श्री अन्ना हजारे (15 जनवरी, 1940 - )
परिचय -
किसन बाबूराव हजारे, भारत के प्रसिद्ध गांधीवादी समाजिक कार्यकर्ता हैं। अधिकांश लोग उन्हें ”अण्णा हजारे“ के नाम से जानते हैं। अन्ना हजारे को 1990 में सरकार ने ”पद्य्मश्री“ सम्मान से नवाजा था। सन् 1992 में उन्हें ”पद्य्मभूषण“ से सम्मानित किया गया था। सूचना के अधिकार के लिए कार्य करने वाले में वे प्रमुख थें। साफ-सुथरी छवि वाले हजारे भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष करने के लिए प्रसिद्ध हैं। जन लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए उन्होंने आमरण अनशन आरम्भ किया जिसे अपार समर्थन मिला। जिससे घबराकर सरकार को उनकी मांगे मानने को विवश हुई।
15 जनवरी, 1940 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्में अन्ना का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में थे। दादा की पोस्टिंग भिंगनगर मे थी। अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मौत के 7 वर्ष बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना के 6 भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने 7वीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर वह दादर स्टेशन के बाहर फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपये की पगार में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
छठें दशक के आसपास वह फौज में शामिल हो गये। उनकी पहली पोस्टिंग बतौर ड्राइवर पंजाब में हुई। यहीं पाकिस्तानी हमले में वह मौत को धता बताकर बचे थे। इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानन्द की एक बुकलेट ”काॅल टु दि युथ फाॅर नेशन“ खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिन्दगी समाज को समर्पित कर दी। उन्होंने गाँधी और विनोबा को भी पढ़ा। 1970 में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प किया। मुम्बई पोस्टिंग के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचते रहते।
जम्मू पोस्टिंग के दौरान 15 वर्ष फौज में पूरे होने पर 1975 में उन्होंने स्वेच्छा से सेवा निवृति लेकर गांव में आकर डट गये। उन्होंने शराब में डूबे अपने पथरीले गांव रालेगन सिद्धि को दुनिया के समाने एक माॅडल बनाकर पेश किया। रामराज के दर्शन करने हैं तो उसे देखा जा सकता है। पहले इस गांव में बिजली और पानी की जबरदस्त किल्लत थी। हजारे ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खेदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया। उनके कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाये गये। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिये बिजली की सप्लाई भी मिली। उन्होंने गांव की तस्वीर ही बदल दी। उन्होंने अपनी जमीन बच्चों के हाॅस्टल के लिए दान कर दी। आज उनकी पंेशन का सारा पैसा गांव के विकास में खर्च होता है। वह गांव के मन्दिर में रहते हैं और हाॅस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर आदमी आत्मनिर्भर है। आस-पास पड़ोस के गांवों के लिए भी यहाँ से चारा, दूध आदि जाता है। गांव में एक तरह का राम राज स्थापित कर दिया है। इस काम के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्य्मभूषण से भी सम्मानित किया। उन्होंने गाँधी जी की सोच को पूरी मजबूती से उठाया कि- बलशाली भारत के लिए गांवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा। उनके अनुसार- विकास का लाभ समान रूप से वितरित न हो पाने के कारण है- गांवों के केन्द्र में न रखना, व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया। और एक गांव से आरम्भ उनका अभियान आज 85 गांवों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूलमंत्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को आत्मसात् कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया। अब वह अपने दल-बल के साथ देश में राम राज की स्थापना की मुहिम ”भ्रष्टाचार रहित भारत“ में निकले हैं।
