व्यवसाय आरंभ करने का विचार और योजना बनाना
सृष्टि के पूर्व ब्रह्म शब्दात्मक बनते है, फिर ओंकारात्मक या नादात्मक होते है। तत्पश्चात पहले कल्पों के विशेष शब्द जैसे-भूः, भुवः, स्वः अथवा गो, मानव, घट, पट इत्यादि का प्रकाश उसी आंेकार से होता है। सिद्ध संकल्प ब्रह्म में क्रमशः एक-एक शब्द के होते ही उसी क्षण उन सब पदार्थो का भी प्रकाश हो जाता है और इस विचित्र जगत् का विकास हो उठता है। अब समझे न कि कैसे शब्द ही सृष्टि का मूल है।
-स्वामी विवेकानन्द (विवेकानन्द जी के संग में, पृष्ठ-62)
प्रत्येक व्यापार के जन्म होने का कारण एक विचार होता है। पहले विचार की उत्पत्ति होती है फिर उस पर आधारित व्यापार का विकास होता है। विचार पहले किसी एक व्यक्ति के अन्दर जन्म लेता है उसके उपरान्त भले ही वह कई व्यक्ति के समूह का बन जाये, अलग बात है। जब समूह का बन जाता है तब वह कम्पनी, कार्पोरेशन, एन.जी.ओ., ट्रस्ट और यदि अधिक शक्तिशाली हो तो राष्ट्र का व्यापार बन समाज के सामने आता है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
-व्यापारिक क्षेत्र में व्यापार के वस्तु का विचार सर्वप्रथम व्यक्ति के अन्दर आता है फिर वह बाहर प्रोप्राइटरश्पि, पार्टनरशिप, प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी, लिमिटेड कम्पनी इत्यादि के रूप में बाहर आता है और उस व्यापार के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह सरकारी प्रक्रिया, कार्यालय, उत्पाद निर्माण, विज्ञापन, प्रचार-प्रसार, कर्मचारी वेतन, योजना, प्रलोभन इत्यादि पर धन खर्च करता है।
-राजनीतिक क्षेत्र में एक ग्राम प्रधान/सभासद, क्षेत्र पंचायत सदस्य, क्षेत्र प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक, सांसद, मंत्री इत्यादि बनने का विचार सर्वप्रथम उस व्यक्ति के मन में आता है। फिर वह बाहर व्यक्त होता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह धन, सम्बन्ध, जन आधार इत्यादि का प्रयोग करता है।
-धार्मिक क्षेत्र में भी आजकल स्वयं के विचार के अनुसार स्वयं को लक्ष्य के अनुसार स्थापित करने के लिए व्यक्ति सरकारी प्रक्रिया, कार्यालय, उत्पाद निर्माण, विज्ञापन, प्रचार-प्रसार, कर्मचारी वेतन, योजना, प्रलोभन इत्यादि पर धन खर्च करता है।
व्यवसाय योजना बनाना
व्यवसाय योजना व्यवसाय लक्ष्यों, उन्हें प्राप्त करने की तर्कसंगतता तथा उन्हें प्राप्त करने हेतु योजना की औपचारिक विवरणी होती है।
1. व्यवसाय योजना की विषयवस्तु
इसे पढने से पहले यह समझ लें कि इसमें दी हुयी विषयवस्तु केवल आपके मार्गदर्शन के उद्देश्य से दी गयी है। आपका व्यवसाय विशिष्ट है तथा उसमें यह तथ्य परिलक्षित होना चाहिये। इसमें दी गयी विषयवस्तु किसी एक प्रकार के व्यवसाय से संबंधित नहीं है। यहांँ दी गयी सामग्री यह मार्गदर्शन देने के लिये दी गयी है कि व्यवसाय योजना में कि पक्षों का उल्लेख होना चाहिये।
2. एक्जिक्यूटिव सारांश
व्यवसाय योजना में एक्जिक्यूटिव सारांश अवश्य होना चाहिये। इसमें व्यवसाय की मुख्य बातों का सारांश दिया जाता है। यदि आप बैंक से ऋण प्राप्त करना चाहते हैं, अथवा वेंचर कैपिटल फर्म से निवेश करवाना चाहते हैं तो निम्न बातों को शामिल करेः-कंपनी की सूचनाः नाम, प्रस्तावित विधिक रूप, अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक निवेशक। आपकी सूचना के लिये हमने व्यावसायिक संस्थाओं के रूप पर एक अलग सेक्शन रखा है। विधि संबंधी परिस्थितियों की बेहतर समझ उपलब्ध कराने हेतु हमने मूलभूत विधिक बाते पर भी एक सेक्शन रखा है।
