जनमत से अलग सर्वेक्षण के आधार
जनमत आधारित सर्वेक्षण किसी विषय/बिन्दु पर पक्ष और विपक्ष आधारित हो सकता है। एक निर्माता चाहे वह किसी उत्पाद का हो या समाज का, वह जनमत से अलग दृष्टि रखकर सर्वेक्षण करता है। इस प्रकार के सर्वेक्षण जनता को छूते भी नहीं और उनके लिए उत्पाद/योजना तैयार कर ली जाती है।
जनमत से अलग होकर सर्वेक्षण के लिए आॅकड़े समाचारों और उस क्षेत्र के संसाधन के उपलब्ध आॅकड़े द्वारा प्राप्त होते हैं। भारतीय शास्त्रों में ऐसे आॅकड़ों को प्रसारित करने वाले मानक चरित्र के रूप में नारद मुनि का प्रक्षेपण है।
एक ही पक्ष को जानना/सुनना/देखना, एक नेत्र से देखना कहा जाता है। दूसरे पक्ष को भी जानना/सुनना/देखना, दो नेत्र से देखना कहा जाता है। दोनों पक्षों को जानना/सुनना/देखना, और संतुष्टि के लिए समन्वय स्थापित करना समन्वायात्मक दृष्टि कही जाती है जबकि संतुष्टि सहित दोनों पक्षों की शक्ति को रचनात्मकता की ओर लगा देना तीसरे नेत्र की दृष्टि कही जाती है। चूंकि यह दृष्टि रचनात्मक होती है इसलिए दोनों पक्षों को अपने विचार पर उनके ही दिशा से व्यापक विचार होता है इसलिए पक्षों को उनके अंहकार पर चोट जैसा अनुभव कराता है। उन्हें लगता है कि हमारा अस्तित्व नहीं रहा। इसी को तीसरे नेत्र से भस्म कर देना कहते हैं। पौराणिक कथाओं में नारद मुनि और शिव-शंकर द्वारा रचनात्मक विकास दर्शन के प्रयोग के अनेक घटनाएँ उपलब्ध हैं। कोई भी रचनात्मक विकास दर्शन अपने अन्दर पुराने सभी दर्शनों को समाहित कर लेता है अर्थात् उसका विनाश कर देता है और स्वयं रचनात्मक मार्गदर्शक दर्शन का स्थान ले लेता है। अर्थात् सृष्टि-स्थिति-प्रलय फिर सृष्टि। चक्रीय रूप में ऐसा सोचने वाला ही नये परिभाषा में आस्तिक और सिर्फ सीधी रेखा में सृष्टि-स्थिति-प्रलय सोचने वाला नास्तिक कहलाता है।
तीसरे नेत्र के दृष्टि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त कर्मज्ञान की दृष्टि है। कर्मज्ञान की दृष्टि ही रचनात्मक विकास दर्शन की दृष्टि होती है। जो सभी प्रकार के विचार के उपर स्वयं को स्थापित कर लेता है। इस दृष्टि के निम्नलिखित बिन्दु है (विस्तार के लिए अध्याय-तीन देखें)
सूत्र-1. ज्ञानातीत चक्र: चक्र-0-धर्म ज्ञान से बिना युक्त के मुक्त अर्थात् अपना मालिक अन्य और धर्म ज्ञान से युक्त होकर मुक्त अर्थात् अपना मालिक स्वंय की स्थिति। ज्ञानावस्था से होकर यही चक्र 7 भी कहलाता है। यह स्थिति शिशु और ज्ञानी की होती है।
सूत्र-2. भौतिकवाद या भोगवाद कर्म चक्र:
चक्र-1. TRANSACTION-आदान-प्रदान चक्र। यही ज्ञानावस्था में चक्र-6 कहलाता है।
उपचक्र 1.1-शारीरिक
उपचक्र 1.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 1.3-मानसिक
चक्र-2. RURAL-ग्रामीण चक्र
उपचक्र 2.1-शारीरिक
उपचक्र 2.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 2.3-मानसिक
चक्र-3.ADVANCEMENT या ADAPTABILITY - आधुनिकता या अनुकूलन चक्र
उपचक्र 3.1-शारीरिक
उपचक्र 3.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 3.3-मानसिक
चक्र-4. DEVELOPMENT -विकास चक्र
उपचक्र 4.1-शारीरिक
उपचक्र 4.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 4.3-मानसिक
चक्र-5. EDUCATION-शिक्षा चक्र
उपचक्र 5.1-शारीरिक
उपचक्र 5.2-आर्थिक/संसाधन
उपचक्र 5.3-मानसिक
सूत्र-3. आध्यात्मवाद-ज्ञानचक्र:
चक्र-6. NATURAL TRUTH -प्राकृतिक सत्य चक्र: यही चक्र अज्ञानावस्था में चक्र-1 कहलाता है।
उपचक्र-1.1-अदृश्य प्राकृतिक अर्थात् अदृश्य आत्मा
उपचक्र 1.2-दृश्य प्राकृतिक अर्थात् दृश्य आत्मा
सूत्र-4. ज्ञानातीत चक्र: चक्र-7-RELIGION-धर्मचक्र: अपना मालिक स्वंय की स्थिति। यही अज्ञानावस्था में चक्र-0 भी कहलाता है।
इस प्रकार-to step up TRADE
through CENTRE (सभी कर्म व्यापार को सार्वभौम आत्मा केन्द्र के ज्ञान द्वारा आगे बढ़ाना) अर्थात् विस्तार में to step up
Transaction, Rural, Advancement (Adaptability), Development, Education through
Center for Enhancement of Natural Truth & Religious Education (सभी कर्म आदान-प्रदान, ग्रामीण, आधुनिकता-अनुकूलन, विकास, शिक्षा को प्राकृतिक सत्य और धार्मिक शिक्षा के ज्ञान द्वारा आगेे बढ़ाना) हुआ अर्थात् जो व्यक्ति और संस्था समभाव और निष्पक्ष में स्थित होकर सभी शारीरिक, आर्थिक व मानसिंक कर्म आदान-प्रदान, ग्रामीण, आधुनिकता-अनुकूलन, विकास, शिक्षा को सदैव एक साथ करता है वही मानक व्यक्ति और संस्था कहलाता है।
किसी भी व्यक्ति (व्यष्टि मन), संस्था (समष्टि मन) और भौगोलिक क्षेत्र के लिए उपरोक्त सर्वेक्षण के आधार बिन्दु के अनुसार देखना, तीसरे नेत्र द्वारा देखना और कमी के पूर्ति हेतु रचनात्मक योजना बनाना, स्वयं की सर्वोच्चता स्थापित करते हुये अन्य को भस्म कर देने जैसा ही होता है। उपरोक्त बिन्दुओ।के आधार पर सर्वेक्षण एक सत्य मानक सर्वेक्षण और रचनात्मक योजना ब्रह्माण्डीय विकास की दिशा के मुख्य धारा की ओर होता है।
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