सर्वेक्षण (Survey)-अर्थ एवं प्रकार
शब्द ßSurveyÞ दो शब्दों Sur (Sor) + Vey
(Veeir) से मिलकर बना है जिसका अर्थ ऊपर देखना या ऊपर से निरीक्षण करना है। इस विधि का प्रयोग सामान्यतया सामाजिक तथा शैक्षिक समस्याओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। जब अनुसंधानकत्र्ता किसी सामाजिक व्यवहार का अध्ययन कम समय में करना चाहता है या कम समय में लोगों के मत का सर्वेक्षण करना चाहता है, तो वह सर्वेक्षण विधि का प्रयोग करता है। Chaplin (1975) का मत हैै कि ”सर्वेक्षण विधि का तात्पर्य निदर्शन तथा प्रश्नावली विधि द्वारा जनमत के मापन से है।“ (Survey method refers
to the measurement of public opinion by the use of A sampling And questionnaire
technique.)। सर्वेक्षण विधि को परिभाषित करते हुए Kerlinger (1973) ने अपना मत इस प्रकार प्रकट किया है-”सर्वेक्षण अनुसंधान सामाजिक वैज्ञानिक अनुसंधान की वह शाखा है जो छोटी तथा बड़ी जनसंख्याओं का अध्ययन चयन किये गये प्रतिदर्शो के द्वारा सापेक्षिक घटनाओं, वितरणों, अन्तर्सम्बन्धों तथा सामाजिक मनोवैज्ञानिक परिवत्र्यों के माध्यम से किया जाता है।“ (Survey research is that branch of social scientific investigation that
studies large And small population by selecting And studying small samples chosen
from the population to discover the relative incidents, distributions of
sociological And psychological variables.)
सामाजिक सर्वेक्षण एक वैज्ञानिक अध्ययन है, एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में विश्वसनीय तथ्यों का विस्तृत संकलन किया जाता है। इसकी सहायता से किसी भी पक्ष, विषय या समस्या का खोजपूर्ण निरीक्षण किया जाता है तथा उससे संबंधित विश्वसनीय विस्तृत तथ्यों का संकलन करके वास्तविक एवं प्रयोग से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इन निष्कर्षों के आधार पर रचनात्मक योजनाओं का निर्माण करके समाज सुधार और समाज कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए जाते हैं।
सर्वेक्षण के प्रकार (Types of Survey)
Kerlinger के अनुसार यह चार प्रकार का होता है-
1. वैयक्तिक साक्षात्कार एवं अनुसूची (Personal Interview And
Schedules)- सामाजिक विज्ञान अनुसंधानों में यह विधि सर्वाधिक लोकप्रिय है। प्रदत्त संकलन की यह एक प्रमुख विधि है। इसके लिए प्रश्नावली या अनुसूची का निर्माण करना होता है। इसके लिए अनुसंधानकर्ता को प्रश्नावली या अनुसूची का निर्माण करने में अधिक परिश्रम होता है जिसमें कई सूचनाएँ यथा-आयु, यौन, शिक्षा, आय, मत, अभिवृत्ति, व्यवहार का कारण आदि सम्मिलित होती है। यद्यपि साक्षात्कार अनुसूची की रचना में धन व समय अधिक लगता है। इस विधि में प्राप्त सूचनाओं की प्रकृति समाजशास्त्री होती है जैसे-यौन, वैवाहिक स्थिति, आय, राजनीतिक वरीयता, धार्मिक वरीयता आदि। यह सूचनाएँ अति आवश्यक होती हैं। इनके द्वारा दो परिवत्र्यों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इन सूचनाओं को थ्ंबम ैीममज प्दवितउंजपवद कहते हैं। यह सूचनाएँ साक्षात्कार प्रारम्भ करने के पहले प्राप्त कर ली जाती है। यह सूचनाएँ तटस्थ होती हैं। इन्हीं के आधार पर अनुसंधानकर्ता प्रारम्भिक सम्पर्क स्थापित करता है। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर भूत, वर्तमान एवं भविष्य के व्यवहार का विश्लेषण कर सकते हैं। इस विधि के द्वारा संज्ञानात्मक वस्तुओं के प्रति उत्तरदाता के अभिवृत्ति, मत और विश्वास को ज्ञात कर सकते हैं।
2. चयनक विधि (Panel Technique)- इसमें उत्तरदाताओं के प्रतिदर्श का चयन किया जाता है और उनका साक्षात्कार लिया जाता है। तत्पश्चात् प्राप्त प्रदत्त का विश्लेषण किया जाता है। मुख्य बात यह है कि इसमें कई निरीक्षक एक साथ होते हैं।
3. दूरभाष सर्वेक्षण (Telephone Survey)- इस विधि में विस्तृत विवरण नहीं प्राप्त होता है। इसलिए इस विधि का प्रयोग भी कम किया जाता है। यद्यपि इस विधि में समय भी कम लगता है और गति से कार्य होता है। इस विधि का प्रयोग उस समय किया जाता है जब
अ. साक्षात्मकारकत्र्ता उत्तरदाता से अपरिचित होता है।
ब. जब उत्तरदाता सरल प्रश्नों का ही उत्तर देना चाहता है।
स. जब उत्तरदाता अ-सहयोगी और अ-अनुक्रियाशील होते हैं।
4. डाक प्रश्नावली (Mail Questionnaire)- डाक प्रश्नावली शिक्षा के क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है परन्तु इसकी कुछ कमियाँ भी है-
अ. इसमें समस्त प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने की सम्भावना कम पायी जाती है।
ब. दिये गये उत्तरों की जाँच करने में अनुसंधानकर्ता अक्षम होता है।
स. कम लोग ही प्रश्नावलीयों को वापस करते हैं।
द. 40 से 50 प्रतिशत प्रश्नावलीयाँ ही वापस होती हैं।
य. प्रश्नावलीयों के वापसी की संख्या बढ़ाने के लिए प्रश्नावलीयों को पुनः भेजने चाहिए, टिकट लगा लिफाफा भेजना चाहिए।
सर्वेक्षण विधि के लाभ (Advantage of Survey
Research)
1. सर्वेक्षण प्रदत्त की जाँच आसानी से की जा सकती है।
2. उत्तरदाता का पुनः साक्षात्कार करके उनके दोनों अनुक्रियाओं की तुलना की जा सकती है।
3. कम पैसे में ही विशाल जनसंख्या से प्रदत्त संकलित किया जाता है।
4. इस विधि में प्राप्त की गई सूचनाएँ अधिक परिशुद्ध होती हैं।
5. इस विधि के द्वारा सैद्धान्तिक, व्यवहारिक तथा शैक्षिक समस्याओं का समाधान होता है।
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