3. परियोजना का संक्षिप्त परिचय
ऋण की राशि तथा अवधि ;यदि आप बैंक से संपर्क कर रहे हैंद्ध, वांछित निवेश की राशि ;यदि वेंचर कैपिटल फर्म से संपर्क कर रहे हैंद्ध, कंपनी, बैंक का पैसा लौटाने में सक्षम है यह दर्शाने हेतु ये विवरण प्रदान करें-विगत वित्तीय कार्य निष्पादन, प्राप्तियों के भावी स्रोत, भावी प्राप्तियों के स्रोत पर विश्वास हो सके इसके लिये यदि कोई अनुबंध किये हों, समाप्य मूल्य ;वेंचर कैपिटल फर्म हेतुद्ध, विपणन के उपलब्ध अवसर तथा कंपनी द्वारा इनके दोहन हेतु रणनीति, पृष्ठभूमि, कुछ सूचना एक्क्जिक्यूटिव सारांश में दी जाये तथा विवरण इस भाग में दिये जा सकते हैं।
4. कंपनी की वर्तमान स्थिति
कुछ सूचनायें जो आप शामिल कर सकते हैं-कर्मचारियों की संख्या तथा बिक्री के वार्षिक आंकड़े, मुख्य उत्पाद, विकास की वर्तमान स्थिति ;नयी परियोजनाओं के मामले मेंद्ध, कार्पोरेट ढांचा-व्यक्तिगत प्रोप्राइटरी, पार्टनरशिप, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप, प्राइवेट लिमिटेड, पब्लिक लिमिटेड, कंपनी का इतिहास-स्थापना की तारीख, बड़ी सफलतायें, तथा रणनीति की दृष्टि से महत्वपूर्ण अनुभव
5. प्रबंधन टीम का परिचय
कंपनी के मालिकों, निदेशकों, प्रवर्तकों ;वेंचर कैपिटल फंडिंग के मामले मेंद्ध भागीदारों, तथ अन्य मुख्य पदाधिकारियों के विषय में जानकारी दें।
6. विपणन योजना
आमतौर पर एक विपणन योजना के पाँच उद्देश्य होते हैं। अधिक जानकारी हेतु हमारे विपणन भाग को देखें।
1. उत्पाद-यहां पर आप अपने उत्पाद तथा अन्य वैकल्पिक उत्पादो के बीच के अंतर को बता सकते हैं। आपका उत्पाद क्यों बेहतर है, तथा ग्राहक आपके नये उत्पाद को कैसे स्वीकार करेगा ;कोई अतिरिक्त लागत लगेगीद्ध, आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिये जाने चाहिये।
2. मूल्य निर्धारण-आप अपने नये उत्पाद के मूल्य का निर्धारण कैसे करें तथा मूल्य निर्धारण नीति का यहां उल्लेख होना चाहिये।
3. वितरण पोजिशनिंग-अपने उत्पाद के वितरण की योजना क्या है? क्या आप वितरकों के साथ भागीदारी करेंगे? यदि इस संबन्ध में कोई बातचीत चल रही हो तो उसे भी शामिल करें। अधिक जानकारी हेतु हमारा वितरण चैनल भाग शामिल करें।
4. मांग प्रबंधन-इसका तात्पर्य आवश्यकता के आधार पर माल तथा सेवाओं के प्रबंधन तथा वितरण एवं पहुंच बनाने से है।
5. संवर्द्धन तथा ब्रांड विकास-अपना ब्रांड नाम बनाने तथा अपने उत्पाद को बढ़ावा देने के लिये किये गये उपायों अथवा इससे संबंधित योजना का उल्लेख करे। अपने उत्पाद को बढावा देने हेतु सुझावों के लिये हमारे विपणन संप्रेषण भाग को देखें।
6. प्रयोक्ता अनुभव-पारंपरिक विपणन प्रयासों के साथ साथ आजकल अनेक कंपनियां प्रयोक्ता अनुभवों पर बल दे रही हैं। तथ्य जैसे क्रय प्रक्रिया, खुदरा वातावरण, उत्पाद की विशिष्टता, आदि कुछ महत्वपूर्ण विचार बिंदु हैं।
7. परिचालनगत योजना
इस भाग में आप इस बात का उल्लेख करें कि आप अपने ग्राहकों को प्रभावी तथा दक्षता पूर्वक सेवा कैसे दे पायेंगे। इसमें आप निम्न को शामिल कर सकते हैं।
