैं न तो बहुत ही अधिक शिक्षा ग्रहण किया था, न ही किसी विश्वविद्यालय का उच्चस्तर का शोधकत्र्ता था। परिणामस्वरूप मैंने ऐसे पद ”कल्कि अवतार“ को चुना जो समाज ने पहले से ही निर्धारित कर रखा था और पद तथा आविष्कार के लिए व्यापक आधार दिया जिसे समाज और राज्य पहले से मानता और जानता है।”
भारत अपने शारीरिक स्वतन्त्रता व संविधान के लागू होने के उपरान्त वर्तमान समय में जिस कत्र्तव्य और दायित्व का बोध कर रहा है। भारतीय संसद अर्थात् विश्वमन संसद जिस सार्वभौम सत्य या सार्वजनिक सत्य की खोज करने के लिए लोकतन्त्र के रूप में व्यक्त हुआ है। जिससे स्वस्थ लोकतंत्र, समाज स्वस्थ, उद्योेग और पूर्ण मानव की प्राप्ति हो सकती है, उस ज्ञान से युक्त विश्वात्मा श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ वैश्विक व राष्ट्रीय बौद्धिक क्षमता के सर्वाेच्च और अन्तिम प्रतीक के रूप मंे व्यक्त हंै।
निःशब्द, आश्चर्य, चमत्कार, अविश्वसनीय, प्रकाशमय इत्यादि ऐसे ही शब्द उनके और उनके शास्त्र के लिए व्यक्त हो सकते हैं। विश्व के हजारों विश्वविद्यालय जिस पूर्ण सकारात्मक एवम् एकीकरण के विश्वस्तरीय शोध को न कर पाये, वह एक ही व्यक्ति ने पूर्ण कर दिखाया हो उसे कैसे-कैसे शब्दों से व्यक्त किया जाये, यह सोच पाना और उसे व्यक्त कर पाना निःशब्द होने के सिवाय कुछ नहीं है।
”विश्वशास्त्र“ के शास्त्राकार श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ अपने परिचितों से केवल सदैव इतना ही कहते रहे कि-”कुछ अच्छा किया जा रहा है“ के अलावा बहुत अधिक व्याख्या उन्होंने कभी नहीं की। और अन्त में कभी भी बिना इस शास्त्र की एक भी झलक दिखाये एकाएक यह शास्त्र प्रस्तुत कर दिया जाये तो इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है। जो इस स्तर पर है कि-“विश्व बुद्धि बनाम एकल बुद्धि”। और उसका परिणाम ये है कि भारत को वर्तमान काल में विश्वगुरू और संयुक्त राष्ट्र संघ तक के लिए सार्वभौम सत्य-सैद्धान्तिक स्थापना योग्य मार्गदर्शन अभी ही उपलब्ध हो चुका है जिससे भारत जब चाहे तब उसका उपयोग कर सके।
जो व्यक्ति कभी किसी वर्तमान गुरू के शरणागत होने की आवश्यकता न समझा, जिसका कोई शरीरधारी प्रेरणा स्रोत न हो, किसी धार्मिक व राजनीतिक समूह का सदस्य न हो, इस कार्य से सम्बन्धित कभी सार्वजनिक रूप से समाज में व्यक्त न हुआ हो, जिस विषय का आविष्कार किया गया, वह उसके जीवन का शैक्षणिक विषय न रहा हो, 50 वर्ष के अपने वर्तमान अवस्था तक एक साथ कभी भी 50 लोगों से भी न मिला हो, यहाँ तक कि उनको इस रूप में 50 आदमी भी न जानते हों, यदि जानते भी हो तो पहचानते न हों और जो पहचानते हों वे इस रूप को जानते न हों, वह अचानक इस शास्त्र को प्रस्तुत कर दें तो इससे बडा चमत्कार क्या हो सकता है।
जिस व्यक्ति का जीवन, शैक्षणिक योग्यता और कर्मरूप शास्त्र तीनों का कोई सम्बन्ध न हो अर्थात् तीनों तीन व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हों, इससे बड़ी अविश्वसनीय स्थिति क्या हो सकती है।
मूल पाशुपत शैव दर्शन सहित अनेक मतों का सफल एकीकरण के स्वरूप श्री लव कुश सिह “विश्वमानव” के जीवन, कर्म और ज्ञान के अनेक दिशाओं से देखने पर अनेक दार्शनिक, संस्थापक, संत, ऋषि, अवतार, मनु, व्यास, व्यापारी, रचनाकर्ता, नेता, समाज निर्माता, शिक्षाविद्, दूरदर्शिता इत्यादि अनेक रूप दिखते हैं।
