Monday, March 23, 2020

विश्वमानव और श्रीमती सोनिया गाँधी (9 दिसम्बर 1946 - )

श्रीमती सोनिया गाँधी (9 दिसम्बर 1946 - )

परिचय -
सोनिया गाँधी (एन्टोनिया मैनो) का जन्म वैनेतो, इटली के क्षेत्र में विसेन्जा से 20 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से गाँव लूसियाना में हुआ था। उनके पिता स्टेफिनो मायनो एक भवन निर्माण ठेकेदार थे और भूतपूर्व फासिस्ट सिपाही थे जिनका निधन 1983 में हुआ। उनकी माता पाओलो मायनों हैं। उनकी दो बहनें हैं। उनका बचपन टूरिन, इटली से 8 किलोमीटर दूर स्थित ओर्बसानों में व्यतीत हुआ। 1964 में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में बेल शैक्षणिक निधि के भाषा विद्यालय में अंग्रेजी भाषा का अध्ययन करने गई। जहाँ उनकी मुलाकात राजीव गाँधी से हुई, जो कि उस समय ट्रिनटी विद्यालय, कैम्ब्रिज में पढ़ते थे। 1968 में दोनों का विवाह हुआ जिसके बाद वे राजीव गाँधी की माता, इन्दिरा गाँधी के साथ भारत में रहने लगीं। राजीव गाँधी के साथ विवाह होने के काफी समय बाद उन्होंने 1983 में भारतीय नागरिकता स्वीकार की। उनकी दो सन्तानें हैं- पुत्र राहुल गाँधी (जन्म 19 जून, 1970) और पुत्री प्रियंका गाँधी (जन्म 12 जनवरी, 1972) जिनका विवाह राबर्ट वड्रा से हुआ है।
पति राजीव गाँधी की 21 मई, 1991 में हत्या के पश्चात् कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की  घोषणा कर दी परन्तु सोनिया ने उसे स्वीकार नहीं किया और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि - ”मैं अपने बच्चों को भीख माँगते देख लूँगी, परन्तु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूँगी“ काफी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर ध्यान केन्द्रित किया। उधर पी.वी.नरसिंहाराव के कमजोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण 1996 का आम चुनाव कांग्रेस हार गई और उसके बाद सीताराम केसरी के कांग्रेस के कमजोर अध्यक्ष होने के कारण कांगे्रस का समर्थन कम होता जा रहा था जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरू-गाँधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। उनके दबाव में सोनिया गाँधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अन्दर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हूए होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमजोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसीयों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे। सोनिया गाँधी अक्टुबर 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ी और करीब 3 लाख वोटों की विशाल बढ़त से विजयी र्हुइं। 1999 में 13वीं लोकसभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गईं। 2004 के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधानमंत्री बनेगें पर सोनिया ने देश भर में खूब प्रचार किया और सबको चैंका देने वाले नतीजों में यू.पी.ए. को अनपेक्षित 200 से ज्यादा सीटें मिली। सोनिया गाँधी स्वयं रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं। वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फैसला किया जिससे कांग्रेस ओर उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। 16 मई 2004 को सोनिया गाँधी 16 दलीय गठबंधन की नेता चुनी गई जो वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाता जिसकी प्रधानमंत्री सोनिया गाँधी बनती। सबको अपेक्षा थी कि सोनिया गाँधी ही प्रधानमंत्री बनेगी और सबने उनका समर्थन किया, परन्तु एन.डी.ए. के नेताओं ने सानिया गाँधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए और कुछ सुषमा स्वराज और उमा भारती जैसी जानी मानी नेताओं ने ऐसी घोषणा कर दी कि यदि सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री बनी तो वो अपना सिर मुड़वा लेगी और भूमि पर ही सोयेंगी। ऐसा माना जाता हे कि तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अबुल कलाम ने भी उन्हें प्रधानमंत्री बनाने से मना किया था। तब 18 मई को मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने का अनुरोध किया और प्रचारित किया कि सोनिया गाँधी ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनने की घोषणा की है। कांग्रेसियों ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फैसले को बदलने का अनुरोध किया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने, पर सोनिया गाँधी को दल तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया। राष्ट्रीय सलाहकार समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गाँधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सलाहकार समिति के अध्यक्ष पद और लोकसभा की सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तर प्रदेश से पुनः सांसद चुनी गईं और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वन्दी को 4 लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यू.पी.ए. के लिए देश की जनता से वोट माँगा। एक बार फिर यू.पी.ए. ने जीत हासिल की और सोनिया यू.पी.ए. की अध्यक्ष चुनी गईं। महात्मा गाँधी की वर्षगांठ के दिन 2 अक्टुबर 2007 को सोनिया गाँधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को सम्बोधित किया और वे वर्तमान में भी भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहीं हैं।


‘‘शिक्षा के भारतीयकरण, राष्ट्रीयकरण और आध्यात्मिकता से जोड़े जाने का प्रस्ताव है, उसका क्या अर्थ है? क्या पिछले पचास वर्षो से लागू शिक्षा प्रणाली गैर भारतीय, विदेशी थी जिसमे भारत की भूत और वर्तमान वास्तविकताएं नहीं थीं?’’ (अटल विहारी वाजपेयी को लिखे पत्र में)
-श्रीमती सोनिया गाॅधी, 
  साभार - आज, वाराणसी, दि0-23-10-98

श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा स्पष्टीकरण 
‘‘शिक्षा की सत्य प्रणाली ज्ञान-विज्ञान-तकनीकी आधारित होती है। व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य काल में यह ज्ञान-कर्मज्ञान-अदृश्य कर्मज्ञान-अदृश्य विज्ञान-अदृश्य तकनीकी पर आधारित तथा सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य काल में यह ज्ञान-कर्मज्ञान-दृश्य कर्मज्ञान-दृश्य विज्ञान-दृश्य तकनीकी पर आधारित होती है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली कालानुसार नहीं है। वर्तमान समय की शिक्षा प्रणाली केवल दृश्य विज्ञान-दृश्य तकनीकी पर आधारित है जो ज्ञान-कर्म ज्ञान-दृश्य कर्मज्ञान के बिना अधुरी है। शिक्षा के भारतीयकरण, राष्ट्रीयकरण और आध्यात्मिकता से जोड़े जाने के प्रस्ताव का अर्थ शिक्षा में ज्ञान-कर्मज्ञान-दृश्य कर्मज्ञान को सम्मिलित करना है। जो मानव एवम् प्रकृति का सत्य हैं और सत्य किसी सम्प्रदाय का नहीं बल्कि सर्वव्यापी सत्य है। कोई भी इसकी अनुभूति करें या न करे, यदि शिक्षा में यह सर्वव्यापी सत्य नहीं तो वह गैर भारतीय ही होगी या यूॅ कहें कि गैर मानवीय होगी। पिछले पचास वर्षो से लागू शिक्षा प्रणाली गैर भारतीय ही है जिसमें भारत की भूत और वर्तमान की वास्तविकताएं तो हैं परन्तु भविष्य की आवश्यकताएं नहीं है। इक्कीसवीं सदी और उसके उपरान्त की शिक्षा प्रणाली सत्य चेतना अर्थात भूत काल का अनुभव, भविष्य की आवश्यकतानुसार वर्तमान में कार्य करने पर आधारित होगी, न कि प्राकृतिक चेतना अर्थात् भूत काल का अनुभव के अनुसार वर्तमान में कार्य करना पर।’’      


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