अ. निर्माण योजना-अपनी आपूर्ति शृंखला, उत्पादन हेतु वांछित इनपुट्स, सुविधायें, उपकरणों की आवश्यकतायें, तथा भंडारण आवश्यकताये आदि का उल्लेख करें।
ब. सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी योजना-आप किस तरह के प्रोद्योगिकी तथा संचार माध्यम शामिल करना चाहते हैं? साफ्टवेयर संबंधी आवश्यकताओं का उल्लेख करें (सीधे खरीदी जाने वाली है या आवश्यकतानुसार विकसित)। यदि आपकी योजना अपनी वेबसाइट विकसित करने की है तो उसका उल्लेख करें।
स. टीम बिल्डिंग-स्टाफ की मुख्य भूमिकायें, मुआवजा, भूमिकाओं की सूची तथा प्रबंधन ढांचा आदि का विवरण दें। इसी तरह, प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं तथा कार्यविधियों की भी चर्चा यहां करें।
द. इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी योजना-आपकी इंटेलेक्चुल प्रापर्टी आपकी कंपनी के लिये अत्यंत महत्व पूर्ण आस्ति है। आप अपने आईपीआर (ट्रेडमार्क, पेटेंट्स, कापीराइट्स आदि) को कैसे सुरक्षित रखेंगे इसका उल्लेख करें। यदि आपकी कंपनी की परिवर्ती लागत अधिक है तो आप लागत आवंटन माडल भी शामिल कर सकते है।
8. वित्तीय योजना
किसी व्यवसाय के वित्तीय मामलों से संबंधित उठाये गये कदमों की श्रृंखला अथवा प्राप्त लक्ष्यों की शृंखला को वित्तीय योजना कहते है। इसमे आप इसे शामिल कर सकते हैं-चालू वित्तपोषण-मुख्य निवेशक तथा मालिकान, वर्तमान ऋण एवं देयताये, बैंक अथवा वेंचर कैपिटल फर्म से संपर्क करने से पूर्व प्राप्त किया गया कोई वित्तपोषण, निधिपोषण योजना, वित्तीय भविष्यवाणी, तुलनपत्र, आय विवरणी, नकद प्रवाह विवरणी, सभी का यहां उल्लेख होना चाहिये। कभी-कभी आप भविष्य की आय के अनुमानों का भी उल्लेख कर सकते हैं ;यदि आप बैंक से सावधि ऋण लेना चाह रहे हों अथवा वेंचर कैपिटल फर्म के साथ संपर्क कर रहे होंद्ध
9. जोखिम विश्लेषण
1. जोखिम मूल्यांकन
अ. विपणन जोखिम-नये प्रतिस्पर्धियों का खतरा, उत्पाद की अनुमान से धीमी खपत आदि विपणन संबंधी जोखिम में शामिल होते हैं।.
ब. परिचालनगत जोखिम-दैनंदिन परिचालन के दौरान आने वाले जोखिम
स. स्टाफिंग जोखिम-कार्यबल(कर्मचारियों) से संबंधित किसी भी जोखिम की पहचान करके यहां उल्लेख किया जाना चाहिये।
द. वित्तीय जोखिम-देयताये, नकद प्रवाह, कार्यशील पूंजी, आदि कुछ जोखिम हैं जिनका कंपनियों को सामना करना पड़ता है। इनकी पहचान करके इनका उल्लेख करें।
य. प्रबंधकीय जोखिम
र. नियामक जोखिम-सरकारी नीतियों तथा नियमों में कभी भी परिवर्तन हो सकता है तथा इनका विपरीत प्रवाह आपके व्यवसाय पर भी पड़ सकता है।
2. जोखिम प्रबंधन योजना-अब जबकि आपने अपनी संस्था के समक्ष सभी जोखिमों का आकलन कर लिया है इस भाग में आप इनसे निपटने की योजना के विषय में उल्लेख करना होगा। उदाहरणतः देयताओं को सीमित करने की कार्यविधि एवं प्रक्रिया, आरक्षित निधियां, निर्बाध परिचालन योजना।
एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए दिशानिर्देश
अपनी व्यवसाय संबंधी किसी विचार के क्रियान्वयन के लिए वित्तीय सहायता का अनुरोध करते समय, आपकी कंपनी को एक परियोजना रिपोर्ट तैयार करनी होती है, जिसमें नीचे दिए गए विवरण के अनुसार परियोजना के कतिपय महत्त्वपूर्ण पहलू शामिल किए जाने होते हैं-
1. प्रवर्तक की पृष्ठभूमि/अनुभव
2. निर्मित की जाने वाली क्षमता सहित उत्पाद और शामिल प्रक्रियाओं का विवरण
3. परियोजना का स्थान
4. परियोजना लागत और उनके वित्तीयन के स्रोत