”दो या दो से अधिक माध्यमों से उत्पादित एक ही उत्पाद के गुणता के मापांकन के लिए मानक ही एक मात्र उपाय है। सतत् विकास के क्रम में मानकों का निर्धारण अति आवश्यक कार्य है। उत्पादों के मानक के अलावा सबसे जरुरी यह है कि मानव संसाधन की गुणता का मानक निर्धारित हो क्योंकि राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिए प्रत्येक व्यक्ति के मन को भी आधुनिक अर्थात्् वैश्विक-ब्रह्माण्डीय करना पड़ेगा। तभी मनुष्यता के पूर्ण उपयोग के साथ मनुष्य द्वारा मनुष्य के सही उपयोग का मार्ग प्रशस्त होगा। उत्कृष्ट उत्पादों के लक्ष्य के साथ हमारा लक्ष्य उत्कृष्ट मनुष्य के उत्पादन से भी होना चाहिए जिससे हम लगातार विकास के विरुद्ध नकारात्मक मनुष्योें की संख्या कम कर सकें। भूमण्डलीकरण सिर्फ आर्थिक क्षेत्र में कर देने से समस्या हल नहीं होती क्योंकि यदि मनुष्य के मन का भूमण्डलीकरण हम नहीं करते तो इसके लाभों को हम नहीं समझ सकते। आर्थिक संसाधनों में सबसे बड़ा संसाधन मनुष्य ही है। मनुष्य का भूमण्डलीकरण तभी हो सकता है जब मन के विश्व मानक का निर्धारण हो। ऐसा होने पर हम सभी को मनुष्यों की गुणता के मापांकन का पैमाना प्राप्त कर लेगें, साथ ही स्वयं व्यक्ति भी अपना मापांकन भी कर सकेगा। जो विश्व मानव समाज के लिए सर्वाधिक महत्व का विषय होगा। विश्व मानक शून्य श्रृंखला मन का विश्व मानक है जिसका निर्धारण व प्रकाशन हो चुका है जो यह निश्चित करता है कि समाज इस स्तर का हो चुका है या इस स्तर का होना चाहिए। यदि यह सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त आधारित होगा तो निश्चित ही अन्तिम मानक होगा।“
भारतीय आध्यात्म-दर्शन-संस्कृति के लिए यह एक नयी और आधुनिक सूक्ष्म दृष्टि ही है कि मानव समाज के एकीकरण के लिए सदैव अपने विचार-सिद्धान्त से मानकीकरण करना ही भारतीय आध्यात्म-दर्शन-संस्कृति का मूल उद्देश्य रहा है जबकि समाज के मानव उसे न अपनाकर मानकीकरण के आविष्कारक और उनके जीवन की ओर बढ़ गये। इतना ही नहीं आविष्कार के आधार पर अनेक आविष्कार भी करते चले गये परिणास्वरूप मानव समाज मानकीकरण के मूल उद्देश्य से इतना दूर आ चुका है कि इस मूल उद्देश्य को स्वीकारना भी उन्हें गलत लगेगा जबकि इस उद्देश्य के बिना उनका पूर्णता की ओर बढ़ना असम्भव भी है और अन्तिम मार्ग भी है।
सृष्टि में साकार और निराकार सृष्टि के दो रूप हैं। साकार सृष्टि यह हमारा दृश्य ब्रह्माण्ड है तो निराकार सृष्टि सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त है। इसी प्रकार मानव के सम्बन्ध में भी है निराकार मानव, मानव का अपना विचार है और साकार मानव, मानव का दृश्य शरीर है। भारतीय आध्यात्म-दर्शन इसे मानव सभ्यता के विकास के प्रारम्भ में ही समझ गया था इसलिए वह सदैव मानव समाज के एकीकरण के लिए मानक का विकास करता रहा है। जिसके निम्न विकास क्रम हैं-
अ. व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य निराकार एवं साकार मानक
01. सार्वभौम मानक-सार्वभौम आत्मा या ईश्वर का आविष्कार।
02. सार्वभौम मानक के पुस्तक-वेद का आविष्कार।
03. सार्वभौम मानक का नाम-ऊँ का आविष्कार।
04. सार्वभौम मानक के नाम के व्याख्या का पुस्तक-उपनिषद् का आविष्कार।
05. सार्वभौम व्यक्तिगत व्यक्ति का मानक-ब्रह्मा (सत्व गुण) का आविष्कार।
06. सार्वभौम सामाजिक व्यक्ति का मानक-विष्णु (सत्व-रज गुण) का आविष्कार।
07. सार्वभौम वैश्विक व्यक्ति का मानक-शिव-शंकर (सत्व-रज-तम गुण) का आविष्कार।
08. सार्वभौम व्यक्तिगत व्यक्ति के मानक के कृति का पुस्तक-ब्रह्मा आधारित पुराण का आविष्कार।
09. सार्वभौम सामाजिक व्यक्ति के मानक के कृति का पुस्तक-विष्णु आधारित पुराण का आविष्कार।
10. सार्वभौम वैश्विक व्यक्ति के मानक के कृति का पुस्तक-शिव-शंकर आधारित पुराण का आविष्कार।
ब. सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य निराकार एवं साकार मानक
1. शरीर की अवस्था-आश्रम के मानक का निम्न रूप है-
01. ब्रह्मचर्य आश्रम-5 से 25 वर्ष उम्र तक-ज्ञान-विज्ञान-तकनीकी शिक्षा तथा व्यवहार।
02. गृहस्थ आश्रम-26 से 50 वर्ष उम्र तक-पारिवारिक जीवन में ज्ञान युक्त कत्र्तव्य और दायित्व।
03. वानप्रस्थ आश्रम-51 से 75 वर्ष उम्र तक-माँगें जाने पर अपने अनुभव से परिवार व समाज का मार्गदर्शन।