गाँधी की विरासत उनकी थाथी है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गाँधी टोपी और बदन पर खादी है। आँखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। उन्हें छोटा गाँधी भी कहा जा सकता है। अन्ना आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। पहले वह महाराष्ट्र सरकार के 5 मन्त्रियों की बलि ले चुके हैं। प्रधानमंत्री ने अन्ना से इस बारे में बातचीत की है। आश्वासन भी दिया है लेकिन अन्ना तो अन्ना हैं। कहा है कि ठोस कुछ नहीं हुआ तो वह दिल्ली को हिला देंगे। अन्ना ने आज तक जो सोचा है, उसे कर दिखाया है। अन्ना की राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के धुर विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहचान 1995 में बनी थी जब उन्होंने शिवसेना-बी.जे.पी की सरकार के कुछ भ्रष्ट मन्त्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। अन्ना 2003 में कांग्रेस और एन.सी.पी सरकार के 4 भ्रष्ट मन्त्रियों के खिलाफ भूख हड़ताल पर बैठ गये। हजारे का विरोध काम आया और सरकार को झुकना पड़ा। इसके बाद हजारे की लोकप्रियता में तेजी से इजाफा हुआ।
मंगलवार, 5 अप्रैल, 2011 को महात्मा गाँधी के समाधि स्थल राजघाट जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद हजारे ने जंतर-मंतर, नई दिल्ली पर अपना अनशन शुरू किया। इस दिन अन्ना का पूरा गांव भी भूखा था। अन्ना के गांव में नारे गूँज रहे थे- ”अन्ना हजारे आँधी है, देश का दूसरा गाँधी है।“ अनशन पर बैठने से पहले हजारे ने कहा- ”यह दूसरा सत्याग्रह है।“ सख्त लोकपाल विधेयक के लिए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का आमरण अनशन दूसरे दिन बुधवार को भी जारी रहा। देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन को मिल रहे समर्थन के बीच जाने-माने गाँधीवादी हजारे ने कहा है कि सरकार भ्रष्टाचार रोकने को लेकर गम्भीर नहीं है। उन्होंने कहा कि राजनेताओं पर अब विश्वास नहीं किया जा सकता। इस बीच भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी) और जनता दल (यूनाइटेड) ने हजारे के अनशन को अपना समर्थन दिया जबकि कांग्रेस ने हजारे के उपवास को ”असामयिक“ करार दिया है। हजारे समर्थक लोकपाल विधेयक के समर्थन में राष्ट्रध्वज और तख्तियों के साथ राजघाट और जंतर-मंतर पर एकत्रित थे। हजारे के समर्थन में सूचना का अधिकार (आर.टी.आई) कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल, स्वामी अग्निवेश, मैगसेसे पुरस्कार विजेता किरन बेदी, संदीप पाण्डेय सहित अन्य लोग शामिल हुए।
अन्ना हजारे चाहते हैं कि- सरकार जन लोकपाल बिल तुरंत लाए, लोकपाल की सिफारिशें अनिवार्य तौर पर लागू हों और लोकपाल को जजों, सांसदो, विधायकों आदि पर भी मुकदमा चलाने का अधिकार हो। लेकिन सरकार इन खास मुद्दों पर बहस और चर्चा की जरूरत मान रही है। अन्ना चाहते हैं कि- ऐसा कानून बने जिसके तहत भ्रष्ट राजनेताओं और अधिकारियों को तय समय सीमा के भीतर आसानी से दण्डित किया जा सके। साथ ही अन्ना चाहते हैं कि जो कमेटी इस बिल पर काम करे उसमें आधे लोग गैर राजनीतिज्ञ हों। अभी सरकार जो बिल तैयार कर रही है, उसमें भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के बच निकलने के चोर रास्ते और लम्बा खिंचने की तमाम सम्भावनाएं हैं।