5. उपयोगी सुविधाओं की उपलब्धता
6. तकनीकी व्यवस्थाएँ
7. बाजार संबंधी संभावनाएँ और बिक्री की व्यवस्थाएँ
8. पर्यावरणीय पहलू
9. लाभप्रदता संबंधी प्रानुमान और वित्तीय सहायता की चुकौती की समग्र अवधि के लिए नकदी प्रवाह
चूँकि परियोजना के मूल्यांकन में निम्नलिखित क्षेत्रों में परियोजना का मूल्यांकन किया जाना होता है, अतः आपकी कंपनी को इस मामले में कुछ दस्तावेज सूचनाएँ प्रस्तुत करनी होंगी।
प्रबंधकीय मूल्यांकन
1. संस्था के बहिर्नियम एवं अंतर्नियम-उद्देश्य, प्राधिकृत एवं चुकता शेयर पूँजी, प्रवर्तक का अंशदान, उधार लेने की शक्ति, निदेशक मंडल में शामिल निदेशकों की सूची, निदेशकों की नियुक्ति की शर्तें।
2. प्रवर्तक के रूप में आपकी कंपनी-कंपनी की कॉर्पोरेट योजना, प्रवर्तित/क्रियान्वित/क्रियान्वयन के अधीन परियोजनाएँ, पिछली ऋण सहायता से संबंधित संव्यवहारों और चुकौती के बारे में बैंकर की रिपोर्ट, समूह की अन्य कंपनियों का विवरण, प्रवर्तक कंपनी का परिचालन, तुलनपत्र एवं लाभ-हानि लेखा।
3. नए प्रवर्तक-शैक्षिक पृष्ठभूमि, किसी तरह का औद्योगिक अनुभव, परिवार की पृष्ठभूमि, आय के स्रोत, व्यक्तिगत संपत्तियों का विवरण, बैंकर का संदर्भ, आयकर धनकर विवरणियाँ।
4. प्रबंधकीय एवं संगठनात्मक संरचना/व्यवस्था-निदेशक मंडल का संघटन, पूर्णकालिक निदेशकों का विवरण और उनकी जिम्मेदारियाँ, अर्हताओं व अनुभव सहित मुख्य कार्यपालक एवं कार्यकारी कार्यपालकों का विवरण, मौजूदा कंपनी और परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान नई कंपनी के लिए संगठनात्मक ढाँचा।
तकनीकी व्यवहार्यता
1. प्रौद्योगिकी एवं विनिर्माण प्रक्रिया-सिद्ध नई प्रौद्योगिकी, प्रौद्योगिकी के चयन का आधार, प्रतिस्पर्धी प्रौद्योगिकियाँ, प्रौद्योगिकी पर आधारित संयंत्रों के कार्यनिष्पादन संबंधी आँकड़े विवरण, प्रौद्योगिकी के लाइसेन्स प्रदाता का विवरण, प्रक्रिया प्रवाह का चार्ट और वर्णन।
2. परियोजना का स्थान-स्थान संबंधी लाभ, कच्चे माल एवं अन्य उपयोगी सुविधाओं की उपलब्धता, मूलभूत संरचना संबंधी सुविधाएँ, श्रमिकों की उपलब्धता, पर्यावरणीय पहलू।
3. संयंत्र एवं मशीनें-मशीनों एवं उपकरणों की सूची, आपूर्तिकर्ताओं का विवरण, प्रतिस्पर्द्धी दर-सूचियाँ (कोटेशन), प्रमुख उपकरणों का तकनीकी एवं वाणिज्यिक मूल्यांकन।
4. कच्चा माल, उपयोगी सुविधाएँ और श्रम-शक्ति-कच्चे माल और उनके आपूर्तिकर्ताओं का विवरण, बिजली और जल आपूर्ति, श्रम-शक्ति संबंधी अनुमान का आधार, श्रम-शक्ति का विवरण, जैसे-प्रबंधकीय, पर्यवेक्षण संबंधी कर्मचारी, कुशल/अकुशल श्रमिक, प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताएँ, आदि।
5. संविदाएँ-ठेकेदारों की तकनीकी जानकारी, इंजीनियरिंग, अधिप्राप्ति खरीदारी, निर्माण, वित्तीय सुदृढ़ता और अनुभव के विस्तृत विवरण सहित उनके साथ किए जाने वाले करार।
6. परियोजना की निगरानी एवं क्रियान्वयन-क्रियान्वयन की विधि, निगरानी दल का विवरण, क्रियान्वयन की विस्तृत समय-सारणी/कार्यक्रम।
7. पर्यावरणीय पहलू-वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण, प्रदूषणकारी/खतरनाक तत्त्वों की सूची, उनकी सुरक्षा, सँभलाई/रखरखाव और निपटान संबंधी व्यवस्थाएँ, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन, अपेक्षित एवं प्राप्त की गईं अनुमतियाँ एवं अनापत्ति प्रमाणपत्र, आदि।