04. सन्यास आश्रम-76 से शरीर त्याग तक-आत्मा में स्थित होकर ब्रह्माण्डीय दायित्व व कर्तव्य।
2. कर्म की अवस्था-वर्ण के मानक का निम्नरूप है-
01. ब्राह्मण वर्ण-सूक्ष्म बुद्धि व आत्मा में स्थित हो धर्म से कार्य।
02. क्षत्रिय वर्ण-भाव व मन में स्थित हो बल से कार्य।
03. वैश्य वर्ण-इन्द्रिय व प्राण में स्थित हो धन से कार्य।
04. शूद्र वर्ण-शरीर में स्थित हो शरीर से कार्य।
3. मानव का मानक-अवतारवाद-अवतारवाद का मुख्य उद्देश्य मानव समाज में मानव का मानक निर्धारित करना है। जिसका विकास क्रम निम्न प्रकार है-
01. मत्स्यावतार-इस अवतार द्वारा धारा के विपरीत दिशा (राधा) में गति करने का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
02. कच्छप अवतार-इस अवतार द्वारा सहनशील, शांत, धैर्यवान, लगनशील, दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थ की भूमिका वाला गुण (समन्वय का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
03. बाराह अवतार-इस अवतार द्वारा सूझ-बुझ, सम्पन्न, पुरूषार्थी, धीर-गम्भीर, निष्कामी, बलिष्ठ, सक्रिय, अहिंसक और समूह प्रेमी, लोगों का मनोबल बढ़ाना, उत्साहित और सक्रिय करने वाला गुण (प्रेरणा का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
04. नरसिंह अवतार-इस अवतार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से एका-एक लक्ष्य को पूर्ण करने वाले (लक्ष्य के लिए त्वरित कार्यवाही का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
05. वामन अवतार-इस अवतार द्वारा भविष्य दृष्टा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूमि पर गणराज्य व्यवस्था की स्थापना व व्यवस्था को जिवित करना, उसके सुख से प्रजा को परिचित कराने वाले गुण (समाज का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
06. परशुराम अवतार-इस अवतार द्वारा गणराज्य व्यवस्था को ब्रह्माण्ड में व्याप्त व्यवस्था सिद्धान्तों को आधार बनाने वाले गुण और व्यवस्था के प्रसार के लिए योग्य व्यक्ति को नियुक्त करने वाले गुण (लोकतन्त्र का सिद्धान्त और उसके प्रसार के लिए योग्य उत्तराधिकारी नियुक्त करने का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
07. राम अवतार-इस अवतार द्वारा आदर्श चरित्र के गुण के साथ प्रसार करने वाला गुण (व्यक्तिगत आदर्श चरित्र के आधार पर विचार प्रसार का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
08. कृष्ण अवतार-इस अवतार द्वारा आदर्श सामाजिक व्यक्ति चरित्र के गुण, समाज मंे व्याप्त अनेक मत-मतान्तर व विचारों के समन्वय और एकीकरण से सत्य-विचार के प्रेरक ज्ञान को निकालने वाले गुण (सामाजिक आदर्श व्यक्ति का सिद्धान्त और व्यक्ति से उठकर विचार आधारित व्यक्ति निर्माण का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
09. बुद्ध अवतार-इस अवतार द्वारा प्रजा को प्रेरित करने के लिए धर्म, संघ और बुद्धि के शरण में जाने का गुण (धर्म, संघ और बुद्धि का सिद्धान्त) का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित हुआ।
10. कल्कि अवतार-इस अवतार द्वारा आदर्श मानक सामाजिक व्यक्ति चरित्र समाहित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र अर्थात् सार्वजनिक प्रमाणित आदर्श मानक वैश्विक व्यक्ति चरित्र का मानक विचार-सिद्धान्त स्थापित करने का काम वर्तमान है और वो अन्तिम भी है।
उपरोक्त दस अवतार द्वारा स्थापित विचार-सिद्धान्त का संयुक्त रूप ही मानक पूर्ण मानव का रूप है। प्रत्येक पूर्व के अवतार द्वारा स्थापित विचार-सिद्धान्त अगले अवतार में वह संक्रमित अर्थात् विद्यमान रहते हुये अवतरण होता है। इस प्रकार अन्तिम अवतार में पूर्व के सभी अवतार के गुण विद्यमान होंगे और अन्तिम अवतार ही मानव समाज के लिए मानक मानव होगा।
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