पत्रकारों से बातचीत में हजारे ने पुनः आमरण अनशन पर बैठने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था- उन्हें इस बात से काफी दुःख हुआ कि प्रधानमंत्री ने जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने वाली संयुक्त समिति में वरिष्ठ मंत्रियों के साथ समाज के जाने माने लोगों को शामिल करने के उनके प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसलिए पूर्व में की गई घोषणा के अनुसार मैं आमरण अनशन पर बैठंूगा। यदि इस दौरान मेरी जिन्दगी भी कुर्बान हो जाए तो मुझे इसका अफसोस नहीं होगा। मेरा जीवन राष्ट्र को समर्पित है। हजारे ने कहा कि रिटायर्ड न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े, वकील प्रशांत भूषण और स्वामी अग्निवेश जैसे जाने माने लोगों के विचारों को सरकार ने महत्वपूर्ण नहीं समझा।
”भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जनलोकपाल लागू करवाना है।“ - अन्ना हजारे
श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण
किसी भी अवतार-महापुरूष इत्यादि का सार्वभौम सत्य ज्ञान एक हो सकता है परन्तु उसके स्थापना की कला उस अवतार-महापुरूष इत्यादि के समय की समाजिक व शासनिक व्यवस्था के अनुसार अलग-अलग होती है, जो पुनः दुबारा प्रयोग में नहीं लायी जा सकती। वर्तमान तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जिससे यह सिद्ध होता हो कि उस अवतार-महापुरूष इत्यादि की कला को दुबारा प्रयोग कर कुछ सकारात्मक किया गया हो। इस सम्बन्ध में आचार्य रजनीश ”ओशो“ जी की वाणी है-
”एक तरह का सिद्व एक ही बार होता है, दोबारा नहीं होता। क्योकि जो सिद्ध हो गया, फिर नही लौटता। गया फिर वापस नहीं आता। एक ही बार तुम उसकी झलक पाते हो- बुद्व की, महावीर की, क्राइस्ट ही, मुहम्मद की, एक ही बार झलक पाते हो, फिर गये सो गये। फिर विराट में लीन हो गये। फिर दोबारा उनके जैसा आदमी नहीं होगा, नहीं हो सकता। मगर बहुत लोग नकलची होगें। उनको तुम साधु कहते हो। उन नकलीची का बड़ा सम्मान है। क्योंकि वे तुम्हारे शास्त्र के अनुसार मालूम पड़ते हैं। जब भी सिद्ध आयेगा सब अस्त व्यस्त कर देगा सिद्ध आता ही है क्रान्ति की तरह ! प्रत्येक सिद्ध बगावत लेकर आता है, एक क्रान्ति का संदेश लेकर आता है एक आग की तरह आता है- एक तुफान रोशनी का! लेकिन जो अँधेरे में पड़े है। उनकी आँखे अगर एकदम से उतनी रोशनी न झेल सके और नाराज हो जाय तो कुछ आश्चर्य नहीं।“
एक सत्य कानून को लागू करवाने के लिए आपका संघर्ष सराहनीय था। परन्तु समय के अनुसार अब अनशन और हिसंक क्रान्ति जैसा मार्ग अब अ-प्रभावकारी और अ-मान्य है। अब यदि विचार अच्छे हों तो वह विचार करने के उपरान्त स्वंय ही लागू हो जायेगी। दौर आत्मीय बल का है और समाज के लिए अच्छा ही करना नेतृत्व की विवशता है।
आज के 20 वर्ष पहले जब धीरे-धीरे कम्प्यूटर ने समाज में प्रवेश करना शुरू किया था तो तमाम कर्मचारी संघ ने इसे बेरोजगारी बढ़ाने वाला बताया था। बेरोजगारी तकनीकी से नहीं बढ़ती बल्कि तकनीकी के अनुसार स्वयं को योग्य न बना पाने के कारण बढ़ती है। यदि केवल कम्प्यूटर को ही जीवन से हटा दिया जाय तो समस्या इतनी बढ़ जायेगी कि इतनी बड़ी जनसंख्या के सुविधाओं को नियंत्रित करना नामुमकिन हो जायेगा। उस समय जब धीरे-धीरे कम्प्यूटर ने समाज में प्रवेश करना शुरू किया था तो शायद मनुष्य के प्रकृति को परिवर्तित करने में इसका कितना बड़ा योगदान हो जायेगा, किसी ने भी ना सोचा होगा। सभी नैतिकता कानून से ही नियंत्रित नहीं हो पाते, बहुत सी अनैतिकता तकनीकी द्वारा रोक दिये जाते हैं और मनुष्य विवश हो जाता है- नैतिक बनने के लिए।
कानून पे कानून, बनाते-बनाते तो भारत का संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान बन गया लेकिन नागरिक अभी भी नैतिकता युक्त नहीं हो पा रहे। इसका स्पष्ट संकेत यह है कि नागरिको के मन-मस्तिष्क में गलत चिप्स या साफ्टवेयर चल रहा है। इसलिए साफ्टवेयर या विचार को आधुनिक बनाना मूल कार्य होना चाहिए।
बुड्ढा कृष्ण-कृष्ण भाग-2 और अन्तिम की कुछ पक्तियाँ हैं -