वाणिज्यिक व्यवहार्यता
1. मात्रा एवं स्वरूप के संदर्भ में, प्रस्तावित उत्पाद की मौजूदा और भावी बाजार माँग एवं आपूर्ति।
2. विपणन रणनीति के माध्यम से, कुल बाजार में कंपनी के प्रस्तावित उत्पाद का हिस्सा।
3. उत्पाद का बिक्री मूल्य एवं निर्यात संभावनाएँ, यदि कोई हों।
4. वापसी-खरीद संबंधी व्यवस्था, यदि कोई हो।
वित्तीय मूल्यांकन
1. परियोजना लागत-इसमें भूमि और परियोजना स्थल के विकास, भवन, संयंत्र एवं मशीनों की लागत, तकनीकी जानकारी एवं इंजीनियरिंग शुल्क, विविध स्थिर आस्तियाँ, प्राथमिक एवं परिचालन-पूर्व व्यय, आकस्मिक व्यय एवं कार्यशील पूँजी के लिए मार्जिन राशि शामिल होती है। आपकी कंपनी से अपेक्षित होता है कि वह यथार्थपरक अनुमान प्रस्तुत करे। परियोजना की लागत की उपयुक्तता की जाँच विभिन्न कारकों, जैसे-क्रियान्वयन अवधि, मुद्रास्फीति, विभिन्न करारों, दर-सूचियों, आदि के संदर्भ में की जाएगी।
2. वित्तीयन के स्रोत-वित्तीयन के स्रोतों में शेयर पूँजी और ऋण का उचित मिश्रण होना चाहिए। इसमें शेयर पूँजी, प्रवर्तकों एवं सहायक संस्थाओं से अप्रतिभूत ऋण, आंतरिक उपचय, सावधि ऋण, सरकारी सब्सिडी/अनुदान शामिल हैं। यदि ईक्विटी और ब्याज-मुक्त अप्रतिभूत ऋण के रूप में प्रवर्तकों का अंशदान शामिल होता है, तो उसकी उपयुक्तता का निर्धारण परियोजना के प्रति प्रतिबद्धता को ध्यान में रखकर किया जाता है।
3. लाभप्रदता संबंधी प्रानुमान-आपकी कंपनी के पिछले वित्तीय कार्यनिष्पादन की जाँच की जाएगी। आपकी कंपनी को परियोजना के लिए और समग्र रूप में कंपनी के लिए लाभप्रदता अनुमान, नकदी प्रवाह और प्रानुमानित तुलनपत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है। प्रानुमानों के आधार पर, विभिन्न वित्तीय अनुपात, जैसे-ऋण-ईक्विटी अनुपात, चालू अनुपात, स्थिर आस्ति सुरक्षा अनुपात, सकल लाभ, परिचालनगत लाभ, निवल लाभ अनुपात, आंतरिक प्रतिफल दर (परियोजना के आर्थिक जीवन के दौरान), ऋण चुकौती सुरक्षा अनुपात, प्रति शेयर अर्जन, देय लाभांश, आदि निकाले जाएँगे, ताकि आपकी परियोजना की वित्तीय सुदृढ़ता निश्चित की जा सके।
आर्थिक व्यवहार्यता
1. परियोजना के आर्थिक मूल्यांकन के लिए आपकी कंपनी को, वित्तीय विश्लेषण में हिसाब में लिए गए मूल्य के विपरीत निविष्टियों का वास्तविक मूल्य लेना होगा।
2. आपकी कंपनी को परियोजना के फलस्वरूप समाज और अर्थव्यवस्था पर आने वाली लागत और उन्हें होने वाले लाभों के रूप में सामाजिक लागत-लाभ विश्लेषण करना चाहिए।
3. इस प्रकार, आर्थिक विश्लेषण का लक्ष्य परियोजना की अंतर्निहित शक्तियों पर केंद्रित होता है और इससे यह निश्चित किया जाता है कि कंपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करने में स्वयं समर्थ है या नहीं।
परियोजना का अनुवर्तन
संवितरण-पूर्व अवस्था-वित्तीय सहायता की मंजूरी का आशयपत्र कतिपय शर्तों के साथ जारी किया जाता है। जब आपकी कंपनी निदेशक मंडल के संकल्प के माध्यम से बिना किसी शर्त के आशयपत्र स्वीकार करती है, तो यथास्थिति लागू सहायता की शर्तों के अनुसार निम्नलिखित दस्तावेज निष्पादित किए जाने की जरूरत होती है।
1. ऋणदाता और उधारकर्ता के बीच संविदागत संबंध को सुनिश्चित रूप देने के लिए उनके बीच ऋण करार का निष्पादन
2. दृष्टिबंधक विलेख
3. शेयरधारिता न बेचने का वचनपत्र
4. अधिवृद्धि/कमी के लिए वचनपत्र
5. गारंटी विलेख
6. शेयर दस्तावेजों की गिरवी
7. अंतरिम प्रतिभूति के सृजन के लिए संबंधित कंपनी रजिस्ट्रार के पास दृष्टिबंधक विलेख के संबंध में फॉर्म 8 व 13 का पंजीकरण
8. अंतिम रूप से प्रतिभूति का सृजन
आपकी कंपनी को निम्नलिखित दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे-
1. स्वत्व विलेख
2. समरूप/प्राथमिक प्रभार छोड़ने के लिए मौजूदा प्रतिभूत लेनदारों से अनापत्ति प्रमाणपत्र
संस्था के बहिर्नियम और संस्था के अंतर्नियम पर हस्ताक्षर
कंपनी के पंजीकरण के लिए संस्था के बहिर्नियम और संस्था के अंतर्नियम की स्टाम्पित और हस्ताक्षरित प्रतियाँ जमा करने की जरूरत पड़ेगी।
1. संस्था के बहिर्नियम और संस्था के अंतर्नियम के समर्थन के लिए कम से कम दो समर्थनकर्ताओं की जरूरत होती है। हर समर्थनकर्ता के बारे में निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए-
क. पिता का नाम
ख. पिता का व्यवसाय
ग. स्थायी पता
घ. अभ्यर्थी द्वारा अभिदत्त शेयरों की संख्या
2. हस्ताक्षर प्रक्रिया में कम से कम एक प्रोफेशनल (वकील, सीए या अधिवक्ता) को बतौर गवाह होना चाहिए।
3. सुनिश्चित करें कि संस्था के बहिर्नियम और संस्था के अंतर्नियम स्टाम्पिंग की तारीख के बाद निष्पादित और हस्ताक्षरित हों।
4. यदि आवश्यक हो, तो पट्टाधारित भूमि के बंधक के लिए पट्टादाता की अनुमति
5. यदि आवश्यक हों, तो बंधक सृजित करने के लिए सांविधिक अनुमतियाँ
6. मंजूर सहायता का संवितरण
आपकी कंपनी को परियोजना की प्रगति और आवश्यक निधियों की जानकारी देते हुए, ऋण के आहरण के लिए आवेदन करना होगा। चूँकि अंतिम रूप से प्रतिभूति सृजन होने में समय लगता है, अतः विधिक दस्तावेजों के निष्पादन के बाद बैंक/संस्थाएँ संवितरण संबंधी अनुरोधों पर विचार कर लेती हैं, ताकि परियोजना के क्रियान्वयन में देरी न हो। आपकी कंपनी को निर्धारित प्रवर्तक अंशदान लाना होगा और संबंधित निधियों के उपयोग के साथ-साथ उसके संबंध में सनदी लेखाकार का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। प्रमाणपत्र के आधार पर, बैंक/संस्थाएँ सामान्यतः समानुपातिक संवितरण पर विचार करती हैं। बैंक/संस्थाएँ संवितरण से पहले परियोजना में न्यूनतम प्रवर्तक अंशदान लगाए जाने पर जोर दे सकती हैं। सहायता के संवितरण से पहले बैंक अधिकारी प्रगति की जाँच के लिए कार्यस्थल का दौरा करते हैं और बैंक खाते की जाँच-पड़ताल करते हैं। प्रत्येक संवितरण के समय बैंक प्रतिभूति सृजन की प्रगति की समीक्षा करता है।
संवितरण-पश्चात् अवस्था-क्रियान्वयन अवधि और परिचालन-पश्चात् अवधि के दौरान ऋणदाता बैंक/संस्था परियोजना की निगरानी करते हैं। ऋणदाता इनके लिए जोर दे सकता है-आवधिक प्रगति रिपोर्टें, बैंक/संस्था के अधिकारी द्वारा कार्यस्थल का दौरा
प्रगति का निश्चय करने के लिए कंपनी के मुख्य कार्यपालक/वरिष्ठ कार्यपालकों के साथ आवधिक वार्ता/चर्चा, आपकी कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट, आपकी कंपनी के निदेशक मंडल में बैंक/संस्था के नामिती की नियुक्ति, आपके नाम और बैंक/संस्था के साथ संयुक्त रूप से आपकी कंपनी की आस्तियों का बीमा, परियोजना का अनुवर्तन मूलतः इस उद्देश्य के साथ किया जाता है कि अभिप्रेत प्रयोजन के लिए मंजूर सहायता का अंतिम उपयोग सुनिश्चित किया जा सके और मंजूरी की शर्तों के अनुसार समय से सहायता की चुकौती हो सके।