सखी, मेरे बाल रूप को, मेरे युवा रूप को, मेरे प्रेम रूप को, मेरे गीता उपदेश को यह संसार समझने लगा है। मैं सिर्फ अपना बचा शेष कार्य पूर्ण करने आया हूँ। ”नव मनुष्य और सृष्टि निर्माण“, जिसमें अब न तो पाण्डवों की आवश्यकता है न ही कौरवों की। अब तो न पाण्डव हैं न ही कौरव हैं, वे तो पिछले समय में ही मुक्त हो चुके। अब तो पाण्डव व कौरव एक ही शरीर में विद्यमान हैं। जिस किसी को देखो वह कुछ समय पाण्डव रूप में दिखता है तो अगले समय में वही कौरव रूप में दिखने लगता है। फिर वही पाण्डव रूप में दिखने लगता है। सब कुछ विवशता वश एकीकरण की ओर बढ़ रहा है। अब युद्ध कहाँ, अब तो उस एकीकरण के मार्ग को दिखाना मात्र मेरा शेष कार्य हैं। और इस कार्य में मैं बिल्कुल अकेला, निःसंग, न कोई मेरे लिए जीवन की कामना करने वाला, न ही कोई मेरी मृत्यु की कामना करने वाला, न ही मुझसे मिलने की चेष्टा करने वाला, न ही मुझसे कुछ सुनने वाला, न मुझे कुछ सुनाने वाला और न ही गोपीयाँ हैं। दर असल मैं मृत ही पैदा ही हुआ था, एक मरा हुआ जीवित मनुष्य, यही मेरा इस जीवन का रूप था। और मेरे इस जीवन को संसार बुढ़े कृष्ण के रूप में याद करेगा जो मुझ परमात्मा के पूर्ण कार्य का भाग दो होगा, जिसे लोगों ने देख व जान नहीं पाया था। आज मैं बहुत कुछ बताना चाहता हूँ सखी क्योंकि तुम्हारे सिवा मुझे कौन सुनता ही था और कौन समझता ही था, और कौन विश्वास ही करता था। - मैं बोलता जा रहा था।
तात्पर्य यह है कि आपके साख का उपयोग करने के लिए लोग आपके साथ आये और प्राप्त संसाधन और अपनी आधुनिक बदलती प्रकृति के अनुसार स्वयं का मार्ग निर्धारित कर आगे बढ़े, आपके संघर्ष और उद्देश्य को वहीं छोड़ दिये। फिर भी आप एक अच्छे इन्सान, अच्छे उद्देश्य लेकर जीवन जीये हंै। इसमें कोई शक नहीं इसलिए ही आप ”विश्वशास्त्र“ में स्थान पा सके।
ध्यान रहे स्थिर तारे अर्थात स्थिर या निर्धारित प्रकृति पर निशाना या योजना बनाया जाता है गतिशील और परिवर्तनशील प्रकृति पर नहीं। महाभारत तभी हो सका जब स्थिर या निर्धारित प्रकृति के व्यक्ति थे जिन्हें पुरूष कहते हैं। गतिशील और परिवर्तनशील को तो प्रकृति या नारी कहते हैं। गतिशील और परिवर्तनशील, नर या नारी हो उसे नारी ही कहते हैं और स्थिर या निर्धारित, नर या नारी हो उसे पुरूष ही कहते हैं।
जब गतिशील और परिवर्तनशील ही नर या नारी हो गये हो तो यह कहना ही पड़ेगा कि - (बुड्ढा कृष्ण-कृष्ण भाग-2 से) सखी, तुम्हारे उत्तर से अब यह स्पष्ट हो चुका है कि तुम अब पूर्ण हो चुकी हो। अब तुममे और मुझमें कोई अन्तर नहीं है। तुममें, मैं और मुझमें, तुम। आदि में, मैं और अन्त में भी, मैं। और अब, सभी में, मैं और मुझमें, सभी। सखी, व्यक्ति, समाज, राज्य की आवश्यकताओं को देखो, भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणीयों को देखो, ये सब मुझे पुकार रही हैं। ग्रहों के चालों, सूर्य व चन्द्र ग्रहण को देखो, ये सब मेरी उपस्थिति को बता रही हैं। मैं आया था, मैंने अपना कार्य पूर्ण किया मैं जा भी रहा हूँ, तुमसे एकाकार होकर। मैं मुक्त था, मैं मुक्त हूँ, मैं मुक्त ही रहूँगा। आओ सखी चलें। यह पूर्ण पुरूष और पूर्ण प्रकृति का महामिलन है। मैं ही योगेश्वर हूँ, मैं ही भोगेश्वर हूँ। आदि में योगेश्वर हूँ और अन्त में भोगेश्वर हूँ। मैं प्रकृति को नियंत्रित कर व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य रूप से विकसित होकर सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य जगत में व्यक्त होता हूँ। अब ईश्वर भी अपने कत्र्तव्य से मुक्त है और प्रकृति भी। जो ईश्वर है वही प्रकृति है। जो प्रकृति है वही ईश्वर है। दोनों एक-दूसरे के अदृश्य और दृश्य रूप हैं। प्रत्येक में दोनों विद्यमान हैं। यही अर्धनारीश्वर है।
एक मात्र मैं ही पुरूष हूँ। अकेला चलो रे।
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