अपने व्यवसाय का प्रबंधन
व्यवसाय के प्रबंधन की प्रक्रिया में कई कड़ियाँ आपस में गुँथी रहती हैं. जिनके जरिए संगठन के उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। इन बुनियादी तत्वों अथवा कार्यों में शामिल हैं-फर्म द्वारा तैयार किए गए उत्पाद को आगे बढ़ाना और उसका विपणन करना, उपयुक्त वितरण माध्यमों से भावी उपभोक्ता को उत्पाद उपलब्ध कराना, फर्म के लेखा-बही और वित्त का प्रबंधन करना, बौद्धिक संपदा की रक्षा करना आदि।
व्यापार रणनीति
रणनीति, सरलतम रूप में, एक विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बनाई गई कार्रवाई की एक योजना है. आमतौर पर रणनीति के बारे में सोचा जाता है कि वह एक प्रबंधन उपकरण के रूप में बड़े संगठनों के लिए ही उपयुक्त है एमएसएमई के लिए इसकी जरूरत महसूस नहीं की जाती. यह समझना महत्वपूर्ण है कि रणनीति सभी आकार के संगठनों के लिए उतनी ही जरूरी है. एक अच्छी तरह से तैयार की गई रणनीतिक योजना किसी भी फर्म के कर्मचारियों को उसके प्रयोजनों और उद्देश्यों की एक स्पष्ट दृष्टि और दिशा प्रदान करती है. यह फर्म को निकट भविष्य में संसाधनों के लिए योजना बनाने में भी सक्षम बनाती है। एक अच्छी व्यापार रणनीति इन बुनियादी बातों के उचित उपयोग द्वारा बनती है-डिजाइन और कार्यान्वयन, स्थापित होना (पोजीशनिंग), वर्गीकरण, मानव संसाधन, मुआवजा तथा पे रोल, कर्मचारियों को संलग्न रखना, सूचना का आदान-प्रदान, संगठनात्मक आयोजना, कार्य निष्पादन मूल्यांकन, भर्ती तथा कार्यबल - प्रशिक्षण एवं कौशल विकास
विपणन
अति लघु, लघु एवं मध्यम उद्योगों ;एमएसएमईद्ध के सामने बढते हुये बाजार के बारे में पर्याप्त जानकारी का हमेशा अभाव रहता ह। अपने छोटे आकार के कारण वे अपनी क्षमताओं के अनुसार बाजार का पूरा दोहन नहीं कर पाते। तथापि, वर्तमान स्पर्धात्मक वातावरण में व्यवसाय को लाभप्रद बनाये रखने के लिये घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में विस्तार अनिवार्य हो गया है। नीचे दी गयी जानकारी एमएसएमई को अपने बाजार का विस्तार करने हेतु सहायक हो सकती है।
बढते बाजारों हेतु बाजार अध्ययन करना
बाजार अध्ययन नयी विपणन संभावनाओं का पता लगाने तथा संभावित बाजार में अपने उत्पादों/सेवाओं की मांग की जानकारी प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। इसके द्वारा उन्हें नये बाजारों में मिलने वाली प्रतिस्पर्द्धा का आकलन करने में भी सहायता मिल सकती है। विपणन में विस्तार के अतिरिक्त बाजार अध्ययन का उपयोग एमएसएमई द्वारा अपने नियमित परिचालनों जैसे ग्राहक प्रतिसूचना, उत्पाद पोर्टफोलियो, इत्यादि हेतु भी किया जा सकता है।, बढते बाजारों हेतु विपणन की संकल्पनाओं को समझना, व्यवसाय को सुचारु रूप से चलाने तथा अपने बाजार को विस्तारित करने के लिये यह अनिवार्य है कि मूलभूत विपणन तकनीकों एवं संकल्पनाओं जैसे बाजार के साथ संप्रेषण के तरीके क्या है, उत्पादों के वितरणआपूर्ति की योजना कैसे बनानी है, अपने उत्पाद हेतु आपूर्ति आदेश कैसे प्राप्त करने हैं तथा अपने उत्पादों की कीमत कैसे निर्धारित करनी है, आदि को समझा जाये-बाजार संप्रेषण, वितरण, आदेश/क्वेरी प्राप्त करना, मूल्य निर्धारण तथा कोटेशन देना
विदेशी बाजारों का दोहन कैसे करें?
एमएसएमई को अपने उत्पादों के लिये विद्देशी बाजारों का दोहन करने में प्रायः कठिनाई होती है क्योंकि या तो उनके पास संभावित बाजारों की जानकारी का अभाव रहता है, अथवा विदेशी बाजारों में निर्यात से संबंधित विभिन्न विनियमों, दिशानिर्देशों, तथा प्रक्रियाओं का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता।
सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाने वाला विपणन सहयोग
एमएसएमई क्षेत्र के उत्पादों को बाजार में बेहतर स्पर्धात्मक स्थिति उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एमएसएमई मंत्रालय विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा है।
1. एमएसएमई मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित एमएसएमई योजनायें
2. अति लघु एवं लघु उद्यमों हेतु सरकारी खरीद तथा अधिमान्य मूल्य नीति (केवल एमएसई क्षेत्र से ही खरीदी जाने वाली 358 वस्तुओं की सूची हेतु)
3. एमएसएमई निर्यातकों हेतु विपणन विकास सहायता (एसएसआई एमडीए)
4. अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों/मेलों में सहभागिता
5. बार कोडिंग हेतु वित्तीय सहायता
6. अनुषंगीकरण हेतु वेन्डर विकास कार्यक्रम
एमएसएमई मंत्रालय राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) के माध्यम से विपणन सहायता योजना के अंतर्गत अति लघु एवं लघु उद्यमों को विपणन सहयोग उपलब्ध करा रहा है। एनएसआईसी द्वारा विदेशों में अंतर्राष्ट्रीय प्रघ्द्योगिकी प्रदर्शनियों का आयोजन तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों/व्यापार मेलों में सहभागिता। घरेलू प्रदर्शनियों का आयोजन तथा प्रत्येक वर्ष आयोजित किये जाने वाली टेक्मार्ट प्रदर्शनी सहित भारत में आयोजित प्रदर्शनियों/व्यापार मेलों में सहभागिता, थोक खरीदारों/सरकारी विभागों तथा एमएसएमई को एक स्थान पर एकत्र करने के उददेश्य से अन्य संगठनों/उद्योग संघों/एजेंसियों द्वारा आयोजित क्रेता विक्रेता सम्मेलनों तथा प्रदर्शनियों में सह प्रायोजन हेतु सहयोग, विपणन विकास हेतु सघन अभियान तथा अन्य आयोजन।
भौतिक आस्तियाँ
पूँजीगत माल प्रबन्धन सभी आस्तियों का प्रबन्धन आवश्यक होता है। ये आस्तियाँ आय प्राप्त करने की साधन होती हैं, कई मामलों में ये निवेश पर प्राप्तियों के रूप में प्राप्त होती है। यह सभी पर लागू होता है, चाहे आस्तियों ;चालू आस्तियाँद्ध की प्रकृति अल्पावधि की हो या आस्तियाँ ;अचल आस्तियाँद्ध दीर्घावधि प्रकृति की हों। भौतिक आस्तियों और पूँजीगत आस्तियों के प्रबन्धन के लिए आवश्यक हैः संयंत्र और मशीनरी, सुरक्षा और बीमा का प्रबन्धन।, उत्पादन, मालसूची प्रबंधन, माल संचालन, अधिप्राप्ति एवं खरीद, उत्पादकता में सुधार, उत्पादन योजना
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